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ऐपण कला || उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोक कला, ऐपण पर निबंध || ऐपण डिजाइन || Aipan Art || An essay in folk art of Uttarakhand aipan

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ऐपण कला क्या है ?

ऐपण कला का अर्थ होता है, लीपना या अंगुलियों से आकृति बनाना । ऐपण  एक प्रकार की अल्पना या आलेखन या रंगोली होती है , जिसे उत्तराखंड  कुमाऊँ क्षेत्र के निवासी अपने शुभकार्यो मे इसका चित्रांकन करते हैं।

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में किसी त्यौहार या शुभकार्यो के शुभावसर पर भूमि और दीवार पर, चावल के विस्वार ( पिसे चावलों के घोल ) गेरू ( प्राकृतिक लाल मिट्टी या लाल खड़िया ) हल्दी ,जौ, पिठ्या ( रोली ) से बनाई गई आकृति , जिसे देख मन मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और सकारात्मक शक्तियों के आवाहन का आभास होता है, वह उत्तराखंड की पारम्परिक और पौराणिक लोक कला ऐपण है। ऐपण कला का इतिहास अनन्त है। ऐसा माना जाता है, कि कुमाऊं की प्रसिद्ध लोककला ऐपण ,पौराणिक काल से अनंत रूप में चली आ रही है। इस कला का तंत्र मंत्र व आद्यात्म  से जुड़ाव है। (aipan art essay )

उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में शुभवसरों पर तथा त्योहारों व संस्कारो पर  अपने घरों के मुख्य द्वार, और मंदिर को सजाने की परंपरा पौराणिक रही है। इन जगहों को सजाने के लिए , भीगे चावल पीस कर,जिन्हें विस्वार कहते हैं, और गेरू, लाल मिट्टी का प्रयोग किया जाता रहा है। वर्तमान में गेरू और विस्वार कि जगह, लाल और सफेद आयल पेंट ने ले ली है, मगर ऐपण कला वही है, और इसका महत्व कभी कम नही हुवा है। उत्तराखंड की अमूल्य लोक कला ऐपण को , घर के मुख्यद्वार, देहली,और मंदिर को सजाने में किया जाता है,इसके अलावा पूजा विधि के अनुसार, देवी देवताओं के आसन, पीठ आदि अंकित किये जाते हैं।

ऐपण कला पारम्परिक कला है, इसे सीखने के लिए किसी स्कूल या संस्थान में जाने की जरूरत नही पड़ती। बल्कि इसे एक पीढ़ी अपनी आने वाली पीढ़ी को एक धरोहर के रूप में सिखाती है। एक माँ अपने बच्चों को मदद कराने के बहाने, धीरे धीरे ये कला सिखाती है, जब वो इस कला में पारंगत हो जाते हैं, तो पूरा कार्यभार उनके ऊपर छोड़ देती है। इस प्रकार पीढ़ी दर पीढ़ी यह कला चलती आ रही है। (aipan art essay in hindi )

ऐपण कला के  प्रकार || ऐपण के नमूने

ऐपण कला उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल की विशिष्ट पहचान है। ऐपण कला उत्तराखंड की पुरानी और पौराणिक कला है। ऐपण कला के माध्यम से देवी देवताओं का आवाहन किया जाता है ,या यूं कह सकते हैं, कि ऐपण में रेखांकित किये गए चित्र, सकारात्मक शक्तियों के आवाहन के लिए बनाए जाते हैं। उत्तराखंड के कुमाउनी संस्कृति में ,अलग अलग मगलकार्यो, और देवपूजन हेतु, अलग अलग प्रकार के ऐपण बनाये जाते हैं। जिससे यह सिद्ध होता है,कि ऐपण एक साधारण कला, या रंगोली न होकर एक आध्यात्मिक कार्यो में योगदान देने वाली महत्वपूर्ण कला है। जिसके प्रमुख रूप निम्न हैं –

