Friday, October 18, 2024
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केदारनाथ के आस पास घूमने लायक स्थान | Best places to visit near kedarnath

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केदारनाथ के दर्शनीय स्थल

केदारनाथ के दर्शनीय स्थल

केदारनाथ के दर्शनीय स्थल जिनका आप अपनी यात्रा के दौरान लुफ्त उठा सकते है। के चार उत्तराखंड धामों में से एक है केदारनाथ धाम जो कि प्रकृति की खूबसूरत वादियों से घिरा हुआ है। यूँ तो केदारनाथ धाम आस्था का बहुत विशाल पवित्र स्थल है परन्तु इसकी आसपास की खूबसूरती भी पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करने से पीछे नहीं रहती। यहाँ का शांत वातावरण भगवान के प्रेम में डूबे श्रद्धालु और प्राकृतिक सौंदर्य किसी चमत्कार से कम नहीं है।

यहाँ आप मंदिर की खूबसूरत कलात्मक शैली, भक्तों कीआस्थाएं, पर्वतों पर बिखरी रूईनुमा बर्फ, हसीन वादियों में तेज़ हवाओं के झौंके, मंदाकिनी नदी का तेज़ बहाव, कल कल करता पानी का शोर आदि को यहाँ आकर भली भाँती देख सकते हैं। यहीं कुछ दूरी पर एक झील है जो दर्शनीय है इस झील की भी अपनी अलग महत्वता है।

यहीं से तक़रीबन 6 किलोमीटर की दूरी पर एक ताल भी है जो की वासुकी ताल के नाम से जाना जाता है। केदारनाथ धाम में आप त्रिजुगीनारायण, अगस्तयमुनि, गौरी कुण्ड, सोन प्रयाग, गुप्तकाशी, उखीमठ, पंच केदार आदि दर्शनीय स्थलों के दर्शन कर सकते हैं।

केदारनाथ मंदिर –

केदारनाथ मंदिर हिमालय की खूबसूरत हसीन वादियों में बना विशालतम आस्थाओं से रचा मंदिर है जो कि एक चौड़े पत्थर पर विराजमान है। भक्तों की भक्ति और प्रकृति ने इसकी सुंदरता में चार चाँद लगाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है।

शंकराचार्य समाधि –

कहा जाता है कि 32 वर्ष की उम्र में शंकराचार्य ने यहाँ समाधि ली थी। तक़रीबन 8 वीं शताब्दी में गुरु जी शंकराचार्य केदारनाथ मंदिर आये थे। इस मंदिर के दर्शन के बाद उन्होंने यहीं समाधि ली थी, शंकराचार्य समाधि दर्शनीय है।

त्रियुगीनारायण –

त्रियुगीनारायण में शिव मंदिर दर्शनीय है जो कि केदारनाथ शैली में बना हुआ है। अगर आप केदारनाथ आना चाहते हैं तो यहाँ अवश्य आएं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहाँ भगवान् शिव और पार्वती का विवाह हुवा था।

गुप्तकाशी –

गुप्तकाशी भगवान शिव के पवित्र तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यह केदारनाथ धाम  से लगभग 47 किलोमीटर पहले स्थित है। गुप्तकाशी समुद्र तल से 1319 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदाकिनी नदी घाटी के पश्चिम की ओर एक पहाड़ी पर स्थित है।

गुप्तकाशी उत्तराखंड का धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण तीर्थ है क्योंकि इसमें विश्वनाथ मंदिर और अर्धनारीश्वर मंदिर जैसे प्राचीन मंदिर हैं। इसे कैलाश का द्वार भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान् गणेश का दांत यहीं टूटा था। यह केदारनाथ के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में एक है।

ऊखी मठ –

ऊखी मठ बेहद शांत वातावरण वाला रमणीक स्थल है। कहा जाता है कि जब केदारनाथ मंदिर बंद कर दिया जाता है तब इसकी मूर्ति को ऊखी मैथ की गद्दी पर रखा जाता है। ( केदारनाथ के दर्शनीय स्थल )

केदारनाथ के दर्शनीय स्थल गौरी कुंड –

गौरी कुंड एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है जो कि गुप्तकाशी से लगभग 28 किमी और सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह कुंड उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह कुंड उत्तराखंड में केदारनाथ मंदिर की यात्रा के लिए आधार शिविर भी है। गौरीकुंड समुद्र तल से लगभग 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। और 30°38 अक्षांश पर और  उत्तर और देशांतर 79°1 ई. पर स्थित है। पहाड़ों का भव्य दृश्य और पास में बहने वाली मंदाकिनी नदी केआसपास की रमणीय हरियाली देखने लायक है।

चौखाटी ताल –

चौखाटी ताल को गांधी ताल भी कहते हैं। कहा जाता है कि यहाँ महात्मा गांधी की अस्थि यहीं प्रवाहित की गई थी। इस बर्फीले सरोवर में इस ताल के साथ साथ शंकराचार्य की समाधि भी देखने योग्य है।

केदारनाथ के दर्शनीय स्थल देवरिया ताल –

देवरिया ताल अपने सौंदर्य के लिए पर्यटकों के बीच खासा लोकप्रिय है। यहाँ बर्फ से ढकी चोटियां बेहद लुभावनी लगती हैं। यहाँ से गगनचुंबी पहाड़ियां बेहद आकर्षक लगती हैं। ( केदारनाथ के दर्शनीय स्थल )

वासुकी ताल –

वासुकी ताल केदारनाथ धाम से तक़रीबन 6 किलोमीटर की दूरी पर होगी। यह एक बेहद आकर्षक झील है। यह झील ऊंचाई पर बनी हुई है इसलिए इस तक पहुँचने के लिए काफी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। केदारनाथ के दर्शनीय स्थलों में महत्वपूर्ण स्थल है।

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गंगोत्री में घूमने लायक स्थान | Best places to visit in gangotri dham

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गंगोत्री में घूमने लायक

गंगोत्री में घूमने लायक स्थान

जब भी आप चार धाम की यात्रा के लिये आये तो उनके आस -पास कई ऐसी जगह होती है जिनके बारे मे हमको पता नही होता इसलिए हम उनके दर्शन नही कर पाते है आज हम आपको गंगोत्री के आस-पास घूमने के लिए व देखने के लिए कुछ खास जगह के नाम बताएंगे यात्रा के  साथ-साथ आप इनके भी दर्शन कर सकते है।

गंगोत्री मंदिर :

गंगोत्री में घूमने लायक और देखने लायक गंगा माता का पहला और सबसे ज़्यादा धार्मिक महत्व रखने वाला यह मंदिर गंगोत्री का प्रमुख आकर्षण है और भक्तों को दूर-दराज़ से बुलावा देता है। यह छोटे चार धाम यात्रा में से भी एक है।

गौरीकुंड :

गंगा मंदिर से एक फर्लांग नीचे की ओर भागीरथी चट्टानों के बीच से झरना बनकर गिरती है। नीचे विशाल शिवलिंग है, जो प्राकृतिक है। यह वही शिवलिंग है, जिस पर जलधारा गिरती है। पार्वती ने शिव को प्राप्त करने के लिए यहीं पर कठोर तपस्या की थी।

पटांगण –

यह वही स्थान है, जहाँ पांडवों ने गोहत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए तप और यज्ञ किया था। यहाँ एक विशाल गुफा है, जिसे रुद्र गुफा के नाम से जाना जाता है। यही पटांगण है, जहाँ आज भी पितरों का श्राद्ध किया जाता है। यह स्थान भी गंगोत्री में घूमने लायक और देखने लायक खास स्थान है।

केदार गंगा संगम –

गंगोत्तरी मंदिर से 100 कदम नीचे केदार शिखर से केदारगंगा जल की एक धारा के रूप में आती है तथा भागीरथी के बाएँ तट पर आकर मिलती है। कहा जाता है कि इसी गंगा साथ-साथ पांडव केदारनाथ तक पहुँचे।

शंकराचार्य की समाधि –

जनुश्रुतियों के अनुसार शंकराचार्य ने गंगोत्तरी की यात्रा की थी और अपना शरीर यहीं त्याग दिया था। गंगा-मंदिर के बीच शंकराचार्य की समाधि बनी है, परंतु शंकराचार्य की वास्तविक समाधि केदारनाथ में बनी है। यहाँ शंकराचार्य ने तप किया था, इसीलिए उनकी स्मृति बनाए रखने के लिए यह समाधि बनाई गई है।

भैरव मंदिर –

भैरव घाटी में जाह्नवी को पार करते ही ऊपर भैरव मंदिर बना हुआ है। यह गंगोत्तरी का रक्षक देवता है। बिना भैरव की पूजा किए गंगोत्तरी का फल नहीं मिलता। इस भैरव के कारण ही जाह्नवी की घाटी को भैरव-घाटी कहा जाता है। गंगोत्री में घूमने लायक खास स्थान है।

