Thursday, April 17, 2025
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रणकोची माता मंदिर: उत्तराखंड का एक छिपा हुआ आध्यात्मिक रत्न

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में हिमालय की ऊबड़-खाबड़ चोटियों के बीच बसा रणकोची माता मंदिर (rankochi mata mandir ) आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल खजाना है। यह पवित्र स्थल चम्पावत-टनकपुर-चम्पावत मार्ग पर चलथी से लगभग 20-22 किलोमीटर उत्तर-पूर्व दिशा में ‘रियासी बामन गांव’ के अंतर्गत खेतीगांव में स्थित है। जो लोग एकांत में शांति या रोमांचक तीर्थयात्रा की तलाश में हैं, उनके लिए रणकोची माता मंदिर एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है। इसे रणकोची देवी या रणचंडिका के नाम से भी जाना जाता है।

इस लेख में हम आपको रणकोची माता मंदिर के इतिहास, पौराणिक कथाओं, आध्यात्मिक महत्व और यात्रा के लिए जरूरी सुझावों के बारे में बताएंगे। यह लेख आपको इस पवित्र स्थल की यात्रा के लिए तैयार करने के साथ-साथ इसके महत्व को समझने में भी मदद करेगा।

रणकोची माता मंदिर की यात्रा –

रणकोची माता मंदिर ( rankochi mata mandir) तक पहुंचना आसान नहीं है। यह यात्रा शारीरिक सहनशक्ति और आध्यात्मिक समर्पण की परीक्षा लेती है। यह मंदिर चम्पावत-टनकपुर-चम्पावत मार्ग पर चलथी से 20-22 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। कुमाऊं क्षेत्र की पहाड़ियों के बीच यह रास्ता खड़ी चढ़ाई और उतार से भरा है, जो अप्रस्तुत यात्रियों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

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इस यात्रा में आमतौर पर एक पूरा दिन लगता है। रात में विश्राम के लिए रियासी बामन गांव में रुकना पड़ता है। चम्पावत या टनकपुर से सुबह जल्दी निकलना बेहतर होता है ताकि दिन की रोशनी का पूरा फायदा उठाया जा सके। यात्रा का सबसे अच्छा समय वसंत (मार्च से मई) और शरद ऋतु (सितंबर से नवंबर) है, जब मौसम सुहावना रहता है और रास्ते मानसून की तुलना में कम फिसलन भरे होते हैं।

रणकोची माता मंदिर

रणकोची माता मंदिर का इतिहास और पौराणिक कथा –

रणकोची माता मंदिर और रियासी बामन गांव का इतिहास चंद वंश के शासनकाल से जुड़ा है। कहा जाता है कि चम्पावत में चंद वंश के समय एक भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मण परिवार को बनारस से लाया गया था। उन्हें राजपुरोहित बनाया गया और आभार में यह गांव उन्हें बसने के लिए दिया गया। चूंकि वे वहां बसने वाला एकमात्र ब्राह्मण परिवार थे, इसलिए इस गांव का नाम बामन गांव पड़ा। आज भी भट्ट परिवार के वंशज ही इस मंदिर में पूजा करते हैं, जिससे यह परंपरा जीवित है।

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मंदिर की उत्पत्ति की एक रोचक कथा भी प्रचलित है। स्थानीय लोगों के अनुसार, एक गाय रोजाना रहस्यमय तरीके से गायब हो जाती थी। भट्ट परिवार के एक सदस्य ने उसका पीछा किया और देखा कि वह जंगल में एक शिवलिंग पर अपना दूध अर्पित कर रही थी। गुस्से में उसने शिवलिंग पर कुल्हाड़ी से प्रहार किया। उसी रात रणकोची देवी ने सपने में आकर उन्हें उस स्थान पर मंदिर बनाने और उनकी पूजा करने का आदेश दिया। इसके बाद मंदिर का निर्माण हुआ

रणकोची देवी का आध्यात्मिक महत्व –

रणकोची देवी को मां पूर्णागिरी की बड़ी बहन माना जाता है और भक्तों के बीच उनकी गहरी आस्था है। उन्हें न्याय की देवी के रूप में पूजा जाता है, जो अपने भक्तों की परेशानियों को दूर करती हैं और शांति प्रदान करती हैं। यह आस्था साल भर श्रद्धालुओं को रणकोची माता मंदिर की ओर खींचती है, खासकर उत्तरायणी पर्व के दौरान।उत्तरायणी पर्व सूर्य के उत्तरायण का प्रतीक है। इस समय मंदिर भक्ति का केंद्र बन जाता है। कुमाऊं क्षेत्र के अलावा नेपाल से भी भक्त यहां आशीर्वाद लेने आते हैं। पहले इस मंदिर में पशु बलि की प्रथा भी थी, जो समय के साथ बदल गई है। यह पर्व मंदिर के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है।

निष्कर्ष –

रणकोची माता मंदिर ( rankochi mata mandir ) सिर्फ एक स्थान नहीं, बल्कि एक अनुभव है जो आध्यात्मिकता, साहसिकता और संस्कृति का संगम है। इसका दूरस्थ स्थान इसे भीड़ से दूर एक शांत आश्रय बनाता है।

इस पवित्र स्थल की यात्रा करें और रणकोची देवी के आशीर्वाद से अपनी आत्मा को समृद्ध करें। क्या आपने इस मंदिर की यात्रा की है? अपने अनुभव हमारे साथ साझा करें और इस छिपे हुए रत्न की जानकारी दूसरों तक पहुंचाएं!

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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