Friday, March 14, 2025
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हल्द्वानी में घूमने की जगह – इन 5 स्थानों में अवश्य घूमें।

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हल्द्वानी में घूमने
Haldwani me ghumne layak sthan

हल्द्वानी में घूमने की जगह- हलद्वानी उत्तराखंड का एक छोटा सा शहर है। कुमाऊं का द्वार और उत्तराखंड की आर्थिक राजधानी के नाम से प्रसिद्ध यह शहर खास है। वैसे तो यहाँ से आगे प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर कुमाऊँ मंडल के द्वार खुल जाते हैं। हल्द्वानी में घूमने लायक कुछ स्थान ऐसे हैं जहाँ आप घूमकर अपना मनोरंजन कर सकते हैं। या यूँ कह सकते हैं यदि आप कुमाऊँ मंडल की यात्रा पर आये हो तो हल्द्वानी के इन स्थानों को अवश्य देखना चाहिए। यहाँ की खूबसूरती और अहसास को महसूस करना चाहिए।

हल्द्वानी का इतिहास –

हल्द्वानी उत्तराखंड के  नैनीताल जिले में 29 डिग्री 13 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा 79 -32′ डिग्री पूर्वी देशांतर में समुद्रतल से  लगभग 1434 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है। कुमाऊं का द्वार नाम से फेमस  हल्द्वानी पंद्रहवी शताब्दी से पहले कदम्ब के पेड़ों अलावा बेर ,शीशम ,कंजु ,तुन खैर ,बेल तथा लैंटाना जैसी झाड़ियों और घास का मैदान था। सोलहवीं शताब्दी के बाद राजा रूपचंद के शाशन में स्थानीय पहाड़ी जनमानस ने यहाँ आना शुरू किया था।

अंग्रेजों ने कुमाऊं में ई.गार्डनर को शाशक बनाकर भेजा। गार्डनर ने पहली बार यहाँ सरकारी बटालियन तैनात की। इनके बाद अगले कुमाऊं कमिश्नर जार्ज विलियम ट्रेल ने हल्द्वानी नामक गावं को हल्द्वानी नामक नगर का रूप दिया था। सन 1834 में  कमिश्नर जार्ज विलियम ट्रेल द्वारा व्यापारिक मंडी के रूप में स्थपित किया गया। तथा 1860 में  हेनरी रैमजे कमिश्नर द्वारा तराई की तहसील का मुख्यालय बनाये जाने तक यह स्थान मात्र एक गांव था। जो अब एक सर्वसम्पन्न शहर बन गया है। हल्द्वानी आज उत्तराखंड की आर्थिक राजधानी है।

हल्द्वानी में घूमने लायक 5 स्थान –

वैसे तो एक छोटा सा शहर है ,लेकिन हल्द्वानी में घूमने लायक कुछ खास स्थान हैं ,जिनकी यात्रा करे बिना आपकी हल्द्वानी की ट्रिप बेकार है। आइये जानते हैं हल्द्वानी के इन पांच स्थानों में अवश्य घूमना चाहिए।

कालू सिद्ध मंदिर –

वैसे तो यह स्थान एक भीड़ भरे कालाढूंगी चौराहे पर स्थित है। लेकिन हल्द्वानी में इस मंदिर की बहुत मान्यता है। कालू सिद्ध बाबा को हल्द्वानी का क्षेत्रपाल देवता कहा जाता है। हल्द्वानी वासी अपनी खुशियों और दुःख के समय सबसे पहले कालू सिद्ध बाबा को ही याद करते हैं। कहते हैं अंग्रेजों के समय यहाँ एक सिद्ध बाबा आये उन्हें इस स्थान पर शनि शक्ति का अहसास हुवा ,तब उन्होंने यहाँ पर शनि मंदिर की स्थापना की। शनिवार का विशेष महत्व है यहाँ।

हल्द्वानी में घूमने की जगह - इन 5 स्थानों में अवश्य घूमें।

हल्द्वानी में घूमने लायक  52 डांठ नहर –

हलद्वानी में घूमने लायक प्रसिद्ध स्थानों में हल्द्वानी की 52 डांठ नहर सबसे फेमस है। इस नहर की खासियत यह है कि ये कभी हवा में बहती थी। जी हां इस नहर को अंग्रेजों ने 52 पिल्लरों पर हवा में बनाया था। प्रशाशन ने इसका कायाकल्प कर के इसको एक प्रसिद्ध टूरिस्ट डेस्टिनेशन के रूप में विकसित कर दिया गया है। यहाँ जाकर आप आराम से ब्लॉग ,रील्स आदि बना सकते हैं। और अंग्रेजो द्वार बनाई गई इस ऐतिहासिक नहर का दीदार कर सकते हैं।

