होली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। समस्त भारत में अलग -अलग राज्यों के लोग होली अलग अलग तरीके से मनाते हैं। देश में कुछ राज्यों में या क्षेत्रों में विशिष्ट होली मनाई जाती है ,उनमे एक है कुमाउनी होली। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में विशेष होली मनाई जाती है। यह होली लगभग दो माह चलती है। बसंत पंचमी से रंग एकादशी तक बैठक होली होती है। और फाल्गुन रंग एकादशी से रंगभरी खड़ी होली शुरू हो जाती है। ( कुमाउनी होली के बारे में एक लेख पहले संकलित कर चुकें है। उसका लिंक इस लेख के अंत में दे रहे हैं।) खड़ी होली की शुरुवात एकादशी के दिन चीर बंधन से होती है। ( Holi in Uttarakhand )

क्या है चीर बंधन –
फाल्गुन रंग एकदशी के दिन कुमाऊं में होली की शुरुवात चीर बंधन से होती है। चीर बंधन में एक लकड़ी पर अलग अलग रंग की करतन बांध कर उसे एक ध्वजा का रूप देते हैं। उसके बाद विधि विधान से उसकी पूजा करके उसे एक नवयुवक की जिम्मेदारी पर सौप दिया जाता है। इसी के साथ रंगवाली खड़ी होलियों का शुभारम्भ हो जाता है। चीर को होलिका के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है।
चीर बंधन की पारम्परिक मान्यताएं –
कुमाऊं में चीर को होलिका का प्रतीक माना जाता है। रंग एकादशी के दिन इसमें प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। कई क्षेत्रों में निशाण बंधन किया जाता है। राजाओं के प्रतीक लाल ध्वज को चीर का प्रतीक मन जाता है। कुमाऊं मंडल में चीर के लिए अलग अलग मान्यताएं है। कहीं इसे होलिका मान कर पूरी होली में घुमाया जाता है। और होलिका दहन के दिन होलिका के रूप में इसका दहन किया जाता है। इसके दहन के दौरान पूरी कुमाउनी अंतिम संस्कार की विधि विधानों का पालन किया जाता है। कई जगह होलिका दहन के दिन इसके करतनो को प्रसाद के रूप में ग्राम वासियों को दे दिया जाता है। मान्यता है कि चीर के कपड़े को घर में रखने से बुरी शक्तियों से रक्षा होती है। कही सार्वजानिक स्थान पर बाँधी जाती है और कही मंदिर में चीर बाँधी जाती है। ( Holi in Uttarakhand )

चीर हरण की परंपरा भी होती है

कुमाउनी होली में चीर हरण की परम्परा भी होती है। एक गांव के लोग अगर दूसरे गावं की चीर में से कपडे का टुकड़ा चुराकर सफलता पूर्वक अपने गांव चला जाता है तो , जिस गावं की चीर चोरी हुई उसकी होली अगले साल से बंद हो जाती है। गावं में चीर को दूसरे गावं के लोगों की पहुंच से बचाने के लिए दिन – पहरा दिया जाता है। चतुर्दशी के दिन शिव मंदिर में क्षेत्र की सभी होलियों का मिलन होता है , इसलिए वहां चीर को बलिष्ठ युवक को सौपा जाता है। पहले कभी कभी चीर हरण के दौरान खून खराबा भी हो जाता था। हालाँकि अब सब समझदार है। हसी ख़ुशी सौहार्द से होली का निर्वहन करते हैं। इसलिए अबकी होलियों में चीरहरण की परंपरा नहीं मनाई जाती है। या बहुत काम होती है। ( Holi in Uttarakhand )
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