Sunday, September 8, 2024
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उत्तराखंड मंत्रिमंडल 2021, आइये जानते हैं धामी मंत्रिमंडल में किस मंत्री को क्या मिला

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उत्तराखंड मंत्रिमंडल 2021

उत्तराखंड पुष्कर सिंह धामी मंत्रिमंडल जुलाई 2021की सूची

पूर्व मुख्यमंत्री श्री तीरथ सिंह रावत का  6 माह के अंदर विधानसभा के लिए चयन नही हो पाया इसलिए उन्हे अपने पद से त्याग पत्र देना पड़ा। उसके बाद विधायक दल की मीटिंग में श्री पुष्कर सिंह धामी जी को मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया। श्री पुष्कर सिंह धामी जी ने 04 जुलाई 2021, रविवार के दिन उत्तराखंड के 11वे मुख्यमंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। और उनके साथ उत्तराखंड मंत्रिमंडल 2021 के 12 मंत्रियों ने भी पद और गोपनीयता की शपथ ली। उसके अगले दिन  उत्तराखंड के नवनिर्वाचित मंत्रियों को उनके विभागों का बंटवारा कर दिया गया। उत्तराखंड मंत्रिमंडल 2021 के मंत्री एवं उनके विभागों की सूची निम्न प्रकार है-

क्रम संख्या उत्तराखंड मंत्री का नाम व पद आवंटित विभाग / विषय
1- श्री पुष्कर सिंह धामी

(माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड )

  • मंत्रिपरिषद
  • कार्मिक एवं अखिलभारतीय सेवाओं का संस्थापना विषयक कार्य
  • सतर्कता, सुराज भ्र्ष्टाचार उन्मूलन एवं जनसेवा
  • गृह विभाग, कारगर विभाग , नागरिक सुरक्षा एवं होमगार्ड, अर्धसैनिक कल्याण विभाग
  • राज्य संपत्ति विभाग
  • राजस्व विभाग
  • न्याय विभाग
  • सूचना विभाग
  • तकनीकी शिक्षा
  • नागरिक उड्यन
  • वित्त, वाणिज्य कर स्टाम्प व निबंधन
  • नियोजन विभाग
  • सचिवालय प्रशासन
  • सामान्य प्रशासन
  • औधोगिक विकास (खनन)
2- श्री सतपाल महाराज

( कैबिनेट मंत्री उत्तराखंड )

  • सिंचाई
  • बाढ़ नियंत्रण
  • लघु सिंचाई
  • जलागम प्रबंधन
  • भारत नेपाल उत्तराखंड नदी परियोजना
  • पर्यटन
  • संस्कृति एवं धर्म
  • लोक निर्माण विभाग
3 – डॉ हरक सिंह रावत

( कैबिनेट मंत्री उत्तराखंड )

  • वन विभाग
  • पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन
  • श्रम विभाग
  • कौशल विकास एवं सेवानियोजन
  • आयुष विभाग
  • ऊर्जा एवं वैकल्पिक ऊर्जा विभाग
4- श्री बंशीधर भगत

(कैबिनेट मंत्री उत्तराखंड)

  • विधायी एवं संसदीय कार्य
  • खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले
  • शहरी विकास विभाग
  • आवास विभाग
  • सूचना एवं विज्ञान प्रद्योगिकी
5- श्री यशपाल आर्य

 

यशपालाआर्य जी के पार्टी छोड़ने के कारण यह पद अभी रिक्त है।
6- श्री बिशन सिंह चुफाल

( कैबिनेट मंत्री उत्तराखंड )

  • पेयजल
  • वर्षा एवं जल संग्रहण
  • ग्रामीण निर्माण
  • जनगणना
7- श्री  सुबोध उनियाल

( कैबिनेट मंत्री उत्तराखंड )

  • कृषि
  • कृषि शिक्षा
  • कृषि विपणन
  • उद्यान एवं कृषि प्रसंस्करण
  • उद्यान एवं फल उद्योग
  • रेशम विकास
  • जैव प्रद्योगिकी
8- श्री अरविंद पांडेय

( कैबिनेट मंत्री )

  • विद्यालयी शिक्षा ( बेसिक )
  • विद्यालयी शिक्षा ( माध्यमिक )
  • खेल
  • युवा कल्याण
  • पंचायती राज
  • संस्कृत शिक्षा
9- श्री गणेश जोशी

( कैबिनेट मंत्री )

  • सैनिक कल्याण
  • औद्योगिक विकास
  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग
  • खादी एवं ग्रामोद्योग
10- डॉ धन सिंह रावत

( राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार )

  • सहकारिता विभाग
  • प्रोटोकॉल
  • आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास विभाग
  • उच्च शिक्षा
  • स्वास्थ विभाग एवं चिकित्सा शिक्षा
11- श्रीमती रेखा आर्य

( राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार )

  • महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्रालय
  • पशुपालन विभाग
  • दुग्ध विकास
  • मत्स्य पालन
12- श्री यतीश्वरानंद( राज्य मंत्री )
  • भाषा
  • पुनर्गठन
  • गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग
  • ग्राम्य विकास

उत्तराखंड मंत्रिमंडल से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु | Important points about Uttarakhand cabinet

  • उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी हैं।
  • उत्तराखंड के वर्तमान गृह मंत्री भी श्री पुष्कर सिंह धामी जी हैं।
  • उत्तराखंड के वित्त मंत्री भी श्री पुष्कर सिंह धामी जी हैं।
  • उत्तराखंड के स्वास्थ मंत्री डॉ धन सिंह रावत हैं।
  • उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री श्री अरविंद पांडेय हैं।
  • उत्तराखंड के ऊर्जा मंत्री डॉ हरक सिंह रावत है।
  • उत्तराखंड के आबकारी मंत्री श्री यशपाल आर्य हैं।
  • धामी मंत्रिमंडल ( धामी कैबिनेट का गठन 4 जुलाई 2021 को हुवा )
  • श्री पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के 11 वे मुख्यमंत्री हैं।
  • श्री पुष्कर सिंह धामी अब तक के उत्तराखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं।
  • उत्तराखंड के खाद्य मंत्री  श्री बंशीधर भगत जी हैं।
  • उत्तराखंड कैबिनेट 2021 में श्रीमती रेखा आर्य और श्री धन सिंह रावत व श्री यतीश्वरानंद राज्य मंत्री हैं।

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निवेदन – मित्रों उपरोक्त लेख में हमने उत्तराखंड मंत्रिमंडल 2021 की नवीनतम, श्री पुष्कर सिंह धामी मंत्रिमंडल 2021| उत्तराखंड के मंत्रियों के विभाग , उपलब्ध कराई है। यदि इसमे कोई त्रुटि हो तो आप हमारे फेसबुक पेज  देवभूमी दर्शन   पर अवगत करा सकते हैं।

इसे देखें  –उत्तराखंड की राज्य प्रतीक तितली के बारे में सम्पूर्ण जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

कॉमन पीकॉक तितली, उत्तराखंड की राज्य तितली

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कॉमन पीकॉक
कॉमन पीकॉक तितली, उत्तराखंड की राज्य तितली

कॉमन पीकॉक तितली उत्तराखंड की राज्य तितली है। राज्य तितली का अर्थ है, कॉमन पीकॉक तितली उत्तराखंड की राज्य प्रतीक है। कॉमन पीकॉक उत्तराखंड का पांचवा राज्य प्रतीक है। उत्तराखंड की इस तितली कॉमन पीकॉक को 07 नवंबर 2016 को राज्य के पांचवे चिन्ह ( प्रतीक ) के रूप में राज्य तितली का स्थान प्राप्त हुआ था। तितली को प्रतीक चिन्ह बनाने वाला उत्तराखंड भारत का दूसरा राज्य है। तितली को प्रतीक चिन्ह बनाने वाला भारत का प्रथम राज्य महाराष्ट्र है। महाराष्ट्र ने 2015 में ब्लू मारमान को अपने राजकीय प्रतीक चिन्हों में शामिल किया था।