हल्द्वानी की 52 डाँठ नहर के बारे में विस्तार से पढ़े।

गौला बैराज –

हल्द्वानी में घूमने लायक खास स्थानों में से एक है गौला बैराज। वैसे तो हल्द्वानी के पास प्राकृतिक सुंदरता का भंडार नैनीताल जैसा विश्व प्रसिद्ध हिल स्टेशन है ,लेकिन आप हल्द्वानी में ही प्राकृतिक सुकून ढूंढ रहे हो तो गौला बैराज सबसे मुफीद जगह है। यह बैराज हल्द्वानी प्रसिद्ध नदी गोला पर बना है। इसके किनारे बना पार्क आपके मन मोहने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।

हल्द्वानी में घूमने लायक भुजियाघाट का सूर्या गांव –

हल्द्वानी से सटे काठगोदाम में प्राकृतिक एडवेंचर्स के लिए विकसित यह गांव ,रोमांच के साथ अपनी सुंदरता के लिए भी फेमस है। काठगोदाम से hmt के रस्ते यहाँ पंहुचा जा सकता है। यहाँ पहाड़ी की तलहटी पर कई एडवेंचरस टूरिस्ट स्पॉट विकसित किये गए हैं। यहां विज़िटर्स को एडवेंचर्स एक्टिवटी कराई जाती है।

शीतला देवी मंदिर –

हल्द्वानी में घूमने लायक स्थानों की फेहरिस्त में शीतला देवी मंदिर का स्थान सबसे आगे होना चाहिए। काठगोदाम के पास नैनीताल रोड में स्थित यह मंदिर माँ शीतलादेवी को समर्पित मंदिर है। सौ से भी अधिक सीढ़ियां चढ़ने के बाद मंदिर परिसर में पंहुचा जा सकता है। माँ शीतलादेवी के इस मंदिर में असीम शांति का अनुभव किया जा सकता है। पहाड़ी के बीच मंदिर को काफी खूबसूरती से बनाया गया है। इस मंदिर की नियमित देख रेख भी की जाती है।

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पूर्णागिरि मंदिर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में जानिये।

उत्तराखंड में पर्यटन और उत्तराखंड की पर्यटन नीति 2018

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उत्तराखंड पर्यटन पर निबंध
उत्तराखंड निबंध फ़ोटो

उत्तराखंड में पर्यटन – वैसे तो पूरा उत्तराखंड अपने आप में पर्यटन की जगह है यहा की हर एक चीज अपने आप मैं फेमस  है और उसका उसका अपना एक रहस्य है। यहा आपको हर एक जगह पहुच कर आनंद की अनुभूति प्राप्त होगी। 9 नवम्बर 2000 को भारत का 27वें तथा हिमायली क्षेत्रों का 11वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आ गया।

यह उत्तराखण्ड भारत का एक ऐसा प्रदेश है जो कि वैदिककाल से ही भारतीय जीवन में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता है और आधुनिक काल में भी अपने गगनचुम्बी हिमशिखरों, वैविध्यपूर्ण अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य एवं पवित्र चारधामों, जनजातीय एवं जनजातीयेतर सांस्कृतिक विविधताओं के कारण भारतीय एवं भारतीयेतर जगत् का आकर्षण केन्द्र बना हुआ है। इसकी सदानीरा सरिताएँ, सघन चीड़, देवदारू, बांज (ओक) की घाटियां, रंग-बिरंगे (फलों से हरित भरित शाद्वल, बुग्याल, जीव एवं वनस्पति वैविध्य सभी कुछ अद्भुत, मोहक व आकर्षक रहा है।

उत्तराखंड में

उत्तराखंड में पर्यटन –

पर्यटन के लिए उत्तराखंड विशेष प्रसिद्ध है। या यूँ कह सकते हैं कि उत्तराखंड में पर्यटन ही यहाँ की मुख्य आर्थिकी है। प्राकृतिक सुंदरता से संपन्न यह राज्य पर्यटन के क्षेत्र अग्रणीय है। यहाँ के प्राकृतिक रूप से समृद्ध पर्यटन स्थलों में नैनीताल ,मंसूरी , मुनस्यारी आदि प्रसिद्ध हैं।  इसके साथ -साथ उत्तराखंड का एक समृद्ध पौराणिक इतिहास रहा है। जिस कारण प्राकृतिक पर्यटन के साथ -साथ धार्मिक पर्यटन में भी अग्रणीय है। सनातन धर्म के चारों प्रसिद्ध धाम यहीं स्थित हैं। माँ भगवती के कई प्रसिद्ध शक्तिपीठ यहाँ स्थित हैं।