गंगोत्री में घूमने लायक गोमुख –

साहसिक यात्री गंगोत्तरी से गोमुख तक की यात्रा करते हैं। गोमुख पहुँचने पर गंगाजी का प्रकटीकरण द्रष्टव्य होता है। गोमुख ही गंगाजी का उद्गम-स्थान माना गया है। यह स्थान गंगोत्तरी से 26 किमी. उत्तर में है। गोमुख की समुद्रतल से ऊँचाई 12700 फीट है। जनश्रुति के अनुसार गंगाजी गोमुख आकृति वाले पर्वत से निकली हैं, इसीलिए गंगा के उद्गम स्थल को गोमुख नाम दिया गया है।

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उत्तराखंड के चार धाम का संक्षिप्त परिचय | An Introduction of Uttarakhand 4 Dham

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उत्तराखंड के चार धाम

उत्तराखंड के चार धाम

चार धाम यात्रा को हिंदुओं के सबसे पावन यात्राओं में से एक माना जाता है मान्यता है कि एक हिन्दू को जीवन में एक बार इनकी यात्रा अवश्य करनी चाहिए। ये धाम भारत के चार दिशाओं में फैले हैं यानि बद्रीनाथ (उत्तराखंड), रामेश्वरम् (तमिलनाडू), द्वारका (गुजरात) एवं जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा)।लोगो के लिए चार धाम की यात्रा करना एक सुन्दर सपने का पुरे होने जैसा है। हिन्दू पुराणों के अनुसार चारो धाम के नाम ये है –
1.बद्रीनाथ
2.द्वारका,
3.जगन्नाथ पुरी
4.रामेश्वरम

लेकिन आज हम आपको उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा के बारे में बताते है। जिसे छोटे चार धाम और उनकी यात्रा को  छोटी चार धाम यात्रा कहा जाता है। इस यात्रा में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री शामिल है।

बद्रीनाथ मंदिर –

यह मंदिर उत्तराखंड में हिमालय की चोटियों पर अलकनंदा नदी के तट पर बना हुआ है। इसी स्थान पर नर-नारायण ने तपस्या की थी। इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। बद्रीनाथ को भगवान विष्णु का दूसरा निवास या दूसरा बैकुंठ धाम भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता अनुसार सतयुग में यहां भगवान विष्णु सभी भक्तों को दर्शन देते थे। उसके बाद त्रेतायुग में यहां केवल देवताओं और साधुओं को ही विष्णु भगवान के दर्शन मिलते थे।

त्रेतायुग के बाद भगवान ने यह नियम बना दिया कि आगे से यहां देवताओं के अलावा अन्य सभी को मूर्ति रूप में ही उनके दर्शन होंगे। बद्रीनाथ के बारे में कहा जाता है कि यहाँ छह माह इंसान और छह महीने देवता भगवान् की पूजा करते हैं। इसलिए यहाँ की यात्रा ग्रीष्म काल में छह महीने चलती है। केदरनाथ से यात्रा पर यह उत्तराखंड के चार धाम यात्रा में दूसरा तथा यमुनोत्री से शुरू करने पर तीसरा धाम पड़ता है।

उत्तराखंड के चार धाम  में से एक केदारनाथ  –

यह मंदिर उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में बना हुआ है। यहाँ भगवान् शंकर की पूजा की जाती है। यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में भी शामिल है। आधुनिक मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य ने करवाया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पांडवो ने इस मंदिर की स्थापना की थी। जब पांडव कुल नाश के पाप का प्रायश्चित करने शिव पूजन के लिए  हिमालय आये ,तो भगवान् शिव उनसे नाराज थे ,वे वर्तमानं वाले केदारनाथ जगह पर बैल का रूप धारण करके चरने लगे।

लेकिन पांडवों ने उन्हें पहचान लिया। तब भीम ने उनकी पूछ पकड़ी तो वे जमीन में धसने लगे। जमीन में धसने के बाद बैल रूप में उनके अंग पांच जगह से बहार निकले जो आज पंच केदार के रूप में पूजे जाते हैं। केदारनाथ में भगवान् के पीठ भाग की पूजा की जाती है। केदारनाथ यात्रा भी छह महीने चलती है। उत्तराखंड के चार धाम में महत्वपूर्ण धाम है केदारनाथ। केदरनाथ से यात्रा करने पर पहला और यमुनोत्री से करने पर चौथा धाम है यह।

उत्तराखंड के चार धाम में से महत्वपूर्ण धाम गंगोत्री , माँ गंगा का उद्गम स्थल –

उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा के क्रम में गंगोत्री धाम दूसरा धाम है। गंगोत्री वह स्थान है जहाँ से गंगा नदी का उद्भव होता है। गंगोत्री उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। भक्त यहाँ गंगा जल से स्नान करने और गंगा मैया के प्राचीनतम मंदिर के दर्शन हेतु आते है।

यह गढ़वाल मण्डल के उत्तरकाशी जनपद के टकनौर परगने में उसके मुख्यालय उत्तरकाशी से उत्तर में 94 मील पर समुद्रतट से 10,020′ की ऊंचाई पर भागीरथी के बाएं तट पर स्थित यह तीर्थ स्थल ठीक केदारनाथ के हिमालय के पीछे गंगा घाटी में गंगा जी के दक्षिण क्षेत्र में सघन देवदारु की वनस्थली के मध्य उ. अक्षांश 30°-59-10″ और पू. देशान्तर 78°-59-30′ पर स्थित है।प्रमुख स्थानीय दूरियों के हिसाब से इसकी दूरी हरिद्वार से 282 किमी. तथा ऋषिकेश से 257 किमी. और उत्तरकाशी मुख्यालय से 97 किमी. है।

पौराणिक परम्परा के अनुसार इसी स्थान पर रघुवंशी महाराज भगीरथ ने गंगा को प्राप्त करने के लिए दीर्घकालीन तपस्या की थी। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र के विषय में यह लोक मान्यता है कि महाभारत युद्ध के उपरान्त पांडवों ने शिव की आराधना के लिए इसी स्थान पर आकर तपस्या की थी तथा उनके दर्शनों के बाद यही से अपनी स्वर्गीय यात्रा के लिए’स्वर्गारोहिणी’ की ओर गये थे।

यहां पर राजा भगीरथ तथा भागीरथी दोनों के देवालय हैं जहां पर प्रतिदिन त्रिकाल पूजन आराधन किया जाता है। मोटर मार्ग से यहां पर ऋषिकेश से नरेन्द्रनगर, उत्तरकाशी, हरसिल व गंगनानी होकर पहुंचा जा सकता है। धार्मिक आस्था के अनुसार उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा करने वाले श्रद्धालु यमुनोत्री की यात्रा के बाद अगली यात्रा गंगोत्तरी की करते हैं।

उत्तराखंड के चार धाम यात्रा की शुरुवात होती है यमुनोत्री से –

यमुनोत्री  वह स्थान है जहाँ से यमुना नदी का उद्भव होता है। यह भी उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है।उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा यहीं से शुरू होती है। यह उत्तरकाशी जिले में समुद्र की सतह से 3185 मी. की ऊंचाई पर स्थित है
है। यमुना का उद्गम स्थल चंपासर ग्लेशियर इस तीर्थस्थल से लगभग 1 किमी. ऊपर कालिन्दी पर्वत के अंक में स्थित एक प्राकृतिक हिम सरोवर 4,421 मी. है, जहां पर पहुंचना अति कठिन है।

यमुनोत्री के पास नदी की जलधारा उत्तरवाहिनी हो जाता है। यहां की यात्रा का आरम्भ ऋषिकेश से होता है। और यात्री सड़कमार्ग से टिहरी, धरासू, हनुमान चट्टी, जानकी चट्टी तक गंगोत्री मार्ग पर जाकर वहां से खरसाली होता हुआ 14 किमी. पैदल चलकर यहां पहुंचते है। चारों ओर से उन्नत हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं से आवृत तथा निकटस्थ चीड़ की वनावली से सुशोभित यह स्थान स्वयं में अति मनोरम है। इसस्थान पर यमुना की धारा किंचित उत्तरवाहिनी हो जाती है। इसलिए इसे यमुना-उत्तरी कहा जाता है।

इसे पढ़े _चार धाम यात्रा का सम्पूर्ण इतिहास | Full history of 4 dham yatra

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चार धाम यात्रा का सम्पूर्ण इतिहास | Full history of 4 dham yatra

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चार धाम यात्रा

चार धाम यात्रा का सनातन धर्म में बहुत बड़ा महत्त्व है। चार धामों की यात्रा के बारे में कहा गया है कि ,जो व्यक्ति अपने जीवन में चार धामों की यात्रा करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रत्येक सनातनी को अपने जीवन में इन चार धामों की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।

यहाँ भारत के चार धामों के बारे में बात हो रही है जिनका नाम , बद्रीनाथ ,द्वारिका ,जगन्नाथ पूरी और रामेश्वरम है। इसी प्रकार उत्तराखंड में भी चार धाम हैं ,जिनकी यात्रा को छोटी चार धाम यात्रा कही जाती है। ये एक ही दिशा और एक ही क्षेत्र में हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में स्थित केदारनाथ ,बद्रीनाथ ,गंगोत्री ,यमुनोत्री छोटे चार धाम स्थित है।

चार धाम यात्रा का इतिहास –

आदि शंकराचार्य  को सनातन धर्म की पुनर्स्थापना का श्रेय जाता है। आदि शंकराचार्य जी ने सम्पूर्ण भारत की यात्रा करके भारत के चारों दिशाओं में चार प्रमुख पीठों स्थापना की थी।  जिन्हे आज भारत के चार धाम के नाम से जानते हैं।  शंकराचार्य जी ने बद्रीनाथ ,द्वारिका धाम ,जगन्नाथ पूरी और रामश्वेरम की स्थापना की थी। और चार धाम यात्रा की परम्परा को शुरू किया।

कहते हैं भारत में सनातन धर्म की एकता और अखंडता अक्षुण रखने के उद्देश्य से आदि गुरु शकराचार्य ने देश के चार बड़े मंदिरों को चार धाम के रूप में विकसित किया। इनमे पुजारी भी एकदम बिपरीत क्षेत्र के स्थापित किये। जैसे -बद्रीनाथ धाम में दक्षिण के रावल पूजा करते हैं। और रामेश्वरम में उत्तर के पंडित पूजा करते हैं। और जगन्नाथ पूरी में पक्षिम के पुजारी रखे और द्वारिका में पूर्व के पुजारी रखे।

इसमें आदि शंकराचार्य जी का एक ही उद्देश्य था ,पुरे देश को आधयात्मिक और सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधना और सनातन धर्म को मजबूत करना। कहते हैं ये चारों धाम एक दूसरे के सीधे सीध में पड़ते हैं।

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चार धाम और चार धाम यात्रा का संक्षिप्त परिचय –

भारत के चार कोनों पर स्थित चार धाम आदिकाल के प्रसिद्ध मंदिर या ऐसे धार्मिक केंद्र हैं जिनका भगवान से सीधा नाता है। बद्रीनाथ नर नारायण पर्वतों के बीच में अलकनंदा नदी के किनारे बसा यह तीर्थ भगवान् विष्णु को समर्पित धाम है। यह सनातन धर्म के चार धामों में से एक है।

बद्रीनाथ भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर नारायण को समर्पित धाम है। बद्रीनाथ को मोक्षद्वार भी कहते हैं। बद्रीनाथ के बारे में कहा जाता है कि , जो बद्रीनाथ आता है उसे जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। चार धाम यात्रा में पहली यात्रा बद्रीनाथ धाम की की जाती है।

बद्रीनाथ के बाद द्वारिका धाम का नंबर आता है। द्वारिका धाम भगवान कृष्ण को समर्पित धाम है। द्वारिका द्वापर युग में भगवान् कृष्ण के राज्य का नाम था। द्वारिका धाम गोमती नदी और अरब सागर के किनारे ओखामंडल प्रायद्वीप के तट पर बसा हुआ है। वर्तमान में मूल द्वारिका समुद्र के अंदर है।

इसके बाद चार धाम यात्रा में आती है  जगन्नाथ पूरी धाम। जगतनाथ पूरी भगवान् कृष्ण को समर्पित धाम है। यह उड़ीसा के तटवर्ती शहर पूरी में स्थित यह धाम में भगवान् कृष्ण की जगन्नाथ और भाई बलभद्र और बहिन सुभद्रा की पूजा होती है। यहाँ वर्ष में एक बार जगन्नाथ रथ यात्रा भी आयोजित की जाती है।

भारत के चार धामों में प्रसिद्ध धाम रामश्वेरम धाम है। इसकी स्थापना भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से भगवान् शिव की पूजा करने के लिए किया था। इसका नाम रामेश्वर भी उन्होंने ने ही रखा था।

रामेश्वर का अर्थ है राम के ईश्वर। रामेश्वर हिन्दू धर्म के अनुयायियों के पवित्र धामों में से एक है। यह भारत के राज्य तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। कहते हैं इस मंदिर में पवित्र गंगाजल से पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यहाँ के पवित्र जल से स्नान करने के बाद असाध्य रोग भी दूर होते हैं।

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बद्रीनाथ धाम या बद्रीनारायण मंदिर । चार धामों में प्रमुख धाम।

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उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर – Top 10 temple of Uttarakhand

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उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर

उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर – उत्तराखंड का नाम ही देवभूमि है वैसे यहाँ छोटे बड़े बहुत सारे मंदिर देखने के लिए मिल जायेंगे। यहाँ के हर मंदिरों का वैसे अपना एक इतिहास है। यहाँ एक से बढ़कर एक पौराणिक और ऐतिहासिक मंदिर है। प्रस्तुत लेख में उत्तराखंड के दस प्रसिद्ध मंदिरों का वर्णन किया गया है। जहाँ आप दर्शन करके ईश्वर का आशीर्वाद और अलौकिक शांति का अनुभव कर सकते हैं –

देवभूमि उत्तराखंड के  दस प्रसिद्ध व अलौकिक मंदिर –

  1. बद्रीनाथ धाम
  2. केदारनाथ धाम
  3. धारी देवी
  4. सुरकंडा देवी मंदिर
  5. जागेश्वर धाम
  6. बागेश्वर
  7. चितई मंदिर अल्मोड़ा
  8. कटारमल सूर्य मंदिर
  9. बैजनाथ
  10. महासू देवता मंदिर

केदारनाथ मंदिर ,उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में एक मंदिर  –

उत्तराखंड के प्रसिद्ध चार धामों में से एक धाम केदारनाथ धाम  है। भगवान् शिव के इस धाम का बहुत ही पौराणिक महत्त्व है। लिंगपुराण के अनुसार जो व्यक्ति सन्यासरत होकर केदारनाथ में निवास करता है। उसे शिवत्व की प्राप्ति होती है। केदारनाथ का दर्शन और स्पर्श परम मोक्षदायक बताया गया है। यह मंदिर उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में प्रमुख है। केदारनाथ हिमालय के पांच प्रमुख खण्डों में परिगणित अन्यतम खण्ड के द्वारखण्ड स्कन्द पुराण का एक महत्वपूर्ण खण्ड है-

खण्डा पंच हिमालयस्य कथिता नेपाल कूर्माचलौ ।
केदारोऽथ जलन्धरोऽथ रुचिरः कश्मीर संज्ञोन्तिमः । ।

केदारनाथ का पवित्र धाम उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में उसके रुद्रप्रयाग जनपद के नागपुर परगने की मल्ली कालीफाट पट्टी में मन्दाकिनी नदी के दक्षिणी तट पर समुद्रतल से 3543मी. (11,753 ) की ऊंचाई पर एक समतल भूमि पर अक्षांश 30°-44′-15″ एवं देशान्तर 79°-6′-33″ पर स्थित है।

बद्रीनाथ धाम –

उत्तराखंड के चार धामों में से प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में एक मंदिर है। पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व वाले इस मंदिर में भगवान् विष्णु की पूजा होती है। बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना शंकराचार्य ने की थी। इसके कपाट अप्रैल मई में खुलने के साथ यहाँ की यात्रा शुरू हो जाती है। अक्टूबर में शीतकालीन के लिए इसके कपाट बंद हो जाते है। यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जनपद में ,समुद्रतल से लगभग 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

 उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरो में खास मंदिर “धारी देवी ” –

वैसे तो उत्तराखंड में माँ भगवती को समर्पित कई मंदिर हैं। सभी एक से बढ़कर एक चमत्कारी और दिव्य मंदिर हैं। लेकिन धारी देवी मंदिर उन सब में विशेष महत्त्व रखता है। यह मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल में स्थित है। यह मंदिर माँ काली को समर्पित मंदिर है। कहते हैं यहाँ माँ दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। इस मंदिर  के बारे में एक और मान्यता प्रचलित है। कहते हैं जब  शंकराचार्य नवी या दसवीं शताब्दी आस पास उत्तराखंड आये तो उन्होंने माता की मूर्ति को सूरजकुंड निकाल कर स्थापित किया। और स्थानीय पुजारियों को उसकी पूजा का कार्यभार सौंप दिया था। इसे पढ़े – धारी देवी उत्तराखंड का चमत्कारी एवं रहस्यमय मंदिर।