कॉमन पीकॉक तितली

हमारे देश मे तितलियों की लगभग 1300 प्रजातियां हैं। इनमे से अकेले लगभग 500 प्रकार की प्रजातियां उत्तराखंड में मिलती हैं। इसलिये शायद उत्तराखंड को तितलियों का घर भी कहते हैं। इस तितली का रूप एकदम मोर जैसा होता है, इस लिए इसका नाम कॉमन पीकॉक  रखा गया है। कॉमन पीकॉक का वैज्ञानिक नाम पैपिलियो बाइनर (Papilio bianor) है। यह तितली 7000 फ़ीट से अधिक ऊंचाई पर पाई जाती है।

यह तितली भारत मे उत्तराखंड के अलावा अन्य हिमालयी राज्यों में पाई जाती है। विदेशों में यह तितली चीन, दक्षिणी हिमालयी ऐशियाई देशों में तथा ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती है। कॉमन पीकॉक तितली का जीवन मात्र एक माह 15 दिन ( डेढ़ माह ) के आस पास  का होता है। यह सुंदर तितली लगभग 90 mm से 130 mm आकार की होती है। यह तितली मार्च से अक्टूबर के बीच मे दिखाई देती है। 1996 में कॉमन पीकॉक तितली का नाम भारत की सबसे सुंदर तितली के रूप में लिम्का बुक में रिकॉर्ड दर्ज कराया।

कॉमन पीकॉक तिमूर  पेड़ पर रहती है

यह तितली का जीवन यापन तिमूर के पेड़ पर करती है। और तिमूर के पेड़ पर ही यह तितली अपने अंडे देती है। उत्तराखंड में तितलियों पर शोध संस्थान , भीमताल में है , भीमताल शोध संस्थान के निदेशक के अनुसार इसका पुराना नाम पिपलिया पालिक्टर था। पिपलिया बीआनोर के नाम से यह तितली चीन जापान ,कोरिया तथा पूर्वी रूस में पाई जाती थी।

कटारमल सूर्य मंदिर अल्मोड़ा की रोचक जानकारी यहाँ पढ़े।

उत्तराखंड में तितलियाँ

उत्तराखंड अन्य हिमालयी राज्यों की तरह प्राकृतिक सुंदरता से सम्पन्न होने के कारण तितलियों की पहली पसंद है।यहाँ पूरे देश की 1300 तितलियों की प्रजाति में से 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। इसीलिए उत्तराखंड को तितलियों का घर भी कहा जाता है। उत्तराखंड में श्रीदेव सुमन तितली पार्क टिहरी, लच्छीवाला तितली पार्क देहरादून तथा भारत का पहला पोलीनेटर पार्क हल्द्वानी नैनीताल में खुला है। यह सभी पार्क तितलियों को समर्पित हैं। उत्तराखंड डीडीहाट में खोजी गई, गोल्डन विंग तितली को भारत की सबसे बड़ी तितली होने का गौरव प्राप्त हुआ। गोल्डन विंग तितली का वैज्ञानिक नाम ट्रोइडेस अयकुस है। उत्तराखंड के भीमताल में तितलियों पर एक शोध के लिए एक बटरफ्लाई शोध संस्थान भी स्थित है।

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उत्तराखंड में फ्री बिजली

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उत्तराखंड में फ्री बिजली
उत्तराखंड में फ्री बिजली

जैसा कि सभी को ज्ञात है, चुनावी वर्ष में चाहे राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार , लास्ट साल में दोनो रामराज्य वाले मूड में आ जाते हैं। ठीक उसी प्रकार उत्तराखंड में भी चुनावी साल होने के कारण ,वर्तमान मुख्यमंत्री महोदय नई घोषणाओं से जनता का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं। वही उनका साथ देते हुए ऊर्जा मंत्री श्री हरक सिंह रावत ने उत्तराखंड में फ्री बिजली की घोषणा की है।

उत्तराखंड में फ्री बिजली
उत्तराखंड में फ्री बिजली

उर्जा मंत्री श्री हरक सिंह रावत के अनुसार राज्य में सामान्य जनता को 100 यूनिट तक  फ्री बिजली मिलेगी। और 200 यूनिट तक बिजली के बिल पर लगभग 50 प्रतिशत तक सब्सिडी मिलेगी। इस योजना के लिए यथाशीघ्र मंत्रिमंडल की  बैठक में प्रस्ताव लाया जाएगा। ऊर्जा भवन में बुधवार को समीक्षा बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में ऊर्जा मंत्री ने कहा कि राज्य में 26 लाख बिजली उपभोक्ता हैं। इसमें 23 लाख आम घरेलू उपभोक्ता है। हर महीने 100 यूनिट तक उत्तराखंड में फ्री बिजली  कर देंगे तो, लगभग 07 लाख बिजली का उपभोग करने वालों को फायदा । और 200 यूनिट तक बिजली उपभोग पर लगभग 50 प्रतिशत सब्सिडी देने पर 13 लाख बिजली उपयोगर्ताओं को राहत मिलेगी। इस प्रकार राज्य की एक बड़ी जनसंख्या को उत्तराखंड सरकार की ओर से लाभ दिया जाएगा । ऊर्जा  मंत्री श्री हरक सिंह रावत ने कहा कि, इस कार्य के लिए शीघ्र मंत्री परिषद में प्रस्ताव लाया जाएगा। और इसके अलावा  कोरोना महामारी  के कारण देर से बिजली बिल  भुगतान करने वालों से  सरचार्ज नहीं लिया जाएगा। कोरोनो के कारण देर से भुगतान करने वालों के लिए , सरकार 31 अक्तूबर तक सरचार्ज माफ करेगी। इस कार्य के लिए भी  मंत्रिपरिषद की  बैठक में प्रस्ताव लाया जाएगा। ताकि कोरोना महामारी  से परेशान लोगों को राहत मिल सके।

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कलबिष्ट देवता की कहानी, कुमाऊँ के प्रसिद्ध लोकदेवता

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कलबिष्ट देवता की कहानी

कलबिष्ट देवता की कहानी

चलिए दोस्तो आज आपको बताते हैं, कलबिष्ट देवता की कहानी  लगभग 200 साल पुरानी बात है कि केशव कोट्यूडी का बेटा कल्लू कोट्यूडी नामक एक राजपूत ,कोत्युडकोट में रहता था। उसकी माता का नाम दुर्पता था। उसके नाना का नाम रामाहरड़ था। कल्लू बड़ा वीर एवं रंगीला मिजाज का युवक था। वह किसान था। और बिनसर के जंगलों में ग्वाले का काम करता था। लोक कथाओं में उसका नाम कलबिष्ट, कलुवा या कल्याण बिष्ट और कलविष्ट नाम से प्रसिद्ध है। बताते हैं उसके साथ हमेशा निम्नलिखित सामान रहता था  –

  • मुरली
  • बाँसुरी
  • मोचंग
  • पखाई
  • रमटा
  • घुंघराली दातुली
  • रतना कामली
  • झपूवा कुकुर
  • लखमा बिराई
  • खनुवा लाखा
  • रुमेली, झुमैली गाई
  • भागुवा भैसा
  • नागुली, भागुली भैंसी
  • सुनहरी दातुलो
  • 12 भैंसी, और लगभग 12 भैंसे ( जतीये )

