Tuesday, April 30, 2024
Homeसंस्कृतिखुदेड़ गीत गढ़वाल के अन्यतम कारुणिक गीत ।

खुदेड़ गीत गढ़वाल के अन्यतम कारुणिक गीत ।

खुदेड़ गीत –

गढ़वाल की विवाहिता नवयुवतियों द्वारा बसंत के आगमन पर अपने मायके की याद में और माता पिता और भाई बहिनो से मिलन की आकुलता में एकाकी गाये जाने वाला गीत खुदेड़ गीत कहलाता है।

Hosting sale

खासकर यह गीत उनके द्वारा गया जाता है ,जिन्हे मायके में बुलाने वाला कोई नहीं होता है। यह गीत अन्यतम कारुणिक गीत होता है । इसमें नायिका पहाड़ो के वन क्षेत्र में अकेले अथवा सहेलियों के साथ करुण स्वर में खुदेड़ गीत गाती हैं। इन गीतों में अभिनय के रूप में केवल भावाभिनय ही होता है। 

केवल महिलाओं के विरह को समर्पित हैं खुदेड़ गीत –

ये गीत केवल महिला वर्ग द्वारा गाये जाते हैं। इनका स्वर कारुणिक होता है। तथा गीतों की लय-गति भी मन्द, विलम्बित हुआ करती है। पदरचना बाजूबन्द (जोड़ों) के रूप में की जाती है किन्तु वर्ण्य विषय की दृष्टि से दोनों में मौलिक अन्तर होता है। बाजूबन्द गीतों का लक्ष्य जहां प्रियजन एवं वियोग श्रृंगार होता है वहां खुदेड़ गीतों का लक्ष्य मायके की यादें  एवं माता-पिता, भाई-बहिन, सखी-सहेलियों से मिलने की व्याकुलता होती है। नायिका पर्वत, मेघ, वायु, पुष्प, वनस्पति को संदेशवाहक बना कर अपने माता से बुलाये मायके जाने का अनुरोध करती है।

 इस नृत्यगीत के विषय में एवं प्रस्तुतीकरण झुमैलो के साथ समता रखता है, किन्तु झुमैलो गीत के प्रस्तुतीकरण में जहां अभिनय करते हुए झूमने तथा गीत की प्रत्येक पंक्ति के बाद -झुमैला’ की पुनरावृत्ति आवश्यक होती है वहां इसमें ऐसा कोई नियमन नहीं होता है, पर न्यौली के समान टेक पद की पुनरावृत्ति अवश्य होती है। यहां मां को बुलावा भेजने के लिए अनुरोध करती बेटी कहती है-

खुदेड़ गीत के उदाहरण –

Best Taxi Services in haldwani

गौड़ी देली दूद ब्वै, गौड़ी देली दूद, मेरी जिकुड़ी लगी ब्वै, तेरी खूद।

काखड़ी को रैतू ब्वै, काखड़ी को रैतू, मैं खुद लागी ब्वै, तू बुलाई मैतू।

सूपा भरी दैण ब्वै, सूपा भरी दैण, आग भभराली ब्वै भै जी भेजी लैण।

झंगोरा की बाल ब्वै, झंगोरा की बाल, मैत को बाटो देखी ब्वै, आंखी वैन लाल।

उसके बचपन की मधुर स्मृतियों को सजाकर रखने वाले मायके के दर्शनों के लिए व्याकुल  नायिका पर्वत शिखरों एवं चीड़ की बनावलियों से अपनी उन्नतता को कम करने का अनुरोध करती हुए कहती है-

ऊंची ऊंची डाड्यों तुम नीचि हवै जाओ,

घैणी कुलायो तुम छांटी जाओ।

मैंकु लागी च खुद मैतुड़ा की,

बाबा जी को देश देखण देवा ।।

खुदेड़ गीत

बसंत आ  गया है नायिका न तो मायके जा सकती है। और न कोई उसे बुलाने के लिए ही आया है।  वह मैत की स्मृति में आकुल होकर कहती है-

आई गैन रितु बौड़ी, राई जसो फेरो,

फूली गैन बणू बीच ग्वीराल बुरांस।

गौंकी नौनीस्ये गीत वासन्ती बुरांस।

जैकि ब्वे होली मैतुड़ा बुलाली ।

मेरी जिकुड़ी मा ल्वे कुएड़ी सी लौंकी।

खुदेड़ गीत का वीडियो यहाँ देखें –

इन्हे भी पढ़े –

नोट- इस पोस्ट का संदर्भ  प्रो DD शर्मा जी किताब उत्तराखंड ज्ञानकोष से लिया गया है। 

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments