Saturday, April 12, 2025
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तिलाड़ी कांड उत्तराखंड, रवाई कांड या तिलाड़ी आंदोलन

प्राचीन समय से आज तक उत्तराखंड वासियों को अपने हक़ अपने अधिकारों और सुविधाओं को लेने के लिए हमेशा संघर्ष करना पड़ा है। उत्तराखंड का इतिहास अनेकों आंदोलनों से भरा पड़ा है। अपने हक़ हकूक की लड़ाई में अनेक उत्तराखंडी भाई बहिनो ने अपना जीवन न्योछावर किया है। अपने हको के लिए हुए  अनेक आंदोलनों में से एक चर्चित आंदोलन , तिलाड़ी आंदोलन या तिलाड़ी कांड अपने हक़ की मांग करते लोगो पर अत्यचार का एक काला अध्याय है।

तिलाड़ी कांड एक माह या एक साल में उपजा आंदोलन नहीं था। ब्रिटिश सरकार ने वनो के अनियमित दोहन को रोकने के लिए वन सम्पदा दोहन के अधिकार आपने हाथ में ले लिए। इसी को आगे बढ़ाते हुए, टिहरी रियासत ने 1885 में वन बंदोबस्त शुरू किया। और 1927 में रवाई घाटी में भी वन बंदोबस्त शुरू कर दिया गया।

इसमें ग्रामीणों के जंगलों  अधिकार ख़त्म कर दिए। वन संपदा के प्रयोग पर कर लगा दिए गए। पारम्परिक त्योहारों पर भी रोक लगा दी गई।  एक भैस एक गाय और एक जोड़ी बैल से अधिक पशु रखने पर एक पशु पर एक रूपये साल का कर थोप दिया गया। इसकी वजह से रवाई घाटी के स्थानीय लोगों में रोष बढ़ने लगा। नए वन बंदोबस्त में वनो पे पशु चराने पर शुल्क , नदियों में मछली मरना भी बंद करवा दिया।

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आलू की उपज पर प्रतिमन एक रुपया कर लगा दिया। इस प्रकार के कर जनता के ऊपर थोप दिए गए। इससे जनता में आक्रोश फ़ैल गया।  इस आक्रोश को चिंगारी दी एक और अमानवीय घटना ने।  टिहरी के राजा नरेन्द्रशाह की राजधानी में अंग्रेज गवर्नर हेली अस्पताल की नीव रखने आये। इस आयोजन में समस्त राज्य और बाहर से भी कई लोग आये थे। राजा नरेन्द्रशाह के राजदरबार की तरफ से , गवर्नर  हेली के मनोरंजन के लिए गरीब लोगो को नंगा होकर तालाब में कूदने को कहा गया।

इस कारण जनमानस के मन में विद्रोह की आग जलने लगी। आख़िरकार अपने हक़ हकूकों की रक्षा के लिए जनता आगे बढ़ी, और उन्होंने रवाई पंचायत की स्थापना की।

जनता लगतार विरोध कर रही थी। मार्च 1930 में महाराजा नरेंद्र शाह स्वास्थ लाभ लेने के लिए यूरोप गए। राजा के जाने के बाद टिहरी रियासत की सत्ता कॉउंसिल के हाथों में थी। इस कॉउंसिल के हेड दीवान चक्रधर जुयाल और हरिकृष्ण रतूड़ी जी थे। चक्रधर जुयाल हमेशा टिहरी राजशाही में अपना दबदबा बढ़ाने के लिए ,नई नई षड्यंत्रकारी  गतिविधिया करते रहते थे। कहते है राजा नरेंद्र शाह देश विदेश घूमने के शौकीन थे।

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उन्होंने जनता के लाभ के लिए कई योजनाए बनाई लेकिन वे यथार्थ के पटल पर नहीं उतर पायी। उसका मुख्य कारण था राजा के लापरवाह और बेलगाम नौकरशाह। राजा अपनी शौक पूरी करने देश विदेश की यात्राओं पर रहते थे। उनका राजकाज अधिक समय लापरवाह और बेलगाम  नौकरशाहों के हाथ में रहता था। जिस कारण जनता को शाशन का उचित लाभ नहीं मिल पता था। तिलाड़ी कांड का सबसे मुख्य कारण था , बेलगाम नौकरशाह और उनके द्वारा राजा और जनता के बीच के संवाद को ख़त्म कर दिया था। अर्थात जनता की बात राजा तक नहीं पहुंचने देते थे।

