Monday, April 22, 2024
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न्यौली या कुमाउनी न्यौली गीत क्या हैं? इनकी उत्त्पत्ति कैसे हुई

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न्यौली गीत क्या हैं?

न्यौली उत्तराखंड के कुमाऊं में लोकगीत विधा के अंतर्गत, पर्वतीय वनों के मौन वातावरण में किसी विरही द्वारा एकांत में गाये जाने वाला एक ऐसा एकांतिक विरह गीत है। जिसमे अत्यंत ही गहरी एवं संवेदनात्मक शब्दों में अपने प्रिय के प्रति समर्पण की अभिव्यक्ति की जाती है। इसका रूप संवादात्मक भी होता है और एकाकी भी । संवादात्मक में दोनो महिलाएं भी हो सकती है, या दोनो पुरूष भी हो सकते हैं। या एक महिला और एक पुरूष भी होता है। जरूरी नही कि दोनों एक दूसरे को जानते हो। न्यौली गीत द्वीपदीय मुक्तकों के रूप में होते हैं। इसका प्रथम पद तो केवल तुकबंदी परक होता है।और दूसरा पद भवाभिव्यंजक हुवा करता है। न्यौली पहाड़ो में एकाकी विरह के स्वर कुंजन करने वाले पक्षी को भी बोलते हैं। इसी के नाम पर इस लोकगीत विधा का नाम न्यौली गीत पड़ा ।

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न्योली गीत के उदाहरण –

सांस पड़ी रात घिरी, दी -बातों  निमाण।
म्यरो चित्त साली दिए, जा तेरो तिथाण।।
हल्द्वानी का ताला टूटा, खोदी है नहर।
या तू ऐ जा मेरो पास, या दीजा जहर।।

न्यौली की उत्पत्ति पर आधारित लोक कथा –

न्यौली की उत्त्पत्ति  पहाड़ो में विरह कुंजन करने वाली एक चिड़िया से मानी जाती है। कहा जाता है ,कि कुमाऊं के एक गावँ में दो भाई, बहिन रहते थे। उनमें आपस मे खूब प्यार था। एक दिन बड़ी बहिन की शादी हो गई। भाई बहुत दुःखी हो गया फिर द्वार भेट के समय उसकी दीदी आई , जब वापस जाने लगी , तो भाई को बहुत दुःख हुवा।उसकी माँ ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा , ‘बेटा दुःखी मत हो वर्ष में अभी बहुत सारे तीज त्यौहार आएंगे तब तेरी दीदी इसी प्रकार सज धज कर तुझसे मिलने आएगी।

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बहुत समय बीत गया उसकी दीदी उससे मिलने मायके नही आई। बहुत इंतजार करने के बाद उसका सब्र जवाब दे गया। वह एक दिन स्वयं ही दीदी से मिलने उसके ससुराल को चल दिया। लेकिन उसे दीदी के ससुराल का रास्ता नही मालूम था। पहले जमाने मे यातायात के कोई साधन नही थे। पैदल ही चलना होता था। दीदी के ससुराल को ढूढ़ते -ढूढ़ते वह रास्ता भटक गया। और पहाड़ो में भूख प्यास से तड़प कर मर गया।

कहते है, मृत्यु के बाद वह लड़का एक चिड़िया बना जिसे न्योली चिड़िया कहा जाता है। और वह विरह में वन वन भटकते हुए अपनी बहिन को ढूढ़ता है, और विरह कुंजन करता रहता है।

न्यौली की उत्पत्ति या न्योली का नामकरण इसी चिड़िया के नाम पर माना जाता है।

न्योली चिड़िया के बारे में संशिप्त परिचय :-

पहाड़ो में न्योली चिड़िया के नाम से प्रसिद्ध इस चिड़िया को ग्रेट बर्बेट के नाम से जाना जाता है। औसत शरीर वाली यह चिड़िया । कबूतर की तरह होती है। अप्रैल मई में यह पहाड़ो में अपने विरह कुंजन के साथ अधिक पाई जाती है।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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