Friday, October 18, 2024
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कुमाउनी राजपूत जातियां, भंडारी, बिष्ट और बोरा जाती के बारे में

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प्रस्तुत लेख में हम कुमाऊं केसरी श्री बद्रीदत्त पांडेय जी की प्रसिद्ध पुस्तक कुमाऊं के इतिहास के सहयोग से कुछ कुमाउनी राजपूत वंशों के बारे में जानकारी संकलित कर रहे हैं। यहां जातियों से तात्पर्य हम अपने नाम के आगे वंश नाम या उपनाम लगाते हैं ,उसके बारे संक्षिप्त विवरण कुमाऊं का इतिहास किताब के सहयोग से संकलित किया है ।

कुमाउनी राजपूत, बिष्ट जाती के बारे मे  :-

बिष्ट शब्द का अर्थ होता है, विशिष्ट या उच्च सम्मानीय। पांडे जी कहते हैं कि पहले यह एक पद होता था। और कालांतर में इस पद पर विराजमान लोगो को यह नाम जातिसूचक में मिल गया या कह सकते हैं कि उनके पद का नाम उनका जाती नाम हो गया। बिष्ट कश्यप,भारद्वाज और उपमन्यु गोत्र के होते हैं। बताते हैं कि बिष्ट जाती का आदिपुरुष चित्तौड़गढ़ से आया हुवा था। उपमन्यु गोत्र वाले बिष्ट उज्जैन से साबली ( गढ़वाल) आये  और वहां से फिर कुमाऊं में आये। बिष्ट जाती के लोग भी अन्य कुमाउनी राजपूत जातियों की तरह एक गोत्र में शादी नही करते हैं।

बिष्ट जाती के लोगों का कुमाऊं के इतिहास में बहुत बड़ा योगदान है। वे सोमचंद के समय देशिक शाशक चंपावत में रहे। और राजा रुद्रचंद के समय भी शक्तिशाली रहे । गैड़ा बिष्टों को राजा बाजबहादुर चंद लाये। राजा देवीचंद के समय गैड़ा बिष्ट सर्वे सर्वा रहे।

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कुमाउनी राजपूत ,बोरा जाति –

बोरारो के बोरा तथा कैड़ारो के कैड़ा जाती के लोगो को कई लोग बिष्ट ही बताते हैं। क्योंकि बोरा जाती के लोगों का गोत्र व शाखा भी बिष्टों की तरह है। बोरा जाती के लोगों का मूलपुरुष दानुकुमार काली कुमाऊं के कोटालगढ़ में रहता था । उसने राजा कीर्तिचन्द की कत्यूरी राजाओं को पराजित करने में बहुत मदद की। इसलिए राजा ने देवीधुरा से कोशी तक उसको जागीर में दे दी।

बोरा को खस राजपूतों में माना जाता है। वे शिव शक्ति को मानते हैं। और स्थानीय देवताओं में भूमिया,हरु, भैरव आदि को पूजते हैं। बोरारो पट्टी बोरा जाती के लोगों ने बसाई 6 राठ बोरे बोरारो में हैं। नैनीताल बेलुवाखान के थोकदार खुद को बोहरा लिखते हैं।

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कुमाउनी राजपूत

 

भंडारी जाती के बारे में –

भंडारी का शाब्दिक अर्थ होता है, भंडार का रक्षक या भंडारण की व्यवस्था देखने वाले । बद्रीदत्त पांडे जी ने भंडारी जाती को चन्द्रवंशी राजपूतों की श्रेणी में रखा है। आगे बताते हैं कि भंडारी जाती के लोग मूलतः चौहान हैं

बताया जाता है, कि भंडारी जाती का मूलपुरुष राजा सोमचंद के राज में ,राजा का भंडारी था । पांडे जी बताते हैं कि भंडारी जाती के लोग सर्वप्रथम चंपावत के पास वजीरकोट में बसे थे। बाद में राजधानी अल्मोड़ा आने के बाद उन्हें अल्मोड़ा के पास भंडरगावँ,( भनरगावँ )में बसाया गया । उसके बाद पूरे कुमाऊं में अलग अलग गावों में भंडारी लोग फैल गए । अल्मोड़ा का प्रसिद्ध भनारी नौला भंडारी जाती के लोगों ने बसाया था। भंडारी जाती के बारे में,  दूसरी कहानी इस प्रकार है कि कहा जाता है ,उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में भंडारी राजपूत नेपाल डोटी से आये। और नेपाल में उन्हें महाराष्ट्र के कोंकण से आया हुवा बताते हैं।

त्यौहारों का सामान, अन्य सामान,माल, राजा की आमदनी या कुमाऊं की आमदनी रखने का नाम भंडार था। और उसके निरीक्षक अफसर भंडारी कहलाते थे। वर्ण व्यवस्था में भंडारी जाती के लोग कुमाउनी राजपूत में आते हैं।

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कोशी नदी उत्तराखंड, कुमाऊं मंडल की प्रमुख नदी से जुड़ी कहानियां

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कोशी नदी उत्तराखंड

सर्वप्रथम हम यहाँ स्पष्ट करना चाहते हैं, कि यह लेख उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में बहने वाली कोशी नदी के बारे में है । जिसका पौराणिक नाम कौशिकी नदी है। इस कोशी नदी के अलावा नेपाल से निकलने वाली बिहार में बहने वाली कोसी नदी भी है।

कोशी नदी भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। यह नदी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में बहती है। यह रामगंगा नदी की प्रमुख सहायक नदी है। इस नदी का उद्गम कौसानी के पास धारापानी नामक स्थान है। वहाँ से यह नदी ,सोमेश्वर से अल्मोड़ा की कोशी घाटी हवालबाग , खैरना,गरमपानी ,कैंची के बाद सल्ट पट्टी के मोहान तक उत्तर पक्षिम में बहती है। और उसके बाद एक तीखा मोड़ लेकर दक्षिण पक्षिम को बहते हुए, बेतालघाट होते हुए रामनगर के रास्ते मैदानों में उतर जाती है।

रामनगर से सुल्तानपुर से उत्तर प्रदेश का सफर शुरू करते हुए,रामपुर के बाई से गुजरती है। चमरौल के पास यह नदी रामगंगा में मिल जाती है। ये उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल और यूपी में कुल मिलाकर यह नदी 225 किलोमीटर बहती है।कोसी नदी (कौशिकी नदी) की 118 सहायक नदियाँ तथा  छोटी जल धाराएं हैं। जिन्हें स्थानीय भाषा मे गधेरे कहा जाता है।कोशी नदी की प्रमुख सहायक नदियों व जलधाराओं  में, नान कोशी, सुयाल नदी, उलाबगाड ,कुचगाड़ ,रामगाड़ आदि प्रमुख हैं।

दशकों पहले खूब खिल खिलाकर  बहने वाली कोशी नदी आज धीरे धीरे विलुप्ति की कगार पर है। बस बरसात में कोशी नदी विकराल रूप धरती है। और आम जन को काफी परेशानी होती है।

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कोशी नदी की लोक कथा :-

उत्तराखंड की लोककथाओं के अनुसार कोशी नदी को शापित नदी बताया गया है। कहते हैं ,कोशी, रामगंगा ,भागीरथी, सरयू ,काली  गंगा, गोरी गंगा ,यमुना कुल साथ बहिनें थी। एक बार इनकी साथ चलने की बात हुई मगर 6 बहिनें समय पर नही पहुँची तो कोशी  को गुस्सा आ गया और वो अकेले चल दी। जब बाकी की 6 बहिनें आई तो उनको कोशी के बारे में पता चला कि वो तो चली गई। तब बाकी बहीनों ने कोशी को फिटकार ( श्राप दिया ) कि वो हमेशा अलग थलक बहेगी और उसे कभी भी पवित्र नदी नही माना जायेगा।

