Ajay bijalwan Surkanda devi -आजकल उत्तराखंड के ऋषिकेश में अजय बिल्जवाण जी का दरबार चर्चाओं में है। उत्तराखंड ऋषिकेश के मुनि की रेती क्षेत्र में वाला यह दरबार खास है। यह दरबार कथावाचक धीरेन्द्र शास्त्री जी के दरबार की तरह नहीं लगता। बल्कि माँ सुरकंडा उनके शरीर में अवतरित होकर और देव डोली अवतरित होकर ,लोगो की समस्याओं का समाधान करती है और लोगों को सन्मार्ग की तरफ प्रेरित करती है। इसके अलावा इस दरबार के चर्चाओं में आने का कारण एक दिव्य चमत्कार है ,जिसे अजय बिल्जवाण जी सुरकंडा माता के अवतरण के बाद करते हैं।
अजय बिल्जवान जी माता के अवतरण के बाद अपने हाथ में दूध और चावल से हरियाली उगा देते हैं। यह चमत्कार वे भरी सभा में सबके सामने करते हैं। कई लोगो की शंका के बाद उन्होंने समाचार चैनलों की उपस्थिति व् पोलिस की उपस्थिति में यह चमत्कार लाइव करके दिखाया है। इस चमत्कार के बाद अजय बिल्जवान की ख्याति दूर -दूर तक फैलने लगी है। दूर -दूर से लोग उनके दरबार में आते हैं। माँ सुरकंडा के आशीष से अभी तक उनके दरबार से सभी भक्त संतुष्ट और खुश होकर जाते हैं। अपने हाथ में तत्काल उगाई हरियाली को दूध चावल के साथ माँ अपने भक्तों को प्रसाद स्वरूप देती हैं।
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहाँ के कण-कण में दैवीय शक्तियों का वास है। यहाँ जागर, घड़ियालों के द्वारा पूर्वज और दैवीय शक्तियां अवतरण लेती हैं ,और अपने भक्तों की समस्याओं का समाधान करती हैं। दैवीय शक्तियों के साथ पहाड़ वासियों का सम्बन्ध यहाँ की समृद्ध संस्कृति का अभिन्न अंग है।
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कौन हैं अजय बिल्जवाण?
अजय बिल्जवान जी के एक इंटरव्यू से प्राप्त जानकारी के अनुसार अजय बिल्जवाण जी का परिवार मूलत उत्तराखंड राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले के क्यारी पिडांस गांव के रहने वाले हैं। वर्तमान में उनका परिवार हरिद्वार जिले के पथरी क्षेत्र में रहता है। अजय मात्र 21 वर्ष के हैं। इनकी पूरी शिक्षा ऋषिकेश में संस्कृत और अंग्रेजी माध्यमों से हुई है। वर्तमान में अजय श्री दर्शन महाविद्यालय के तृतीय वर्ष के छात्र हैं।
प्रसिद्ध हो रहा है माँ सुरकंडा का दरबार और अजय बिल्जवाण
कैसे हुई उन पर माँ सुरकंडा की अनुकम्पा-
अजय बिल्जवाण बताते हैं,जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा। पहाड़ में उनके कुलदेवता घंटाकर्ण देवता हैं। और कुल देवी माँ भुवनेश्वरी देवी हैं। घंटाकर्ण महाराज को भगवान बद्रीनाथ का क्षेत्रपाल या सेवक माना जाता है। अजय जी बताते हैं ,और वे मात्र चार वर्ष की उम्र से सच्चे मन से अपने कुलदेवता की सेवा करते आएं हैं। उनके मन में, कभी किसी के बारे में गलत विचार नहीं आये। शायद यही कारण रहा कि माँ सुरकंडा की असीम कृपा उन्हें मिली। माता ने उन्हें अपने भक्तों को सन्मार्ग दिखाने के लिए उन्हें प्रतिनिधि के रूप में चुना।
पहले वे माता के शरीर में अवतरण द्वारा लोगो की समस्याओं का समाधान करते थे। अब उन्होंने माता सुरकंडा की देवडोली स्थापित की है। अब वे अपने दरबार में देव डोली से भक्तों की समस्याओं का समाधान करते हैं।
क्या अजय बिल्जवान जी अपने दरबार में पैसे लेते हैं?-
इस सवाल पर अजय बिल्जवान जी बताते हैं कि उनके दरबार में किसी भी प्रकार की फीस नहीं ली जाती है। वे बताते हैं कि कई लोगो ने भगवान के दरबार की परम्परा का व्यवसायीकरण करके बदनाम किया है। लेकिन उनके दरबार किसी भी प्रकार का शुल्क देने के लिए बाध्य नहीं किया जाता है। लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ी परम्परा के अनुसार ,जब किसी के नाम का उच्चैण उठाया जाता है तो उसमे कुछ चावल और 11 रूपये रखने की परम्परा है। (ऊचेण एक ऐसी भेंट जो कामना पूरी होने के लिए देवताओं के निमित्त रखी जाती है।) ऊचेण के बारे में विस्तार से पढ़े.
