Friday, July 26, 2024
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जी रया जागी रया कुमाऊनी आशीष गीत लिरिक्स | jee raya jagi raya lyrics

जी रया जागी रया ( ji raya jagi raya ) –

उत्तराखंड के दोनों मंडल, कुमाऊँ मंडल और गढ़वाल मंडल में अनेकों प्रकार के लोक पर्व मनाए जाते हैं। दोनो क्षेत्रों में अपनी अपनी परम्पराओं के साथ बड़े हर्षोल्लासपूर्वक लोक पर्वों को मनाया जाता है। इसी प्रकार कुमाऊं मंडल में कई प्रमुख त्योहारों पर बुजुर्ग अपने से छोटो को, जी रया जागी रया कुमाउनी आशीष वचन देते हैं। इनको कुमाउनी आशीर्वचन भी कहा जाता है।

कुमाउनी आशीष वचन मुख्यतः चढ़ाने वाले त्यौहारों पर दिए जाते हैं। अर्थात जिन त्योहारों में किसी अंकुरित अनाज पर या सबूत अनाज की प्राण प्रतिष्ठा करके उसे अपने कुल देवताओं को चढ़ा कर, रिश्ते में अपने से छोटे लोगों को आशीष के रुप चढ़ाते हैं, उस समय ये कुमाउनी आशीर्वचन गाये जाते है। या आशीष वचन बोले जाते हैं।

ये पारम्परिक शुभकामनायें, हरेले के त्यौहार को हरेले के पत्ते चढ़ाते समय, दीपावली बग्वाल में चूड़े चढ़ाते समय और बसंत पंचमी उत्तराखंड , के त्योहार के दिन जौ चढ़ाते वक़्त गाये जाते हैं। ये मुख्यतः हरेला पर्व के गीत हैं।

जी रया जागी रया

जी रया जागी रया लिखित में ( ji raya jagi raya lyrics )-

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लाग हरयाव , लाग दशे ,
लाग बगवाव ।
जी रये जागी रये,
यो दिन यो बार भेंटने रये।
दुब जस फैल जाए,
बेरी जस फली जाईये।
हिमाल में ह्युं छन तक,
गंगा ज्यूँ में पाणी छन तक,
यो दिन और यो मास
भेंटने रये।।
अगाश जस उच्च है जे ,
धरती जस चकोव है जे।
स्याव जसि बुद्धि है जो,
स्यू जस तराण है जो।
जी राये जागी राये।
यो दिन यो बार भेंटने राये।।

जी रया जागी रया
jee raya jagi raya lyrics in hindi

जी रया जागी रया का मतलब (ji raya jagi raya meaning )

जी रया जागी रया का अर्थ होता है ,हरेले के त्योहार की शुभकामनाएं, दशहरे की शुभकामनाएं। जीते रहो, सजग रहो। तुम्हारी लंबी उम्र हो। इस शुभ दिन पर हर वर्ष मुलाकात करते रहना। जैसी दूर्वा अपनी मजबूत पकड़ के साथ धरती में फैलती जाती है, वैसे आप भी सम्रद्ध होना। बेरी के पौधों की तरह आप भी विपरीत परिस्थितियों में भी फलित,और फुलित रहना। जब तक हिमालय में बर्फ रहेगी,और जब तक गंगा जी मे पानी रहेगा, अर्थात अन्तन वर्षो तक तुमसे मुलाकात होती रहे ,ऐसी कामना है ।

आप आसमान के बराबर ऊँचे हो जाओ , धरती के जैसे चौड़े हो जाओ। आपका बुद्धि चातुर्य सियार जैसा तीव्र हो। आपके शरीर मे चीते की जैसी ,ताकत और फुर्ती हो। आप सदा जीते रहे, खुश रहें और हमारी मुलाकात सदा यू ही होती रहें।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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