अल्मोड़ा जिले के रानीखेत क्षेत्र के चौबटिया नामक स्थान में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक,लोकप्रिय माँ झूला देवी मंदिर रानीखेत शहर से 7 कि.मी. की दुरी पर स्थित एक लोकप्रिय पवित्र एवम् धार्मिक मंदिर है। यह मंदिर माँ दुर्गा को समर्पित है एवम् इस मंदिर को झुला देवी के रूप में नामित किया गया है।
स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर 700 वर्ष पुराना है। यह दुर्गा माता का एक छोटा सा प्राचीन मन्दिर है, जिसका निर्माण 8 वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर में माता एक लकड़ी के झूले पर विराजमान है। इसलिए यह झुला देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यहाँ पर मान्यता है, की भक्त लोग अपनी मनोकामना पुरी होने पर यहाँ ताम्बे की घंटी माता को अर्पित करते हैं, इसलिए मंदिर में चारों और हजारों घंटिया बंधी हुई हैं।
स्थानीय लोग बताते हैं, मंदिर से माता के मूल पौराणिक मूर्ति 1959 में चोरी हो गई थी, उसके बाद नई मूर्ति की स्थापना की गई। रानीखेत में स्थित माँ झुला देवी मंदिर पहाड़ी स्टेशन पर एक आकर्षण का स्थान है। यह भारत के उत्तराखंड राज्य में अल्मोड़ा जिले के चैबटिया गार्डन के निकट रानीखेत से 7 किमी की दूरी पर स्थित है। वर्तमान मंदिर परिसर 1935 में बनाया गया है।
माँ झुला देवी मंदिर के समीप ही भगवान राम को समर्पित मंदिर भी है। झूला देवी मंदिर को माँ झुला देवी मंदिर और घंटियों वाला मंदिर के रूप में भी जाना जाता है रानीखेत का प्रमुख आकर्षण है यह ‘घंटियों वाला मंदिर’। मां दुर्गा के इस छोटे-से शांत मंदिर में श्रद्घालु मन्नत पूरी होने पर छोटी-बड़ी घंटियां चढ़ाते हैं। यहां बंधी हजारों घंटियां देख कर कोई भी अभिभूत हो सकता है।
रानीखेत में स्थित मां दुर्गा के इस मंदिर की रखवाली बाघ करते हैं, लेकिन वह स्थानीय लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। नवरात्र पर मां के इस मंदिर में भक्तों का तांता लग जाता है।
झूला देवी मंदिर की पौराणिक कहानी –
मां के झूला झूलने के बारे में एक और कथा प्रचलित है। माना जाता है कि एक बार श्रावण मास में माता ने किसी व्यक्ति को स्वप्न में दर्शन देकर झूला झूलने की इच्छा जताई। ग्रामीणों ने मां के लिए एक झूला तैयार कर उसमें प्रतिमा स्थापित कर दी। उसी दिन से यहां देवी मां “झूला देवी” के नाम से पूजी जाने लगी।
यह कहा जाता है कि मंदिर लगभग 700 वर्ष पुराना है । चैबटिया क्षेत्र जंगली जानवर से भरा घना जंगल था । “तेंदुओं और बाघ” आसपास के लोगों पर हमला करते थे और उनके पालतू पशुओं को ले जाते थे । लोगों को “तेंदुओं और बाघ” से डर लग रहता था और खतरनाक जंगली जानवर से सुरक्षा के लिए आसपास के लोग ‘माता दुर्गा’ से प्रार्थना करते थे । ऐसा कहा जाता है कि ‘देवी’ ने एक दिन चरवाहा को सपने में दर्शन दिए और चरवाहा से कहा कि वह एक विशेष स्थान खोदे क्यूंकि देवी उस स्थान पर अपने लिए एक मंदिर बनवाना चाहती थी।
जैसे ही चरवाहा ने गड्ढा खोद दिया तो चरवाहा को उस गड्ढे से देवी की मूर्ति मिली। इसके बाद ग्रामीणों ने उस जगह पर एक मंदिर का निर्माण किया और देवी की मूर्ति को स्थापित किया और इस तरह ग्रामीणों को जंगल जानवरों द्वारा उत्पीड़न से मुक्त कर दिया गया और मंदिर की स्थापना के कारण चरवाहा अपने पशुओ को घास चरहने के लिए छोड़ जाते थे। मंदिर परिसर के चारों ओर लटकी हुई अनगिनत घंटियां ‘मा झुला देवी’ की दिव्य व दुख खत्म करने वाली शक्तियो को दर्शाती है ।
मंदिर में विराजित झूला देवी के बारे में यह माना जाता है कि झूला देवी अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करती हैं और इच्छाओं को पूरा करने के बाद भक्त यहाँ तांबे की घंटी भेट स्वरुप चढाने आते हैं
कैसे पहुंचें :-
मार्ग- रानीखेत जाने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। रानीखेत से काठगोदाम की दूरी 80 कि.मी है। रानीखेत से 7 कि.मी की दूरी पर झूला देवी मंदिर स्थित है।
सड़क मार्ग- रानीखेत से अल्मोड़ा 63 कि.मी, दिल्ली 354 कि.मी, नैनीताल 55 कि.मी की दूरी पर स्थित है। रानीखेत पहुंचने के बाद आप आसानी से झूला देवी मंदिर पहुंच सकते हैं।
वायु मार्ग– रानीखेत पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा पंतनगर है। रानीखेत से 114 कि.मी की दूरी पर स्थित है। पंतनगर हवाई अड्डे से बस लेकर आसानी से रानीखेत पहुंच सकते हैं।
डोल आश्रम ऊंचे-ऊँचे पहाड़ों के बीच तथा हरे भरे घने जंगलों के बीच में स्थित है। ताजी खुली हवा,हरे भरे विशाल पेड़ ,पक्षियों का मधुर कलरव तथा यहां का प्राकृतिक सौंदर्य ऐसा है कि हर किसी का मन मोह ले। प्रकृति की गोद में बसे डोल आश्रम में आने वाले लोगों के मन को एक अजीब सी शांति का अनुभव होता है। यहां आकर वो अपनी सारी परेशानियों को भूलकर डोल आश्रम व यहां की हरी-भरी वादियों के बीच खो जाते हैं।
यह जगह मन को बहुत सुकून और शांति प्रदान करती हैं। यहां आकर लोग अपने आप को एकदम तरोताजा तथा अपने अंदर एक नई सकारात्मक ऊर्जा को महसूस करते है।उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के लमगड़ा ब्लॉक में स्थित यह आश्रम हमारी धनी प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की जीती जागती मिसाल है।
श्री कल्याणिका हिमालयन देवस्थानम न्यास कनरा-डोल (डोल आश्रम) नाम से जानी जाने वाली यह जगह अपने आप में अद्भुत और अनोखी है। यहां के मुख्य महंत बाबा कल्याण दास जी महाराज हैं। जिनके अनुसार यह सिर्फ एक मठ नहीं है, बल्कि इसको आध्यात्मिक व साधना केंद्र के रुप में विकसित किया जा रहा है। ताकि देश विदेश से आने वाले श्रद्धालु यहां पर बैठकर ध्यान व साधना कर सके।
Table of Contents
डोल आश्रम की विशेषता –
डोल आश्रम की विशेषता यह है की यहां पर 126 फुट ऊंचे तथा 150 मीटर व्यास के श्रीपीठम का निर्माण हुआ है। श्रीपीठम का निर्माण कार्य सन 2012 से शुरू हुआ था ।और अप्रैल 2018 में यह बनकर तैयार हो गया। इस श्रीपीठम में एक अष्ट धातु से निर्मित लगभग डेढ़ टन (150कुंतल) वजन और साढ़े तीन फुट ऊंचे श्रीयंत्र की स्थापना की गई हैं।
इस यंत्र की स्थापना के अनुष्ठान 18 अप्रैल 2018 से शुरू होकर 29 अप्रैल 2018 तक चले। इस यंत्र की स्थापना बड़े धूमधाम से की गई।यह विश्व का सबसे बड़ा व सबसे भारी श्रीयंत्र है। और यह आश्रम में मुख्य आकर्षण का केंद्र है ।वैदिक एवं आध्यात्मिक आस्था को एक साथ जोड़ने के लिए इस श्रीयंत्र की स्थापना की गई है।
श्री पीठम में लगभग 500 लोग एक साथ बैठ कर ध्यान लगा सकते हैं।डोल आश्रम में अनेक तरह की सुविधाओं उपलब्ध हैं ।आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रहने व खाने की सुविधा है।तथा यहां पर एक मेडिटेशन हाल भी है। तथा साथ ही साथ यह चिकित्सा सेवा भी उपलब्ध करा रहा है। जिसके तहत एक डिस्पेंसरी खोली गई है। प्रसव पीड़ित महिलाओं को तत्काल सेवा देने के लिए एक एंबुलेंस की सुविधा भी की गई है।