सुरकंडा माता का दरबार ऋषिकेश से नटराज चौक रिलायंस पेट्रोल पंप टिहरी रोड से आगे चंद्रा पैलेस होटल से आगे भुवनेश्वरी मंदिर भजन गढ़ रोड पर लगता है।
उत्तराखंड की बोर्ड परीक्षाओं की डेटशीट जारी हो चुकी है,आपको बता दें कि 16 मार्च 2023 से ये परीक्षाएं शुरू होनी हैं। इस बार उत्तराखंड सरकार ने इन बोर्ड परीक्षाओं के लिए 1253 परीक्षा केंद्र बनाए हैं जहां पर 2 लाख 60 हजार के आसपास बच्चे परीक्षा देंगे। परीक्षा केंद्र में नकल न हो सके इसके पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं, इसके लिए शिक्षा मंत्री धनसिंह रावत ने बताया कि परीक्षा केंद्रों में मोबाइल फोन पूर्णतया प्रतिबंधित रहेगा।
उत्तराखंड की इन बोर्ड परीक्षाओं में हाईस्कूल में 1लाख 32हजार तथा इंटरमीडिएट की परीक्षा में 1लाख 27 हजार के आसपास छात्र परीक्षा देकर अपना भविष्य निर्धारित करेंगे। शिक्षा मंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि 16 मार्च से होने वाली उत्तराखंड बोर्ड की इन परीक्षाओं का परिणाम किसी भी हाल में 25 मई तक सामने आ जाने चाहिए।
परीक्षा केंद्रों की अगर बात करें तो इस बार सबसे अधिक परीक्षा केंद्र पौड़ी जिले में हैं जिनकी संख्या है 136 तथा सबसे कम परीक्षा केंद्र हैं चंपावत जिले में जिनकी संख्या 39 है। शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने कहा कि प्रदेश भर में 1253 परीक्षा केंद्रों पर बोर्ड परीक्षा होगी, जिसमें से संवेदनशील हैं 195 परीक्षा केंद्र तथा 14 परीक्षा केंद्रों को अति संवेदनशील घोषित किया गया है।
हम उत्तराखंड बोर्ड की इन परीक्षाओं में शामिल होने वाले सभी छात्र छात्राओं के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। साथ ही हम उन्हें यही कहेंगे कि ज्यादा तनाव में न रहते हुए शांत मन से परीक्षा दें व उनके परिवारजनों से भी कहेंगे कि बच्चों पर अनावश्यक रूप से दबाव न बनाएं।
क्योंकि ये परीक्षाएं सिर्फ खुद को आंकने के लिए होती हैं इसलिए इसे मुस्कुराते हुए शांत मन से निभाएं।
झंडा मेला देहरादून में हर साल होली के पाँचवे दिन मनाया जाने वाला उदासी संप्रदाय के सिखों का धार्मिक उत्सव है।उदासी सम्प्रदाय के अनुयायी, यह उत्सव अपने गुरु श्री गुरु राम राय के दून आने की ख़ुशी में मनाते हैं। बताया जाता है कि सन 1675 में कृष्ण पक्ष की पंचमी के दिन गुरु महाराज देहरादून में आये थे।
कहते हैं, इस उत्सव की शुरुवात गुरु महाराज के जीवनकाल में हो गई थी। मेले की शुरुवात से पूर्व क्षेत्र के उदासियों के द्वारा दरबार के महंत की अगुवाई में विशाल जुलुस निकाला जाता है।इस जुलूस में सारे भक्त शामिल होते हैं। हर तीसरे साल नागसिद्ध वन से लाया गया लगभग 100 फ़ीट ऊँचे ध्वजदंड को बदला जाता है।
इसके बाद पूजा अर्चना के करके पुराने झंडे जी को उत्तारा जाता है। सेवक दही घी, व गंगाजल से ध्वज दंड को स्नान करवाते हैं। श्री झन्डे जी पर तीन प्रकार के गिलाफ चढ़ाये जाते हैं। सबसे पहले 41 सादे गिलाफ लगाए जाते हैं। फिर बीच में शनील के 41 गिलाफ लगाए जाते हैं। अंत में एक दर्शनी गिलाफ लगाया जाता है। पवित्र जल छिड़कने के बाद भक्त रुमाल और दुपट्टे बांधते हैं। झंडे जी के आरोहण के समय पूरा दरबार सत श्री अकाल! और गुरु राम राय की जय के नारों से गुंजायमान हो जाता है।
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झंडा मेला 2024
2024 में झंडा मेला 30 मार्च 2024 से शुरू होगा। देहरादून में पंजाब ,हिमांचल , हरियाणा से बड़ी संख्या में संगते आना शुरू हो गई हैं। दरबार झन्डेजी के लिए गिलाफ सिलाई काम शुरू हो गया है। दरबार के महंत श्री देवेंद्र दास महाराज ने संगतो से झंडे मेले में भाग लेने और पुण्य अर्जित करने की अपील की है।
झंडा मेला देहरादून का इतिहास
झंडा मेला देहरादून का इतिहास
झन्डेजी का इतिहास लगभग 350 साल पुराना है। श्री गुरु राम राय सिखों के सातवें गुरु श्री गुरु हर राय के पुत्र थे। महाराज जी बचपन से प्रतिभावान और तेजस्वी बालक थे। अटिकन्स कहते हैं, औरंगजेब के दरबार में चमत्कार दिखाने के कारण,औरंगजेब द्वारा उनकी तारीफ करने के कारण उन्हें सिख गुरु परम्परा से वंचित कर दिया गया।
अपने पिता की गद्दी प्राप्त करने में असफल हो जाने के कारण अपने समर्थकों के साथ टौंस नदी के बाएं तट पर कंडाली में अपना डेरा डाला। उसके बाद कृष्ण पक्ष की पंचमी को खुड़बुड़ा नामक स्थान पर अपना डेरा डाला था। गुरु राम राय के डेरे के कारण ही इस दून का नाम डेरादून पड़ा। जो कालान्तर में देहरादून हो गया।
गुरु रामराय जी को औरंगजेब बहुत मानता था। औरंगजेब ने उन्हें हिन्दू पीर की उपाधि दी थी। गुरु राम राय देहरादून में जिस स्थान में ठहरे थे ,वह स्थान गढ़वाल के राजा फतेशाह के राज्य में आता था। फतेशाह औरंजेब के मित्र थे। कहते हैं औरंगजेब ने राजा फतेशाह को आदेश दिया था कि ,गुरु महाराज की जितनी जमीन चाहिए दे दी जाय और उनको किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होनी चाहिए।
औरंगजेब से प्राप्त एक संतुति पत्र के आधार पर ,राजा फतेशाह ने गुरुमहाराज को देहरादून के तीन गांवों (खुड़बुड़ा ,राजपुरा और आमसूरी) की जागीर दी। कहते हैं गुरु राम राय ने 1694 में यहाँ गुरूद्वारे की स्थापना करके झंडा फहराया था। तबसे उसी की स्मृति में प्रतिवर्ष होली के पांचवे दिन ध्वजारोहण करके झंडा मेला मनाया जाता है।
झन्डेजी के मेले का धार्मिक महत्व
