उत्तराखंड की ‘पामीर’ कही जाने वाली तथा चमोली, गढ़वाल एवं अल्मोड़ा जिलों में फैली दूधातोली शृखला बुग्यालों, चरागाहों और सघन बाँज, खर्सू, उतीश व कैल वृक्षो से आच्छादित 2000-2400 मीटर की ऊँचाई का वन क्षेत्र है। दूधातोली से पक्षिम रामगंगा, आटा गाड़, पक्षिम व पूर्वी नयार तथा विनो नदी का उदगम होता है। आटागाड़ लगभग 30 किलोमीटर बहने के बाद सिमली (चमोली) में पिंडर से मिलती है। विनो भी यही दूरी तय कर केदार (अल्मोड़ा) में रामगंगा की सहायक नदी बनती है। तो पूर्व-पक्षिमी नयार नदीयां भी गंगा में समाहित हो जाती है। दूधातोली से निकलने वाली सबसे बड़ी पक्षिमी रामगंगा, चमोली, अल्मोड़ा एवं…
Author: Bikram Singh Bhandari
राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में उत्तराखंड के निवासियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उत्तराखंड के कई आंदोलनकारियों ने अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजो की दासता से हमे मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उत्तराखंड की सालम क्रांति ,देघाट में क्रांति और कुली बेगार आंदोलन जैसे कई आंदोलन उत्तराखंड की धरती पर हुए और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का भी देवभूमि के साथ विशेष जुड़ाव रहा। उत्तरखंड में अँग्रेजी शासनकाल – जिस प्रकार भारत के दूसरे क्षेत्रों में अंग्रेजों के आने से अनेक प्रकार की उथल-पुथल हुई, उसी प्रकार उत्तराखंड के इतिहास, संस्कृति तथा जीवन को भी अंग्रेजों ने प्रभावित…
09 नवंबर सन 2000 को उत्तराखंड राज्य का देश के 27वे राज्य के रूप में निर्माण हुवा। अनेक आंदोलनकारियों ने इस राज्य के निर्माण में अपना बलिदान दिया। प्रस्तुत लेख में उत्तराखंड का इतिहास का आदिकाल से लेकर उत्तराखंड के राजवंशो का तथा उत्तराखंड में गोरखा शाशन का संशिप्त क्रमबद्ध वर्णन संकलित किया गया है। उत्तराखंड में अंग्रेजो का शाशन तथा उत्तराखंड के निर्माण के का इतिहास अगले लेख में संकलित करने की कोशिश करेंगे। आदिकाल- चतुर्थ सहस्त्राब्दी ईसवी पूर्व से पहले लाखो वर्षो तक फैले युग को प्रागैतिहासिक कहते हैं। इस दीर्घकाल में ,उत्तराखंड भू -भाग में मानव -गतिविधियों…
कंगनी अनाज जिसे हमारे पहाड़ों में कौणी या कौंणी कहा जाता है। यह पहाड़ों की पारंपरिक फसल भी है । वर्तमान में पलायन की मार झेल रहे पहाड़ो में कौंणी लगभग विलुप्त हो गई है। इसका वानस्पतिक नाम Setarika italics है। यह पोएसी कुल का पादप है। यह चीन में मुख्यतः उगाई जाने वाली फसल है। चीन में ई0पु0 600 वर्ष से उत्त्पादन किया जा रहा है। इसलिए “चीनी बाजरा” भी कहा जाता है। यह पूर्वी एशिया में अधिक उगाई जाने वाली फसल है। इसका उपयोग एक घास के रूप में भी होता है। कौणी या कंगनी प्रतिवर्ष होने वाली…
सर्वप्रथम हम यहाँ स्पष्ट करना चाहते हैं, कि यह लेख उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में बहने वाली कोशी नदी के बारे में है । जिसका पौराणिक नाम कौशिकी नदी है। इस कोशी नदी के अलावा नेपाल से निकलने वाली बिहार में बहने वाली कोसी नदी भी है। कोशी नदी भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। यह नदी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में बहती है। यह रामगंगा नदी की प्रमुख सहायक नदी है। इस नदी का उद्गम कौसानी के पास धारापानी नामक स्थान है। वहाँ से यह नदी ,सोमेश्वर से अल्मोड़ा की कोशी घाटी हवालबाग , खैरना,गरमपानी ,कैंची के…