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कोशी नदी उत्तराखंड

कुमाऊं का इतिहास में कोसी नदी की पौराणिक कथा :-

उत्तराखंड के प्रसिद्ध इतिहासकार श्री बद्रीदत्त पांडे जी ने अपनी प्रसिद्ध किताब कुमाऊं का इतिहास में कोसी नदी की पौराणिक कथा का कुछ इस प्रकार वर्णन किया है।

ऋषि कौशिकी के द्वारा कौशिकी नदी उर्फ कोसी नदी का अवतरण धरती पर कराया गया था । ऋषि कौशिकी  भटकोट शिखर पर बैठ तपस्या और पूजा अर्चना करते थे। एक बार उन्होंने स्वर्ग की ओर हाथ उठाकर माँ गंगा की स्तुति की तो माँ गंगा की एक जल धार उनके हाथ मे प्रकट हुई । जिसे उन्होंने जन कल्याण हेतु भटकोट ,बूढ़ा पिंननाथ शिखर के दक्षिण पक्षिम से आगे की यात्रा के लिए छोड़ दिया। जो सोमेश्वर महादेव, पिनानाथ महादेव, बड़आदित्य ( कटारमल सूर्य मंदिर ) मा कात्यायनी देवी ( स्याही मंदिर अल्मोड़ा ) इसके बाद शेष पर्वत ( खैरना, बेटलघाट ) मध्देश ( मैदानी क्षेत्र) में चली जाती है।

इस नदी का ऋषि कौशिकी द्वारा धरती पर अवतरण कराने के कारण इस नदी का नाम कौशिकी नदी पड़ा जो कालांतर में कोसी नाम मे परिवर्तित हो गया । अल्मोड़ा के एक कस्बे का नाम कोसी इसी नदी के नाम पर पड़ा है।

इन्हे पढ़े –

कंडोलिया देवता के रूप में विराजते हैं, गोलू देवता पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड में

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कंडोलिया देवता

कंडोलिया मंदिर पौड़ी गढ़वाल का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर पौड़ी गढ़वाल जिला मुख्यालय से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर प्राकृतिक, नैसर्गिक सुंदरता के बीच बसा है। इसके चारों ओर ऊँचे और सुंदर देवदार, बांज आदि के सघन वृक्ष हैं। पौड़ी समुद्र तल से 1814 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।

इस मंदिर के पास कंडोलिया पार्क  भी स्थित है। जो उत्तराखंड का पहला  लेज़र थीम पार्क है। कंडोलिया मंदिर की चोटी से हिमालय की चोटियों और गंगवारस्यू घाटी के रमणीय दर्शन होते हैं। कहते हैं कि कंडोलिया देवता चंपावत से पौड़ी आये डुंगरियाल नेगी जाती के लोंगो के कुल देवता हैं, जिन्हें भूमिदेवता का सम्मान देकर कंडोलिया देवता के रूप में पूजा जाता है। कंडोलिया मन्दिर से 2 किलोमीटर दूर भगवान शिव का पौराणिक मंदिर क्यूंकालेश्वर मंदिर स्थित है। तथा 1.5 किलोमीटर दूर एशिया का दूसरा सबसे ऊंचा  रांसी स्टेडियम है। यहाँ प्रतिवर्ष हजारों लोग कंडोलिया ठाकुर जी के दर्शनों के लिए आते हैं।

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कंडोलिया देवता

कंडोलिया देवता की कहानी –

कंडोलिया देवता के बारे में अनेक कहानिया प्रचलित हैं। कुछ स्थानीय लोगो का मानना है कि ये भगवान शिव का स्वरूप हैं। जब पौड़ी के पहले निवासी पौड़ी आये ,तब वे अपने साथ देवता को लेकर आये। पहले कंडोलिया देवता को नीचे पौड़ी में मंदिर था। बाद में कंडोलिया ठाकुर किसी के स्वप्न में आये उन्होंने कहा कि मेरा मंदिर ऊँचे स्थान पर होना चाहिए। फिर कंडोलिया देवता का मंदिर ऊँचे टीले पर स्थापित किया गया।

चंपावत के डुंगरियाल नेगी जाती के लोग जो पौड़ी में बसे हुए हैं,वे इनके पुजारी हैं। यहाँ के लोग इन्हें धावड़िया देवता के नाम से भी पुकारते थे। क्योंकि क्षेत्र में कोई भी संकट आने वाला होता था तो , ये आवाज लगाकर लोगों को आगाह कर देते थे।

दूसरी कहानी इस प्रकार है, कि चंपावत से डुंगरियाल नेगी जाती के लोग पौड़ी आये और अपने साथ अपने इष्टदेवता गोलु देवता ( गोरिल देवता ) को कंडी में रख कर लाये । या यह कहानी इस प्रकार भी है, बहुत साल पहले पौड़ी के डुंगरियाल नेगी जाती के लोगों के लड़के की शादी कुमाऊं से हुई । तब कुमाऊं की दुल्हन अपनी कंडी में अपने इष्ट देवता गोलू देवता को पौड़ी लाई इसलिए इनका नाम कंडोलिया देवता पड़ा।

कंडोलिया ठाकुर  से जुड़ी हर कहानी का अर्थ एक ही निकलता है, कि इनसे कोई और नही स्वयं उत्तराखंड के न्याय के देवता गोलू देवता हैं। क्योंकि गोलू देवता को ही भगवान शिव के गौर भैरव का अवतार माना जाता है। और गोलू देवता को भूमिया देवता के रूप में भी पूजा जाता है।

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पौड़ी गढ़वाल के अन्य मंदिरों के बारे में यहाँ देखें

तिले धारू बोला का मतलब और तिले धारू बोला से जुड़ी कहानी

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तिले धारू बोला

मित्रों अक्सर हम अपने पहाड़ी गीतों में, गढ़वाली और कुमाउनी गीतों में एक प्राचीन और प्रचलित तुकबंदी सुनते हैं ,”तिले धारू बोला” और हमारे दिमाग मे अकसर यह चलता रहता है कि तिले धारू बोला का मतलब क्या होता होगा?

उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने इसका अर्थ कुछ इस प्रकार बताया, “तिले धारू शब्द हमारे वीर भड़ो के लिए इस्तेमाल होता था। इसका शाब्दिक अर्थ है, तिल धारी बोल, जो गाते गाते तिले धारू बोला हो गया।

इसका मतलब तूने एक बोल रख दिया, तूने एक मिसाल कायम कर दी। तिल धारी बोल.. तिल धारी बोल.. गाते गाते बाद में तिले धारू बोला बन गया। असल मे यह लाइन उसके लिए गाई जाती थी, जो वीरता के काम करता था या शाबाशी के काम करता था।लेकिन आजकल हर चीज में तिले धारू बोला जोड़ दिया जाता है।

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तिले धारू बोला

तिले धारू बोला पर आधारित लोक कथा

तिले धारू बोला तुकबंदी के जन्म पर एक पुरानी ऐतिहासिक कहानी जुड़ीं हुई है। यह कहानी है ,कुमाऊं मंडल के कत्यूरी राजाओं के विनाश या कत्यूरी वंश के समापन से जुड़ी है। जिसका विवरण उत्तराखंड के प्रमुख इतिहासकार श्री बद्रीदत्त पांडेय जी ने कुछ इस प्रकार किया है

