Friday, December 27, 2024
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कुमाऊनी महिलाओं की सांस्कृतिक पहचान “नाखक टुकम बे लंबा पिठ्या”कुमाऊनी रोली टीका!

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पिठ्या

बचपन में हमारी अम्मा (दादी जी) जाड़ों में हल्दी ,सुहागा,आदि के मिश्रण से घर का पिठ्या रोली तिलक बनाती थी। फिर घर के शुभ कार्यों में वहीं तिलक प्रयोग में लाया जाता था। ब्राह्मण ज्यू आते थे, पाठ मंत्रोच्चार के साथ सभी को तिलक करते थे। और घर कि महिलाओं को नाख से माथे तक एक लंबा पिठ्या रोली तिलक लगाते थे।

पहले हमारी समझ मे नही आता कि इनको, इतना लंबा तिलक क्यों ?बाद में जब रोजी रोटी के लिए परदेश गए, तब देखा,वहां की महिलाएं तो छोटा सा तिलक लगा रही। तब मेरी  समझ में आया कि कुमाउनी महिलायें ही लंबा तिलक ,जिसको नाखः टुकम बे पिठ्या बोलते हैं, वो हमारी सांस्कृतिक पहचान है। जैसे रंगीन  कुमाऊनी पिछोड़ा हमारी यूनिक पहचान हैं , वैसे ही हमारी मातृशक्ति का लंबा तिलक हमारी शान है।

मगर हमारी यह अब हमारी यह सांस्कृतिक पहचान विलुप्ति की ओर अग्रसर है। आधुनिक पीढ़ी की माताएं बहिने,अपने घर मे नही परदेस में रहती हैं, तो वहाँ के परिवेश के अनुसार उनको हमारा पारम्परिक तिलक ,लंबा पिठ्या लगाने में शर्म आती है।

और जो बहिने गांव में हैं वो भी लंबा पिठ्या नही लगाती। कारण एक ही है, आधुनिक चका चौध की अधूरी समझ।

“आजकल तो यही चलता है, “जा चेला दुकानम बैटी 5 रुपे टिका पूड़ी ले आ, और प्लेट में घोई ,शीश मे देखि गोल टिकक लगे ली”

मगर यह परम्परा विलुप्ति की कगार पर जरूर है,मगर कुछ क्षेत्रों की माताएं बहिने, इसे अभी भी जीवंत किये हुए है। कुमाऊं के कुछ क्षेत्रों में ,विवाह आदि शुभ अवसरों पर ,महिलाएं नाखम बे पिठ्या लगाई हुई मिल जाती हैं।

2 महीने पहले कि बात है, जब मगशीष के व्याह लग्न चल रहे थे। एक भूली है, मेरी मित्रता सूची में जो बचपन से दिल्ली रहती है। उसकी शादी भी थी ,उसकी शादी की दुल्हन के रूप में फ़ोटो देख कर मैं चौक गया! पहाड़ी पिछोड़े में,सिर पर राधा कृष्ण वाला मुकुट, नाख में टिहरी की चन्द्रहार नाथ, और सबसे विशेष नाखः टुकम बे पिठ्या! सच्ची उजई जयूनी जैसी लग रही थी भूली हमारी।

कहने का मतलब ये है कि कई लोग बाहर रहते हुए भी अपनी सांस्कृतिक जड़ो से जुड़े हैं। और इन्ही लोगो के कारण ये परम्पराएं बची हुई हैं। ये जो हमारा कुमाउनी परिधान है, यह एक यूनिक परिधान है, इसके साथ नाखः टुकम पे पिठ्या,का कॉम्बिनेशन है, इसमे हमारी बहिनो का सौंदर्य अलग ही तेजपूर्ण हो जाता है।

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पिठ्या
फ़ोटो साभार -प्रिंटसेट

कुमाऊँ की महिलाएं क्यों लगाती हैं, लंबा पिठ्या रोली तिलक –

अब आप को तो पता ही होगा, पहले की पीढ़ी इस परंपरा को निभाती आई है,लेकिन आधुनिक पीढ़ी की रुचि केवल कुमाउनी क्लचर को, सोशल मीडिया में लाइक पाने का जरिया बना रही हैं। वास्तविक जीवन मे इसका प्रयोग कम ही रह गया है।

किशोरावस्था मे मैंने पंडित ज्यूँ से उत्सुकतावश पूछ ही लिया, पाने ज्यूँ आमा और ईजा ,काखी को नाखम बे पिठ्या क्यों लगाते हो ? तो पंडित ज्यूँ ने मुझे निम्न बिन्दुओं के माध्यम से इसका महत्व समझाया।

नाखम बे टीका लगाने से महिला के सुहाग स्वस्थ ,तंदुरुस्त ,ओजपूर्ण एवं दिर्घायु होता है। और लंबा पिठ्या रोली तिलक केवल सुहागिन महिलाएं ही लगाती हैं। नाखे टुकम बे टीका लगाने वाली महिलाएं, सकारत्मक ऊर्जा से परिपूर्ण रहती हैं। आस पास सभी पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। पारम्परिक टीका लगाने वाली, सुन्दर लगती है।

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शुभकामनाएं पहाड़ी भाषा मे | best wishesh in garhwali and Kumauni

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शुभकामनाएं

सभी के जीवन में जन्मदिन ,शादी और सालगिरह का एक अपना महत्व होता है। और जब हम उनको इस खास मौके पर शुभकामनाएं देते हैं तो ,उनको खुशी तो मिलती है । इसके साथ साथ उनके साथ रिश्ता और मजबूत हो जाता है।

और यदि हम अपनों को हम अपनी भाषा में संदेश भेजते हैं,तो हमारा आपस का रिश्ता और मजबूत हो जाता है। यानी उसमे और अपनापन आ जाता है।इसी क्रम में हमारी टीम देवभूमि दर्शन ने आपके लिए कुछ पहाड़ी भाषा में संदेश बनाने की कोशिश की है। अगर अच्छे लगे तो शेयर जरुर करें।

जन्मदिन की शुभकामनाएं कुमाऊनी और गढ़वाली में –

  • “जी रये जागी राये । यो दिन यो बार, आपुण जनम बार मनूनै राये।। जनम बारेक बधाई।।
  • “जुगराज रयाँ मेरा लाटा
    त्वेकु जनम दिन मुबारिक हो”
  • “हे !निर्भगी तीथे जनम दिन की बौत बौत बधे।”
  • जी रये, जागी रये।
    स्याव जे बुद्धि है जो।
    बल्द जे तराण हैं जो।
    दुब जे पनपने रये।
    कफुवे जे धात हैं जो।
    पाणी वाई पतौउ हैं जे।
    लव्हैत जे चमोड़ हैं जे।
    ये दिन यो बार भेंटने रे।
    जी रये जागी रये।
    जनमदिनेक बहुत बधै।
  • तुमथे जन्मदिनक भौत भौत बधै ।
    धारी देवी माँ तुमथे राजी खुशी रखे।
  • दाज्यू/भुलि/दिदि  तुमुकैं भकार भरि भरि बेर,जनमदिनक बधाई हो।”
  • हे म्यार लाटा तुमुथे ,जन्म दिन का वास्ता भौत भौत बधाई छ”
  • हे रे दिदा तुमुथै ,जन्म बारक खूब बधाई छ। भगवान बद्री केदार का आशीष तुमथे मिलता रो।।”

शुभकामनाएं

जन्मदिन की शुभकामनाएं कुमाऊनी मे –

  • बची रया दाज्यू,हर साल केक काटनेर रया।

सौ साल तक बचि रया। आपुण प्यार आशिष, हमूकैं लै  दिनै रया।।”

