Author: Bikram Singh Bhandari

बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

Chardham opening 2023 – शिवरात्रि पर पंचकालीन गद्दीस्थल श्रीओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ में आयोजित धार्मिक समारोह में पंचांग गणना के बाद श्री केदारनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि तय की गई। मंदिर के कपाट 25 अप्रैल को प्रात: 6:20 पर श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे। 20 अप्रैल को भैरवनाथ जी की पूजा होगी। 21 अप्रैल को भगवान केदारनाथ जी की पंचमुखी डोली केदारनाथ प्रस्थान करेगी। इस दिन डोली विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी विश्राम करेगी। 22 अप्रैल को डोली का रात्रि विश्राम फाटा और 23 अप्रैल को गौरीकुंड में होगा। 24 अप्रैल को डोली केदारनाथ धाम पहुंचेगी। 25 अप्रैल को प्रात: विधि-विधान…

Read More

भगवान शिव को सनातन धर्म के लोग अपनी अपनी संस्कृति और अपनी बोली भाषा के अनुसार अलग अलग तरीके से मानते हैं। उत्तराखंड के पहाड़ वासियों से भगवान् शिव का एक अलग ही रिश्ता है। कहते हैं यही भोले का घर और ससुराल दोनों हैं। उत्तराखंड के दोनों मंडलों गढ़वाल और कुमाऊं में भोलेनाथ को अपनी अपनी पद्धतियों से पूजते हैं। तथा ,अपनी अपनी भाषा ,बोली में भगवान शिव का स्तुति गान करते हैं। नाची गेना भोले बाबा,भगवान भोलेनाथ  को समर्पित गढ़वाली शिव भजन  है ,जो हमे भगवान् शिव की भक्ति में झूमने पर मजबूर कर देता है। इस भजन…

Read More

आज इस पोस्ट में हम कुमाउनी शिव भजन लिरिक्स पोस्ट कर रहें है। इसके साथ – साथ इस कुमाउनी भजन का वीडियो लिंक भी प्रस्तुत कर रहें हैं। कुमाऊं के सुप्रसिद्ध गायक गोपाल मठपाल जी की आवाज में यह भजन बहुत कर्णप्रिय है। कुमाउनी शिव भजन ( Kumaoni shiv bhajan lyrics )  – म्यर शिवज्यू महादेवा।  पी बे भंग प्याला ! हैं गई मतवाला ! तस निरंकारी द्यप्ता म्यर शिवज्यू महादेवा। तस निरंकारी द्यप्ता म्यर शिवज्यू महादेवा। गले सर्प माला , अरे  डमरू बजाला ! अरे गले सर्प माला , हाई डमरू बजाला ! उत्तराखंड हिमाला ,म्यर शिवज्यू महादेवा। उत्तराखंड…

Read More

नींबू प्रजाती का यह खास फल माल्टा फल स्वाद में हल्का खट्टा और हल्का मीठा होता है। माल्टा एक पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाला फल है। माल्टा फल का वानस्पतिक नाम citrus Sinesis है। यह फल नींबू के कुल Rutaceae से सम्बन्ध रखता है। https://youtu.be/d0hMvX_Qxgc?si=2_F4wip0dl8M67ue इसका रंग सन्तरे जैसा होता है। इस फल को पहाड़ी सन्तरा या पहाड़ी फलों का राजा भी कहते हैं । सबसे पहले माल्टा का उत्पादन चीन में किया गया था। बाद मे माल्टा का हिमाचल, नेपाल, और उत्तराखंड में उत्पादन शुरू किया गया । माल्टा का पेड़ 6 से 12मीटर तक ऊंचा होता है। इसके…

Read More

उत्तराखंड में कोटेश्वर नामक कई शिवालय हैं। इस लेख में हम रुद्रप्रयाग जिले में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित कोटेश्वर गुफा का वर्णन कर रहें हैं। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में जिला मुख्यालय 4 किलोमीटर आगे अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है यह गुफा। यहाँ चट्टान पर 15 -16 फ़ीट लम्बी और 2 -6 फीट ऊँची प्राकृतिक गुफा है। इस गुफा में कई शिवलिंग हैं। प्रमुख मंदिर में हनुमान जी की आदमकद मूर्ति भी है। कोटेश्वर गुफा का इतिहास – इस गुफा के बारे में यह मान्यता है कि यहाँ  भगवान् भोलेनाथ ने तपस्या की थी। इस स्थान…

