Friday, October 11, 2024
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गंगोत्री धाम का पौराणिक महत्त्व और इतिहास | History and hidden spritual importance of Gangotri Dham

गंगोत्री धाम – जहाँ स्वर्ग से धरती पर उतरती हैं माँ गंगा –

केदारखंड के चारों धामों में यमुनोत्री की यात्रा के पश्चात् गंगोत्री धाम की यात्रा करने का विधान है। परमपावनी गंगा का स्वर्ग से अवतरण इसी पुण्यभूमि पर हुआ था। सर्वप्रथम गंगा का अवतरण होने के कारण यह स्थान गंगोत्री कहलाया। यह धाम हरिद्वार से 282 किमी. और ऋषिकेश से 257 किमी दूर स्थित है।

प्राचीनकाल में गंगोत्री धाम की यात्रा बहुत कठिन समझी जाती थी। ऊँचे पर्वत-शिखरों, दुर्गम घाटियों और उच्छृंखल सरिताओं कारण पार करना सामान्य मनुष्य के लिए दुष्कर था परंतु अब यातायात की सुविधा होने के कारणयह यात्रा बदरीनाथ की ही तरह सरल हो गई है। पहले जड़ गंगा  में पुल न होने के कारण इस नदी को लकड़ी के पल से पैदल पार करना पड़ता था।

गंगोत्री की समुद्र-तल से 10,300 फीट ऊँचाई होने के कारण काफी ठंड पड़ती है। वर्षा होने पर ठण्ड की अधिकता बहुत बढ़ जाती है। गंगोत्री धाम को गंगा का उद्गम स्थान माना गया है। लेकिन गढ़वाल के भौगोलिक वर्णनों के अनुसार यहाँ इस नदी को गंगा न कहकर भागीरथी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के आधार पर  , स्वर्ग से अवतरित होकर गंगा तीन धाराओं में बंट गई थी – भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी।

जो धारा राजा भागीरथ के पीछे गई वह भागीरथी कहलाई। देवप्रयाग में ये तीनों नदियाँ एकत्रित होकर गंगा नाम से जानी जाने लगीं। गंगोत्री धाम  में गंगा का वास्तविक उद्मग स्रोत नहीं है। गंगा का उद्गम गंगोत्री से 24 किमी.आगे गोमुख नामक स्थान से हुआ है। यहाँ भागीरथ शिखर से गोमुख हिमनद से गंगा प्रवाहित हो रही है।

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गोमुख की समुद्रतल से ऊँचाई 12700 फीट है। यात्री गंगोत्तरी तक बड़ी सरलता से पहुँच जाता है। लेकिन गोमुख नहीं जा पाते हैं। अधिकांश यात्री गंगोत्तरी से लौट जाते हैं। गोमुख के लिए यातायात की सुविधा नहीं है। रास्ता काफी दुर्गम है। इसकी स्थिति 30°-59’-10” अक्षांश पर तथा 78°59′-30′ रेखांश पर है।

गंगोत्री धाम  का पौराणिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व –

पौराणिक कथाओं के आधार पर राजा भगीरथ ने श्रीमुख पर्वत पर कठिन तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रभावित होकर गंगा माँ ने स्वर्ग से भूलोक पर अवतरित होना स्वीकार किया, कहा जाता है कि उनकी वेगवती तीव्र धारा को पृथ्वी सहन न कर सकी, तब भगीरथ ने शिवजी को प्रसन्न करने हेतु सुमेरु पर्वत (सतोपंथ) पर तपस्या की।

तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने गंगा के भार को अपनी जटाओं में वहन किया, परंतु गंगा की धारा शिवजी की जटाओं में उलझ गई। पृथ्वी पर नहीं उतर पाई। भगीरथ द्वारा पुनः तपस्या करने पर प्रसन्न हो शिवजी ने जटाओं से गंगा को मुक्त किया। अब यह गंगा दस धाराओं में बहने लगी।

इनमें जो धारा भगीरथ के पीछे चली भागीरथी कहलाई। यह धारा-मोक्ष धारा के नाम से विख्यात हुई। शेष नौ धाराएँ अन्य दिशाओं को बह चलीं, जो एक-दूसरे से मिलती हुई देवप्रयाग में भागीरथी में मिलकर गंगा कहलाती हैं। गंगोत्री धाम में गंगा की धारा का प्रवाह उत्तर की ओर मुड़ जाने से इस स्थान को गंगोत्तरी कहा जाता है। यहाँ तर्पण, उपवास आदि करने से यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है और मनुष्य सदा के लिए ब्रह्मीभूत हो जाता है।