तीर्थ नगरी ऋषिकेश का धार्मिक पर्यटन के साथ प्राकृतिक पर्यटन और साहसिक पर्यटन के क्षेत्र में अग्रणीय स्थान है। इसके अलावा उत्तराखंड का पहाड़ी भौगोलिकी प्रदेश होने के कारण यहाँ साहसिक पर्यटन की अनगिनत संभावनाएं बन जाती हैं। कार्बेट पार्क और अन्य पार्को और प्राकृतिक सुंदरता और वन्य जीवों के मध्य जंगल सफारी का सफर अलग ही आनंद देता है। जो रोमांच और साहस से भरा होता है। उत्तराखंड में पर्यटन का एक अलग ही रोमांचक और यादगार अनुभव रहता है। प्रत्येक नागरिक को उत्तराखंड की यात्रा में आकर यहाँ के पर्यटन स्थलों का आनंद अवश्य लेना चाहिए।

उत्तराखंड में पर्यटन नीति 2018

प्राकृतिक और धार्मिक पर्यटन स्थलों की द्रष्टि से उत्तराखंड एक संपन्न राज्य है। वर्तमान में पर्यटन उत्तराखंड की आर्थिकी के लिए प्रमुख साधन बनता जा रहा है। अतः इस क्षेत्र का तीव्र और बहुआयामी विकास के लिए राज्य सरकार ने सुनियोजित पर्यटन नीति बनाई है। जिसे समय समय पर समयानुसार बदलाव भी करती रहती है। उत्तराखंड में पर्यटन नीति का उद्देश्य उत्तराखण्ड को सुरक्षित, टिकाऊ और विश्वस्तरीय पर्यटन उत्पाद और सेवाओं से परिपूर्ण एक वैश्विक पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करना है।

एक सुरक्षित और पर्यटन अनुकूल गंतव्य के रूप में उत्तराखण्ड की छवि को विकसित और सुदृढ़ करना और नए पर्यटन स्थलों का निर्माण तथा अद्वितीय पर्यटन उत्पाद विकसित करना इस पर्यटन नीति- 2018 के मुख्य उद्देश्य हैं। सरकार ने राज्य के हर जिलों में से एक नया पर्यटन स्थल विकसित करने का निर्णय लिया है। इसके लिए उत्तराखण्ड पर्यटन विकास बोर्ड (UTDB) प्रत्येक जिले में एक भूमि बैंक  स्थापित करेगा। पर्यटन विभाग सभी प्राकृतिक, सांस्कृतिक और धरोहर पर्यटन स्थलों का हर 2 वर्ष बाद विस्तृत संसाधन मानचित्रण करेगा। और जीआईएस आधारित प्लेटफार्मों पर जानकारी को अद्यतन करेगा।

राज्य के गंतव्यों को जिन प्रमुख थीम  में विभाजित किया जा सकता है वे हैं- एडवेंचर वाटर स्पोर्ट्स, क्रूज, याच आदि विरासत,रोपवे,तीर्थाटन,संस्कृति और त्यौहार;स्वास्थ्य,कायाकल्प और आध्यात्मिक एम०आई०सी०ई०  टूरिज्म, वन्यजीव, अभयारण्य  और पक्षी विहार,इको-टूरिज्म / ग्रामीण पर्यटन बौद्ध तथा प्रकृति और परिदृश्य। पर्यटन को उत्तराखंड राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार मानकर राज्य में पर्यटन में निवेशको आकर्षित करने के लिए सरकार ने इसे उद्योग का दर्जा दिया है।

उत्तराखंड में पर्यटन नीति  2018 को विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ से Pdf डाउनलोड कर सकते हैं –

इसे भी पढ़े – जागेश्वर धाम उत्तराखंड के पांचवा धाम का इतिहास और पौराणिक कथा।

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ये 3 स्थल द्वाराहाट के पास देखने लायक खास स्थान हैं।

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द्वाराहाट के पास

द्वाराहाट उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। इसे सांस्कृतिक नगरी ,वैराट ,उत्तर की द्वारिका भी कहा जाता है। वैसे द्वाराहाट और द्वाराहाट के पास कई दर्शनीय स्थल हैं उसमे से खास ये 3 स्थल देखने लायक हैं।उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में द्वाराहाट से 14km दूरी पर है । दुनागिरी से 5 km दूरी पर कुकुछीना पड़ता है।  कुकुछीना  से लगभग 4 km का पेेदल पथ तय कर के सुुप्रसिद्ध पाण्डखोली आश्रम पहुुँचा जा सकता है। स्व: बाबा बलवन्त गिरी जी ने आश्रम की स्थापना की थी और महावतार बाबा व लाहिड़ी महाशय जैसे उच्च आध्यात्मिक संतों की तपस्थली भी रहा है।

