Saturday, September 23, 2023
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उत्तराखंड की कोसी नदी के बारे में || कोशी नदी की पौराणिक कहानी || कौशिकी नदी || Story of koshi River in hindi || kosi nadi Uttarakhand

सर्वप्रथम हम यहाँ स्पष्ट करना चाहते हैं, कि यह लेख उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में बहने वाली कोशी नदी के बारे में है । जिसका पौराणिक नाम कौशिकी नदी है। इस कोशी नदी के अलावा नेपाल से निकलने वाली बिहार में बहने वाली कोसी नदी भी है।

कोशी नदी भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। यह नदी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में बहती है। यह रामगंगा नदी की प्रमुख सहायक नदी है। इस नदी का उद्गम कौसानी के पास धारापानी नामक स्थान है। वहाँ से यह नदी ,सोमेश्वर से अल्मोड़ा की कोशी घाटी हवालबाग , खैरना,गरमपानी ,कैंची के बाद सल्ट पट्टी के मोहान तक उत्तर पक्षिम में बहती है। और उसके बाद एक तीखा मोड़ लेकर दक्षिण पक्षिम को बहते हुए, बेतालघाट होते हुए रामनगर के रास्ते मैदानों में उतर जाती है। रामनगर से सुल्तानपुर से उत्तर प्रदेश का सफर शुरू करते हुए,रामपुर के बाई से गुजरती है। चमरौल के पास यह नदी रामगंगा में मिल जाती है। ( kosi nadi uttarakhand ) उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल और यूपी में कुल मिलाकर यह नदी 225 किलोमीटर बहती है।

कोसी नदी ( कौशिकी नदी) की 118 सहायक नदियाँ तथा  छोटी जल धाराएं हैं। जिन्हें स्थानीय भाषा मे गधेरे कहा जाता है।

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कोशी नदी की प्रमुख सहायक नदियों व जलधाराओं  में , नान कोशी, सुयाल नदी, उलाबगाड ,कुचगाड़ ,रामगाड़ आदि प्रमुख हैं।

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दशकों पहले खूब खिल खिलाकर  बहने वाली कोशी नदी आज धीरे धीरे विलुप्ति की कगार पर है। बस बरसात में कोशी नदी विकराल रूप धरती है। और आम जन को काफी परेशानी होती है।

कोशी नदी

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कोशी नदी ( कौशिकी नदी )की लोक कथा :-

उत्तराखंड की लोककथाओं के अनुसार कोशी नदी को शापित नदी बताया गया है। कहते हैं ,कोशी, रामगंगा ,भागीरथी, सरयू ,काली  गंगा, गोरी गंगा ,यमुना कुल साथ बहिनें थी। एक बार इनकी साथ चलने की बात हुई मगर 6 बहिनें समय पर नही पहुँची तो कोशी  को गुस्सा आ गया और वो अकेले चल दी। जब बाकी की 6 बहिनें आई तो उनको कोशी के बारे में पता चला कि वो तो चली गई। तब बाकी बहीनों ने कोशी को फिटकार ( श्राप दिया ) कि वो हमेशा अलग थलक बहेगी और उसे कभी भी पवित्र नदी नही माना जायेगा। (kosi nadi uttarakhand )

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कुमाऊं का इतिहास में कोसी नदी की पौराणिक कथा :-

उत्तराखंड के प्रसिद्ध इतिहासकार श्री बद्रीदत्त पांडे जी ने अपनी प्रसिद्ध किताब कुमाऊं का इतिहास में कोसी नदी की पौराणिक कथा का कुछ इस प्रकार वर्णन किया है।

ऋषि कौशिकी के द्वारा कौशिकी नदी उर्फ कोसी नदी का अवतरण धरती पर कराया गया था । ऋषि कौशिकी  भटकोट शिखर पर बैठ तपस्या और पूजा अर्चना करते थे। एक बार उन्होंने स्वर्ग की ओर हाथ उठाकर माँ गंगा की स्तुति की तो माँ गंगा की एक जल धार उनके हाथ मे प्रकट हुई । जिसे उन्होंने जन कल्याण हेतु भटकोट ,बूढ़ा पिंननाथ शिखर के दक्षिण पक्षिम से आगे की यात्रा के लिए छोड़ दिया। जो सोमेश्वर महादेव, पिनानाथ महादेव, बड़आदित्य ( कटारमल सूर्य मंदिर ) मा कात्यायनी देवी ( स्याही मंदिर अल्मोड़ा ) इसके बाद शेष पर्वत ( खैरना, बेटलघाट ) मध्देश ( मैदानी क्षेत्र) में चली जाती है।

इस नदी का ऋषि कौशिकी द्वारा धरती पर अवतरण कराने के कारण इस नदी का नाम कौशिकी नदी पड़ा जो कालांतर में कोसी नाम मे परिवर्तित हो गया । अल्मोड़ा के एक कस्बे का नाम कोसी इसी नदी के नाम पर पड़ा है। (kosi nadi uttarakhand )

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