Friday, March 14, 2025
Home Blog Page 98

उत्तराखंड में पंच केदार | Panch kedar in hindi

0
पंच केदार

उत्तराखंड के पंच केदार –

केदारनाथ की जानकारी विस्तार से पढ़ने के बाद आइए अब जानते है भगवान शिव के पंच केदार के बारे में –

1 . केदारनाथ
2. मध्यमेश्वर
3. तुंगनाथ
4. रुद्रनाथ
5. कल्पेश्वर

 केदारनाथ –

यह मुख्य केदारपीठ है। इसे पंच केदार में से प्रथम कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, महाभारत का युद्ध खत्म होने पर अपने ही कुल के लोगों का वध करने के पापों का प्रायश्चित करने के लिए वेदव्यास जी की आज्ञा से पांडवों ने यहीं पर भगवान शिव की उपासना की थी। तब भगवान शिव ने उनकी तपस्या से खुश होकर महिष अर्थात बैल रूप में दर्शन दिये थे और उन्हें पापों से मुक्त किया था। तब से महिषरूपधारी भगवान शिव का पृष्ठभाग यहां शिलारूप में स्थित है।

कब जाएं : केदारनाथ जाने के लिए अप्रैल से अक्टूबर का समय सबसे अच्छा माना जाता है और इतने ही दिन मंदिर के कपाट भी खुलते हैं। इस बीच के बारीश के दिनों में यात्रा नहीं करना चाहिए।

कैसे जाएं : केदारनाथ जाने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार या ऋषिकेश है। यहाँ से आगे का रास्ता सड़क मार्ग से तय किया जाता है। केदारनाथ की चढ़ाई बहुत कठिन मानी जाती है, कई लोग पैदल भी जाते हैं। केदारनाथ के लिए नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून है।

केदारनाथ के आस-पास के घूमने के स्थान

उखीमठ : उखीमठ रुद्रप्रयाग जिले में है। यह स्थान समुद्री सतह से 1317 मी. की ऊचाई पर स्थित है। यहां पर देवी उषा, भगवान शिव के मंदिर है।
गंगोत्री ग्लेशियर : उत्तराखंड स्थित गंगोत्री ग्लेशियर लगभग 28 कि.मी लम्बा और 4 कि.मी चौड़ा है। गंगोत्री ग्लेशियर उत्तर पश्चिम दिशा में मोटे तौर पर बहती है और एक गाय के मुंह समान स्थान पर मुड़ जाती हैं।
केदारनाथ से 2 किलोमाटर नीचे शिलाजीत का पहाड़ है।

पंच केदार

दूसरा पंच केदार मध्यमेश्वर –

इन्हें मनमहेश्वर या मदनमहेश्वर भी कहा जाता हैं। इन्हें पंच केदार में दूसरा माना जाता है। यह ऊषीमठ से 18 मील दूरी पर है। यहां महिषरूपधारी भगवान शिव की नाभि लिंग रूप में स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने अपनी मधुचंद्र रात्रि यही पर मनाई थी। यहां के जल की कुछ बूंदे ही मोक्ष के लिए पर्याप्त मानी जाती है।

कब जाएं : मध्यमेश्वर मंदिर जाने के लिए सबसे अच्छा समय गर्मी का माना जाता है। मुख्यतह यहां की यात्रा मई से अक्टूबर के बीच की जाती है।
कैसे जाएं : उखीमठ से सबसे पास का हरिद्वार या ऋषिकेश रेल्वे स्टेशन है। उखीमठ से उनीअना जाकर, वहां से मध्यमेश्वर की यात्रा की जाती है। सड़क मार्ग द्वारा हरिद्वार या ऋषिकेश से बस द्वारा जा सकते हैं।  नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून है।

मध्यमेश्वर के आस-पास के घूमने के स्थान :-

बूढ़ा मध्यमेश्वर : मध्यमेश्वर से 2 कि.मी. दूर बूढ़ा मध्यमेश्वर नामक दर्शनीय स्थल है।
कंचनी ताल : मध्यमेश्वर से 16 कि.मी. दूर कंचनी ताल नामक झील है। यह झील समुद्री सतह से 4200 मी. की ऊचाई पर स्थित हैं।
गउन्धर : यह मध्यमेश्वर गंगा और मरकंगा गंगा का संगम स्थल है।

इसे भी जाने:कब और कैसे शुरू हुई चार धाम यात्रा

तीसरा पंच केदार तुंगनाथ –

इसे पंच केदार का तीसरा माना जाता हैं। केदारनाथ के बद्रीनाथ जाते समय रास्ते में यह क्षेत्र पड़ता है। यहां पर भगवान शिव की भुजा शिला रूप में स्थित है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्वयं पांडवों ने करवाया था। तुंगनाथ शिखर की चढ़ाई उत्तराखंड की यात्रा की सबसे ऊंची चढ़ाई मानी जाती है।

कब जाएं : तुंगनाथ जाने के लिए सबसे अच्छा समय मार्च से अक्टूबर के बीच का माना जाता है।
कैसे जाएं :
रेल यात्रा : तुंगनाथ के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन हरिद्वार है, जो लगभग सभी बड़े स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। सड़क यात्रा : तुंगनाथ पहुंचने के लिए हरिद्वार से ही सड़क मार्ग का प्रयाग भी किया जा सकता है। नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून है।

तुंगनाथ के आस-पास के घूमने के स्थान :

चन्द्रशिला शिखर : तुंगनाथ से 2 कि.मी की ऊचाई पर चन्द्रशिला शिखर स्थित है। यह बहुत ही सुंदर और दर्शनीय पहाड़ी इलाका है।
गुप्तकाशी : रुद्रप्रयाग जिले से 1319 मी. की ऊचाई पर गुप्तकाशी नामक स्थान है। जहां पर भगवान शिव का विश्वनाथ नामक मंदिर स्थित है।

चौथा पंचकेदार  रुद्रनाथ –

यह पंच केदार में चौथे हैं। यहां पर महिषरूपधारी भगवान शिव का मुख स्थित हैं। तुंगनाथ से रुद्रनाथ-शिखर दिखाई देता है पर यह एक गुफा में स्थित होने के कारण यहां पहुंचने का मार्ग बेदह दुर्गम है। यहां पंहुचने का एक रास्ता हेलंग (कुम्हारचट्टी) से भी होकर जाता है।

कब जाएं : रुद्रनाथ जाने के लिए सबसे अच्छा समय गर्मी और वंसत का मौसम माना जाता है।
कैसे जाएं : रेल मार्ग : ऋषिकेश या हरिद्वार तक रेल माध्यम से पहुंचा जा सकता है, उसके बाद सड़क मार्ग की मदद से कल्पेश्वर जा सकते है।

सड़क मार्ग : रुद्रनाथ जाने के लिए ऋषिकेश, हरिद्वार, देहरादून से कई बसे चलती हैं। नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून है।

5. पांचवा पंच केदार कल्पेश्वर-

यह पंच केदार का पांचवा क्षेत्र कहा जाता है। यहां पर महिषरूपधारी भगवान शिव की जटाओं की पूजा की जाती है। अलखनन्दा पुल से 6 मील पार जाने पर यह स्थान आता है। इस स्थान को उसगम के नाम से भी जाना जाता है। यहां के गर्भगृह का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर जाता है।

कब जाएं : कल्पेश्वर जाने के लिए गर्मी के मौसम में मार्च से जून के बीच और वंसत के मौसम में जुलाई से अगस्त का महीना सबसे अच्छा माना जाता है।
कैसे जाएं : रेल मार्ग  : ऋषिकेश या हरिद्वार तक रेल माध्यम से पहुंचा जा सकता है, उसके बाद सड़क मार्ग की मदद से कल्पेश्वर जा सकते है। सड़क मार्ग : जोशीमठ, ऋषिकेश से सड़क मार्ग से आसानी से कल्पेश्वर पहुंचा जा सकता है।

कल्पेश्वर के आस-पास के घूमने के स्थान :

जोशीमठ : कल्पेश्वर से कुछ दूरी पर जोशीमठ नामक स्थान है। यहां से चार धाम तीर्थ के लिए भी रास्ता जाता है।

यहां भी देखे……

हमारे फेसबुक पेज से जुड़ने के लिए क्लिक करें।

यमुनोत्री में देखने लायक जगह | Best places to Visit in Yamunotri

0
यमुनोत्री में देखने लायक

यमुनोत्री में देखने लायक जगह –

यमुनोत्री में हर तरह के पर्यटकों के लिए अलग अलग देखने लायक जगह है। जहां पर तीर्थयात्रियों के लिए सप्तऋषि कुंड, यमुनोत्री मंदिर, सूर्य कुंड, दिव्य शिला, हनुमान चट्टी, है तो वहीं चंबा, बड़कोट, खरसाली में साहसिक प्रेमियों के लिए ट्रेकिंग ट्रेक भी हैं।

यमुनोत्री मंदिर –

यमुनोत्री में मुख्य आकर्षण देवी यमुना को समर्पित मंदिर और जानकी चट्टी से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पवित्र थर्मल सल्फर स्प्रिंग्स हैं। हनुमान चट्टी से लेकर यमुनोत्री तक की छटा बहुत ही मनमोहक है।