Read More

गलता लोहा – स्वर्गीय श्री शेखर जोशी की कालजयी रचना – मोहन के पैर अनायास ही शिल्पकार टोले की ओर मुड़ गए। उसके मन के किसी कोने में शायद धनराम लोहार के आफर की वह अनुगूँज शेष थी , जिसे वह पिछले तीन-चार दिनों से दुकान की ओर जाते हुए दूर से सुनता रहा था।  निहाई पर रखे लाल गर्म लोहे पर पड़ती हथौड़े की धप्-धप् आवाज, ठंडे लोहे पर लगती चोट से उठता ठनकता स्वर और निशाना साधने से पहले खाली निहाई पर पड़ती हथौड़ी की खनक जिन्हें वह दूर से ही पहचान सकता था। लंबे बेंटवाले हँसुवे को लेकर…

Read More

उत्तराखंड की लोक कलाएं – लोक कला की दृष्टि से उत्तराखण्ड बहुत समृद्ध है। घर की सजावट में ही लोक कला सबसे पहले देखने को मिलती है। दशहरा, दीपावली, नामकरण, जनेऊ आदि शुभ अवसरों पर महिलाएं घर में ऐपण (अल्पना) बनाती हैं। इसके लिए घर,आंगन या सीढ़ियों को गेरू से लीपा जाता है। चावल को भिगोकर उसे पीसा जाता है। उसके लेप से आकर्षक चित्र बनाए जाते हैं। विभिन्न अवसरों पर नामकरण चौकी, सूर्य चौकी, स्नान चौकी, जन्मदिन चौकी, यज्ञोपवीत चौकी, विवाह चौकी, धूलिअर्घ्य चौकी, वर चौकी, आचार्य चौकी, अष्टदल कमल, स्वास्तिक पीठ, विष्णु पीठ, शिव पीठ, शिव शक्ति पीठ,…

Read More

उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रतियोगी परीक्षाओं में पारदर्शिता लाने के लिए, उत्तराखण्ड प्रतियोगी परीक्षा अध्यादेश 2023 को अनुमोदन प्रदान किया गया है। उत्तराखंड में नकल विरोधी कानून लागू होने के दिन से प्रभावी होगा। उत्तराखंड की प्रतियोगिता परीक्षाओं में अनुचित साधनों का करने वालों के खिलाफ दंड का प्रावधान इस प्रकार है –  कोई व्यक्ति, प्रिटिंग प्रेस, सेवा प्रदाता संस्था, प्रबंध तंत्र, कोचिंग संस्थान इत्यादि अनुचित साधनों में लिप्त पाया जाता है तो उसके लिए आजीवन कारावास की सजा तथा 10 करोड़ रूपए तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। यदि कोई व्यक्ति संगठित रूप से परीक्षा कराने वाली संस्था के…

Read More

खुदेड़ गीत – गढ़वाल की विवाहिता नवयुवतियों द्वारा बसंत के आगमन पर अपने मायके की याद में और माता पिता और भाई बहिनो से मिलन की आकुलता में एकाकी गाये जाने वाला गीत खुदेड़ गीत कहलाता है। खासकर यह गीत उनके द्वारा गया जाता है ,जिन्हे मायके में बुलाने वाला कोई नहीं होता है। यह गीत अन्यतम कारुणिक गीत होता है । इसमें नायिका पहाड़ो के वन क्षेत्र में अकेले अथवा सहेलियों के साथ करुण स्वर में खुदेड़ गीत गाती हैं। इन गीतों में अभिनय के रूप में केवल भावाभिनय ही होता है।  केवल महिलाओं के विरह को समर्पित हैं…

Read More

उत्तराखंड के नैनीताल जिले में मुक्तेश्वर नामक बेहद खूबसूरत और रमणीय स्थल है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 2286 मीटर है। मुक्तेश्वर से त्रिशूल, नन्दा देवी आदी हिमालयी चोटियों के नयनाभिराम दर्शन होते हैं। इस स्थान को स्थानीय रूप से मोतेश्वर कहा जाता है। यह स्थान नैनीताल जिला मुख्यालय से 52 किलोमीटर और हल्द्वानी काठगोदाम से लगभग 76 किलोमीटर (बाया ज्योलिकोट) पर स्थित है। यह क्षेत्र अपने नैसर्गिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। मुक्तेश्वर में अंग्रेजों ने सन 1890 में विश्व के प्रमुख सस्थान” भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान” की स्थापना की गयी थी। यह आज भी सक्रीय है लेकिन अब…

Read More