Friday, March 29, 2024
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नकुवा बुबु बेतालघाट नैनीताल उत्तराखंड || नकुवा बुबु की कहानी || बेताल बुबु || कुमाऊँ की लोक कथाएं || Betalghat Nainital , Uttarakhand || Nakuwa bubu ki kahani || Kumaon ki lok kathayen || folk tales of Uttarakhand

प्रस्तुत लेख में हम कोशिश करेंगे कि बेतालघाट के पूजनीय लोकदेवता एवं बेतालघाट के क्षेत्रपाल नकुवा बुबु जी की रोचक कहानी एवं जानकारी का सम्पूर्ण वर्णन कर सकें। यदि कोई सुझाव हों त्रुटि हो तो, हमारे फसेबूक पेज देवभूमी दर्शन पर msg या कॉमेंट में दे सकते हैं।

उत्तराखंड के नैनीताल जिले में बसी एक सुंदर घाटी बेतालघाट । यह घाटी प्राकृतिक सुंदरता के बीच जितना सुंदर लगती है, उतनी ही रहस्यमयी भी है। सबसे ज्यादा रहस्यमयी है, इसका नाम बेतालघाट ।  इस स्थान का नाम बेतालघाट यहां के रक्षक यहां के लोकदेवता बेताल के नाम से पड़ा है। जैसा कि हमने बिक्रम बेताल की कहानियों में देखा और पढ़ा है। वही सब यहाँ वास्तविक में है।

लगभग 25 -30 साल पहले की बात है। बेतालघाट में निकली बेताल के बेटे की बारात या बेताल की बारात सारे देश में चर्चा का विषय रही। (Betalghat Nainital , Uttarakhand )

बेतालघाट के महाप्रतापी क्षेत्रपाल बेताल या नकुवा बुबु को महादेव का सबसे बड़ा गण माना जाता है। बेताल महाराज महादेव के सभी गणों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। भूत पिचास, अलाइ बलाई ,डाकिनी शाकिनी , आदि सभी गणों को नियंत्रित करने का कार्य भी बेताल देवता करते हैं। नकुवा देवता मुख्यतः उग्र स्वभाव के होने के कारण भी , अपने भक्तों से स्नेह रखते हैं। तथा उनकी रक्षा करते हैं।

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नकुवा बुबु समस्त बेताल घाटी की सुरक्षा एवं संरक्षण करने वाले क्षेत्रपाल हैं। ये महादेव की तरह आपने भक्तों से स्नेह और उनकी रक्षा करते हैं। और गलती होने पर दंडित भी करते हैं। बेतालघाट के क्षेत्रपाल होने के नाते उनके कुछ नियम व मर्यादाएं हैं,जिन्हें मानना जरूरी है। नियम भंग होने पर दंडित करने में भी देर नही करते और जरूरत के वक्त मदद के लिए तैयार रहते हैं। और क्षमा मांगने पर क्षमा भी कर देते हैं। story of , Betalghat Nainital Uttarakhand )

बेताल देवता, ठीक उसी तरह व्यवहार करते हैं जैसा एक दादा अपने पोते से करता है। इसीलिए स्थानीय क्षेत्रवासी इन्हें नकुवा बुबु या बेताल बुबु कहकर बुलाते हैं। दादा को कुमाउनी में बुबु कहते हैं।

 

नकुवा बुबु का मंदिर बेतालघाट कौशिकी गंगा , (जिसे अब कोशी नदी कहते हैं) के तट पर स्थित है। नैनीताल से लगभग 55 किमी दूर बेतालघाट नकुवा बुबु का छोटा सा मंदिर स्थित है। साथ मे स्थित है भगवान भोलेनाथ का मंदिर। महादेव ने बेताल को अनेक चमत्कारी शक्तियां प्रदान की हैं, जिनका प्रयोग,महादेव कि प्रेणा से बेताल बुबु अपनी जनता की रक्षा और उनके दुख दूर करने तथा महादेव के अन्य गणों को नियंत्रित करने में करते हैं। इनके नेक कार्यो से लोग इन्हें नेकु या नेकुवा देवता कहने लगे,धीरे धीरे ये नकुवा देवता नाम से विख्यात हो गए।

बेताल या नकुवा देवता सबसे पहले बेतालघाट कब आये ? इस बारे में अनेक पौराणिक कथाएं और लोक कथाएं प्रचलित हैं। मगर कहते हैं कि इन सब मे सबसे स्पष्ट वर्णन ,शिव महापुराण के अंतर्गत रुद्र संहिता में भगवान वेदव्यास ने किया है । उनके अनुसार माता पार्वती के श्राप के कारण ,महादेव के परमभक्त और समर्पित द्वारपाल भैरव को ,बेताल बनकर पृथ्वी लोक आना पड़ा। पृथ्वी में भैरव ने भारत भूमि के बेतालघाट क्षेत्र में कौशिकी गंगा नदी के तट को अपना प्रथम निवास स्थल बनाया ,ततपश्चात महादेव की प्रेणा से भारत भूमि पर 108 स्थानों पर अपने देवत्व को स्थापित किया। ये सभी स्थान बेताल घाट या स्थानीय नामों से कालांतर में विख्यात हुए। जिन क्षेत्रों के नामो के पीछे घाट शब्द जुड़ा है, उनका सम्बंध बेताल से है। बेताल घाट में बेताल का प्रथम पदार्पण हुवा,इसलिए यह क्षेत्र का मूल नाम से विख्यात है।