सप्तऋषि कुंड-

सप्तऋषि कुंड को यमुना नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। 4421 मीटर की ऊंचाई पर सप्तऋषि कुंड को यमुना नदी का उद्गम माना जाता है। अपने गन्दे नीले पानी, कंकड़ और ब्रह्मा कमल के दुर्लभ दर्शन के साथ, सप्तर्षि कुंड की अद्भुत छठा देखते ही बनती है।

सप्तर्षि कुंड की यात्रा करने से पहले, ये आवश्यक है कि आप यमुनोत्री में देखने लायक में एक दिन रहकर इस क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियों से परिचित हों।

सूर्य कुंड – यमुनोत्री में देखने लायक खास कुंड।

मंदिर के आसपास कई खूबसूरत झरने हैं जो कई कुंडों में बहते हैं। इनमें से सबसे महत्वपूर्ण सूर्य कुंड है। सूर्यकुंड एक गरमपानी का कुंड है। यह कुंड यमुनोत्री मंदिर के पास स्थित है। यमुनोत्री में देखने लायक सबसे अच्छे विकल्पों में से एक है सूर्य कुंड।

इसे भी जाने:देवभूमि उत्तराखंड के चार धाम

यमुनोत्री में घूमने लायक स्थान दिव्य शिला –

ये यमुनोत्री में सूर्य कुंड के पास स्थित एक बड़ी चट्टान है। दिव्य शिला भक्तों के लिए एक भक्तिमय एहसास दिलाता है। ये परम्परा है कि सभी भक्तों को यमुनोत्री में प्रवेश करने से पहले दिव्य शिला पर पूजा करनी चाहिए। दिव्यशिला सूर्यकुंड के बगल में स्थित 3000 मीटर ऊँची चट्टान है।

हनुमान चट्टी –

यमुनोत्री से 13 किलोमीटर की दूरी पर हनुमान चट्टी है, जहां से गंगा और यमुना नदियों का संगम है, यहां से डोडी ताल के लिए ट्रेक शुरू होता है। यह यमुनोत्री में घूमने लायक खास स्थान है। पौराणिक कहानियों के अनुसार यहीं हनुमान जी ने महाबली भीम का घमंड तोडा था। यह यमुनोत्री में देखने लायक एक अच्छा विक्लप है।

जब पांडव द्रोपदी के साथ इस क्षेत्र में रह रहे थे तब ,एक दिन द्रौपदी ने भीम से वो फूल लाने का आग्रह करती है। जब भीम उस ब्रह्मकमल को लाने जंगल में जाते हैं तो, रस्ते में उन्हें एक वृद्ध वानर लेटा हुवा मिला। जब भीम ने घमंड से वानर को रास्ता देने और रस्ते से हटने को बोला तो वृद्ध बानर ने कहा कि ,मेरी पूछ हटाकर खुद चले जाओ।

तब भीम ने अभिमानवश बानर की पूछ हटाने की कोशिश की तो एड़ी चोटी का जोर लगाकर भी भीम उनकी पूछ को नहीं हटा पाए। तब भीम समझ गए ये कोई दिव्यात्मा है। भीम ने उन्हें अपने असली रूप में आने का आग्रह किया तब हनुमान ने उन्हें अपना परिचय दिया और कभी घमंड ना करने की सीख दी।

खरसाली –

खरसाली पिकनिक के लिए रोमांचक परिवेश और सुंदर वातावरण वाला स्थान है। बहुत सारे झरनों और सुंदर दृश्यों के साथ ही खरसाली इस क्षेत्र में सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। एक सुन्दर घास के मैदान जहां पर ओक और कोनिफेर के पेड़ खरसाली का वातावरण और अद्भुत बना देते है।

समुद्रतल से लगभग 2500 मीटर की उचाई में बसा यह सूंदर गांव यमुना नदी के किनारे बसा हुवा है। खरसाली से हिमालय की चोटियों के रमणीक दर्शन होते हैं। खरसाली वही जगह जहाँ शीतकाल में माँ यमुना  दर्शन और पूजा होती है।

बड़कोट:

ये यमुनोत्री के रास्ते में स्थित एक छोटा सा शहर है, जो कि यमुनोत्री से सिर्फ 49 किलोमीटर दूर है। बरकोट में एक प्राचीन मंदिर है और ये ध्यान लगाने के लिए एक आदर्श जगह है। यमुनोत्री के पास देखने  लायक तो बस यमुनोत्री ही है।

हमारे फेसबुक पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

यमुनोत्री धाम उत्तराखंड परिचय व् पौराणिक महत्त्व।

0
यमुनोत्री धाम
yamunotri-dham

यमुनोत्री धाम –

उत्तराखंड की पावन यात्रा यमुनोत्री से ही प्रारंभ होती है। यमुनोत्री धाम से पूर्व यात्रा-मार्ग में नरेंद्रनगर, चंबा, टिहरी, धरासू, ब्रह्मखाल, सयाना चट्टी, हनुमान् चट्टी, जान की चट्टी और खरसाली आदि महत्त्वपूर्ण तीर्थ-स्थल पड़ते हैं, तब तीर्थ-यात्री यमुनोत्री पहुँचता है। उत्तराखंड में केदारखंड के चारों धामों में से यमुनोत्री धाम हिमालय की बंदरपूँछ महाशृंग के पश्चिम की ओर से समुद्रतल से 3185 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। पतित-पावनी यमुना का उद्गम स्रोत यमुनोत्री से लगभग  6 किलोमीटर ऊपर कालिंदी पर्वत पर है।

यह स्थान यमुनोत्री धाम से 1098 मीटर अधिक ऊँचाई पर है, यहाँ तक पहुँचना बहुत ही कठिन है। यहीं पर बर्फ की एक झील है जो यमुना का उद्गम-स्थान है। कालिंदी पर्वत की गोद में यमुनोत्री के पास यमुना अपनी शैशवावस्था में होती है। जल स्वच्छ, श्वेत बर्फ की तरह शीतल है। यमुनोत्री के चारों ओर फैली धवल शिखरावली यात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देती है। यहाँ का दृश्य अत्यंत मनोहर और रमणीक है। चारों ओर हिमाच्छादित पर्वतमालाएँ, चीड़ के हरित वन, नीचे कल-कल करती कालिंदी की शीतल धारा मन को मोह लेती है।

यमुनोत्री के कपाट शीतकाल के लिए बंद होते हैं –

यमुनोत्री के पास यमुना की धारा उत्तरवाहिनी हो जाती है, इसलिए इसे यमुनोत्री कहा गया है। यमुनोत्री का प्राकृतिक सौंदर्य वर्णनातीत है, इस सौंदर्य की अनुभूति प्रत्यक्षदर्शी ही कर सकता है। यहाँ का सौंदर्य अवर्णनीय है।यमुनोत्री के मंदिर के कपाट वैशाख शुक्लपक्ष की तृतीया को खुलते हैं और कार्तिक में दीपावली के बाद यम द्वितीया के दिन बंद होते हैं।

खरसाली ग्राम के पंडे 6 महीने यमुनोत्री की पूजा अपने ग्राम में ही करते हैं। यमुना की पूजा यमुना मंदिर में की जाती है। यमुनोत्री मंदिर का निर्माण टिहरी नरेश महाराजा प्रतापशाह ने वि. सं. 1919 में किया था। मंदिर में काले संगमरमर की मूर्ति है। गंगा और यमुना को बहनें माना जाता है। मंदिर में गंगाजी की भी मूर्ति है। गंगा और यमुना को भारतीय संस्कृति में माँ का रूप दिया गया है।

गरमपानी का कुंड भी है यमुनोत्री धाम में –

मंदिर के पास की पहाड़ की चट्टान के अंदर दो कुंड हैं। सबसे अधिक गर्म पानी का कुंड सूर्यकुंड कहलाता है। इसका तापमान 100 डिग्री सेंटीग्रेड फारेनहाइट रहता है। इस कुंड में यात्री आलू, चावल, पोटली बनाकर डालते हैं, जो थोड़ी देर में पककर तैयार हो जाता है। यही यहाँ का प्रसाद है। यमुनोत्री का प्रसाद इस जल का पका हुआ चावल माना जाता है। गौरी-कुंड का जल थोड़ा कम गर्म रहता है। यात्री उसी में स्नान करते हैं।

यहाँ की धरती में इसका जो विलक्षण प्रवाह है, उसमें भी यात्री मोहित हो जाता है। एक ओर यहाँ बर्फीले चट्टानों से आने वाला यमुना का शीतल जल और हड्डियों को कँपा देने वाली बर्फीली हवा, दूसरी ओर संतुलन बनाए रखने के लिए गर्म कुंडों  का पानी, कलकल निनाद करने वाली यमुना सर्वव्यापी प्राकृतिक सौंदर्य से यात्रियों को मानसिक चेतनामय सुख का बोध होता है तो इन गर्म पानी के कुंडों के जल से भौतिक सुख की कमी नहीं रहती। इनमें सूर्यकुंड सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। सूर्यकुंड के पास ही एक शिला है, जिसको दिव्यशिला कहते हैं, इसकी पूजा का अत्यंत महत्त्व है।

