Sunday, November 17, 2024
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कयेश या कैंश पहाड़ की शगुन सूचक परम्पराओं में एक समृद्ध परम्परा।

कयेश या कैंश परंपरा  –

कयेश या कैंश परंपरा उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्सों में शगुन सूचक परम्पराओं में से एक समृद्ध परंपरा है। कुमाऊं के क्षेत्रों में प्रयुक्त इस शब्द को संस्कृत के कलश शब्द से लिया गया है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्रों की सांस्कृतिक परम्परा के अनुसार पहाड़ो में शुभकार्यों के अवसर पर यह परंपरा निभाई जाती है। यह परम्परा खासकर पहाड़ की शादियों में वरयात्रा के प्रस्थान और आगमन पर शगुन के रूप में बहिने या महिलाएं स्वागत में जल से भरी गागर या कलश लेकर स्वागत में खड़ी रहती है।

कयेश

वर का पिता या वर उसमे अपनी सामर्थ्यानुसार या अपनी इच्छा से उसमे रूपये डालता है। वधु या वर के घर में ग्लास में पानी रखकर उसमे हरी पत्तियां डाल कर आँगन में रखा जाता है। इसके अलावा पहले बारात पैदल मार्ग से जाती थी ,और बारात के मार्ग पर पड़ने वाले गावों के बच्चे महिलाएं रास्ते में पानी के भरे कलश लेकर खड़े रहते थे। और दूल्हे का पिता उसमे अपनी सामर्थ्यनुसार उसमे पैसे डालता है। इस परंपरा के विषय में कहा जाता है कि शुभकार्य पर जाने से पहले या यात्रा पर जाने से पहले या यात्रा मार्ग पर , पानी से भरे बर्तन देखना शगुन समझा जाता है।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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