झंडा मेला 15 दिन का होता है। इसमें 100 फीट लम्बे स्तम्भ में लाल ध्वजा लगाई जाती है। भक्तों का विश्वाश है कि इस दौरान इस पर लाल या सुनहरी चुनरी बांधने पर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस पावन पल का साक्षी बनने के लिए दूर -दूर से यहाँ श्रद्धालु आते हैं।
उत्तराखंड का प्रसिद्ध पूर्णागिरि मेला 9 मार्च 2023 से शुरू हो गया है। यह मेला 9 जून 2023 तक चलेगा। उत्तराखंड के चम्पावत जिले में स्थित माँ पूर्णागिरि सिद्ध पीठ में प्रतिवर्ष मेला लगता है। विगत वषों में कोरोना महामारी के चलते यह मेला अपने पूरे रंग में नहीं चल रहा था। 2023 में पूर्णागिरि मेला अपने पुरे रंग में होगा। जानकारी के अनुसार मेले में शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए छः मजिस्ट्रेटों की नियुक्ति की गई है।
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मुख्यमंत्री श्री पुष्कर धामी ने किया पूर्णागिरि मेला का आगाज –
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने पूर्णागिरि मेले का उट्घाटन किया। इस सुअवसर पर मुख्यमंत्री जी ने कहा कि, “यह मेरा सौभाग्य है कि आज इस पावन मेले के शुभारंभ पर मां के चरणों में शीश नवाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। ” उन्होंने कहा कि, “पूर्णागिरि मेला उत्तर भारत का प्रसिद्ध मेला है। इस मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु विभिन्न स्थानों से आते हैं। उन्हें प्रत्येक सुविधा उपलब्ध कराना उत्तराखंड सरकार की प्राथमिकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि केदारखंड के मंदिरों को विकसित करने के साथ ही हम मानसखंड कॉरिडोर को भी विकसित करने कि दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। जिसके अंतर्गत गोलज्यू मंदिर, पाताल भुवनेश्वर, कोट भ्रामरी, देवीधुरा, कैंचीधाम सहित अनेक मंदिरों को चिह्नित किया गया है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने समूह की महिलाओं द्वारा पूर्णागिरि धाम हेतु तैयार किए गए प्रसाद तथा उसे रखने हेतु “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” योजना के अंतर्गत पिरूल से बनाई गई टोकरी का भी शुभारंभ किया। मुख्यमंत्री ने ककराली गेट, टनकपुर से मां पूर्णागिरि धाम तक यात्रा मार्ग में विद्युत विभाग द्वारा स्ट्रीट लाइट समेत मेले की व्यवस्थाओं के सुचारू संचालन हेतु मंदिर समिति को अनुदान देने के साथ साथ अन्य घोषणाएं भी की।
देवी के प्रमुख शक्तिपीठों में एक है, पूर्णागिरि मंदिर –
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब माता सती ने आत्मदाह किया, तब भगवान शिव माता की मृत देह लेकर सारे ब्रह्मांड में तांडव करने लगे। सृष्टि में अव्यवस्था फैलने लगी। तब भगवान विष्णु ने संसार की रक्षा के लिए, माता सती की पार्थिव देह को अपने सुदर्शन चक्र से नष्ट करना शुरू किया। सुदर्शन चक्र से कट कर माता सती के शरीर का जो अंग जहाँ गिरा, वहाँ माता का शक्तिपीठ स्थापित हो गया। इस प्रकार माता के कुल 108 शक्तिपीठ हैं। इनमे से उत्तराखंड चंपावत के अन्नपूर्णा पर्वत पर माता सती की नाभि भाग गिरा ,इसलिये वहाँ पूर्णागिरि मंदिर की स्थापना हुई। विस्तार पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.
कत्यूरी राजा प्रीतम देव और उनकी महान रानी जिया रानी ने खूब नाथ सिद्धों की सेवा और धाम यात्रायें की। जिसके फलस्वरूप उन्हें एक प्रतापी और वीर पुत्र की प्राप्ति हुई। राजा प्रीतम देव और रानी जिया ने उनका नाम धामदेव रखा। भविष्य में धामदेव कत्यूर वंश के सबसे प्रतापी और महान राजा हुए। आज भी जनता उनकी न्यायप्रियता को याद करती है। धामदेव ने अपने अल्पकालिक जीवन में कई युद्ध जीते। इन्ही युद्धों में से राजा धामदेव के सागर गढ़ ताल के युद्ध को विशेष याद किया जाता है।
इतिहासकारो के अनुसार राजा धामदेव ने इस युद्ध में तुर्क आक्रांताओ को पराजित किया था। जिसे आज समुवा मसाण के नाम से जानते हैं। समुवा के साथ दो और थे ,जिनका नाम नकुवा और और बिछुवा था। इतिहासकारों के मुताबिक समुवा का नाम था सैयद दुस्सादात सैयद सलीम और नकुवा। हालांकि नकुवा को बेतालघाट क्षेत्र में भगवान् शिव के गण के रूप में पूजते हैं। इन दोनों के अलवा इनके साथ एक और था जिसका नाम बिछुवा था। उस समय भारत में फिरोजशाह तुगलक का राज था। फिरोजशाह तुगलक ने समुवा उर्फ़ सैयद दुस्सादात सैयद सलीम को शानपुर ( साहरनपुर ) की जिम्मेदारी दी थी। समुवा बेहद क्रूर तुर्क आक्रांता था।
सागर गढ़ ताल सोन नदी और रामगंगा नदी के संगम पर कालागढ़ क्षेत्र को कहा जाता था। प्रसिद्ध इतिहासकार डा रणवीर सिंह चौहान के अनुसार सागरगढ़ दो सौ फ़ीट लम्बा और दो सौ फ़ीट चौड़ा एक टापू पर बसा गढ़ था। यह गढ़ जितना सुन्दर था उतना ही भयानक भी था। इसे दूधिया चौड़ नकुवा ताल के नाम से भी जानते हैं। कहते हैं यहाँ से एक सुरंग रानीबाग तक बनी है। भारत में फिरोजशाह तुगलक के आक्रमण के समय कत्यूरों के हाथ से यह गढ़ निकल गया था। इस क्षेत्र में फिरोजशाह तुगलक प्रतिनिधि के रूप में समुवा ,नकुवा ,बिछुवा रहते थे। उनका इस क्षेत्र में आतंक था। समुवा स्त्रियों का अपहरण करके सागर गढ़ ताल में चला जाता था। और भाभर क्षेत्र से पशुधन ,अन्य कीमती वस्तुवें लूट लेता था।