सुरकंडा देवी मंदिर ( उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर ) –

भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है उत्तराखंड का सुरकंडा देवी मंदिर। सुरकण्डा देवी का प्राचीन सिद्धपीठ टिहरी जनपद में चम्बा – मसूरी मार्ग पर मसूरी से 27 किमी. तथा धनोल्टी से 10 किमी. पर समुद्र की सतहसे 3030 मी. की ऊंचाई पर एक अत्यन्त रमणीक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। यहां से हिमालय की अनेक पर्वत
श्रृंखलाओं, दूनघाटी, मसूरी एवं चम्बा (टिहरी) के अत्यन्त नयनाभिराम दृश्य दृष्टिगोचर होते हैं।

किन्तु इसका एक देवस्थल जौनपुर में भी है। इस सम्बन्ध में उल्लेख्य है कि यहां से लोगों के लिए टिहरी जनपदस्थ सुरकण्डा सिद्धपीठ काफी दूर होने के कारण उसके श्रद्धालुओं के द्वारा यह देवस्थल मसूरी से 29 किमी आगे यहां की सिलवाड़ पट्टी के ऊंचे शिखर पर भी स्थापित कर दिया गया है। इसके विषय में माना जाता है कि यहां पर दक्ष यज्ञ में देवी सती ,के देहत्याग के बाद भगवान शिव को शांत करने के लिए ,सती की देह पर भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन से वार किये तो माता का सिर यहाँ गिरा था। इसीलिए इसे ‘छिन्नमस्त’ भी कहा जाता है। ( उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर)

कहा जाता है कि यह यहां के शासक पंवारों की कुलदेवी है। इसके पुजारी कुदाऊं के ब्राह्मण तथा कोली होते हैं। यहां पर साल में दो बार चैत्रमास की अष्टमी तथा आश्विन की नवरात्रियों में विशेष पूजाओं का आयोजन होता है तथा गंगादशहरे के दिन मेला भी लगता है। इसके अतिरिक्त प्रथम सन्तति (पुत्र/पुत्री) के आगमन पर यहां पर जात का आयोजन भी किया जाता है। सिलवाड़ शिखर के अतिरिक्त इस क्षेत्र में इसके पूजास्थल छारगढ़, बिच्छू, क्यारी, ख्यांसी गैड़, चमासारी, ठाल, कुदाऊं आदि में भी हैं। इससे ही सम्बद्ध पूजास्थलों, अगिछा में इसे घिन्ना देवी तथा पीपलखेत में राजराजेश्वरी के नाम से पूजा जाता है।

जागेश्वर धाम –

जागेश्वर धाम भगवान् शिव का प्रसिद्ध धाम है। यह मंदिर उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। कहते हैं सर्वप्रथम भगवान् शिव का शिवलिंग रूप में पूजन यहीं से शुरू हुवा था। देवदार के दारुकवन में स्थित उत्तराखंड का सबसे बड़ा मंदिर समूह है। यहाँ 124 -125 मंदिरों का समूह है।

जागेश्वर भगवान् शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर नगरी समुद्रतल से लगभग 1870 मीटर की उचाई पर स्थित है। दारुकवन में देवदार के जंगल के बीच मृत्युंजय मंदिर में स्थित शिवलिंग को ‘ नागेश जागेश दारुकवने ‘ आधार पर शकराचार्य जी द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिग माना गया है। यहाँ जागेश्वर के बारे में विस्तार से पढ़े।

उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर बागेश्वर का व्याघ्रेश्वर महादेव –

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में स्थित बागेश्वर को कुमाऊँ की कशी कहा जाता है। यहाँ भगवान् शिव व्याघ्रेश्वर रूप में रहते हैं। यहाँ स्नान -दान का काशी के बराबर महत्व बताया गया है।  कुमाऊं क्षेत्र के वासी जब काशी नहीं जा सकते थे ,तो निकट बागेश्वर में स्नान करने जाते थे। यहाँ यज्ञोपवीत ,अंतिम संस्कार आदि कार्य होते हैं। इस स्थान को एक. तीर्थ की मान्यता दी गई है। यहाँ का समृद्ध पौराणिक इतिहास रहा है।

उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक चितई मंदिर अल्मोड़ा –

चिठ्ठी वाला मंदिर ,सर्वोच्च न्यायलय आदि नामो से विख्यात कुमाऊँ के लोक देवता गोलू देवता का यह मंदिर ,पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित यह मंदिर न्याय का मंदिर नाम से भी प्रसिद्ध है। यहाँ के देवता गोलू देवता को न्याय का देवता माना जाता है।

लोग अपनी मनोतिया चिट्ठियों या स्टाम्प पेपरों में लिखकर यहाँ लगाते हैं। मनोकामना पूर्ति के बाद घंटियां चढ़ाने का रिवाज है। इसे घंटियों वाला मंदिर भी कहते हैं। कहते हैं कोर्ट में जनता के हितार्थ जो भी निर्णय निकलते हैं ,उनकी एक कॉपी यहां भी अर्पित की जाती है। इसलिए इस मंदिर को सर्वोच्च न्यायालय भी कहते हैं।

 उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर में से एक कटारमल सूर्य मंदिर –

भारत का दूसरा प्राचीन सूर्यमंदिर उत्तरखंड के अल्मोड़ा जिले के कटारमल नामक गांव में स्थित है। कोसी नामक कस्बे के किनारे स्थित यह मंदिर उत्तराखंड के साथ साथ भारत के सबसे प्राचीन मंदिरो में से एक है। अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर बड़ादित्य मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर  में पारम्परिक बूटधारी सूर्य की मूर्ति भी स्थित है। कटारमल सूर्यमंदिर के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़े

बैजनाथ –

पुराणों में वर्णित गोमती तथा गरूड़ी नदियों के संगम पर स्थित बैजनाथ जहाँ कामदेव के दमन के पश्चात् पार्वती को ब्याहने जाते समय महादेव जी ने ठहरकर गणेश का पूजन किया था। अल्मोड़ा से 70 किमी. तथा हिमालय-दर्शन के लिए प्रसिद्ध कौसानीसे 16 किमी. की दूरी पर है। (उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर)

यहाँ कई मंदिरों का निर्माण हुआ था। इनसे प्राप्त शिलालेखों से ज्ञात होता है कि कत्यूरी, चंद तथा गंगोली राजाओं ने समय-समय पर यहाँ के मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। संभवतः उनके काल में मूर्तियों का भी अंकन हुआ था। बैजनाथ मंदिर-समूह के मध्य वैद्यनाथ महादेव का प्राचीन मंदिर था, जिसका अब निचला भाग ही शेष रह गया है। किंतु इस मंदिर में प्रतिष्ठित शिव-प्रतिमा की अब भी मान्यता प्राप्त है।

महासू देवता मंदिर –

उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक जौनसार का महासू देवता मंदिर। महासू का अर्थ होता है महाशिव। महासू चार भाइयों की पूजा होती है।  महासू देवता को उत्तराखंड के प्रसिद्ध न्यायकारी देवताओं में से एक माना जाता है। यह मंदिर देहरादून से लगभग 180 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर कोटि बनाल शैली में निर्मित है। यह मंदिर चकराता में तमस नदी के किनारे हनोल गांव में स्थित है। ( उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर )

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कराचिल अभियान ! मुहमद तुगलक का पहाड़ जीतने का अधूरा सपना ! 

हल्द्वानी में घूमने की जगह – इन 5 स्थानों में अवश्य घूमें।

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हल्द्वानी में घूमने
Haldwani me ghumne layak sthan

हल्द्वानी में घूमने की जगह- हलद्वानी उत्तराखंड का एक छोटा सा शहर है। कुमाऊं का द्वार और उत्तराखंड की आर्थिक राजधानी के नाम से प्रसिद्ध यह शहर खास है। वैसे तो यहाँ से आगे प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर कुमाऊँ मंडल के द्वार खुल जाते हैं। हल्द्वानी में घूमने लायक कुछ स्थान ऐसे हैं जहाँ आप घूमकर अपना मनोरंजन कर सकते हैं। या यूँ कह सकते हैं यदि आप कुमाऊँ मंडल की यात्रा पर आये हो तो हल्द्वानी के इन स्थानों को अवश्य देखना चाहिए। यहाँ की खूबसूरती और अहसास को महसूस करना चाहिए।

हल्द्वानी का इतिहास –

हल्द्वानी उत्तराखंड के  नैनीताल जिले में 29 डिग्री 13 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा 79 -32′ डिग्री पूर्वी देशांतर में समुद्रतल से  लगभग 1434 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। कुमाऊं का द्वार नाम से फेमस  हल्द्वानी पंद्रहवी शताब्दी से पहले कदम्ब के पेड़ों अलावा बेर ,शीशम ,कंजु ,तुन खैर ,बेल तथा लैंटाना जैसी झाड़ियों और घास का मैदान था। सोलहवीं शताब्दी के बाद राजा रूपचंद के शाशन में स्थानीय पहाड़ी जनमानस ने यहाँ आना शुरू किया था।