द्वाराहाट के पास देखने लायक दुनागिरी-

दुनागिरि  मंदिर कुमाऊ के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलो में एक है। दुनागिरी मंदिर के लिए सीढ़ियो से चलकर जाना पड़ता है। और सीढ़िया जहा से शुरू होती वही प्रवेश द्वार से दाहिनी हाथ की ओर है हनुमान जी का मंदिर दुनागिरी मंदिर के दर्शन हेतु आने वाले श्रदालु इसी मार्ग से सीढ़िया चढ़कर दुनागिरी मंदिर पहुचते है। यहा रानीखेत से द्वाराहाट होते हुए भी पहुचा जा सकता है।

यहाँ का मार्ग बहुत सुंदर है पक्की सीढ़िया छोटे छोटे खाली जगह जिसमे लगभग हर उम्र के लोग चल सकते हैं।  मंदिर तक पहुचने के लिए करीब 365 सीढ़िया चढ़नी होती है। पूरा मार्ग टीन के छत से ढका हुआ है जिससे श्रद्धालुओं को धूप व बारिश से बचाव हो सके मार्ग में कुछ कुछ दूरी पर आराम करने के लिए सीमेंट व लोहे के बेंच भी बने हुए हैं पूरे मार्ग में हजारों घंटियां लगी हुई है जो दिखने में लगभग एक जैसे है माँ दुनागिरी मंदिर तक पहुचने के लिए लगभग 800 मीटर की दूरी चलकर तय करनी होती है।

रोज चलता है भंडारा –

 

लगभग दो तिहाई रास्ता तय करने के बाद भंडारा स्थल हैं जहाँ प्रतिदिन सुुुबह 9 बजे साम के 4 बजे तक भंडारे का आयोजन किया जाता है जिससे यहां आने जाने वाले श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते है। प्रसाद आदि ग्रहण करने के बाद सभी श्रद्धालु अपने बर्तन स्वयं धोते है , एवं दानपात्र में अपने श्रद्धानुसार भेट चढ़ाते है।

जिससे भंडारे का कार्यक्रम अनवरत चलते रहता इस स्थान पर भी प्रसाद पुष्प खरीदने हेतु कई दुकाने है मंदिर से ठीक नीचे एक ओर गेट है श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यहां से मंदिर दर्शन जाने के लिए ओर दर्शन कर वापस आने के वालो के लिए दो अलग अलग मार्ग बने हुए बाई ओर लगभग 50 फ़ीट ऊँचा झूला जिसे पार्वती झूला के नाम से भी जाना जाता है।

वैष्णवी रूप में स्थापित है माँ दुनागिरि यहाँ –

दुनागिरी मुख्य मंदिर में कोई मूर्ति नही है। प्रकृतिक रूप से निर्मित सिद्ध पिंडिया माता भगवती पूजी जाती है। दूनागिरि मंदिर में अखंड ज्योति का जलना इस मन्दिर की एक विशेषता है दुनागिरी माता मंदिर में बलि नही चढ़ाई जाती है यहां तक कि मंदिर में भेंट किया जाने वाला नारियल भी मंदिर परिसर में भी नही फोड़ा जाता है। पुराणों उपनिषदों और  इतिहास वेदों ने दुनागिरी की पहचान माया महेश्वरी दुर्गा कालिका के रूप में बताई है। द्वाराहाट में स्थापित इस मन्दिर में वैसे तो पूरे वर्ष भर भक्तो की कतार लगी रहती मगर नवरात्र में यहां मा दुर्गा के भक्त दूर दूर से बड़ी बड़ी संख्या में यहां आशीर्वाद लेने आते है।

इतिहास –

इस स्थल के बारे में प्रचलित कथा में यह कहा जाता है कि त्रेता युग मे जब लक्ष्मण को मेघनाथ द्वारा शक्ति लगी थी, तब सुशेन वेद्य ने हनुमानजी से द्रोणाचार्य नाम के पर्वत से संजीवनी बुटी लाने को कहा था। बूटी की पहचान ना होने की वजह से जब हनुमान जी आकाश मार्ग से पूरा द्रोणाचल पर्वत उठाकर ले जा रहे थे तो इस स्थान पर पर्वत का एक छोटा सा टुकड़ा गिर गया। और फिर उसके बाद इस स्थान में दूनागिरि मंदिर का निर्माण किया गया।

एक अन्य मान्यता के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य ने इस पर्वत पर तपस्या की थी जिस कारण इसका नाम द्रोणागिरी पड़ा और कालांतर में दुनागिरी हो गया। एक अन्य जानकारी के अनुसार कत्युरी शासक सुधार देव ने सन 1318 ई० में इस मंदिर का पुनः निर्माण करा मंदिर का निर्माण कर के यह मा दुर्गा की मूर्ति स्थापित की यह माँ दूनागिरि मंदिर की एक यह मान्यता भी है जो भी महिला यहां अखंड दीपक जलाकर संतान प्राप्ति के लिए पूजा करती है उसे संतान का सुख प्रदान करती है।

