Sunday, April 21, 2024
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कुमाउनी राजपूत जातियां बिष्ट , भंडारी और बोरा जाती के बारे में ।

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उत्तराखंड कुमाऊं मंडल में ब्राह्मण ,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र चारों वर्णों के लोग निवास करते हैं।प्रस्तुत लेख में हम कुमाऊं केसरी श्री बद्रीदत्त पांडेय जी की प्रसिद्ध पुस्तक कुमाऊं के इतिहास के सहयोग से कुछ  कुमाउनी राजपूत जातियों के बारे में जानकारी संकलित कर रहे हैं। इस जानकारी का पूर्ण श्रोत कुमाऊं का इतिहास किताब है। जिसमे बद्रीदत्त जी ने कुर्मांचली ब्राह्मण से लेकर शुद्र वर्णों का वर्णन किया है।

कुमाउनी राजपूत , बिष्ट जाती के बारे मे  :-

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बिष्ट शब्द का अर्थ होता है, विशिष्ट या उच्च सम्मानीय। पांडे जी कहते हैं कि पहले यह एक पद होता था। और कालांतर में इस पद पर विराजमान लोगो को यह नाम जातिसूचक में मिल गया या कह सकते हैं कि उनके पद का नाम उनका जाती नाम हो गया। बिष्ट कश्यप,भारद्वाज और उपमन्यु गोत्र के होते हैं। बताते हैं कि बिष्ट जाती का आदिपुरुष चित्तौड़गढ़ से आया हुवा था। उपमन्यु गोत्र वाले बिष्ट उज्जैन से साबली ( गढ़वाल) आये  और वहां से फिर कुमाऊं में आये। बिष्ट जाती के लोग भी अन्य कुमाउनी राजपूत जातियों की तरह एक गोत्र में शादी नही करते हैं।

बिष्ट जाती के लोगों का कुमाऊं के इतिहास में बहुत बड़ा योगदान है। वे सोमचंद के समय देशिक शाशक चंपावत में रहे। और राजा रुद्रचंद के समय भी शक्तिशाली रहे । गैड़ा बिष्टों को राजा बाजबहादुर चंद लाये। राजा देवीचंद के समय गैड़ा बिष्ट सर्वे सर्वा रहे।

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कुमाउनी राजपूत ,बोरा जाति –

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बोरारो के बोरा तथा कैड़ारो के कैड़ा जाती के लोगो को कई लोग बिष्ट ही बताते हैं। क्योंकि बोरा जाती के लोगों का गोत्र व शाखा भी बिष्टों की तरह है। बोरा जाती के लोगों का मूलपुरुष दानुकुमार काली कुमाऊं के कोटालगढ़ में रहता था । उसने राजा कीर्तिचन्द की कत्यूरी राजाओं को पराजित करने में बहुत मदद की। इसलिए राजा ने देवीधुरा से कोशी तक उसको जागीर में दे दी।

बोरा को खस राजपूतों में माना जाता है। वे शिव शक्ति को मानते हैं। और स्थानीय देवताओं में भूमिया,हरु, भैरव आदि को पूजते हैं। बोरारो पट्टी बोरा जाती के लोगों ने बसाई 6 राठ बोरे बोरारो में हैं। नैनीताल बेलुवाखान के थोकदार खुद को बोहरा लिखते हैं।

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कुमाऊनी राजपूत जातियां

भंडारी जाती के बारे में –

भंडारी का शाब्दिक अर्थ होता है, भंडार का रक्षक या भंडारण की व्यवस्था देखने वाले । बद्रीदत्त पांडे जी ने भंडारी जाती को चन्द्रवंशी राजपूतों की श्रेणी में रखा है। आगे बताते हैं कि भंडारी जाती के लोग मूलतः चौहान हैं

बताया जाता है, कि भंडारी जाती का मूलपुरुष राजा सोमचंद के राज में ,राजा का भंडारी था । पांडे जी बताते हैं कि भंडारी जाती के लोग सर्वप्रथम चंपावत के पास वजीरकोट में बसे थे। बाद में राजधानी अल्मोड़ा आने के बाद उन्हें अल्मोड़ा के पास भंडरगावँ,( भनरगावँ )में बसाया गया । उसके बाद पूरे कुमाऊं में अलग अलग गावों में भंडारी लोग फैल गए । अल्मोड़ा का प्रसिद्ध भनारी नौला भंडारी जाती के लोगों ने बसाया था। भंडारी जाती के बारे में,  दूसरी कहानी इस प्रकार है कि कहा जाता है ,उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में भंडारी राजपूत नेपाल डोटी से आये। और नेपाल में उन्हें महाराष्ट्र के कोंकण से आया हुवा बताते हैं।

त्यौहारों का सामान, अन्य सामान,माल, राजा की आमदनी या कुमाऊं की आमदनी रखने का नाम भंडार था। और उसके निरीक्षक अफसर भंडारी कहलाते थे। वर्ण व्यवस्था में भंडारी जाती के लोग कुमाउनी राजपूत में आते हैं।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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