अंग्रेजों ने कुमाऊं में ई.गार्डनर को शाशक बनाकर भेजा। गार्डनर ने पहली बार यहाँ सरकारी बटालियन तैनात की। इनके बाद अगले कुमाऊं कमिश्नर जार्ज विलियम ट्रेल ने हल्द्वानी नामक गावं को हल्द्वानी नामक नगर का रूप दिया था। सन 1834 में  कमिश्नर जार्ज विलियम ट्रेल द्वारा व्यापारिक मंडी के रूप में स्थपित किया गया। तथा 1860 में  हेनरी रैमजे कमिश्नर द्वारा तराई की तहसील का मुख्यालय बनाये जाने तक यह स्थान मात्र एक गांव था। जो अब एक सर्वसम्पन्न शहर बन गया है। हल्द्वानी आज उत्तराखंड की आर्थिक राजधानी है।

हल्द्वानी में घूमने लायक 5 स्थान –

वैसे तो एक छोटा सा शहर है ,लेकिन हल्द्वानी में घूमने लायक कुछ खास स्थान हैं ,जिनकी यात्रा करे बिना आपकी हल्द्वानी की ट्रिप बेकार है। आइये जानते हैं हल्द्वानी के इन पांच स्थानों में अवश्य घूमना चाहिए।

कालू सिद्ध मंदिर –

वैसे तो यह स्थान एक भीड़ भरे कालाढूंगी चौराहे पर स्थित है। लेकिन हल्द्वानी में इस मंदिर की बहुत मान्यता है। कालू सिद्ध बाबा को हल्द्वानी का क्षेत्रपाल देवता कहा जाता है। हल्द्वानी वासी अपनी खुशियों और दुःख के समय सबसे पहले कालू सिद्ध बाबा को ही याद करते हैं। कहते हैं अंग्रेजों के समय यहाँ एक सिद्ध बाबा आये उन्हें इस स्थान पर शनि शक्ति का अहसास हुवा ,तब उन्होंने यहाँ पर शनि मंदिर की स्थापना की। शनिवार का विशेष महत्व है यहाँ।

हल्द्वानी में घूमने की जगह - इन 5 स्थानों में अवश्य घूमें।

हल्द्वानी में घूमने लायक  52 डांठ नहर –

हलद्वानी में घूमने लायक प्रसिद्ध स्थानों में हल्द्वानी की 52 डांठ नहर सबसे फेमस है। इस नहर की खासियत यह है कि ये कभी हवा में बहती थी। जी हां इस नहर को अंग्रेजों ने 52 पिल्लरों पर हवा में बनाया था। प्रशाशन ने इसका कायाकल्प कर के इसको एक प्रसिद्ध टूरिस्ट डेस्टिनेशन के रूप में विकसित कर दिया गया है। यहाँ जाकर आप आराम से ब्लॉग ,रील्स आदि बना सकते हैं। और अंग्रेजो द्वार बनाई गई इस ऐतिहासिक नहर का दीदार कर सकते हैं।

हल्द्वानी की 52 डाँठ नहर के बारे में विस्तार से पढ़े।

गौला बैराज –

हल्द्वानी में घूमने लायक खास स्थानों में से एक है गौला बैराज। वैसे तो हल्द्वानी के पास प्राकृतिक सुंदरता का भंडार नैनीताल जैसा विश्व प्रसिद्ध हिल स्टेशन है ,लेकिन आप हल्द्वानी में ही प्राकृतिक सुकून ढूंढ रहे हो तो गौला बैराज सबसे मुफीद जगह है। यह बैराज हल्द्वानी प्रसिद्ध नदी गोला पर बना है। इसके किनारे बना पार्क आपके मन मोहने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।

हल्द्वानी में घूमने लायक भुजियाघाट का सूर्या गांव –

हल्द्वानी से सटे काठगोदाम में प्राकृतिक एडवेंचर्स के लिए विकसित यह गांव ,रोमांच के साथ अपनी सुंदरता के लिए भी फेमस है। काठगोदाम से hmt के रस्ते यहाँ पंहुचा जा सकता है। यहाँ पहाड़ी की तलहटी पर कई एडवेंचरस टूरिस्ट स्पॉट विकसित किये गए हैं। यहां विज़िटर्स को एडवेंचर्स एक्टिवटी कराई जाती है।

शीतला देवी मंदिर –

हल्द्वानी में घूमने लायक स्थानों की फेहरिस्त में शीतला देवी मंदिर का स्थान सबसे आगे होना चाहिए। काठगोदाम के पास नैनीताल रोड में स्थित यह मंदिर माँ शीतलादेवी को समर्पित मंदिर है। सौ से भी अधिक सीढ़ियां चढ़ने के बाद मंदिर परिसर में पंहुचा जा सकता है। माँ शीतलादेवी के इस मंदिर में असीम शांति का अनुभव किया जा सकता है। पहाड़ी के बीच मंदिर को काफी खूबसूरती से बनाया गया है। इस मंदिर की नियमित देख रेख भी की जाती है।

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पूर्णागिरि मंदिर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में जानिये।

उत्तराखंड में पर्यटन और उत्तराखंड की पर्यटन नीति 2018

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उत्तराखंड पर्यटन पर निबंध
उत्तराखंड निबंध फ़ोटो

उत्तराखंड में पर्यटन – वैसे तो पूरा उत्तराखंड अपने आप में पर्यटन की जगह है यहा की हर एक चीज अपने आप मैं फेमस  है और उसका उसका अपना एक रहस्य है। यहा आपको हर एक जगह पहुच कर आनंद की अनुभूति प्राप्त होगी। 9 नवम्बर 2000 को भारत का 27वें तथा हिमायली क्षेत्रों का 11वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आ गया।

यह उत्तराखण्ड भारत का एक ऐसा प्रदेश है जो कि वैदिककाल से ही भारतीय जीवन में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता है और आधुनिक काल में भी अपने गगनचुम्बी हिमशिखरों, वैविध्यपूर्ण अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य एवं पवित्र चारधामों, जनजातीय एवं जनजातीयेतर सांस्कृतिक विविधताओं के कारण भारतीय एवं भारतीयेतर जगत् का आकर्षण केन्द्र बना हुआ है। इसकी सदानीरा सरिताएँ, सघन चीड़, देवदारू, बांज (ओक) की घाटियां, रंग-बिरंगे (फलों से हरित भरित शाद्वल, बुग्याल, जीव एवं वनस्पति वैविध्य सभी कुछ अद्भुत, मोहक व आकर्षक रहा है।

उत्तराखंड में

उत्तराखंड में पर्यटन –

पर्यटन के लिए उत्तराखंड विशेष प्रसिद्ध है। या यूँ कह सकते हैं कि उत्तराखंड में पर्यटन ही यहाँ की मुख्य आर्थिकी है। प्राकृतिक सुंदरता से संपन्न यह राज्य पर्यटन के क्षेत्र अग्रणीय है। यहाँ के प्राकृतिक रूप से समृद्ध पर्यटन स्थलों में नैनीताल ,मंसूरी , मुनस्यारी आदि प्रसिद्ध हैं।  इसके साथ -साथ उत्तराखंड का एक समृद्ध पौराणिक इतिहास रहा है। जिस कारण प्राकृतिक पर्यटन के साथ -साथ धार्मिक पर्यटन में भी अग्रणीय है। सनातन धर्म के चारों प्रसिद्ध धाम यहीं स्थित हैं। माँ भगवती के कई प्रसिद्ध शक्तिपीठ यहाँ स्थित हैं।

तीर्थ नगरी ऋषिकेश का धार्मिक पर्यटन के साथ प्राकृतिक पर्यटन और साहसिक पर्यटन के क्षेत्र में अग्रणीय स्थान है। इसके अलावा उत्तराखंड का पहाड़ी भौगोलिकी प्रदेश होने के कारण यहाँ साहसिक पर्यटन की अनगिनत संभावनाएं बन जाती हैं। कार्बेट पार्क और अन्य पार्को और प्राकृतिक सुंदरता और वन्य जीवों के मध्य जंगल सफारी का सफर अलग ही आनंद देता है। जो रोमांच और साहस से भरा होता है। उत्तराखंड में पर्यटन का एक अलग ही रोमांचक और यादगार अनुभव रहता है। प्रत्येक नागरिक को उत्तराखंड की यात्रा में आकर यहाँ के पर्यटन स्थलों का आनंद अवश्य लेना चाहिए।