कलबिष्ट को मुरली बजाने का बहुत शौक था। बिनसर में सिद्ध गोपाली के घर दूध पहुचाते थे।और श्रीकृष्ण पांडेजी के घर उसका उठना, बैठना था। मतलब मित्रता थी। श्रीकृष्ण पांडे की नौलखिया पांडे से दुश्मनी थी। नौलखिया पांडे जी , भाभर देश  से ‘भराड़ी’ नाम के शैतान को ,श्रीकृष्ण पांडे जी के खानदान को नष्ट करने लाये थे। कलविष्ट एक वीर पुरुष था, वो भूत, और शैतानों को भगा देता था। उसने भराड़ी शैतान को, त्यूनिगाड मे पथर के नीचे दबा दिया । भराड़ी ने कलविष्ट से माफी मांगी, तब उसे छोड़ा। नौलखिया पांडे अपनी चाल सफल न होने पर अति क्रोधित हुवा। उसने एक चाल चली, जिससे श्रीकृष्ण पांडे और कलविष्ट एक दूसरे के आमने सामने आ जाएं। उसने झूठी खबर उड़ा दी कि, कलविष्ट और श्रीकृष्ण पांडे की पत्नी के आपस मे संबंध हैं।

श्रीकृष्ण पांडे दिल से जानता था, कि उसकी पत्नी निर्दोष है। मगर अपवाद दूर करने के लिए उसने कलविष्ट की हत्या का विचार किया। श्रीकृष्ण पांडे राजा का पुरोहित था, उसने राजा से कलविष्ट की शिकायत कर दी। राजा ने कलविष्ट को मरवाने के लिए ,चारो ओर पत्र और पान के बीड़े भेजे,देखे कौन बीड़ा उठाता है।

केवल जय सिंह टम्टा ने बीड़ा उठाया। राजा ने कलबिष्ट  को सादर दरबार मे बुलाया,उस दिन श्राद्ध था उसे दही दूध लेकर आने को कहा गया।

कलबिष्ट बडे बडे डोको में दही दूध भर के राजा के दरबार मे ले गया, राजा आश्चर्य चकित हो गए। राजा ने देखा, कलविष्ट के सिर में त्रिशूल और पैर में कमल (पद्म) का निशान बना था।राजा को वह दिव्य वीर और सद्चरित्र पुरुष लगा। उसने राजा को एक से बढ़कर एक करामते दिखाई, राजा कलविष्ट को देख कर चकित रह गए। राजा ने एक दिन जयसिंह टम्टा और कलविष्ट की कुश्ती कराई। कुश्ती में हारने वाले कि नाक काटने की शर्त थी। राजा रानी और दरबारियों के सामने कुश्ती शुरू हुई। कलबिष्ट ने जय सिंह टम्टा को हराकर, उसकी नाक काट ली। दरबार मे कलविष्ट की धाक जम गई। और कलविष्ट से बहुत लोग जलने लगे।

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पालिपछाऊ के रहने वाले दयाराम पछाई ने कहा कि ,कलविष्ट तुम अपनी भैंसे लेकर भाभर में जाये तो अच्छा होगा। वहां भैसों के चराने के लिए बहुत अच्छा स्थान है, लेकिन दयाराम के दिल मे कपट था, वो चाहता था,कि कलबिष्ट भाभर तराई में जाये, और वहां मुगलों के हाथ मारा जाए।

कलबिष्ट रामगढ़, नाथुवाखान, भीमताल होकर भाभर तराई गया। भाभर तराई में कलविष्ट को 1600 मंगोली सेना मिली। मंगोली सेना के नेता सुरमा और भागू पठान थे। साथ ही गजुवा डिंगा, और भागा कुर्मी भी उन पठानों के साथ मिल गए। उन्होंने सोचा कि कलबिष्ट जैसा वीर पुरुष उनको मारे, उससे पहले उन्होंने मार देना चाहिए कलविष्ट को। उन्होंने कलविष्ट की ताकत आजमाने के लिए, उससे एक बड़ी लकड़ी की बल्ली ( भराण ) उठाने को कहा, कलविष्ट ने उसको उठा कर दिखा दिया। तब उन्होंने कलविष्ट को मारने के लिए प्रपंच रचा,मेला किया गया गुप्त रूप से हथियार इकट्ठे किये, कलविष्ट के कुत्ते बिल्ली ने ,गुप्तचरों का काम किया, और कलविष्ट को सूचना दे दी। कलविष्ट मेले में गया, उसने कहा कि वो मेले में पहाड़ी नाच दिखायेगा, और बड़ी बल्ली (भरणा) उठाया , और उसको घुमा घुमा कर, सारे दुश्मनों को मार दिया।

गंगनाथ देवता, औऱ भाना बामणी, की अदभुत प्रेम कथा जानने के लिए यहां क्लिक करें।

इसके बाद कलविष्ट चौरासी माल गया, चौरासी माल में शेर बहुत थे, कलविष्ट की भैसों को देखकर शेर भी डर गए। कलविष्ट ने चौरासी के 84 शेरो को मार दिया।  चौरासी से चलकर कलविष्ट पालिपछऊ में दयाराम के घर गया, वहा जाकर बोला, चौरासी तो अच्छी है, लेकिन वहां दड़वे ( शेर ) बहुत हैं।कलबिष्ट ने फिर दयाराम से कहा कि अगर मुझे प्रपंच से मारा गया तो, मैं पालिपछऊ में भोतकाई आऊंगा। मतलब भूत बनकर परेशान करूँगा।

कलबिष्ट देवता की कहानी
कलबिष्ट देवता

उसके बाद कलविष्ट कपडख़ान गया, उसने कठधार में डेरा किया। वहां रात को एक  दोष (एक प्रकार का भूत) ने  उनको तंग किया, भूत कलविष्ट को भैंसों दुहने नही दे रहा था। रातभर कलविष्ट और भूत की लड़ाई हुई,सुबह वह भूत हार गया। कलविष्ट ने उससे एक बचन लिया, किसी को तंग नही करेगा, भूले भटके राहगीरों को रास्ता बताने में मदद करे।

अनेक छल करने के बाद भी वीर कल्लू कोट्यूडी (कलविष्ट) को नही मार पाए, तो श्रीकृष्ण पांडेय जी ने अपने साडू लखड्योड़ी को कहा, कि वह किसी तरह छल से  कल्लू कोट्यूडी को मार दे, यानी कलविष्ट को मार दे।

लखड्योड़ी ने छुप कर कलविष्ट के एक भैंस के पैर में कील ठोक दी। फिर कलविष्ट के पास गया, बोला मुझे एक भैंस चाहिए, कल्लू कोट्यूडी ने कहा, जितने चाहिए उतने ले लो। लखड्योड़ी भैस देखने गया,तो वही भैस जिसके पैर में कील ठुकी थी, उसको देखकर बोला, इस भैस के पैर में क्या हुवा ? कल्लू ने देखा कि भैंस के पैर में कील ठुकी है। जैसे ही कल्लू कोट्यूडी (कलबिष्ट )भैंस की कील निकालने झुका, तो लखड्योड़ी ने धोखे से कल्लू के पैर काट दिए, तब कल्लू ने भी दर्द से करहते हुए लखड्योड़ी को जकड़ लिया, और मार दिया। साथ मे शाप भी दिया कि,तेरे पूरे खानदान में कोई नही बचेगा।

कल्लू कोट्यूडी मरकर कलविष्ट देवता बन गया, वह सबसे पहले श्रीकृष्ण पांडेय के लड़के पर चिपटा, जब जागर लगी तो उसने बताया कि कलविष्ट है। कलविष्ट एक अच्छा देवता माना जाता है। उसने केवल उन्हीं लोगों को परेशान किया, जिसने उसका अहित किया, या अहित करना चाहा।