यमुनोत्री धाम में गंगाजी भी हैं –

कुंड में स्नान के बाद दिव्यशिला की पूजा की जाती है। तत्पश्चात् यमुना नदी की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि असित मुनि ने यहाँ तपस्या की थी। मानसिक शक्ति के बल पर वे प्रतिदिन यमुनोत्री और गंगोत्री, दोनों स्थानों पर स्नान करके यमुनोत्री लौटजाते थे। लेकिन वृद्धावस्था में जब यह असंभव हो गया तो गंगाजी स्वयं एक सूक्ष्म धारा के रूप में इसी स्थान पर चट्टान से निकलकर प्रस्फुटित हुई। यही कारण है कि आज भी यमुनोत्री धाम में गंगा जी की पूजा की जाती है। यमुनोत्री से 6 किलोमीटर की दूरी पर सप्त-कुंड है, जिसका महत्त्व विशेष माना जाता है।

यमुनोत्री धाम का पौराणिक महत्त्व –

सूर्य की संध्या और छाया, नाम की दो पत्नियाँ थीं। संध्या से गंगा और छाया से यमुना और यमराज उत्पन्न हुए। इस प्रकार से गंगा, यमुना सौतेली बहनें तथा यमुना और यमराज सगे भाई बहन हैं। केदारखंड के अनुसार संध्या प्रजापति की पुत्री और छाया संज्ञा की सवर्णा थी। संज्ञा से वैवस्वत मनु, यम और यमुना उत्पन्न हुए तथा छाया से सावर्णि मनु (जो आठवें मनु होंगे) तथा श्यामलांग शनैश्चर उत्पन्न हुए। कहते हैं सूर्य ने अपनी पुत्री यमुना को तीनो लोको के कल्याण हेतू  पितरों को सौप दिया। यमुना पृथ्वी पर आकर जन्ममरण के बंधन से मुक्त करने वाली पापनाशनी उत्तरवाहनी बन गई।

इसे भी जाने:- यमनोत्री धाम के निकटवर्ती प्रमुख दर्शनीय स्थल

यमुनोत्री धाम की यात्रा का मार्ग परिचय-

यमुनोत्री धाम की यात्रा का प्रवेशद्वार ऋषिकेश है। यहा से यमुनोत्री मोटर मार्ग की दूरी 227 किलोमीटर है। ऋषिकेश से नरेन्द्रनगर, आगराखाल, चंबा, उत्तरकाशी, धरासु होते हुए फुलचट्टी तक कार द्वारा पहुचां जा सकता है। इससे आगे के यमुनोत्री तक 8 किलोमीटर का पगडंडी रास्ता पैदल तय करना पडता है। वेसै यात्रियो की सुविधा के लिए यहा पालकी और खच्चरो की सुविधा है। जिसमे यात्री। कुछ शुल्क देकर सुविधा का लाभ उठा सकते है।

कैसे पहुँचे –

वायुमार्ग- देहरादून स्थित जौलिग्रांट निकटतम हवाई अड्डा है।  कुल दूरी 210 किलोमीटर है।

रेल- मार्ग –ऋषिकेश से 231 किलोमीटर तथा देहरादनू से 185 किलो मीटर की दूरी पर हैं। सड़क मार्ग- ऋषिकेश से बस, कार अथवा टैक्सी द्वारा नरेंन्द्र नगर होते हुए यमुनोत्री के लिए 228 किलो मीटर की दूरी तय करते हुए फूलचट्टी तक पहुंचा जा सकता है। फूलचट्टी से मंदिर तक पहुंचने के लिए 8 किलो मीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती हैं।

संदर्भडा सरिता शाह की किताब उत्तराखंड में आधात्मिक पर्यटन।

इन्हे भी पढ़े _

गंगोत्री धाम का पौराणिक महत्त्व और इतिहास | History and hidden spritual importance of Gangotri Dham

हमारे फेसबुक पेज में जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। </a

गंगोत्री धाम का पौराणिक महत्त्व और इतिहास | History and hidden spritual importance of Gangotri Dham

0
गंगोत्री धाम
गंगोत्री

गंगोत्री धाम – जहाँ स्वर्ग से धरती पर उतरती हैं माँ गंगा –

केदारखंड के चारों धामों में यमुनोत्री की यात्रा के पश्चात् गंगोत्री धाम की यात्रा करने का विधान है। परमपावनी गंगा का स्वर्ग से अवतरण इसी पुण्यभूमि पर हुआ था। सर्वप्रथम गंगा का अवतरण होने के कारण यह स्थान गंगोत्री कहलाया। यह धाम हरिद्वार से 282 किमी. और ऋषिकेश से 257 किमी दूर स्थित है।

प्राचीनकाल में गंगोत्री धाम की यात्रा बहुत कठिन समझी जाती थी। ऊँचे पर्वत-शिखरों, दुर्गम घाटियों और उच्छृंखल सरिताओं कारण पार करना सामान्य मनुष्य के लिए दुष्कर था परंतु अब यातायात की सुविधा होने के कारणयह यात्रा बदरीनाथ की ही तरह सरल हो गई है। पहले जड़ गंगा  में पुल न होने के कारण इस नदी को लकड़ी के पल से पैदल पार करना पड़ता था।

गंगोत्री की समुद्र-तल से 10,300 फीट ऊँचाई होने के कारण काफी ठंड पड़ती है। वर्षा होने पर ठण्ड की अधिकता बहुत बढ़ जाती है। गंगोत्री धाम को गंगा का उद्गम स्थान माना गया है। लेकिन गढ़वाल के भौगोलिक वर्णनों के अनुसार यहाँ इस नदी को गंगा न कहकर भागीरथी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के आधार पर  , स्वर्ग से अवतरित होकर गंगा तीन धाराओं में बंट गई थी – भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी।

जो धारा राजा भागीरथ के पीछे गई वह भागीरथी कहलाई। देवप्रयाग में ये तीनों नदियाँ एकत्रित होकर गंगा नाम से जानी जाने लगीं। गंगोत्री धाम  में गंगा का वास्तविक उद्मग स्रोत नहीं है। गंगा का उद्गम गंगोत्री से 24 किमी.आगे गोमुख नामक स्थान से हुआ है। यहाँ भागीरथ शिखर से गोमुख हिमनद से गंगा प्रवाहित हो रही है।

गोमुख की समुद्रतल से ऊँचाई 12700 फीट है। यात्री गंगोत्तरी तक बड़ी सरलता से पहुँच जाता है। लेकिन गोमुख नहीं जा पाते हैं। अधिकांश यात्री गंगोत्तरी से लौट जाते हैं। गोमुख के लिए यातायात की सुविधा नहीं है। रास्ता काफी दुर्गम है। इसकी स्थिति 30°-59’-10” अक्षांश पर तथा 78°59′-30′ रेखांश पर है।

गंगोत्री धाम  का पौराणिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व –

पौराणिक कथाओं के आधार पर राजा भगीरथ ने श्रीमुख पर्वत पर कठिन तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रभावित होकर गंगा माँ ने स्वर्ग से भूलोक पर अवतरित होना स्वीकार किया, कहा जाता है कि उनकी वेगवती तीव्र धारा को पृथ्वी सहन न कर सकी, तब भगीरथ ने शिवजी को प्रसन्न करने हेतु सुमेरु पर्वत (सतोपंथ) पर तपस्या की।

तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने गंगा के भार को अपनी जटाओं में वहन किया, परंतु गंगा की धारा शिवजी की जटाओं में उलझ गई। पृथ्वी पर नहीं उतर पाई। भगीरथ द्वारा पुनः तपस्या करने पर प्रसन्न हो शिवजी ने जटाओं से गंगा को मुक्त किया। अब यह गंगा दस धाराओं में बहने लगी।

इनमें जो धारा भगीरथ के पीछे चली भागीरथी कहलाई। यह धारा-मोक्ष धारा के नाम से विख्यात हुई। शेष नौ धाराएँ अन्य दिशाओं को बह चलीं, जो एक-दूसरे से मिलती हुई देवप्रयाग में भागीरथी में मिलकर गंगा कहलाती हैं। गंगोत्री धाम में गंगा की धारा का प्रवाह उत्तर की ओर मुड़ जाने से इस स्थान को गंगोत्तरी कहा जाता है। यहाँ तर्पण, उपवास आदि करने से यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है और मनुष्य सदा के लिए ब्रह्मीभूत हो जाता है।

इसके अतिरिक्त वहाँ महालक्ष्मी,जाह्नवी,अन्नपूर्णा, यमुना, सरस्वती, भागीरथी व शंकराचार्य की मूर्तियाँ उल्लेखनीय हैं। गंगा मंदिर के निकट ही शिवजी व भैरव का मंदिर है। मंदिर से नीचे उतरने पर भागीरथी की तीव्र धारा दृष्टिगोचर होती है।

वहाँ लोग स्नान करने जाते हैं। सीढ़ियाँ उतरते ही एक विशाल शिला है, जो भागीरथी शिला के नाम से विख्यात है। कहा जाता है कि राजा भगीरथ ने इसी शिला पर बैठकर गंगा को पृथ्वी पर अवतरित करने के लिए तपस्या की थी। इसी स्थान पर यात्री पिंडदान करते हैं। यहाँ गंगाजी को तुलसी अर्पित करते हैं और यहीं पर ब्रह्मकुंड व विष्णुकुंड भी हैं।