इस आश्रम में जनकल्याण कार्यो में विशेष ध्यान दिया जा रहा है। आश्रम में विद्यार्थियों को संस्कृत भाषा का ज्ञान दिया जाता है ।तथा उनको हमारी प्राचीन भारतीय सभ्यता व संस्कृति से रूबरू कराया जाता है। आश्रम में 12वीं कक्षा तक संचालित संस्कृत विद्यालय को पब्लिक स्कूल के रूप में विकसित किया जा रहा है ।
कई बच्चों को इस स्कूल में निशुल्क शिक्षा भी प्रदान की जा रही है। यहां पर बच्चों को देव भाषा व हमारी संस्कृति की पहचान संस्कृत भाषा को सिखाने पर विशेष ध्यान दिया जाता है ।लेकिन संस्कृत भाषा के साथ साथ बच्चों को कंप्यूटर व अंग्रेजी भाषा का भी अध्ययन कराया जाता है। ताकि विद्यार्थी किसी से किसी भी क्षेत्र में पीछे न रह जाएं ।
यहां पर विद्यार्थियों को बेहद अनुशासित व संस्कारी ढंग से जीवन जीना सिखाया जाता है। आश्रम में शिक्षा से संबंधित कार्यों को विशेष बढ़ावा देकर इसे शिक्षा हब बनाने का प्रयास किया जा रहा है।डोल आश्रम जहां एक ओर हमारे ऋषि-मुनियों की संस्कृति को संजोए रखने का काम कर रहा है।
वही साथ ही साथ आज की आधुनिक टेक्नोलॉजी व ज्ञान को भी अपना रहा है। यह आश्रम प्राचीन भारतीय संस्कृति व आधुनिक भारतीय संस्कृति के बीच में बेहतरीन तालमेल बिठाकर दिन प्रतिदिन उन्नति की ओर अग्रसर हो रहा है।
परम पूज्य गुरुजी के बारे में –
हिमालय के तपस्वी बाबा कल्याणदासजी ने बारह वर्ष की आयु में भारत के विभिन्न धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया। गंगा नदी के तट पर, सतगुरु (स्वर्गीय) बाबा स्वरूपदासजी महाराज, जिन्होंने उन्हें धर्म के उदासीन संप्रदाय के साथ दीक्षा दी। 25 से अधिक वर्षों के लिए पूज्य बाबाजी ने अपनी साधना के दौरान छत के नीचे नहीं छोड़ने का फैसला किया। तपस्वी बाबा कल्याणदासजी अमरकंटक (म.प्र।) भारत में कल्याण सेवा आश्रम ट्रस्ट के संस्थापक हैं। जहाँ पवित्र नदी नर्मदा की उत्पत्ति भगवान शिव के तपस्या से हुई है।
साथी प्राणियों के प्रति प्रेम ने पूज्य बाबाजी को 40 वर्ष से अधिक की तपस्या के बाद वापस आने के लिए मजबूर किया और साथी प्राणियों को आंतरिक जागृति का दिव्य मार्ग दिखाया। उस समय तक कई लोग सच्चे योगी और साधिका की आभा से आकर्षित हो चुके थे।
1978 में लोगों को शिक्षित करने और अपने जीवन की दशा को उठाने के लिए भगवान राम की राह पर चलते हुए, बाबाजी ने कई जनजातियों के लिए पवित्र नदी नर्मदा का जन्मस्थान, अमरकंटक में एक प्राचीन तीर्थस्थल, श्री कल्याण सेवा आश्रम की स्थापना की।
कैलाश मानसरोवर की अपनी दूसरी यात्रा के दौरान, पूज्य बाबाजी ने माँ भगवती (माँ देवी) के दर्शन किए और हिमालय में एक आश्रम शुरू करने के लिए प्रेरित हुए और पूज्य बाबाजी ने अल्मोड़ा के पास घने जंगल में श्री कल्याणिका हिमालय देव चरणम् की स्थापना की।
डोल आश्रम का इतिहास –
डोल आश्रम की स्थापना 1990 में श्री परम योगी कल्याणदासजी द्वारा की गई थी, जिनका जन्म अल्मोड़ा जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था। श्री परमा योगी कल्याणदासजी ने अपनी मानसरोवर यात्रा के दौरान माँ भगवती के दर्शन किए और हिमालय में एक आश्रम शुरू करने के लिए प्रेरित हुए।
आश्रम में गतिविधियाँ –
योग और ध्यान
आध्यात्मिक ज्ञान
पंछी देखना
सुविधाएं
आवास
मेडिटेशन हॉल
पुस्तकालय
डोल आश्रम आपको एक आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाता है, जहाँ योग और वेदांत के सिद्धांतों के आधार पर जीवन का अवलोकन किया जाता है। आश्रम एक दिनचर्या का पालन करता है जो आध्यात्मिक जीवन के लिए सर्वोच्च बाधा को समाप्त करता है यानी आलस्य।
आधुनिक जीवनशैली ने कई शारीरिक और मानसिक समस्याओं जैसे बेचैनी, अवसाद, मोटापा को दूर किया है; चिंता आदि और इन स्थितियों को केवल गतिहीन जीवन शैली को बदलने से आसानी से बदला जा सकता है। आश्रम की दिनचर्या आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को भी विकसित करती है जो मानव को एक अलौकिक में बदल देती है। भगवान कृष्ण द्वारा प्रस्तावित निश्काम कर्म योग आश्रम के सभी निवासियों के लिए प्रेरणा का काम करता है।
आध्यात्मिक प्रवचन-
आश्रम विभिन्न आध्यात्मिक ग्रंथों जैसे गीता, उपनिषद, श्रीमद्भागवतम्, पतंजलि योग सूत्र आदि पर व्याख्यान देने के लिए प्रख्यात संतों और वक्ताओं के साथ आध्यात्मिक सत्र आयोजित करके ऐसा अवसर प्रदान करता है, जो साधकों की सबसे प्रभावी शैली को बताकर उनका मार्ग प्रशस्त करता है। योग और ध्यान पाठ्यक्रम- आश्रम में हमने वेदांत, विपश्यना, पतंजलि दर्शन पर आधारित ध्यान और योग के कई पाठ्यक्रम किए।
सुविधाएं:
आवास:
आश्रम उन साधकों और आगंतुकों को आवास और भोजन की सुविधा प्रदान करता है जो आश्रम की गतिविधियों में भाग लेना चाहते हैं। आश्रम गर्म पानी की सुविधा के साथ पूरी तरह से सुसज्जित डबल बेड प्रदान करता है। आश्रम में 120 लोगों की क्षमता वाला इन-हाउस मेस है।
पुस्तकालय:-
श्री चंद्राचार्य पुस्तकालय की स्थापना वर्ष 1997 में हुई थी। पुस्तकालय में आध्यात्मिकता और विभिन्न विषयों पर विषयों को कवर करने वाली दस हजार से अधिक पुस्तकों का संग्रह है। यह न केवल आश्रम में रहने वाले छात्रों के शैक्षिक उद्देश्य को पूरा करता है बल्कि आगंतुकों और साधकों को भी लाभान्वित करता है। इसमें टीकाओं के साथ चारों वेदों का अनूठा संग्रह है।
मेडिटेशन हॉल:
परम को साकार करने की उनकी तलाश में हिमालय का शांत वातावरण एक साधक की मदद करता है। यह ध्यान में रखते हुए कि लगभग 300 लोगों की क्षमता के साथ एक ध्यान हॉल का निर्माण वर्ष 2006 में ध्यान-तंत्र की साधना के लिए किया गया था- ध्यान प्रेशिका – पूज्य बाबाजी द्वारा वर्षों की तपस्या और साधना के दौरान विकसित की गई एक प्राचीन ध्यान-तकनीक। स्नो-क्लेड हिमालयन पर्वत श्रृंखला हॉल से स्पष्ट रूप से दिखाई देती है जो अनुभव को सार्थक बनाती है।
डोल आश्रम उत्तराखंड कैसे जाएं –
डोल आश्रम अल्मोड़ा से 52 किमी और भीमताल से 42 किमी सड़क पर है जो भीमताल से लोहाघाट-अल्मोड़ा रोड को जोड़ता है।
सड़क मार्ग से – आनंद विहार दिल्ली से बस द्वारा हल्द्वानी पहुंचा जा सकता है। हल्द्वानी में साझा और निजी टैक्सियाँ उपलब्ध हैं। हल्द्वानी, डीएल आश्रम से 70 किमी दूर है।
ट्रेन द्वारा- निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम रेलवे स्टेशन है जो डोल आश्रम से 64 किमी दूर है।
हवाई मार्ग से- निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर हवाई अड्डा है जो डोल आश्रम से 97 किमी दूर है।
उत्तराखंड एक पहाड़ी प्रदेश है। यहाँ की ऊँची नीची पगडंडियों पर माउंटेन बाइकिंग का एक अलग ही आनंद मिलता है। माउंटेन बाइकिंग एक साहसिक पर्यटन है। पहाड़ों की रमणीक वादियों में उबड़ -खाबड़ ट्रेल में ताज़ी हवा के झोकों के साथ हिमालयी चोटियों के मनोरम दृश्यों आनंद लेते हुए साईकिल दौड़ाना एक अनोखा अनुभव होगा।
Table of Contents
माउंटेन बाइकिंग क्या है ?