  • अरसों का खुषबू, बोडा बोडी कु प्यार। बधाई हो भै जी, तुमुथैं , तुमरा जनम बार।।
  • तुमर जनमदिंन छु खास। किलैकी तुम छा साबुक कल्जा पास। आज पुरि हो , तुमरि सब आस।।
  • सबुक प्यार और ,घरेक खुशी मिलो तुमुगु। इष्टदेवक करपा और ईजक आशीष मिलौ तुमुगूं।

तुमर होटो पा हमेशा खितखिताट बनि रौ। एत्तू भरि भरि बेर प्यार और खुशि मिलौ तूमुगू।।

  • बाबा केदार को आशीश, माँ नन्दा कु प्यार मिलौ। भै जी तुमुकैं यो जनमदीन, यो जीवन में बारम बार मिलौ।।

शादी सालगिरह की शुभकामनाएं कुमाऊनी और गढ़वाली  में –

“दाज्यू जी रया ,जागि रया । यसिकै हमू कैं पार्टी  दिनै रया।।

भौजि हाथक मार खाने रया। तुमर और भौजि प्यार अमर है जो।

तुमर खट्ट भौल है जो, आघिल साल तुमर च्यल है जो।।

ब्याक/ सालगिरह  बधाई तुमुकैं और भौजि कैं।”

“कृष्ण रूकमनी कि जोड़ि तुमरी अमर है जो।

ओ दिदि / दादी ,तुमरी ब्याक सलगिरह सुफल है जो।।

इष्ट देवो छाया हो, ईजा बाबू आशीर्वाद मिलौ तुमुकैं।

दिदि / दादी ब्याक सालगिरह मुबारक हो तुमुकैं।।

शुभकामनाएं
शुभकामनाएं पहाड़ी में

घर मे कन्या आगमन पर शुभकामनाएं –

“घोर मा खुशी,समाज में प्यार आयी।  बधै हो भै जी , तुमुथै नोनि ची होयी।।

ईष्ट देवोंक आशिश, पितरों को प्यार लै रै। बधाई हो दाज्यू तुमरि चेलि है रै।।

पत्नी को जन्मदिन की शुभकामनाएं पहाड़ी में

मेरी कल्जे टुकुड़ी,बाने थूपुड़ी , तू जी रे जागी रे, म्यर साथ निभुने रे
1000 साल तक अपूण जन्म बार मनुने रे।।
मेरी लाडुली सैणी ,त्यर जन्मदिन खूब सुफल है जो।।
“यो दिन छू खास, तू छे मेरी खास।
यो विनती छू ईष्ट देवो भै ,तू रै ना कभी उदास।।
मेरी मायादार घरवाई टिके जन्मदिनक बधाई छू ।
जो दिन बे तू मेरी जिंदगी मा आई, म्यर घर मे खुशी ल्याई।
तू 100 साल, बचि रे, तुमुके हैप्पी बर्थडे मेरी घरवाई।।
भाबरे की लाई सुवा भाबरे की लाई।
किभेली के बान मेरी रंगीली घरवाई।।
आजक दिन दैण छू ,सुफल यो महेण छू।
किले की आजक दिन ,दूनी में आई मेरी मयाली घरवाई

कुमाउनी में जन्मदिन कविता पत्नी के लिए –

मेरी सुवा, तू जी रे जागी रे।
म्यर दैगे जिंदगी भर लड़ने रे।।
तेरी लड़े में ले प्यार छू।
तेरी बिना जिंदगी बेकार छू ।।
यो दिन यो बार सुफल है जो।
मेरी भाग्यानी त्यर जन्मबार मंगल है जो।।
यसीके जन्म बार रोज मनुने रै।
मेरी सुवा तू जी रे जागी रे…..
स्याव जसि तेरी बुद्धि है जो।
बल्द जस  तुकु तराण है जो।।
तू समाज मे  पाणि  जसि पतई है जे।
परेशानी में ल्वेहट जसि चमोड़ है जे।
मेरी लाडुली त्यर जन्मबार सुफल है जो।

पति के लिए जन्मदिन की शुभकामनाएं कुमाउनी में-

अपने प्यारे पति को कुमाऊनी में शुभकामनाएं प्रेषित करने हेतु ये छोटी सी तुकबंदी वाली कुमाऊनी कविता का सहारा भी ले सकते हो। उम्मीद है अपनी भाषा में शुभकामनाएं आपके प्रियतम पसंद आएँगी।

मेरी शान छा तुम,
मेरी जान छा तुम।
म्यर अभिमान छा तुम
तुमर जन्मबार म्यर मंगल बार छू।
किले की म्यर सिंदुरेक पहचान छा तुम।
जन्मबारक भौत बधई, तुमुकु म्यारा स्वामी ।।
हिया मा तुमरो  ख्याल रुछ,
रति धुपेरी और ब्याल रुछ।
तुम रिसओ ,तो दिन भरी मलाल रुछ।।
मिके एसिक न दुखाई करो।
मी प्यारल मनु तो मान जाई करो।।
तुमर लिजी भूमियों थानम हाथ जोडनु आज।
तुमर जन्मबार सुफल है जो आज।।
म्यारा प्यारा स्वामी , म्यर जीवनक आधार।
तमु लिभे मी छि, तमु लिभे म्यर प्यार।
तुम जी राया, जागी राया,खुशी राया।
हजार साल तक  मनुने राया यो त्यार।।
म्यारा स्वामी हम सबुते सुफल है जो,
मंगल है जो तुमर जन्मबार।।

भाभी के लिए जन्मदिन की शुभकामनाएं पहाड़ी में –

रॉवणे ले गोली मारी, राम ज्यूँ बाणा।
जन्मबार सुफल हो तुमर भोजी,

तुम छा हमर दाज्यू का प्राणा।।
तुम म्यर ईजक समान छा,  तुम दाज्यूक जान छा।

भौजी तुमर जन्मबार खास छू, तुम हमर घरेक पहचान छा।।
रोज यसीके हँसते रया, आपुन आशीष ,प्यार मिके दिने राया।
हजार सालक तुमरी उमर है,जो हर साल यसीके जन्मबार मनुने राया।
“जन्मदिक़् भौत भौत बधई तुमुगु भौजी”
“मेरी लाडुली भौजी , तुम जी राया, जागी राया। हँसते राया मुस्कराते राया, हर साल यसीके हमुदगे जन्मबार मनाते राया”

निवेदन  –

पहाड़ी भाषा में शुभकामनाएं हमारा ,अपनी बोली भाषा में संदेश ,एक छोटा सा प्रयास था,अपनी बोली भाषा बढ़ाने के लिए। यदि अच्छा लगा हो तो  सोशल मीडिया पे जरूर शेयर करें

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बुबुधाम रानीखेत के बुबु जी जब स्वयं आये मदद करने।

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श्री सिद्धेश्वर महादेव कालीगाड़ डाथ बुबुधाम रानीखेत। भगवान शिव व माता पार्वती का प्रसिद्ध मंदिर। यह मंदिर रानीखेत से लगभग 7 किमी दूर घिंगारी खाल के पास स्थित है। यह मंदिर रानीखेत मजखाली रोड पर स्थित है।

चारो ओर चीड़ के लंबे लंबे  पेड़ों से ढके नैनी गांव के मोड़ पर बसे इस मंदिर में अभूतपूर्व शांति का अहसास होता है। इसके आस पास घूमने के लिए रानीखेत का प्रसिद्ध गोल्फ ग्राउंड हैै। और रानीखेत मे चौबटिया गार्डन ,भालू डाम है। हेड़ाखान मंदिर भी नजदीक ही है। माता झूला देवी का मंदिर भी आस पास ही है।

