Friday, July 26, 2024
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बुबुधाम रानीखेत के बुबु जी जब स्वयं आये मदद करने।

श्री सिद्धेश्वर महादेव कालीगाड़ डाथ बुबुधाम रानीखेत। भगवान शिव व माता पार्वती का प्रसिद्ध मंदिर। यह मंदिर रानीखेत से लगभग 7 किमी दूर घिंगारी खाल के पास स्थित है। यह मंदिर रानीखेत मजखाली रोड पर स्थित है।

चारो ओर चीड़ के लंबे लंबे  पेड़ों से ढके नैनी गांव के मोड़ पर बसे इस मंदिर में अभूतपूर्व शांति का अहसास होता है। इसके आस पास घूमने के लिए रानीखेत का प्रसिद्ध गोल्फ ग्राउंड हैै। और रानीखेत मे चौबटिया गार्डन ,भालू डाम है। हेड़ाखान मंदिर भी नजदीक ही है। माता झूला देवी का मंदिर भी आस पास ही है।

मित्रों आज मैं आपको बुबुधाम रानीखेत की लोककथा के बारे में बताउंगा। जो कथाएँ इस मंदिर के बारे में बताई जाती हैं। मुझे यह लोक कथा स्वयं मेरे नाना जी ने बताई जिनके साथ साक्ष्यात यह वाकया हुआ।

बुबुधाम रानीखेत की प्रचलित कथा –

बुबुधाम रानीखेत के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। जिनके अनुसार वहा एक पुण्यात्मा का वास हैं, जो बुबु जी (कुमाउनी भाषा मे दादा जी ) के रूप में लोगो की मदद करती है। लोगो का साथ निभाती है। कहते हैं कि पहले आस पास कोई आदमी या औरत कोई भी परेशानी में होते थे, तो एक  बुजुर्ग आते थे, और उनकी परेशानियों का निवारण करके चले जाते थे। स्थानीय क्षेत्रवासियों ने उनको  प्रेमवश बुबु जी के नाम से बुलाना शुरू कर दिया। कुमाऊं क्षेत्र में दादा जी को बुबु जी कहा जाता है। (बुबुधाम रानीखेत )

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इसलिए वहां से जो भी राहगीर गुजरता है, वह पर बिना माथा टेके, बिना प्रणाम किये ,आगे नही बढ़ता। इन्ही मददगारो की लिस्ट में मेरे नाना जी भी रहे । उनके साथ भी एक घटना घटित हुई।उन्होंने हमको बताई,और मैं आप लोगो के साथ शेयर कर रहा हूँ।

बात उन दिनों की है, जब  मोटर मार्ग केवल रानीखेत तक ही था। रानीखेत से आगे जाने के लिए पैदल जाना पड़ता था। मेरे नाना जी चौबटिया गार्डन में नौकरी करते थे। शाम को अक्सर वो घर ही आते थे। शाम को छुट्टी होने के बाद पैदल घर के लिए चल देते थे। उस समय जंगली जानवरों के भय और नकारात्मक शक्तियों का भय ज्यादा रहता था। इसलिए रानीखेत से लोग घर को ग्रुप में ही आते थे।

एक दिन मेरे नाना जी को ,रानीखेत से घर के लिए निकलने के लिए काफी देर हो चुकी थी। और उनके साथ मे कोई नही था। रानीखेत से निकलते निकलते लगभग आधी रात हो गई, अब जाना तो घर हो था। और कोई ऑप्शन नही था।

नाना जी ने घर की तरफ चलना शुरू कर दिया, मन मे अनिष्ट का भय हो रहा था, दिल घबरा रहा था। मगर फिर भी चले जा रहे थे। जंगली जानवर भयानक आवाजे निकाल रहे थे।

अचानक मेरे नाना के साथ एक बुजुर्ग चलने लगते है, सफेद कपड़े ,पहाड़ी टोपी और तेज पूर्ण मुख। नाना जी को आश्चर्य हुआ कि अचानक ये आदमी कहाँ से आया। उन्होने नाना जी की  ओर देखा,और बोले कहा जाना है, महाराज ? मेरे नाना ने  अपने गांव का नाम बताया । तब वो बोले अरे वाह !मुझे तुम्हारे बगल के गांव में जाना है। चलो साथ चलते हैं, तुम चिंता मत करो ,और आराम से चलो। ( बुबुधाम रानीखेत)

बुबुधाम रानीखेत
बुबुधाम रानीखेत

मेरे नाना जी बताते हैं, कि जैसे ही उन बुजुर्ग ने उनसे ये शब्द बोले, वैसे ही उनके मन का डर खत्म हो गया।वो निश्चिंत होकर बुबु के साथ गप्प मारते हुए चलने लगे।

बातों बातों में  उनको पता भी नही चला कि,वो कब गांव के पास पहुच गए। जब गांव के बॉर्डर पर आए तो, नाना को बुबुजी बोले, महाराज अब आप अपने गांव की सीमा में पहुच गए हो,आप अपने ईष्ट देव की छत्र छाया में आ गए हो, अब आप सुरक्षित हो। मुझे भी अपने गांव जाना है। इतना कहकर बुबु जी ने दूसरे गांव का रास्ता पकड़ लिया।नाना अपने गांव के रास्ते चलने लगे।

नाना ने 2 कदम आगे जा के , बुबु जी के रास्ते की तरफ देखा, तो उस रास्ते पर कोई नही था। थोड़ी देर के लिए नाना को डर,और आश्चर्य दोनो एक साथ हुआ। मगर  फिर वो समझ गए। हो न हो वो बुबुजी  थे जो उनको छोड़ने आये थे। नाना ने मन मे बुबु जी को प्रणाम, धन्यवाद दिया और घर की तरफ बढ़ गए।

दोस्तों इन्ही चमत्कारी कार्यो की वजह से कालिगाड डॉट पर बुबु जी की स्मृति में एक शिव मंदिर की स्थापना की गई है।और साथ मे बुबु जी का मंदिर भी बनाया गया है।

बुबुधाम रानीखेत
बुबुधाम रानीखेत

बुबुधाम रानीखेत कैसे जाएँ –

मित्रो बूबूधाम जाने के लिए आपको हल्द्वानी से रानीखेत जाना होगा। फिर रानीखेत से बुबुधाम रानीखेत  के लिए, स्थानीय टेक्सी, बसों के द्वारा गया जा सकता है। उत्तराखंड परिवहन निगम की बसें भी जा रही हैं, उनसे भी जा सकते हैं।

निवेदन –

मित्रों प्राचीन काल मे, लोगो के तथा प्रकृति के बीच अच्छा सामजस्य था। पुण्यात्मा स्वयं मनुष्य की रक्षा करने आती थी। प्रकृति से साथ मानव की  दोस्ती थी। वर्तमान में विकास की दौड़, और शहरी जिंदगी के लालच में हम अपनी जड़ों को खुद खो रहे हैं। जिन पहाड़ों मे कभी पुण्यात्माएं वास करती थी,आज वहां शराब और जुआ,ग़लत काम हो रहे हैं।

मानव ने अपने निजी स्वार्थ के लिए ,प्रकृति का असंतुलित दोहन कर दिया है। पहाड़ों में प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। इसी के कारण हमारी देवभूमि मे, केदारनाथ , रैणी जैसी प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं। बादल फटने की घटनाए बढ गई हैं। ये सब प्रकृति का संतुलन खराब करने का नतीजा है।

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धन्यवाद।।

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बिनसर महादेव मंदिर ,रानीखेत उत्तराखंड।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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