मॉन्टेन्ट बाइकिंग एक ऑफ़ रोड साईकिल रेस है जिसे उबड़-खाबड़ ऊँचे ,नीची पगडंडियों या पहाड़ियों पर की जाती है। यह एक साहसिक खेल होता है। इसमें विशेष रूप से डिजाइन की गई माउंटेन बाइक( खास साईकिल ) का इस्तेमाल किया जाता है। यह पुरे विश्व में लोकप्रिय साहसिक खेल है। इसकी सर्वप्रथम विश्वस्तरीय प्रतियोगिता 1950 में आयोजित की गई थी। इस प्रतियोगिता में बाइक सवार खुद को सम्हालते हुए ,पहड़ियों में एक दूसरे से आगे निकलने के लिए दौड़ लगाते हैं।
उत्तराखंड में माउंटेन बाइकिंग –
उत्तराखंड का विविध प्रकार का भौगोलिक परिवेश माउंटेन बाइकिंग के लिए अनुकूल है। यहाँ इस लोकप्रिय साहसिक खेल के पेशेवर खिलाडियों और शुरुवाती स्तर के खिलाड़ियों के लिए अच्छे ट्रेल्स हैं। यहाँ के प्रसिद्ध बाइकिंग ट्रेल्स को तय करने के लिए सबसे उपयुक्त समय मार्च से मई और अक्टूबर से दिसंबर के बीच रहता है।
उत्तराखंड के जंगलों और पहाड़ों का सफर साईकिल से करना साहसिक और रोमांचक होगा। हालाँकि उत्तराखंड में मॉन्टेन्ट बाइकिंग थोड़ा चुनौती पूर्ण भी सकती है। लेकिन असली रोमांच तो चुनौतियों में ही मिलता है।
गढ़वाल की बाइकिंग ट्रेल्स -दिल्ली – देहरादून – मसूरी – धनोल्टी – टिहरी – घनसाली – चारबतिया – चंद्रपुरी – ऊखीमठ – चोपता – चमोली – हरिद्वार – दिल्ली रुद्रप्रयाग, चोपता, पौडी, लैंसडाउन की माउंटेंट बाइक से यात्रा पर एक अनोखा और रोमांचकारी अनुभव दे सकता है।
कुमाऊं की बाइकिंग ट्रेल्स – उत्तराखंड पहाड़ो में रोमांचकारी बाईकिग के लिए कुमाऊं मंडल की ऊँची – नीची पगडंडिया भी काफी मुफीद हैं। काठगोदाम – अल्मोड़ा – बैजनाथ – कौसानी – सोमेश्वर – बिंटा – रानीखेत – भतरौंजखान का के ट्रेकों पर पेशेवर बाइकर्स और नौसिखिये बाइकर्स साहसिक साइकिलिंग का मजा ले सकते हैं।
स्कीइंग बर्फ से भरी ढलान पर खेला जाने वाला एक साहसिक खेल है। बर्फीली चोटियों की ढलानों पर दुनियाभर के शौकीन खिलाडी इस साहसिक खेल का आनंद लेते हैं।
Table of Contents
उत्तराखंड में स्कीइंग –
स्कीइंग जैसे साहसिक खेल के शौकीनों के लिए उत्तराखंड एक आदर्श स्थान है। यहाँ के बर्फीले पहाड़ और उनकी तलहटियाँ इस साहसिक खेल के लिए बिलकुल परफैक्ट हैं।
उत्तराखंड में गलेशियरों के बीच के खुले बर्फ के ढलवा मैदान यहाँ अधिक से अधिक स्कीयरों को आकर्षित करते हैं। उत्तराखंड की बर्फीली ढलानों के बीच यह खेल नवंबर से मार्च के बीच खेला जाता है।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध स्थान –
बर्फ के साहसिक खेल लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड के ये स्थान भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं।
औली –
औली को स्कीइंग की राजधानी कहा जाता है। औली उत्तराखंड के चमोली जिले में 2,500 से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। उत्तराखंड के जोशीमठ में स्थित यह उत्तराखंड का ही नहीं बल्कि पुरे भारत का आदर्श स्की डेस्टिनेशन है।
औली जाने का सर्वश्रेष्ठ समय जनवरी से मार्च तक का होता है। यह समय बर्फ के साहसिक खेल के लिए उपयुक्त होता है। औली एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन और भारत के स्की रिसॉर्ट के रूप में एक लोकप्रिय शीतकालीन स्थल है। यह अपनी बर्फीली ढलानों के लिए प्रसिद्ध है।
औली में वह सब कुछ है जो एक यात्री का सपना होता है। जैसे – हिमालय के रमणीय दृश्य, सूंदर घास के मैदान, साहसिक गतिविधियाँ, केबल कार और बहुत कुछ। बर्फ से ढकी चोटियों से लेकर लकड़ी के बने हट तक। औली एक आदर्श यूरोपीय हिलस्टेशन की तरह है।
दायरा बुग्याल –
यह बुग्याल शीत काल में बर्फ के साहसिक खेलों और गर्मियों में ट्रेकिंग के लिए एक अच्छा स्थान है। दायरा उत्तरकाशी जिले में पड़ता है। गर्मियों में मखमली घास का अद्भुत अहसास अपने आप में खो जाने के लिए विवश कर देता है। जाड़ों में ढलवा मैदान बर्फ पड़ने के बाद एक अच्छा स्की रिसोर्ट बन जाता है।
इनके अलावा निम्न स्थान उत्तराखंड में स्कीइंग के लिए फेमस हैं –
दुनियाभर में लोग की पहाड़ों में घूमने और पहाड़ों की शांत और सुकून भरी वादियों में अपने जीवन के कीमती पलों को गुजार कर कुछ अलग अनुभव लेना चाहते हैं। कई घुमक्क्ड़ प्रवृति के लोग होते हैं जो पहाड़ों पर ट्रैकिंग ,कैम्पिंग और अन्य साहसिक गतिविधियों में बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं।
ठीक उसी प्रकार उत्तराखंड भारत में पहाड़ी पर्यटन के लिए अपना अग्रणीय स्थान रखता है। भारत भर के लोग उत्तराखंड की ऊँची -ऊँची पहाड़ियों में ट्रैकिंग, कैंपिंग आदि साहसिक गतिविधियां करने के लिए यहाँ बढ़ चढ़ आते हैं। सभी पहाड़ी साहसिक खेलों के साथ उत्तराखंड के पहाड़ों में कैम्पिंग भी काफी प्रसिद्ध है।
कैम्पिंग में पर्यटक किसी शांत प्राकृतिक मैदान ,पहाड़ी पर या नदी किनारे कैम्प डाल कर रहते हैं। उस स्थान के प्रकृतिक वातावरण को अनुभव करना और प्रकृति के बीच रहने का आनंद कैम्पिंग द्वारा लिया जाता है।
कैम्पिंग जैसी साहसिक गतिविधि के लिए उत्तराखंड के पहाड़ों पर लम्बे लम्बे ढलवा घास के मैदान ( जिन्हे बुग्याल कहते हैं ) काफी मुफीद होते हैं। इसके अलवा उत्तराखंड के नदियों के किनारे और हरी घास वाली पहाड़ियों को पर्यटक कैम्पिंग गतिविधि के लिए काफी पसंद करते हैं।
उत्तराखंड के प्रमुख कैंपिंग स्थल -,
उत्तराखंड पुरे भारत में कैम्पिंग के लिए एक आदर्श स्थान है। यहाँ के घास के मैदान ,पहाड़ो की मनमोहक सुंदरता वाले आदर्श हिल स्टेशन , ऋषिकेश में गंगा नदी के लम्बे लम्बे घास के मैदान उत्तराखंड को एक आदर्श और अनुकूलित कैम्पिंग स्थान बनाते हैं। उत्तराखंड में निम्न स्थान आपको घर से बहार प्रकृति के बीच में रहकर जीवन का एक अनोखा अनुभव देंगे।
ऋषिकेश के गंगा नदी के किनारों में कैम्प लगाकर समय बिताने से एक अलग आनंद की अनुभूति मिलेगी और साथ साथ में यह अन्य साहसिक खेल ,जैसे -राफ्टिंग ,बंजी जंपिंग आदि का लुफ्त उठाया जा सकता है।
उत्तराखंड के पहाड़ों पर बुग्याल ( घास के मैदान ) एक आदर्श कैंपिंग डेस्टिनेशन हो सकते हैं। मखमली घास के ऊपर जीवन के कीमती पल बिताना आनंददायक पल हो सकते हैं। जैसे -चोपता बुग्याल ,दायरा बुग्याल आदि प्रमुख हैं।
उत्तराखंड में कैंपिंग के लिए उत्तराखंड के आदर्श हिल स्टेशन ,चकराता ,मुनयारी नैनीताल ,धनोल्टी ,कानाताल आदि सबसे मुफीद जगह हैं। घर से बहार खुले आसमान के नीचे प्रकृति की गोद में समय बिताने के लिए सबसे अच्छे स्थान हैं।
उत्तराखंड अपनी समृद्ध संस्कृति और परम्पराओं के साथ स्वादिष्ट भोजन के लिए प्रसिद्ध है। आज इस लेख में कुछ ऐसे उत्तराखंड के प्रसिद्ध भोजन की चर्चा करेंगे ,जिनका स्वाद आप कभी नहीं भूल सकते हैं।
Table of Contents
उत्तराखंड के प्रसिद्ध भोजन की सूची कुछ इस प्रकार है –
मडुए की रोटी
झंगोरा की खीर
कंडाली का साग
लिंगुड़ा की सब्जी
गहत के फाणू
चैंस या चैसुवा
भट्ट के डुबुक
भट्ट की चुरकानी
कुमाऊँनी रायता
छंछ्या
मंडुए की रोटी –
रागी अनाज को उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल में मडुवा कहते हैं। और गढ़वाल मंडल में कोदा कहा जाता है। उत्तराखंड में यह अनाज बहुताय होता है। गेहू के आटे के साथ मिलकर या मडुवे की रोटियां उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल मंडल में काफी पसंद किये जाते हैं। मडुवा विटामिन और पोषक तत्वों से भरपूर अनाज माना जाता है।
उत्तराखंड का प्रसिद्ध भोजन झंगोरा की खीर –
झंगोरा पहाड़ो में उगने वाला मोटा अनाज है। झंगोरा काफी पौस्टिक और स्वास्थ्यवर्धक होता है। उत्तराखंड के पहाड़ो के निवासी झंगोरा काफी पसंद करते हैं। झंगोरे को भात के रूप मे भी बनाते हैं। इसके अलावा झंगोरे की खीर लोग काफी पसंद करते हैं। इसमे भरपूर विटामिन,होते हैं। यह खीर कार्बोहाइड्रेट्स और प्रोटीन से भरपूर होती है।