राजा धामदेव और वीर देव से कत्यूरी वंश का नाश होना शुरू हुवा था। कहाँ जाता है,कि जब ये अंतिम राजा अपने भंडार से गेहूं पीसने के लिए उल्टी नाली से भरकर देते थे ।औऱ आटा सुलटी (सीधी) नाली से भरकर लेते थे। हर गावँ को बेगार देनी पड़ती थी।कर का कोई नियम नही था, जैसे चाहे वैसे ले लिया । जिसके घर से चाहे उसके घर से ले लिया। घर मे जो सुंदर लड़के और लड़कियां होती थी, उन्हें नौकर बनाने के लिए जबरदस्ती उठा लेते थे।

उनके राजमहल से लगभग 6 मील दूर हथछिना नौला ( कौसानी ) का पानी स्वास्थ्य वर्धक माना जाता था। दोनो राजाओं के लिए ताज़ा पानी वहीं से मंगाया जाता था। इस पानी को मंगाने के लिए , नौले से राजमहल तक सेवको को लाइन से खड़ा करके हाथों हाथ पानी मंगाया जाता था। कुल मिलाकर कत्यूरी वंश के अंतिम राजा अत्यंत अत्याचारी हो गए थे ,जिस कारण उनका पतन निश्चित हुवा।

कत्यूरी राजा अत्याचार करने का सिलसिला यही नही रुका, हद तो तब हुई जब राजा वीरदेव का दिल अपनी मामी  तिलोत्तमा देवी पर आ गया और उसने तिलोत्तमा देवी से बलपूर्वक विवाह रचा लिया। इस घटना को उत्तराखंड के इतिहास में कलंक कहा जाता है।

कहा जाता है,कि इसी घटना से तिले धारू बोला उत्तराखंड की प्रचलित तुकबंदी का जन्म हुआ। कहते हैं कि उस समय के लोगों ने तिलोत्तमा देवी के बलिदान और साहस को सराहने के लिए या तिलोत्तमा देवी पर तरस के भाव से यह लाइन ,तिले धारू बोला बोली गई।जो कालांतर लगभग सभी लोक गीतों में तुकबन्दी के रूप में लगने लगी।

कत्यूरी वंश के अंतिम शाशको के अत्याचार इतना बढ़ गया ,था कि खुद उनका जनता से भरोसा उठ गया था। वे राजा जब कहीं जाते थे तो ,डोली (पालकी ) को डोली ले जाने वालों के कंधों पर बांध देते थे। ताकि स्वयं गिरने के डर से ,डोली ले जाने वाले राजा को पहाड़ से गिराने की साजिश ना करें।

कहते हैं तिलोत्तमा देवी और जनता ने मिल कर प्लान बनाया या कुछ कहते हैं कि तिलोत्तमा शर्म के मारे पहले आत्महत्या कर चुकी थी। तब लोगो ने राजा को मारने का प्लान बनाया और इस योजना में जनता का साथ दिया ,राजा की डोली ले जाने वाले दो नौजवानों ने।

एक दिन जब राजा की डोली उन दो नौजवानों को ले जाने का मौका मिला ,तो पूर्व योजना  के अनुसार दोनो नौजवान राजा को साथ लेकर गहरी खाई में कूद गए और दो नौजवानों की शहादद के कारण अत्याचारी राजा का नाश हुवा। डोली कंधे से बंधी रहती थी,इसलिए दोनो का शाहिद होना जरूरी हो गया था।

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संदर्भ उपरोक्त लेख का संदर्भ उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक श्री नरेन्द्र सिंह नेगी के साक्षात्कार का अंश व उत्तराखंड के प्रसिद्ध इतिहासकार श्री बद्रीदत्त पांडेय जी की पुस्तक कुमाऊं का इतिहास से लिया गया है।

“जैसा कि श्री नरेन्द्र नेगी जी ने बताया कि तिले धारू बोला का प्रयोग प्राचीन काल मे वीर भड़ो के लिए या जो अच्छा कार्य करते थे उनके लिए होता था। और कुमाऊं के इतिहास का रानी तिलोत्तमा का प्रसंग नेगी जी बात को यथार्थ करता है। किंतु आजकल बिना इस तुकबंदी का अर्थ जाने इसे हर गीत में प्रयोग किया जाता है।

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हरियाली देवी मंदिर, उत्तराखंड में बसा है योगमाया का यह पवित्र धाम

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हरियाली देवी मंदिर

हरियाली देवी मंदिर, हरियाली देवी  को समर्पित यह प्राचीन सिद्धपीठ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में अव्यस्थित है। हरियाली माई की बाला और वैष्णो देवी के रूप में भी पूजा की जाती है।

हरियाली देवी मंदिर ,उत्तराखंड रुद्रप्रयाग जिले के नगरासू – डांडाखाल रोड पर गौचर के बीच जसोली गावँ में स्थित है। यह प्रसिद्ध सिद्ध पीठ समुद्र तल से 1371 किमी की उचाई पर स्थित है। नगरासू से जसोली गांव लगभग 22 किलोमीटर दूर है। और जसोली गांव जहाँ हरियाली माता का मंदिर है वहां से लगभग 8 किलोमीटर दूर हरियाली कांठा में स्वयंभू भगवान् भोलेनाथ का शिवलिंग व्यस्थित है। इस पर्वत को हरी पर्वत या हरियाल पर्वत भी कहते हैं। हरियाली देवी मंदिर भारत के 58 सिद्धपीठों में से एक है।

हरियाली मंदिर का इतिहास व् पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं  के अनुसार , द्वापर युग में अत्याचारी कंस ने अपनी बहन देवकी के सभी सन्तानो को मार दिया था ,तब आठवीं संतान के रूप में भगवान् कृष्ण ने जन्म लिया और उधर गोकुल में ,योगमाया ने कन्या के रूप में जन्म लिया। जब भगवान् की इच्छा से दोनों की अदला बदली की गई तो ,कृष्ण गोकुल चले गए और योगमाया रूपी कन्या कंस के हाथ लग गई। जब कंस ने उसे जोर से जमीन पर पटका तो, उसके शरीर के टुकड़े अलग अलग स्थानों में गिरे और वहीँ देवी माँ के  सिद्धपीठ की स्थापना हुई।

ऐसी प्रकार रुद्रप्रयाग के हरियाली कांठा में माता की जांघ गिरी तो वहां मंदिर बन गया। कुछ कथाकार कहते हैं कि कंस के हाथ से गायब  होने के बाद ,देवी हरियाली कंठा से प्रकट हुई। इस मंदिर की खोज सर्वप्रथम ग्राम पाबो के ग्रामवासियों ने की, गांववालों ने देखा की एक गाय हमेशा अपना दूध जंगल में खाली कर आ जाती है। एक दिन पता लगाने की नियत से गांव वाले उस गाय के पीछे जंगल में गए तो वहां उन्होंने देखा कि गाय वहाँ हरी पर्वत  पर अपना दूध चढ़ा रही है। लोगो ने वहां पर माता का मंदिर स्थापित कर दिया।  हरी पर्वत पर मंदिर होने के कारण, यह मंदिर हरियाली देवी मंदिर कहलाया।

हरियाली कंठा का मंदिर मार्ग अति दुर्गम होने के कारण वहां प्रतिदिन पूजा पाठ नहीं हो सकती थी इसलिए निचे जसोली गावं में एक अन्य मंदिर स्थापित किया गया जिसका नाम हरियाली देवी है। इस मंदिर में मुख्यतः तीन मूर्तियां हैं, पहली माँ हरियाली देवी की मूर्ति है, दूसरी मूर्ति यहाँ के क्षेत्रपाल देवता की है।  और तीसरी मूर्ति हीत देवी की है।