इसके अतिरिक्त वहाँ महालक्ष्मी,जाह्नवी,अन्नपूर्णा, यमुना, सरस्वती, भागीरथी व शंकराचार्य की मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। गंगा मंदिर के निकट ही शिवजी व भैरव का मंदिर है। मंदिर से नीचे उतरने पर भागीरथी की तीव्र धारा दृष्टिगोचर होती है।

वहाँ लोग स्नान करने जाते हैं। सीढ़ियाँ उतरते ही एक विशाल शिला है, जो भागीरथी शिला के नाम से विख्यात है। कहा जाता है कि राजा भगीरथ ने इसी शिला पर बैठकर गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करने के लिए तपस्या की थी। इसी स्थान पर यात्री पिंडदान करते हैं। यहाँ गंगाजी को तुलसी अर्पित करते हैं और यहीं पर ब्रह्मकुंड व विष्णुकुंड भी हैं।

गंगोत्री मंदिर के बारे में –

गंगोत्री धाम में पूजा का मुख्य स्थान गंगा-मंदिर है। इतिहास बताता है कि पहले यहाँ यमुनोत्तरी के समान ही कोई विशेष मंदिर नहीं था। 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में, जबकि गढ़वाल पर गोरखों ने अधिकार कर लिया, तो गोरखा सेनापति अमरसिंह थापा ने यहाँ गंगा-मंदिर का निर्माण कराया। उस समय इस मंदिर की ऊँचाई 16-20 फीट थी और इसके ऊपर कत्यूरी-शैली का शिखर चढ़ाया गया था।

एटकिन्सन ने 1882 ई. में इस स्थान की यात्रा की थी। उसने इस मंदिर का विवरण विस्तार से दिया है। उसके अनुसार इस मंदिर को गोरखा सेनापति अमरसिंह ने बनवाया था। यह उस शिलाखंड पर बनवाया गया था, जिसके लिए प्रसिद्ध है कि उस पर बैठकर भगीरथ ने तपस्या की थी।

यह वर्गाकार मंदिर 12 फीट ऊँचा था। इस गंगा-मंदिर के समीप ही इस स्थान के रक्षक देवता भैरव का एक छोटा-सा मंदिर बनाया गया।

गंगा-मंदिर में गंगा, भगीरथ तथा अन्य देवताओं की मूर्तियाँ हैं। मंदिर का प्रांगण चपटे पाषाणों से आबद्ध है। चारों ओर पत्थरों की बनी हुई दीवार है। इस प्रांगण के एक ओर छोटा-सा आवास है।कुछ लकड़ी के शेड तीर्थयात्रियों के लिए विश्राम के लिए बने हैं। तीर्थयात्री गुहाओं में भी ठहर जाते हैं। परंतु वर्तमान समय में अमरसिंह थापा द्वारा बनाए गए मंदिर का अस्तित्व नहीं है।

इस समय यहाँ एक भव्य और विशाल मंदिर है। इसकी रचना बाद में जयपुर के राजाओं ने कराई थी। गंगा मंदिर में मुख्य मूर्ति भगवती गंगा की है। इसके अतिरिक्त यहाँ महालक्ष्मी,अन्नपूर्णा, जाहनवी, यमुना, सरस्वती, भगीरथ और शंकराचार्य की मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठित हैं। गंगा-मंदिर के समीप ही एक भैरव मंदिर भी है।

इसमें शिव और भैरव की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। मंदिर से सीढ़ियाँ उतरकर भागीरथी पर स्नान करने के लिए जाते हैं।  सीढ़ियाँ उतरते ही एक विशाल शिला है, जो भगीरथ शिला कहलाती है।

कहा जाता है कि इसी शिला पर बैठकर राजा भगीरथ ने गंगा को स्वर्ग से अवतरित कराने के लिए तप किया था। इस स्थान पर पिंडदान आदि कर्म किए जाते हैं।

गंगोत्री धाम तक कैसे पहुँचें:

हवाई जहाज़ से गंगोत्री धाम : देहरादून का जॉली ग्रैंट एयरपोर्ट यहाँ से सबसे नज़दीक क़रीब 225 किमी दूर है। यहाँ से आप गंगोत्री के लिए टैक्सी ले सकते हैं जो आपको 8-9 घंटे में गंगोत्री पहुँचा देगा।

रेल से: निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। यहाँ से आप टैक्सी ले कर 8-9 घंटे में गंगोत्री पहुँच सकते हैं।

रोड से: गंगोत्री धाम जाने के लिए आपको आसानी से देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार से बसें मिल जाएँगी। ये शहर दिल्ली एवं लखनऊ से जुड़ें हुए हैं और आपको यातायात के साधन आराम से मिल जाएँगे।

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इस साइट के लेखक प्रमोद भाकुनी उत्तराखंड के निवासी है । इनको आसपास हो रही घटनाओ के बारे में और नवीनतम जानकारी को आप तक पहुंचना पसंद हैं।
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