Thursday, May 22, 2025
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सनातनी राखी से मनाइये रक्षाबंधन

सनातनी राखी :- रक्षाबंधन 2023 का त्यौहार आने वाला है। बाजार राखियों से सज चुके हैं। इनमें से कई राखियां विदेशी आती हैं। मसलन चीन का राखी बाजार पर बहुत बड़ा प्रभाव है। लेकिन बिगत कुछ वर्षों से चीन का राखी बाजार पर  वर्चस्व कम हुवा है। इसका मुख्य कारण है स्वदेशी को बढ़ावा देना । जनता, सामाजिक संस्थाएं और सरकार अब स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा दे रही है। और कई लोग अब घर मे स्वदेशी हस्तनिर्मित राखियां बना कर घर मे अच्छा रोजगार कमा रहे हैं। इसी प्रकार उत्तराखंड राज्य के विभिन्न लोग, सामाजिक संस्थाएं स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा के साथ साथ अपनी लोक संस्कृति के प्रचार के उद्देश्य से उत्तराखंड की लोककला ऐपण से सजी स्थानीय राखियां बना रहे हैं।

उत्तराखंड की महिलाएं  सनातन धर्म के धार्मिक प्रतीकों , तुलसी की लकड़ी, कलावा ,ॐ, श्री, स्वस्तिक से  तथा इसमे उत्तराखंड के मांगलिक कार्यों में प्रयोग होने वाली लोककला ऐपण का प्रयोग करके हस्तनिर्मित स्वदेशी राखियां बना रहीं हैं। जिनका नाम इन्होंने “सनातनी राखी”  रखा है।

सनातनी राखी

स्वदेशी सनातनी राखी :-

इन आकर्षक राखियों को उत्तराखंड के निवासी तो खरीद ही रहे अन्य संस्कृति से लोगों को भी ये आकर्षक लग रही हैं। इसी परंपरा में एक कदम आगे बढ़ते हुए उत्तराखंड की स्थानीय उत्पाद विक्रेता और ऐपण राखी विक्रेता मनोरमा मुक्ति ने रक्षाबंधन 2023 के लिए विशेष सनातनी राखी बनाई है। मनोरमा जी के अनुसार उन्होंने इन राखियों को उच्च गुणवत्ता वाले कलावा और तुलसी की लकड़ी से बनाया है। और उन्होंने इन राखियों को उत्तराखंड राज्य की लोक कला ऐपण कला से सजाया है। जो काफी आकर्षक लग रहे हैं। इन राखियों में हिन्दू धर्म के धार्मिक प्रतीक ॐ, स्वस्तिक, श्री से सजाया है। सनातनी राखी पूर्ण रूप से ecofrindly राखी हैं।

सनातनी राखी

प्रधानमंत्री  मोदी जी , भारतीय सेना और अन्य प्रतिष्ठित लोगों को भी भेजेंगी –

मनोरमा जी के अनुसार , देश के प्रधानमंत्री ,भारतीय सेना के जवानों और राज्य के मुख्यमंत्री और अन्य प्रतिष्ठित लोगों तथा अपने भाई बंधुओ के लिए ये एकोफ़्रिण्डली राखियां भेज रही हैं।

इसके अलावा तुलसी के लकड़ी और शुद्ध कलावा से बनी ये राखियां बिक्री के लिए भी उपलब्ध हैं। जैसा कि हमने बताया कि इन राखियों को उत्तराखंड की लोककला ऐपण से सजाया गया है। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में इस कला का प्रयोग मांगलिक कार्यों के लिए किया जाता है।

सनातनी राखी कैसे खरीदें :-

यदि आप हस्तनिर्मित स्वदेशी सनातनी परम्परा को मजबूत करने वाली सनातनी राखी से अपना रक्षाबंधन 2023 मनाना चाहते हैं तो दिए गए लिंक और नंबर पर संपर्क कर सकते हैं । स्वदेशी हस्तनिर्मित और शुद्ध सनातनी राखियां ऑनलाइन मंगाने या अपने परिजनों को भिजवाने के लिए इस नंबर 9760 917746 पर व्हाट्सप्प संदेश भेंजे ! अथवा इस व्हाट्सप्प कैटलॉग पर सम्पर्क करें :-  https://wa.me/c/919760917746

इन्हें भी पढ़े: उत्तराखंड की मातृशक्ति बहिनों द्वारा बनाई ऐपण राखियों से मनाये अपना रक्षाबंधन

मनोरमा मुक्ति विभिन्न स्वयं सहायता समूहों से और उत्तराखंड की महिलाओं के साथ मिलकर उत्तराखंड के स्थानीय उत्पादों, लोककला से सजे उत्पादों ऑनलाईन और ऑफ़लाइन स्टोरों के माध्यम से लोगो तक पहुँचातीं हैं। मनोरमा जी और इनके साथ अन्य महिलाएं स्वदेशी और स्थानीय सामान के माध्यम से स्वरोजगार करके समाज मे एक नई मिसाल पेश कर रही हैं। इनके ऑफ़लाइन स्टोर उत्तराखंड कई महत्वपूर्ण स्थानों में उपलब्ध हैं। और ऑनलाइन माध्यम से ये पूरे देश मे स्थानीय और हस्तनिर्मित समान की सप्लाई कर रहीं है।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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