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हरियाली देवी की यात्रा

हरियाली देवी की राज जात अपने आप मे उत्तराखंड की अनोखी राज जात है। जो रात में चलती और सुबह गंतव्य तक पहुच जाती है। हरसाल में दो बार हरियाली कांठा में मुख्य मंदिर में दर्शनों के लिए जाते हैं। पहली यात्रा रक्षाबंधन के दिन की जाती है। दूसरी यात्रा दीपवाली के समय होती है।

दीपावली में देवी के स्नान के लिए पाबौ गांव के लोग उस गाय का दूध लाते हैं,जिसका सींग ना टुटा हो। तिरोदशी की रात को जसोली गावं से ,हरियाली देवी की डोली लाटू और हीत देवी के साथ निशान सहित प्रस्थान करती है। रस्ते में कोदिमा नामक गावं में दो घंटे का विश्राम किया जाता है।इसी विश्राम के अंतर्गत भजन कीर्तन  होते हैं। कोदिमा से रात 10 बजे आगे बढ़ते हुए , बाँसो नमक स्थान पर डोली और यात्रियों का विश्राम होता है। भजन कीर्तन पूर्वतः चलते रहते हैं।

इसके बाद पंचरंगया नामक स्थान पर सूक्ष्म विश्राम के साथ देवी स्नानं के लिए जल की व्यवस्था यहीं  होती है। यही पुजारी व् भक्तगण स्नान करते हैं। यहाँ से देवी की डोली सीधे हरी पर्वत के लिए प्रस्थान करती है। और सुबह सूर्योदय के साथ हरियाली कंठा स्थित मूल  मंदिर हरियाली देवी के प्रांगण में पहुंच जाती हैं। उसके बाद हरियाली कांठा में ,पूजा पाठ और माता का पुजारी के शरीर में अवतार लेकर सभी क्षेत्रवासियों को आशीष देती है।

इसके बाद वापस जसोली के लिए प्रस्थान करते हैं। कोदिमा , बसों और जसोली में माता की डोली की पूजा होती है। इस यात्रा में ढोल दमऊ वाले जसोली से कोदिमा तक ही जाते है। इस यात्रा में देवी के रक्षक लाटू और हीत डोली के आस पास रहते हैं।

उत्तराखंड का पनीर गाँव , जहाँ पनीर मुख्य आजीविका का श्रोत है।

 यात्रा और मंदिर में पूजा के कठोर नियम हैं

हरियाली देवी शक्तिपीठ का पौराणिक महत्व बहुत है। यहाँ पौराणिक परम्परायें आज भी जीवंत हैं।यहां परम्पराओं के साथ आज भी सात्विक नियमो का कठोरता से पालन किया जाता है।मंदिर में प्रवेश के लिए श्रद्धालुओं को लगभग एक सप्ताह पूर्व मांस मदिरा और प्याज लहसुन का त्याग करना पड़ता है। यात्रा में जसोली से हरियाली कांठे तक कि यात्रा नंगे पांव की जाती है। मेले में गए यात्रियों के लिए कम्बल बर्तन की व्यवस्था होती है। सूखा राशन  घर से लेकर जाना पड़ता है।

जसोली गावँ में जन्माष्टमी धूम धाम से मनाई जाती है। और इस मंदिर में हरियाली बोई जाती है। जिसे नवमी के दिन काट कर श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया जाता है।

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गढ़वाली जागर नारेणी मेरी माता भवानी लिरिक्स।

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गढ़वाली जागर

नवरात्रि के शुभावसर पर आज हम आपके लिए , माँ भगवती के गढ़वाली जागर लिरिक्स लेकर आये हैं। ये गढ़वाली जागर लिरिक्स, जागर सम्राट के नाम से प्रसिद्ध प्रीतम भरतवाण जी की प्रसिद्ध गढ़वाली जागर ,नारेणी मेरी माता भवानी के हैं।माता भगवती को समर्पित लोक गायक प्रीतम भरतवाण जी की यह सबसे प्रसिद्ध गढ़वाली जागर है। तो मित्रों आइये आनंद लेते हैं, माता की गढ़वाली भजन का –

गढ़वाली जागर नारेणी मेरी माता भवानी –

जय शक्ति , शक्तिेश्वरी ब्रह्मा विष्णु माहेश्वरी।
त्रिलोक जननी विजे विस्विनी माधवी
दुर्गा भवानी जगत वन्दनी नारायणी
प्रथमें शैलपुत्री ,द्वितीये ब्रह्मचारिणी ,
तृतीये चन्द्रघण्टेति का,चतुर्थी कूष्मांडा की
पंचमे स्कंद माता,षष्टमे कात्यायनी
सप्तमे कालरात्रि अस्टमे  माँ गौरी।।
नवमे  सिद्धिका ,नव दुर्गा भवानी नमोस्तुते ये ये आ आ.. . . . .
नारेणी ज्वाला दुर्गा भवानी।
त्रिलोक तारणी माँ जगदंबा भवानी
नारेणी  ज्वाला दुर्गा भवानी
त्रिलोक तारणी माँ जगदंबा भवानी।।
नारेणी मेरी माता भवानी
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी।
जगदम्बा भवानी नारेणी जगतबंधनी माता,
शक्ति स्वरूपिणी माँ अनंत  विजया।
हे दयालु माँ अनंत विजया
शक्ति स्वरूपिणी माँ अनंत विजया।
हे दयालु माँ अनंत विजया।।
नारेणी मेरी माता भवानी
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी।

माता जगदम्बा भवानी नारेणी  जगतबंधनी शैलपुत्री
दानवी अत्याचार माँ जब जब होये।
तब तब माता न अवतार लीनीये
दानवी अताचार मा जब जब होये।।
तब तब माता कू अवतार होये।।
नारेनी मेरी माता भवानी।
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी।।
दानवी अत्याचार मां जब जब होय।
तब तब माता न अवतारी लीनी
दानवी अत्याचार मा जब जब होय।।
तब तब माता कू अवतार होये।।
नारेणी  मेरी माता भवानी।
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी।

हा राजा दगशको को जब जग्य होये।
कैलाश पति बाबा क न्युतो नी गये
राजा दगसको जब जग्य होये
कैलाश पति बाबा क न्युतो नी गये।।
नारेणी  मेरी माता भवानी।
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी।।
हा अण न्योति माता सती कनखल पहोचे।
स्वामी को मा न आपमान समझे
अण न्योति  ज्वाला कनखल पहोंचे
स्वामी जी कू माता न आपन समझे।।
नारेणी मेरी माता भवानी।
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी।।
तब सती माता ले देह त्याग करे।
हवन कुंड मा देह त्याग करे।
तब माता सती जी न देह त्याग करे।
पीता का जग्य मा देह त्याग करे।।
नारेणी मेरी माता भवानी।
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी।।

हा माता सती जी की पावितर काया
शिव जी न चौ दिशाओं घुमाये
माता सती के पावितर काया
शिव जी न तब चौ दिशाओं घुमाये।।
नारेणी  मेरी माता भवानी।
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी।।
जगतबंधनी महामाई  ब्रह्मा विष्णु माहेश्वरी,
नारेण का चक्र से माँ सती जी का अंश
इ धरती मा जख जख पड़ीन।
वख वख माँ का सिद्धपीठ बणिन।।
हे जगतंबा सिद्धपीठ बणिन।।
नारेणी  मेरी माता भवानी।
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी।।
चन्द्रबदनी सुरकंडा सुरी जगदंबा भवानी
मठियाना  माई धारि देवी
हां…..