कलविष्ट की पूजा, अधिकतर, कुमाऊं के पालिपछऊ होती है।

कहते हैं, बिनसर में कलविष्ट की मधुर मुरली की धुन और भैसों को बुलाने की धुन अभी भी सुनाई देती है।

कलबिष्ट की मृत्यु के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं, पंडित रूद्रदत्त पंत जी के अनुसार, उसकी हत्या धोखे से श्रीकृष्ण पाण्डे ने की थी। ऐटिकन्स साहब ने हिम्मत सिंह के हाथों मारे जाना स्वीकारा है। एक अन्य कहानी के अनुसार कलबिष्ट की हत्या उसके जीजा लछमसिंह ने उसी की कुल्हाड़ी से की थी।

कलबिष्ट देवता का मंदिर – डाना गोलू देवता मंदिर गैराड़

कहा जाता है, कि कफड़खान में कलबिष्ट का सिर गिरा,सर्वप्रथम मंदिर उनका कफड़खान में बना है। और जहाँ उनका धड़ गिरा वो जगह गैराङ बताई जाती है। गैराड़ में उनका भव्य मंदिर है। मान्यता है, कि गैराड़ मंदिर के गर्भगृह में दो चट्टानों के बीच उनका सिरविहीन धड़ पड़ा है। कलबिष्ट देवता का यह मंदिर , गोलू देवता को समर्पित है। कलबिष्ट देवता को भी गौर भैरव अवतारी माना जाता है।  इस मंदिर को डाना गोलू मंदिर, गैराङ गोलू मंदिर के नाम से  जाना जाता है। गैराड़ के कलबिष्ट देवता, गोलू देवता की तरह न्यायकारी देवता हैं। वो गरीबों की मदद करते हैं। भूले भटको को रास्ता बताते हैं। पीड़ितो के न्याय देते हैं।

कलबिष्ट देवता की कहानी का संदर्भ – बद्रीदत्त पाण्डे जी की पुस्तक ” कुमाऊं का इतिहास “

गिरीश तिवारी गिर्दा की कविता – हम लड़ने रयां बैणी, हम लड़ते रूलो।

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गिरीश तिवारी गिर्दा कविता
ham ladte raya bhaini

गिरीश तिवारी गिर्दा को उत्तराखंड का जनकवि के नाम से याद किया जाता है। गिर्दा की कविताओं ने समय समय पर उत्तराखंड के जनांदोलनों को नई धार दी। गिरीश तिवारी गिर्दा की कविता और उनके गीतों में वो शक्ति थी ,जो लोगो के सोये हुए जमीर को भी जगा देती थी। गिर्दा की इतिहासिक जनगीतों और कविताओं में से उनकी प्रसिद्ध कविता हम लड़ने रयां बैणी, हम लड़ते रूलो का संकलन यहाँ कर रहे हैं। गिर्दा की यह कविता निरंतर संघर्ष के लिए प्रेरित करती है।

गिरीश चंद्र तिवारी गिर्दा की कविता – हम लड़ने रयां बैणी

बैणी फाँसी नी खाली ईजा, और रौ नी पड़ल भाई।
मेरी बाली उमर नि माजेलि , दीलि ऊना कढ़ाई।।
मेरी बाली उमर नि माजेलि, तलि ऊना कड़ाई।
रामरैफले लेफ्ट रेट कसी हुछो बतूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रया भुला, हम लड़ते रूलो।।
अर्जुनते कृष्ण कुछो, रण भूमि छो सारी दूनी तो।
रण बे का बचुलो , हम लड़ते रया बैणी हम लड़ते रूलो
हम लड़ते रया भुला, हम लड़ते रूलो।।
धन माएड़ि छाती, उनेरी धन तेरा ऊ लाल।
बलिदानकी जोत जगे, खोल गे उज्याल।।
खटीमा, मसूरी मुजेफरें कें, हम के भूलि जूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रुला, चेली हम लड़ते रूलो।।
कस होलो उत्तराखंड, कस हमारा नेता।
कसी होली विकास नीति, कसी होली ब्यवस्था।।
जड़ी कंजड़ी उखेलि भलीके , पूरी बहस करूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
सांच नि मराल झुरी झुरी पा, झूठी नि डोरी पाला।
लिस , लकड़ा, बजरी चोर जा नि फौरी पाला।।
जाधिन ताले योस नि है जो, हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
मैसन हूँ, घर कुड़ी हो भैसन हु खाल।
गोर बछन हु चरुहू हो, चाड़ पौथन हूँ डाल।।
धुर जंगल फूल फूलों, यस मुलुक बनुलो ।
हम लड़ते रयां बैणी , हम लड़ते रूलो।
हम लड़ते रूलो भूलि, हम लड़ते रूलो।।
हम लड़ते रयां दीदी, हम लड़ते रूलो।।

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उत्तराखंड मांगे भू कानून, क्या है उत्तराखंड भू कानून?

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उत्तराखंड भू कानून
उत्तराखंड भू कानून

उत्तराखंड भू कानून उत्तराखंड के लोग मांग रहें हैं, उत्तराखंड के लिए एक सशक्त भू- कानून। आज कल सोशल मीडिया पर उत्तराखंड मांगे भू कानून ट्रेंड कर रहा है। सभी उत्तराखंडियों की एक ही कोशिश है, कैसे भी वर्तमान सरकार के कानों में में ये बात पहुँचे। लगातार कई दिन रोज उत्तराखंड मांगे भू कानून ट्रेंड कर रहा है। अब उत्तराखंड भू कानून आंदोलन सोशल मीडिया से रोड पर उतरने लगा है।

उत्तराखंड भू-कानून क्यों मांग रहा है?

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2002 तक उत्तराखंड में अन्य राज्यों के लोग, केवल 500 वर्ग मीटर जमीन खरीद सकता था। 2007 में  यह सीमा और घटाकर  250 वर्गमीटर कर दी थी। 6 अक्टूबर 2018 में सरकार अध्यादेश लायी और “उत्तरप्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम,1950 में संसोधन का विधेयक पारित करके, उसमें धारा 143 (क) धारा 154(2) जोड़ कर पहाड़ो में भूमिखरीद की अधिकतम सीमा समाप्त कर दी।

उत्तराखंड का भू कानून बहुत ही लचीला है। जिसके कारण यहाँ जमीन देश का कोई भी नागरिक आसानी से खरीद सकता है,बस सकता है। वर्तमान स्थिति यह है, कि देश के कोई भी कोने से लोग यहाँ जमीन लेकर रहने लगे हैं। जो उत्तराखंड की संस्कृति, भाषा रहन सहन, उत्तराखंडी समाज के विलुप्ति का कारण बन सकता है। धीरे धीरे यह पहाड़ी जीवन शैली ,पहाड़वाद को विलुप्ति की ओर धकेल रहा है। इसलिए सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय लोग, एक सशक्त , हिमांचल के जैसे भू कानून की मांग कर रहें हैं।

यहाँ के कुछ लोग, क्षणिक धन के लालच में अपनी पैतृक जमीनों को, अन्य राज्य,अन्य समाज के लोंगो को बेच रहे हैं। उन लोगो को या तो भविष्य का ये  भयानक खतरा,जो हमारे गढ़वाली, कुमाउनी भाई लोगो को नही,दिख रहा, या फिर पैसे के लालच में जानबूझकर अपनी कीमती जमीनों को बेच रहे हैं। इसी पर लगाम लगाने के लिए,कुछ सामाजिक कार्य कर्ता, अन्य युवा मिल कर उत्तराखंड के लिए नए और सशक्त भू कानून की मांग कर रहे हैं। इसी लिए ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर , उत्तराखंड मांगे भू कानून ट्रेंड कर रहा है। अब यह मांग सोशल मीडिया से जमीन में उतरने लगी है।