कडाली या सिसूण की सब्जी-:
पहाड़ो में एक औषधीय वनस्पति होती है, जिसे कुमाँऊ मे सिसूण और गढ़वाल में कंडाली कहते हैं। शरीर पर झनझनाहट उत्पन्न करने वाला यह पौधा औषधीय रूप से काफी स्वास्थ्यवर्धक होता है। पहाड़ो में जाड़ो के मौसम मे इसकी स्वादिष्ट सब्जी बनाई जाती हैं।
लिगुंड़ा की सब्जी –
उत्तराखंड के पहाड़ो मे एक से बढ़कर एक औषधीय वनस्पतियां हैं। जिनमे से कई वनस्पतियों का प्रयोग पहाड़वासी सब्जियों के रूप मे करते हैं। उनमे से एक सब्जी है लिगड़ा की सब्जी । हिमालयी पहाड़ों में फर्म के रूप मे पायी जाने वाली ये सब्जी काफी स्वास्थ्यवर्धक और स्वादिष्ट होती है। स्वास्थ्य विज्ञानियों के अनुसार लिगंडा मे कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, प्रोटीन फाईबर आदी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। पढ़िए –प्रकृति ने उत्तराखंड को वरदान में दी है, ये प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक वनस्पति
गहत की गब्वानी या गहत का फाणू –
उत्तराखंड के पहाडी क्षेत्रों मे गहत दाल काफी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। पहाड़वासी इस दाल को काफी पसन्द करते हैं। यह दाल पथरी रोग के लिए लाभदायक मानी जाती है। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में दाल भिगोकर पीसकर बनाए हुए व्यंजन को फाणू कहते हैं। और गहत की दाल पीसकर बनाए हुए व्यजन को गथवानी कहते हैं। इसमें दाल को पीसा जाता है।
चैंस या चौंसा :
यह गढ़वाल के फाणू की तरह बनाया जाने वाला भोजन होता है। कुमांऊ में इसे पैसा या चौसा कहा जाता है। इससे दाल को दर-दरा पीस कर बनाया जाता है ।
भट्ट के दुबके , उत्तराखंड का प्रसिद्ध भोजन –
पहाड़ो में काळा सोयाबीन दाल को भट्ट कहा जाता है। इन्हे भिगोकर पीस कर चावल के साथ पकाकर बनाया जाता है। पहाड़ के पीसी नमक के साथ खाया जाता है।
भट्ट की चुड़कानी –
काले सोयाबीन का एक और व्यजन बनाया जाता है।जिसे भट्ट की चुरकानी कहा जाता है। प्रोटीन और विटामीन से भरपूर यह व्यजन काफी स्वादिष्ट होता है। यह व्यंजन चावल के साथ खाया जाता है। भट्ट की चुरकानी दाल का एक अच्छा विकल्प है। इस व्यंजन को बनाने के लिए सर्वप्रथम भट्टों को गर्म तेल मे चटका लिया जाता है। फिर बेसन के साथ मसाले भून कर पका लेते हैं। चावल के साथ परोस कर नीबू के साथ सर्व करने पर इसका स्वाद दुगुना हो जाता है।
कुमाऊनी रायता -:
रायता तो सब जगह बनाया जाता है, और लगभग सभी लोग गर्मीयों में रायते को काफी पसंद करते हैं। लेकिन उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में यह व्यंजन कुछ अलग तरीके से बनाया जाता है। और इसका स्वाद बड़ा ही लाजवाब रहता है। यह उत्तराखंड का प्रसिद्ध भोजन है। उत्तराखंड के कुमांऊ मंडल मे इसे पहाड़ी खीरा (ककड़ी) में छांस के क्रीम से बनाया जाता है। छाँस का क्रीम उपलब्ध न होने की स्थिति में इसमें दही का प्रयोग होता है।
इसके अलावा इसमे यूनीक स्वाद लाने के लिए देसी राई पीस कर डाली जाती है। जिससे इसमे एक अलग स्वाद आता है। कुमाऊनी रायते में राई डालने से इसने एक अलग सी सनसनाहट आ जाती है। जो अपने आप में एक अलग अहसास दिलाता है। कुमाउनी रायता उत्तराखंड के प्रसिद्ध भोजनों में एक है। कुमाऊनी रायता , सीखिए अनोखे पहाड़ी रायता बनाने की विधि।
छांस्या , छांछेड़ो, काफूली -:
उत्तराखंड का यह पारम्परिक भोजन कुमांऊ और गढ़वाल दोनो मंडलो मे बनाया जाता है। यह उत्तराखंड का प्रसिद्ध भोजन है। यह पहाड़ का परम्परिक व्यंजन है ,जो अब लगभग विलुप्तप्राय है। गढ़वाल में इसे छांस में झंगोरा पकाकर बनाया जाता है। और मसाला नमक ( पिसा नमक ) के साथ खाया जाता है। कुमाऊँ में झंगोरा छांस के साथ -साथ ,चावल और छांस पकाकर भी बनाया जाता है। छस्या ,के बारे में विस्तार से पढ़े। यहाँ क्लिक करें।
केदारनाथ धाम भारत के उत्तराखंड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है।जो कीसमुद्र तल से 11,746 फीट की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम मंदिर तीनो तरफ पहाड़ियों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड है।
Table of Contents
केदारनाथ धाम का इतिहास
यह मंदाकिनी नदी के उद्गगम स्थल के समीप है। यमुनोत्री से केदारनाथ के ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। वायु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु मानव जाति के कल्याण के लिए पृथ्वी पर निवास करने आए। उन्होंने बद्रीनाथ में अपना पहला कदम रखा। इस जगह पर पहले भगवान शिव का निवास था।
लेकिन उन्होंने नारायण के लिए इस स्थान का त्याग कर दिया और केदारनाथ में निवास करने लगे। इसलिए पंच केदार यात्रा केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड।
८वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है। मंदिर के बड़े भूरे रंग की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्मी लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है। फिर भी इतिहासकारो का मानना है कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं।
इतिहास के अनुसार साफ अग्रभाग के साथ मंदिर एक भव्य भवन था जिसके दोनों ओर पूजन मुद्रा में मूर्तियाँ हैं। “पीछे भूरे पत्थर से निर्मित एक टॉवर है इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है।
केदारनाथ मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है
मंदिर के सामने तीर्थयात्रियों के आवास के लिए पण्डों के पक्के मकान है। जबकि पूजारी या पुरोहित भवन के दक्षिणी ओर रहते हैं। श्री ट्रेल के अनुसार वर्तमान ढांचा हाल ही निर्मित है जबकि मूल भवन गिरकर नष्ट हो गये। केदारनाथ मंदिर को तीन भागों में बांटा गया है – पहला, गर्भगृह। दूसरा, दर्शन मंडप, यह वह स्थान है जहां पर दर्शानार्थी एक बड़े से हॉल में खड़ा होकर पूजा करते हैं।
तीसरा, सभा मण्डप, इस जगह पर सभी तीर्थयात्री जमा होते हैं। तीर्थयात्री यहां भगवान शिव के अलावा ऋद्धि सिद्धि के साथ भगवान गणेश, पार्वती, विष्णु और लक्ष्मी, कृष्ण, कुंति, द्रौपदि, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव की पूजा अर्चना भी की जाती है।केदारनाथ मंदिर न केवल आध्यात्म के दृष्टिकोण से वरन स्थापत्य कला में भी अन्य मंदिरों से भिन्न है। यह मंदिर कात्युरी शैली में बना हुआ है।
केदारनाथ मन्दिर लगभग 1000 वर्ष पुराना है
यह पहाड़ी के चोटि पर स्थित है। इसके निर्माण में भूरे रंग के बड़े पत्थरों का प्रयोग बहुतायत में किया गया है। इसका छत लकड़ी का बना हुआ है जिसके शिखर पर सोने का कलश रखा हुआ है। मंदिर के बाह्य द्वार पर पहरेदार के रूप में नंदी का विशालकाय मूर्ति बना हुआ है। मन्दिर लगभग 1000 वर्ष पुराना है और इसे एक चतुर्भुजाकार आधार पर पत्थर की बड़ी-बड़ी पटियाओं से बनाया गया है।
गर्भगृह की ओर ले जाती सीढ़ियों पर श्रृद्धालुओं को पाली भाषा के शिलालेख देखने को मिल जाते है। समुद्रतल से 3584 मीटर की ऊँचाई पर स्थित होने के कारण चारों धामों में से यहाँ पहुँचना सबसे कठिन है। मन्दिर गर्मियों के दौरान केवल 6 महीने के लिये खुला रहता है।
यह तीर्थस्थान सर्दियों के दौरान बन्द रहता है क्योंकि इस दौरान क्षेत्र में भारी बर्फबारी के कारण यहाँ की जलवायु प्रतिकूल हो जाती है। इस दौरान केदारनाथ के मूल निवासी निचले क्षेत्रों में चले जाते हैं और भगवान केदारनाथ की पालकी को उखिमठ ले जाया जाता है।
यहाँ आने वाले यात्रियों को मन्दिर के निकट स्थित आदि गुरू शंकराचार्य की समाधि पर अवश्य जाना चाहिये। शंकराचार्य प्रसिद्ध हिन्दू सन्त थे जिन्हें अद्वैत वेदान्त के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये जाना जाता है। चारों धामों की खोज के उपरान्त 32 वर्ष की आयु में उन्होनें इसी स्थान पर समाधि ली थी।