गंगोत्री मंदिर के बारे में –

गंगोत्री धाम में पूजा का मुख्य स्थान गंगा-मंदिर है। इतिहास बताता है कि पहले यहाँ यमुनोत्तरी के समान ही कोई विशेष मंदिर नहीं था। 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में, जबकि गढ़वाल पर गोरखों ने अधिकार कर लिया, तो गोरखा सेनापति अमरसिंह थापा ने यहाँ गंगा-मंदिर का निर्माण कराया। उस समय इस मंदिर की ऊँचाई 16-20 फीट थी और इसके ऊपर कत्यूरी-शैली का शिखर चढ़ाया गया था।

एटकिन्सन ने 1882 ई. में इस स्थान की यात्रा की थी। उसने इस मंदिर का विवरण विस्तार से दिया है। उसके अनुसार इस मंदिर को गोरखा सेनापति अमरसिंह ने बनवाया था। यह उस शिलाखंड पर बनवाया गया था, जिसके लिए प्रसिद्ध है कि उस पर बैठकर भगीरथ ने तपस्या की थी।

यह वर्गाकार मंदिर 12 फीट ऊँचा था। इस गंगा-मंदिर के समीप ही इस स्थान के रक्षक देवता भैरव का एक छोटा-सा मंदिर बनाया गया।

गंगा-मंदिर में गंगा, भगीरथ तथा अन्य देवताओं की मूर्तियाँ हैं। मंदिर का प्रांगण चपटे पाषाणों से आबद्ध है। चारों ओर पत्थरों की बनी हुई दीवार है। इस प्रांगण के एक ओर छोटा-सा आवास है।कुछ लकड़ी के शेड तीर्थयात्रियों के लिए विश्राम के लिए बने हैं। तीर्थयात्री गुहाओं में भी ठहर जाते हैं। परंतु वर्तमान समय में अमरसिंह थापा द्वारा बनाए गए मंदिर का अस्तित्व नहीं है।

इस समय यहाँ एक भव्य और विशाल मंदिर है। इसकी रचना बाद में जयपुर के राजाओं ने कराई थी। गंगा मंदिर में मुख्य मूर्ति भगवती गंगा की है। इसके अतिरिक्त यहाँ महालक्ष्मी,अन्नपूर्णा, जाहनवी, यमुना, सरस्वती, भगीरथ और शंकराचार्य की मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठित हैं। गंगा-मंदिर के समीप ही एक भैरव मंदिर भी है।

इसमें शिव और भैरव की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। मंदिर से सीढ़ियाँ उतरकर भागीरथी पर स्नान करने के लिए जाते हैं।  सीढ़ियाँ उतरते ही एक विशाल शिला है, जो भगीरथ शिला कहलाती है।

कहा जाता है कि इसी शिला पर बैठकर राजा भगीरथ ने गंगा को स्वर्ग से अवतरित कराने के लिए तप किया था। इस स्थान पर पिंडदान आदि कर्म किए जाते हैं।

गंगोत्री धाम तक कैसे पहुँचें:

हवाई जहाज़ से गंगोत्री धाम : देहरादून का जॉली ग्रैंट एयरपोर्ट यहाँ से सबसे नज़दीक क़रीब 225 किमी दूर है। यहाँ से आप गंगोत्री के लिए टैक्सी ले सकते हैं जो आपको 8-9 घंटे में गंगोत्री पहुँचा देगा।

रेल से: निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। यहाँ से आप टैक्सी ले कर 8-9 घंटे में गंगोत्री पहुँच सकते हैं।

रोड से: गंगोत्री धाम जाने के लिए आपको आसानी से देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार से बसें मिल जाएँगी। ये शहर दिल्ली एवं लखनऊ से जुड़ें हुए हैं और आपको यातायात के साधन आराम से मिल जाएँगे।

इन्हे भी पढ़े _

गंगोत्री में घूमने लायक स्थान | Best places to visit in gangotri dham

हमारे फेसबुक पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

बद्रीनाथ धाम या बद्रीनारायण मंदिर । चार धामों में प्रमुख धाम।

0
बद्रीनाथ धाम

बद्रीनाथ धाम या बद्रीनारायण मंदिर –

बद्रीनाथ धाम या बद्रीनारायण मंदिर यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है । ये मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है।बद्रीनाथ मंदिर , चारधाम और छोटा चारधाम तीर्थ स्थलों में से एक है। यह अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है । ये पंच-बदरी में से एक बद्री हैं। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं ।

यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है । ऋषिकेश से यह 214 किलोमीटर की दुरी पर उत्तर दिशा में स्थित है । बद्रीनाथ मंदिर मुख्य आकर्षण है । प्राचीन शैली में बना भगवान विष्णु का यह मंदिर बेहद विशाल है। इसकी ऊँचाई करीब 15 मीटर है । पौराणिक कथा के अनुसार , भगवान शंकर ने बद्रीनारायण की छवि एक काले पत्थर पर शालिग्राम के पत्थर के ऊपर अलकनंदा नदी में खोजी थी । वह मूल रूप से तप्त कुंड हॉट स्प्रिंग्स के पास एक गुफा में बना हुआ था।

यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप ।बद्रीनाथ जी के मंदिर के अन्दर 15 मुर्तिया स्थापित है । साथ ही साथ मंदिर के अन्दर भगवान विष्णु की एक मीटर ऊँची काले पत्थर की प्रतिमा है । इस मंदिर को “धरती का वैकुण्ठ”भी कहा जाता है ।

बद्रीनाथ धाम में वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। लोककथा के अनुसार बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना पौराणिक कथा के अनुसार यह स्थान भगवान शिव भूमि( केदार भूमि ) के रूप में व्यवस्थित था ।

भगवान विष्णु अपने ध्यानयोग के लिए एक स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा के पास शिवभूमि का स्थान बहुत भा गयाा। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के पास) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के पास बालक रूप धारण किया और रोने लगे ।

उनके रोने की आवाज़ सुनकर माता पार्वती और शिवजी उस बालक के पास आये ,और उस बालक से पूछा कि तुम्हे क्या चाहिए । तो बालक ने ध्यानयोग करने के लिए शिवभूमि (केदार भूमि) का स्थान मांग लिया, इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव पार्वती से शिवभूमि (केदार भूमि) को अपने ध्यानयोग करने हेतु प्राप्त कर लिया ।यही पवित्र स्थान आज बद्रीविशाल के नाम से भी जाना जाता है ।

बद्रीनाथ धाम की मान्यताये –

  1. बद्रीनाथ मंदिर की पौराणिक मान्यताओ  के अनुसार , जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हो रही थी , तो गंगा नदी 12 धाराओ में बट गयी । इस लिए इस जगह पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से प्रसिद्ध हुई । और इस जगह को भगवान विष्णु ने अपना निवास स्थान बनाया और यह स्थान बाद में “बद्रीनाथ” कहलाया ।
  2. मान्यता यह भी है कि प्राचीन काल मे यह स्थान बेरो के पेड़ो से भरा हुआ करता था। इसलिए इस जगह का नाम बद्री वन पड़ गया ।
  3. और यह भी कहा जाता है की इसी गुफा में ” वेदव्यास “ ने महाभारत लिखी थी और पांडवो के स्वर्ग जाने से पहले यह जगह उनका अंतिम पड़ाव था। जहाँ वे रुके थे ।
  4.  बद्रीनाथ मंदिर के बारे में एक मुख्य कहावत है । ” जो जाऐ बद्री , वो ना आये ओदरी “ अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है , उसे माता के गर्भ में नहीं आना पड़ता है ।मतलब दर्शन करने वाले को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है । बद्रीनाथ मंदिर की मान्यता  यह है कि भगवान बद्रीनाथ के दर पर सभी श्रद्धालु की मनचाही इच्छा पूरी होती है ।
  5. बद्रीनाथ धाम की मान्यता यह है कि बद्रीनाथ में भगवान शिव जी को ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली थी ।
    इस घटना की याद “ब्रह्मकपाल” नाम  से जाना जाता है।ब्रह्मकपाल एक ऊँची शिला है । जहाँ पितरो का तर्पण,श्राद्ध किया जाता है।माना जाता है कि यहाँ श्राद्ध करने से पितरो को मुक्ति मिल जाती है ।
  6. इस जगह के बारे में यह भी कहते है कि इस जगह पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी ।नर अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्री कृष्ण के रूप में जन्मे थे

बद्रीनाथ के अन्य धार्मिक स्थल –

  • अलकनंदा के तट पर स्थित अद्भुत गर्म झरना जिसे ‘तप्त कुंड’ कहा जाता है।
  • एक समतल चबूतरा जिसे ‘ब्रह्म कपाल’ कहा जाता है।
  • पौराणिक कथाओं में उल्लेखित एक ‘सांप’ शिला है।
  • शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड ‘शेषनेत्र’ है।
  • चरणपादुका -भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं।
  • बद्रीनाथ से नजर आने वाला बर्फ़ से ढका ऊंचा शिखर नीलकंठ, जो ‘गढ़वाल क्वीन’ के नाम से जाना जाता है |

बद्रीनाथ धाम कैसे पहुंचे ?

