Tuesday, April 16, 2024
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उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण की स्थिति अन्य राज्यों से बेहतर है

उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण-

उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण का आंकलन किया जाय तो उत्तराखंड की स्थिति भारत के अन्य राज्यों से बेहतर है। पौराणिक इतिहास से सामाजिक ,जनांदोलन , लोक संगीत आदि सभी क्षेत्रों उत्तराखंड की महिलाओं का अग्रणीय योगदान है। उत्तराखंड की महिलाओं का गौरवशाली इतिहास रहा है। उत्तराखंड के इतिहास में तीलू रौतेली ,जिया रानी , रानी कर्णवती जैसी गौरवशाली नारियो ने जन्म लिया है।और मध्यकाल और वर्तमान में भी उत्तराखंड की गौरवशाली नारियां समाज में उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण नई मिसाल पेश करती आ रहीं हैं।

उत्तराखण्ड में महिलाओं पहाड़ की अर्थव्यवस्था केंद्र माना जाता है। उत्तराखंड रोजी -रोटी  के अभाव में पुरुष जहां पलायन के लिए  मजबूर हैं, वहीं परिवार, खेती-बाड़ी और समाज की जिम्मेदारियां पहाड़ की  महिलाओं को निभानी पड़ती हैं। अपने कठिन जीवन संघर्ष के बल बूते जीवन यापन करने वाली उत्तराखण्ड की नारी में हिम्मत, साहस, कर्मठता, निर्भीकता और जुझारूपन की कभी कमी नहीं रही। कठिन जीवन के बाद महिलाएं पहाड़ को सजीव बनाए रखने में मुख्य भूमिका निभा रही हैं।

उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण
पहाड़ का कठिन जीवन यापन

उत्तराखंड की माहिलाओं की शैक्षिक स्थिति-

हालाँकि पुरे राज्य में साक्षरता दर 78.82 प्रतिशत राष्ट्रीय हिसाब से अधिक ऊंचा है, लेकिन कुल साक्षरता में महिलाओं का साक्षरता प्रतिशत 70% पुरुषों की तुलना में  कम है। पहाड़ो की विषम परिस्थितियों के बावजूद प्रदेश के पहाड़ी जिलों में महिलाओं की साक्षरता दर 72.7 प्रतिशत है। जबकि मैदानी जिलों में महिला साक्षरता की दर 64.4 % ही है। महिलाओं की अशिक्षा का कारण, स्त्री शिक्षा को कम महत्व का समझना। गांव से विद्यालय दूर होने जैसे कारण रहे हैं। ऐसी स्थिति में अशिक्षित महिलाएं कृषि कार्य के अलावा कुछ भी नहीं कर पाती हैं। किन्तु अब इस स्थिति में बदलाव आ रहा है। उत्तराखंड के लोग अब रूढ़िवादी परम्पराओं से बहार आ रहें है। सरकार भी बेटियों की शिक्षा को बढ़ावा दे रही है।

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका

उत्तराखंड देश के उन कुछ राज्यों में शामिल है, जहां महिलाएं उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हुए उसकी नींव को लगातार मजबूत कर रहीं हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में पुरुषों का रोजी रोटी के लिए पलायन के कारण महिलाओं पर काम बढ़ा है। इसी वजह से वे उत्तराखंड  की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी हुई हैं। पहाड़ की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि और पशुपालन पर निर्भर है। महिलाएं सुबह से शाम तक घर के कामों के साथ ही खेती-बाड़ी, घास व लकड़ी की व्यवस्था,अनाज को कूटने-पीसने, दूध दुहने आदि कार्य करती हैं। विषम भौगोलिक परिस्थितियों में जीवन-यापन के कारण पहाड़ी क्षेत्र के निवासियों का जीवन अपेक्षाकृत अधिक संघर्षशील रहता है। यहां पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में परिश्रम एवं संघर्ष करने की शक्ति अधिक है।अधिकांश पुरुष पहाड़ों से बाहर विभिन्न व्यवसायों में कार्यरत हैं, इस कारण यहां की अर्थव्यवस्था महिलाओं पर केन्द्रित है।

उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण –

सामाजिक भूमिका-

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उत्तराखण्ड की महिलाएं अर्थव्यवस्था की ‘रीढ़’ के साथ-साथ सामाजिक चेतना की भी ‘धुरी’ रही है। पहाड़ों की कठिनता व विराटता ने उसके अन्दर कर्मठता, साहस, दृढ़ता, निर्भीकता एवं कष्टसाध्य जीवन में भी अपने कर्त्तव्यों के प्रति सचेत रहने की शक्ति प्रदान की है। उत्तराखण्ड की महिलाएं राष्ट्रीय स्तर से लेकर स्थानीय सामाजिक समस्याओं, समाज में प्रचलित कुरीतियों तथा अंधविश्वासों के उन्मूलन, वन-विनाश के दुष्परिणामों के प्रति सामाजिक चेतना, शैक्षिक उन्नयन, शराब निषेध आदि आन्दोलनों में रही प्रमुखता से सक्रीय हैं।

स्वतंत्रता आन्दोलन में उत्तराखंड की महिलाएं-

स्वतंत्रता आन्दोलन में उत्तराखंड की महिलाओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। 25 मई 1930 को अल्मोड़ा, रामनगर तथा नैनीताल की महिलाओं ने जुलूस में भाग लिया। उत्तराखंड की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी बिशनी देवी 19-20 वर्ष की आयु से ही मंचों पर ओजस्वी स्वर में राष्ट्रप्रेम के गीत गाया करती थीं। बिशनी देवी को 1930 में गिरफ्तार कर अल्मोड़ा जेल में रखा गया। 1935 में उन्होंने अल्मोड़ा के मोतिया धारा में राष्ट्रीय झंडा फहराया। 26 जनवरी 1940 को नन्दादेवी मंदिर के आंगन में उन्होंने फिर से झंडा फहराया था । 1941 में उन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली भी जलाई।

सामाजिक और पर्यावरणीय आंदोलनों में भूमिका-

शहीद श्रीदेव सुमन की पत्नी श्रीमती विनयलक्ष्मी सुमन ने अपने पति के सपनों को पूरा कर टिहरी राजशाही केअत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाने और पहाड़ों में पेयजल समस्या का समाधान करने तथा महिलाओं को सैन्य प्रशिक्षण दिलाने जैसे क्षेत्रों में सक्रिय रूप से कार्य किया था। स्थानीय सामाजिक गतिविधियों, नारी उत्पीड़न, कुरीतियों, शराब आंदोलन  शिक्षा आदि क्षेत्रों में टिंचरी माई (दीपादेवी) ने महत्वपूर्ण कार्य किया था। टिंचरी माई के  प्रयासों से सिगड्डी-भाबर में पानी की समस्या का समाधान हुआ व मोटाढाक में स्कूल की स्थापना हुई थी। 1955-56 में पौड़ी में अधिकारियों के सामने टिंचरी माई ने शराब की दुकान में आग लगाकर पहाड़ को नशामुक्त कराने का व्रत लिया।

1972-74 के समय में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में ‘चिपको आन्दोलन’ की नायिका बन कर गौरा देवी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘चिपको वूमन’ के नाम से ख्याति पाई थी। महिला मंगल दलों के माध्यम से और पर्यावरणविद् चण्डीप्रसाद भट्ट का सहयोग पाकर उन्होंने जनजागरण द्वारा स्थानीय लोगों को वनों के अधिकार दिलाने, वनों के संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा करने का ऐतिहासिक कार्य किया था।

लक्ष्मीआश्रम कौसानी की राधा बहन के नेतृत्व में कई महिलाओं ने अवैध खनन से जल, जमीन, जंगलों को बचाने हेतु चला खीराकोट आन्दोलन पर्यावरण रक्षा में मील का पत्थर सिद्ध हुआ । सामाजिक चेतना जागृत करने के क्षेत्र में टिहरी की सुश्री मंगलादेवी उपाध्याय का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने टिहरी रियासत के भारत गणराज्य में विलय के पश्चात् उस क्षेत्र की प्रगति हेतु महिला मण्डल दलों की स्थापना की। इसी इसी के साथ -साथ  श्रीमती शकुन्तला देवी और श्रीमती चंद्रा पंवार के योगदान को भी नहीं भुला सकते। लक्ष्मी देवी टम्टा उत्तराखंड की पहली दलित महिला स्नातक थी। तथा वे उत्तराखंड की पहली दलित महिला सम्पादक भी थी। हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में लक्ष्मी देवी का योगदान महत्वपूर्ण है। उत्तराखंड की पहली अनुसूचित जाती की महिला स्नातक का सम्मान प्राप्त लक्ष्मी देवी टम्टा ने समता पत्रिका के माध्यम से अनुसूचित जाती के लोगो की आवाज को बुलंद स्वर प्रदान किया।