वसोधरा ऐपण –

यह ऐपण मुख्यतः घर की सीढ़ियों, देहली, मंदिर की दीवारों तथा तुलसी के पौधे के गमले या मंदिर,  ओखली और हवन कुंडों पर उकेरे जाते हैं। देहली पर वसोधरा ऐपण आदर,और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है।

ऐपण कला
वसोधरा ऐपण , फ़ोटो – मिनाकृति ऐपण प्रोजेक्ट से सभार ली गई है।

भद्र ऐपण-

भद्र ऐपण मुख्यतः दरवाजो की देलि पर तथा मंदिरों की बेदी पर अंकित किये जाते हैं। मंदिरों की बेदी पर बारह बूद भद्र ऐपण काफी लोकप्रिय है।

मीनाक्षी ऐपण
बार बूंद ऐपण कला, फ़ोटो – मिनाकृति ऐपण प्रोजेक्ट सभार

इन ऐपणों के अतिरिक्त , पूजा अनुष्ठान और त्योहारों के अनुसार निम्न प्रकार के ऐपणों का प्रयोग किया जाता है –

  • शिव पीठ ऐपण
  • लक्ष्मी पीठ ऐपण
  • नाता ऐपण
  • लक्ष्मी आसन ऐपण
  • लक्ष्मी नारायण ऐपण
  • चिङिया चौकी
  • नवदुर्गा चौकी
  • आसन चौकी 
  • चामुंडा हस्त चौकी
  • जनेऊ चौकी
  • शिवचरण पीठ ऐपण
  • सूर्य दर्शन चौकी
  • स्यो ऐपण
  • आचार्य चौकी 
  • विवाह चौकी
  • धूलिअर्घ चौकी
  • लक्ष्मी पग

उपरोक्त ऐपणों को पूजा पाठ, जनेऊ संस्कार, नामकरण संस्कार, एवं विवाह संस्कारो में प्रयोग किया जाता है। बिना लक्ष्मी पगचिन्हों के, ऐपण अधूरे माने जाते हैं। ऐपण कला कपड़ो पर भी की जाती है। यह मुख्यतः उत्तराखंड कुमाऊँ की पहचान पिछोड़ा पर की जाती है। पहले हाथ से  की जाती थी, अब printetd pichhoda मिलने लगे हैं, तो ऐपण का यह रूप कम हो गया है।

उपसंहार –

चुकी ऐपण हमारी परम्परा में मंगल कार्यों से जुड़ा हुआ अभिन्न अंग है। जब तक हम अपने त्यौहार ,मंगल कार्य अपनी रीति रिवाज व परम्परा के अनुसार मनाएंगे ,तो हम अपनी लोककला ऐपण से भी जुड़े रहेंगे। वर्तमान में हर वस्तु रेडीमेड की चाह में ऐपण का भी व्यवसायीकरण हो रहा है। ऐपण अब धीरे धीरे स्टिकर के रूप में मिलने लगे हैं। या लोग उन्हें आयल पेंट से बनाने लगे हैं। इन नए अल्पनाओं में समय की बचत, आकर्षक रंग हैं। लेकिन वो आध्यत्मिक शक्ति नही है, जो भूतत्व चावल के विस्वार और लाल मिट्टी में होती है। आधुनिक व्यवसायी अल्पनाओं में ,वो कार्यसफल करने की शक्ति नहीं है। वो उत्त्साह, वो मनोयोग, वो धीरज नही है, जो पारम्परिक ऐपणों में होता है। अतएव हमे यदि अपनी पारम्परिक कला का आधुनिकीकरण उसके मूल तत्व को संरक्षित करके करें तो यह सर्वथा उचित होगा

 

विशेष –

उत्तराखंड की लोक कला ऐपण के संरक्षण और प्रचार प्रसार में उत्तराखंड की ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती,  (The aipan girls of Uttarakhand ) महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। उपरोक्त चित्र व संशिप्त संदर्भ उनकी ऐपण कार्यशाला पेज मिनाकृति ऐपण प्रोजेक्ट से लिये गए हैं।  ऐपण की गहराई तथा विस्तार से समझने के लिए ,मिनाकृति ऐपण पेज विजिट करने के लिए यहां क्लिक करें । 

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