यह बात कत्यूरी राजा प्रीतम देव को भी ज्ञात थी। और उनकी रानियों को भी। प्रीतम देव की रानियाँ ,जिया रानी के पुत्र धामदेव से ईर्ष्या भाव रखती थी। उन्हें धामदेव को अपने मार्ग से हटाने का यह उचित अवसर लगा। वे राजा प्रीतमदेव को धामदेव को सागरगढ़ ताल जाने के लिए भड़काने लगी। राजपाट बटवारे में रानीबाग से सागरगढ़ तक का भाग जिया रानी को दिलवा दिया। और राजा प्रीतम देव को उल्टी पट्टी पढ़कर धामदेव को मौत के गढ़ सागर गढ़ में भेज दिया। इधर न्यायप्रिय रानी जिया ने इस समस्या के समाधान के लिए ,अपने गुरु के आदेश पर नौ लाख कत्यूरों की सेना को पुत्र धामदेव के साथ भेज दिया। और अपनी बड़ी बहन के पुत्र राजा गोरिया ( ग्वेल देवता ) ,अपने मायके के वीर भड़ भीमा कठैत ,पामा कठैत ,नाथ सिद्ध योद्धा नरसिंग ,और राजनर्तकी छमना पातर का पुत्र बिजुला नैक और निसंग महर जैसे महायोद्धाओं के दल को धामदेव के साथ सागर गढ़ भेज दिया।
राजा धामदेव
नौ लाख कत्यूरों और महायोद्धाओं ने सागर गढ़ ताल को घेर लिया। तभी धामदेव को राजा प्रीतमदेव की बीमारी का समाचार मिला। अपनी सेना को सागर गढ़ घेरे रखने का आदेश देकर वापस राज्य में आये । इधर राजा प्रीतम देव गुजर गए । दुष्ट रानियों को सबक सिखाकर लखनपुर की गद्दी अपने नाम कर वापस आये।
कत्यूरों की भारी भरकम लाव लश्कर देख समुवा मशाण और उसके साथी सागर ताल गढ़ के अंदर तहखानों में छिप गए । तहखानों के अंदर भयंकर युद्ध शुरू हो गया। कटारे गूंज उठी ! समुवा मसाण मारा गया। बिछुआ मसाण कम्बल ओढ़ के भाग रहा था। धामदेव ने उसे बंदी बना लिया। शायद इसीलिए कत्यूरी जागर में कम्बल ओढ़ के आना प्रतिबंधित होता है।
नकुवा क्षमा याचना करते हुए धामदेव के चरणों मे गिर गया । उन्होंने उसे माफ कर खैरना -बेतालघाट वाला क्षेत्र में क्षेत्रपाल बना दिया। मगर बाद में फिर वो अपनी चाल में आ गया। फिर उत्पात मचाने लगा । तब न्यायकारी राजा गोरिया ने उसका वध कर दिया । कहते हैं इस युद्ध मे राजा गोरिया का भी एक पावँ आहत हो गया था। जिस कारण वे आज भी एक पावँ पर अवतरण लेते हैं।
सागर तल गढ़ कत्यूरियों की सबसे बड़ी लड़ाइयों में एक थी। इस लड़ाई में तत्कालीन समय के लगभग सभी वीर महायोद्धाओं ने भाग लिया था। आज भी जागरों में धामदेव के पश्वा के साथ समुवा, बिछुवा, नकुवा, छमना, बिजुला नैक आदि के पश्वा भी अवतरित होते हैं। और सागर तल गढ़ युद्ध का दृश्य दोहराते हैं।
संदर्भ – उत्तराखंड के वीर भड / डॉ रणवीर सिंह चौहान व लखनपुर के कत्यूर
इसी संदर्भ में डॉक्टर हरिश्चंद्र लखेड़ा जी का वीडियो देखिए –
थिंक लोकल अप्रोच ग्लोबल की सोच को यथार्थ कर रही उत्तराखंड की ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती। वे उत्तराखंड की लोक कला ऐपण को देश -विदेश में नई पहचान दे रही हैं। कुर्मांचल क्षेत्र में घरों की सजावट और मांगल कार्यों में प्रयुक्त होने वाली लोक कला ऐपण को उसके मूल रूप में मीनाक्षी ने स्वरोजगार से जोड़ कर एक नया प्रयोग किया है। और अपने इस प्रयोग में वे सफल हो रही हैं।
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मीनाक्षी खाती और अन्य युवाओं के भगीरथ प्रयास से मिली ऐपण कला को संजीवनी –
आज उनके ऐपण से जुड़े उत्पादों की मांग वैश्विक स्तर पर है। उनसे प्रेरित होकर उत्तराखंड के कई युवा अपनी खोई हुई लोककला को जगा कर उसका प्रचार प्रसार तो कर रहे हैं। और ऐपण कला को स्वरोजगार से जोड़कर जीविकोपार्जन कर रहें हैं। मीनाक्षी खाती एक साथ कई कार्य कर रही है। अपने इस प्रयास से जहाँ उन्होंने खुद के लिए स्वरोजगार का एक अच्छा विकल्प ढूंढा ,वही वे अधिक से अधिक लोगों के साथ जुड़कर लोगों को इस कला में पारंगत बना रही हैं। उनके इस प्रयास से विलुप्तप्राय हो चुकी ऐपण कला को संजीवनी मिल गई है। पहले पहाड़ों में मंगल कार्यो पर घरों ऐपण बनाने की सामाजिक सहकारिता देखने को मिलती थी। पलायन और स्टिकर वाली संस्कृति ने ऐपण की मूल आत्मा को विलुप्ति के मुहाने पर खड़ा कर दिया था।
उत्तराखंड की इस बेटी और अन्य बच्चों का जूनून कहें या लगन। आज फिर कुमाऊं की लोक कला अपने पुराने रूप में पुनर्जीवित होकर पहाड़ ही नहीं बल्कि देश विदेश तक अपनी सांस्कृतिक रंग बिखेर रही है। गणतंत्र दिवस जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर कर्तव्यपथ पर उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व ऐपण कला से सजी झांकी कर रही है। और G20 की बैठकों में भी मेहमानो के दिलों में उत्तराखंड की लोक कला ऐपण की अमित छाप छोड़ने के लिए तत्पर है।
कौन है उत्तराखंड की ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती –
उत्तराखंड की ऐपण गर्ल ऑफ़ कुमाऊं के नाम से प्रसिद्ध मीनाक्षी खाती मूलतः नैनीताल जिले के रामनगर की निवासी है। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा रामनगर से और स्नातक स्तर की शिक्षा कुमाऊं विश्वविद्यालय से पूर्ण हुई है। अपनी शिक्षा पूर्ण करने के बाद मीनाक्षी ने लोक कला ऐपण के लिए कार्य करने की ठानी। मीनाक्षी खाती बताती हैं कि वे बचपन से ही दादी और माँ के साथ ऐपण कला बना रही हैं। ऐपण के साथ उनका बचपन से रिश्ता है।