द्वाराहाट के पास दूसरा खास स्थान पांडवखोली –

कुकुछीना  से पांडखोली जाने के लिए 4 km का पैदल मार्ग तय कर के पहुँचा जा सकता है। पांडखोली शब्द बना है दो शब्दो से मिलकर पाण्डु जिसका आशय है पांडव ओर खोली का अर्थ होता है आश्रम यानी घर अथार्थ पांडव का रमणीय आश्रय। पांडखोली जाने का मार्ग बाज़ बुरांश आदि पेड़ो से घिरा है। कहते है पांडवों ने अज्ञात वास के दौरान अपना कुछ समय व्यतीत किया था। यही नहीं पांडवो की तलाश में कौरव सेना भी यहां पहुची लेकिन जिस स्थान तक वह पहुची थी उस स्थान का नाम कौरव छीना पड़ा जिसे अब कुकुछीना के नाम से जाना जाता हैं।

द्वाराहाट के पास

पांडुखोली आश्रम से लगा हुआ है सुंदर बुग्याल नुमा घास का मैदान यहा आकर हदय आनंद से भर जाता है। इसे भीम का गद्दा के नाम से भी जाना जाता है।  यहा मैदान पर पैर मारने पर खोखले बर्तन भाती और कंपन महसूस किया जा सकता है। आश्रम के प्रवेश द्वार से प्रवेश करते ही मन शांति वातावरण से प्रफुल्लित होने लगता है। आश्रम में रात्रि विश्राम हेतु आश्रम के नियमो का पालन करना होता है। दिसम्बर माह में बाबा जी की पुण्यतिथि पर विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। ऊंचाई पर स्थित यह एक प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर स्थल है।

द्वाराहाट के पास घूमने लायक तीसरा सबसे खास स्थान भटकोट –

भटकोट द्वाराहाट के पास घूमने लायक सबसे खास स्थानों में एक है। यदि आप ट्रैकिंग करना पसंद करते हो तो भटकोट आपके लिए एक नयी डेस्टिनेशन बन सकता है। कुमाऊँ की प्रसिद्ध भटकोट नामक पहाड़ी की उचाई समुद्रतल से लगभग 9086 फ़ीट है। यहाँ टूरिस्ट लोग ट्रैकिंग करने और अल्मोड़ा हिल स्टेशन की रमणीय प्राकृतिक सुंदरता  दर्शन करने आते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान् राम के छोटे भाई भरत ने ,राम लक्ष्मण के वनवास काल में यहाँ तपस्या की थी। यदि आप द्वाराहाट की यात्रा पर हैं तो द्वाराहाट के पास घूमने लायक सबसे खास स्थानों में एक है भटकोट।

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जीवन बदलने वाले कैंची धाम के बाबा नीम करौली महाराज ।

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कैंची धाम नीम करौली बाबा
kainchi dham neem karoli baba

आइये शुरू करते है, देवभूमि उत्तराखंड की अलौकिक वादियों में से एक दिव्य रमणीक लुभावना स्थल है कैंची धाम। कैंची धाम जिसे नीम करौली धाम भी कहा जाता है, उत्तराखंड का एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां वर्ष भर श्रद्धालुओ का तांता लगा रहता है। भारी संख्या में भक्तजन व श्रद्धालु यहां पहुचकर अराधना व श्रद्धा पुष्प श्री नीम करौली बाबा के चरणों में अर्पित करते है।

प्रतिवर्ष  15 जून को यहां एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन होता है। भक्तजन यहां आकर अपनी श्रद्धा व आस्था को व्यक्त करते है। कहते है कि यहां पर श्रद्धा एवं विनयपूर्वक की गयी पूजा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है। यहां पर मांगी गयी मनोकामना हमेशा पूर्ण होती है।

कैंची धाम की स्थापना –

अपने जीवन- काल में नीम करौली बाबा जी ने अनेकों स्थानों का भ्रमण किया। महाराज ने 100 से भी अधिक मंदिरों और आश्रमों का निर्माण करवाया था, जिसमे से वृंदावन और कैंची धाम आश्रम मुख्य है। कैंची धाम आश्रम में नीम करौली बाबा जी अपने जीवन के अंतिम दशक में सबसे ज्यादा रहे,आरम्भ में यह स्थान दो स्थानीय साधुओं, प्रेमी बाबा और सोमवारी महाराज के लिए यज्ञ हेतु बनवाया गया था।