 

 

 

ऊँचा रंसुली तू मेरु माँ माता
मेरी माँ सुरकंडा मैं पाराज लगौलु
ऊँचा रंसुली तू मेरु माँ ऐ माता
मेरी माँ सुरकंडा मैं पाराज लगौलु।।
नारेणी मेरी सुरकंडा भवानी
हे जगदम्बा मेरी सुरकंडा भवानी
हां दैणी होया दैणी माँ चन्द्रबदनी
हे मेरी माता मैं पराज लगौलू
जस कुशल देली मेरी माता
हे मेरी माता मैं बडौली लगौलू
नारेणी  मेरी चन्द्रबदनी।
हे जगदम्बा मेरी चन्द्रबदनी।।

हां दयालु भगवती मेरी माता कुंजापुरी
हे मेरी माता मैं पराज लगौलू।
हथून न अरज मन सुमिरन करोलु।।
हे मेरी ज्वाला मैं पराज लगौलु।
नारेणी  मेरी माता कुंजापुरी।
हे जगदम्बा मेरी माता कुंजापुरी।।
हां मैठ्याण खाल होली मेरी माँ मैठ्याणा
हे मेरी माता मैं पराज लगौलू।।
जगतबंधनी माँ सुमिर करौलू
हे मेरी माता मैं सुमिरन करौलु।।
नारेणी  मेरी माता मैठ्याणा
हे जगदम्बा मेरी माता मैठ्याणा
हां आ। ..

नारायणी ज्वाला दुर्गा भवानी।
त्रिलोक तारणी माँ जगदंबा भवानी।।
नारेणी  मेरी माता भवानी
त्रिलोक तारणी माँ जगदंबा भवानी।।
नारेणी  मेरी माता भवानी
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी।
रिधि सिद्धि दाता मनोकामना
पूर्ण करण वाली माता
जगदंबा भवानी नारायणी
हां शत्रु संहारिणी माँ दैत्य नाशिनी।
विपदा हरिनि माँ त्रस तारिणी
शत्रु संहारिणी माँ दैत्य नाशिनी।।
विपदा हरिनि माँ त्रस तारिणी
नारेणी मेरी माता भवानी।
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी।।
नारेणी  मेरी माता भवानी
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी
नारेणी  मेरी माता भवानी
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी
नारेणी  मेरी माता भवानी
हे जगदम्बा मेरी दुर्गा भवानी।।

गढ़वाली जागर

सुरकंडा देवी मंदिर के बारे में जाने के लिए यहाँ क्लीक करें।

गढ़वाली जागर , नारेणी मेरी माता भवानी के बारे में –

गायक – जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण
संगीत निर्देशक – H .सोनी पम पम ,राजेंद्र प्रसन्ना
गीत – प्रीतम भरतवाण
अल्बम – सरूली
म्यूजिक लेबल – T -SERIES

पहाड़ी भट्ट की चटनी की आसान रेसिपी देखिये यहाँ।

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पहाड़ी भट्ट की दाल के फायदे और पहाड़ी भट्ट की चटनी ।

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मित्रों इस लेख में हम आपको पहाड़ी भट्ट की चटनी की रेसिपी के बारे में जानकारी देंगे । भट्ट की चटनी से पहले हम यहां संक्षेप में काले भट्ट खाने के फायदे और उसमे पाए जाने वाले पोषक तत्वों के बारे लेख शुरू करके अंत मे स्वादिष्ट भट्ट की चटनी का आनंद लेंगे।

पहाड़ी भट्ट के बारे में –

पहाड़ी भट्ट (Pahari bhatt) , काले भट्ट  हमारे पहाड़ में उगाई जाने वाली मुख्य दाल है। यह बहुत ही पौष्टिक और स्वादिष्ट होते हैं। पहाड़ी काले भट्ट मुख्यतः एशिया , चीन की प्रजाति है। अमेरिका वाले भी पहाड़ी भट्ट को बहुत पसंद करते हैं। पहाड़ी भट्ट को ब्लैक सोयाबीन, ब्लैक राजमा आदि नामों से भी जानते हैं।

 भट्ट के व्यंजन :-

उत्तराखंड में काले भट्टो का सेवन अलग अलग रूपों में किया जाता है। काले भट्ट से कई प्रकार के पारम्परिक व्यंजन भी बनते है। काले भट्ट से बनने वाले  प्रमुख व्यंजन निम्न है –

  • भट्ट की दाल या भट्ट की चुड़कानी
  • भट्ट का चौसु
  • भट्ट के डूबके
  • भट्ट का जौला
  • भट्ट की चटनी
  • भुने भट्ट के स्नेक्स

“पहाड़ी भट्ट की चटनी की रेसीपी हम इस लेख के अंत मे आपके साथ सांझा करेंगे।”

 भट्ट की दाल के फायदे –

काले भट्ट एक सर्वगुणकारी दाल है। इसके सेवन के अनेक लाभ हैं। काले भट्ट खाने के फायदे निम्न प्रकार है –

  • काले भट्ट या पहाड़ी भट्ट में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के सभी गुण होते हैं।
  • पहाड़ी भट्ट दिल के रोगियों के लिए सर्वोत्तम औषधि है। कोलोस्ट्रोल में भी लाभकारी हैं काले भट्ट ।
  • मधुमेह में सर्वगुण सम्पन्न है काले भट्ट की दाल
  • काले भट्ट में लेसिथिन नामक तत्व  पाया जाता है जो लिवर को स्वस्थ रखता है।
  •  भट्ट में कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इस कारण हड्डियों से होने वाली समस्याओं के लिए काले भट्ट रामबाण हैं।
  • पहाड़ी काले भट्ट प्रोटीन का उन्नत श्रोत है। नॉनवेज भोजन के बराबर या उससे भी ज्यादा प्रोटीन काले भट्ट की दाल या चौसु में मिलता है
  • भट्ट वजन घटाने में मदद करते हैं।
  • इसमे फाइटो स्ट्रोजन्स और  जेन्स्टेन नामक तत्व पाए जाने के कारण ये कैंसर के लिए सर्वोत्तम है।

इसे भी पढ़िए :- कुमाउनी रायता उत्तराखंड का अल्टीमेट स्वाद।

पहाड़ी भट्ट में पोषक तत्व :-

पहाड़ी काले भट्ट में निम्न पोषक तत्व पाए जाते हैं :-

  1. प्रोटीन
  2. आयरन
  3. फास्फोरस
  4. मिनरल्स
  5. कैल्शियम
  6. वसा
  7. कार्बोहाइड्रेट
  8. मैग्नेशियम
  9. विटामिन -के
  10. रिबोफ्लेविन , कॉपर
  11. लेसिथिन
  12. फाइटो स्ट्रोजन्स और जेन्स्टेन

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पहाड़ी भट्ट की चटनी | रेसिपी | सामग्री –

दोस्तों आपने भट्ट की चुड़कनी , भट्ट की दाल , भट्ट का चौसा , भट्ट का चौसु , भट्ट का जौला, भट्ट के डूबके के स्वाद का आनंद लिया होगा । आज आपको भट्ट की दाल का एक नये व्यंजन के बारे में बताइयेंगे , जिसका नाम है, पहाड़ी भट्ट की चटनी । इस नए व्यंजन का स्वाद बहुत ही खास और बेहतरीन है और बनाने में भी बहुत आसान है।

