Friday, September 22, 2023
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देवभूमि उत्तराखंड पर एक निबंध | An easy on Devbhoomi Uttarakhand in Hindi

देवभूमि उत्तराखंड पर निबंध | An easy on Uttarakhand

उत्तराखंड पर निबंध
देवभूमि उत्तराखंड

उत्तराखंड पर निबंध – देवभूमि उत्तराखंड, हिमालय की गोद मे बसा एक छोटा सा राज्य एक दम स्वर्ग सा दिखता है। हरी भरी ऊँची ऊँची पहाड़ियो से घिरा और यहा की पवित्र नदिया जो कि दुनियाभर मै  प्रसिद्ध और जानी जाती है। उत्तराखंड को देवभूमि इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां अनेक देवी देवता निवास करते हैं। माना यह जाता है की यहाँ तैतीस करोड देवी देवता निवास करते है । मुख्य रूप से चार धाम श्री बद्रीनाथ जो कि भगवान विष्णु का मंदिर है, श्री केदारनाथ भगवान शिवजी ,श्री गंगोत्री गंगा जी का उद्गम स्थल और श्री यमुनोत्री धाम यमुना नदी का उद्गम स्थल यहां स्थित हैं। इसके साथ सिखों का पवित्र गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब जिसे पांचवा धाम कहा जाता है भी स्थित है।

यहां अनेक शक्तिपीठ स्थित हैं जिनमें मुख्य रूप से मां धारी देवी, मां सुरकंडा देवी, मां कुंजापुरी ,मां पूर्णागिरि, मां विंध्येश्वरी देवी, मां नंदा देवी और मां चंद्रबदनी के भव्य मंदिर एवं सिद्ध पीठ शामिल हैं।
यहां पांच प्रयाग – विष्णुप्रयाग, सोनप्रयाग, कर्णप्रयाग रुद्रप्रयाग, एवं देवप्रयाग स्थित है जहां दो नदियों का संगम होता है।

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यहां ऋषिकेश के निकट मणिकूट पर्वत पर नीलकंठ महादेव का प्राचीन मंदिर है मान्यता है कि इसी जगह भगवान शिव ने सागर मंथन से निकले विष का पान किया था । यहां विशेषकर सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु जलार्पण करने के लिए आते हैं।
पूरे भारत में देवताओं, देवियों और महान ऋषियों ने जन्म पाया है लेकिन उत्तराखंड को ही देवभूमि कहलाने का गौरव मिला हुआ है। इसके पीछे कई कहानियाँ भी हैं और बहुत सारी सत्यता। मान्यता यह है सभी देवी देवताओं और ऋषि मुनी यहां तपस्या करने आया करते थे। कहते हैं ऋषि मुनियों ने सैकड़ों साल तपस्या करके इसे देवभूमि बनाया है, जिसका वैभव पाने के लिए श्रद्धालु मीलों की यात्रा करके अपने भगवान के दर्शन को आते हैं। इसलिये उत्तराखंड को तपभूमि भी कहा जाता है

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कहते है उत्तराखंड भगवान शिव का ससुराल है उत्तराखंड का दक्ष प्रजापति नगर।  पाण्डवों से लेकर कई राजाओं ने तप करने के लिए इस महान भूमि को चुना है। ध्यान लगाने के लिए महात्मा इस जगह को उपयुक्त मानते हैं और आते हैं। कई साधुओं ने यहाँ स्तुति कर सीधा ईश्वर की प्राप्ति की है। पाण्डव अपने अज्ञातवास के समय उत्तराखंड में ही आकर रुके थे।

कहते हैं महाभारत युद्ध के उपरांत पांडवों ने उत्तराखंड में बद्रीनाथ के रास्ते ही स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया था।

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