Friday, July 26, 2024
Homeस्टूडेंट कॉर्नरदूधातोली, उत्तराखंड का पामीर पर एक संक्षिप्त लेख

दूधातोली, उत्तराखंड का पामीर पर एक संक्षिप्त लेख

उत्तराखंड की ‘पामीर’ कही जाने वाली तथा चमोली, गढ़वाल एवं अल्मोड़ा जिलों में फैली दूधातोली शृखला बुग्यालों, चरागाहों और सघन बाँज, खर्सू, उतीश व कैल वृक्षो से आच्छादित 2000-2400 मीटर की ऊँचाई का वन क्षेत्र है।

दूधातोली से पक्षिम रामगंगा, आटा गाड़, पक्षिम व पूर्वी नयार तथा विनो नदी का उदगम होता है। आटागाड़ लगभग 30 किलोमीटर बहने के बाद सिमली (चमोली) में पिंडर से मिलती है। विनो भी यही दूरी तय कर केदार (अल्मोड़ा) में रामगंगा की सहायक नदी बनती है। तो पूर्व-पक्षिमी नयार नदीयां भी गंगा में समाहित हो जाती है। दूधातोली से निकलने वाली सबसे बड़ी पक्षिमी रामगंगा, चमोली, अल्मोड़ा एवं गढ़वाल को सीचतें, कालागढ़ बांध में विघुत उत्पादन करते हुए उत्तर प्रदेश के कन्नौज में गंगा से आत्मसात होती है।

उत्तराखंड की हिमनदियाँ जहाँ अथाह जलराशि के बावजूत उत्तराखंड को प्यासा छोड़ जाती है। वहीं दूधातोली, भाटकोट, गागर व मसूरी चम्बा चार पर्वत श्रृंखलाओ की नदियाँ बड़ी मात्रा में पेयजल उपलब्ध करती है। और नदी घाटियों की सिंचाई का जिम्मा भी लिये हुए हैं। दूधातोली का पर्यावरणीय महत्व पाँच नदियों के उदगम से तो है ही, उसकी औषधीय वनस्पतियों और विविध प्रजाति वनों से भी है। बाँज, फर,खर्सू,देवदार और कैल की दुर्लभ प्रजातियों के साथ भाबर (घना जंगल) कहे जाने वाले दूधतोली में बाघ, गुलदार, चीते से लेकर भालू, सूअर, खरगोश, शेही व अनेकानेक पक्षियों का निवास है। लगभग मार्च अंतिम सप्ताह तक बर्फ से ढकी रहने वाली दूधातोली के चारागाह व चोटियां उदगमित नदियों को सदानीरा तो बनाती ही है, क्षेत्र की चतुर्दिक हरियाली भी सुनिश्चित करती है।

ब्रिटिश शासनकाल में चांदपुर परगना दूधातोली के चारो ओर फैली चांदपुर सेली, चांदपुर तैली, लोहबा, रानीगढ़, ढाईज्यूली, चौपड़ाकोट, चौथान व श्रीगुर पट्टियों को मिलाकर बनाया गया है। 1960 में चमोली जिले के गठन के साथ भौगोलिक रूप से दूधतोली का विभाजन हो गया और दूधातोली के काश्तकर दो प्रशासनिक इकाइयों में बंट गये। हालाकिं दूधातोली में हक़-हकूक धारक चोकोट पट्टी पहले ही अल्मोड़ा जिले का हिस्सा थी।

Best Taxi Services in haldwani

1912 में जंगलात विभाग द्वारा जारी सूची में चांदपुर, लोहबा, चौथान, चौकोट, ढाईज्यूली  व चौपड़ाकोट के निवासियों को दूधातोली जंगल का हक दिया गया। वहां पशुपालको को खरक बनाने हेतु भूमि आवटित है। और पशुपालन का अधिकार भी, न केवल उक्त  गाँवो को बल्कि हिमालय के गददी व गूजरों के पशु भी नियमित रूप से दूधातोली में देखे जा सकते है। 6 पट्टियों के 50 गाँवो के 800 पशुपालकों के 99 खरक भी दूधातोली में विघमान है। विस्तृत चरागाह के क्षेत्र दूधातोली अपने नाम के अनुरूप दूध की तौली (दूध का बड़ा बर्तन) है। उसके चरागाह उससे जुड़े ग्रामीण के लिए अत्यन्त लाभदायी थे।