सोनप्रयाग और वासुकीताल
केदारनाथ से 19 किमी की दूरी पर और 1829 मी की ऊँचाई पर स्थित है। यह मुख्यतः बासुकी और मन्दाकिनी नदियों को संगम स्थल है। यह स्थान यहाँ के पानी की जादुई शक्तियों के कारण लोकप्रिय है। लोककथाओं के अनुसार लोगों को इस जल को छूने मात्र से बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है। वासुकी ताल केदारनाथ से 8 किमी की
दूरी पर और समुद्रतल से 4135 मी की ऊँचाई पर स्थित एक और प्रमुख स्थान है। यह झील हिमालय की पहाड़ियों से घिरा है जो इसकी सुन्दरता में चार चाँद लगा देते हैं। शानदार चौखम्भा चोटी भी इसी झील के समीप स्थित है। वासुकी ताल तक पहुँचने के लिये चतुरंगी और वासुकी हिमनदियों को पार करना पड़ता है जिसके लिये असीम सहनशक्ति की आवश्यकता पड़ती है।
वन्यजीव अभ्यारण्य
केदारनाथ वन्यजीव अभ्यारण्य अलकनन्दा नदी की घाटी में स्थित है। यह अभ्यारण्य 967 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है। अभ्यारण्य में चीड़, ओक, भूर्ज, बगयल और ऐल्पाइन के घने पेड़ पाये जाते हैं। इस स्थान की विवध भौगोलिक स्थिति के कारण विभिन्न प्रकार के पौधे और जानवर यहाँ पाये जाते हैं। भारल, बिल्लियाँ, गोरल, भेड़िये, काले भालू, सफेद तेंदुये, साँभर, तहर और सेराव जैसे जानवरों को आसानी से देखा जा सकता है।
अभ्यारण्य केदारनाथ कस्तूरी मृग जैसे विलुप्तप्राय जीवों का संरक्षण भी करता है। पक्षियों में रूचि रखने वाले लोग फ्लाईकैचर, मोनल, स्लेटी चित्ते वाले वार्बलर जैसे विभिन्न प्रकार के पक्षियों को देख सकते हैं। इसके अलावा पर्यटक मन्दाकिनी नदी में शाइजोथोरैक्स, नेमाचेलियस, गारा, बैरिलियस और महसीर टोर टोर की विभिन्न प्रजातियों की मछलियों को भी देख सकते हैं।
गुप्तकाशी
केदारनाथ आये पर्यटकों को गुप्तकाशी भी जाना चाहिये। इस क्षेत्र में 3 मन्दिर हैं जिनमें प्राचीन विश्वनाथ मन्दिर, मणिकर्णिक कुण्ड और अर्द्धनारीश्वर मन्दिर शामिल हैं। भगवान शिव को समर्पित अर्द्धनारीश्वर मन्दिर में श्रृद्धालु भगवान की मूर्ति को आधे पुरूष और आधे स्त्री के रूप में देख सकते हैं।
विश्वनाथ मन्दिर में भी भगवान शिव के कई अवतारों की मूर्तियाँ हैं। लगभग आधे किमी की दूरी पर स्थित भैरवनाथ मन्दिर केदारनाथ का एक और लोकप्रिय मन्दिर है। यह मन्दिर भगवान शिव के एक गण भैरव को समर्पित है। मन्दिर में इष्टदेव की मूर्ति को केदारनाथ के प्रथम रावल श्री भिकुण्ड ने स्थापित किया था।
गौरीकुंड
1982 मी की ऊँचाई पर स्थित गौरीकुण्ड केदारनाथ का एक प्रमुख आकर्षण है। यहाँ पर एक प्राचीन मन्दिर है जो हिन्दू देवी पार्वती को समर्पित है। लोककथाओं को अनुसार यहीं पर देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिये तपस्या की थी। गैरीकुण्ड में एक गर्म पानी का सोता है जिसके पानी के न सिर्फ औषधीय गुण हैं बल्कि इससे लोगों को अपने पापों से भी मुक्ति मिलती है।
केदारनाथ कैसे जाएं
यहाँ के लिये निकटतम हवाईअड्डा 239 किमी की दूरी पर देहरादून का जॉली ग्रान्ट हवाईअड्डा है।जो यात्री रेल द्वारा आना चाहें वे अपना टिकट 227 किमी की दूरी पर स्थित ऋषिकेश रेलवे स्टेशन के लिये बुक कर सकते हैं।केदारनाथ जाने का सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर के मध्य का समय आदर्श माना जाता है क्योंकि इस दौरान मौसम काफी सुखद रहता है। जाड़ों में भारी बर्फबारी के कारण केदारनाथ के मूल निवासी भी सर्दियों में पलायन कर जाते हैं।
मित्रों मसूरी, नैनीताल उत्तराखंड में घूमने लायक पुराने और ज्यादा भीड़ भाड़ वाले हिल स्टेशन बन गए हैं। गर्मी बड़े या ठंड सभी लोग मसूरी और नैनीताल का रुख करते हैं। जिस कारण वहां भीड़ अधिक बढ़ जाती है। और आदमी एक शांति और सुकून की तलाश में हिल स्टेशन की तरफ आता है, लेकिन इन हिल स्टेशनों में और भी ट्रैफिक जाम परेशानी आदि झेलनी पड़ती है।
मित्रों उत्तराखंड का मतलब केवल नैनीताल या मसूरी ही नही है । बल्कि इनके अलावा उत्तराखंड और भी सुंदर और मनोहर हिल स्टेशन हैं। जहां आप सुकून और शांति के साथ मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं। अपने इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपका परिचय कुछ नए स्थानों से करा रहे हैं। यदि आप इन स्थानों में घूम कर आ गए हैं, तो अपना अनुभव अवश्य शेयर करें।
Table of Contents
उत्तराखंड में घूमने लायक, खिरसु
खिरसू उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है । यह एक रमणीक स्थल है । खिरसू असल में एक गांव है, जिसे उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पर्यटन स्थल का दर्जा दिया गया । खिर्सू समुन्द्रतल से लगभग 1700 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है ।लेकिन यह स्थान लैंसडौन की तुलना में ज्यादा ठंडा है।
क्योंकि पूरा गांव उच्च पहाड़ियों और घने जंगल (देवदार और ओक) से घिरा हुआ है | खिरसू हिल स्टेशन में ओक के पेड़, देवदार के पेड़ और सेब के बगीचे हैं । इस स्थान के एक कोने से दुसरे कोने तक देखने पर ऊँच पहाड़ी, घने जंगल और कई अन्य जगहों का आनंद ले सकते है।
खिर्सू उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 160 किलोमीटर दूर है। खिर्सू में आप विभिन्न प्रकार के पक्षियों का रमणीय दर्शन कर सकते हैं। यहाँ का प्रसिद्ध ट्रैकिंग पॉइंट फुरकण्डा ट्रैकिंग पॉइंट से आप ट्रैकिंग का रोमांच ले सकते हैं। खिर्सू में पौराणिक घड़ियाल देवता मंदिर भी है। खिर्सू पौड़ी गढ़वाल जिले में हैं। खिर्सू की यात्रा के दौरान आप पौड़ी का प्रसिद्ध कंडोलिया मंदिर और कंडोलिया पार्क का आनंद ले सकते हैं।
इसके साथ ही आप खिर्सू से हिमालय की नैसर्गिक छटा का मनमोहक दर्शन कर सकते हैं। यहाँ से त्रिशूल, नंदा देवी, नंदाकोट, चौखम्बा और पंचाचूली चोटियों के साथ कई अन्य हिमालयी चोटियों का दर्शन कर सकते हैं। खिर्सू की शांत वादियों में आप एकांत समय बिता कर अपने मन चित्त को शांत कर सकते हैं।
खिर्सू में देखने लायक स्थान –
कंडोलिया मंदिर
कंडोलिया थीम पार्क
गगवाड़स्यून घाटी
घड़ियाल देवता मंदिर
देवल गढ़ मंदिर
आस पास देखने लायक –
धारी देवी मंदिर
ज्वाला देवी मंदिर
खिर्सू में की जाने वाली गतिविधिया
प्रकृति दर्शन पक्षी विहार – खिर्सू में पाइन, ओक, और देवदार के घने जंगलों के रूप में प्राकृतिक सुंदरता बिखरी हुई हैं। यहाँ की रमणीय प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने के साथ, आप यहाँ विभिन्न प्रकार के पक्षियों की प्रजातियों का दर्शन कर सकते हैं।
ग्राम पर्यटन – खिर्सू उत्तराखंड के छिपे हुए गहनों में से एक है। खिर्सू में प्राकृतिक सुंदरता के साथ आप शांत वादियों में ग्राम पर्यटन का आनंद ले सकते हैं।
खिर्सू कब जाएँ और कैसे जाएँ
यह उत्तराखंड जाने के लिए साल भर अनुकूल है। बस बरसात और जाड़ों के मौसम में ऐतिहात, पूर्व मोसम विभाग का अध्ययन करके खिर्सू के लिए निकले। खिर्सू जाने से पहले, कोरोना से सम्बन्धित, उत्तराखंड सरकार के आवश्यक दिशा निर्देशों का पालन सुनिश्चित कर लें।
खिर्सू जाने के लिए निकटम रेलवे स्टेशन देहरादून या हरिद्वार का पड़ेगा। खिर्सू का निकटतम हवाई अड्डा जौली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो खिर्सू से लगभग 145 किलोमीटर दूर है। खिर्सू सड़क मार्ग से जाने के लिए बया ऋषिकेश जा सकते हैं। खिर्सू दिल्ली से लगभग 330 किलोमीटर दुरी पर स्थित है।
उत्तराखंड में घूमने लायक प्रसिद्ध हिल स्टेशन, अल्मोड़ा