मित्रों आज मैं आपको बुबुधाम रानीखेत की लोककथा के बारे में बताउंगा। जो कथाएँ इस मंदिर के बारे में बताई जाती हैं। मुझे यह लोक कथा स्वयं मेरे नाना जी ने बताई जिनके साथ साक्ष्यात यह वाकया हुआ।

बुबुधाम रानीखेत की प्रचलित कथा –

बुबुधाम रानीखेत के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। जिनके अनुसार वहा एक पुण्यात्मा का वास हैं, जो बुबु जी (कुमाउनी भाषा मे दादा जी ) के रूप में लोगो की मदद करती है। लोगो का साथ निभाती है। कहते हैं कि पहले आस पास कोई आदमी या औरत कोई भी परेशानी में होते थे, तो एक  बुजुर्ग आते थे, और उनकी परेशानियों का निवारण करके चले जाते थे। स्थानीय क्षेत्रवासियों ने उनको  प्रेमवश बुबु जी के नाम से बुलाना शुरू कर दिया। कुमाऊं क्षेत्र में दादा जी को बुबु जी कहा जाता है। (बुबुधाम रानीखेत )

इसलिए वहां से जो भी राहगीर गुजरता है, वह पर बिना माथा टेके, बिना प्रणाम किये ,आगे नही बढ़ता। इन्ही मददगारो की लिस्ट में मेरे नाना जी भी रहे । उनके साथ भी एक घटना घटित हुई।उन्होंने हमको बताई,और मैं आप लोगो के साथ शेयर कर रहा हूँ।

बात उन दिनों की है, जब  मोटर मार्ग केवल रानीखेत तक ही था। रानीखेत से आगे जाने के लिए पैदल जाना पड़ता था। मेरे नाना जी चौबटिया गार्डन में नौकरी करते थे। शाम को अक्सर वो घर ही आते थे। शाम को छुट्टी होने के बाद पैदल घर के लिए चल देते थे। उस समय जंगली जानवरों के भय और नकारात्मक शक्तियों का भय ज्यादा रहता था। इसलिए रानीखेत से लोग घर को ग्रुप में ही आते थे।

एक दिन मेरे नाना जी को ,रानीखेत से घर के लिए निकलने के लिए काफी देर हो चुकी थी। और उनके साथ मे कोई नही था। रानीखेत से निकलते निकलते लगभग आधी रात हो गई, अब जाना तो घर हो था। और कोई ऑप्शन नही था।

नाना जी ने घर की तरफ चलना शुरू कर दिया, मन मे अनिष्ट का भय हो रहा था, दिल घबरा रहा था। मगर फिर भी चले जा रहे थे। जंगली जानवर भयानक आवाजे निकाल रहे थे।

अचानक मेरे नाना के साथ एक बुजुर्ग चलने लगते है, सफेद कपड़े ,पहाड़ी टोपी और तेज पूर्ण मुख। नाना जी को आश्चर्य हुआ कि अचानक ये आदमी कहाँ से आया। उन्होने नाना जी की  ओर देखा,और बोले कहा जाना है, महाराज ? मेरे नाना ने  अपने गांव का नाम बताया । तब वो बोले अरे वाह !मुझे तुम्हारे बगल के गांव में जाना है। चलो साथ चलते हैं, तुम चिंता मत करो ,और आराम से चलो। ( बुबुधाम रानीखेत)

बुबुधाम रानीखेत
बुबुधाम रानीखेत

मेरे नाना जी बताते हैं, कि जैसे ही उन बुजुर्ग ने उनसे ये शब्द बोले, वैसे ही उनके मन का डर खत्म हो गया।वो निश्चिंत होकर बुबु के साथ गप्प मारते हुए चलने लगे।

बातों बातों में  उनको पता भी नही चला कि,वो कब गांव के पास पहुच गए। जब गांव के बॉर्डर पर आए तो, नाना को बुबुजी बोले, महाराज अब आप अपने गांव की सीमा में पहुच गए हो,आप अपने ईष्ट देव की छत्र छाया में आ गए हो, अब आप सुरक्षित हो। मुझे भी अपने गांव जाना है। इतना कहकर बुबु जी ने दूसरे गांव का रास्ता पकड़ लिया।नाना अपने गांव के रास्ते चलने लगे।

नाना ने 2 कदम आगे जा के , बुबु जी के रास्ते की तरफ देखा, तो उस रास्ते पर कोई नही था। थोड़ी देर के लिए नाना को डर,और आश्चर्य दोनो एक साथ हुआ। मगर  फिर वो समझ गए। हो न हो वो बुबुजी  थे जो उनको छोड़ने आये थे। नाना ने मन मे बुबु जी को प्रणाम, धन्यवाद दिया और घर की तरफ बढ़ गए।

दोस्तों इन्ही चमत्कारी कार्यो की वजह से कालिगाड डॉट पर बुबु जी की स्मृति में एक शिव मंदिर की स्थापना की गई है।और साथ मे बुबु जी का मंदिर भी बनाया गया है।

बुबुधाम रानीखेत
बुबुधाम रानीखेत

बुबुधाम रानीखेत कैसे जाएँ –

मित्रो बूबूधाम जाने के लिए आपको हल्द्वानी से रानीखेत जाना होगा। फिर रानीखेत से बुबुधाम रानीखेत  के लिए, स्थानीय टेक्सी, बसों के द्वारा गया जा सकता है। उत्तराखंड परिवहन निगम की बसें भी जा रही हैं, उनसे भी जा सकते हैं।

निवेदन –

मित्रों प्राचीन काल मे, लोगो के तथा प्रकृति के बीच अच्छा सामजस्य था। पुण्यात्मा स्वयं मनुष्य की रक्षा करने आती थी। प्रकृति से साथ मानव की  दोस्ती थी। वर्तमान में विकास की दौड़, और शहरी जिंदगी के लालच में हम अपनी जड़ों को खुद खो रहे हैं। जिन पहाड़ों मे कभी पुण्यात्माएं वास करती थी,आज वहां शराब और जुआ,ग़लत काम हो रहे हैं।

मानव ने अपने निजी स्वार्थ के लिए ,प्रकृति का असंतुलित दोहन कर दिया है। पहाड़ों में प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। इसी के कारण हमारी देवभूमि मे, केदारनाथ , रैणी जैसी प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं। बादल फटने की घटनाए बढ गई हैं। ये सब प्रकृति का संतुलन खराब करने का नतीजा है।

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धन्यवाद।।

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बिनसर महादेव मंदिर ,रानीखेत उत्तराखंड।

खजूर का झाड़ू – उत्तराखंड में स्वरोजगार का अच्छा साधन बन सकता है।

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खजूर का झाड़ू

उत्तराखंड में लोग कई प्रकार के स्वरोजगार कर रहे हैं। आज हम आप लोगो को एक आसान से स्वरोजगार के बारे बताने वाले हैं,जिसके लिए आपको ना ज्यादा पैसा चाहिए,और ना ज्यादा जगह। अगर गाव मे आपके आस पास खजूर की झाड़ियां है, तो आप बहुत आसानी से खजूर का झाड़ू बना कर बेच सकते हो।

उत्तराखंड में खजूर के झाड़ू बना के पैसा कमाया जा सकता है। और यह कार्य शुरू किया है, बेतालघाट निवासी श्री गोधन बिष्ट जी ने। गोधन बिष्ट यूपीएससी की तैयारी करते है। लॉकडाउन के समय उन्होंने अपने आस पास होने वाले खजूर के पत्तों को सदुपयोग किया ,और बेरोज़गारी को झाड़ू बना कर भगाया।

