Monday, April 28, 2025
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सीतावनी रामनगर का पौराणिक इतिहास जुड़ा है माँ सीता और लव कुश से।

सीतावनी रामनगर : उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में नैनीताल जिले के रामनगर कस्बे से 20 किलोमीटर दूरी पर कोसी नदी और दाबका नदियों के बीच पहाड़ की घाटी में घने साल के वनो के बीच इस स्थान को वाल्मीकि आश्रम और माता सीता की तपोस्थली माना जाता है। सीतावनी मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह मंदिर त्रेतायुग से यहाँ स्थापित है। सीता माँ का यह मंदिर रामनगर वन प्रभाग के अंतर्गत आता है।

सीतावनी रामनगर का पौराणिक इतिहास जुड़ा है माँ सीता और लव कुश से –

सीतावनी रामनगर के बारे में लोकमान्यताओं में कहा जाता है कि यहाँ माँ सीता ने बाल्मीकि आश्रम में अपना वनवास बिताया और लव कुश का जन्म यहीं हुवा। यहाँ पानी की तीन धाराएं हैं जिनमे गर्मी में ठंडा और गर्म पानी बहता है। यहाँ की गर्म धारा में स्नान करना पुण्यप्रद माना जाता है। गर्म धारा के पास स्थित नारी के बालों के सामान बाबिल घास के बारे में मान्यता है कि रावण के द्वारा माता सीता के अपह्रत के समय बहाये अश्रुओं का प्रतीक है। साथ ही बाबिल घास उस समय माँ सीता की टूटी केशों से संबंधित है।

कुमाऊं के इतिहास और स्कंदपुराण में वर्णित है यह स्थान –

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सीतावनी के बारे में हिमालय गजेटियर के लेखक अटिकन्स ने और स्कन्द पुराण में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुमाऊं के इतिहास किताब में श्री बद्रीदत्त पांडेय जी लिखते हैं कि ,” सीता और कौशिकी के बीच में अशोकवानिका है। वहां अशोक वृक्षों के मध्य में सप्तऋषि और राजा सत्यव्रत ने तपस्या की थी। विश्वामित्र के कहने पर एक बार राम सीता और लक्ष्मण आये थे। सीता इस सुन्दर वन को देखकर मोहित हो गई थी।

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उन्होंने राम से कहा था ,”हमे बैशाख के महीने में इस वन में रहना चाहिए कौशिकी नदी में स्नान करना चाहिए। तब वे बैशाख माह में वहां रहे और उनके स्नान के लिए वहां धाराएं प्रकट हो गई। उनके जाने के बाद वह स्थान सीतावनी के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

सीतावनी रामनगर

पुरातत्व विभाग के अधीन है यह पौराणिक और सांस्कृतिक संपत्ति –

सदियों पुराना पौराणिक और सांस्कृतिक संपत्ति होने के कारण इस मंदिर की देख भाल भारतीय पुरातत्व विभाग के जिम्मे है। इस मंदिर में प्रवेश और इस मंदिर के आसपास निर्माण इत्यादि के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग से परमिशन लेनी पड़ती है।

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समय समय पर मेले और पूजा अर्चना होती रहती है –

सीतावनी रामनगर में नियमित पूजा और धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैं। यहाँ कार्तिक पूर्णिमा और बैशाख पूर्णिमा ,व् शिवरात्रि को खास मेलों का आयोजन भी होता है। यहाँ भगवान् शिव के पंचमुखी शिवलिंग की पूजा होती है।

पौराणिक स्थल के साथ -साथ सुन्दर वन्यजीव अभ्यारण्य भी है सीतावनी –

सीतावनी रामनगर का क्षेत्र एक धार्मिक स्थल के साथ -साथ एक सुन्दर वन्यजीव अभ्यारण्य भी है। यहाँ जीप सफारी के साथ -साथ एक से बढ़कर एक पक्षियों का दीदार किया जा सकता है। यह वनविभाग के अंतर्गत आता है। ट्रांस-हिमालयन बर्डिंग कॉरिडोर का एक हिस्सा होने के नाते, रिज़र्व में अक्षांशीय और व्यवहारिक प्रवासन पैटर्न के दौरान मैदानी और पहाड़ी दोनों तरह के पक्षी आते हैं। कुछ हिमालयी पशु प्रजातियाँ, जैसे हिमालयी काला भालू , हिमालयी  नेवला, येलो-थ्रोट पाइन मार्टन (चुथराऊ ) , हिमालयन गोरल और हिमालयन सेरो भी रिजर्व में आते हैं।

खासकर ठंड के महीनों के दौरान। इस अभ्यारण्य में भारतीय तेंदुए अपने प्रमुख शिकारी,रॉयल बंगाल टाइगर के साथ भिड़ंत  से बचने के लिए ऊबड़-खाबड़ चट्टानों और घाटियों में रहते हैं। बाघ की यह प्रजाति घने जंगलों वाली घाटियों और तराई क्षेत्रों को पसंद करती है। जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के मुख्य और खाली क्षेत्रों के बीच प्रवास करते समय एशियाई हाथियों के झुंड रिजर्व से होकर गुजरते हैं।

सीतावनी रामनगर का पौराणिक इतिहास जुड़ा है माँ सीता और लव कुश से।

ऊंचाई और भौगोलिक विविधताएं और विविध वनस्पतियां, एक तरफ जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क और दूसरी तरफ नैनीताल वन प्रभाग के साथ सीधे कनेक्टिविटी के साथ मिलकर, सीतावनी रिजर्व को संरक्षित प्राकृतिक बाघ, तेंदुए और पक्षियों का पसंदीदा स्थल बनाती है।

संदर्भ सूची –

  • कुमाऊं का इतिहास पुस्तक
  • उत्तराखंड ज्ञानकोष पुस्तक
  • विकिपीडिया अंग्रेजी

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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