रोज एक सी सब्जी और दाल खा कर बोर हो गए तो ट्राय करें ,चटपटी भट्ट की चटनी जो स्वादिष्ट होने के साथ स्वास्थ्यवर्धक भी है।

पहाड़ी भट्ट

भट्ट की चटनी बनाने के लिए सामग्री :-

भट्ट की चटनी बनाने के लिए निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है ,जो कि हमारे घर मे आसानी से उपलब्ध रहती है –

  • काले भट्ट – 1 कटोरी
  • हरी मिर्च – 3- 4 या स्वादनुसार
  • अदरक – 1 एक छोटा टुकड़ा
  • नीबू – 1या 2 स्वादानुसार ( आपको जितना खट्टा अच्छा लगता हो )
  • नमक – स्वादानुसार
  • हरा धनिया – सजाने के लिए।
  • लाल मिर्च – यदि ज्यादा चटपटा करना हो तो।

पहाड़ी भट्ट की चटनी की रेसिपी –

  • सर्वप्रथम ऊँची आंछ पर तवा गर्म कर ले
  • फिर आंछ मीडियम करके उसमे बीने हुए काले भट्ट डाल भून लें, भटों को तब तक भूने ,जब तक उसमे हल्की सी भुनी वाली खुशबू न आ जाय। जिसको हमारे पहाड़ में भुटेनी कहा जाता है। या देखे की लगभग सभी काले भट्ट में बीच से हल्की सफेद लाइन बन गई हो ,तो समझ ले भट्ट भून गए हैं।
  • उसके बाद भट्ट को अलग निकाल के मिक्सर में चटनी वाले जार में रख कर ,उसमे हरी मिर्च, कटी हुई अदरक ,और स्वादानुसार नमक डाल के पीस लें। भट्ट को एक राउंड सूखा पिसे उसके बाद ,सामग्री और पानी मिला कर पीस ले ( ग्राइंड कर लें। )
  • जितनी पतली चटनी आप पसंद करते हों,उतना महीन  पीस कर अलग निकाल लें । अब इसमे नीबू निचोड़ लें ,और लाल मिर्च मिला लें। और धनिये से सजा कर स्वाद ले पहाड़ी भट्ट की चटनी का।
  • मुझे व्यक्तिगत तौर पर भट्ट की चटनी लेसू रोटी ( गेंहू और मडुवे की मिक्स रोटी ) के साथ और गहत और सफेद भट्ट की जो पतली डाल होती है,भात के साथ , उनके साथ खाने में बहुत स्वादिष्ट लगती है।

नोट -उपरोक्त्त लेख में , भट्ट की दाल  के फायदे और भट्ट की दाल में पोषक तत्वों के बारे में जानकारी एक शैक्षणिक जानकारी के रूप में है। यह किसी डॉक्टर या स्पेशलिस्ट की सलाह पर आधारित नहीं है।

 भट्ट की दाल ऑनलाइन कैसे मंगाये –

दोस्तों हमारे कई पहाड़ी मित्र परदेश में रहते हैं, और वहाँ अपने पारम्परिक व्यंजनों को बहुत मिस करते हैं ,याद करते हैं। यदि आप भट्ट की दाल को मिस कर रहे हैं तो ,आपकी इस समस्या का समाधान भी है हमारे पास । www.indshopclub.com नाम से एक ऑनलाइन पोर्टल है ,जिसके माध्यम से आप अपने सभी पसंदीदा पहाड़ी उत्पादों को ऑनलाइन मंगा सकते हो। भट्ट की दाल ऑनलाइन खरीदने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

जय मैया दुर्गा भवानी लिरिक्स | Jay maiya Durga bhawani lyrics

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जै मैया दुर्गा भवानी
जै मैया दुर्गा भवानी

उत्तराखंड का सदाबाहर कुमाउनी भजन ,जय मैया दुर्गा भवानी लिरिक्स (Jay maiya Durga bhawani lyrics) यह प्रसिद्ध भजन कुमाऊं के प्रसिद्ध गायक  स्वर्गीय श्री गोपाल बाबू गोस्वामी जी ने गाया है।

जै मैया दुर्गा भवानी लिरिक्स ( (Jay maiya Durga bhawani lyrics) :-

तू ही दुर्गा , तू ही काली महिमा तेरी अपार।
हे जग जननी जय महा माया ,आया तेरे द्वार।।
जय मैया दुर्गा भवानी जै मैय्या ।
जै मईया दुर्गा भवानी जै मैय्या।।
तेरी सिंह की माता सवारी ।
हाथ चक्र सुदर्शन धारी।।
डाना काना में है रोछ वास
डाना काना में है रोछ वास।।
पुण्यगिरी में जली रे जोत ।।
जय मैय्या दुर्गा भवानी । जै मैय्या ..
तेरी जैकार  माता उपट्टा ।
तेरी जय हो देवी का धुरा
तेरी जैकार  माता उपट्टा ।
तेरी जय हो देवी का धुरा।।
तेरी जयकार माता गंगोली ।
तेरी जयकार काईगाड़ काली…
जै मैया दुर्गा भवानी ,जय मैया …

दुनागिरी की सिंह वाहिनी …
तेरी जयकार चन्द्रबदनी।।
तेरी जैकार हे माता नंदा।
तेरी जयकार देवी मनीला ।।
जय मैया दुर्गा भवानी ,जै मैया ……
तेरा नामा रूपों के प्रणामा।
दिए भक्ति को मिके तू ज्ञाना।
तेरा नामा रूपों के प्रणामा।
दिए भक्ति को मिके तू ज्ञाना…
तेरो गोपाल जोडूछो हाथा।
धरि दिए माँ सबुकी तू लाजा ।।
जै मैया दुर्गा भवानी जै मैय्या ।
जय मईया दुर्गा भवानी जै मैय्या।।

जै मैया दुर्गा भवानी गीत(Jay maiya Durga bhawani ) लेखक और गायक के बारे में संशिप्त परिचय :-

गायक व लेखक :- स्वर्गीय श्री गोपाल बाबू गोस्वामी

गीत के निर्माता – श्री चंदन सिंह भैसोड़ा।

कुमाउनी लोक गायक स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी जी का संशिप्त परिचय :-

स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी का जन्म अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया तहसील चाँदीखेत नामक गावँ में 02 फरवरी 1949 को हुवा था।  गोपाल बाबू गोस्वामी जी की माता का नाम चनुली देवी एवं पिता का नाम मोहन गिरी था। गोपाल बाबू गोस्वामी जी की शिक्षा 5 तक अपने स्थानीय विद्यालय से की थी।

बाद में पारिवारिक परिस्थितियों के कारण वो आगे की शिक्षा नहीं कर पाए। और घर के लिए कमाने के लिए दिल्ली चले गए । मैदानी क्षेत्र में स्थाई नौकरी ना मिल पाने के कारण वापस अपने पहाड़ आकर खेती बाड़ी की और , उत्तराखंड के कुमाउनी लोक संगीत को अपना अमूल्य जीवन दिया। 26 नवंबर 1996 को ब्रेन ट्यूमर के कारण उनका असामयिक निधन हो गया।

कुमाऊनी कहानी ,”मय्यार मुख के देखछे ,मय्यार खुट देख ” को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

 

उत्तराखंड की लोक कथा “ओखली का भूत”