गोधन बिष्ट जी पहले इंसान नहीं है, जिन्होंने खजूर के पत्तो के झाड़ू बनाया। उस क्षेत्र के लगभग सभी लोग खजूर के झाड़ू का प्रयोग करते हैं। परन्तु वो लोग केवल अपने प्रयोग के लिए झाड़ू बनाया करते हैं। और गोधन जी इसी काम को एक स्वरोजगार के विकल्प के रूप में चुना।

खजूर का झाड़ू बहुत आसानी से बन जाता है, और यह फूल झाड़ू से ज्यादा फायमंद भी है। यह झाड़ू प्रयोग करने के लिए भी सुविधा जनक होता है।

उत्तराखंड में खजूर का झाड़ू –

उत्तराखंड में खजूर की झाड़ियां लगभग सभी जगह पर मिलती है। यह अधिकतर खुसक भूमि और अधिक ऊंचाई वाले जगहों मे ज्यादा मिलती है। उत्तराखंड में विशेषकर नैनीताल जिले में खजूर की झाड़ियां अधिक देखी जाती हैं। नैनीताल जिले के बेतालघाट और कोशियाकोतुली, गरम पानी ,खैरना, इन क्षेत्रों में खजूर के पेड़ या झाड़ियां अधिक मिलती हैं। इसके अलावा चमोली ,कुमाऊ बॉर्डर गवालदम मे भी ये खजूर के पत्तो की झाड़ियां अच्छी मात्रा में हैं।

कुमाऊ मे इसे थकोव झाड़ू या थाकोव कूच भी कहा जाता है।इसी प्रकार सम्पूर्ण उत्तराखंड में कई स्थानों पर ये खजूर की झाड़ियां पाई जाती हैं।

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 खजूर का झाड़ू कैसे बनाए –

खजूर के पत्तो का झाड़ू बनाने के लिए , ज्यादा मेहनत की जरूरत नहीं है । बहुत आसानी से ये झाड़ू बना कर ,बाजार में लगभग 50 रुपए में बेचा जा सकता है। और यह फूल झाड़ू का सबसे अच्छा विकल्प है। फूल झाड़ू मे से Powder निकलता है, जब तक पाउडर निकलना बन्द होता है, तब तक झाड़ू खत्म।

खजूर का झाड़ू
खजूर के पत्तो के झाड़ू

खजूर का झाड़ू-

आइए मित्रों बहुत ही आसान स्टेप्स मे सीखते हैं, खजूर  के पत्तो का झाड़ू बनाना –

  • खजूर का झाड़ू बनाने के लिए सर्व प्रथम खजूर के पत्तों को टहनी के साथ काट कर सूखने रख लिया जाता है।
  • पत्तो के अच्छी तरह सूख जाने के बाद ,उनकी सफाई, फिनिशिंग करके अच्छा बना लेते हैं
  • फिर सभी टहनियों को मुठ्ठी में इक्कठी करके ,उनको एक झाड़ू के रूप में बांध लेते हैं।सबकी पत्तियों की दिशा एक हो।
  • बांधने के लिए अच्छी डोरी और रंगीन टेप का इस्तेमाल करने से झाड़ू ज्यादा आकर्षक लगेगा।
  • दूसरी विधि मे आप थोड़ा ,डिजाइनर बना सकते हैं।आस पास कोई कारीगर है, तो उससे सीख सकते हैं। नहीं तो आपका स्मार्टफोन आपका गुरु है, यूटयूब मे ऐसी कई विधियां है,जिससे आप डिजाइनर झाड़ू बना सकते हो।
  • तीसरी अंतिम विधि है, मशीन से झाड़ू बनाई, लघु उद्योग के तहत ,काम लागत की  झाड़ू बनाने की मशीन मिलती है।यह मशीन आप स्वरोजगार योजना के अंतर्गत लोन से भी खरीद सकते हैं। मशीन से उच्च गुणवत्ता के झाड़ू आप पूरे देश में निर्यात कर सकते हैं।
खजूर का झाड़ू
खजूर के पत्तो के झाड़ू

खजूर के झाड़ू की विशेषता –

सनातन धर्म में बताया गया है कि, माता लक्ष्मी जी को झाड़ू बहुत प्रिय होता है, और वह झाड़ू खजूर का होता है। यह झाड़ू धार्मिक कार्यों के लिए सबसे अच्छा माना जाता है। खजूर के झाड़ू की दूसरी खासियत यह है कि, यह झाड़ू प्रयोग करने के लिए अच्छा होता है।

जहां एक ओर फूल झाड़ू मे से पाउडर का दिक्कत होता है, वहीं खजूर का झाड़ू साफ सुथरा होता है। खजूर का झाड़ू सस्ता होता है। मतलब कोई भी आम आदमी इसका खर्च वहन कर सकता है। इसका खर्च 50से 100रुपए तक होता है। वहीं फूल झाड़ू 100से150तक का होता है। फाइबर झाड़ू 200से उपर का होता है।

अंत में –खजूर की झाड़ियां , उत्तराखंड में कई स्थानों में मिलती हैं, यह खजूर का झाड़ू बनाने में भी आसान है। इसको बेचने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। इस झाड़ू की उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों में काफी मांग है। यह उत्तराखंड में स्वरोजगार का बेहतर विकल्प बन सकता है।

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गज्जू मलारी उत्तराखंड रवाईं घाटी की एक प्रेम कहानी !

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गज्जू मलारी

चिरातीत काल में देव भूमि उत्तराखंड में अनेक महाविभूतियों ने जन्म लिया। और अन्य राज्यों की तरह यहां भी अमर प्रेम कथाएं बनी। इन्हीं अमर प्रेम कथाओं मे से एक है, उत्तरकाशी की रवाई घाटी की गज्जू मलारी की प्रेम कथा।

उत्तराखंड की प्रमुख प्रेम कथाओं में राजुला मलूशाही, रामी बौराणी की कथाएं प्रचलित हैं। राजुला मालुशाई की कथा पर तो फिल्म भी बन गई है। उत्तराखंड के राजा हरु हीत ,और मालू कि कथा भी बहुत प्रसिद्ध है।आज हम आपको उत्तराखंड की एक और प्रेम कथा  गज्जू मलारी की कहानी सुनाते हैं। यह कथा लोक दंतकथाओं पर आधारित है।यह कथा उत्तराखंड के उत्तरकाशी के रवाई घाटी की दोरी-भीतरी में घटित प्रेमगाथा  है।

बहुत समय पहले की बात है, उत्तरकाशी के रवाईं घाटी में एक चरवहा रहता था, जिसका नाम था गज्जू। वह वहां के जंगलों में अपनी भेड़े चरा कर अपना जीवन यापन करता था। वह घुमक्कड़ जीवन यापन करता था। उधर मलारी सौंदाण की विवाहित पुत्री होती है। मलारी के पिता उसकी शादी बचपन मे ही तय कर देते हैं। मगर मलारी अपनी शादी से खुश नही होती, वह बस  एक आदर्श पुुत्रि बन कर अपने पििता के दिये वचन को ( गज्जू मलारी )

निभाती है। एक प्यार को तड़पती ,अपने पिता के बचन से बधी मलारी जैसे तैसे अपनी जिंदगी काट रही थी। एक दिन मलारी अपनी बहन सलारी के साथ जंगल जाती है । जब वो जंगल मे सुतर बीन रही होती है, अचानक उस पर बाघ हमला कर देता है। और वो मदद के लिए चिल्लाती है,तभी पास में गज्जू अपनी भेड़े चरा रहा था। मलारी की आवाज सुनकर ,वो बिना समय गवाए बाघ से भिड़ जाता है। और बाघ को खदेड़ देता है।

तब मलारी और गज्जू की पहली मुलाकात होती है। इस मुलाकात पे गज्जू मलारी एक दूसरे से आकर्षित हो जाते हैं। मगर मलारी को अपने विवाहित होने का अहसास भी रहता है। अपने पिता के वचन कि याद भी रहती है। वह 0इस प्रेम पाश से दूर रहने की बहुत कोशिश करती है,मगर प्रेम और स्नेह के बिना जिंदगी जी रही मलारी बहुत समय तक अपने आप को रोक नहीं पाती,और गज्जू के मोह पाश में पड़ जाती है।

गज्जू एक चरवाह था, घुमक्कड़ी उसका जीवन यापन और मलारी सौंदाण की पुत्री। किसकी हिम्मत को सौंदाण की बहू बेटियों कि तरफ नजर भी डाले। एक तरफ समाज की इतनी बड़ी खाई,दूसरी तरफ मलारी  का मोहपाश। इसी विवशता मे जकड़ा गज्जू भी प्रेम की राह में आगे बड़ गया। ( गज्जू मलारी )

गज्जू मलारी उत्तराखंड रवाईं घाटी की एक प्रेम कहानी !