साथ ही यहाँ एक हनुमान मंदिर कि स्थापना भी उसी समय पर की गई। उत्तराखंड में कैंची धाम उत्तराखंड के नैनीताल  से लगभग 17 किलोमीटर दूर अल्मोड़ा – नैनीताल रोड पर स्थित है. यह स्थान अत्यंत खूबसूरत एवं पहाड़ियों से घिरा हुवा है। भवाली-अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित कैंची धाम क्षिप्रा नाम की छोटी पहाड़ी नदी के किनारे सन् 1962 में कैंचीधाम की स्थापना हुई। यहां दो घुमावदार मोड़ है जो कि कैंची के आकार के हैं इसलिए इसे कैंचीधाम आश्रम कहते हैं।

चमत्कारी संत थे कैंची धाम के बाबा नीम करौली महाराज –

परम पूज्य महान संत श्री नीम करौली महाराज जी के आश्रम और ये इतना प्रसिद्ध क्यों है। इसी तरह 15 जून 1999 को घटी एक चमत्कारिक घटना के अनुसार कैंची धाम में आयोजित भक्तजनों की विशाल भीड़ में बाबा ने बैठे-बैठे इसी तरह निदान करवाया कि जिसे यातायात पुलिसकर्मी घंटो से नहीं करवा पाए। थक-हार कर उन्होंने बाबा जी की शरण ली। आख़िरकार उनकी समस्याओ का निदान हुआ।

यह घटना आज भी खास चर्चाओ में रहती है। इसके आलावा यहाँ आयोजित भंडारे में ‘घी’ की कमी पड़ गई थी। बाबा जी के आदेश पर नीचे बहती नदी से कनस्तर में जल भरकर लाया गया। उसे प्रसाद बनाने हेतु जब उपयोग में लाया गया तो, वह जल घी में परिवर्तित हो गया। इस चमत्कार से आस्थावान भक्तजन नतमस्तक हो उठे।

कहते है कि गृह- त्याग के बाद, जब वो अनेक स्थानों के यात्रा पर थे तभी एक बार महाराज जी एक स्टेशन से ट्रेन किसी वजह से बिना टिकट के ही चढ़ गए और प्रथम श्रेणी में जाकर बैठ  गए। मगर कुछ ही समय बाद टिकट चेक करने के लिए एक कर्मचारी उनके पास आया और टिकट के लिए बोला, महाराज ने बोला टिकट तो नहीं है, कुछ वाद- विवाद के बाद ट्रेन रुकवाकर महाराज को उतार दिया गया, और ट्रेन ड्राइवर वापस ट्रेन चलाने चलाने लगा।

मगर ट्रेन दुबारा स्टार्ट नहीं हुवी।  बहुत कोशिश की गयी, मगर सफलता हाथ नहीं लगी।  इसी बीच एक अधिकारी वहां पहुंचे और उन्होंने ट्रेन को अनियत स्थान पर रोके जाने का कारण जानना चाहा , तो कर्मचारियों ने पास में ही में एक पेड़ के नीचे बैठे हुवे साधु को इंगित करते हुवे, कारण अधिकारी को बता दिया।

वो अधिकारी महाराज और उनकी दिव्यता से परिचित था।अतः उसने साधु को वापस विनम्रता से ट्रेन में बिठाकर ट्रेन स्टार्ट करने को कहा।  रेलवे के अधिकारिओं ने दोनो शर्तों के लिए हामी भर दी तो महाराज ट्रेन में चढ़ गए और ट्रेन चल पड़ी। बाद में रेलवे ने उस गांव में एक स्टेशन बनाया गया।

देश में ही नहीं विदेश में भी थे बाबा के भक्त –

हमेशा एक कंबल ओढ़े रहने वाले बाबा के आर्शीवाद के लिए भारतीयों के साथ-साथ बड़ी-बड़ी विदेशी हस्तियां भी उनके आश्रम पर आती थीं। बाबा के उपलब्ध सभी फोटो कम्बल में हैं और भक्त भी उन्हें कम्बल ही भेंट करते थे। पं. गोविंद वल्लभ पंत, डॉ सम्पूर्णानन्द, राष्ट्रपति वीवी गिरि, उपराष्ट्रपति गोपाल स्वरुप पाठक, राज्यपाल व केन्द्रीय मन्त्री रहे के. एम. मुंशी, राजा भद्री, जुगल किशोर बिड़ला, महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त, अंग्रेज जनरल मकन्ना, देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु और भी ऐसे अनेक लोग बाबा के दर्शन के लिए आते रहते थे।