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मित्रों आज आपके लिए उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल दोनो मंडलों में सुनाई जाने वाली लोक कथा लाएं है। यदि अच्छी लगे तो शेयर अवश्य करें मित्रों।
तो आइए शुरू करते हैं, उत्तराखंड की लोक कथा,”ओखली का भूत”

पहाड़ के किसी गाव में रमोती नामक एक औरत रहती थी। वो घर मे बच्चे के साथ अकेली रहती थी। उसका पति परदेश में नौकरी करता था। पहाड़ का जीवन आज भी संघर्षमय है। और प्राचीन काल मे तो बहुत ज्यादा संघर्ष था पहाड़ की जिंदगी में, पहाड़ के जीवन यापन में।

ऐसा ही संघर्षमय जीवन था ,रमोती का दिन भर खेती बाड़ी का काम ,पशुओं की देखभाल करना, पशुओं के लिए चारा लाना, शाम को खाना बनाना,खाना खिला कर बच्चों को सुला देना । दूसरे दिन के लिए उखोऊ कूटना (मतलब ओखली में अनाज कूट कर रखना) ओखली का कार्य ,पहले की पहाड़ी परम्परा का मुख्य अंग हुवा करता था। वर्तमान रेडीमेड अनाज आने के कारण , उखोऊ कूटने का चलन जरा कम हो गया है। पहले शाम के समय , लगभग हर आंगन में उखोऊ में दो मुसेई कंपीटिशन चला रहता था। आर्थत 2 मुसोव ( मूसल ) का प्रयोग करते हुए ,दो औरते बहुत स्पीड और दोनो मूसल को बिना आपस मे टकराये एक ही ओखली में अनाज को कूटने की क्रिया को ,दो मुसेई कहा जाता था।

इसे भी पढ़े ;- पाताल भुवनेश्वर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी। कहते हैं यहाँ छुपा है,कलयुग के अंत का राज।

आज भी रमोती अकेले उखोऊ कूट रही थी। उखोऊ कूटते कूटते कब अंधेरा हो गया पता ही नही चला, क्योंकि चाँदनी रात थी। और छिलुक जला रखे थे। पहले जमाने मे जब दिन में टाइम नही होता था तो, रात को चाँदनी रात में ,छिलुक ( पहाड़ी मसाल, चीड़ के लकड़ियों से बनी ) धान कुटाई आदि का काम करते थे।

अचानक रमोती के छिलुक बुझ गए, तो वह छिलुक जलाने पारेकी खोई ( खोई आंगन को कहते हैं ) से घर गई । किसी किसी के दो आंगन भी होते थे । इसी प्रकार रमोती के भी दो आंगन थे, एक घर के पास , दूसरा घर से थोड़ी दूर । जहाँ उखोऊ कूट रही थी,वो घर से थोड़ा दूर था।

वो घर के अंदर जैसे ही गई, बाहर ऊखल कूटने की आवाज सुनाई देने लगी। रमोती ने बाहर जाकर देखा तो एक औरत उसके उखोऊ में धान कूट रही थी। रमोती ने सोचा  पड़ोसी होगी। उसने वही से आवाज मारी , ओ धनुली दीदी , कोई जवाब नही मिला । फिर आवाज मारी ओ पनुली दीदी, फिर कोई जवाब नही मिला। वो औरत अपनी धुन में उखोऊ कूटते रही ।

अब रमोती को शक जैसा हुवा,उसने छिलुक ,विलुक वही छोड़े सीधे पार की खोई में गई , जहां वो औरत उखोऊ कूट रही थी, वो औरत बहुत सुंदर लग रही थी, और उखोऊ कूटे जा रही थी। इतने में रमोती ने औरत का चेहरा देखते हुए बोला , दीदी तुम जानी पहचानी तो नही लग रही हो , कौन हो और कहाँ की हो ?

तब उस औरत ने जवाब दिया ,” म्यार मुख के देखछे , म्यार खुट देख ” मतलब मेरा चेहरा क्या देख राही, मेरे पैर देख । तब रमोती ने उसके पैरों पर नजर डाली तो उसके होश उड़ गए। वो तो भूत थी, उसके पैर उल्टे थे। रमोती ने वहाँ की दौड़ सीधे गोरु के गोठ में रखी (गौशाले में छुप गई ) वहाँ गाय के पीछे छुप गई। कहते हैं गाय में देवताओं का वास होता है। इसलिए नकारात्मक शक्तियां उनसे दूर रहती है।

उधर भूत भी रमोती के पीछे पीछे , गौशाले में पहुँच गया । वहाँ उसने गाय माता से कहा कि वो रमोती को अपने साथ अपनी दुनिया मे लेके जाएगा , इसलिए  गाय तुम आगे से हट जाओ । मगर गौ माता नही मानी ,उसने कहा, कि ये मेरी शरण मे आई है, मैं इसे ऐसे ही तुम्हारे हवाले नही कर सकती । पहले मुझे हराकर दिखाओ फिर इसे ले जाना ।

उत्तराखंड की लोक कथा

भूत बोला , बताओ तुम्हे हराने के लिए क्या करना है?  गाय बोली , तुम्हे एक सरल काम देती हूँ । तुम मेरे शरीर के सारे बाल गिन दो और इसको ले जाओ। तब भूत बोला ये तो आसान काम है। अभी गिन देता हूँ। अब भूत गाय के बाल गिनने लगा, वो जैसे ही आधे बाल गिनता , तब तक गौ माता अपने शरीर मे झुरझुरी कर देती मतलब शरीर मे सिहरन पैदा कर देती , और सारे बाल मिक्स हो जाते थे। और भूत अपने गिने हुए बाल भूल जाता था । उसके बाद वो दुबारा गिनती चालू करता , फिर गौ माता सिहरन लेती फिर भूल जाता। ऐसा करते करते सुबह हो गई और भूत का समय चला गया और वो भी गायब हो गया। रमोती कि जान बच गई। गौमाता को प्रणाम करके रमोती भी अपने दैनिक कार्यों में लग गई।

दोस्तों कही कही ये उत्तराखंड की लोक कथा  इस प्रकार भी सुनाई जाती थी, कि एक किसान अपने खेत में काम कर रहा था। अंधेरा हो गया तो एक आदमी उसके पास आया, किसान ने उससे पूछा आप कौन हो ? तब भूत ने बोला, म्यार मुख के देखछे , म्यार खुट देख । उसके बाद किसान गौमाता के पास छुप जाता है। उससे आगे को कहानी उपरोक्तानुसार ही है।

यहाँ भी देखें :- बुबुधाम रानीख़ेत की कहानी पढ़ने के लिए क्लिक करें।

स्पष्टीकरण :- उपरोक्त कहानी उत्तराखंड की लोक कथा पर आधारित कहानी है। जो पहले या अब भी कुमाऊँ मंडल और गढ़वाल मंडल के कुछ क्षेत्रों में सुनाई जाती थी। 

पहाड़ी भजन लिरिक्स, माँ भगवती के कुमाउनी भजन लिरिक्स संकलन

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पहाड़ी भजन , देवी भगवती मैया

नवरात्रि में भजन गाने के लिए पहाड़ी भजन के लिरिक्स का एक संकलन पोस्ट कर रहे हैं। इसमे देवी भगवती मैया भजन लिरिक्स और मैया तेरी जय हो भजन लिरिक्स और जय हो मैया भवानी भजन लिरिक्स हैं ।

जय हो मैया भवानी कुमाऊनी भजन लिरिक्स :