हवाई मार्ग से –

बद्रीनाथ से निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट है, जो ऋषिकेश से सिर्फ 26 किमी दूर स्थित है। हवाई अड्डे से, यात्रियों को बद्रीनाथ पहुंचने के लिए टैक्सी या बस सेवा लेनी होगी।

ट्रेन द्वारा –

बद्रीनाथ धाम से सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश (297 किलोमीटर), हरिद्वार (324 किलोमीटर) और कोटद्वार (327 किलोमीटर) हैं। यहाँ से कैब के द्वारा या फिर बस द्वारा ही बद्रीनाथ धाम पंहुचा जा सकता है।

ऋषिकेश फास्ट ट्रेनों से नहीं जुड़ा है और कोटद्वार में ट्रेनों की संख्या बहुत कम है। इस प्रकार यदि आप ट्रेन से बद्रीनाथ जा रहे हैं तो हरिद्वार सबसे अच्छे रेलवे स्टेशन के रूप में कार्य करता है। हरिद्वार भारत के सभी भागों से कई ट्रेनों द्वारा जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग से-

सड़क मार्ग से बद्रीनाथ धाम आसानी से पहुँचा जा सकता है। यह दिल्ली से 525 किलोमीटर और ऋषिकेश से 296 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली, हरिद्वार और ऋषिकेश से बद्रीनाथ के लिए नियमित अन्तराल पर बसें उपलब्ध रहती हैं। ऋषिकेश बस स्टेशन से बद्रीनाथ के लिए नियमित अन्तराल पर बसें चलती हैं। और सुबह होने से पहले ही बस सेवाएं शुरू हो जाती हैं।

जोशीमठ के बाद सड़क संकीर्ण है और सूर्यास्त के बाद सड़क मार्ग पर यात्रा करने की अनुमति नहीं होती है। इसलिए यदि कोई ऋषिकेश बस स्टेशन पर बद्रीनाथ के लिए बस लेने से चूक जाता है, तो उसे रुद्रप्रयाग, चमोली या जोशीमठ तक की बस लेनी पड़ेगी और यहाँ से बद्रीनाथ तक बस या कैब के द्वारा सफ़र करना पड़ेगा ।

बद्रीनाथ धाम के लिए सड़क मार्ग की उपलब्धता –

बद्रीनाथ धाम हरिद्वार, ऋषिकेश, देहरादून, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कोटद्वार, जोशीमठ और गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्र के अन्य हिल स्टेशनों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहाँ पर अनेक बस सेवाएं उपलब्ध रहती है ।

प्रमुख स्थलों से बद्रीनाथ धाम पहुचने के लिए दूरी –

  • ऋषिकेश से बद्रीनाथ 301 किमी
  • गौरीकुंड (केदारनाथ के समीप)बद्रीनाथ 233 किमी
  • कोटद्वार-बद्रीनाथ 327 किमी
  • दिल्ली-बद्रीनाथ 525 किमी
  • औली-बद्रीनाथ 34 किमी
  • फूलो की घाटी-बद्रीनाथ 70 किमी
  • कसौनी-बद्रीनाथ 201 किमी
  • अल्मोड़ा से बद्रीनाथ 243 किमी

इन्हे भी पढ़े _

रानीखेत के कुवाली गांव में स्वयं विराजते भगवान बद्रीनाथ

हमारे फ़ेसबुक पेज देवभूमि दर्शन से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें

केदारनाथ के आस पास घूमने लायक स्थान | Best places to visit near kedarnath

0
केदारनाथ के दर्शनीय स्थल

केदारनाथ के दर्शनीय स्थल

केदारनाथ के दर्शनीय स्थल जिनका आप अपनी यात्रा के दौरान लुफ्त उठा सकते है। के चार उत्तराखंड धामों में से एक है केदारनाथ धाम जो कि प्रकृति की खूबसूरत वादियों से घिरा हुआ है। यूँ तो केदारनाथ धाम आस्था का बहुत विशाल पवित्र स्थल है परन्तु इसकी आसपास की खूबसूरती भी पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करने से पीछे नहीं रहती। यहाँ का शांत वातावरण भगवान के प्रेम में डूबे श्रद्धालु और प्राकृतिक सौंदर्य किसी चमत्कार से कम नहीं है।

यहाँ आप मंदिर की खूबसूरत कलात्मक शैली, भक्तों कीआस्थाएं, पर्वतों पर बिखरी रूईनुमा बर्फ, हसीन वादियों में तेज़ हवाओं के झौंके, मंदाकिनी नदी का तेज़ बहाव, कल कल करता पानी का शोर आदि को यहाँ आकर भली भाँती देख सकते हैं। यहीं कुछ दूरी पर एक झील है जो दर्शनीय है इस झील की भी अपनी अलग महत्वता है।

यहीं से तक़रीबन 6 किलोमीटर की दूरी पर एक ताल भी है जो की वासुकी ताल के नाम से जाना जाता है। केदारनाथ धाम में आप त्रिजुगीनारायण, अगस्तयमुनि, गौरी कुण्ड, सोन प्रयाग, गुप्तकाशी, उखीमठ, पंच केदार आदि दर्शनीय स्थलों के दर्शन कर सकते हैं।

केदारनाथ मंदिर –

केदारनाथ मंदिर हिमालय की खूबसूरत हसीन वादियों में बना विशालतम आस्थाओं से रचा मंदिर है जो कि एक चौड़े पत्थर पर विराजमान है। भक्तों की भक्ति और प्रकृति ने इसकी सुंदरता में चार चाँद लगाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है।

शंकराचार्य समाधि –

कहा जाता है कि 32 वर्ष की उम्र में शंकराचार्य ने यहाँ समाधि ली थी। तक़रीबन 8 वीं शताब्दी में गुरु जी शंकराचार्य केदारनाथ मंदिर आये थे। इस मंदिर के दर्शन के बाद उन्होंने यहीं समाधि ली थी, शंकराचार्य समाधि दर्शनीय है।

त्रियुगीनारायण –

त्रियुगीनारायण में शिव मंदिर दर्शनीय है जो कि केदारनाथ शैली में बना हुआ है। अगर आप केदारनाथ आना चाहते हैं तो यहाँ अवश्य आएं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहाँ भगवान् शिव और पार्वती का विवाह हुवा था।

गुप्तकाशी –

गुप्तकाशी भगवान शिव के पवित्र तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यह केदारनाथ धाम  से लगभग 47 किलोमीटर पहले स्थित है। गुप्तकाशी समुद्र तल से 1319 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदाकिनी नदी घाटी के पश्चिम की ओर एक पहाड़ी पर स्थित है।

गुप्तकाशी उत्तराखंड का धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण तीर्थ है क्योंकि इसमें विश्वनाथ मंदिर और अर्धनारीश्वर मंदिर जैसे प्राचीन मंदिर हैं। इसे कैलाश का द्वार भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान् गणेश का दांत यहीं टूटा था। यह केदारनाथ के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में एक है।

ऊखी मठ –

ऊखी मठ बेहद शांत वातावरण वाला रमणीक स्थल है। कहा जाता है कि जब केदारनाथ मंदिर बंद कर दिया जाता है तब इसकी मूर्ति को ऊखी मैथ की गद्दी पर रखा जाता है। ( केदारनाथ के दर्शनीय स्थल )

केदारनाथ के दर्शनीय स्थल गौरी कुंड –

गौरी कुंड एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है जो कि गुप्तकाशी से लगभग 28 किमी और सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह कुंड उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह कुंड उत्तराखंड में केदारनाथ मंदिर की यात्रा के लिए आधार शिविर भी है। गौरीकुंड समुद्र तल से लगभग 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। और 30°38 अक्षांश पर और  उत्तर और देशांतर 79°1 ई. पर स्थित है। पहाड़ों का भव्य दृश्य और पास में बहने वाली मंदाकिनी नदी केआसपास की रमणीय हरियाली देखने लायक है।

चौखाटी ताल –

चौखाटी ताल को गांधी ताल भी कहते हैं। कहा जाता है कि यहाँ महात्मा गांधी की अस्थि यहीं प्रवाहित की गई थी। इस बर्फीले सरोवर में इस ताल के साथ साथ शंकराचार्य की समाधि भी देखने योग्य है।

केदारनाथ के दर्शनीय स्थल देवरिया ताल –

देवरिया ताल अपने सौंदर्य के लिए पर्यटकों के बीच खासा लोकप्रिय है। यहाँ बर्फ से ढकी चोटियां बेहद लुभावनी लगती हैं। यहाँ से गगनचुंबी पहाड़ियां बेहद आकर्षक लगती हैं। ( केदारनाथ के दर्शनीय स्थल )

वासुकी ताल –

वासुकी ताल केदारनाथ धाम से तक़रीबन 6 किलोमीटर की दूरी पर होगी। यह एक बेहद आकर्षक झील है। यह झील ऊंचाई पर बनी हुई है इसलिए इस तक पहुँचने के लिए काफी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। केदारनाथ के दर्शनीय स्थलों में महत्वपूर्ण स्थल है।

उत्तराखंड में स्वरोजगार की नई पहल,पहली बार धरातल पर आया अपना पोर्टल, अपना स्टोर ऑनलाइन बना कर ऑनलाइन विक्रेता बनिये।

इसे भी पढ़े……

भगवान शिव का अनोखा केदारनाथ धाम .

