हिन्दू धर्म में सावन पवित्र महीना माना जाता है। यह महीना भगवान् शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। पुराणों में इस महीने भगवान शिव का पूजन और व्रत का बहुत महत्व बताया गया है। 

सावन में  कावड़ ला कर भगवान् भोलेनाथ का अभिषेक किया जाता है। अन्य कई धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। सावन भगवान् शिव का प्रिय महीना माना जाता है।

मगर उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों और मैदानी क्षेत्रों की सावन की तिथियों में अंतर पाया जाता है। एक  ही सावन का महीना अलग अलग तिथियों में क्यों मनाया जाता है ?

उत्तराखंड का सावन ,हिमाचली सावन और नेपाल का सावन अलग क्यों होता है ? इस सवाल का जवाब हमे काशी के प्रसिद्ध ज्योतिषचार्य पंडित गणेश मिश्र जी ,तथा अन्य ज्योतिश्चरयों के लेख में मिलता है।

ऐसी स्थिति प्रत्येक वर्ष हिन्दू पंचांग व्यवस्था के कारण होती है। देश के उत्तर मध्य और पुर्वी भागों ने पुर्णिमा के बाद नए हिन्दू महीने की शुरुआत होती है। 

इस पंचांग व्यवस्था में ,उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश आते हैं। इसलिए उनके सावन पूर्णिमा से शुरू हो कर पूर्णिमा के आस पास खत्म होते हैं।

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र, हिमाचल के कुछ हिस्सों में सौर पंचांग के अनुसार महीने शुरू व खत्म होते हैं। जब सूर्य भगवान् एक राशि से दूसरी राशि परिवर्तन करते हैं ,उस दिन से महीना शुरू और ख़त्म होते हैं।

सूर्य की राशि परिवर्तन  संक्रांति कहते हैं। यह संक्रांति हमेशा आंग्ल महीनों के बीच में पड़ती है। अर्थात प्रतिमाह संक्रांति 15 या 16  या 17 तारीख के आस पास पड़ती है। 

इसलिए हमेशा उत्तराखंड का सावन का महीना 16 या 17 जुलाई के आस पास से 15 , 16  अगस्त में ख़त्म हो जाता है। भारत के दक्षिण और पश्चिमी भाग में, हिन्दू माह अमावस्या के दिन से शुरू होते हैं।

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