प्राकृतिक सौंदर्य में भव्यता समेटे, और औपनिवेशिक आकर्षण में डूबा, अल्मोड़ा के घोड़े की ,नाल के आकार का अनूठा विचित्र हिल स्टेशन, उत्तराखंड राज्य के एकदम अंदर एक ढलवां चोटी पर स्थित है। कुमाऊं हिमालय में बसे और कौशिकी (कोशी) और शाल्मली (सुयाल) नदियों से समृद्ध, अल्मोड़ा 1560 में, कुमाऊं क्षेत्र के राजवंश, चंदवंशीय राजाओं की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी।
औपनिवेशिक युग की इमारतों और पारंपरिक रूप से चित्रित लकड़ी की दुकानों के संयोजन वाला अल्मोड़ा एक आकर्षक स्थल है । जो अपनी विरासत को अपने दिल के करीब रखता है।
यह बात यहां मौजूद किलों, शाही दरबारों और ऐतिहासिक स्मारकों में परिलक्षित होती है। कुमाऊं चंदवंशीय और कत्यूरियों जैसे राजवंशों द्वारा निर्मित कई किलों का घर था। यहाँ की प्रसिद्ध बाल मिठाई विश्व प्रसिद्ध है। बाल मिठाई के साथ प्रसिद्ध सिगोरी मिठाई का आनंद भी ले सकते हैं। अल्मोड़ा को सांस्कृतिक नगरी भी कहा जाता है। अल्मोड़ा कुमाउनी संस्कृति की राजधानी मानी जाती है।
अल्मोड़ा में घूमने की जगह –
यहां घूमने लायक भगवान शिव का जागेश्वर मंदिर है। यह मंदिर ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यताओं वाला मंदिर है। यहाँ 7 से 12 वी शताब्दी के बीच बने 100 से अधिक मंदिरो का समूह है। जागेश्वर के बारे में अधिक जानकारी हेतु यहाँ क्लिक करें। अल्मोड़ा में कुमाऊं के लोक देवता, गोलू देवता का प्रसिद्ध मंदिर चितइ मंदिर है।
ऐसे सर्वोच न्यायलय, नाम से भी जाना जाता है। गोलू देवता को न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। अल्मोड़ा बाजार में एक अलग सी सुगंध तैरती रहती है। और यह सुगंध और कुछ नहीं यहाँ की प्रसिद्ध मिठाई बाल मिठाई की सुगंध है। अल्मोड़ा जाये तो बॉल मिठाई का स्वाद के साथ सिगोड़ी मिठाई का स्वाद अवश्य लें।
अल्मोड़ा का विश्वप्रसिद्ध कसार देवी मंदिर
विश्व में अपनी अद्भुद रेडियो एक्टिव शक्ति के लिए प्रसिद्ध माँ कसार देवी का मंदिर यहीं स्थित है। जहा पहुंचकर थकावट का अहसास नहीं होता और मन को अप्रतिम शांति मिलती है। अल्मोड़ा के निकट आध्यात्मिक शांति का प्रसिद्ध केंद्र डोल आश्रम भी स्थित है। यह आश्रम घने जंगल के बीच बसा है।
उत्तराखंड का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर, कटारमल सूर्य मंदिर की बनावट और वहां की नैसर्गिक सुंदरता को देख आप मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह पाओगे। उत्तराखंड अल्मोड़ा का बिनसर पर्यटक स्थल अपनी मनमोहक सुंदरता के साथ आप का मनमोहित करने के लिए तत्पर है। अभी हाल ही में, बॉलीवुड के रणवीर सिंह और उनकी पत्नी दीपिका पादुकोण यहाँ अपना कीमती समय बिता कर गए।
ब्राइट एंड कॉर्नर से उगते सूर्य का दृश्य –
ब्राइट एंड कार्नर से आप उगते और डूबता सूर्य के दर्शन कर सकते हैं। इसके साथ ही प्राकृतिक नजारों से भरपूर जीरो पॉइंट वन्य जीव अभ्यराण्य है। अल्मोड़ा जिले में ही रानीखेत हिल स्टेशन है। जहा गोल्फ ग्राउंड के साथ कई आकर्षक पर्यटन स्थल हैं।
अल्मोड़ा में ऐतहासिक नगरी मंदिरो का नगर द्वाराहाट स्थित है। द्वाराहाट के पास दुनागिरि का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। दुनागिरि मंदिर के पास भटकोट की ग़ैरहिमालयी चोटियों में पांडवखोली नामक पौराणिक रमणीय स्थान है।
अल्मोड़ा कब जाएँ और कैसे जाये –
यहां वर्षभर कभी भी जा सकते हैं। तथा अल्मोड़ा देश के सभी मार्गो से अच्छी तरह जुड़ा हुवा है। अल्मोड़ा का नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। निकटम हवाई अड्डा पंतनगर हवाई अड्डा है। सड़क मार्ग से बया हल्द्वानी होकर अल्मोड़ा जा सकते हैं।
मुनस्यारी हिल स्टेशन:-
यह एक खूबसूरत पर्वतीय स्थल है। यह उत्तराखण्ड में जिला पिथौरागढ़ का सीमांत क्षेत्र है जो एक तरफ तिब्बत सीमा और दूसरी ओर नेपाल सीमा से लगा हुआ है। मुनस्यारी चारो ओर से पर्वतो से घिरा हुआ है। मुनस्यारी के सामने विशाल हिमालय पर्वत श्रंखला का विश्व प्रसिद्ध पंचचूली पर्वत (हिमालय की पांच चोटियां) जिसे किवदंतियो के अनुसार पांडवों के स्वर्गारोहण का प्रतीक माना जाता है।
बाई तरफ नन्दा देवी और त्रिशूल पर्वत, दाई तरफ डानाधार जो एक खूबसूरत पिकनिक स्पॉट भी है और पीछे की ओर खलिया टॉप है। एशिया का सबसे बड़ा ट्युलिप गार्डन भी यहीं हैं। हमारे एक लेख में मुनस्यारी के बारे में बिस्तृत जानकारी उपलब्ध है। मुनस्यारी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।
उत्तराखंड में घूमने के लिए खास रुद्रप्रयाग –
भगवान शिव (रुद्र) के नाम पर इसका नाम रखा गया है, रुद्रप्रयाग, अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के पवित्र संगम पर स्थित है। यह श्रीनगर (गढ़वाल) से 34 किमी की दूरी पर है। मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों का संगम खुद का एक अनूठा सौंदर्य है और ऐसा लगता है कि दो बहनों ने एक दूसरे को गले लगाया हो ।
यह माना जाता है कि संगीत के रहस्यों को हासिल करने के लिए, नारद मुनि ने भगवान शिव की पूजा की, जो नारद को आशीर्वाद देने के लिए अपने रुद्र अवतार (अवतार) में उपस्थित थे। शिव और जगदम्बा मंदिर महान धार्मिक महत्व के मंदिर हैं।
उत्तराखंड में घूमने लायक विशेष है ,उत्तराखंड का मिनी कश्मीर -: पिथौरागढ़
मिनी कश्मीर के नाम से जाना जाने वाला जिला पिथौरागढ़ है. पिथौरागढ़ जिला उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल का एक बेहद खूबसूरत पर्वतीय क्षेत्र है। पिथौरागढ़ जिला तीन पड़ोसी देशों क्रमशः नेपाल, चाइना और तिब्बत के साथ अपनी सीमा साझा करता है।
पिथौरागढ़ जिला चारों ओर से उच्च पर्वतीय श्रेणियों से घिरा हुआ है, जो क्रमशः नन्दा देवी पर्वत , त्रिशूल पर्वत और राजरम्भा पचांचुली है। इसके साथ ही अन्य कई पर्वतो व ग्लेशियरों से घिरा पिथौरागढ़ अपनी सुंदरता की वजह से एक विख्यात पर्यटन स्थल भी है।
इसके साथ ही पिथौरागढ़ कैलाश पर्वत और मानसरोवर जाने वाले सभी तीर्थ यात्रींओ के लिए प्रवेश द्वार है। यहाँ डीडीहाट की खेचुवा मिठाई भी प्रसिद्ध है।यहाँ डीडीहाट की खेचुवा मिठाई भी प्रसिद्ध है।
केदारकांठा ट्रेक उत्तराखंड में घूमने लायक लिए खास ट्रैक
केदारकंठ ट्रेक एडवेंचर से भरपूर ट्रेकिंग डेस्टिनेशन है। केदारकंठ ट्रेक उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में गोविंद वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है। केदारकथा ट्रेक आपको विशाल पहाड़ों की ओर ले जाता है। ट्रेकिंग के यात्रा देहरादून से शुरू होती है, जहां से आप छोटे, लेकिन बहुत ही संकर्री गांव को देख सकते हैं।
इस घाटी में सर्दियों में बर्फ गिरती है,इस दौरान बर्फ से घिरे पहाड़ देखने में बेहद ही खूबसूरत नजर आते हैं। केदारकंठ ट्रेक 3800 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह अद्भुत ट्रेक ट्रेकर्स को एक शानदार अनुभव प्रदान करता है।केदारकंठ ट्रेक तक पहुँचने के लिए ट्रेकर्स को वन्यजीव अभयारण्य से होकर जाना होता है।
वन्यजीव अभयारण्य पार करने के बाद ट्रेकर्स जूदा पहुंचते हैं। जूदाजूदा का तालाब एक आकर्षक तालाब है, जोकि मैपल, ओक और मोरिंडा सप्रा हरियाली चराई से घिरा हुआ है। ट्रेकर्स चाहे तो यहां आराम आकर सकते हैं।
चौकड़ी उत्तराखंड में घूमने लायक खास हिल स्टेशन –
यदि आप नैनीताल, मंसूरी जैसी भीड़ भाड़ वाले हिल स्टेशनों से इतर कुछ शांत और लुभावने हिल स्टेशन की खोज में हैं, तो चौकड़ी उत्तराखंड में आपकी खोज खत्म हो सकती है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बसा ये छोटा सा, सुंदर हिल स्टेशन, आस पास सुंदर वनसम्पदा से घिरा, हिमालय के पंचाचूली, नानंददेवी, नंन्दा कोट आदि पर्वत शिखरों के सुंदर दृश्य प्रदान करता है। असल मे यह एक सुंदर गाव हैं। चौकड़ी उत्तराखंड समुंद्रतल से लगभग 2010 की ऊंचाई पर स्थित है।
चौकड़ी उत्तराखंड, क्यों जाएं ?