माता के नवरात्रे शुरू हो रहे हैं और इसी खुशी में  माता के आर्शीवाद से माता की सेवा में एक कुमाऊनी भजन अर्पित करने की कोशिश की है। जय मैया भवानी के नाम से संकलित इस कुमाऊनी भजन के गायक श्री हिमांशु भंडारी जी हैं और इसके गीतकार श्री बिक्रम सिंह भंडारी जी हैं। श्री सागर शर्मा जी ने इसे अपने सुमधुर संगीत से सजाया है। और माता के कुमाऊनी भजन के निर्माता हैं श्री आनंद सिंह भंडारी जी हैं।

माता का कुमाऊनी भजन जय हो मैया भवानी का वीडियो यहां देखें :

जय हो मैया भवानी कुमाऊनी भजन लिरिक्स :

जय हो मैया भवानी जय हो दुर्गा भवानी।
शिवजयू की लाडूली मेरी मैया भवानी।।
किभेली की लागिछो मेरी मैया भवानी।।
जोड़: हो लोग कूनी मैया सूणी सबूकी धाता।
हो जो लै फसू दुख जंजालम ऊ जोड़नी हाथा।।
जै हो मैया भवानी जै हो दुर्गा भवानी।
शिवज्यू की लडूली मेरी मैया भवानी।।
जोड़ 2 : हो फूली रैछो कांसा मैया ,फूली रैछो कांसा।
हो मैया त्यारा नाम जपूलों जब तक रैली सांसा।।
जय हो मैया भवानी ……..
जोड़ 3 : नान माणी मडुवा भरो ग्यूं भरो ठुल माणी ।
सब दुख दूर करि दी मैया तेरी मोत्यू की दाणी।।
जय हो मैया भवानी जय हो दुर्गा भवानी।
शिवजयू की लाडूली मेरी मैया भवानी।।
किभेली की लागिछो मेरी मैया भवानी।।

देवी भगवती मैया भजन लिरिक्स –

प्रस्तुत पहाड़ी भजन , कुमाऊनी भाषा के प्रसिद्ध गायक स्वर्गीय श्री पवेंद्र सिंह कार्की उर्फ पप्पू कार्की जी द्वारा गया है। नवरात्रि 2021 में माता की भक्ति के लिए सर्वोत्तम भजन है।

देवी भगवती मैया
देवी भगवती मैया ,कोटगाड़ी की देवी मैया -2
दैण है जाए, दैण है जाए ….
त्यार दरवार आयु सुफल हाय्ये।
हो मैया ……..
देवी भगवती मैया ,कोटगाड़ी की देवी मैया -2
दैण है जाए, दैण है जाए।
त्यार दरवार आयु सुफल हाय्ये।

जय जय माँ ,जय जय माँ ,जय जय माँ, जय जय माँ..
हे नौ बैन्यू की दुर्गा तेरी पूजा करुलो।
हे नौ बैन्यू की दुर्गा तेरी पूजा करुलो।
ढोल दमो ली बेर त्यारा द्वारा में उलो।।
ढोल दमो ली बेर त्यारा द्वारा में उलो।।
दी जलोला ,निशाण देवी
दी जलोला ,निशाण देवी
तवीके चडूलो , तवीके चडूलो।।
त्यार दरबार आयूँ सुफल है जाए।
है दनोउ को अत्याचार जब जब भै छो
है दनोउ को अत्याचार जब जब भै छो
तब तब ते मैया ले जन्म ल्योछो।
तब तब ते मैया ले जन्म ल्योछो।
महिषासुर शुम्भ नि शुम्भ ,
महिषासुर शुम्भ निशुम्भ वध करछो।
वध करछो…….

त्यार दरबार आयूँ  सुफल हाय्ये…
जय माँ .. जय माँ …जय माँ ..
त्यार मैया भगतो की भीड़
त्यार मैया भगतो की भीड़ ।
हर मनेकी तू जानछे कै कसी पीड़
हर मनेकी तू जानछे कै कसी पीड़।।
दैण है जाए ईजा…..
दैण है जाए इजू……विनीति सुनिए ।
त्यार दरबार आयूँ सुफल है जाए।
त्यार दरबार आयूँ सुफल है जाए।।
हो मैया ….
देवी भगवती मैया ,कोटगाड़ी की देवी मैया -2
दैण है जाए, दैण है जाए ….
त्यार दरवार आयु सुफल हाय्ये

देवी भगवती मैया के गायक और गीत के बारे में –

  • गायक :- स्वर्गीय श्री पप्पू कार्की
  • गीत :-  स्वर्गीय पप्पू कार्की जी।
  • वीडियो लिंक :- देवी भगवती मैया गीत के वीडियो यहां देखें –

पहाड़ी भजन मैया तेरी जय हो लिरिक्स –

बोलो भगवती मैया की जय ……
ऊँचा धुरा रुनया मैया तेरी जै जै हो।
तू दैणी है जाए , म्यार कुले की देवी हो।
तू दैणी है जाए , म्यार कुले की देवी हो।।
ऊँचा धुरा रुनया मैया तेरी जै जै हो।
मैया तेरी जै जै हो मैया तेरी जै जै हो।।
तू भगवती , तू बाराही ,तू छे पूर्णागिरि माँ।
धारी देवी सुरकंडा तू ,तुई कुंजापुरी माँ।।
ऊँचा धुरा रुनया मैया तेरी जै जै हो।
तू दैणी है जाए , म्यार कुले की देवी हो।
आ ..आ .. हो..हो..

घर कुड़ी की पति रखछि सुणछि मैया घात।
घर कुड़ी की पति रखछि सुणछि मैया घात।
सौ सुखयार रख सबुके  सुफल करछी काज।।
सौ सुखयार रख सबुके  सुफल करछी काज।।
सुणछि मैया घात…..
सुफल करछी काज….
सुफल करछी काज….

तू गंगोत्री, तू यमुनोत्री , तुई चन्द्रबदनी माँ।
कामाख्या कसार देवी , तुई छै जयंती माँ।।
ऊँचा धुरा रुनया मैया तेरी जै जै हो।
तू दैणी है जाए , म्यार कुले की देवी हो।
आ. आ..आ….
ढोल दमुआ नगाड़ा, भाकर बाजी रया।
ढोल दमुआ नगाड़ा, भाकर बाजी रया।
तेरो डोलो छाजी रो मैया म्याल कौतिक लागी रया।।
तेरो डोलो छाजी रो मैया म्याल कौतिक लागी रया।।
भाकर बाजी रया….

म्याल कौतिक लागी रया….
म्याल कौतिक लागी रया….
तू महाकाली ,तू चंडिका ,तुई छै कोटगाड़ी माँ।
दुनागिरी संतला छै, तू नंदा सुनंदा माँ।।
ऊँचा धुरा रुनया मैया तेरी जै जै हो।
तू दैणी है जाए , म्यार कुले की देवी हो।
तू दैणी है जाए , म्यार कुले की देवी हो।।
आगहिल पाछिल आन बान , डोल छाजी रौ बीच मा।
आगहिल पाछिल आन बान , डोल छाजी रौ बीच मा।।
डोल भतेरा शक्ति तेरी हरछि सबुकी पीड़ माँ।
डोल भतेरा शक्ति तेरी हरछि सबुकी पीड़ माँ।

डोल छाजी रौ बीच मा…
हरछि सबुकी पीड़ माँ ….
तू झूमा धुरी ,तू मनसा माँ ,तू माता कनार।
फूल फूलनी होए माई आया त्यारा द्वार।।
ऊँचा धुरा रौनया मैया तेरी जय जय हो हो।
तू दैणी है जाए ……

गायक –  ज्योति उप्रेती सती

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