Friday, April 18, 2025
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पूर्णागिरि मंदिर की कहानी | इतिहास और यात्रा गाइड | Purnagiri Mandir Guide

पूर्णागिरि मंदिर की कहानी : उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित पूर्णागिरि मंदिर (Purnagiri Mandir) न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और पौराणिक कथाओं का अद्भुत संगम भी है। समुद्र तल से लगभग 3000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर अन्नपूर्णा पर्वत पर 5500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। चंपावत से 92 किलोमीटर और टनकपुर से मात्र 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह धाम श्रद्धालुओं के बीच विशेष महत्व रखता है।

पूर्णागिरि मंदिर की कहानी : इतिहास और पौराणिक मान्यताएँ –

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब माता सती ने आत्मदाह किया, तब भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करने लगे। इससे सृष्टि में भारी अशांति फैल गई। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। जहाँ-जहाँ माता सती के अंग गिरे, वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई। उत्तराखंड के अन्नपूर्णा पर्वत पर माता सती की नाभि गिरी थी, जिसके कारण यहाँ पूर्णागिरि मंदिर की स्थापना हुई।

एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में पांडवों ने प्राचीन ब्रह्मकुंड के पास एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में प्रयोग किए गए अथाह सोने से यहाँ एक स्वर्ण पर्वत बन गया। 1632 में कुमाऊँ के राजा ज्ञान चंद के दरबार में गुजरात से आए श्रीचंद तिवारी नामक ब्राह्मण ने बताया कि माता ने स्वप्न में इस पर्वत की महिमा का उल्लेख किया है। तब राजा ज्ञान चंद ने यहाँ माता की मूर्ति स्थापित कर मंदिर का निर्माण कराया।

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पूर्णागिरि मंदिर का धार्मिक महत्व –

पूर्णागिरि मंदिर 108 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहाँ माँ की पूजा महाकाली के रूप में की जाती है। यहाँ साल भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन चैत्र माह और ग्रीष्म नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष मेला लगता है, जो 90 दिनों तक चलता है। इस दौरान देशभर से श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं।

सिद्ध बाबा मंदिर: बिना दर्शन अधूरे हैं पूर्णागिरि के दर्शन –

पूर्णागिरि यात्रा सिद्ध बाबा के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है। कहा जाता है कि एक साधु ने अहंकार में आकर माँ पूर्णागिरि पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की। माँ ने क्रोधित होकर उसे नदी के पार फेंक दिया। जब साधु ने क्षमा मांगी, तो माँ ने उसे सिद्ध बाबा के नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया। आज भी श्रद्धालु सिद्ध बाबा के दर्शन कर, उनके लिए मोटी-मोटी रोटियाँ अर्पित करते हैं।

झूठे का मंदिर : लालच की सज़ा –

झूठे का मंदिर भी पूर्णागिरि धाम के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। मान्यता है कि एक संतानहीन सेठ ने माँ से पुत्र प्राप्ति की मन्नत मांगी थी और वचन दिया था कि वह पूर्णागिरि के लिए सोने का मंदिर बनाएगा। जब सेठ की मन्नत पूरी हुई, तो उसने तांबे के मंदिर पर सोने की पॉलिश कर माँ को अर्पित करने की कोशिश की। लेकिन टुन्याश नामक स्थान पर पहुँचने के बाद वह मंदिर आगे नहीं बढ़ सका और वहीं जम गया। तब से यह स्थान झूठे का मंदिर कहलाने लगा। यहाँ बच्चों के मुंडन संस्कार किए जाते हैं, जिससे बच्चों की दीर्घायु की कामना की जाती है।

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पूर्णागिरि मंदिर यात्रा : कैसे पहुँचे ? ( Purnagiri Mandir Guide )

पूर्णागिरि मंदिर की यात्रा सभी यातायात साधनों के माध्यम से सुगम है। गर्मियों में विशेष रूप से 30 मार्च से मई तक यात्रा करना सबसे उपयुक्त होता है, जब यहाँ मेला भी लगता है।

  • हवाई मार्ग से : पंतनगर हवाई अड्डा पूर्णागिरि के सबसे नज़दीक है, जो यहाँ से लगभग 160 किमी दूर है। पंतनगर से टनकपुर तक टैक्सी और बस सेवाएँ उपलब्ध हैं। दिल्ली और देहरादून से पंतनगर के लिए सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं।
  • रेल मार्ग से: पूर्णागिरि का निकटतम रेलवे स्टेशन टनकपुर है, जो यहाँ से मात्र 20 किमी दूर है। टनकपुर रेलवे स्टेशन भारत के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। हाल ही में शुरू की गई दिल्ली-पूर्णागिरि जनशताब्दी एक्सप्रेस से यात्रा करना सबसे सुगम है। यह ट्रेन दिल्ली, मुरादाबाद, बरेली, इज्जतनगर, खटीमा होते हुए टनकपुर पहुँचती है।
  • सड़क मार्ग से: टनकपुर देश के सभी प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली, लखनऊ, देहरादून या अन्य शहरों से बस से टनकपुर पहुँचा जा सकता है। टनकपुर से पूर्णागिरि के लिए टैक्सी सेवा उपलब्ध है।

पूर्णागिरि यात्रा के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें –

1. चैत्र नवरात्रि के समय यहाँ भारी भीड़ होती है, इसलिए अपनी यात्रा की योजना पहले से बना लें।
2. ट्रेकिंग के दौरान आरामदायक जूते पहनें और आवश्यक दवाइयाँ साथ रखें।
3. माँ पूर्णागिरि के दर्शन से पहले सिद्ध बाबा और झूठे का मंदिर के दर्शन अवश्य करें।
4. स्थानीय रीति-रिवाजों और मान्यताओं का सम्मान करें।

अंतिम शब्द :-

पूर्णागिरि मंदिर (Purnagiri Mandir) न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि यह पौराणिक कथाओं और दिव्य शक्ति से ओत-प्रोत स्थान भी है। माँ के दर्शन और सिद्ध बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। अगर आप भी आध्यात्मिक यात्रा पर जाना चाहते हैं, तो पूर्णागिरि मंदिर की यात्रा आपके लिए एक अविस्मरणीय अनुभव साबित होगी।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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