गाडो गुलबंदा गढ़वाली गीत के बोल।

गंगोत्री में घूमने लायक स्थान | Best places to visit in gangotri dham

0
गंगोत्री में घूमने लायक

गंगोत्री में घूमने लायक स्थान

जब भी आप चार धाम की यात्रा के लिये आये तो उनके आस -पास कई ऐसी जगह होती है जिनके बारे मे हमको पता नही होता इसलिए हम उनके दर्शन नही कर पाते है आज हम आपको गंगोत्री के आस-पास घूमने के लिए व देखने के लिए कुछ खास जगह के नाम बताएंगे यात्रा के  साथ-साथ आप इनके भी दर्शन कर सकते है।

गंगोत्री मंदिर :

गंगोत्री में घूमने लायक और देखने लायक गंगा माता का पहला और सबसे ज़्यादा धार्मिक महत्व रखने वाला यह मंदिर गंगोत्री का प्रमुख आकर्षण है और भक्तों को दूर-दराज़ से बुलावा देता है। यह छोटे चार धाम यात्रा में से भी एक है।

गौरीकुंड :

गंगा मंदिर से एक फर्लांग नीचे की ओर भागीरथी चट्टानों के बीच से झरना बनकर गिरती है। नीचे विशाल शिवलिंग है, जो प्राकृतिक है। यह वही शिवलिंग है, जिस पर जलधारा गिरती है। पार्वती ने शिव को प्राप्त करने के लिए यहीं पर कठोर तपस्या की थी।

पटांगण –

यह वही स्थान है, जहाँ पांडवों ने गोहत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए तप और यज्ञ किया था। यहाँ एक विशाल गुफा है, जिसे रुद्र गुफा के नाम से जाना जाता है। यही पटांगण है, जहाँ आज भी पितरों का श्राद्ध किया जाता है। यह स्थान भी गंगोत्री में घूमने लायक और देखने लायक खास स्थान है।

केदार गंगा संगम –

गंगोत्तरी मंदिर से 100 कदम नीचे केदार शिखर से केदारगंगा जल की एक धारा के रूप में आती है तथा भागीरथी के बाएँ तट पर आकर मिलती है। कहा जाता है कि इसी गंगा साथ-साथ पांडव केदारनाथ तक पहुँचे।

शंकराचार्य की समाधि –

जनुश्रुतियों के अनुसार शंकराचार्य ने गंगोत्तरी की यात्रा की थी और अपना शरीर यहीं त्याग दिया था। गंगा-मंदिर के बीच शंकराचार्य की समाधि बनी है, परंतु शंकराचार्य की वास्तविक समाधि केदारनाथ में बनी है। यहाँ शंकराचार्य ने तप किया था, इसीलिए उनकी स्मृति बनाए रखने के लिए यह समाधि बनाई गई है।

भैरव मंदिर –

भैरव घाटी में जाह्नवी को पार करते ही ऊपर भैरव मंदिर बना हुआ है। यह गंगोत्तरी का रक्षक देवता है। बिना भैरव की पूजा किए गंगोत्तरी का फल नहीं मिलता। इस भैरव के कारण ही जाह्नवी की घाटी को भैरव-घाटी कहा जाता है। गंगोत्री में घूमने लायक खास स्थान है।

गंगोत्री में घूमने लायक गोमुख –

साहसिक यात्री गंगोत्तरी से गोमुख तक की यात्रा करते हैं। गोमुख पहुँचने पर गंगाजी का प्रकटीकरण द्रष्टव्य होता है। गोमुख ही गंगाजी का उद्गम-स्थान माना गया है। यह स्थान गंगोत्तरी से 26 किमी. उत्तर में है। गोमुख की समुद्रतल से ऊँचाई 12700 फीट है। जनश्रुति के अनुसार गंगाजी गोमुख आकृति वाले पर्वत से निकली हैं, इसीलिए गंगा के उद्गम स्थल को गोमुख नाम दिया गया है।

इन्हे भी पढ़े _

उत्तराखंड के चार धाम का संक्षिप्त परिचय | An Introduction of Uttarakhand 4 Dham

0
उत्तराखंड के चार धाम

उत्तराखंड के चार धाम

चार धाम यात्रा को हिंदुओं के सबसे पावन यात्राओं में से एक माना जाता है मान्यता है कि एक हिन्दू को जीवन में एक बार इनकी यात्रा अवश्य करनी चाहिए। ये धाम भारत के चार दिशाओं में फैले हैं यानि बद्रीनाथ (उत्तराखंड), रामेश्वरम् (तमिलनाडू), द्वारका (गुजरात) एवं जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा)।लोगो के लिए चार धाम की यात्रा करना एक सुन्दर सपने का पुरे होने जैसा है। हिन्दू पुराणों के अनुसार चारो धाम के नाम ये है –
1.बद्रीनाथ
2.द्वारका,
3.जगन्नाथ पुरी
4.रामेश्वरम

लेकिन आज हम आपको उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा के बारे में बताते है। जिसे छोटे चार धाम और उनकी यात्रा को  छोटी चार धाम यात्रा कहा जाता है। इस यात्रा में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री शामिल है।

बद्रीनाथ मंदिर –

यह मंदिर उत्तराखंड में हिमालय की चोटियों पर अलकनंदा नदी के तट पर बना हुआ है। इसी स्थान पर नर-नारायण ने तपस्या की थी। इस मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। बद्रीनाथ को भगवान विष्णु का दूसरा निवास या दूसरा बैकुंठ धाम भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यता अनुसार सतयुग में यहां भगवान विष्णु सभी भक्तों को दर्शन देते थे। उसके बाद त्रेतायुग में यहां केवल देवताओं और साधुओं को ही विष्णु भगवान के दर्शन मिलते थे।

त्रेतायुग के बाद भगवान ने यह नियम बना दिया कि आगे से यहां देवताओं के अलावा अन्य सभी को मूर्ति रूप में ही उनके दर्शन होंगे। बद्रीनाथ के बारे में कहा जाता है कि यहाँ छह माह इंसान और छह महीने देवता भगवान् की पूजा करते हैं। इसलिए यहाँ की यात्रा ग्रीष्म काल में छह महीने चलती है। केदरनाथ से यात्रा पर यह उत्तराखंड के चार धाम यात्रा में दूसरा तथा यमुनोत्री से शुरू करने पर तीसरा धाम पड़ता है।

उत्तराखंड के चार धाम  में से एक केदारनाथ  –

यह मंदिर उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में बना हुआ है। यहाँ भगवान् शंकर की पूजा की जाती है। यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में भी शामिल है। आधुनिक मंदिर का निर्माण आदि शंकराचार्य ने करवाया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पांडवो ने इस मंदिर की स्थापना की थी। जब पांडव कुल नाश के पाप का प्रायश्चित करने शिव पूजन के लिए  हिमालय आये ,तो भगवान् शिव उनसे नाराज थे ,वे वर्तमानं वाले केदारनाथ जगह पर बैल का रूप धारण करके चरने लगे।

लेकिन पांडवों ने उन्हें पहचान लिया। तब भीम ने उनकी पूछ पकड़ी तो वे जमीन में धसने लगे। जमीन में धसने के बाद बैल रूप में उनके अंग पांच जगह से बहार निकले जो आज पंच केदार के रूप में पूजे जाते हैं। केदारनाथ में भगवान् के पीठ भाग की पूजा की जाती है। केदारनाथ यात्रा भी छह महीने चलती है। उत्तराखंड के चार धाम में महत्वपूर्ण धाम है केदारनाथ। केदरनाथ से यात्रा करने पर पहला और यमुनोत्री से करने पर चौथा धाम है यह।

उत्तराखंड के चार धाम में से महत्वपूर्ण धाम गंगोत्री , माँ गंगा का उद्गम स्थल –

उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा के क्रम में गंगोत्री धाम दूसरा धाम है। गंगोत्री वह स्थान है जहाँ से गंगा नदी का उद्भव होता है। गंगोत्री उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। भक्त यहाँ गंगा जल से स्नान करने और गंगा मैया के प्राचीनतम मंदिर के दर्शन हेतु आते है।

यह गढ़वाल मण्डल के उत्तरकाशी जनपद के टकनौर परगने में उसके मुख्यालय उत्तरकाशी से उत्तर में 94 मील पर समुद्रतट से 10,020′ की ऊंचाई पर भागीरथी के बाएं तट पर स्थित यह तीर्थ स्थल ठीक केदारनाथ के हिमालय के पीछे गंगा घाटी में गंगा जी के दक्षिण क्षेत्र में सघन देवदारु की वनस्थली के मध्य उ. अक्षांश 30°-59-10″ और पू. देशान्तर 78°-59-30′ पर स्थित है।प्रमुख स्थानीय दूरियों के हिसाब से इसकी दूरी हरिद्वार से 282 किमी. तथा ऋषिकेश से 257 किमी. और उत्तरकाशी मुख्यालय से 97 किमी. है।

पौराणिक परम्परा के अनुसार इसी स्थान पर रघुवंशी महाराज भगीरथ ने गंगा को प्राप्त करने के लिए दीर्घकालीन तपस्या की थी। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र के विषय में यह लोक मान्यता है कि महाभारत युद्ध के उपरान्त पांडवों ने शिव की आराधना के लिए इसी स्थान पर आकर तपस्या की थी तथा उनके दर्शनों के बाद यही से अपनी स्वर्गीय यात्रा के लिए’स्वर्गारोहिणी’ की ओर गये थे।

