Thursday, May 15, 2025
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“कुमाऊंनी इतिहास में ‘चालोसिया’ की भूमिका: शाही दरबार में षडयंत्रों पर निगरानी रखने वाला विशेष अधिकारी”

कुमाऊंनी समाज में ‘चालोसिया’ एक महत्वपूर्ण और विशिष्ट पद था, जिसका कार्य राजा या शासक के आसपास होने वाले षडयंत्रों पर निगरानी रखना था। ‘चाला’ शब्द का अर्थ होता है षडयंत्र या चालबाजी, और ‘चालोसिया’ का अर्थ हुआ ‘चालों पर नजर रखने वाला व्यक्ति’। यह शब्द उस समय के प्रशासनिक तंत्र के एक अहम हिस्से के रूप में उभरा, जब कुमाऊं क्षेत्र में चन्द शासनकाल के दौरान राजघरानों और प्रशासन में षडयंत्रों का बोलबाला था।

उस समय कुमाऊं के शाही दरबार में रात-दिन विभिन्न प्रकार के षडयंत्र चलते रहते थे। ऐसे में राजा को हमेशा सतर्क और चौकस रहना पड़ता था। यही कारण था कि महल और राजदरबार में कोई भी ‘चाला’ न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए गए थे, जिन्हें ‘चालोसिया’ कहा जाता था। यह कार्य उस समय की सुरक्षा व्यवस्था की तरह था, जो आजकल वी.आई.पी. लोगों के आसपास सुरक्षा कर्मियों द्वारा निभाया जाता है।

चालोसिया
चालोसिया की प्रतीकात्मक फोटो

चालोसियाओं का कार्य सिर्फ षडयंत्रों की पहचान करना और उन पर नजर रखना नहीं था, बल्कि वे दरबारियों, मंत्रियों, सेनापतियों, पुराहितों, और अन्य कर्मचारियों पर भी निगरानी रखते थे। जब राजा राजकीय भोजनशाला में भोजन करने के लिए बैठता था, तो चालोसियाओं का यह दायित्व होता था कि वे यह सुनिश्चित करें कि भोजन करने वाले सभी अधिकारी और कर्मचारी अपने निर्धारित स्थानों पर ही बैठें और किसी प्रकार की चालबाजी या षडयंत्र न रचने की कोशिश करें।

यदि कोई व्यक्ति संदिग्ध गतिविधि करता हुआ पाया जाता था, तो चालोसिया का कर्तव्य था कि वह तुरंत राजा को इस बारे में सूचित करें। इस प्रकार, चालोसिया न केवल शाही दरबार की सुरक्षा का ध्यान रखते थे, बल्कि शाही प्रशासन में किसी भी प्रकार की अव्यवस्था या षडयंत्र को भी रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।

आधुनिक समय में, यह भूमिका वी.आई.पी. सुरक्षा कर्मियों की तरह ही समझी जा सकती है, जो किसी व्यक्ति की सुरक्षा और उसकी निजी जीवन के प्रति संवेदनशीलताओं पर ध्यान रखते हैं। कुल मिलाकर, ‘चालोसिया’ कुमाऊंनी समाज में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और सशक्त पद था, जो शाही दरबार की सुरक्षा और व्यवस्था को सुनिश्चित करता था।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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