जैसा कि नाम से पता चलता है, यह एक कटोरे नुमा छोटा सा गावँ है, जो कि हिमालय के बीचों बीच स्थित है। यह रमणीय गावँ प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता से विभूषित है। यहां आप प्राकृतिक सुंदरता, फलों के बाग, देवदार के वन, हिमालय की चोटियों का साक्षात्कार, विभिन्न प्रकार के पक्षियों के दर्शन कर सकते हैं। यहां कई प्रसिद्ध मंदिर भी हैं।
पिथौरागढ़ का प्रसिद्ध मंदिर मोस्टमानु यही है। इसके अलावा पौराणिक कथाओं के अनुसार बेरीनाग में आर्यों से पहले कालिया नाग के वंशज नागों का राज था। बाद में नागवंशजो ने अपने पूर्वजों के मंदिर स्थापित किये हैं। जो काफी शक्तिशाली और प्रसिद्ध मंदिर हैं।
इन प्रमुख मंदिरों में बेरीनाग मंदिर, धौलीनाग मंदिर, फेणीनाग मंदिर, पिंगलीनाग, कालीनाग, सुंदरीनाग हैं। चौकड़ी उत्तराखंड में आप प्रकृति दर्शन, ट्रेकिंग, ग्राम्य भर्मण तथा हिमालयी चोटियों का विहंगम दृश्य का आनंद ले सकते हैं।
चौकड़ी उत्तराखंड का चाय बागान :
यह उत्तराखंड के उन खास पहाड़ी क्षेत्रों में से एक है, जहाँ आप प्रकृतिक सुंदरता बिखेरे चाय बागान का दर्शन का आनंद ले सकते हैं। शुद्ध चाय की खुशबू को यहां महसूस कर सकते हैं। यह स्थान इतना सुरम्य है, कि आप यहां से वापस जाना भूल जाओगे।
चौकड़ी उत्तराखंड घूमने कैसे जाएं :
यहां उत्तराखंड आप ,हल्द्वानी से बया अल्मोड़ा होकर जा सकते हैं। पिथौरागढ़ का नैनी सैनी हवाई अड्डा नजदीकी हवाई अड्डा है। किंतु इसका अधिक सुविधाजनक हवाई अड्डा पंत नगर हवाई अड्डा है। और नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम रेलवे स्टेशन है। जहाँ से आप बस या कार से आसानी से पहुँच सकते हो। दिल्ली से चौकोड़ी उत्तराखंड लगभग 450 किलोमीटर दूर है।
चौकड़ी उत्तराखंड में रहने खाने की व्यवस्था :
यह उत्तराखंड, मंसूरी, नैनीताल जैसा प्रसिद्ध नही है। इसलिए वहां रहने की व्यवस्था सीमित है। वहां सीमित गेस्ट हाउस हैं। हालांकि उत्तराखंड सरकार की पहल से, दीनदयाल होमस्टे योजना से प्रेरित होकर, पहाड़ो में लोग धीरे धीरे, होमस्टे खोल रहे हैं।
वहाँ भी होमस्टे उपलब्ध हैं। इसके अलावा कुमाऊं मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस भी उपलब्ध है। चौकड़ी में उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजनों के साथ, उत्तर भारतीय व्यंजन व चाइनीज़ व्यंजन आसानी से उपलब्ध है।
मित्रों यदि आप उत्तराखंड में घूमने के लिए, नैनीताल, मंसूरी जैसी भीड़ भाड़ वाले पर्यटन स्थलों के अलावा कुछ नया ढूढ़ रहे हैं। तो उत्तराखंड के ये छुपे हुए पर्यटन स्थल आपकी उम्मीदों पर खरे उतरंगे। जहां आप कुछ नयेपन का अहसास ले सकते हैं।
भारत में दो नदियों के संगम पर कई तीर्थस्थल है और इनके नाम से प्रयाग जुड़ा हुआ है। भारत में इस तरह के 14 प्रयाग हैं और इनमें पांच प्रयाग उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में हैं। उत्तराखंड के पंच प्रयाग हैं विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग और देवप्रयाग। उत्तराखंड के प्रसिद्ध पंच प्रयाग देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नन्दप्रयाग, तथा विष्णुप्रयाग मुख्य नदियों के संगम पर स्थित हैं।
नदियों का संगम भारत में बहुत ही पवित्र माना जाता है विशेषत: इसलिए कि नदियां देवी का रूप मानी जाती हैं। प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम के बाद गढ़वाल-हिमालय के क्षेत्र के संगमों को सबसे पवित्र माना जाता है, क्योंकि गंगा, यमुना और उनकी सहायक नदियों का यही उद्गम स्थल है। जिन जगहों पर इनका संगम होता है उन्हें प्रमुख तीर्थ माना जाता है। यहीं पर श्राद्ध के संस्कार होते हैं। ( पंच प्रयाग )
देवप्रयाग:
अलकनंदा और भागीरथी का संगम स्थल देवप्रयाग भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित एक नगर एवं प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यह अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों के संगम पर स्थित है। इसी संगम स्थल के बाद इस नदी को पहली बार ‘गंगा’ के नाम से जाना जाता है। यहाँ श्री रघुनाथ जी का मंदिर है, जहाँ हिंदू तीर्थयात्री भारत के कोने कोने से आते हैं। देवप्रयाग अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम पर बसा है।
यहीं से दोनों नदियों की सम्मिलित धारा ‘गंगा’ कहलाती है। यह टेहरी से 18किलोमीटर दक्षिण-दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। प्राचीन हिंदू मंदिर के कारण इस तीर्थस्थान का विशेष महत्व है। संगम पर होने के कारण तीर्थराज प्रयाग की भाँति ही इसका भी नामकरण हुआ है। देवप्रयाग समुद्र सतह से 15०० फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है और निकटवर्ती शहर ऋषिकेश से सड़क मार्ग द्वारा 70 किमी० पर है।
यह स्थान उत्तराखण्ड राज्य के ”’पंच प्रयागों”’ में से एक माना जाता है। इसके अलावा इसके बारे में कहा जाता है कि जब राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतरने को राजी कर लिया तो 33 करोड़ देवी-देवता भी गंगा के साथ स्वर्ग से उतरे। तब उन्होंने अपना आवास देवप्रयाग में बनाया जो गंगा की जन्म भूमि है। भागीरथी और अलकनंदा के संगम के बाद यही से पवित्र नदी गंगा का उद्भव हुआ है। ( पंच प्रयाग )
यहीं पहली बार यह नदी गंगा के नाम से जानी जाती है। गढ़वाल क्षेत्र में मान्यतानुसार भगीरथी नदी को सास तथा अलकनंदा नदी को बहू कहा जाता है। यहां के मुख्य आकर्षण में संगम के अलावा एक शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर हैं जिनमें रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है। देवप्रयाग प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। यहां का सौन्दर्य अद्वितीय है। निकटवर्ती डंडा नागराज मंदिर और चंद्रवदनी मंदिर भी दर्शनीय हैं। ( पंच प्रयाग )
देवप्रयाग को ‘सुदर्शन क्षेत्र’ भी कहा जाता है। यहां कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है। स्कंद पुराण केदारखंड में इस तीर्थ का विस्तार से वर्णन मिलता है कि देव शर्मा नामक ब्राह्मण ने सतयुग में निराहार सूखे पत्ते चबाकर तथा एक पैर पर खड़े रहकर एक हज़ार वर्षों तक तप किया तथा भगवान विष्णु के प्रत्यक्ष दर्शन और वर प्राप्त किया। देवप्रयाग के बारे में अधिक जानकारी हेतु यहां क्लिक करें।
रुद्रप्रयाग :
जहां भगवान शिव ने बजायी थी वीणा ,मन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर रुद्रप्रयाग स्थित है। संगम स्थल के समीप चामुंडा देवी व रुद्रनाथ मंदिर दर्शनीय है। रुद्र प्रयाग ऋषिकेश से 139 किमी० की दूरी पर स्थित है। यह नगर बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर स्थित है।
यह माना जाता है कि नारद मुनि ने इस पर संगीत के गूढ रहस्यों को जानने के लिये “रुद्रनाथ महादेव” की अराधना की थी। श्रीनगर से उत्तर में 37 किमी की दूरी पर मंदाकिनी तथा अलकनंदा के पावन संगम पर रुद्रप्रयाग नामक पुण्य तीर्थ है। पुराणों में इस तीर्थ का वर्णन विस्तार से आया है। यहीं पर ब्रह्माजी की आज्ञा से देवर्षि नारद ने हज़ारों वर्षों की तपस्या के पश्चात भगवान शंकर का साक्षात्कार कर सांगोपांग गांधर्व शास्त्र प्राप्त किया था।