प्रारम्भ किया गया। रात्रि पाठशालाओं में महिलाओं की शिक्षा, हरिजन बस्तियों के बच्चों के लिए पाठशालाएं आदि में श्रीमती राजेश्वरी सजवाण का योगदान रहा। महात्मा गांधी की विदेशी शिष्या सरला बहन (मिस कैथरिन हैलीमन) ने पर्वतीय महिलाओं के कल्याण हेतु कौसानी में ‘लक्ष्मी आश्रम’ नामक संस्था की स्थापना की। टिहरी गढ़वाल में राजमाता कमलेन्दुमती शाह के प्रयासों से 1962 में नरेन्द्र महाविद्यालय की स्थापना की गई। समाज सेवा के लिए 1958 में पद्म भूषण से अलंकृत होकर उन्होंने उत्तराखण्ड को गौरवान्वित किया। देविका चौहान जौनसार की पहली महिला ग्रेजुएट थी, वह उत्तर प्रदेश की पहली महिला ब्लाक डेवलपमेंट ऑफिसर बनी।

उत्तराखंड राज्य आंदोलन में महिलाओं की भूमिका

उत्तराखण्ड आन्दोलन मुख्यतः महिलाओं की अगुवाई में लड़ा गया था। 90 के दशक में उत्तराखंड आंदोलन की शुरुआत में ही प्रत्येक नगर में महिलाओं के प्रदर्शन हुए थे। पौड़ी गढ़वाल में आंदोलन के पहले दौर में 7 अगस्त, 1994 के दिन अनशनकारियों की सभा में पुलिस प्रशासन द्वारा भयंकर लाठी चार्ज किया गया। इस लाठी-चार्ज में घायल होने वालों में अधिकांश महिलाएं ही थीं।1 सितंबर, 1994 को कुमाऊं के खटीमा में आयोजित भूतपूर्व सैनिकों की रैली में भी महिलाएं थीं। पुलिस द्वारा निहत्थी जनता पर गोलियां चलाई गई। इसमें कई महिलाएं भी घायल हो गईं।

2 सितंबर 1994 को मसूरी में खटीमा गोलीकाण्ड से आक्रोशित आन्दोलनकारियों के जुलूस पर पुलिस द्वारा चलाई गोलियों से श्रीमती बेलमती चौहान और श्रीमती हंसा धनाई शहीद हो गई। 2 अक्टूबर, 1994 को  दिल्ली में आयोजित ‘उत्तराखण्ड रैली’ में जा रही महिलाओं को मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर रात्रि ढाई बजे के करीब रोक दिया गया और महिलाओं के साथ घोर अभद्रता की गई। पुलिस की इस बर्बरता के विरोध में 3 अक्टूबर को देहरादून में महिलाओं ने प्रदर्शन किया। आन्दोलन की इस चिंगारी से सारा उत्तराखण्ड सुलग उठा। पुलिस प्रशासन के बढ़ते अत्याचार के साथ उत्तराखंड आंदोलन भी भयंकर रूप धारण करते गया। आन्दोलन यदि धीमा पड़ता तो, उत्तराखंड की महिलाएं आगे आकर नेतृत्व सँभाल लेती थीं। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में धरना देने, लाठियां खाने ,गोली खाने  और गिरफ्तारियां देने में उत्तराखण्ड की महिलाएं कभी भी पीछे नहीं रहीं।

