Wednesday, May 21, 2025
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चीर बंधन (Cheer Bandhan) | कुमाऊं की अनोखी होली परंपरा ,” कैले बांधी चीर लिरिक्स “

होली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। समस्त भारत में विभिन्न राज्यों के लोग अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार होली मनाते हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में होली का एक विशेष रूप देखने को मिलता है, जिसे कुमाउनी होली कहा जाता है। यह होली लगभग दो महीने तक चलती है। बसंत पंचमी से रंग एकादशी तक बैठक होली होती है, और फाल्गुन रंग एकादशी से रंगभरी खड़ी होली शुरू होती है। इस खड़ी होली की शुरुआत चीर बंधन (Cheer Bandhan) से होती है।

क्या है चीर बंधन (Cheer Bandhan)?

फाल्गुन रंग एकादशी के दिन कुमाऊं में होली की शुरुआत चीर बंधन (Cheer Bandhan) से होती है। इस परंपरा में एक लकड़ी के दंड (डंडे) पर अलग-अलग रंगों की करतन (कपड़े) बांधकर उसे एक ध्वजा (ध्वज) का रूप दिया जाता है। फिर विधि-विधान से उसकी पूजा की जाती है और उसे एक नवयुवक की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। इसे होलिका का प्रतीक माना जाता है, और इसके साथ ही रंगवाली खड़ी होली की शुरुआत हो जाती है।

चीर बंधन (Cheer Bandhan) की पारंपरिक मान्यताएं –

कुमाऊं में चीर को होलिका का प्रतीक माना जाता है। रंग एकादशी के दिन इसमें प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। कई क्षेत्रों में निशान बंधन किया जाता है, जहां राजाओं के प्रतीक लाल ध्वज को चीर का प्रतीक माना जाता है। कुमाऊं मंडल के विभिन्न क्षेत्रों में चीर बंधन (Cheer Bandhan) की विभिन्न मान्यताएँ प्रचलित हैं।

  •  कहीं इसे होलिका मानकर पूरे गाँव में घुमाया जाता है और होलिका दहन के दिन इसे जला दिया जाता है।
  • चीर के दहन के दौरान कुमाउनी अंतिम संस्कार की विधियाँ अपनाई जाती हैं।
  •  कई जगहों पर होलिका दहन के दिन चीर की करतनों को प्रसाद के रूप में ग्रामवासियों को बाँट दिया जाता है
  • मान्यता है कि चीर का कपड़ा घर में रखने से बुरी शक्तियों से रक्षा होती है।
  • कुछ जगहों पर इसे सार्वजनिक स्थानों या मंदिरों में बांधा जाता है।

चीर हरण की परंपरा –

कुमाउनी होली में चीर हरण की परंपरा भी देखने को मिलती है। इस अनोखी परंपरा में एक गाँव के लोग दूसरे गाँव की चीर से कपड़े का टुकड़ा चोरी करने का प्रयास करते हैं। यदि कोई व्यक्ति दूसरे गाँव की चीर से कपड़े का टुकड़ा चोरी करके अपने गाँव ले जाता है, तो जिस गाँव की चीर चोरी हुई, वहाँ अगले वर्ष होली नहीं मनाई जाती।

गाँव के लोग चीर की रक्षा करने के लिए दिन-रात पहरा देते हैं। चतुर्दशी के दिन सभी गाँवों की होलियों का मिलन शिव मंदिर में होता है, इसलिए वहाँ चीर की सुरक्षा बलिष्ठ युवकों को सौंपी जाती है। पहले चीर हरण के दौरान कभी-कभी झगड़े भी हो जाते थे, लेकिन अब लोग समझदारी से इस परंपरा का निर्वहन करते हैं और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में होली मनाते हैं। वर्तमान में चीर हरण की परंपरा बहुत कम देखने को मिलती है।

चीर बंधन (Cheer Bandhan) के दौरान गाई जाने वाली होली-

कुमाऊनी होली में चीर बंधन (Cheer Bandhan) के समय विशेष प्रकार की होली गाई जाती है। यह गीत पूरे क्षेत्र में प्रचलित है:

कैले बांधी चीर, हो रघुनन्दन राजा । -2
गणपति बांधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा ।
ब्रह्मा, विष्णु बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा । कैले बांधी !
शिव शंकर बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा । कैले बांधी !
रामचन्द्र बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा । कैले बांधी !
लछीमन बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी !
श्रीकृष्ण बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी !
बलीभद्र बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी !
नवदुर्गा बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा । कैले बांधी!
भोलानाथ बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा । कैले बांधी !
इष्टदेव बाँधनी चीर, हो रघुनन्दन राजा। कैले बांधी!
सबै नारी छिड़कत गुलाल, हो रघुनन्दन राजा । कैले बांधी ।।

चीर बंधन (Cheer Bandhan) केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि समाज में आपसी भाईचारे और सौहार्द्र को बढ़ाने का माध्यम है। यह परंपरा होलिका दहन के धार्मिक महत्व को दर्शाती है और गाँवों के लोगों को एक सूत्र में बाँधने का कार्य करती है।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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