कंडोलिया मंदिर पौड़ी गढ़वाल का प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर पौड़ी गढ़वाल जिला मुख्यालय से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर प्राकृतिक, नैसर्गिक सुंदरता के बीच बसा है। इसके चारों ओर ऊँचे और सुंदर देवदार, बांज आदि के सघन वृक्ष हैं। पौड़ी समुद्र तल से 1814 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस मंदिर के पास कंडोलिया पार्क भी स्थित है। जो उत्तराखंड का पहला लेज़र थीम पार्क है। कंडोलिया मंदिर की चोटी से हिमालय की चोटियों और गंगवारस्यू घाटी के रमणीय दर्शन होते हैं। कहते हैं कि कंडोलिया देवता चंपावत से पौड़ी आये डुंगरियाल नेगी…
मित्रों अक्सर हम अपने पहाड़ी गीतों में, गढ़वाली और कुमाउनी गीतों में एक प्राचीन और प्रचलित तुकबंदी सुनते हैं ,”तिले धारू बोला” और हमारे दिमाग मे अकसर यह चलता रहता है कि तिले धारू बोला का मतलब क्या होता होगा? उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोक गायक श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने इसका अर्थ कुछ इस प्रकार बताया, “तिले धारू शब्द हमारे वीर भड़ो के लिए इस्तेमाल होता था। इसका शाब्दिक अर्थ है, तिल धारी बोल, जो गाते गाते तिले धारू बोला हो गया। इसका मतलब तूने एक बोल रख दिया, तूने एक मिसाल कायम कर दी। तिल धारी बोल.. तिल…
हरियाली देवी मंदिर, हरियाली देवी को समर्पित यह प्राचीन सिद्धपीठ उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में अव्यस्थित है। हरियाली माई की बाला और वैष्णो देवी के रूप में भी पूजा की जाती है। हरियाली देवी मंदिर ,उत्तराखंड रुद्रप्रयाग जिले के नगरासू – डांडाखाल रोड पर गौचर के बीच जसोली गावँ में स्थित है। यह प्रसिद्ध सिद्ध पीठ समुद्र तल से 1371 किमी की उचाई पर स्थित है। नगरासू से जसोली गांव लगभग 22 किलोमीटर दूर है। और जसोली गांव जहाँ हरियाली माता का मंदिर है वहां से लगभग 8 किलोमीटर दूर हरियाली कांठा में स्वयंभू भगवान् भोलेनाथ का शिवलिंग व्यस्थित है। इस…
नवरात्रि के शुभावसर पर आज हम आपके लिए , माँ भगवती के गढ़वाली जागर लिरिक्स लेकर आये हैं। ये गढ़वाली जागर लिरिक्स, जागर सम्राट के नाम से प्रसिद्ध प्रीतम भरतवाण जी की प्रसिद्ध गढ़वाली जागर ,नारेणी मेरी माता भवानी के हैं।माता भगवती को समर्पित लोक गायक प्रीतम भरतवाण जी की यह सबसे प्रसिद्ध गढ़वाली जागर है। तो मित्रों आइये आनंद लेते हैं, माता की गढ़वाली भजन का – गढ़वाली जागर नारेणी मेरी माता भवानी – जय शक्ति , शक्तिेश्वरी ब्रह्मा विष्णु माहेश्वरी। त्रिलोक जननी विजे विस्विनी माधवी दुर्गा भवानी जगत वन्दनी नारायणी प्रथमें शैलपुत्री ,द्वितीये ब्रह्मचारिणी , तृतीये चन्द्रघण्टेति का,चतुर्थी…
मित्रों इस लेख में हम आपको पहाड़ी भट्ट की चटनी की रेसिपी के बारे में जानकारी देंगे । भट्ट की चटनी से पहले हम यहां संक्षेप में काले भट्ट खाने के फायदे और उसमे पाए जाने वाले पोषक तत्वों के बारे लेख शुरू करके अंत मे स्वादिष्ट भट्ट की चटनी का आनंद लेंगे। पहाड़ी भट्ट के बारे में – पहाड़ी भट्ट (Pahari bhatt) , काले भट्ट हमारे पहाड़ में उगाई जाने वाली मुख्य दाल है। यह बहुत ही पौष्टिक और स्वादिष्ट होते हैं। पहाड़ी काले भट्ट मुख्यतः एशिया , चीन की प्रजाति है। अमेरिका वाले भी पहाड़ी भट्ट को बहुत…