यहां पर राजा भगीरथ तथा भागीरथी दोनों के देवालय हैं जहां पर प्रतिदिन त्रिकाल पूजन आराधन किया जाता है। मोटर मार्ग से यहां पर ऋषिकेश से नरेन्द्रनगर, उत्तरकाशी, हरसिल व गंगनानी होकर पहुंचा जा सकता है। धार्मिक आस्था के अनुसार उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा करने वाले श्रद्धालु यमुनोत्री की यात्रा के बाद अगली यात्रा गंगोत्तरी की करते हैं।

उत्तराखंड के चार धाम यात्रा की शुरुवात होती है यमुनोत्री से –

यमुनोत्री  वह स्थान है जहाँ से यमुना नदी का उद्भव होता है। यह भी उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है।उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा यहीं से शुरू होती है। यह उत्तरकाशी जिले में समुद्र की सतह से 3185 मी. की ऊंचाई पर स्थित है
है। यमुना का उद्गम स्थल चंपासर ग्लेशियर इस तीर्थस्थल से लगभग 1 किमी. ऊपर कालिन्दी पर्वत के अंक में स्थित एक प्राकृतिक हिम सरोवर 4,421 मी. है, जहां पर पहुंचना अति कठिन है।

यमुनोत्री के पास नदी की जलधारा उत्तरवाहिनी हो जाता है। यहां की यात्रा का आरम्भ ऋषिकेश से होता है। और यात्री सड़कमार्ग से टिहरी, धरासू, हनुमान चट्टी, जानकी चट्टी तक गंगोत्री मार्ग पर जाकर वहां से खरसाली होता हुआ 14 किमी. पैदल चलकर यहां पहुंचते है। चारों ओर से उन्नत हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं से आवृत तथा निकटस्थ चीड़ की वनावली से सुशोभित यह स्थान स्वयं में अति मनोरम है। इसस्थान पर यमुना की धारा किंचित उत्तरवाहिनी हो जाती है। इसलिए इसे यमुना-उत्तरी कहा जाता है।

इसे पढ़े _चार धाम यात्रा का सम्पूर्ण इतिहास | Full history of 4 dham yatra

हमारे व्हाट्सप ग्रुप में जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

चार धाम यात्रा का सम्पूर्ण इतिहास | Full history of 4 dham yatra

0
चार धाम यात्रा

चार धाम यात्रा का सनातन धर्म में बहुत बड़ा महत्त्व है। चार धामों की यात्रा के बारे में कहा गया है कि ,जो व्यक्ति अपने जीवन में चार धामों की यात्रा करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रत्येक सनातनी को अपने जीवन में इन चार धामों की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।

यहाँ भारत के चार धामों के बारे में बात हो रही है जिनका नाम , बद्रीनाथ ,द्वारिका ,जगन्नाथ पूरी और रामेश्वरम है। इसी प्रकार उत्तराखंड में भी चार धाम हैं ,जिनकी यात्रा को छोटी चार धाम यात्रा कही जाती है। ये एक ही दिशा और एक ही क्षेत्र में हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में स्थित केदारनाथ ,बद्रीनाथ ,गंगोत्री ,यमुनोत्री छोटे चार धाम स्थित है।

चार धाम यात्रा का इतिहास –

आदि शंकराचार्य  को सनातन धर्म की पुनर्स्थापना का श्रेय जाता है। आदि शंकराचार्य जी ने सम्पूर्ण भारत की यात्रा करके भारत के चारों दिशाओं में चार प्रमुख पीठों स्थापना की थी।  जिन्हे आज भारत के चार धाम के नाम से जानते हैं।  शंकराचार्य जी ने बद्रीनाथ ,द्वारिका धाम ,जगन्नाथ पूरी और रामश्वेरम की स्थापना की थी। और चार धाम यात्रा की परम्परा को शुरू किया।

कहते हैं भारत में सनातन धर्म की एकता और अखंडता अक्षुण रखने के उद्देश्य से आदि गुरु शकराचार्य ने देश के चार बड़े मंदिरों को चार धाम के रूप में विकसित किया। इनमे पुजारी भी एकदम बिपरीत क्षेत्र के स्थापित किये। जैसे -बद्रीनाथ धाम में दक्षिण के रावल पूजा करते हैं। और रामेश्वरम में उत्तर के पंडित पूजा करते हैं। और जगन्नाथ पूरी में पक्षिम के पुजारी रखे और द्वारिका में पूर्व के पुजारी रखे।

इसमें आदि शंकराचार्य जी का एक ही उद्देश्य था ,पुरे देश को आधयात्मिक और सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांधना और सनातन धर्म को मजबूत करना। कहते हैं ये चारों धाम एक दूसरे के सीधे सीध में पड़ते हैं।

इसे भी जाने:- देवभूमि उत्तराखंड के चार धाम

चार धाम और चार धाम यात्रा का संक्षिप्त परिचय –

भारत के चार कोनों पर स्थित चार धाम आदिकाल के प्रसिद्ध मंदिर या ऐसे धार्मिक केंद्र हैं जिनका भगवान से सीधा नाता है। बद्रीनाथ नर नारायण पर्वतों के बीच में अलकनंदा नदी के किनारे बसा यह तीर्थ भगवान् विष्णु को समर्पित धाम है। यह सनातन धर्म के चार धामों में से एक है।

बद्रीनाथ भगवान विष्णु के चतुर्थ अवतार नर नारायण को समर्पित धाम है। बद्रीनाथ को मोक्षद्वार भी कहते हैं। बद्रीनाथ के बारे में कहा जाता है कि , जो बद्रीनाथ आता है उसे जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है। चार धाम यात्रा में पहली यात्रा बद्रीनाथ धाम की की जाती है।

बद्रीनाथ के बाद द्वारिका धाम का नंबर आता है। द्वारिका धाम भगवान कृष्ण को समर्पित धाम है। द्वारिका द्वापर युग में भगवान् कृष्ण के राज्य का नाम था। द्वारिका धाम गोमती नदी और अरब सागर के किनारे ओखामंडल प्रायद्वीप के तट पर बसा हुआ है। वर्तमान में मूल द्वारिका समुद्र के अंदर है।

इसके बाद चार धाम यात्रा में आती है  जगन्नाथ पूरी धाम। जगतनाथ पूरी भगवान् कृष्ण को समर्पित धाम है। यह उड़ीसा के तटवर्ती शहर पूरी में स्थित यह धाम में भगवान् कृष्ण की जगन्नाथ और भाई बलभद्र और बहिन सुभद्रा की पूजा होती है। यहाँ वर्ष में एक बार जगन्नाथ रथ यात्रा भी आयोजित की जाती है।

भारत के चार धामों में प्रसिद्ध धाम रामश्वेरम धाम है। इसकी स्थापना भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से भगवान् शिव की पूजा करने के लिए किया था। इसका नाम रामेश्वर भी उन्होंने ने ही रखा था।

रामेश्वर का अर्थ है राम के ईश्वर। रामेश्वर हिन्दू धर्म के अनुयायियों के पवित्र धामों में से एक है। यह भारत के राज्य तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। कहते हैं इस मंदिर में पवित्र गंगाजल से पूजा करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यहाँ के पवित्र जल से स्नान करने के बाद असाध्य रोग भी दूर होते हैं।

यहां भी देखे…….

बद्रीनाथ धाम या बद्रीनारायण मंदिर । चार धामों में प्रमुख धाम।

हमारे व्हाट्सप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। </a

उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर – Top 10 temple of Uttarakhand

0
उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर

उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर – उत्तराखंड का नाम ही देवभूमि है वैसे यहाँ छोटे बड़े बहुत सारे मंदिर देखने के लिए मिल जायेंगे। यहाँ के हर मंदिरों का वैसे अपना एक इतिहास है। यहाँ एक से बढ़कर एक पौराणिक और ऐतिहासिक मंदिर है। प्रस्तुत लेख में उत्तराखंड के दस प्रसिद्ध मंदिरों का वर्णन किया गया है। जहाँ आप दर्शन करके ईश्वर का आशीर्वाद और अलौकिक शांति का अनुभव कर सकते हैं –

देवभूमि उत्तराखंड के  दस प्रसिद्ध व अलौकिक मंदिर –

  1. बद्रीनाथ धाम
  2. केदारनाथ धाम
  3. धारी देवी
  4. सुरकंडा देवी मंदिर
  5. जागेश्वर धाम
  6. बागेश्वर
  7. चितई मंदिर अल्मोड़ा
  8. कटारमल सूर्य मंदिर
  9. बैजनाथ
  10. महासू देवता मंदिर

केदारनाथ मंदिर ,उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में एक मंदिर  –

उत्तराखंड के प्रसिद्ध चार धामों में से एक धाम केदारनाथ धाम  है। भगवान् शिव के इस धाम का बहुत ही पौराणिक महत्त्व है। लिंगपुराण के अनुसार जो व्यक्ति सन्यासरत होकर केदारनाथ में निवास करता है। उसे शिवत्व की प्राप्ति होती है। केदारनाथ का दर्शन और स्पर्श परम मोक्षदायक बताया गया है। यह मंदिर उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में प्रमुख है। केदारनाथ हिमालय के पांच प्रमुख खण्डों में परिगणित अन्यतम खण्ड के द्वारखण्ड स्कन्द पुराण का एक महत्वपूर्ण खण्ड है-

खण्डा पंच हिमालयस्य कथिता नेपाल कूर्माचलौ ।
केदारोऽथ जलन्धरोऽथ रुचिरः कश्मीर संज्ञोन्तिमः । ।