उत्तराखंड राज्य आंदोलन की महिला आंदोलनकारियों के नाम –

उत्तराखंड आंदोलन में  कई महिला आंदोलनकारियों के नाम उभरकर आए जिनकी सामाजिक, राजनीतिक भागीदारी उत्तराखंड के लिए एक प्रेणा बन गई। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकरियो के नाम इस प्रकार हैं – स्वर्गीय कौशल्या डबराल श्रीमती सुशीला बलूनी, श्रीमती द्वारिका बिष्ट, श्रीमती कमलापंत, श्रीमती धनेश्वरी देवी, श्रीमती निर्मला बिष्ट, श्रीमती जगदंबा रतूड़ी, श्रीमती शकुंतला गुसाई, स्वर्गीय शकुंतला मैठानी, श्रीमती कलावती जोशी, श्रीमती यशोदा सवत, श्रीमती उषा नेगी, श्रीमती विमला कोठियाल, श्रीमती विमला नौटियाल, श्रीमती उर्मिला शर्मा, श्रीमती विजया धानी, श्रीमती उमा भट्ट, श्रीमती विजयलक्ष्मी गुसाई, श्रीमती धनेश्वरी तोमर, श्रीमती उषा नेगी श्रीमती शांता राणा आदि अनेक ऐसे महिला नाम  राज्य आंदोलन केदौरान  गर्व से उभरे जिनकी ख्याति उत्तराखंड राज्य आंदोलन में बेहद ही साहसी एवं सार्वजनिक भूमिका के चलते पैदा हुई।

प्रशाशनिक स्तर पर उत्तराखंड की महिलाएं –

प्रशाशनिक स्तर पर भी उत्तराखंड की महिलाओं की स्थिति पहले से मजबूत रही है। जनवरी 2023 उत्तराखंड में महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 30% क्षैतिज आरक्षण का कानून पास हो गया है। अब सरकारी नौकरी व् प्रशाशनिक स्तर पर आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।

कला एवं खेलों में उत्तराखंड की महिलाएं –

पर्वतीय कठोर जीवन यापन की पृष्ठभूमि से आने के कारण उत्तराखंड की महिलाएं हमेशा खेल स्पर्धाओं में अव्वल रहीं है। ये अलग बात है कि उनको उनकी योग्यता के अनुसार मौके नहीं मिले। ऐसे कोई खेल नहीं, जहां उत्तराखंड की बेटियां अपनी प्रतिभा दिखाने में बेटों से पीछे रही हो।  उत्तराखंड में ऐसी बेटियों की लंबी सूची है, जिन्होंने अपने दम पर सफलता हासिल की, और माता-पिता व प्रदेश का नाम रोशन किया। उत्तराखंड की बेटियां खेलों में पूरी दुनिया में अपनी प्रतिभा की चमक बिखेर रही है।  उत्तराखंड की प्रमुख महिलाओं में डॉ० हर्षवन्ती बिष्ट, बछेन्द्रीपाल, हंसा मनराल, एकता बिष्ट, मानसी जोशी, स्नेहा राणा, मानसी नेगी आदि ने खेल जगत में उत्तराखंड का नाम रोशन किया है।

उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण
मानसी नेगी उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण की युवा मिसाल

इसके अतिरिक्त लोक कला ऐपण में मीनाक्षी खाती और अन्य महिलाएं अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। लोक गीतों के सर्वधन में पद्मश्री माधुरी बड़थ्वाल व जागर गायिका बसंती बिष्ट ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। लोक संगीत के लिए स्व. कबूतरी देवी, नईमा खान उप्रेती का योगदान भी अविस्मरीणय है। जौनसार बावर क्षेत्र की प्रसिद्ध गायिका रेशमा शाह उत्तराखंड के लोक संगीत को अतुलनीय योगदान दे रही हैं। अदाकारी व सुंदरता के क्षेत्र में उत्तराखंड की महिलाओं की लम्बी फेरहिस्त है। उत्तराखंड से एक से बढ़कर एक कलाकार अपनी अदाकारी का लोहा मनवा रही है।

राजनीती में उत्तराखंड की महिलाएं –

राजनीती में उत्तराखंड की महिलाओं की स्थिति कमजोर है। किन्तु इस क्षेत्र में भी धीरे -धीरे उत्तराखंड की महिलाएं आगे बढ़ रही हैं। स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा ह्रदयेश, रेखा आर्य, ऋतू खंडूरी आदि महिलाएं राजनीती के क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रही हैं।

उपसंहार –

उपरोक्त के अतिरिक्त उत्तराखंड में महिला सशक्तिकरण की कई कहानियां हैं, तीलू रौतेली , जिया रानी से लेकर गौरा देवी  और बसंती बिष्ट ,कबूतरी देवी तक है। पहाड़ की अर्थव्यस्था का केंद्र कहलाने वाली, पहाड़ की वो मातृशक्ति जो अपनी जीवटता के चलते कठिन परिस्थितियों में भी पहाड़ जैसी दृढ़ता का प्रतीक है। आज उत्तराखंड में महिलाएं सफलता की नई उचाइयां छू रही हैं।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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