उत्तराखंड में पर्यटन नीति 2018

प्राकृतिक और धार्मिक पर्यटन स्थलों की द्रष्टि से उत्तराखंड एक संपन्न राज्य है। वर्तमान में पर्यटन उत्तराखंड की आर्थिकी के लिए प्रमुख साधन बनता जा रहा है। अतः इस क्षेत्र का तीव्र और बहुआयामी विकास के लिए राज्य सरकार ने सुनियोजित पर्यटन नीति बनाई है। जिसे समय समय पर समयानुसार बदलाव भी करती रहती है। उत्तराखंड में पर्यटन नीति का उद्देश्य उत्तराखण्ड को सुरक्षित, टिकाऊ और विश्वस्तरीय पर्यटन उत्पाद और सेवाओं से परिपूर्ण एक वैश्विक पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करना है।

एक सुरक्षित और पर्यटन अनुकूल गंतव्य के रूप में उत्तराखण्ड की छवि को विकसित और सुदृढ़ करना और नए पर्यटन स्थलों का निर्माण तथा अद्वितीय पर्यटन उत्पाद विकसित करना इस पर्यटन नीति- 2018 के मुख्य उद्देश्य हैं। सरकार ने राज्य के हर जिलों में से एक नया पर्यटन स्थल विकसित करने का निर्णय लिया है। इसके लिए उत्तराखण्ड पर्यटन विकास बोर्ड (UTDB) प्रत्येक जिले में एक भूमि बैंक  स्थापित करेगा। पर्यटन विभाग सभी प्राकृतिक, सांस्कृतिक और धरोहर पर्यटन स्थलों का हर 2 वर्ष बाद विस्तृत संसाधन मानचित्रण करेगा। और जीआईएस आधारित प्लेटफार्मों पर जानकारी को अद्यतन करेगा।

राज्य के गंतव्यों को जिन प्रमुख थीम  में विभाजित किया जा सकता है वे हैं- एडवेंचर वाटर स्पोर्ट्स, क्रूज, याच आदि विरासत,रोपवे,तीर्थाटन,संस्कृति और त्यौहार;स्वास्थ्य,कायाकल्प और आध्यात्मिक एम०आई०सी०ई०  टूरिज्म, वन्यजीव, अभयारण्य  और पक्षी विहार,इको-टूरिज्म / ग्रामीण पर्यटन बौद्ध तथा प्रकृति और परिदृश्य। पर्यटन को उत्तराखंड राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार मानकर राज्य में पर्यटन में निवेशको आकर्षित करने के लिए सरकार ने इसे उद्योग का दर्जा दिया है।

उत्तराखंड में पर्यटन नीति  2018 को विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ से Pdf डाउनलोड कर सकते हैं –

इसे भी पढ़े – जागेश्वर धाम उत्तराखंड के पांचवा धाम का इतिहास और पौराणिक कथा।

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ये 3 स्थल द्वाराहाट के पास देखने लायक खास स्थान हैं।

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द्वाराहाट के पास

द्वाराहाट उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। इसे सांस्कृतिक नगरी ,वैराट ,उत्तर की द्वारिका भी कहा जाता है। वैसे द्वाराहाट और द्वाराहाट के पास कई दर्शनीय स्थल हैं उसमे से खास ये 3 स्थल देखने लायक हैं।उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट से 14km दूरी पर है । दुनागिरी से 5 km दूरी पर कुकुछीना पड़ता है।  कुकुछीना  से लगभग 4 km का पेेदल पथ तय कर के सुुप्रसिद्ध पाण्डखोली आश्रम पहुुँचा जा सकता है। स्व: बाबा बलवन्त गिरी जी ने आश्रम की स्थापना की थी और महावतार बाबा व लाहिड़ी महाशय जैसे उच्च आध्यात्मिक संतों की तपस्थली भी रहा है।

द्वाराहाट के पास देखने लायक दुनागिरी-

दुनागिरि  मंदिर कुमाऊ के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलो में एक है। दुनागिरी मंदिर के लिए सीढ़ियो से चलकर जाना पड़ता है। और सीढ़िया जहा से शुरू होती वही प्रवेश द्वार से दाहिनी हाथ की ओर है हनुमान जी का मंदिर दुनागिरी मंदिर के दर्शन हेतु आने वाले श्रदालु इसी मार्ग से सीढ़िया चढ़कर दुनागिरी मंदिर पहुचते है। यहा रानीखेत से द्वाराहाट होते हुए भी पहुचा जा सकता है।

यहाँ का मार्ग बहुत सुंदर है पक्की सीढ़िया छोटे छोटे खाली जगह जिसमे लगभग हर उम्र के लोग चल सकते हैं।  मंदिर तक पहुचने के लिए करीब 365 सीढ़िया चढ़नी होती है। पूरा मार्ग टीन के छत से ढका हुआ है जिससे श्रद्धालुओं को धूप व बारिश से बचाव हो सके मार्ग में कुछ कुछ दूरी पर आराम करने के लिए सीमेंट व लोहे के बेंच भी बने हुए हैं पूरे मार्ग में हजारों घंटियां लगी हुई है जो दिखने में लगभग एक जैसे है माँ दुनागिरी मंदिर तक पहुचने के लिए लगभग 800 मीटर की दूरी चलकर तय करनी होती है।

रोज चलता है भंडारा –

 

लगभग दो तिहाई रास्ता तय करने के बाद भंडारा स्थल हैं जहाँ प्रतिदिन सुुुबह 9 बजे साम के 4 बजे तक भंडारे का आयोजन किया जाता है जिससे यहां आने जाने वाले श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते है। प्रसाद आदि ग्रहण करने के बाद सभी श्रद्धालु अपने बर्तन स्वयं धोते है , एवं दानपात्र में अपने श्रद्धानुसार भेट चढ़ाते है।

जिससे भंडारे का कार्यक्रम अनवरत चलते रहता इस स्थान पर भी प्रसाद पुष्प खरीदने हेतु कई दुकाने है मंदिर से ठीक नीचे एक ओर गेट है श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यहां से मंदिर दर्शन जाने के लिए ओर दर्शन कर वापस आने के वालो के लिए दो अलग अलग मार्ग बने हुए बाई ओर लगभग 50 फ़ीट ऊँचा झूला जिसे पार्वती झूला के नाम से भी जाना जाता है।

वैष्णवी रूप में स्थापित है माँ दुनागिरि यहाँ –

दुनागिरी मुख्य मंदिर में कोई मूर्ति नही है। प्रकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिंडिया माता भगवती पूजी जाती है। दूनागिरि मंदिर में अखंड ज्योति का जलना इस मन्दिर की एक विशेषता है दुनागिरी माता मंदिर में बलि नही चढ़ाई जाती है यहां तक कि मंदिर में भेंट किया जाने वाला नारियल भी मंदिर परिसर में भी नही फोड़ा जाता है। पुराणों उपनिषदों और  इतिहास वेदों ने दुनागिरी की पहचान माया महेश्वरी दुर्गा कालिका के रूप में बताई है। द्वाराहाट में स्थापित इस मन्दिर में वैसे तो पूरे वर्ष भर भक्तो की कतार लगी रहती मगर नवरात्र में यहां मा दुर्गा के भक्त दूर दूर से बड़ी बड़ी संख्या में यहां आशीर्वाद लेने आते है।

इतिहास –

इस स्थल के बारे में प्रचलित कथा में यह कहा जाता है कि त्रेता युग मे जब लक्ष्मण को मेघनाथ द्वारा शक्ति लगी थी, तब सुशेन वेद्य ने हनुमानजी से द्रोणाचार्य नाम के पर्वत से संजीवनी बुटी लाने को कहा था। बूटी की पहचान ना होने की वजह से जब हनुमान जी आकाश मार्ग से पूरा द्रोणाचल पर्वत उठाकर ले जा रहे थे तो इस स्थान पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिर गया। और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरि मंदिर का निर्माण किया गया।

एक अन्य मान्यता के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य ने इस पर्वत पर तपस्या की थी जिस कारण इसका नाम द्रोणागिरी पड़ा और कालांतर में दुनागिरी हो गया। एक अन्य जानकारी के अनुसार कत्युरी शासक सुधार देव ने सन 1318 ई० में इस मंदिर का पुनः निर्माण करा मंदिर का निर्माण कर के यह मा दुर्गा की मूर्ति स्थापित की यह माँ दूनागिरि मंदिर की एक यह मान्यता भी है जो भी महिला यहां अखंड दीपक जलाकर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है उसे संतान का सुख प्रदान करती है।

द्वाराहाट के पास दूसरा खास स्थान पांडवखोली –

कुकुछीना  से पांडखोली जाने के लिए 4 km का पैदल मार्ग तय कर के पहुँचा जा सकता है। पांडखोली शब्द बना है दो शब्दो से मिलकर पाण्डु जिसका आशय है पांडव ओर खोली का अर्थ होता है आश्रम यानी घर अथार्थ पांडव का रमणीय आश्रय। पांडखोली जाने का मार्ग बाज़ बुरांश आदि पेड़ो से घिरा है। कहते है पांडवों ने अज्ञात वास के दौरान अपना कुछ समय व्यतीत किया था। यही नहीं पांडवो की तलाश में कौरव सेना भी यहां पहुची लेकिन जिस स्थान तक वह पहुची थी उस स्थान का नाम कौरव छीना पड़ा जिसे अब कुकुछीना के नाम से जाना जाता हैं।