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मजबूरियों मे जकड़े दोनों प्रेमी, एक दूसरे को साहस देते हैं। गज्जू कहता है,”मै जानता हूं वास्तविकता क्या है, मगर क्या करू मैं अपने आप को नहीं रोक पाया, और तुमसे प्यार कर बैठा। मै तुम्हारे पिता जी के पैरो मे अपनी सीकोई(पहाड़ी टोपी) रख दूंगा,वो जो कहेंगे मै कर दूंगा। मगर वो मुझे तुमसे दूर ना करें।

इन्हीं मधुर मधुर बातों में दिन कट गए, धीरे धीरे मलारी की अतृप्त प्रेम पिपासा तृप्ति के तरफ रुख करने लगी। दोनों का प्रेम परवान चढ़ने लगा। मलारी की बहिन सलारी ने भी मलारी को समझाया , कि तू शादी शुदा है,तेरा गैर मर्द के साथ प्यार करना अधर्म है। इसके जवाब में मलारी कहती है।

हा बहिन यह सत्य है,की उसकी मेरी शादी हुई है,मगर उसकी मेरी आत्माओं का मिलन हुआ ही कहा है,अभी तक,शरीर का मिलन भी कोई मिलन होता है।जब उसकी जरूरत होती है, मै उसके लिए सोतर की तरह बिछ जाती हूं,अपनी जरूरत पूरी करके,वो अनजान बन जाता है मै उसके लिए।

मै तो बस बाबा का वचन निभा रही हूं। मगर अब मै गज्जू के मोहपाश में बधती। जा रही हूं।गज्जू से मेरा आत्मा का मिलन है। इसी प्रकार गज्जू मलारी का प्रेम परवान चढ़ता जा रहा था। मगर नियति को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन मलारी ने गज्जू को मिला देखने बुलाया।

खुद दोनो बहिनें भी मेला घूमने गई, वहा एक युवक ने मलारी से दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया।यह बात गज्जू को पता चली तो,उसने उस युवक की पिटाई कर दी। दुर्भावना से ग्रसित उस युवक ने गांव में सबको बता दिया कि , गज्जू मलारी की प्रेम प्रसंग चल रहा है। यह बात मलारी के पिता सौंदाण को पता चली,उसने गुस्से में आकर मलारी को घर की चार दिवारी मे कैद कर दिया।

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अब एक तरफ सौंदाण की हठधर्मता और दूसरी तरफ मलारी का अतृप्त प्रेम।उधर गज्जू भी ये उम्मीद मे बैठा रहा,की मेरी मलारी एक दिन पक्का मेरे पास आएगी। लोगो के लाख समझाने पर भी मलारी , गज्जू के प्रेम पाश से बाहर नहीं निकल पा रही थी।उधर पिता का सख्त पहरा था, ईधर गज्जू के लिए मलारी के दिल में अगाथ प्रेम।

मलारी गज्जू से मिलने के लिए, पूरी तरह जिद पर उतर आई। मलारी ने प्राणों कि चिंता किए बिना उसने अन्न जल त्याग दिया। भूखी प्यासी रहने के कारण मलारी बीमार होने लगी ,कमजोर पड़ने लगी।उधर गज्जू मलारी की ये हालत अपने सपनो मे देख लेता, चिंतित हो जाता। परन्तु उसके साथी लुदरू और बलमु उसे समझाते की सपने कभी सच नहीं होते हैं।

इधर पुत्री को मरणासन्न देख , सौंदाण का दिल पसीज जाता है,और खुद गज्जू के पास जा कर उसे मलारी के पास लेकर आता है।गज्जू जैसे ही वहां आता है, मलारी का हाथ थमता है। उसके बाद मलारी की आखे पथराना शुरू हो जाती हैं। गज्जू की आंखे डबडब भर जाती है, उसे अहसास हो जाता है, कि अब मेरी मलारी नहीं बचेगी तब वो बोलता है –

मरी त जाले मलारे, साथ त औंनु आऊँ
सून बणौन पत्यौंउ, टाटौंदी गाड़नु ताऊँ.
ताउलें बोलौं मलारे, फूकी औनुं ताऊँ
सल्ल माथ दिकली, जसी पुन्या जाऊँ।

मतलब, मलारी तू मर भी जाएगी तो, मै तेरे साथ ही आऊंगा, तू सदा मेरी रहेगी, मै तेरी मूर्ति की माला बना कर अपने गले मे धारण करूंगा। हे मलारी !मै ही तेरा अंतिम संस्कार करूंगा। चिता पर भी तू पूर्णिमा के चांद सी दिखेगी।

दोनों प्रेमियों की अंतिम बातचीत के चलती जाती है,मलारी गज्जू को एकटक निहारती रहती है,गज्जू को निहारते हुए,मलारी का मुंह गौरेया की तरह खुलता है, आंखे पथरा जाती हैं। गज्जू अपने कपड़े का टुकड़ा फाड़ के उसका मुंह बंद करता है।

इसी के साथ मलारी निष्प्राण हो जाती है…….

संदर्भ – यह कथा, जनश्रुति ,और विभिन्न पत्र पत्रिकाओं ,एवं किताबों के ज्ञान पर आधारित है। यदि कोई त्रुटि हुई हो तो कॉमेंट के माध्यम से अवगत कराए। हम उचित संशोधन करें। ( गज्जू मलारी )

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पहाड़ी गाय जिसे बद्री गाय भी कहते हैं उसके फायदे जानकर दंग रह जाओगे !