बाबा राजा-रंक, अमीर-गरीब, सभी का समान रुप से पीड़ा-निवारण करते थे। उनके उपदेश लोगों को पतन से उबारते और सत्मार्ग-सत्पथ पर चलाते थे । फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग और एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब की प्रेरणा का स्थल कैंची धाम ही है। यहां नीम करौली बाबा का कैंची धाम आश्रम इनके अलावा कई सफल लोगों के लिए प्रेरणा श्रोत साबित हुआ। एप्पल की नींव रखने से पहले स्टीव जॉब कैंची धाम आए थे।

यहीं उनकों कुछ अलग करने की प्रेरणा मिली थी।जिस वक्त फेसबुक फाउंडर मार्क जुकरबर्ग फेसबुक को लेकर कुछ तय नहीं कर पा रहे थे तो किसी ने ही उन्हें कैंची धाम जाने की सलाह दी थी। उसके बाद जुकरबर्ग ने यहां की यात्रा की और एक स्पष्ट विजन लेकर वापस लौटे। फेसबुक फाउंडर मार्क जुकरबर्ग और एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब के अलावा भारी संख्या में विदेशी साधक नीम करौली महाराज से जुड़ रहे हैं।

नीम करोली बाबा प्रारंभिक जीवन –

महाराज नीम करौली बाबा जी का जन्म सन 1900 के आस पास उत्तर- प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर नमक ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुवा था।  नीम करोली महाराज के पिता का नाम श्री दुर्गा प्रसाद शर्मा था। नीम करोली बाबा जी के बचपन का नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। अकबरपुर के किरहीनं गांव में ही उनकी प्रारंभिक शिक्षा- दीक्षा हुई थी।  मात्र 11 वर्ष कि उम्र में ही लक्ष्मी नारायण शर्मा का विवाह हो गया था। परन्तु  जल्दी ही उन्होंने घर छोड़ दिया और लगभग 10 वर्ष तक घर से दूर रहे।

10 सितम्बर 1973 में वृन्दावन की पावन भूमि पर नीम करौली बाबा का निधन हो गया लेकिन कैंची धाम आश्रम में अब भी विदेशी आते रहते हैं। बताया जाता है कि सबसे ज्यादा अमेरिकी ही इस आश्रम में आते हैं। आश्रम पहाड़ी इलाके में देवदार के पेड़ों के बीच है। यहां पांच देवी-देवताओं के मन्दिर हैं। इनमें हनुमान जी का भी एक मन्दिर है। भक्तों का मानना है कि बाबा खुद हनुमान जी के अवतार थे।

कैसे पहुंचे कैंची धाम-

देश के किसी भी हिस्से से आप को नैनीताल के हल्द्वानी शहर या काठगोदाम रेलवे स्टेशन पहुंचना होगा।  काठगोदाम पहुंचने के लिए भारतीय रेल की सेवा का उपयोग किया जा सकता है जो काठगोदाम तक उपलब्ध है। या फिर सड़क मार्ग से भी आप हल्द्वानी, काठगोदाम होते हुवे कैंची धाम जा सकते है।

अगर आप हवाई मार्ग से आते है तो पंतनगर एयरपोर्ट तक का सफर आप हवाई मार्ग से कर सकते है। पंत नगर एयरपोर्ट से कैंची धाम की दूरी लगभग 72 किलोमीटर है।  इस सफर को आप निजी वाहन या उत्तराखंड परिवहन की बस से भी तय कर सकते है। काठगोदाम के बाद लगभग 40 किलोमीटर पहाड़ी सफर सड़क मार्ग से तय करना होता है।  निजी वाहन या उत्तराखंड परिवहन की बसों से भी ये सफर तय किया जा सकता है।

आस- पास के अन्य दर्शनीय स्थल –

कैंची धाम यात्रा के साथ ही आस- पास के अन्य दर्शनीय स्थल जैसे की अल्मोड़ा स्थित जागेश्वर धाम, गोलू-चितई मंदिर, चम्पावत के पूर्णागिरि मंदिर , नानकमत्ता साहिब आदि धार्मिक स्थानों के अलावा नैनीताल, रानीखेत , चौबटिया, गोल्फ़ ग्राउंड , हैड़ाखान बाबा का मंदिर,मुक्तेस्वर, अल्मोड़ा मे पहुँचकर आप वहा की प्रशिद्ध बालमिठाई का लुफ्त उठा सकते है जैसे खूबसूरत पर्यटक स्थलों की यात्रा का भी आनंद उठा सकते हैं।

इन्हे पढ़े _
हनुमान गढ़ी ,जहाँ की पत्तियां भी राम-नाम जपती हैं।

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उत्तराखंड पर निबंध – आखिर ऐसा क्या खास है उत्तराखंड में ,जो इसे देवभूमि कहा जाता है