क्या है हिमाचल का भू-कानून

1972 में हिमाचल राज्य में एक कानून बनाया गया,जिसके अंतर्गत बाहरी लोग, अधिक पैसे वाले लोग, हिमाचल में जमीन न खरीद सकें। उस समय हिमाचल के लोग इतने सम्पन्न नहीं थे,और यह आशंका थी, कि हिमाचली लोग, बाह्य लोगो को अपनी जमीन बेच देंगे,और भूमिहीन हो जाएंगे। और हिमाचली संस्कृति को भी विलुप्ति का खतरा बढ़ जाएगा।

हिमाचल के प्रथम मुख्यमंत्री और हिमांचल के निर्माता, डॉ यसवंत सिंह परमार जी ने ये कानून बनाया था। हिमांचल प्रदेश टेंसी एंड लैंड रिफॉर्म एक्ट 1972 में प्रावधान किया था।

एक्ट के 11वे अध्याय में control on transfer of lands में धारा -118 के तहत हिमाचल में कृषि भूमि नही खरीदी जा सकती, गैर हिमाचली नागरिक को यहाँ, जमीन खरीदने की इजाजत नही है।और कॉमर्शियल प्रयोग के लिए आप जमीन किराए पे ले सकते हैं।

2007 में धूमल सरकार ने धारा -118 में संशोधन कर के यह प्रावधान किया था,कि बाहरी राज्य का व्यक्ति जिसे हिमाचल में 15 साल रहते हुए हो गए हों,वो यहां जमीन ले सकता है। इसका बहुत विरोध हुआ, बाद में अगली सरकार ने इसे बढ़ा कर 30 साल कर दिया।

क्या है धारा 371 और किन राज्यों में लागू है?

उत्तराखंड की कई हस्तियां एवं राजनेताओं ने उत्तराखंड भू कानून पर अपने विचार दिए।

Uttarakhand bhu kanoon की मांग अब तेज हो रही है। उत्तराखंड के युवावों द्वारा शुरू किए गया डिजिटल आंदोलन,गति पकड़ने लगा है। कला क्षेत्र की कई हस्तियों ने bhu kanoon को अपना समर्थन दिया है। जिसमे से प्रमुख हैं,  स्वरागिनी – उप्रेती सिस्टर्स, करिश्मा शाह, RJ पंकज जीना समाचार चैनल, देवभूमि डायलॉग आदि ,और कई दिग्गज राजनेताओं ने भू कानून उत्तराखंड पर अपने विचार व्यक्त किये। आप के नेता, कर्नल अजय कोठियाल, ने कहा कि उत्तराखंड में हिमाचल के जैसा bhu kanoon होना चाहिए। हम इस पर अध्ययन कर रहे हैं कि bhoo kanoon को और मजबूत कैसे करें ,  वही भाजपा प्रवक्ता सुबोध उनियाल कहते हैं, कि उत्तराखंड में पहले से ही भू कानून है।

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत जी कहते है,कि, “उत्तराखंड में कृषि भूमि की रक्षा करनी चाहिए। कांग्रेस भू कानून समर्थन के साथ,भूमि सुधार कानून की पक्षधर भी है।

भाजपा सरकार ने वर्ष 2020 में भू कानून में बदलाव कर उत्तराखंडियत को कमजोर किया है, यहां तक गैरसैंण तक कि जमीन बाहर के लोग खरीद चुके हैं।

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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि वो मंत्रिमंडल में  उत्तराखंड भू कानून पर चर्चा करेंगे –

उत्तराखंड के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री श्री पुष्कर धामी जी ने राष्ट्रीय चैनलों को दिए साक्षात्कार में  कहा कि वो उत्तराखंड भू कानून पर मंत्रिमंडल में चर्चा करेंगे। बीबीसी , आजतक जैसे राष्ट्रीय चैनलों पर मुख्यमंत्री जी ने यह बात कही है।

उत्तराखंड भू कानून की मांग में अहम भूमिका निभा रहे हैं कंचन जदली लाटी आर्ट के कार्टून

मूल रूप से कोटद्वार पौड़ी निवासी कंचन जदली अपने डिजिटल कार्टूनों से उत्तराखंड भू कानून  को नई धार दे रही है। कंचन जदली के कार्टून महत्वपूर्ण हथियार बन रहे है , उत्तराखंड भू कानून की लड़ाई में। कंचन जदली लाटी आर्ट के नाम से डिजिटल आर्ट बनाती हैं।

17 जुलाई 2021 को देहरादून में मानव श्रंखला बना कर की भू कानून की मांग –

Uttarakhand bhi kanun की लड़ाई अब सोशल मीडिया से उतर कर रोड में आ गई है। उत्तराखंड के लोग, मुख्यत उत्तराखंड के युवा अब अपनी मांग को लेकर बाहर भी निकलने लगे हैं। सारे उत्तराखंड से लोग अपनी छोटी छोटी, वीडियो क्लिप बनाकर, उत्तराखंड भू कानून की मांग कर रहे हैं। कई लोग अपनी, उत्तराखंड मागे भू कानून के नारों के साथ अपनी फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं।

इसी कड़ी में 18 जुलाई 2021 को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी देहरादून में कई युवाओं ने मानव श्रंखला बनाकर उत्तराखंड सरकार से भू कानून की मांग की।

अंत मे –
उत्तराखंड की संस्कृति की रक्षा, पलायन पर रोक,और उत्तराखंड को एक विकसित करने के लिए एक सख्त भू कानून जरूरी है। जब देश के एक राज्य हिमाचल में सख्त भू कानून बन सकता है तो उत्तराखंड क्यों नही ? आज कल उत्तराखंड के युवा सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर, उत्तराखंड मांगे भू कानून अभियान छेड़े हुए हैं।

उत्तराखंड के भू कानून आंदोलन में सब उत्तराखंडी भाई बहिन अपना साथ दें।

टीम देवभूमी दर्शन अपनी इस पोस्ट के माध्य्म से भू कानून आंदोलन को शुरू से कवर कर रही है। उत्तराखंड भू कानून से सम्बंधित जो भी नए अपडेट आ रहे हैं, हम उसे यहाँ अपडेट कर रहे हैं।

उत्तराखंड के नरसिंह देवता विष्णु अवतारी नहीं बल्कि सिद्ध जोगी हैं

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नरसिंह देवता उत्तराखंड

नरसिंह देवता उत्तराखंड –

उत्तराखंड देवभूमी है, यहां कण कण में देवताओं का वास है। उत्तराखंड में पुराने सत्पुरुषों, सिद्धों एवं राजाओं को अभी भी देव रूप में पूजा जाता है। जागरों के माध्यम से उनका आवाहन किया जाता है,और वो आकर दर्शन देते है।एवं लोगो की समस्याओं का समाधान करते हैं । इन्ही देवताओं में से एक देवता हैं, नरसिंह देवता । इनकी जागर के रूप में पूजा की जाती है।

उत्तराखंड के नरसिंह देवता विष्णु अवतारी नहीं बल्कि सिद्ध हैं –

उत्तराखंड में नरसिंह देवता की जागर में  विष्णु भगवान के चौथे अवतार को नही पूजा जाता, बल्कि एक सिद्ध योगी नर सिंह को पूजा जाता है।हालांकि, चमोली जोशीमठ में भगवान विष्णु के चौथे अवतार, नृसिंह देवता का मंदिर है। मगर इनका नर सिंह जागर से कोई संबंध नही है। क्योंकि जोशीमठ नृसिंह मंदिर में या भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह, आधे मनुष्य और आधे जानवर थे।

