Thursday, April 17, 2025
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केदारनाथ धाम के कपाट खास भाई दूज पर ही क्यों बन्द होते हैं

दीपावली के तीसरे पर्व भाई दूज के शुभावसर पर केदरनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जायेंगे। केदारनाथ के कपाट भाई दूज की सुबह 8 बजे बंद कर दिए जायेंगे। भाईदूज दीपावली पर्व शृंखला का आखिरी त्यौहार होता है । तथा दीपावली के उपरांत ठंड भी बढ़ जाती है।  और  हिमालय क्षेत्र में  निवास करना  मुश्किल हो जाता  है। इसलिए, भाई दूज पर केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। ज्योतिर्लिंग को समाधि रूप देते हुए भस्म  से ढक देंगे । इस अवसर पर बाबा केदार की पंचमुखी भोग मूर्ति का श्रृंगार करके  चल विग्रह उत्सव डोली में विराजमान कर दिया जाएगा। कपाट बंद कल कपाट बंद होने के बाद 29 अक्तूबर को देव डोली अपने शीतकालीन पूजा स्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में विराजमान होगी।

केदारनाथ कपाट  बंद होने का पांडवों से है खास रिश्ता –

केदारनाथ धाम के कपाट भाई दूज के मौके पर बंद होने का एक पौराणिक कारण भी बताते हैं। केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने की यह पौराणिक मान्यता पांडवों से जुड़ी है। पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत  बाद कुछ समय राज करने के बाद पांडव अपना राजपाट अपने पुत्रों को सौप कर हिमालय यात्रा पर निकल गए। वहां उन्होंने केदारनाथ धाम का निर्माण कराया। उसके उपरांत पांडवो ने भाई दूज के दिन अपने पितरों का पिंडदान किया और उसके बाद उन्हें भाई दूज के दिन ही स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

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पूर्ण विधिविधान से कपाट बंद होने के बाद, कपाट खुलने की तिथि प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि को घोषित की जाती है। वही एक अन्य खबर के अनुसार ,आज गोवर्धन पूजा के दिन वैदिक मंत्रोच्चार के बीच माँ गंगा के पावन धाम श्री गंगोत्री धाम के कपाट आज शीतकाल के लिए बंद कर दिये गये।

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दशहरे के शुभ अवसर पर , चार धाम कपाट बंद होने की तिथि घोषित हुई।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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