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devbhoomi uttarakhand

भारत के हिमालयी राज्य उत्तराखंड को देवभूमि ( Devbhoomi Uttarakhand ) के नाम से जाना जाता है। इसको देवभूमि कहने के कई तर्क और कारण हैं। यह राज्य हिमालय की गोद मे बसा एक दम स्वर्ग सा दिखता है। हिमाच्छादित ऊँची ऊँची पहाड़ियो से घिरा यह राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है।

आखिर क्यों कहते हैं उत्तराखंड को देवभूमि –

भारत की लगभग सभी पवित्र नदियों का उद्गम हिमालय के इस पवित्र राज्य से है। उत्तराखंड को देवभूमि इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां अनेक देवी देवता निवास करते हैं। माना यह जाता है की यहाँ तैतीस करोड़ देवी देवता निवास करते है। मुख्य रूप से चार धाम श्री बद्रीनाथ जो कि भगवान विष्णु का मंदिर है, श्री केदारनाथ भगवान शिवजी ,श्री गंगोत्री गंगा जी का उद्गम स्थल और श्री यमुनोत्री धाम यमुना नदी का उद्गम स्थल यहां स्थित हैं। इसके साथ सिखों का पवित्र गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब भी स्थित है।

माँ भगवती के अनेक रूपों के दर्शन होते हैं यहाँ –

यहां अनेक शक्तिपीठ स्थित हैं जिनमें मुख्य रूप से मां धारी देवी, मां सुरकंडा देवी, मां कुंजापुरी ,मां पूर्णागिरि, मां विंध्येश्वरी देवी, मां नंदा देवी और मां चंद्रबदनी के भव्य मंदिर एवं सिद्ध पीठ शामिल हैं। यहां पांच प्रयाग – विष्णुप्रयाग, सोनप्रयाग, कर्णप्रयाग रुद्रप्रयाग, एवं देवप्रयाग स्थित है जहां दो नदियों का संगम होता है।

उत्तराखंड को देवभूमि क्यों कहते हैं

यहां ऋषिकेश के निकट मणिकूट पर्वत पर नीलकंठ महादेव का प्राचीन मंदिर है मान्यता है कि इसी जगह भगवान शिव ने सागर मंथन से निकले विष का पान किया था । यहां विशेषकर सावन के महीने में लाखों श्रद्धालु जलार्पण करने के लिए आते हैं।

ऋषि मुनियों की तपोस्थली है उत्तराखंड –

पुरे भारत में जन्म पाए हुए देव पुरुष और ऋषि मुनी यहां तपस्या करने यही आते थे । कहते हैं ऋषि मुनियों ने सैकड़ों साल तपस्या करके इसे देवभूमि बनाया है, उसी तपोबल का प्रसाद पाने श्रद्धालु मीलों की यात्रा करके इस पावन भूमि में आते हैं।

भगवान् शिव का विशेष संबंध है –

भगवान शिव का घर हिमालय की सर्वोच्च छोटी कैलाश पर माना जाता है। लेकिन भगवान् शिव का प्रथम ससुराल हरिद्वार रहा है। माँ पारवती का मायका हिमावन राज्य का एक भाग उत्तराखंड भी है। इसके अलावा भगवान शिव से  के कई यहाँ के कई स्थानों का विशेष सम्बन्ध रहा है। उत्तरांखड को देवभूमि कहने का एक कारण यह भी है कि इस भूमि  भगवान् शिव से विशेष संबंध रहा है।

पांडवों को स्वर्ग का मार्ग यहीं मिला था –

द्वापर युग में पांडवों और कौरवो से इस भूमि का विशेष जुड़ाव रहा है। उत्तराखंड का लाखामंडल ,पांडवों के बनाये हुए मंदिर ,पांडवों के अज्ञातवास और वनवास के स्थल इस बात की गवाही देते हैं। इसके अलावा कहते हैं उत्तराखंड में आज भी पांडव यहाँ लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। आज भी वे यहाँ अवतरण लेकर लोगो की समस्याओं का समाधान करते हैं। सबसे बड़ी बात पांडवों की स्वर्गारोहण की यात्रा उत्तराखंड से ही शुरू हुई थी।

निष्कर्ष –

उत्तराखंड को देवभूमि कहने का सबसे बड़ा कारण यह है कि यह स्थान देवो और दैवीय शक्तियों तथा ऋषि मुनियों का सबसे प्रिय स्थान रहा है। पौराणिक इतिहास इस बात का साक्षी रहा है कि प्राचीनकाल यह स्थान दैवीय गतिविधियों का गढ़ रहा है। वर्तमान में उसी समृद्ध दैवीय इतिहास और दैवीय शक्तियों के तपोबल को महसूस करने ,दूर -दूर से श्रद्धालु आते हैं। यहाँ आकर अभूतपूर्व शांति और सुकून का प्रसाद और दैवीय शक्तियों का आशीर्वाद लेकर जाते हैं।

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