माँ पार्वती ने भैरव को श्राप क्यों दिया ? इस पर एक पौराणिक प्रसंग बताया जाता है,एक बार नारद मुनि धरती की यात्रा पर आए थे। उन्होंने यहाँ देखा कि ,पृथ्वी पर भूत पिचाश, शैतान, मरघटी, डाकिनी शाकिनी ,आदि नकारात्मक ताकतें बेलगाम हो रखी हैं, और पृथ्वीवासियों का जीवन त्रस्त कर के रखा है। पृथ्वी का ये हाल देखकर नारद मुनि सीधा कैलाश गए वहां ये व्यथा सुनाई। कुछ दिनों बाद भगवान भोलेनाथ ने लीला रची, उन्होंने मा पार्वती के साथ एकांतवास जाने का निर्णय लिया, और द्वारपाल भैरव को बोला कि ,हमारे एकांतवास पूर्ण होने तक किसी को भी अंदर आने की अनुमति मत देना, यहाँ तक कि ब्रह्मा ,विष्णु को भी नहीं।

भैरव ने अपने कार्य का निष्ठापूर्वक पालन किया। एकांतवास पूर्ण होने के बाद जब मा पार्वती और महादेव बाहर आये ,तो अचानक माता पार्वती को देख भैरव के मन मे विकार उतपन्न हो गया,उसने माता का हाथ पकड़ लिया।

भैरव की मूर्खता पूर्ण कार्य से माता क्रोधित हो गई,और उसे तत्काल श्राप दिया कि ,तू बेताल बन कर मृत्युलोक में भटकेगा।

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इसलिए भैरव को बेताल बनकर धरती पर आना पड़ा,धरती में भटकते रहे।  उसके मन मे घोर ग्लानि भाव उतपन्न हुवा,उसने पर्यायश्चित करने की ठानी। उन्होंने कठोर शिव भक्ति शुरू कर दी अंततः भगवान शिव ने इन्हें दर्शन देकर कहा, कि धरती में जहां भी मेरी पूजा होगी, वहां तुम भैरव रूप में पूजे जाओगे। तुम्हारी पूजा किये बिना मेरी पूजा सम्पूर्ण नही मानी जायेगी । इस धरती पर अलग अलग रूपों में क्षेत्रपाल बनकर तुम मेरे सभी गणों को नियंत्रित करोगे। ताकी धरती वासियों को मेरे इन गणो की हरकतों से कोई दिक्कत ना हो। बेताल ने शिव की आज्ञा को अपना कर्तव्य मानकर ,पूर्ण श्रद्धा से निभाने का वचन दिया।

बेताल देवता ने अपने आराध्य भगवान शिव की बेतालघाट में बेतालेश्वर रूप में स्थापना की। आज भी नकुवा बूबू भगवान महादेव की सेवा के साथ साथ अपने भक्तों की रक्षा में ततपर रहते हैं। ( Story of ,Betalghat Nainital  Uttarakhand )

नकुवा बुबु

 

बेताल देवता या नकुवा बुबु के कई रोचक किस्से हैं। नकुवा बूबू की कहानियों में  से एक किस्सा है, 80 के दशक की कहानी, बेताल के लड़के की शादी बहुत ही चर्चाओं में रही। कहाँ जाता कि बेताल देवता दिन भर आम इंसानों की तरह लोगो के बीच मे रहते थे। जब नकुवा बुबु के लड़के की शादी ,खैरना अल्मोड़ा राजमार्ग पर स्थित काकड़ीघाट के बेताल की लड़की से हुई, तब बेताल बुबु ने सभी को निमंत्रण दिया, कई लोग,साधु संत और डंगरिये, जगरिये ,तंत्र विद्याओं से जुड़े लोग इसके प्रत्यक्षदर्शी रहे। देश प्रदेश के समाचार पत्रों ने भी इस घटना को अपने मुखपृष्ठ में स्थान दिया। कहते हैं, की स्वयं बेताल देवता ने अपने लड़के की शादी का निमंत्रण क्षेत्र में दिया था।

इसके अलावा नकुवा बुबु की एक और कथा का प्रसंग आता है, जब 90 के दशक में बेतालघाट का मोटर पुल नया नया बना था, तो वह पुल अपने आप एक मीटर नीचे खिसक गया। लोगो ने ठेकेदार को चेताया कि उसने बेताल बूबू के मंदिर में पूजा नही की इसलिए यह घटना घटी। पहले तो ठेकेदार और विभागीय कर्मचारी इसे नकारते रहे, लेकिन उन्होंने सारे उपाय कर लिए,वो ठीक नही हुवा तो अंत मे हार कर नकुवा देवता की शरण मे गए। बताते हैं कि नकुवा बुबु की पूजा पाठ करने से ,वह पुल चमत्कारी रूप से अपने स्थान पर स्थापित हो गया।

विशेष – कत्यूरी इतिहासकार नकुवा के बारे में लिखते हैं कि नकुवा और समुवा अत्याचारी मसान थे। जिनके साथ कत्यूरी राजा धामदेव का सागर ताल गढ़ का युद्ध हुवा । जिसमे समुवा मारा गया और नकुवा को क्षमा दान देकर खैरना , बेताल का एरिया दे दिया गया। लेकिन नकुवा फिर उत्पात मचाने लगा तो गोरिया ने उसका वध कर दिया ।

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मित्रों यह लेख बेतालघाट नैनीताल के बेताल देवता, नकुवा देवता, या नकुवा बुबु पर आधारित था। इसका संदर्भ लोक कथाएं और इंटरनेट पर उपलब्ध पत्र पत्रिकाओं की खबरों से लिया गया है। यदि यह कहानी अच्छी लगी तो,साइड में दिए गए व्हाट्सप्प बटन से इसे शेयर करें।

Betalghat Nainital , Uttarakhand )

 

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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