जबकि उत्तराखंड में लोक देवता के रूप में जिन नरसिंह देवता को अवतरित किया जाता है, उन्हें जोगी के रूप में अवतरित किया जाता है।नरसिंह देवता की जागर में कहीं भी विष्णु भगवान या उनके चौथे अवतार का वर्णन नही आता। जबकि लोकदेवता नरसिंह को अवतरण करने के लिए, जो जागर, घड़ियाल गाई जाती है उसमें उनके 52 वीरों और 09 रूपों  का वर्णन किया जाता है। और नरसिंह देवता का एक जोगी के रूप में वर्णन किया जाता है।

नरसिंह देवता का प्रिय झोली, चिमटा और तिमर का डंडा माना जाता है। और नरसिंह देवता की इन्ही प्रतीकों को देवस्वरूप मान कर उनकी पूजा की जाती हैं।उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल और गढ़वाल मंडल में नरसिंह देवता को एक जोगी के रूप में पूजते हैं। उनकी पूजा के विधि विधान और उनके नियम सब जोगी वाले होते हैं।

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नरसिंह को पूरे उत्तराखंड में पूजा जाता है। इन्हें घर मे आला बनाकर स्थापित किया जाता है। कुछ लोग इन्हें पौराणिक अवतार  नरसिंह से जोड़ते हैं, लेकिन वास्तव में ये  एक सिद्ध पुरुष थे। इन्होंने नाथ सम्प्रदाय के गुरु गोरखनाथ से दीक्षा ग्रहण की थी। तत्कालीन राजनीति में इनका काफी दखल और प्रभाव था। यह एक सिद्ध और सतपुरुष होने के कारण कालान्तर में इन्हें देव रूप में पूजा जाने लगा। ये झोली चिमटा, और तिमर का डंडा धारण करते हैं। इन्हें नृसिंघ, नरसिंह, नारसिंह आदि नामों से जाना जाता है।

नरसिंह देवता उत्तराखंड
नरसिंह देवता उत्तराखंड के लोक देवता

यह कुमाऊं और गढ़वाल में पूजित बहुमान्य देवता हैं। उत्तराखंड के लोक देवता नरसिंह के जीवन के बारे में विशेष जानकारी उपलब्ध न होने के कारण लोग इन्हे विष्णु अवतारी पौराणिक नारसिंह देवता से जोड़ते हैं। जबकि वास्तविक स्थिति इससे भिन्न है। जागरों के अवसर पर इसका पश्वाओं या डंगरियों पर अवतरण होता है।

इनको थानवासी देवता माना जाता है। इनका मूल स्थान जोशीमठ माना गया है। इसके अलावा इसकी स्थापना जोहार मर्तोलिया एवं कुमाऊं के पालीपछाऊं आदि स्थानों में पाई जाती है। इनकी गिनती कत्यूरी। देवकुल में की जाती है। गोरखपंथी तांत्रिक मन्त्रों में इसे एक सिद्ध पुरुष मन जाता है।

नरसिंह देवता एक ऐतिहासिक पुरुष थे –

नरसिंह देवता का मूल नाम नरसिंहनाथ बताया जाता है। ये एक ऐतिहासिक पुरुष थे जो योग और राजनीती में अपना बराबर दखल रखते थे। इनका मुख्य केंद्र जोशीमठ था। इनके प्रभाव में आकर कत्यूरी राजा आसन्ति देव ने नाथपंथ की शिक्षा लेकर, अपना राजमहल और जोशीमठ का अधिकार इन्हे सौप कर, इनके ही निर्देश पर कत्यूरीघाट में रणचूलाहाट में अपनी नई राजधानी बनाई। या यह कहा जाता है कि, नारसिंह ने कत्यूरी राजा से जोशीमठ छीन कर,उत्तरभारत के जोगियों को एकत्र करके, एक विशाल संगठन बनाया।

तथा तुर्कों के आतंक से प्रभावित जनता की रक्षा के लिए, तुर्क सल्तनत के सामान एक राज सत्ता कायम कर ली। इनकी मृत्यु के उपरांत इनके शिष्य, भैरोनाथ, हनुमंतनाथ, मैमंदापीर, अजैपाल आदि ने इनकी गद्दी को सम्हाला और यहाँ की जनता का नेतृत्व किया। चमोली जनपद के गावों में इनकी और इनके शिष्यों की पूजा होती है। और जागरों का आयोजन किया जाता है।

नरसिंह देवता को समर्पित एक मंदिर चम्पावत जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर कालूखाड़ नमक क्षेत्र में स्थित है। यहाँ दशहरे के उपलक्ष्य में एक उत्सव का आयोज़ंन होता है। इसमें नवमी की रात्रि को जागरण और दशमी को पूजा के बाद प्रसाद वितरण होता है। गढ़वाल में जोशीमठ के अलावा टिहरी जिले में नरसिंह देवता के अनेक मंदिर हैं। जैसे -स्वीली ,शाक्नयाण, कांगड़ा आदि।

उत्तराखंड में नरसिंह के नौ रूपों की पूजा की जाती है –

  • इंगला बीर
  • पिंगला वीर
  • जतीबीर
  • थती बीर
  • घोर- अघोर बीर
  • चंड बीर
  • प्रचंड बीर
  • दूधिया नरसिंह
  • डौंडिया नरसिंह

आमुमन दूधिया नरसिंह और डौंडिया नरसिंह की जागर लगाई जाती है। दुधिया नरसिंह ( कुमाऊँ में इनको दूधाधारी नारसिंह कहते हैं) शांत होते हैं, इनकी पूजा रोट काटकर पूरी हो जाती है। डौंडिया नरसिंह उग्र स्वभाव के माने जाते है।  इनकी पूजा बकरी, भेड़ की बलि देकर पूरी हो जाती है। कुमाऊं  में अमूमन  नरसिंह देवता का पश्वा या डंगरिया स्त्री होती है।इनको अवतरित कराने के लिए भीतर की  और हुड़के की जगार लगाई जाती है।

सिदुवा – बिदुआ की कहानी को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

चौमू देवता या चमू देवता की रयूनी- द्वारसों आगमन की कहानी, कुमाऊं के पशुपालकों के देवता

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चौमू देवता

चौमू देवता का अर्थ है, चार मुह वाला देवता। चमू देवता उत्तराखंड के लोक देवता हैं। इनको पशु चारको का देवता माना जाता है। इनको चमू देवता, चौमू देवता ,चौखम देवता,चमू राज आदि नामों से जानते हैं। चौमू देवता का मूल स्थान चंपावत जिले का नेपाल से सटा हुआ क्षेत्र गुमदेश माना जाता है। चंपावत गुमदेश में चौमू देवता का प्रसिद्ध मंदिर है। चमू देवता की कल्पना पशुपतिनाथ शिव की चतुर्मुखी रूप से की जाती है।

कहा जाता है, प्राचीन काल मे चंपावत गुमदेश क्षेत्र में बकासुर नामक राक्षस ने आतंक मचाया था। तब एक बृद्ध महिला की करुण पुकार पर चौमू देवता ने ,इस क्षेत्र को बकासुर के आतंक से मुक्त कराया।तब से इसी उपलक्ष में प्रत्येक वर्ष चैत्र नवरात्र में चंपावत गुमदेश के चौमू देवता मंदिर में चैतोला मेले का आयोजन  किया जाता है। यहाँ प्रत्येक वर्ष चमू देवता अवतरित होकर सभी को आशीर्वाद देते हैं।

