जहाँ स्वर्ग से धरती पर उतरती हैं माँ गंगा – गंगोत्री धाम
गंगोत्री धाम जहाँ स्वर्ग से धरती पर उतरती हैं गंगा मैया।
भारत अपनी आध्यात्मिकता और संस्कृति के लिए विश्व भर में जाना जाता है। और भारत अगर अपने अस्तित्व के लिए किसी का आभार माने तो वह इसकी नदियाँ होंगी। इन नदियों में सबसे महत्त्वपूर्ण है गंगा- उत्तर भारत की संस्कृति जिसके चारों तरफ फली फूली। गंगा अपने विशाल रूप में भारत को सींचते हुए महासागर में जा मिलती है। पर इससे पहले वह कई शहर, तीर्थ स्थल और उपजाऊ धरती की जननी बनती है। ज़ाहिर सी बात है, गंगा को भारत में पूजा जाता है और इसके उद्गम स्थल को विशेष माना जाता है। गंगोत्री ,गंगा नदी की उद्गम स्थान है एवं उत्तराखंड के चार धाम तीर्थयात्रा में चार स्थलों में से एक है | नदी के स्रोत को भागीरथी कहा जाता है , और देवप्रयाग के बाद से यह अलकनंदा में मिलती है, जहाँ से गंगा नाम कहलाती है | पवित्र नदी का उद्गम गोमुख पर है जो की गंगोत्री ग्लेशियर में स्थापित है, यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है और गंगोत्री से 19 किलोमीटर का ट्रेक है।गंगोत्री से 19 किलोमीटर दूर3,892 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गौमुख गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना तथा भागीरथी नदी का उद्गम स्थल है। कहते हैं कि यहां के बर्फिले पानी में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। गंगोत्री से यहां तक की दूरी पैदल पूरी की जाती है। चढ़ाई उतनी कठिन नहीं है तथा कई लोग उसी दिन वापस भी आ जाते है। गंगोत्री में कुली एवं उपलब्ध होते हैं।प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी गंगा मैंया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु तीर्थयात्री यहां आते है। यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते हैं
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गगा के उद्गम की कहानी

धरती लोक पर राजा भागीरथ ने कई वर्षों की कठिन तपस्या कि ताकि उसके मृत पूर्वजों को गंगा के जल से मोक्ष प्राप्त हो जाए जब वह धरती पर बह कर उनकी अस्थियों को स्पर्श करे। परन्तु गंगा ने इसे अपना अपमान समझा और यह तय किया कि वह एक वेग से धरती पर टूट पड़ेंगी और धरती लोक को तबाह कर देंगी। इसे रोकने के लिए ब्रह्मा ने शिवजी से प्रार्थना की और शिवजी हिमालय में उस स्थान पर आ गए जहाँ से गंगा धरती पर फूट पड़ने वाली थीं। गंगा शिवजी के सर पर तीव्रता से गिरीं पर शिवजी ने उन्हें अपनी जटा से बाँध लिया। शिवजी के स्पर्श में आ कर गंगा शांत हो गईं और उनका वेग कम हो गया। जटा से गंगा शांत रूप में धरती पर निकलीं और उनके जल से भीग कर भागीरथ के पूर्वज मोक्ष प्राप्त कर स्वर्ग लोक को चले गए। भागीरथ के इन प्रयासों के कारण गौमुख से निकलती हुई गंगा को भागीरथी के नाम से भी जाना जाता है। थोड़ी दूर बहने के बाद जब वे देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिल जाती हैं तो वे गंगा कहलाती हैं।ऐसी भी मान्यता है कि पांडवो ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गये अपने परिजनो की आत्मिक शांति के निमित इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ का अनुष्ठान किया था। यह पवित्र एवं उत्कृष्ठ मंदिर सफेद ग्रेनाइट के चमकदार 20 फीट ऊंचे पत्थरों से निर्मित है। दर्शक मंदिर की भव्यता एवं शुचिता देखकर सम्मोहित हुए बिना नहीं रहते।इस जगह पर शंकराचार्य ने गंगा देवी की एक मूर्ति स्थापित की थी। जहां इस मूर्ति की स्थापना हुई थी | वहां गंगोत्री मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18वी शताब्दी में किया गया था | मंदिर में प्रबंध के लिए सेनापति थापा ने मुखबा गंगोत्री गांवों से पंडों को भी नियुक्त किया । इसके पहले टकनौर के राजपूत ही गंगोत्री के पुजारी थे।
गंगोत्री तक कैसे पहुँचें:
हवाई जहाज़ से: देहरादून का जॉली ग्रैंट एयरपोर्ट यहाँ से सबसे नज़दीक क़रीब 225 किमी दूर है। यहाँ से आप गंगोत्री के लिए टैक्सी ले सकते हैं जो आपको 8-9 घंटे में गंगोत्री पहुँचा देगा।
रेल से: निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। यहाँ से आप टैक्सी ले कर 8-9 घंटे में गंगोत्री पहुँच सकते हैं।
रोड से: गंगोत्री के लिए आपको आसानी से देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार से बसें मिल जाएँगी। ये शहर दिल्ली एवं लखनऊ से जुड़ें हुए हैं और आपको यातायात के साधन आराम से मिल जाएँगे।
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