इधर जनता का संघर्ष जारी था। तिलाड़ी आंदोलन या तिलाड़ी कांड के दौरान, दो हिंसक घटनाये हुई। पहले 20 मई 1920 को राड़ी घाटी गोलीकांड हुवा। इस घटना में रवाई  जनसंघर्ष पंचायत  के कुछ सदस्यों को बात करने के लिए बुलाकर गिरफ्तार कर लिया गया। यह बात जनता तक पहुंच गई जनता ने अपने नेताओं को छुड़ाने के लिए राड़ी घाटी का घेराव कर दिया।

इसकी वजह से  DFO ने जनता पर गोली चला दी, जिसकी वजह से अजीत सिंह और झुण्य सिंह की मौके पर ही मृत्यु हो गई। किशन दत्त ने   पद्मदत्त रतूड़ी को रोका इसके बाद DFO पद्मदत्त रतूड़ी नरेंद्र नगर भाग गया।

जनता को यह भरोसा हो गया कि टिहरी रियासत में उनकी कोई इज्जत नहीं है। उनके साथ जानवरों की तरह वर्ताव किया जा रहा है। गौण के गांव विद्रोह के लिए उठ खड़े हुए।  बड़े विद्रोह की तैयारी शुरू हो गई।

तिलाड़ी कांड उत्तराखंड

इधर दरबार में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए चक्रधर जुयाल लगातार चालबाजी कर रहे थे। राजा की अनुपस्थिति का फायदा उठा कर चक्रधर जुयाल ,DFO  पद्म दत्त रतूड़ी के साथ मिलकर ,नैनीताल गए वहां अंग्रेज एजेंट को रवाई की जनता के विरुद्ध  मनगढंत कहानियाँ सुना कर,जनांदोलन के दमन के लिए मौन सहमति लेकर आ गए। वापस आकर  चक्रधर जुयाल फौज के साथ  28 मई को राजगढ़ी पहुंच गया।

आंदोलनकारी उस समय टाटाव गावं में पंचायत कर रहे थे। आंदोलनकारियों (ढंडकियों ) ने उसी दिन वह गांव छोड़ दिया। मगर रणजोर सिंह नामक व्यक्ति ने आंदोलनकारियों के महत्वपूर्ण दस्तवेज और जानकारियां  दीवान तक पंहुचा दी। चक्रधर ने आंदोलन ख़त्म करने के लिए सन्देश भेजे ,महाराज का यूरोप प्रवास का हवाला भी दिया लेकिन आंदोलनकारी नहीं माने। आंदोलनकारियों की पहली शर्त थी कि रवाई घाटी से सेना की वापसी।

फिर चक्रधर ने नई चाल खेली। आंदोलनकारियों को यह संदेश भिजवाया कि ,वे उन अपराधियों को पकड़ना चाहते हैं, जिन्होंने सरकारी सम्पति का नुकसान किया है। और 29 मई की शाम तक अगर तिलाड़ी मैदान में इकठ्ठा हुए लोग नहीं हटते तो सैनिक कार्यवाही की जाएगी।

चक्रधर जुयाल ने 30 मई की सुबह फिर सन्देश भेजा। मगर तिलाड़ी के मैदान से लोग नहीं हटे। उसके बाद दोपहर 2 बजे बड़ी सैनिक कार्यवाही की गई , तिलाड़ी मैदान को सैनिको ने चारों ओर से घेर कर भयंकर गोलीबारी शुरू कर दी गई। कई लोग गोलियों से मारे गए कई लोग भयभीत होकर यमुना में कूद गए और अपनी जान गवां बैठे। कई लोग कंसेरू के पेड़ो की आड़ में छिपकर बैठ गए। कहते है कि सैनिको ने पेड़ में छुपे लोगो को भी चुन चुन कर मारा। लाशों को यमुना में बहा दिया। और गावं में भी सैनिको ने खूब लूट पाट  की।

महाराज ने यूरोप से लौटने के बाद ,पहले आंदोलनकारियों को ही दोषी माना, क्योंकि उनके भ्र्ष्ट नौकरशाह इसकी पृष्ठभूमि पहले ही बना चुके थे। बाद में धीरे धीरे करके महाराज की समझ में सब आने लगा। नौकरशाहों ने पूरी कोशिश की असली तथ्य महाराज के सामने न आ पाए। लेकिन महाराज की समझ में आने के बाद उन्होंने वन कानूनों को ख़त्म किया।  और भारी जन दबाव में महाराज को चक्रधर जुयाल को पदमुक्त करके  उसका देश निकाला करना पड़ा।

उत्तराखंड के इतिहास में यह तिलाड़ी कांड या रवाई कांड एक काळा और भयावह दिन के रूप में लिखा गया। इस क्रूरता के बारे में  सुनकर आज भी रूह कांप जाती है।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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