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पहाड़ी बद्री गाय
पहाड़ी बद्री गाय

उत्तराखंड की कामधेनु ,पहाड़ की बद्री गाय। जी हां जिस गाय को कम फायदे की बता कर लोगो ने अपनी गोशाला खाली कर दी । और पलायन करके परदेश चले गए। उसी गाय की उपयोगिता आज सरकार के साथ साथ बाकी लोग भी मान रहे हैं।

पहाड़ की बद्री गाय या पहाड़ी गाय –

पहाड़ की बद्री गाय केवल पहाड़ी जिलों में पाई जाती है।इसे “पहाड़ी गाय”के नाम से भी जाना जाता है।ये छोटे कद की गाय होती है।छोटे कद की होने के कारण ये पहाड़ो में आसानी से विचरण कर सकती है।

इनका रंग भूरा,लाल,सफेद,कला होता है। इस गाय के कान छोटे से माध्यम आकर के होते हैं।इनकी गर्दन छोटी और पतली  होती है।

बद्री गायों का औसत दुग्ध उत्पादन 1.2से 1.5लीटर तक होता है। लेकिन कुछ गाएं 6 लीटर तक दूध देती है। इनका दूध उत्पादन समय लगभग 275 दिन का होता है।

इनका मुख्य आहार पहाड़ों की घास,जड़ी बूटियां है। इन्हीं जड़ी बूटियों के कारण इनके दूध और मूत्र में औषधीय गुण होते हैं। इनका दूध,दही,घी विटामिन से भरपूर होता है।

नेशनल ब्यूरो ऑफ़ एनिमल जेनेटिक रिसोर्स (NBAGR) सेंटर करनाल ने भी इन गायों को उपलब्धि को प्रमाणित किया है।

यह उत्तराखंड राज्य के लिए एक तरह की वरदान है। केंद्र सरकार भी इन गायों की ब्रांडिंग की योजना बना रही है।उत्तराखंड राज्य के चम्पावत जिले में इन गायों के विकास के लिए 2012 मे काम शुरू हुआ था।वर्तमान में अन्य जिलों में भी चल रहा है। चमोली में बद्री गाय के घी का अच्छा उत्तपादन चल रहा है।

 बद्री गाय

बद्री गाय का घी –

पहाड़ी क्षेत्रों में जड़ी बूटियां खाने वाली उत्तराखंड की पहाड़ी गाय,दूध से लेकर मूत्र तक औषधीय गुणों से सम्पन्न है। विशेष कर पहाड़ी गाय का घी बहुत लाभदायक होता है। इसकी देश विदेशों में बहुत मांग है।

पहाड़ की बद्री गाय के घी के लाभ –

  • गाय का भोजन जड़ी बूटियां होने के कारण,इनका घी स्वतः ही लाभदायक बन जाता है।
  • इस घी को विलोना विधि से बनाया जाता है, इसलिए इसके औषधीय गुण खत्म नहीं होते हैं
  • बद्री गाय का घी रोग प्रतरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काफी लाभदायक होता है। और स्मरण शक्ति बढ़ती है।
  • यह पाचन के लिए अच्छा है। पित्त और वात को शांत करता है।
  • हड्डियां मजबूत करता है, तथा जोड़ो के दर्द से राहत मिलती है।
  • त्वचा और आंखों के लिए अच्छा होता है।
  • पहाड़ी गाय का घी कॉलेस्ट्रॉल कम करता है।
  • यह घी एंटीऑक्सीडेंट,प्रजनन क्षमता और बाल विकास मे सहायक होता है।
पहाड़ी गाय जिसे बद्री गाय भी कहते हैं उसके फायदे जानकर दंग रह जाओगे !
चमोली में निर्मित पहाड़ी गाय का घी

राज्य में बद्री गाय के घी का उत्पादन –

उत्तराखंड में बद्री गाय के घी का उत्पादन लगभग हर घर में होता है। मगर सरकार की सहायता से कई ग्रोथ सेंटर बनाए गए हैं। इनमे बड़ी मात्रा में बद्री गाय के घी का उत्पादन होता है। इनमे से चमोली का मशहूर बद्री गाय का घी है। तथा चम्पावत मे भी बद्री गाय के घी का उत्पादन किया जाता है। अन्य जिलों में भी घी के ग्रोथ सेंटर चल रहे हैं।

चमोली में महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा पहाड़ी गाय के घी का उत्पादन होता है। इसे वो पारम्परिक वैदिक बिलोना विधि से बनाते हैं। जोशीमठ ब्लॉक में 2 ग्रोथ सेंटर चल रहे हैं।

बद्री गाय का घी कहां मिलेगा –

बद्री गाय का घी उत्तराखंड के  ग्रोथ सेंटर्स में उपलब्ध है। तथा अब बद्री गाय के घी का बाजार बढ़ाया जा रहा है। अब उत्तराखंड का प्रसिद्ध बदरी गाय का घी ऑनलाईन में उपलब्ध है। अमेज़न जैसी ऑनलाईन पोर्टल पर यह घी उपलब्ध है। वर्तमान में कोरोना संक्रमण की वजह से बाजार से आप बद्री गाय का घी नहीं खरीद पाते तो ,कोई बात नही।आप आसानी से अमेज़ॉन से पहाड़ी गाय का घी मंगा सकते हैं।

घी निकालने कि वैदिक बिलोना बिधी –

बिलोना विधि भारत की पारम्परिक घी निकालने की विधि है। इसे हम निम्न बिंदुओं में बताते हैं। सर्वप्रथम दूध को हल्की आंच में खूब देर तक पकने देते हैं। लकड़ी के चूल्हा इस काम के लिए सबसे ज्यादा सही रहता है।
फिर दूध को हल्का ठंडा होने के बाद, पारम्परिक लकड़ी के बर्तनों में दही जमाने रख देते है।

दही प्राकृतिक रूप से जमनी चाहिए, तभी घी में पौष्टिकता रहती है।तत्पश्चात दही को ब्रह्म मुहूर्त में मथनी से मथ कर मक्खन अलग कर लेते है।उस मक्खन को हल्की आंच में गरम करके उसमें से घी निकाल लेते हैं।

पहाड़ी गाय जिसे बद्री गाय भी कहते हैं उसके फायदे जानकर दंग रह जाओगे !
Photo credit- Zindagi plus.com

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कुमाऊनी रायता , सीखिए अनोखे पहाड़ी रायता बनाने की विधि।

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कुमाऊनी रायता
कुमाऊनी रायता,फोटो साभार प्रिंटसेट , उत्तराखंड टूरिज्म. काम

कुमाऊनी रायता जी हा नाम से ही अपनी पहचान बता रहा है। भारतीय भोजन शैली में रायते का विशेष स्थान है। शादी,नामकरण,पूजा या तेरहवीं मे सार्वजनिक भोज को अलग अलंकरण देता है।सामान्यतः रायता बूंदी,और मट्ठे, नमक मिर्च मिला कर बनाया जाता है। थोड़ा अलग तरीके से बनाया जाता है।

इसमें शुद्ध देसी राई की सनसनाहट होती है । छाछ के माखन कि खटास,और पहाड़ी पकी हुई ककड़ी का स्वाद। अच्छे अच्छे लोगों के मुंह से पानी निकाल देता है ये पहाड़ी खीरे का रायता। कुमाऊनी लोगो को रायता बहुत पसंद होता है। कुमाऊं मण्डल के मेलो में,तथा बाजारों में खीरे का रायता बहुत आसानी से मिल जाता है।

नैनीताल भवाली का कुमाऊनी रायता पकोड़ा बहुत प्रसिद्ध है। कुमाऊं मण्डल में लोग रायते को अलग अलग चीजो के साथ मिलाकर अलग कॉम्बिनेशन बना दिए हैं, जो बहुत ही यूनिक और टेस्टी लगता है।

जैसे –

  • रायता पकोड़ा
  • आलू रायता
  • छोले रायता
  • दाल चावल रायता
  • राजमा चावल रायता

कुमाऊनी रायता  बनाने की विधि –

पहाड़ी रायता मुख्यत दो प्रकार से बनाया जाता है-

  • पहाड़ी खीरे का रायता
  • मूली का रायता

पहाड़ी खीरा केवल सितम्बर और अक्टूबर मे होती है। कुमाऊं में रायता साल भर खाया जाता है। जाड़ों मे रायता बनाने के लिए कुमाऊं के कुछ क्षेत्रों में मूली का प्रयोग भी किया जाता है। मूली के प्रयोग से रायते की संसानहट और बड़ जाती।

