कफल्टा कांड (Kafalta Kand) उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में 9 मई 1980 को हुई एक दुखद और नृशंस घटना थी। इस जातीय हिंसा में दलित समुदाय की बारात पर हमला हुआ, जिसमें 14 लोग मारे गए, जिनमें 6 को जिंदा जलाया गया। यह घटना उत्तराखंड के इतिहास (Uttarakhand History) में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है, जिसने सामाजिक भेदभाव और जातीय तनाव को उजागर किया। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने 16 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई।
Table of Contents
कफल्टा कांड क्या था?
9 मई 1980 को बिरलगांव के लोहार समुदाय से संबंधित श्याम प्रसाद की बारात कफल्टा गांव से गुजर रही थी। गांव की कुछ महिलाओं ने भगवान बद्रीनाथ के मंदिर के सम्मान में दूल्हे से पालकी (डोली) से उतरने को कहा। मंदिर गांव के दूसरे छोर पर था, इसलिए दलित बारातियों ने प्रस्ताव दिया कि दूल्हा मंदिर के सामने डोली से उतर जाएगा।
विवाद की शुरुआत
- महिलाओं ने इस जवाब को अपनी अवमानना माना और गांव के पुरुषों को बुला लिया।
- एक फौजी, खीमानंद, ने गुस्से में पालकी पलट दी।
- इससे नाराज दलितों ने खीमानंद की पिटाई की, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।
सवर्ण समाज का आक्रोश और दलित नरसंहार :-
खीमानंद की हत्या से सवर्ण समाज (ब्राह्मण और ठाकुर) आक्रोशित हो गया। गुस्साए ग्रामीणों ने दलित बारात पर हमला कर दिया। जान बचाने के लिए बाराती गांव के एकमात्र दलित, नरराम, के घर में छिप गए।
- सवर्णों ने घर को घेर लिया।
- छत तोड़कर सूखी चीड़ की पत्तियां, लकड़ी, और मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी।
- घर के अंदर 6 लोग जिंदा जल गए।
- दरवाजा तोड़कर भागने वालों को खेतों में दौड़ाकर मार डाला गया।
परिणाम: इस नृशंस हत्याकांड में 14 बाराती मारे गए। दूल्हा और कुछ बाराती भागकर अपनी जान बचा पाए।
कफल्टा कांड का राष्ट्रीय प्रभाव
कफल्टा कांड (Kafalta Kand) की खबर पूरे देश में फैल गई। इस घटना ने सामाजिक भेदभाव और जातीय हिंसा के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया।
- तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को कफल्टा का दौरा करना पड़ा।
- देशभर के मीडिया ने इस घटना को प्रमुखता से कवर किया।
- लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने 16 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इनमें से 3 की मृत्यु हो चुकी थी।
सामाजिक पृष्ठभूमि
वर्ण व्यवस्था, जो मूल रूप से कार्यों के वर्गीकरण के लिए बनाई गई थी, समय के साथ सामाजिक वैमनस्य का कारण बन गई। उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में सवर्ण और दलित समुदायों के बीच तनावपूर्ण संबंध इस घटना का आधार बने। कफल्टा कांड ने सामाजिक एकता की कमी को उजागर किया और जातीय हिंसा (Caste Violence) के खिलाफ जागरूकता बढ़ाई।
संबंधित लेख
हमसे जुड़ें
इस तरह की ऐतिहासिक और सामाजिक घटनाओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए हमारे फेसबुक पेज से जुड़ें।