दिसंबर 2019 में मीनाक्षी ने मिनकृति :द ऐपण प्रोजेक्ट नाम से एक ऐपण कार्यशाला बनाई। इस कार्यशाला के माध्यम से वे स्थानीय युवाओं को ऐपण के गुर सीखा कर स्वरोजगार से जोड़ रही हैं और साथ ही साथ कुमाऊं की इस लोक कला का प्रचार -प्रसार कर रहीं है। इसके अलावा वे डिजिटल माध्यम से या अलग अलग जगह जाकर राज्य के अन्य युवाओं को भी प्रेरित कर रही हैं। मीनाक्षी को ऐपण के क्षेत्र में लगातार सराहनीय कार्य करने के लिए कई पुरस्कार भी मिले हैं। महामहीम राष्ट्रपति महोदया जी के उत्तराखंड आगमन पर उन्हें महामहीम को ऐपण से सजी नेम प्लेट उपहार स्वरूप देने का सुअवसर मिला। गणतंत्र दिवस की परेड में मीनाक्षी द्वारा बनाई ऐपण से सजी मानसखंड झांकी उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व कर रही थी।
मिनाकृति द ऐपण प्रोजेक्ट द्वारा ऐपण कला को संजो रही हैं –
मिनाकृति :द ऐपण प्रोजेक्ट द्वारा बने हुए ऐपण कला से सजे उत्पाद लोगों द्वारा काफी पसंद किये जा रहें हैं। मिनकृति :द ऐपण प्रोजेक्ट द्वारा ऐपण कला से सजे अल दैनिक जीवन की चीजे ,की चैन ,नेम प्लेट ,ऐपण राखी , कैलेंडर ,डायरी ,काफी मग आदि बनाते हैं। इसके मांगलिक कार्यों में प्रयोग होने वाली चौकिया भी मिनकृति :द ऐपण प्रोजेक्ट की टीम द्वारा बनाये जाते हैं। इनके उत्पाद लोगो काफी पसंद करते हैं। विशेषकर मुंबई और बंगलौर जैसे महानगरों में बसे प्रवासी उत्तराखंडी और विदेशो में बसे प्रवासियों को खास पसंद आते हैं। ये सोशल मीडिया के माध्यम से ऑर्डर लेते हैं और अपनी टीम व् स्थानीय महिलाओं के सहयोग से आर्डर पुरे करके डाक द्वारा भेज देते हैं। इससे स्थानीय महिलाओं को भी रोजगार मिल जाता है। मीनाक्षी के इसी सराहनीय कार्य की वजह से उन्हें प्यार से लोग ऐपण गर्ल ऑफ़ कुमाऊं (aipan girl of kumaun) कहते हैं।
उत्तराखंड की ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती
उत्तराखंड की लोक कला, ऐपण क्या है –
उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में किसी त्यौहार या शुभकार्यो के पर भूमि और दीवार पर, चावल के विस्वार (पिसे चावलों के घोल) गेरू (प्राकृतिक लाल मिट्टी या लाल खड़िया) हल्दी ,जौ, पिठ्या (रोली) से बनाई गई आकृति , जिसे देख मन मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और सकारात्मक शक्तियों के आवाहन का आभास होता है, वह उत्तराखंड की पारम्परिक और पौराणिक लोक कला ऐपण है। ऐपण कला का इतिहास अनन्त है। ऐसा माना जाता है, कि कुमाऊं की प्रसिद्ध लोककला ऐपण ,पौराणिक काल से अनंत रूप में चली आ रही है। ऐपण कला के बारे विस्तार से पढ़े.
उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण का आंकलन किया जाय तो उत्तराखंड की स्थिति भारत के अन्य राज्यों से बेहतर है। पौराणिक इतिहास से सामाजिक ,जनांदोलन , लोक संगीत आदि सभी क्षेत्रों उत्तराखंड की महिलाओं का अग्रणीय योगदान है। उत्तराखंड की महिलाओं का गौरवशाली इतिहास रहा है। उत्तराखंड के इतिहास में तीलू रौतेली ,जिया रानी , रानी कर्णवती जैसी गौरवशाली नारियो ने जन्म लिया है।और मध्यकाल और वर्तमान में भी उत्तराखंड की गौरवशाली नारियां समाज में उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण नई मिसाल पेश करती आ रहीं हैं।
उत्तराखण्ड में महिलाओं पहाड़ की अर्थव्यवस्था केंद्र माना जाता है। उत्तराखंड रोजी -रोटी के अभाव में पुरुष जहां पलायन के लिए मजबूर हैं, वहीं परिवार, खेती-बाड़ी और समाज की जिम्मेदारियां पहाड़ की महिलाओं को निभानी पड़ती हैं। अपने कठिन जीवन संघर्ष के बल बूते जीवन यापन करने वाली उत्तराखण्ड की नारी में हिम्मत, साहस, कर्मठता, निर्भीकता और जुझारूपन की कभी कमी नहीं रही। कठिन जीवन के बाद महिलाएं पहाड़ को सजीव बनाए रखने में मुख्य भूमिका निभा रही हैं।
पहाड़ का कठिन जीवन यापन
उत्तराखंड की माहिलाओं की शैक्षिक स्थिति-
हालाँकि पुरे राज्य में साक्षरता दर 78.82 प्रतिशत राष्ट्रीय हिसाब से अधिक ऊंचा है, लेकिन कुल साक्षरता में महिलाओं का साक्षरता प्रतिशत 70% पुरुषों की तुलना में कम है। पहाड़ो की विषम परिस्थितियों के बावजूद प्रदेश के पहाड़ी जिलों में महिलाओं की साक्षरता दर 72.7 प्रतिशत है। जबकि मैदानी जिलों में महिला साक्षरता की दर 64.4 % ही है। महिलाओं की अशिक्षा का कारण, स्त्री शिक्षा को कम महत्व का समझना। गांव से विद्यालय दूर होने जैसे कारण रहे हैं। ऐसी स्थिति में अशिक्षित महिलाएं कृषि कार्य के अलावा कुछ भी नहीं कर पाती हैं। किन्तु अब इस स्थिति में बदलाव आ रहा है। उत्तराखंड के लोग अब रूढ़िवादी परम्पराओं से बहार आ रहें है। सरकार भी बेटियों की शिक्षा को बढ़ावा दे रही है।
उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका
उत्तराखंड देश के उन कुछ राज्यों में शामिल है, जहां महिलाएं उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हुए उसकी नींव को लगातार मजबूत कर रहीं हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में पुरुषों का रोजी रोटी के लिए पलायन के कारण महिलाओं पर काम बढ़ा है। इसी वजह से वे उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी हुई हैं। पहाड़ की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि और पशुपालन पर निर्भर है। महिलाएं सुबह से शाम तक घर के कामों के साथ ही खेती-बाड़ी, घास व लकड़ी की व्यवस्था,अनाज को कूटने-पीसने, दूध दुहने आदि कार्य करती हैं। विषम भौगोलिक परिस्थितियों में जीवन-यापन के कारण पहाड़ी क्षेत्र के निवासियों का जीवन अपेक्षाकृत अधिक संघर्षशील रहता है। यहां पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में परिश्रम एवं संघर्ष करने की शक्ति अधिक है।अधिकांश पुरुष पहाड़ों से बाहर विभिन्न व्यवसायों में कार्यरत हैं, इस कारण यहां की अर्थव्यवस्था महिलाओं पर केन्द्रित है।
उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण –
सामाजिक भूमिका-
उत्तराखण्ड की महिलाएं अर्थव्यवस्था की ‘रीढ़’ के साथ-साथ सामाजिक चेतना की भी ‘धुरी’ रही है। पहाड़ों की कठिनता व विराटता ने उसके अन्दर कर्मठता, साहस, दृढ़ता, निर्भीकता एवं कष्टसाध्य जीवन में भी अपने कर्त्तव्यों के प्रति सचेत रहने की शक्ति प्रदान की है। उत्तराखण्ड की महिलाएं राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय सामाजिक समस्याओं, समाज में प्रचलित कुरीतियों तथा अंधविश्वासों के उन्मूलन, वन-विनाश के दुष्परिणामों के प्रति सामाजिक चेतना, शैक्षिक उन्नयन, शराब निषेध आदि आन्दोलनों में रही प्रमुखता से सक्रीय हैं।
स्वतंत्रता आन्दोलन में उत्तराखंड की महिलाएं-
स्वतंत्रता आन्दोलन में उत्तराखंड की महिलाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। 25 मई 1930 को अल्मोड़ा, रामनगर तथा नैनीताल की महिलाओं ने जुलूस में भाग लिया। उत्तराखंड की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी बिशनी देवी 19-20 वर्ष की आयु से ही मंचों पर ओजस्वी स्वर में राष्ट्रप्रेम के गीत गाया करती थीं। बिशनी देवी को 1930 में गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल में रखा गया। 1935 में उन्होंने अल्मोड़ा के मोतिया धारा में राष्ट्रीय झंडा फहराया। 26 जनवरी 1940 को नन्दादेवी मंदिर के आंगन में उन्होंने फिर से झंडा फहराया था । 1941 में उन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली भी जलाई।
सामाजिक और पर्यावरणीय आंदोलनों में भूमिका-
शहीद श्रीदेव सुमन की पत्नी श्रीमती विनयलक्ष्मी सुमन ने अपने पति के सपनों को पूरा कर टिहरी राजशाही केअत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाने और पहाड़ों में पेयजल समस्या का समाधान करने तथा महिलाओं को सैन्य प्रशिक्षण दिलाने जैसे क्षेत्रों में सक्रिय रूप से कार्य किया था। स्थानीय सामाजिक गतिविधियों, नारी उत्पीड़न, कुरीतियों, शराब आंदोलन शिक्षा आदि क्षेत्रों में टिंचरी माई (दीपादेवी) ने महत्वपूर्ण कार्य किया था। टिंचरी माई के प्रयासों से सिगड्डी-भाबर में पानी की समस्या का समाधान हुआ व मोटाढाक में स्कूल की स्थापना हुई थी। 1955-56 में पौड़ी में अधिकारियों के सामने टिंचरी माई ने शराब की दुकान में आग लगाकर पहाड़ को नशामुक्त कराने का व्रत लिया।
1972-74 के समय में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में ‘चिपको आन्दोलन’ की नायिका बन कर गौरा देवी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘चिपको वूमन’ के नाम से ख्याति पाई थी। महिला मंगल दलों के माध्यम से और पर्यावरणविद् चण्डीप्रसाद भट्ट का सहयोग पाकर उन्होंने जनजागरण द्वारा स्थानीय लोगों को वनों के अधिकार दिलाने, वनों के संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने का ऐतिहासिक कार्य किया था।
लक्ष्मीआश्रम कौसानी की राधा बहन के नेतृत्व में कई महिलाओं ने अवैध खनन से जल, जमीन, जंगलों को बचाने हेतु चला खीराकोट आन्दोलन पर्यावरण रक्षा में मील का पत्थर सिद्ध हुआ । सामाजिक चेतना जागृत करने के क्षेत्र में टिहरी की सुश्री मंगलादेवी उपाध्याय का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने टिहरी रियासत के भारत गणराज्य में विलय के पश्चात् उस क्षेत्र की प्रगति हेतु महिला मण्डल दलों की स्थापना की। इसी इसी के साथ -साथ श्रीमती शकुन्तला देवी और श्रीमती चंद्रा पंवार के योगदान को भी नहीं भुला सकते। लक्ष्मी देवी टम्टा उत्तराखंड की पहली दलित महिला स्नातक थी। तथा वे उत्तराखंड की पहली दलित महिला सम्पादक भी थी। हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में लक्ष्मी देवी का योगदान महत्वपूर्ण है। उत्तराखंड की पहली अनुसूचित जाती की महिला स्नातक का सम्मान प्राप्त लक्ष्मी देवी टम्टा ने समता पत्रिका के माध्यम से अनुसूचित जाती के लोगो की आवाज को बुलंद स्वर प्रदान किया।
प्रारम्भ किया गया। रात्रि पाठशालाओं में महिलाओं की शिक्षा, हरिजन बस्तियों के बच्चों के लिए पाठशालाएं आदि में श्रीमती राजेश्वरी सजवाण का योगदान रहा। महात्मा गांधी की विदेशी शिष्या सरला बहन (मिस कैथरिन हैलीमन) ने पर्वतीय महिलाओं के कल्याण हेतु कौसानी में ‘लक्ष्मी आश्रम’ नामक संस्था की स्थापना की। टिहरी गढ़वाल में राजमाता कमलेन्दुमती शाह के प्रयासों से 1962 में नरेन्द्र महाविद्यालय की स्थापना की गई। समाज सेवा के लिए 1958 में पद्म भूषण से अलंकृत होकर उन्होंने उत्तराखण्ड को गौरवान्वित किया। देविका चौहान जौनसार की पहली महिला ग्रेजुएट थी, वह उत्तर प्रदेश की पहली महिला ब्लाक डेवलपमेंट ऑफिसर बनी।
उत्तराखंड राज्य आंदोलन में महिलाओं की भूमिका
उत्तराखण्ड आन्दोलन मुख्यतः महिलाओं की अगुवाई में लड़ा गया था। 90 के दशक में उत्तराखंड आंदोलन की शुरुआत में ही प्रत्येक नगर में महिलाओं के प्रदर्शन हुए थे। पौड़ी गढ़वाल में आंदोलन के पहले दौर में 7 अगस्त, 1994 के दिन अनशनकारियों की सभा में पुलिस प्रशासन द्वारा भयंकर लाठी चार्ज किया गया। इस लाठी-चार्ज में घायल होने वालों में अधिकांश महिलाएं ही थीं।1 सितंबर, 1994 को कुमाऊं के खटीमा में आयोजित भूतपूर्व सैनिकों की रैली में भी महिलाएं थीं। पुलिस द्वारा निहत्थी जनता पर गोलियां चलाई गई। इसमें कई महिलाएं भी घायल हो गईं।