कहा जाता है कि , चंपावत गुमदेश के ऐतिहासिक चमू देवता मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान कराया था। गुमदेश के अलावा अल्मोड़ा जिले के रयूनी द्वारसों क्षेत्र में भी चमू देवता को पूजा जाता है। यहाँ चमू देवता का मूल मंदिर रयूनी द्वारसों में है। चमू देवता की चौमुखी लिगं के रूप में पूजा होती हैं

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चमु देवता की रयूनी- द्वारसों आगमन की कहानी

चौमू देवता के रियूनी – द्वारसों आने के बारे में एक कथा प्रचलित है। कहा जाता है, की 1500 ई के आस पास रणवीर सिंह राणा नाम के व्यक्ति चंपावत से, नर्मदेश्वर भगवान का लिंग अपनी पगड़ी में बांध कर ला रहे थे। रानीख़ेत के पास घारीघाट पानी के स्रोत के पास उन्होंने अपनी पगड़ी नीचे रखी,पानी पिया ।

पानी पीने के बाद वो ज्यूँ ही पगड़ी उठाने लगे तो ,पगड़ी नही उठी। तब राणा जी मदद के लिए कुछ लोगों को बुला कर लाये,सब लोगों ने बड़ी मुश्किल से उस लिंग को उठा कर बांज के पेड़ के पास रख दिया। मगर दूसरे दिन देखा तो वो लिंग वहाँ नही था, ढूढने पर वो लिंग रियूनी और द्वारसों की सरहद पर था। अतः फिर दोनों गावों ने मिलकर चमू देवता का मंदिर रियूनी द्वारसों में बनाया। इस मंदिर में चढ़ने वाली हर भेंट के हकदार भी दोनो गाँव बराबर हैं।

चौमू देवता
चमू देवता, गुमदेश चंपावत फ़ोटो सभार
– दैनिक जागरण

इस घटना को सुनने के बाद ,अल्मोड़ा के तत्कालीन राजा रतनचंद ने लिंग के दर्शन जाने की इच्छा जताई, पर अच्छा मुहूर्त न होने के कारण ना जा पाए। तब उसी रात चमू देवता ने उनके स्वप्न में आकर कहाँ, यहाँ राजा तू नही मैं हूँ। तू क्या मेरी पूजा करेगा। चमू देवता को क्षेत्र के लोग चमू राज ( चमू राजा ) नाम से भी बुलाते हैं। और मझखाली के आस पास के गावँ का सबसे बड़ा मंदिर यही है। लोग जब चमु देवता को पूजा देते हैं तो यही आते है। स्थानीय स्तर पर इस मंदिर को चमु दीबाव (Chamu Dibav )के नाम से बुलाते हैं।

हरज्यू , और सैम देवता की जन्म कथा को पढ़ने को यहाँ क्लिक करें …

क्यों करते हैं चौमू देवता की पूजा ?

चौमू देवता  की संकल्पना पशुपतिनाथ शिव के चतुर्मुखी रूप से की जाती है। कुमाऊं क्षेत्र में चमू देवता को पशुओं और पशुपालकों का देवता माना गया है। पशुओं के उत्तम स्वास्थ्य के लिए तथा पशुओं की रक्षा के लिए चमू देवता की पूजा की जाती है। कहाँ जाता है ,कि पशुओं के जीवन का प्रबंधन का कार्य जिन देवताओं को मिला है,उनमे एक देव चमू देवता हैं। चमू देवता को खुश करने के लिए प्रत्येक नवरात्र में यहाँ पूजा अर्चना होती है। बकरियों की बलि दी जाती है।

जब गाय या भैस का बच्चा होता , बिना चमू देवता की पूजा किये ,चमू देवता को उसके दूध का पहला भोग लगाएं बिना उस दूध को ,रोटी चावल के साथ प्रयोग नहीं करते । उसका सार्वजनिक प्रयोग या बिक्री के लिए प्रयोग नही करते। क्षेत्र के प्रत्येक गांव के ऊँचे स्थान पर चमू देवता का मंदिर होता है।

गाँव मे सबसे टॉप पर चमू देवता का मंदिर होने के पीछे एक कारण बताया जाता है, कि चमू देवता का मूल स्थान रियूनी द्वारसों है, इसलिए इसी क्षेत्र के आसपास के गावों में चमू देवता की पूजा होती है। और गावों में चमू देवता का मंदिर ऐसे स्थान पर बनाया जाता है, जहाँ से रियूनी द्वारसों दिखता है या नजर पड़ती है।

रियूनी द्वारसो क्षेत्र में गाय भैंस खरीदने पर ,उसकी मूल कीमत के साथ, चमुवा भेंट ( मतलब चमू देवता के लिए भेंट )  देना ज़रूरी होता है। रियूनी द्वारसों से पशु खरीदने वालों के लिए चमू देवता की पूजा अनिवार्य है।

“प्रस्तुत लेख का संदर्भ बद्रीदत्त पांडे जी द्वारा लिखित कुमाऊँ के इतिहास से लिया गया है।”

उत्तराखंड पाशुचारकों के एक और देवता बधाण देवता और उनके तीर्थ बाधाण स्थली के बारे में पढ़ने के लिए क्लिक करें।

पेओरा गांव उत्तराखंड का फलों का कटोरा | Peora village Nainital Uttrakhand

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उत्तराखंड एक प्राकृतिक प्रदेश है। यहां प्रकृति ने हर कोने हर क्षेत्र को ऐसे सजाया है, उत्तराखंड का हर कण स्वर्ग का अहसास दिलाता है। यहाँ कई एक से बढ़कर एक दर्शनीय स्थल मौजूद है, जिन्हें सारी दुनिया जानती है ,और भ्रमण के लिए आती है। और कुछ ऐसे स्थान भी हैं, जो सारी जन्नत की खूबी अपने मे समेटे हुए है, लेकिन उस सुंदरता से अभी भी कई लोग अनजान हैं। इन्ही दर्शनीय स्थलों में एक है, नैनीताल का  पेओरा गांव  ( Peora village Nainital ) इसके बारे में अधिक लोगो को अभी तक नही पता है।

पेओरा गाव  उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित एक छोटा सा प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर गाँव है। यह गावँ नैनीताल कोस्यकुटोली तहसील में स्थित है। यह गावँ समुद्रतल से 6600 फुट (1997 मीटर ) की ऊंचाई पर स्थित है। यह  गाव अल्मोड़ा और नैनीताल के मध्य में पड़ता है। यह गाव अल्मोड़ा से लगभग 23 किलोमीटर दूर और तल्लीताल नैनीताल से पेओरा की दूरी लगभग 60 किलोमीटर दूर है।

देवदार, काफल, ओक और बुरांश के पेड़ों की सुंदरता से सजा पेओरा गाँव, स्वर्ग को फैल करता है। यहाँ से हिमालय की चोटियों का सजीव दर्शन होते हैं। नैनीताल के प्रसिद्ध स्थल, मुक्तेश्वर से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पेओरा गाव। उत्तराखंड का यह छोटा सा हिल स्टेशन पेओरा ,अपने आप मे एक आदर्श हिल स्टेशन की सभी खूबियां समेटे हुए है।

पेओरा गांव को उत्तराखंड का फलों का कटोरा कहते हैं। 

पेओरा गाँव ( peora village ) को उत्तराखंड का फलों का कटोरा कहा जाता है। यहां आलूबुखारा, सेव, खुबानी , आड़ू, काफल और अन्य  पहाड़ी फल काफी मात्रा में होते हैं। फलों से यहां कई प्रकार के हर्बल उत्पाद   जो यहाँ नही बेचे जाते , सीधे बाहर भेजे जाते हैं। यहाँ कोई बाजार नही है।