द्वाराहाट के पास

पांडुखोली आश्रम से लगा हुआ है सुंदर बुग्याल नुमा घास का मैदान यहा आकर हदय आनंद से भर जाता है। इसे भीम का गद्दा के नाम से भी जाना जाता है।  यहा मैदान पर पैर मारने पर खोखले बर्तन भाती और कंपन महसूस किया जा सकता है। आश्रम के प्रवेश द्वार से प्रवेश करते ही मन शांति वातावरण से प्रफुल्लित होने लगता है। आश्रम में रात्रि विश्राम हेतु आश्रम के नियमो का पालन करना होता है। दिसम्बर माह में बाबा जी की पुण्यतिथि पर विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। ऊंचाई पर स्थित यह एक प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर स्थल है।

द्वाराहाट के पास घूमने लायक तीसरा सबसे खास स्थान भटकोट –

भटकोट द्वाराहाट के पास घूमने लायक सबसे खास स्थानों में एक है। यदि आप ट्रैकिंग करना पसंद करते हो तो भटकोट आपके लिए एक नयी डेस्टिनेशन बन सकता है। कुमाऊँ की प्रसिद्ध भटकोट नामक पहाड़ी की उचाई समुद्रतल से लगभग 9086 फ़ीट है। यहाँ टूरिस्ट लोग ट्रैकिंग करने और अल्मोड़ा हिल स्टेशन की रमणीय प्राकृतिक सुंदरता  दर्शन करने आते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान् राम के छोटे भाई भरत ने ,राम लक्ष्मण के वनवास काल में यहाँ तपस्या की थी। यदि आप द्वाराहाट की यात्रा पर हैं तो द्वाराहाट के पास घूमने लायक सबसे खास स्थानों में एक है भटकोट।

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जीवन बदलने वाले कैंची धाम के बाबा नीम करौली महाराज ।

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कैंची धाम नीम करौली बाबा
kainchi dham neem karoli baba

आइये शुरू करते है, देवभूमि उत्तराखंड की अलौकिक वादियों में से एक दिव्य रमणीक लुभावना स्थल है कैंची धाम। कैंची धाम जिसे नीम करौली धाम भी कहा जाता है, उत्तराखंड का एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां वर्ष भर श्रद्धालुओ का तांता लगा रहता है। भारी संख्या में भक्तजन व श्रद्धालु यहां पहुचकर अराधना व श्रद्धा पुष्प श्री नीम करौली बाबा के चरणों में अर्पित करते है।

प्रतिवर्ष  15 जून को यहां एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन होता है। भक्तजन यहां आकर अपनी श्रद्धा व आस्था को व्यक्त करते है। कहते है कि यहां पर श्रद्धा एवं विनयपूर्वक की गयी पूजा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है। यहां पर मांगी गयी मनोकामना हमेशा पूर्ण होती है।

कैंची धाम की स्थापना –

अपने जीवन- काल में नीम करौली बाबा जी ने अनेकों स्थानों का भ्रमण किया। महाराज ने 100 से भी अधिक मंदिरों और आश्रमों का निर्माण करवाया था, जिसमे से वृंदावन और कैंची धाम आश्रम मुख्य है। कैंची धाम आश्रम में नीम करौली बाबा जी अपने जीवन के अंतिम दशक में सबसे ज्यादा रहे,आरम्भ में यह स्थान दो स्थानीय साधुओं, प्रेमी बाबा और सोमवारी महाराज के लिए यज्ञ हेतु बनवाया गया था।

साथ ही यहाँ एक हनुमान मंदिर कि स्थापना भी उसी समय पर की गई। उत्तराखंड में कैंची धाम उत्तराखंड के नैनीताल  से लगभग 17 किलोमीटर दूर अल्मोड़ा – नैनीताल रोड पर स्थित है. यह स्थान अत्यंत खूबसूरत एवं पहाड़ियों से घिरा हुवा है। भवाली-अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित कैंची धाम क्षिप्रा नाम की छोटी पहाड़ी नदी के किनारे सन् 1962 में कैंचीधाम की स्थापना हुई। यहां दो घुमावदार मोड़ है जो कि कैंची के आकार के हैं इसलिए इसे कैंचीधाम आश्रम कहते हैं।

चमत्कारी संत थे कैंची धाम के बाबा नीम करौली महाराज –

परम पूज्य महान संत श्री नीम करौली महाराज जी के आश्रम और ये इतना प्रसिद्ध क्यों है। इसी तरह 15 जून 1999 को घटी एक चमत्कारिक घटना के अनुसार कैंची धाम में आयोजित भक्तजनों की विशाल भीड़ में बाबा ने बैठे-बैठे इसी तरह निदान करवाया कि जिसे यातायात पुलिसकर्मी घंटो से नहीं करवा पाए। थक-हार कर उन्होंने बाबा जी की शरण ली। आख़िरकार उनकी समस्याओ का निदान हुआ।

यह घटना आज भी खास चर्चाओ में रहती है। इसके आलावा यहाँ आयोजित भंडारे में ‘घी’ की कमी पड़ गई थी। बाबा जी के आदेश पर नीचे बहती नदी से कनस्तर में जल भरकर लाया गया। उसे प्रसाद बनाने हेतु जब उपयोग में लाया गया तो, वह जल घी में परिवर्तित हो गया। इस चमत्कार से आस्थावान भक्तजन नतमस्तक हो उठे।

कहते है कि गृह- त्याग के बाद, जब वो अनेक स्थानों के यात्रा पर थे तभी एक बार महाराज जी एक स्टेशन से ट्रेन किसी वजह से बिना टिकट के ही चढ़ गए और प्रथम श्रेणी में जाकर बैठ  गए। मगर कुछ ही समय बाद टिकट चेक करने के लिए एक कर्मचारी उनके पास आया और टिकट के लिए बोला, महाराज ने बोला टिकट तो नहीं है, कुछ वाद- विवाद के बाद ट्रेन रुकवाकर महाराज को उतार दिया गया, और ट्रेन ड्राइवर वापस ट्रेन चलाने चलाने लगा।

मगर ट्रेन दुबारा स्टार्ट नहीं हुवी।  बहुत कोशिश की गयी, मगर सफलता हाथ नहीं लगी।  इसी बीच एक अधिकारी वहां पहुंचे और उन्होंने ट्रेन को अनियत स्थान पर रोके जाने का कारण जानना चाहा , तो कर्मचारियों ने पास में ही में एक पेड़ के नीचे बैठे हुवे साधु को इंगित करते हुवे, कारण अधिकारी को बता दिया।

वो अधिकारी महाराज और उनकी दिव्यता से परिचित था।अतः उसने साधु को वापस विनम्रता से ट्रेन में बिठाकर ट्रेन स्टार्ट करने को कहा।  रेलवे के अधिकारिओं ने दोनो शर्तों के लिए हामी भर दी तो महाराज ट्रेन में चढ़ गए और ट्रेन चल पड़ी। बाद में रेलवे ने उस गांव में एक स्टेशन बनाया गया।

देश में ही नहीं विदेश में भी थे बाबा के भक्त –

हमेशा एक कंबल ओढ़े रहने वाले बाबा के आर्शीवाद के लिए भारतीयों के साथ-साथ बड़ी-बड़ी विदेशी हस्तियां भी उनके आश्रम पर आती थीं। बाबा के उपलब्ध सभी फोटो कम्बल में हैं और भक्त भी उन्हें कम्बल ही भेंट करते थे। पं. गोविंद वल्लभ पंत, डॉ सम्पूर्णानन्द, राष्ट्रपति वीवी गिरि, उपराष्ट्रपति गोपाल स्वरुप पाठक, राज्यपाल व केन्द्रीय मन्त्री रहे के. एम. मुंशी, राजा भद्री, जुगल किशोर बिड़ला, महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त, अंग्रेज जनरल मकन्ना, देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु और भी ऐसे अनेक लोग बाबा के दर्शन के लिए आते रहते थे।

बाबा राजा-रंक, अमीर-गरीब, सभी का समान रुप से पीड़ा-निवारण करते थे। उनके उपदेश लोगों को पतन से उबारते और सत्मार्ग-सत्पथ पर चलाते थे । फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग और एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब की प्रेरणा का स्थल कैंची धाम ही है। यहां नीम करौली बाबा का कैंची धाम आश्रम इनके अलावा कई सफल लोगों के लिए प्रेरणा श्रोत साबित हुआ। एप्पल की नींव रखने से पहले स्टीव जॉब कैंची धाम आए थे।

