श्री सिद्धेश्वर महादेव कालीगाड़ बुबुधाम रानीखेत (‘Bubu Dham Ranikhet’) भगवान शिव और माता पार्वती का एक प्रसिद्ध मंदिर है, जो रानीखेत से लगभग 7 किमी दूर घिंगारी खाल के पास, रानीखेत-मजखाली रोड पर स्थित है। नैनी गांव के मोड़ पर, चारों ओर चीड़ के लंबे-लंबे पेड़ों से घिरा यह मंदिर अभूतपूर्व शांति और आध्यात्मिकता का अहसास कराता है। यह प्राचीन मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि अपनी पौराणिक कथाओं और चमत्कारों के लिए भी जाना जाता है।
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बुबुधाम की शांति और सुंदरता
चारों ओर ऊंचे चीड़ के पेड़ों से घिरा यह मंदिर (‘Bubu Dham Ranikhet’) रोजमर्रा की जिंदगी की भागदौड़ से दूर एक शांत आश्रय प्रदान करता है। इसकी शांतिपूर्ण परिस्थितियां इसे ध्यान और आध्यात्मिक चिंतन के लिए आदर्श स्थान बनाती हैं। प्रकृति के बीच मंदिर का स्थान इसकी दैवीय आभा को और बढ़ाता है, जो भक्तों और पर्यटकों को समान रूप से आकर्षित करता है।
आसपास के दर्शनीय स्थल
बुबुधाम (‘Bubu Dham Ranikhet’) के आसपास रानीखेत के कई प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं, जो इसे और आकर्षक बनाते हैं:
- रानीखेत गोल्फ ग्राउंड: एक सुंदर और शांतिपूर्ण गोल्फ कोर्स।
- चौबटिया गार्डन: सेब के बागानों और मनोरम दृश्यों के लिए प्रसिद्ध।
- भालू डैम: प्रकृति प्रेमियों के लिए एक शांत स्थल।
- हेड़ाखान मंदिर और झूला देवी मंदिर: ये दोनों मंदिर भी पास में ही हैं, जो आध्यात्मिक यात्रा को और समृद्ध करते हैं।
बुबुधाम की पौराणिक कथा
‘bubu dham mandir’ का नाम बुबु जी (कुमाऊंनी भाषा में दादा जी) से जुड़ा है, जिन्हें एक पुण्यात्मा माना जाता है। स्थानीय कथाओं के अनुसार, बुबु जी राहगीरों और जरूरतमंदों की सहायता करते थे। पहले जब यह क्षेत्र घने जंगलों से भरा था, कोई भी व्यक्ति यदि डरता या अकेला होता, तो बुबु जी उसके साथ चलते और उसे सुरक्षित घर तक पहुंचाते।
पहले इस मंदिर में केवल बुबु जी का लिंग रूप स्थापित था। समय के साथ यहां भगवान शिव, राधा-कृष्ण, माता पार्वती और हनुमान जी की मूर्तियां भी स्थापित की गईं। मंदिर में बुबु जी की जिंदा समाधि भी है, जो इसे और भी विशेष बनाती है।
एक चमत्कारी घटना
बुबुधाम की महिमा को दर्शाने वाली कई कहानियां प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कहानी मेरे नाना जी के साथ घटित हुई, जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूं।
उन दिनों मोटर मार्ग केवल रानीखेत तक ही था। रानीखेत से आगे जाने के लिए पैदल चलना पड़ता था। मेरे नाना जी चौबटिया गार्डन में नौकरी करते थे और शाम को अक्सर पैदल घर लौटते थे। एक दिन नाना जी को रानीखेत से घर के लिए निकलने में देर हो गई। जंगल में जंगली जानवरों की आवाजें और अनिष्ट का भय था। तभी अचानक एक बुजुर्ग व्यक्ति उनके साथ चलने लगे।
बुजुर्ग ने कहा, “महाराज, कहां जाना है?” जब नाना जी ने गांव का नाम बताया तो बुजुर्ग बोले, “मुझे तुम्हारे बगल के गांव जाना है। चलो, साथ चलते हैं।” उनका साथ मिलने से नाना जी का डर खत्म हो गया। जब वे गांव की सीमा पर पहुंचे, बुजुर्ग ने कहा, “अब तुम अपने गांव में आ गए हो, सुरक्षित हो।” फिर वे दूसरे रास्ते पर मुड़ गए।
नाना जी ने दो कदम चलकर पीछे मुड़कर देखा, तो रास्ता खाली था। उन्हें समझ आया कि वे कोई सामान्य व्यक्ति नहीं, स्वयं बुबु जी थे।
बुबुधाम का महत्व
इन चमत्कारी घटनाओं के कारण कालीगाड़ में श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर और बुबु जी का मंदिर (bubu dham mandir ) स्थापित किया गया। आज भी कोई राहगीर यहां से बिना माथा टेके या प्रणाम किए आगे नहीं बढ़ता। यह परंपरा बुबु जी के प्रति गहरी श्रद्धा को दर्शाती है।
कैसे पहुंचें बुबुधाम रानीखेत (bubu dham mandir ) ?
बुबुधाम पहुंचने के लिए हल्द्वानी से रानीखेत तक स्थानीय टैक्सी, बस या उत्तराखंड परिवहन निगम की बसों का उपयोग किया जा सकता है। रानीखेत से मंदिर सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है।
प्रकृति और संस्कृति का संरक्षण
प्राचीन काल में मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य था। पुण्यात्माएं स्वयं मनुष्य की रक्षा के लिए आती थीं। लेकिन आज विकास की दौड़ और शहरीकरण ने इस संतुलन को बिगाड़ दिया है।
जिन पहाड़ों में कभी पुण्यात्माएं वास करती थीं, वहां अब गलत कार्य हो रहे हैं। प्रकृति का असंतुलित दोहन हमारी देवभूमि में केदारनाथ, रैणी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन रहा है। बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं।
आइए, हम अपनी सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर को संरक्षित करने का संकल्प लें। अपनी जड़ों से जुड़कर और प्रकृति का सम्मान करके हम बुबुधाम जैसे पवित्र स्थलों को भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख सकते हैं।
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