यहीं पर भगवान रुद्र ने श्री नारदजी को `महती’ नाम की वीणा भी प्रदान की। संगम से कुछ ऊपर भगवान शंकर का `रुद्रेश्वर’ नामक लिंग है, जिसके दर्शन अतीव पुण्यदायी बताये गये हैं। यहीं से यात्रा मार्ग केदारनाथ के लिए जाता है, जो ऊखीमठ, चोपता, मण्डल, गोपेश्वर होकर चमोली में बदरीनाथजी के मुख्य यात्रा मार्ग में मिल जाता है।
कर्णप्रयाग :
कर्ण ने जहां सूर्य भगवान से प्राप्त किया था कवच अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम पर कर्णप्रयाग स्थित है। पिण्डर का एक नाम कर्ण गंगा भी है, जिसके कारण ही इस तीर्थ संगम का नाम कर्ण प्रयाग पडा। यहां पर उमा मंदिर और कर्ण मंदिर दर्शनीय है। यहां पर भगवती उमा का अत्यंत प्राचीन मन्दिर है।
संगम से पश्चिम की ओर शिलाखंड के रूप में दानवीर कर्ण की तपस्थली और मन्दिर हैं। यहीं पर महादानी कर्ण द्वारा भगवान सूर्य की आराधना और अभेद्य कवच कुंडलों का प्राप्त किया जाना प्रसिद्ध है। कर्ण की तपस्थली होने के कारण ही इस स्थान का नाम कर्णप्रयाग पड़ा।
पंच प्रयाग में से एक विष्णुप्रयाग :
लगाइये विष्णु कुण्ड में डुबकी धौली गंगा तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर विष्णुप्रयाग स्थित है। संगम पर भगवान विष्णु जी प्रतिमा से सुशोभित प्राचीन मंदिर और विष्णु कुण्ड दर्शनीय हैं। यह सागर तल से 1372 मी० की ऊंचाई पर स्थित है। विष्णु प्रयाग जोशीमठ-बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर स्थित है। ( पंच प्रयाग )
जोशीमठ से आगे मोटर मार्ग से 12 किमी और पैदल मार्ग से 3 किमी की दूरी पर विष्णुप्रयाग नामक संगम स्थान है। यहां पर अलकनंदा तथा विष्णुगंगा (धौली गंगा) का संगम स्थल है। स्कंदपुराण में इस तीर्थ का वर्णन विस्तार से आया है। यहां विष्णु गंगा में 5 तथा अलकनंदा में 5 कुंडों का वर्णन आया है।
यहीं से सूक्ष्म बदरिकाश्रम प्रारंभ होता है। इसी स्थल पर दायें-बायें दो पर्वत हैं, जिन्हें भगवान के द्वारपालों के रूप में जाना जाता है। दायें जय और बायें विजय हैं।
पंच प्रयाग में आखिरी प्रयाग नन्दप्रयाग :
अलकनंदा और नंदाकिनी का संगम स्थल नन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर नन्दप्रयाग स्थित है। यह सागर तल से २८०५ फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। कर्णप्रयाग से उत्तर में बदरीनाथ मार्ग पर 21 किमी आगे नंदाकिनी एवं अलकनंदा का पावन संगम है।
पौराणिक कथा के अनुसार यहां पर नंद महाराज ने भगवान नारायण की प्रसन्नता और उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त करने के लिए तप किया था। यहां पर नंदादेवी का भी बड़ा सुंदर मन्दिर है। नन्दा का मंदिर, नंद की तपस्थली एवं नंदाकिनी का संगम आदि योगों से इस स्थान का नाम नंदप्रयाग पड़ा। संगम पर भगवान शंकर का दिव्य मंदिर है। यहां पर लक्ष्मीनारायण और गोपालजी के मंदिर दर्शनीय हैं। ( पंच प्रयाग )
पंच केदार की तरह है पंच बद्री भी है जहाँ भगवान विष्णु अलग -अलग रूप मे विराजते हैं ।और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है। पंचबद्री उत्तराखंड में स्थित, पंच बद्री बद्रीनाथ धाम की तरह हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
बद्रीनाथ धाम पंच बद्री में से ही एक है पंच बद्री मंदिरों की यह विशेषता है कि, इनमें विष्णु भगवान के अलग-अलग रूपों की मूर्ति स्थापित है।यह पांचो मंदिर बद्रीनाथ धाम के क्षेत्र से लेकर नंदप्रयाग के बीच में स्थित है पंच बद्री में बद्रीनाथ, योगध्यान बद्री, भविष्य बद्री, वृद्ध बद्री और आदि बद्री का नाम आता हैै।
बद्रीनाथ
बद्रीनाथ मंदिर का वर्णन हिन्दू धर्म ग्रंथों में भी मिलता है । यह माना जाता है कि यहां स्थित वर्तमान मंदिर की स्थापना आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी । इस मंदिर का ढांचा कई बार भूकंप की वजह से टूटा है लेकिन इसका जीर्णोद्धार होता रहा है।
बद्रीनाथ धाम को विष्णु भगवान का बैकुंठ भी कहा जाता है।यह मंदिर हिमालय पर्वत की रेंज में नर और नारायण पहाड़ियों के बीच में 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान विष्णु ने नर और नारायण के अवतार के रूप में तपस्या की थी। बद्रीनाथ भारत में स्थित आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार धाम मंदिरों में से एक है ।यह मंदिर चमोली जिले में स्थित है।
योग ध्यान बद्री –
यह मंदिर चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे गोविंद घाट के पास स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 1920 मीटर है। यह जिस स्थान पर स्थित है उसे पांडुकेश्वर कहा जाता है, ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर पांडवों का जन्म हुआ था ,और यहां पर जो मूर्ति स्थापित है उसकी स्थापना पांडवों के पिता पांडू ने की थी।
इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां विष्णु भगवान की जो मूर्ति स्थापित है उसमें वह ध्यान मुद्रा में दिखाई देते हैं इसीलिए इस मंदिर को योग ध्यान बद्री के रूप में जाना जाता है।
भविष्य बद्री चमोली जिले के जोशीमठ के पास सुभाई गांव में स्थित है, यह मंदिर 2744 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ने किया था| यह मंदिर घने जंगलों में स्थित है, यहाँ भगवान विष्णु के नरसिंह रूप की पूजा होती है।
इस मंदिर तक पहुंचने के लिए जोशीमठ से सलधर नामक जगह तक जाना पड़ता है, जोशीमठ से सलधर की दूरी 11 किलोमीटर है, यह दूरी बस या गाड़ियों द्वारा तय की जाती है, यहाँ से फिर 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए यात्रियों को पैदल पहाड़ों की सीधी चढ़ाई करनी पड़ती है।
वृद्ध बद्री –
वृद्ध बद्री मंदिर जोशीमठ से 7 किलो दूरी पर अनिमथ गांव में स्थित है यहां भगवान विष्णु की पूजा एक वृद्ध व्यक्ति के रूप में की जाती है।भगवान विष्णु के समृद्ध रूप की एक कथा प्रचलित है ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर नारद मुनि ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी भगवान विष्णु उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर एक वृद्ध व्यक्ति के रूप में दर्शन दिए थे यह मंदिर पूरे साल खुला रहता हैै।
आदिबद्री-
यह मंदिर पंडाल और अलकनंदा नदी के संगम पर स्थित है, यह चमोली जिले में कर्णप्रयाग से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इस मंदिर के लिए यह कथा प्रचलित है कि जब पांडव स्वर्ग जा रहे थे तब उन्होंने इन मंदिरों का निर्माण करवाया था| पहले यहां 16 मंदिर थे जिनमें से 2 मंदिर अब नष्ट हो चुके हैं। और 14 मंदिर बचे हुए हैं ।
इनमें से मुख्य मंदिर भगवान विष्णु का है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित है जो कि काले रंग के पत्थर से बनी हुई है, यहां स्थापित मंदिरों की शैली कत्यूरी शैली है जिसका निर्माण बाद में करवाया गया था।