यहीं उनकों कुछ अलग करने की प्रेरणा मिली थी।जिस वक्त फेसबुक फाउंडर मार्क जुकरबर्ग फेसबुक को लेकर कुछ तय नहीं कर पा रहे थे तो किसी ने ही उन्हें कैंची धाम जाने की सलाह दी थी। उसके बाद जुकरबर्ग ने यहां की यात्रा की और एक स्पष्ट विजन लेकर वापस लौटे। फेसबुक फाउंडर मार्क जुकरबर्ग और एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब के अलावा भारी संख्या में विदेशी साधक नीम करौली महाराज से जुड़ रहे हैं।

नीम करोली बाबा प्रारंभिक जीवन –

महाराज नीम करौली बाबा जी का जन्म सन 1900 के आस पास उत्तर- प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर नमक ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुवा था।  नीम करोली महाराज के पिता का नाम श्री दुर्गा प्रसाद शर्मा था। नीम करोली बाबा जी के बचपन का नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। अकबरपुर के किरहीनं गांव में ही उनकी प्रारंभिक शिक्षा- दीक्षा हुई थी।  मात्र 11 वर्ष कि उम्र में ही लक्ष्मी नारायण शर्मा का विवाह हो गया था। परन्तु  जल्दी ही उन्होंने घर छोड़ दिया और लगभग 10 वर्ष तक घर से दूर रहे।

10 सितम्बर 1973 में वृन्दावन की पावन भूमि पर नीम करौली बाबा का निधन हो गया लेकिन कैंची धाम आश्रम में अब भी विदेशी आते रहते हैं। बताया जाता है कि सबसे ज्यादा अमेरिकी ही इस आश्रम में आते हैं। आश्रम पहाड़ी इलाके में देवदार के पेड़ों के बीच है। यहां पांच देवी-देवताओं के मन्दिर हैं। इनमें हनुमान जी का भी एक मन्दिर है। भक्तों का मानना है कि बाबा खुद हनुमान जी के अवतार थे।

कैसे पहुंचे कैंची धाम-

देश के किसी भी हिस्से से आप को नैनीताल के हल्द्वानी शहर या काठगोदाम रेलवे स्टेशन पहुंचना होगा।  काठगोदाम पहुंचने के लिए भारतीय रेल की सेवा का उपयोग किया जा सकता है जो काठगोदाम तक उपलब्ध है। या फिर सड़क मार्ग से भी आप हल्द्वानी, काठगोदाम होते हुवे कैंची धाम जा सकते है।

अगर आप हवाई मार्ग से आते है तो पंतनगर एयरपोर्ट तक का सफर आप हवाई मार्ग से कर सकते है। पंत नगर एयरपोर्ट से कैंची धाम की दूरी लगभग 72 किलोमीटर है।  इस सफर को आप निजी वाहन या उत्तराखंड परिवहन की बस से भी तय कर सकते है। काठगोदाम के बाद लगभग 40 किलोमीटर पहाड़ी सफर सड़क मार्ग से तय करना होता है।  निजी वाहन या उत्तराखंड परिवहन की बसों से भी ये सफर तय किया जा सकता है।

आस- पास के अन्य दर्शनीय स्थल –

कैंची धाम यात्रा के साथ ही आस- पास के अन्य दर्शनीय स्थल जैसे की अल्मोड़ा स्थित जागेश्वर धाम, गोलू-चितई मंदिर, चम्पावत के पूर्णागिरि मंदिर , नानकमत्ता साहिब आदि धार्मिक स्थानों के अलावा नैनीताल, रानीखेत , चौबटिया, गोल्फ़ ग्राउंड , हैड़ाखान बाबा का मंदिर,मुक्तेस्वर, अल्मोड़ा मे पहुँचकर आप वहा की प्रशिद्ध बालमिठाई का लुफ्त उठा सकते है जैसे खूबसूरत पर्यटक स्थलों की यात्रा का भी आनंद उठा सकते हैं।

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हनुमान गढ़ी ,जहाँ की पत्तियां भी राम-नाम जपती हैं।

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उत्तराखंड पर निबंध – आखिर ऐसा क्या खास है उत्तराखंड में ,जो इसे देवभूमि कहा जाता है

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devbhoomi uttarakhand

भारत के हिमालयी राज्य उत्तराखंड को देवभूमि ( Devbhoomi Uttarakhand ) के नाम से जाना जाता है। इसको देवभूमि कहने के कई तर्क और कारण हैं। यह राज्य हिमालय की गोद मे बसा एक दम स्वर्ग सा दिखता है। हिमाच्छादित ऊँची ऊँची पहाड़ियो से घिरा यह राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है।

आखिर क्यों कहते हैं उत्तराखंड को देवभूमि –

भारत की लगभग सभी पवित्र नदियों का उद्गम हिमालय के इस पवित्र राज्य से है। उत्तराखंड को देवभूमि इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां अनेक देवी देवता निवास करते हैं। माना यह जाता है की यहाँ तैतीस करोड़ देवी देवता निवास करते है। मुख्य रूप से चार धाम श्री बद्रीनाथ जो कि भगवान विष्णु का मंदिर है, श्री केदारनाथ भगवान शिवजी ,श्री गंगोत्री गंगा जी का उद्गम स्थल और श्री यमुनोत्री धाम यमुना नदी का उद्गम स्थल यहां स्थित हैं। इसके साथ सिखों का पवित्र गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब भी स्थित है।

माँ भगवती के अनेक रूपों के दर्शन होते हैं यहाँ –

यहां अनेक शक्तिपीठ स्थित हैं जिनमें मुख्य रूप से मां धारी देवी, मां सुरकंडा देवी, मां कुंजापुरी ,मां पूर्णागिरि, मां विंध्येश्वरी देवी, मां नंदा देवी और मां चंद्रबदनी के भव्य मंदिर एवं सिद्ध पीठ शामिल हैं। यहां पांच प्रयाग – विष्णुप्रयाग, सोनप्रयाग, कर्णप्रयाग रुद्रप्रयाग, एवं देवप्रयाग स्थित है जहां दो नदियों का संगम होता है।

उत्तराखंड को देवभूमि क्यों कहते हैं

यहां ऋषिकेश के निकट मणिकूट पर्वत पर नीलकंठ महादेव का प्राचीन मंदिर है मान्यता है कि इसी जगह भगवान शिव ने सागर मंथन से निकले विष का पान किया था । यहां विशेषकर सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु जलार्पण करने के लिए आते हैं।

ऋषि मुनियों की तपोस्थली है उत्तराखंड –

पुरे भारत में जन्म पाए हुए देव पुरुष और ऋषि मुनी यहां तपस्या करने यही आते थे । कहते हैं ऋषि मुनियों ने सैकड़ों साल तपस्या करके इसे देवभूमि बनाया है, उसी तपोबल का प्रसाद पाने श्रद्धालु मीलों की यात्रा करके इस पावन भूमि में आते हैं।

भगवान् शिव का विशेष संबंध है –

भगवान शिव का घर हिमालय की सर्वोच्च छोटी कैलाश पर माना जाता है। लेकिन भगवान् शिव का प्रथम ससुराल हरिद्वार रहा है। माँ पारवती का मायका हिमावन राज्य का एक भाग उत्तराखंड भी है। इसके अलावा भगवान शिव से  के कई यहाँ के कई स्थानों का विशेष सम्बन्ध रहा है। उत्तरांखड को देवभूमि कहने का एक कारण यह भी है कि इस भूमि  भगवान् शिव से विशेष संबंध रहा है।

पांडवों को स्वर्ग का मार्ग यहीं मिला था –

द्वापर युग में पांडवों और कौरवो से इस भूमि का विशेष जुड़ाव रहा है। उत्तराखंड का लाखामंडल ,पांडवों के बनाये हुए मंदिर ,पांडवों के अज्ञातवास और वनवास के स्थल इस बात की गवाही देते हैं। इसके अलावा कहते हैं उत्तराखंड में आज भी पांडव यहाँ लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। आज भी वे यहाँ अवतरण लेकर लोगो की समस्याओं का समाधान करते हैं। सबसे बड़ी बात पांडवों की स्वर्गारोहण की यात्रा उत्तराखंड से ही शुरू हुई थी।

निष्कर्ष –

उत्तराखंड को देवभूमि कहने का सबसे बड़ा कारण यह है कि यह स्थान देवो और दैवीय शक्तियों तथा ऋषि मुनियों का सबसे प्रिय स्थान रहा है। पौराणिक इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि प्राचीनकाल यह स्थान दैवीय गतिविधियों का गढ़ रहा है। वर्तमान में उसी समृद्ध दैवीय इतिहास और दैवीय शक्तियों के तपोबल को महसूस करने ,दूर -दूर से श्रद्धालु आते हैं। यहाँ आकर अभूतपूर्व शांति और सुकून का प्रसाद और दैवीय शक्तियों का आशीर्वाद लेकर जाते हैं।

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