Friday, April 18, 2025
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झंडा मेला देहरादून 2025 | इतिहास और परंपराएं | Jhanda Mela Dehradun 2025

झंडा मेला देहरादून में हर साल होली के पाँचवे दिन मनाया जाने वाला उदासी संप्रदाय के सिखों का धार्मिक उत्सव है। इस उत्सव को गुरु श्री गुरु राम राय के देहरादून आगमन की स्मृति में मनाया जाता है। आइए जानते हैं झंडा मेले का इतिहास, धार्मिक महत्व और इस साल के कार्यक्रम की पूरी जानकारी।

झंडा मेला 2025 | Jhanda Mela Dehradun 2025 –

इस साल झंडा मेला 19 मार्च से 6 अप्रैल 2025 तक आयोजित किया जाएगा।

  • 16 मार्च 2025: श्री दरबार साहिब में ध्वजदंड लाया जाएगा और गिलाफ सिलाई का कार्य शुरू होगा।
  • 19 मार्च 2025: श्री झंडे जी का आरोहण होगा, जिसे देखने के लिए हजारों श्रद्धालु इकट्ठा होंगे।
  • 21 मार्च 2025:नगर परिक्रमा निकाली जाएगी, जो श्री दरबार साहिब से शुरू होकर पूरे शहर में भ्रमण करेगी और फिर वापस दरबार साहिब में विश्राम लेगी।
  • 6 अप्रैल 2025: श्री झंडे जी के समापन के साथ मेला समाप्त होगा।

इस बार ध्वजदंड को बदला जाएगा, जिसकी तैयारियां पहले से ही शुरू हो चुकी हैं। इसके लिए दूधली से लकड़ी मंगाई गई थी और इसे महीनों पहले तराशना शुरू कर दिया गया था।

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 झंडा मेला देहरादून का इतिहास :

झंडा मेला लगभग 350 साल पुराना उत्सव है, जिसकी शुरुआत श्री गुरु राम राय के जीवनकाल में हुई थी। श्री गुरु राम राय सिखों के सातवें गुरु, श्री गुरु हर राय के पुत्र थे। कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब के दरबार में चमत्कार दिखाने के कारण उन्हें सिख गुरु परंपरा से वंचित कर दिया गया। इसके बाद, वे अपने समर्थकों के साथ देहरादून पहुंचे और यहां अपना डेरा डाला।

राजा फतेशाह, जो औरंगजेब के मित्र थे, ने गुरु राम राय को देहरादून के तीन गांवों — खुड़बुड़ा, राजपुरा और आमसूरी की जागीर प्रदान की। सन 1694 में गुरु राम राय ने यहाँ एक गुरुद्वारे की स्थापना की और एक विशाल ध्वज फहराया, जिसकी स्मृति में हर साल झंडा मेला मनाया जाता है।

झंडा मेला की रस्में और परंपराएं :

झंडा मेले की शुरुआत से पहले, उदासी संप्रदाय के अनुयायियों द्वारा दरबार साहिब के महंत की अगुवाई में एक विशाल जुलूस निकाला जाता है, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं। हर तीसरे साल नागसिद्ध वन से लाए गए लगभग 100 फीट ऊँचे नए ध्वजदंड को पुराने ध्वजदंड से बदला जाता है। इस प्रक्रिया में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

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ध्वजदंड को दही, घी और गंगाजल से स्नान कराया जाता है। इसके बाद, श्री झंडे जी पर तीन प्रकार के गिलाफ चढ़ाए जाते हैं:
– सबसे पहले 41 सादे गिलाफ,
– फिर 41 शनील के गिलाफ,
– अंत में एक दर्शनी गिलाफ।

ध्वज आरोहण के समय पूरा दरबार “सत श्री अकाल!” और “गुरु राम राय की जय!” के नारों से गूंज उठता है।

 धार्मिक महत्व :-

झंडा मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और श्रद्धा का संगम है। ऐसा माना जाता है कि श्री झंडे जी पर लाल या सुनहरी चुनरी बांधने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भक्त दूर-दूर से इस पावन क्षण का साक्षी बनने के लिए आते हैं।

 निष्कर्ष :-

झंडा मेला देहरादून, आध्यात्मिकता और संस्कृति का अद्भुत संगम है। यह उत्सव गुरु राम राय की स्मृति, उनके द्वारा स्थापित परंपराओं और उनकी शिक्षाओं को जीवंत रखता है। 2025 में इस ऐतिहासिक मेले का हिस्सा बनकर इसकी भव्यता और पवित्रता का अनुभव जरूर करें।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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