पेओरा गांव में क्या करें –

  • पोरा गाँव से आप चारों ओर हिमालय की चोटियों की नयनाभिराम सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।
  • इस गांव के सुंदर और रोमांचकारी रास्तों (ट्रेकस) पर रोमांच का अनुभव कर सकते हैं। पेओरा में आप साइकिलिंग का रोमांचकारी आनंद ले सकते हैं। साइकिल लेकर निकल पड़िये पोरा की हरी भरी पगडंडियों पर, मजा आ जायेगा।
  • यहाँ आप कई प्रकार की पक्षियों के तथा विभिन्न प्रकार के फूलों का दर्शन कर सकते है, तथा उनके साथ फोटो ले सकते हैं।
  • पेओरा गाव में, कोई बाजार नही हैं, यह एक शुद्ध प्राकृतिक गाँव है। यह क्षेत्र कई प्रकार के हर्बल उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। यहां से आप हर्बल फैसपैक, मसाले आदि ,यहाँ के लघु उद्योगों से अच्छी कीमत में खरीद सकते हैं।
  • इसके अलावा आप कैम्पिंग से पहाड़ के गांव में जीने ,रहने का आनन्द ले सकते हैं।
  • जिनको अपने जीवन के कुछ पल एक शांत ,सुंदर स्थान में बिताने हैं, उनके लिए आदर्श है पेओरा गांव।
  • पेओरा में आरोही नामक एक ngo कार्यरत है। यह ngo पर्यावरण संरक्षण और शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है। आप इनके क्रियाकलापों का आनंद भी ले सकते हैं।

पेओरा गाँव जाने के लिए सर्वोत्तम समय –

पेओरा गाँव जाने के लिए सर्वोत्तम समय है, मार्च से जून और सितम्बर से दिसंबर तक। जुलाई अगस्त में बारिश के कारण यहां खतरे बढ़ जाते हैं । मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं। और जनवरी तथा फरवरी में अत्यधिक बर्फ पड़ने के कारण भी यहाँ मार्ग अवरुद्ध रहते हैं।

पोरा गाव ( पेओरा गाव ) जाने से पहले इस बात का ध्यान रखें –

पेओरा गाव , पोरा गाव प्रकृति की गोद मे बसा एक शुद्ध पहाड़ी गाव है। यहाँ किसी प्रकार का होटल या बाजार उपलब्ध नही है। इसलिए पेओरा जाने से पहले , अपनी आवश्यता की वस्तुएं, लेकर आएं। अपना जरूरी सामान साथ लेकर चलें और प्रकृति का आनन्द लें।

पेओरा ( पोरा ) में कहाँ ठहरे 

पेओरा | पोरा गाव में ठहरने के लिए यहां आस पास कुछ आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित रिसोर्ट बन गए हैं। जहां आप ठहर सकते हैं। लेकिन यहाँ ठहरने के लिए सबसे अच्छा विकल्प यहाँ का पुराना डाक बंगला है। जिसे आजकल एक होम स्टे के तौर पर बनाया गया है। इस डाक बंगले को 1905 में बनाया गया था। इसमे अभी भी वो पुराने जमाने वाला आकर्षण है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है, कि यह ऐसी जगह स्थित है, जहॉ से हिमालय की त्रिशूल चोटियों का दर्शन का आनंद ले सकते हैं।

पेओरा गाँव कैसे पहुँचे –

पेओरा गावँ | पोरा गाँव जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। काठगोदाम से लगभग 70 किमी दूर है पेओरा गावँ । काठगोदाम तक ट्रेन से आकर वहाँ से बस या टैक्सी की सहायता से यहां पहुँचा जा सकता है।

सडक़ मार्ग से पोरा गाँव सभी राजमार्गो से अच्छे से जुड़ा है। यहाँ के लिए वाहन आसानी से मिल भी जाते हैं। निकटम स्थल, नैनिताल, हल्द्वानी, काठगोदाम हैं।

हवाई जहाज से पोरा गाँव जाने के लिए, निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है। वहां से टैक्सी से पेओरा /पोरा गाँव जा सकते हैं।

पेओरा गांव
फ़ोटो साभार नवभारत टाइम्स

पेओरा गांव का मौसम-

पोरा एक पहाड़ी डेस्टिनेशन होने के कारण ,यहाँ का मौसम ठंडा रहता है। दिसंबर जनवरी फरवरी में अत्यधिक ठंड होने कारण यहाँ बर्फबारी होती रहती है।

पेओरा गावँ नैनीताल के आस पास घूमने लायक अन्य स्थल  –

आदि अनेक स्थल है। पेओरा गांव ( Peora village Nainital ) शांति की खोज करने वाले, शुद्ध वातावरण में दिन गुजारने वालों के लिए एक आदर्श हिल स्टेशन है।

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फादर्स डे उत्तराखंड में | Father’s day in Uttrakhand

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फादर्स डे उत्तराखंड में
Poem for father in Kumaoni language

फादर्स डे उत्तराखंड में (Father’s day  in Uttrakhand )

मित्रो आज फादर्स डे है। वैसे देखा जाय तो , मा बाप को खुश करने या प्यार करने के लिए कोई स्पेशल डे की जरूरत नही है। हर दिन माँ का है। हर दिन पिता जी का है। उनसे तो हम हैं। लेकिन अगर दिन बनाया गया है,तो उसे भी मनाना चाहिए, और उस दिन अन्य दिनों से दोगुनी प्यार,खुशी माननी चाहिए। हम पहाड़ी हैं , अतएव हम फादर्स डे पहाड़ी में , ही मनाएंगे। इस उपलक्ष में हमने  पिता पर कविता कुमाउनी में लिखी है। अच्छी लगे तो शेयर जरूर कीजिएगा।

कुमाउनी में पिता को बाज्यू , ओबा, पापा, बाब, बाबू आदि नामों से पुकारते हैं।

      “बाज्यू बाज्यू कभहे न कोय ” 

               ( फादर्स डे उत्तराखंड में )

ईजा ईजा रोज कुनू, बाज्यू बाज्यू कभे न कोय।

दिन भर कमर तोड़, काम करबे ,

ब्याव कने द्वी रवाट ल्यानी, बाज्यूक कोई नि होय।।

बाज्यू आपुण फाटि कपड़ पैरनी, हमर फैशन पुर कर दिनी।

आपुण लिजी पेट भरी रवाट हो न हो, हमर पेट पुर भर दिनी।।

ईजा ईजा रोज कुनु, बाज्यू बाज्यू कभहे न कोय।….

उ नांछिना याद , जब बाज्यूक कंध में बैठी म्याल घुमछि।

जब बाज्यूक कंध मा बैठी दूनी देखछि,और दुनियाक हाल देखछि।।

ईजक दिलक बात सब समझनी, बाज्यूक मन के कोई नि समझ सकन।

सबुके बाज्यूक गुस्स देखि, बाज्यूक मन मा कदुक प्यार छू कोई न देख सकन।।

ईजा ईजा रोज कुनू, बाज्यू बाज्यू कभे न कोय….

सबुक पीड़ , सबुक आंसू ,बाज्यूल पोछि, बाज्यूक दुख कैले नि देखी।

सबुल पेट भर खा्य बाज्यूक भूख कैले नि देखी।।

बाज्यूल तुमुल दूनी दिखायी, हमार स्वीण पुर कर,

आपुण स्वीण भूलि गया ।

बाज्यू तुम कष्ट खै बे हमुकु मैस बने गया, हम तुमुगु भूलि गया।।

ईजा ईजा रोज कूनो, बाज्यू बाज्यू कभे न कोय….

स्वरचित – बिक्रम सिंह भंडारी

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