इसे भी पढ़े – उत्तराखंड का इतिहास आदिकाल से गोरखा शाशन तक।

1912 में जंगलात द्वारा हक लिस्ट में अल्मोड़ा जिला के चौकोट पट्टी के लम्बाड़ी गांव को मिले हक में गांव की 112 जनसंख्या में एक साल के ऊपर के 114 गौवंश, 35 महिष वंश व 141 भेड़-बकरियों का उल्लेख है। वर्तमान में भी दूधातोली क्षेत्र से लगे लोहबा के 24 गावों का 12 प्रतिशत पशुपालन दूधातोली के खरकों में होती है। जागड़ी गांव का 30.46, आरूडाली का 36.11, अन्द्रपा का  24.33 तथा रामड़ा का 57.28 प्रतिशत पशुघन खरकों में है।

दूधातोली की पर्यावरणीय समस्याओ में उसके ऊपरी भाग से लगातार सिमटते वन प्रमुख है। हिमपात में टूटे वृक्षो के साथ स्थानीय जनता का अपनी जरूरतों के लिए प्रयोग और 67-70 के दशक तक वनो का अंधाधुंध दोहन की नीतिया इस खली सपाट बनती श्रंखला के लिए जिम्मेदार है। खरकों के निर्माण में प्रतिवर्ष खपने वाली लगभग सौ घन मीटर लकड़ी का उपयोग होता है। दूधातोली में वृक्षारोपण के व्यापक कार्यक्रम लाभदायी हो सकते है क्योकि प्राकृतिक रूप से बीच निचले हिस्से में तो आसानी से आते है, लेकिन ऊंचाई की ओर नहीं जा सकते है। यदि वनो के यहीं घटने का यहीं क्रम रहा तो वो हिम जमने की क्षमता और अंतत: नदियों के  सदानीर रूप को प्रभावित करेगा।

वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली दूधातोली के अर्दितीय सौंदर्य के अनन्य उपासक थे। उन्होनें 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से दूधातोली को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की माँग की थी। उन्हीं की माँग पर इस हेतु अध्ययन भी कराया गया। गैरसैण राजधानी की माँग भी उसी कड़ी का अगला हिस्सा है। वे रामगंगा और नयार घाटियों से दूधातोली रेल पहुँचाने का भी स्वपन देख चुके थे। और गढ़वाल और कुमाऊँ विश्व विघालयों की स्थापना से पहले दूधातोली में उत्तराखंड विश्व विघालयखुलवाने की बात कह चुके थे। 1979 में वह दूधतोली में थे। और यही बीमार हुए जहाँ से उन्हें राम मनोहर लोहिया अस्पताल दिल्ली पहुँचाया गया। वहाँ चन्द्रसिंह गढ़वाली की मृत्यु हो गई थी। उनकी इच्छा के अनुरूप उनकी समाधि दूधातोली के कोदियाबगड़ में बनाई गयी। उनकी याद में प्रतिवर्ष 12 जून वहाँ मेला लगता है। वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के बाद बाबा मोहन सिंह उत्तराखंडी ने भी अपनी समाधि के लिए दूधातोली को चुना।

इसे भी देखें- गैरसैण का इतिहास के बारे में सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में।

यदि आप ऑनलाइन उत्तराखंड का पहाड़ी सामान मगाना चाहते हो ,तो http://www.indshopclub.com पर सारा सामान उपलब्ध है।

Follow us on Google News Follow us on WhatsApp Channel
Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
RELATED ARTICLES
spot_img
Amazon

Most Popular

Recent Comments