केदारनाथ का पवित्र धाम उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में उसके रुद्रप्रयाग जनपद के नागपुर परगने की मल्ली कालीफाट पट्टी में मन्दाकिनी नदी के दक्षिणी तट पर समुद्रतल से 3543मी. (11,753 ) की ऊंचाई पर एक समतल भूमि पर अक्षांश 30°-44′-15″ एवं देशान्तर 79°-6′-33″ पर स्थित है।

बद्रीनाथ धाम –

उत्तराखंड के चार धामों में से प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में एक मंदिर है। पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व वाले इस मंदिर में भगवान् विष्णु की पूजा होती है। बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना शंकराचार्य ने की थी। इसके कपाट अप्रैल मई में खुलने के साथ यहाँ की यात्रा शुरू हो जाती है। अक्टूबर में शीतकालीन के लिए इसके कपाट बंद हो जाते है। यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जनपद में ,समुद्रतल से लगभग 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

 उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरो में खास मंदिर “धारी देवी ” –

वैसे तो उत्तराखंड में माँ भगवती को समर्पित कई मंदिर हैं। सभी एक से बढ़कर एक चमत्कारी और दिव्य मंदिर हैं। लेकिन धारी देवी मंदिर उन सब में विशेष महत्त्व रखता है। यह मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर गढ़वाल में स्थित है। यह मंदिर माँ काली को समर्पित मंदिर है। कहते हैं यहाँ माँ दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। इस मंदिर  के बारे में एक और मान्यता प्रचलित है। कहते हैं जब  शंकराचार्य नवी या दसवीं शताब्दी आस पास उत्तराखंड आये तो उन्होंने माता की मूर्ति को सूरजकुंड निकाल कर स्थापित किया। और स्थानीय पुजारियों को उसकी पूजा का कार्यभार सौंप दिया था। इसे पढ़े – धारी देवी उत्तराखंड का चमत्कारी एवं रहस्यमय मंदिर।

सुरकंडा देवी मंदिर ( उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर ) –

भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है उत्तराखंड का सुरकंडा देवी मंदिर। सुरकण्डा देवी का प्राचीन सिद्धपीठ टिहरी जनपद में चम्बा – मसूरी मार्ग पर मसूरी से 27 किमी. तथा धनोल्टी से 10 किमी. पर समुद्र की सतहसे 3030 मी. की ऊंचाई पर एक अत्यन्त रमणीक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। यहां से हिमालय की अनेक पर्वत
श्रृंखलाओं, दूनघाटी, मसूरी एवं चम्बा (टिहरी) के अत्यन्त नयनाभिराम दृश्य दृष्टिगोचर होते हैं।

किन्तु इसका एक देवस्थल जौनपुर में भी है। इस सम्बन्ध में उल्लेख्य है कि यहां से लोगों के लिए टिहरी जनपदस्थ सुरकण्डा सिद्धपीठ काफी दूर होने के कारण उसके श्रद्धालुओं के द्वारा यह देवस्थल मसूरी से 29 किमी आगे यहां की सिलवाड़ पट्टी के ऊंचे शिखर पर भी स्थापित कर दिया गया है। इसके विषय में माना जाता है कि यहां पर दक्ष यज्ञ में देवी सती ,के देहत्याग के बाद भगवान शिव को शांत करने के लिए ,सती की देह पर भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन से वार किये तो माता का सिर यहाँ गिरा था। इसीलिए इसे ‘छिन्नमस्त’ भी कहा जाता है। ( उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर)

कहा जाता है कि यह यहां के शासक पंवारों की कुलदेवी है। इसके पुजारी कुदाऊं के ब्राह्मण तथा कोली होते हैं। यहां पर साल में दो बार चैत्रमास की अष्टमी तथा आश्विन की नवरात्रियों में विशेष पूजाओं का आयोजन होता है तथा गंगादशहरे के दिन मेला भी लगता है। इसके अतिरिक्त प्रथम सन्तति (पुत्र/पुत्री) के आगमन पर यहां पर जात का आयोजन भी किया जाता है। सिलवाड़ शिखर के अतिरिक्त इस क्षेत्र में इसके पूजास्थल छारगढ़, बिच्छू, क्यारी, ख्यांसी गैड़, चमासारी, ठाल, कुदाऊं आदि में भी हैं। इससे ही सम्बद्ध पूजास्थलों, अगिछा में इसे घिन्ना देवी तथा पीपलखेत में राजराजेश्वरी के नाम से पूजा जाता है।

जागेश्वर धाम –

जागेश्वर धाम भगवान् शिव का प्रसिद्ध धाम है। यह मंदिर उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। कहते हैं सर्वप्रथम भगवान् शिव का शिवलिंग रूप में पूजन यहीं से शुरू हुवा था। देवदार के दारुकवन में स्थित उत्तराखंड का सबसे बड़ा मंदिर समूह है। यहाँ 124 -125 मंदिरों का समूह है।

जागेश्वर भगवान् शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर नगरी समुद्रतल से लगभग 1870 मीटर की उचाई पर स्थित है। दारुकवन में देवदार के जंगल के बीच मृत्युंजय मंदिर में स्थित शिवलिंग को ‘ नागेश जागेश दारुकवने ‘ आधार पर शकराचार्य जी द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिग माना गया है। यहाँ जागेश्वर के बारे में विस्तार से पढ़े।

उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर बागेश्वर का व्याघ्रेश्वर महादेव –

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में स्थित बागेश्वर को कुमाऊँ की कशी कहा जाता है। यहाँ भगवान् शिव व्याघ्रेश्वर रूप में रहते हैं। यहाँ स्नान -दान का काशी के बराबर महत्व बताया गया है।  कुमाऊं क्षेत्र के वासी जब काशी नहीं जा सकते थे ,तो निकट बागेश्वर में स्नान करने जाते थे। यहाँ यज्ञोपवीत ,अंतिम संस्कार आदि कार्य होते हैं। इस स्थान को एक. तीर्थ की मान्यता दी गई है। यहाँ का समृद्ध पौराणिक इतिहास रहा है।

उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक चितई मंदिर अल्मोड़ा –

चिठ्ठी वाला मंदिर ,सर्वोच्च न्यायलय आदि नामो से विख्यात कुमाऊँ के लोक देवता गोलू देवता का यह मंदिर ,पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित यह मंदिर न्याय का मंदिर नाम से भी प्रसिद्ध है। यहाँ के देवता गोलू देवता को न्याय का देवता माना जाता है।

लोग अपनी मनोतिया चिट्ठियों या स्टाम्प पेपरों में लिखकर यहाँ लगाते हैं। मनोकामना पूर्ति के बाद घंटियां चढ़ाने का रिवाज है। इसे घंटियों वाला मंदिर भी कहते हैं। कहते हैं कोर्ट में जनता के हितार्थ जो भी निर्णय निकलते हैं ,उनकी एक कॉपी यहां भी अर्पित की जाती है। इसलिए इस मंदिर को सर्वोच्च न्यायालय भी कहते हैं।

 उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर में से एक कटारमल सूर्य मंदिर –

भारत का दूसरा प्राचीन सूर्यमंदिर उत्तरखंड के अल्मोड़ा जिले के कटारमल नामक गांव में स्थित है। कोसी नामक कस्बे के किनारे स्थित यह मंदिर उत्तराखंड के साथ साथ भारत के सबसे प्राचीन मंदिरो में से एक है। अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से लगभग 17 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर बड़ादित्य मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस मंदिर  में पारम्परिक बूटधारी सूर्य की मूर्ति भी स्थित है। कटारमल सूर्यमंदिर के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़े

बैजनाथ –

पुराणों में वर्णित गोमती तथा गरूड़ी नदियों के संगम पर स्थित बैजनाथ जहाँ कामदेव के दमन के पश्चात् पार्वती को ब्याहने जाते समय महादेव जी ने ठहरकर गणेश का पूजन किया था। अल्मोड़ा से 70 किमी. तथा हिमालय-दर्शन के लिए प्रसिद्ध कौसानीसे 16 किमी. की दूरी पर है। (उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर)

यहाँ कई मंदिरों का निर्माण हुआ था। इनसे प्राप्त शिलालेखों से ज्ञात होता है कि कत्यूरी, चंद तथा गंगोली राजाओं ने समय-समय पर यहाँ के मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। संभवतः उनके काल में मूर्तियों का भी अंकन हुआ था। बैजनाथ मंदिर-समूह के मध्य वैद्यनाथ महादेव का प्राचीन मंदिर था, जिसका अब निचला भाग ही शेष रह गया है। किंतु इस मंदिर में प्रतिष्ठित शिव-प्रतिमा की अब भी मान्यता प्राप्त है।

महासू देवता मंदिर –

उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक जौनसार का महासू देवता मंदिर। महासू का अर्थ होता है महाशिव। महासू चार भाइयों की पूजा होती है।  महासू देवता को उत्तराखंड के प्रसिद्ध न्यायकारी देवताओं में से एक माना जाता है। यह मंदिर देहरादून से लगभग 180 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर कोटि बनाल शैली में निर्मित है। यह मंदिर चकराता में तमस नदी के किनारे हनोल गांव में स्थित है। ( उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिर )

­हमारे व्हाट्सप ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें।

कराचिल अभियान ! मुहमद तुगलक का पहाड़ जीतने का अधूरा सपना !