कुमाऊनी रायता , सीखिए अनोखे पहाड़ी रायता बनाने की विधि।

पहाड़ी रायता ( कुमाऊनी रायता ) बनाने के लिए सामग्री –

  • कद्दूकस की हुई पहाड़ी ककड़ी या मूली
  • छाछ का माखन या दही
  • शुद्ध देशी आर्गेनक राई
  • कटी हुई हरी मिर्च
  • नमक स्वदानुसार , पहाड़ी पिसा नमक हो तो ज्यादा अच्छा।
  • हरा धनिया सजाने के लिए।
  • जंबू गन्दर्यनी तड़के के लिए, यदि आप तड़का लगाना चाहते हैं तो।

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कुमाउनी खीरा रायता बनाने के लिए सर्व्रथम छाछ का माखन बना  लेंगे । छाछ का माखन बनाने के लिए  छाछ को एक पतले कपड़े मे बांध कर टांग देते है। उसके नीचे बाल्टी रख देते है। बाल्टी में पानी जमा हो जाता है। और माखन कपड़े मे रह जाता है।

अगर छाछ का माखन उपलब्ध नहीं है तो, दही से भी बना सकते हैं। उसके बाद पहाड़ी खीरा /पहाड़ी मूली को कद्दूकस करके रख लेते हैं। ककड़ी को निचोड़कर उसका पानी निकाल लेते हैं। उसके बाद देसी राई को तवे में हल्का गर्म करके पीस लेंगे। राई  अपने स्वादानुसार डाले। ज्यादा राई स्वाद खराब कर सकती है।

बाकी की विधि नीचे दिए स्टेप बाई स्टेप मे सीखिए –

  • एक गहरा बर्तन लेंगे
  • उसमें कदुकस की हुई ककड़ी/मूली लेंगे, जो निचोड़कर रखी थी।
  • उसमे छाछ का माखन या दही डालेंगे
  • फिर मिर्च,पिसी हुई राई और नमक मिलाएंगे
  • राई,नामक,मिर्च तीनों ध्यान से स्वादनुसर डाले।
  • इन सामग्री के मिश्रण को अच्छी तरह 5मिनट तक मिलाए।
  • अगर आपको तड़के का स्वाद लेना है तो, थोड़ा तेल गरम करके जंबू गंद्रेनी का तड़का लगा दे।

लो जी तैयार हो गया कुमाऊनी रायता। हरे धनिए से सजाकर अपने मनपसंद पकवान के साथ आंनद लीजिए।

नोट – पहाड़ों में बुजुर्ग लोग बताते हैं। अगर कुमाऊनी रायते का असली स्वाद लेना है तो, इसको बना के 2 घंटे के लिए ढक कर रख दें। इसके बाद इसकी सनसनाहट सिर चड़ती है। मतलब बनाने के बाद कुमाऊनी रायता जितना पुराना होता जाएगा,राई उसपे उतना ज्यादा असर छोड़ देती है। और रायता उतना ही स्वादिष्ट और यूनीक बन जाता है।

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उत्तराखंड का तिमला फल, तिमला फल खाने के लाभ

आखिर क्यों कहते हैं माल्टा फल को पहाड़ी फलों का राजा ?

उत्तराखंड का पहाड़ी फल हिसालू, जानिए फायदे और नुकसान।

ब्रह्म कपाल – पितरों की मुक्ति के लिए गया से भी आठ गुना अधिक फलदायी है ये तीर्थ।

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कोटि बनाल शैली, भूकंप को मात देने वाली उत्तराखंड की विशेष वास्तु शैली।

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उत्तराखंड भूकंप के सबसे खतरनाक जोन में आता है। आजकल उत्तराखंड में 8 रियक्टर पैमाने की भूकंप आने की चेतावनी भी दी गई है। क्या आप जानते हैं ? उत्तराखंड की कोटि बनाल शैली ( koti banal architecture style ) ( भवन निर्माण शैली ) उत्तराखण्ड की विशेष वास्तु शैली है।

यह शैली भूकंप रोधी शैलियों में सबसे मजबूत और टिकाऊ है। पुरखों ने पहाड़ पर रहने के लिए,नई नई तकनीकों को बनाया था । पहाड़ के अनुकूल होकर जीवन यापन कर भी रहे थे। मगर हम लोगो को लगता है, पहाड़ रहने लायक नहीं है। हम ये इसलिए लगता है कि हम अपने पुरखों की विरासत भूल चुके हैं। हम सब शहर की चका चौध मे खो गए हैं।

कोटि बनाल शैली

कोटि बनाल शैली क्या है –

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के कुछ क्षेत्रों मे, विशेष पारम्परिक भवन निर्माण शैली का प्रयोग किया जाता रहा है। इसमें मकान बनाने से पहले लकड़ी, के ऊंचे प्लेटफॉर्म का प्रयोग किया जाता है। फिर लकड़ी के विमो का नियमित अंतराल पर प्रयोग किया जाता है। लकड़ियों को इस तरह एक दूसरे मे फसाया जाता है कि वो गिरे ना। यह मकान लगभग पूरा लकड़ी से बनाया जाता है।

लकड़ियों को कुछ विशेष तकनीक से एक दूसरे से जोड़ा होता है। इस कारण बड़े से बड़ा भूकंप इन मकानों का कुछ भी बिगाड नहीं पता। भवन निर्माण की इस शैली को ,कोटि बनाल शैली कहा जाता है। कोटि बनाल शैली ( koti banal architecture style ) में बने भवनों को पंचपुरा भवन कहा जाता है।

कोटि बनाल शैली
कोटि बनाल शैली के मकान।
फोटो आभार -Google

इस शैली की विशेषता –

ये मकान भूकंप रोधी होते है। यह इनकी सबसे बड़ी विशषता है। और ये स्थापत्य कला और विज्ञान के अनोखे नमूने है। 1991 मे भूकंप ने इतनी तबाही मचाई, मगर ये भवन पहाड़ की छाती पर अडिग खड़े रहे। राजगढ़ी, मोरी बड़कोट , पुरोला तथा  टकनोर क्षेत्रों में इस प्रकार के मकान मिलते हैं। कोटि बनाल शैली में देवदार की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है। देवदार की लकड़ी लगभग 900साल तक जलवायु को सहन कर सकती है। इसलिए पंचपुरा भवन जलवायु रोधी और भूकंप रोधी दोनो होते हैं।

यह भी देखें……..कोटि बनाल शैली में बना है पौड़ी का प्रसिद्ध कंडोलिया पार्क।

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कंडोलिया पार्क पौड़ी गढ़वाल की नई पहचान।

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कंडोलिया पार्क

कंडोलिया पार्क  पौड़ी गढ़वाल की नई पहचान। जी हा गुरुवार 28 जनवरी को मुख्मंत्री जी के कर कमलों द्वारा, यह थीम पार्क पौड़ी की जनता को समर्पित कर दिया गया।

कंडोलिया पार्क के बारे में –

यह उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी गढ़वाल में स्थित है। पौड़ी गढ़वाल के कमद नामक स्थान पर देवदार के घने पेड़ों के बीच बसा है।यह  पार्क भारत का सबसे ऊंचा पार्क है। यह भारत का पहला थीम पार्क है। ये  1750 मीटर के हाई अल्टिट्यूड पर बना है।

कंडोलिया पार्क
कंडोलिया पार्क, फोटो साभार गूगल

पौड़ी गढ़वाल के जिलाधिकारी 2019 मे कंडोलिया पार्क को नया रूप देने की योजना बनाई ,इस थीम पार्क को बनाने में पौड़ी गढ़वाल के जिलाधिकारी महोदय का महत्वूर्ण योगदान है।28 जनवरी 2021 को माननीय मुख्यमंत्री जी ने इसका उद्घाटन किया। मुख्यमंत्री महोदय ने उत्तघाटन अवसर पर बताया कि, आज तक हमारा राज्य धार्मिक टूरिज्म पर केंद्रित था। अब राज्य को एडवेंचर टूरिज्म की तरफ बड़ा रहे हैं।

विंटर टूरिज्म को राज्य में बड़ावा दिया जाएगा। आने वाले समय में एडवेंचर टूरिज्म पर और ध्यान दिया जाएगा। आने वाले समय में सतपुली में सतपुली झील में भी टिहरी झील की तर्ज पर सी-प्लेन की योजना है।मुख्यमंत्री महोदय ने कहा कि पौड़ी गढ़वाल के टूरिज्म को नए पंख लगाएगा।

कंडोलिया पार्क
Kandoliya park, photo credit-Google

कंडोलिया पार्क की विशेषताएं-

  • इस पार्क की सबसे बड़ी विशेषता लेजर लाइट सिस्टम तथा म्यूजिकल फाउंटेन सिस्टम है।
  • लेजर लाइट मे कंडोलिया पार्क की छटा देखते ही बनती है।
  • यह पार्क भारत का सबसे ऊंचा पार्क है।
  • यह पार्क भारत का पहला थीम पार्क है।
  • इसमें हर  उम्र वर्ग के लिए अलग अलग व्यवस्था है।
  • पार्क उत्तरकाशी के कोटि बनाल शैली पर आधारित है।
  • यहां पर्यटकों के लिए स्विस काटेज बने हैं।
  • थीम  पार्क में स्थानीय मनोरंजन की व्यवस्था भी है।
  • यहां जिम, स्केटिंग एवं रिंग की व्यवस्था भी है।
  • इस पार्क में स्थानीय पहाड़ी संस्कृति को जीवंत रूप देने का पवित्र प्रयास किया गया है।
कंडोलिया पार्क
कंडोलिया पार्क , लेजर शो।
Image credit-Google

यहां भी देखे…….कोटि बनाल शैली , उत्तराखण्ड की विशेष वस्तु शैली।

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Rj kaavya उर्फ कवींद्र सिंह मेहता जी का जीवन परिचय।

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rj kaavya
rj kaavya

“सोच लोकल,अप्रोच ग्लोबल” के विजन पर “उत्तर के पुत्तर” RJ kaavya उर्फ कवीन्द्र सिंह मेहता लेकर आएं है,उत्तराखंड का पहला डिजिटल रेडिओ ओहो रेडिओ आइये जानते हैं Rj kaavya उर्फ कवींद्र सिंह मेहता जी का जीवन परिचय।

वर्तमान में rj kaavya नाम से प्रसिद्ध कवीन्द्र सिंह मेहता उत्तराखंड के नवयुवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन कर उभर रहे हैं। काव्य ने अपना डिजिटल रेडिओ ओहो रेडिओ शुरू करके,उत्तराखंड के नवयुवाओं के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है, कि अगर मन मे लगन हो तो कुछ भी असंभव नहीं है।

प्रारंभिक जीवन -:

12 जुलाई 1988 को जन्मे ,कवीन्द्र सिंह मेहता उर्फ rj kaavyaa मूलतः बागेश्वर जिले के निवासी हैं। उनकी आरम्भिक शिक्षा बागेश्वर में ही हुई है। आगे की पढ़ाई के लिए, उनके माता जी ने उन्हें दिल्ली मामा जी के पास भेज दिया। पढ़ाई पूरी करने के बाद ,उन्होंने रेडिओ जॉकी बनने का निश्चय किया।

एक इंटरव्यू में वो बताते हैं, 2006 में जब उन्होंने लगे रहो मुन्ना भाई फ़िल्म में, अभिनेत्री विद्या बालन को रेडियो जॉकी का किरदार करते हुए देखा, तो उसी समय अपनी माता जी को कहा, “मुझे भी रेडियो जॉकी बनना है।”

काव्य से RJ kaavya बनने का सफर -:

जब काव्य उर्फ कवीन्द्र सिंह मेहता ने सोच लिया, कि अब रेडियो जॉकी बनना है। फिर उन्होंने fm रेडियो कंपनियों में रेडियो जॉकी की नौकरी ढूढ़नी शुरू कर दी, दो वर्ष के कठिन संघर्ष के बाद ,काव्य को जयपुर  2008 में myFm में रेडियो जॉकी की नौकरी मिली। फिर काव्य नेे पीछे मुड़कर नहीं देखा।

2010 में, वो Red FM से जुुड़ गए। उसके बाद काव्य ने Red fm के साथ,जयपुर,कानपुर,कोलकाता और दिल्ली जैसे शहरों में काम किया। उनकी मन की मुराद 2018 में पूरी हुई। जब red fm ने देहरादून में रेडियो स्टेशन खोलने का निर्णय लिया,और रेडियो जॉकी के रूप में भेजा काव्य को।

मन मे जन्मभूमि के लिए कुछ कर गुजरने का संकल्प लेकर कवीन्द्र पहुंच गए अपनी जन्मभूमि। यहाँ पहुँच कर rjkaavyaa ने कई सराहनीय कार्यों की शुरुआत की।सर्वप्रथम उन्होंने अपने शो morning no 1 में , एक कार्यक्रम चलाया, “एक पहाड़ी ऐसा भी”।

इस कार्यक्रम के अंतर्गत उन्होंने उन लोगों एक मंच दिया,किसी भी क्षेत्र में कार्य करके अपनी देवभूमि की सेवा कर रहे हैं। youtube से काव्य  उत्तर का पुत्तर करके एक शो चलाते हैं। जिसमे वो आपनी संस्कृति का प्रचार प्रसार एवं,स्थानीय कलाकारों को एक मंच प्रदान करते हैँ।

काव्या  ने पलायन की समस्या से जूझ रहे प्रदेश के लिए, Ghost village नहीं Dost village एक मुहिम चलाई। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में  rj karavaya को निर्वाचन आयोग ने अपना ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया।

सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन किन्ही कारणों से अक्टूबर 2020 में rjkaavya को RedFM छोड़ना पड़ा। मगर उत्तर के पुत्तर ने हार नही मानी, उत्तराखंड राज्य स्थापना के दिन उन्होंने अपने रेडियो OHO Radio की घोषणा कर दी।

rj kaavya

ओहो रेडियो स्टेशन –

“सोच लोकल अप्रोच ग्लोबल”  के विजन पर उत्तर के पुत्तर  rj kaavya लेकर आएं हैं, उत्तराखंड का पहला digital redio OHO Radio । OHO Radio की स्थापना 3 फरवरी 2021 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री, त्रिवेंद्र सिंह रावत जी के कर कमलों द्वारा हुई।

ओहो रेडियो एक app बेस्ड डिजिटल रेडियो है।  oho radio के द्वारा , समस्त उत्तराखंड के साथ साथ , जो उत्तराखंड के लोग बाहर रहते हैं, वो भी अपने गीत, संस्कृति से जुड़े हुए हैं। मार्च 2021 , अप्रैल 2021 में rj काव्या ने एक ओहो हिल यात्रा भी की थी। जिसके अंतर्गत उन्होंने लगभग सारे उत्तराखंड की यात्रा की थी।

RJ काव्य और उनका ओहो रेडियो स्टेशन ,उत्तराखंड की संस्कृति और भाषा का प्रचार प्रसार करते हुए। निरंतर आगे बढ़ रहे है। हमारी शुभकामनाएं rj काव्या जी के साथ हैं। ओहो रेडिओ स्टेशन एक डिजिटल एप बेस्ड रेडिओ स्टेशन है। इसको आप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं।

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पंकज जीना ,युवाओं का पसंदीदा आवाज जादूगर।

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