उत्तराखंड की सांस्कृतिक परंपरा में लोक देवताओं का एक विस्तृत संसार है। इनमें अधिष्ठाता देवता, इष्टदेवता, कुलदेवता, ग्रामदेवता, क्षेत्रपाल, कृषिदेवता, पशुदेवता, रथ देवता और पितृदेवता जैसी अनेक श्रेणियाँ आती हैं। इन लोकदेवताओं में कुछ दिव्य और वायवीय शक्तियाँ हैं, जबकि कुछ का सीधा संबंध इस सृष्टि के मानव समाज से है। रथदेवता ऐसे ही लोक देवताओं की श्रेणी में आते हैं, जिनकी उत्पत्ति और पूजा की परंपरा मानवीय जीवन से जुड़ी हुई है।
रथ देवता वे महामानवीय आत्माएँ होती हैं जिन्होंने अपने जीवन में लोककल्याण के लिए महान कार्य किए, और जिनकी स्मृति को कृतज्ञतापूर्वक पूजनीय मान लिया गया। वहीं कुछ रथदेवता ऐसी असामयिक या अकाल मृत्यु को प्राप्त आत्माएँ भी होती हैं, जिनका मृत्यु के बाद विधिवत संस्कार नहीं हो सका और वे अतृप्त रह गईं। इन आत्माओं की शांति और तृप्ति के लिए लोक समाज ‘घडियाले’ नामक पूजा का आयोजन करता है।
रथ देवताओं की पूजा केवल आस्था से नहीं, बल्कि कई बार भय से भी की जाती है। यह पूजा लोक मन की उस प्रवृत्ति का प्रतीक है जिसमें मृतात्मा को देवत्व देकर उसे समाज का मार्गदर्शक, रक्षक या दंडदाता बना दिया जाता है। उत्तराखंड के ग्रामीण समाज में इन आत्माओं को श्रद्धापूर्वक स्मरण किया जाता है और इनकी पूजा के आयोजन एक पारिवारिक व सामाजिक कर्तव्य माने जाते हैं।
घडियाले में जब कोई व्यक्ति देव आत्मा द्वारा अवतरित होता है, तो उसकी वाणी, इच्छा और आदेश देवता की शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। लोकविश्वास है कि ये आत्माएँ जनकल्याण में संलग्न रहती हैं और अपने भक्तों की समस्याओं का समाधान करती हैं।
ऐसे ही प्रसिद्ध रथदेवताओं में ‘ठाकुर महाराज’ का नाम अत्यंत श्रद्धा के साथ लिया जाता है। ठाकुर महाराज का वास्तविक नाम दलेब सिंह रावत था, जिनका जन्म उत्तरकाशी जिले की बनाल पट्टी के कोटी गाँव में हुआ था। वे वन विभाग में वन दरोगा थे और ईमानदार, सहृदय, संवेदनशील स्वभाव के व्यक्ति माने जाते थे।
एक बार जब वे बौखनाग डांडा की तरफ तैनात थे, बरसात के मौसम में उन्हें तेज बुखार हो गया। वे घर लौटने लगे और राजतर (गंगनानी) के पास यमुना की सहायक नदी ‘बनल्ट गाड़’ को पार करने का प्रयास किया। गाँव के कुछ लोगों से मदद माँगी लेकिन उन्हें उपहास में टाल दिया गया। अकेले घोड़े पर बैठकर उन्होंने नदी पार की लेकिन इस घटना में अत्यधिक मानसिक आघात और घबराहट के चलते उनका स्वास्थ्य और बिगड़ गया। यह भी कहते हैं कि वन देवियों ने उन्हें अपने आगोश में ले लिया था। घर पहुँचने के कुछ दिनों में ही उन्होंने प्राण त्याग दिए।
मृत्यु के समय वे श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ कर रहे थे, जो उनके आध्यात्मिक झुकाव को दर्शाता है। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु के कुछ दिन बाद उनका घोड़ा भी मर गया और आज भी यह मान्यता है कि ठाकुर महाराज घोड़े पर सवार होकर विचरण करते हैं। उनकी आत्मा लोक में लोगों की सहायता करती रही और धीरे-धीरे उन्हें रथ देवता के रूप में पूजा जाने लगा।
उनकी स्मृति में प्रत्येक तीसरे वर्ष फाल्गुन मास में शिवरात्रि के बाद कोटी गाँव में ‘घडियाले’ का आयोजन होता है। इसमें दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति और आभार प्रकट करने के लिए पहुँचते हैं।
ठाकुर महाराज का घडियाला लगाने की परंपरा भी विशेष है। उन्होंने स्वयं संकेत दिया था कि उनका घडियाला किसी विशेषज्ञ द्वारा नहीं, बल्कि श्री रघुनाथ जी के बाजगियों द्वारा ही लगाया जाए। इसके बाद से झुमराड़ा गाँव के बाजगी ‘गेम्या दास’ और ‘अत्तर दास’ के पिता द्वारा उनका घडियाला लगाया जाने लगा। पहली बार में ही वे बाजों की पहली ध्वनि में अवतरित हुए और तब से यही परंपरा आज तक चली आ रही है।
घडियाला उनके पुस्तैनी घर की ‘तिबारी’ में ही लगता है, जो अब भी एक बंद कमरा है। इस पवित्र स्थान में सीमित लोगों को ही प्रवेश मिलता है। हालांकि श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखकर आयोजन को खुले में करने की विनती की गई थी, लेकिन ठाकुर महाराज ने जनरक्षार्थ अनुमति नहीं दी।
रघुनाथ जी की देवयात्रा में उन्हें पिठाई (फूल, श्रीफल, धूप, दक्षिणा) प्रदान की जाती है, और उनका स्थान डांडा देवताओं के साथ सुनिश्चित किया गया है। पांडव लीलाओं और ग्राम आयोजनों में भी उन्हें प्रतीकात्मक रूप से ‘ढाई घड़ी’ झूलने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
कोटी में आज भी उनका कोई पृथक मंदिर नहीं है, परंतु उनके पैतृक घर में धातु की मूर्तियाँ रखी गई हैं। यहाँ सोमवार और शुक्रवार को विशेष पूजा की जाती है और बलि के लिए श्रद्धालु गाँव की पूर्व दिशा में जाते हैं क्योंकि घर के पास बलि देना वर्जित है।
इस प्रकार ठाकुर महाराज, एक महान आत्मा के रूप में, लोक आस्था में रथदेवता के रूप में प्रतिष्ठित हुए। उनका जीवन, मृत्यु और मरणोपरांत जनसेवा की भावना उत्तराखंड के लोक जीवन में एक प्रेरक अध्याय के रूप में समाहित हो चुका है।
संदर्भ :-
- श्री दिनेश रावत की पुस्तक रवाई के देवालय एवं देवगाथाएँ।
- उत्तराखंड के लोक देवता , – प्रो DD शर्मा।
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