2 सितंबर 1994 को मसूरी में खटीमा गोलीकाण्ड से आक्रोशित आन्दोलनकारियों के जुलूस पर पुलिस द्वारा चलाई गोलियों से श्रीमती बेलमती चौहान और श्रीमती हंसा धनाई शहीद हो गई। 2 अक्टूबर, 1994 को दिल्ली में आयोजित ‘उत्तराखण्ड रैली’ में जा रही महिलाओं को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर रात्रि ढाई बजे के करीब रोक दिया गया और महिलाओं के साथ घोर अभद्रता की गई। पुलिस की इस बर्बरता के विरोध में 3 अक्टूबर को देहरादून में महिलाओं ने प्रदर्शन किया। आन्दोलन की इस चिंगारी से सारा उत्तराखण्ड सुलग उठा। पुलिस प्रशासन के बढ़ते अत्याचार के साथ उत्तराखंड आंदोलन भी भयंकर रूप धारण करते गया। आन्दोलन यदि धीमा पड़ता तो, उत्तराखंड की महिलाएं आगे आकर नेतृत्व सँभाल लेती थीं। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में धरना देने, लाठियां खाने ,गोली खाने और गिरफ्तारियां देने में उत्तराखण्ड की महिलाएं कभी भी पीछे नहीं रहीं।
उत्तराखंड राज्य आंदोलन की महिला आंदोलनकारियों के नाम –
उत्तराखंड आंदोलन में कई महिला आंदोलनकारियों के नाम उभरकर आए जिनकी सामाजिक, राजनीतिक भागीदारी उत्तराखंड के लिए एक प्रेणा बन गई। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकरियो के नाम इस प्रकार हैं – स्वर्गीय कौशल्या डबराल श्रीमती सुशीला बलूनी, श्रीमती द्वारिका बिष्ट, श्रीमती कमलापंत, श्रीमती धनेश्वरी देवी, श्रीमती निर्मला बिष्ट, श्रीमती जगदंबा रतूड़ी, श्रीमती शकुंतला गुसाई, स्वर्गीय शकुंतला मैठानी, श्रीमती कलावती जोशी, श्रीमती यशोदा सवत, श्रीमती उषा नेगी, श्रीमती विमला कोठियाल, श्रीमती विमला नौटियाल, श्रीमती उर्मिला शर्मा, श्रीमती विजया धानी, श्रीमती उमा भट्ट, श्रीमती विजयलक्ष्मी गुसाई, श्रीमती धनेश्वरी तोमर, श्रीमती उषा नेगी श्रीमती शांता राणा आदि अनेक ऐसे महिला नाम राज्य आंदोलन केदौरान गर्व से उभरे जिनकी ख्याति उत्तराखंड राज्य आंदोलन में बेहद ही साहसी एवं सार्वजनिक भूमिका के चलते पैदा हुई।
प्रशाशनिक स्तर पर उत्तराखंड की महिलाएं –
प्रशाशनिक स्तर पर भी उत्तराखंड की महिलाओं की स्थिति पहले से मजबूत रही है। जनवरी 2023 उत्तराखंड में महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 30% क्षैतिज आरक्षण का कानून पास हो गया है। अब सरकारी नौकरी व् प्रशाशनिक स्तर पर आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
कला एवं खेलों में उत्तराखंड की महिलाएं –
पर्वतीय कठोर जीवन यापन की पृष्ठभूमि से आने के कारण उत्तराखंड की महिलाएं हमेशा खेल स्पर्धाओं में अव्वल रहीं है। ये अलग बात है कि उनको उनकी योग्यता के अनुसार मौके नहीं मिले। ऐसे कोई खेल नहीं, जहां उत्तराखंड की बेटियां अपनी प्रतिभा दिखाने में बेटों से पीछे रही हो। उत्तराखंड में ऐसी बेटियों की लंबी सूची है, जिन्होंने अपने दम पर सफलता हासिल की, और माता-पिता व प्रदेश का नाम रोशन किया। उत्तराखंड की बेटियां खेलों में पूरी दुनिया में अपनी प्रतिभा की चमक बिखेर रही है। उत्तराखंड की प्रमुख महिलाओं में डॉ० हर्षवन्ती बिष्ट, बछेन्द्रीपाल, हंसा मनराल, एकता बिष्ट, मानसी जोशी, स्नेहा राणा, मानसी नेगी आदि ने खेल जगत में उत्तराखंड का नाम रोशन किया है।
मानसी नेगी उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण की युवा मिसाल
इसके अतिरिक्त लोक कला ऐपण में मीनाक्षी खाती और अन्य महिलाएं अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। लोक गीतों के सर्वधन में पद्मश्री माधुरी बड़थ्वाल व जागर गायिका बसंती बिष्ट ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। लोक संगीत के लिए स्व. कबूतरी देवी, नईमा खान उप्रेती का योगदान भी अविस्मरीणय है। जौनसार बावर क्षेत्र की प्रसिद्ध गायिका रेशमा शाह उत्तराखंड के लोक संगीत को अतुलनीय योगदान दे रही हैं। अदाकारी व सुंदरता के क्षेत्र में उत्तराखंड की महिलाओं की लम्बी फेरहिस्त है। उत्तराखंड से एक से बढ़कर एक कलाकार अपनी अदाकारी का लोहा मनवा रही है।
राजनीती में उत्तराखंड की महिलाएं –
राजनीती में उत्तराखंड की महिलाओं की स्थिति कमजोर है। किन्तु इस क्षेत्र में भी धीरे -धीरे उत्तराखंड की महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा ह्रदयेश, रेखा आर्य, ऋतू खंडूरी आदि महिलाएं राजनीती के क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रही हैं।
उपसंहार –
उपरोक्त के अतिरिक्त उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण की कई कहानियां हैं, तीलू रौतेली , जिया रानी से लेकर गौरा देवी और बसंती बिष्ट ,कबूतरी देवी तक है। पहाड़ की अर्थव्यस्था का केंद्र कहलाने वाली, पहाड़ की वो मातृशक्ति जो अपनी जीवटता के चलते कठिन परिस्थितियों में भी पहाड़ जैसी दृढ़ता का प्रतीक है। आज उत्तराखंड में महिलाएं सफलता की नई उचाइयां छू रही हैं।
भगवान शिव के प्रसिद्ध धाम केदारनाथ के कपाट 25 अप्रैल 2023 को श्रद्धालुओं के लिए खुलने जा रहे हैं इस बार उम्मीद लगाई जा रही है कि रिकॉर्ड तोड़ श्रद्धालु यहां पहुंचेंगे और भगवान भोलेनाथ जी के दर्शन करेंगे। ऐसे में केदारनाथ पहुंचने वाले तीर्थ यात्रियों को किसी भी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े इसके लिए जिला प्रशासन समय रहते सतर्क हो गया है और सारी और सुविधाओं को दूर करने में जुट गया है। केदारनाथ पैदल मार्ग में कई फीट तक बर्फ जमीन होने के कारण उसे जेसीबी द्वारा हटाया जा रहा है और रास्ते बनाए जा रहे हैं। प्रशासन ने दर्जनों मजदूर यहां बर्फ को हटाने के कार्य में लगाए हैं तथा 5 जेसीबी ऑपरेटर भी वहां भेज दिए हैं। तथा यहां जगह जगह पर शौचालयों का निर्माण भी किया जा रहा है।
जिला प्रशासन की इस तत्परता और कार्य के प्रति सजगता की जितनी सराहना की जाए उतनी कम है। उम्मीद है कि इस बार होने वाली भगवान केदारनाथ की यात्रा में श्रद्धालुओं को किसी भी तरह की दिक्कतों का सामना नही करना पड़ेगा। साल 2022 में केदारनाथ में लगभग 15 लाख से अधिक श्रद्धालु पहुंचे थे जो कि अपने आप में एक कीर्तिमान स्थापित करता है। जैसा कि हमे पता है के केदारनाथ धाम के कपाट 25 अप्रैल को सुबह 6:20 पर भक्तों के लिए खोल दिए जाएंगे। 20 अप्रैल को भैरवनाथ जी की पूजा होगी। 21 अप्रैल को केदारनाथ जी की पंचमुखी डोली केदारनाथ को प्रस्थान करेगी। इस दिन डोली विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी विश्राम करेगी। 22 अप्रैल को डोली का रात्रि विश्राम फाटा और 23 अप्रैल को गौरीकुंड में होगा। 24 अप्रैल को डोली केदारनाथ धाम पहुंचेगी। 25 अप्रैल को सुबह विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए जाएंगे।
रंग एकादशी से उत्तराखडं के कुमाऊं में रंग भरी खड़ी होलियां शुरू हो गई हैं।एकदशी से होलिकोत्सव तक खड़ी होलियों की धूम रहती है। होली की शुरुवात प्रथम पूज्य सिद्धिविनायक गणेश जी की होली सिद्धि के दाता विघ्न विनाशन से होती है। आज अपने इस पोस्ट में भगवान गणेश जी को समर्पित कुछ प्रसिद्ध कुमाऊनी होली गीतों का संकलन प्रस्तुत कर रहें हैं।
Table of Contents
सिद्धि के दाता विघ्न विनाशन –
सिद्धि के दाता विघ्न विनाशन,
होली खेलें गिरजापति नन्दन।
गौरी को नन्दन, मूसा को वाहन ।
होली खेलें गिरजापति नन्दन।
लाओ भवानी अक्षत चन्दन,
पूजूँ मैं पहले जगपति नन्दन ।
होली खेलें गिरजापति नन्दन।
गज मोतियन से चौक पुराऊँ,
अर्घ दिलाऊँ पुष्प चढ़ाऊँ ।
होली खेलें गिरजापति नन्दन।
डमरू बजावै संभु-विभूषन,
नाचै गावैं भवानी के नन्दन ।
होली खेलें गिरजापति नन्दन।
तुम सिद्धि करो महाराज, होली के दिन में –
सिद्धि के दाता होली गीत के बाद भगवान गणेश को समर्पित एक और कुमाऊनी होली गीत है। जिसका नाम है तुम सिद्धि करो महाराज। यहाँ देखिये इस गीत के बोल ( lyrics )-
तुम सिद्धि करो महाराज, होली के दिन में।
गणपति गौर महेश मनावें, पर-पर मंगल काज,
होली के दिन में तुम..
राधा कृष्ण सकल बृजवासी, राखो सबकी लाज।
राम लछीमन भरत शत्रुघ्न, रघुकुल के सिरताज।
ब्रह्मा विष्णु महेश मनावें, घर-घर गावें फाग।
ब्रह्मा विष्णु सदा प्रतिपालक, खग दुःख को
इन्द्रादिक सुर कोटि तैंतीसा, राखो सबकी लाज।
बालक वृद्ध सब होली खेलें, खेलत सब बृज नारा।
पाचों पांडव होली खेलें, खेलत द्रोपति नार।
राम जी खेलें लछीमन खेलें, खेलत सीता नारि (माई) |
जगदम्बा नव दुर्गा देवी, राखो हमरि लाज।
अबीर गुलाल के थाल सजे, घर-घर उड़त गुलाल ।
गिरजा सुत गणपति विघ्न हरो –
विघ्न हरो तुम सगुन करो गिरजा सुत गणपति विघ्न हरो ।
लम्बोदर गज बदन विनायक मस्तक चन्दन तिलक पड़ो।
चार भुजा मूसे की सवारी, विघ्न अमंगल देखि डरो।
हाथ में अंकुश शंख विराजै, श्वेत बदन एक दन्त खड़ो |
सुर नर मुनि सब, ध्यान धरत हैं, नहि गणपति बिन काज करो।
सुख में दुःख में और विपत में, नाम सुमिर से होय भलो।।
विनती करत हैं अरज करत हैं, विपत हमारी दूर करो ।
अगर आप उत्तराखंड से प्राइवेट ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन करना चाहते हैं तो उसके लिए उत्तराखंड की अपनी एक यूनिवर्सिटी है जिसका नाम है उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी जिसमें अन्य प्राइवेट कॉलेजों से कम दामों में ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन करने का सपना पूरा किया जा सकता है, साथ ही यहां से व्यवसायिक कोर्स भी किया जा सकता है। लेकिन पिछले 2 महीनों से कुछ युवा अलग-अलग जगहों पर प्रदर्शन कर रहे हैं और आरोप लगा रहे हैं कि उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी ने उन्हें फर्जी डिग्री दी है, डिग्री के नाम पर उनके साथ छलावा किया गया उनके साथ धोखा किया गया।
फोटो सभार -the pahad .com
मालूम करने पर पता लगा कि साल 2011-12 में यहां एक व्यवसायिक कोर्स की शुरुआत की गई जिसके आधार पर उन युवाओं को सिडकुल में नौकरी दी गई और स्थायी नौकरी का आश्वासन भी दिया गया लेकिन 2019 आते-आते सिडकुल की कंपनियों ने इन युवाओं को यह कहकर नौकरी से निकाल दिया कि तुम्हारी डिग्री फर्जी है। युवा पिछले 2 साल से अपने साथ हुए इस अन्याय के लिए सरकार से गुहार लगा रहे हैं लेकिन सरकार इनकी सुन नहीं रही है। आपको बता दें कि ये युवा पिछले 2 महीने से हल्द्वानी बुद्ध पार्क पर घरना दे रहे हैं, अपने साथ हुए इस फ्राड के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। इन युवाओं से शासन-प्रशासन के लगभग सभी अफसरों को गुहार लगा दी लेकिन कोई इनका साथ देने के लिए राजी नहीं है।
महंगाई के इस दौर में पिछले 2 साल से बेरोजगार होकर दर-दर की ठोकरैं खाकर ये युवा अब हताश हो चुके हैं। इनका शाशन प्रशासन और जनता से निवेदन है इनका साथ दीजिए और गुनहगारों का पर्दाफाश करते तथा अपने अंजाम तक पहुंचाने में इनकी मदद कीजिए।