देहरादून: उत्तराखण्ड की मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी ने वनाग्नि के स्थायी समाधान और चीड़ की पत्तियों (पिरूल) से कम्प्रेस्ड बायो गैस (सीबीजी) उत्पादन की संभावनाओं पर गम्भीरता से कार्य करने के लिए एक महत्वपूर्ण बैठक की। इस बैठक में इंडियन ऑयल के अधिकारियों के साथ ऊर्जा, ग्राम्य विकास, पंचायती राज एवं वन विभाग के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि इंडियन ऑयल पिरूल को सीबीजी उत्पादन में फीड स्टॉक के रूप में प्रयोग करने के साथ-साथ जैविक खाद और ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग की संभावनाओं का अध्ययन कर रिपोर्ट शासन को प्रस्तुत करे। उन्होंने इंडियन ऑयल को एक आंतरिक कमेटी गठित करने और डिटेल फिजीबिलिटी रिपोर्ट जल्द से जल्द शासन को सौंपने के लिए कहा।
बैठक में यह भी बताया गया कि उत्तराखण्ड में पिरूल की कुल उपलब्धता में से लगभग 40 प्रतिशत कलेक्शन की संभावनाओं के बाद 60,000 से 80,000 टन प्रतिवर्ष सीबीजी उत्पादन की उम्मीद की जा सकती है। राज्य में पिरूल की प्रतिवर्ष 1.3 से 2.4 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) की सकल उपलब्धता है, और चीड़ के जंगल राज्य में 400,000 हेक्टेयर में फैले हुए हैं, जहां प्रति हेक्टेयर 2-3 टन पिरूल उपलब्ध है।
मुख्य सचिव ने इस प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक संचालित करने के लिए गढ़वाल और कुमाऊं में संभावित एक-एक स्थान की पहचान करने के निर्देश भी दिए। उन्होंने वन विभाग, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग को इस प्रोजेक्ट पर सक्रियता से कार्य करने के लिए प्रेरित किया।
बैठक में प्रमुख सचिव श्री आर के सुधांशु, सचिव श्री आर मीनाक्षी सुन्दरम, श्री दिलीप जावलकर सहित वन, नियोजन, वित्त, ऊर्जा विभाग तथा इंडियन ऑयल के अधिकारी मौजूद रहे।
इस पहल से न केवल वनाग्नि की समस्या का समाधान होगा, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे और पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।
नैनीताल, 18 दिसंबर: कुमाऊं विश्वविद्यालय ने प्लास्टिक प्रदूषण की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। विश्वविद्यालय के इनोवेशन एंड इनक्यूबेशन सेल और विजिटिंग प्रोफेसर निदेशालय ने ‘इन रिप्लेस आईपीई ग्लोबल लिमिटेड’ के साथ मिलकर प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट पर एक व्यापक चर्चा की है। इस बैठक में प्लास्टिक प्रदूषण से उत्पन्न चुनौतियों और इसके समाधानों पर गहन विचार-विमर्श हुआ।
जन सहयोग अनिवार्य: बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए आम जन की भागीदारी बेहद जरूरी है। प्लास्टिक प्रदूषण पूरे पारिस्थितिक तंत्र को प्रभावित कर रहा है और इसे रोकने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है।
विश्वव्यापी सहयोग: इस मुहिम में ग्लोबली एथेंस इनफॉर्निक्स, पिक्सर ग्लोबल, फेडरेशन ऑफ ग्लोबल और चिंतन रिसर्च ऐंड एक्शन ग्रुप जैसे संगठन भी कुमाऊं विश्वविद्यालय के साथ सहयोग कर रहे हैं।
विशेषज्ञ व्याख्यान: प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट पर गहन चर्चा के लिए शनिवार, 21 दिसंबर को शाम 6:30 बजे एक ऑनलाइन व्याख्यान आयोजित किया जा रहा है। इस व्याख्यान में विशेषज्ञ सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सौरव मनुजा अपने विचार रखेंगे।
अभियान और इंटर्नशिप: विश्वविद्यालय शीघ्र ही प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए अभियान और इंटर्नशिप प्रोग्राम भी शुरू करने जा रहा है।
बैठक में निदेशक इनोवेशन सेल प्रोफेसर आशीष तिवारी, निदेशक विजिटिंग प्रोफेसर प्रोफेसर ललित तिवारी, डॉक्टर श्रुति सह, डॉक्टर नंदन मेहरा, डॉक्टर मैत्री नारायण सहित दलबीर सिंह और राहुल शामिल रहे।
जैसा की हम सभी लोगो को ज्ञात है कि मकर संक्रांति पर्व को उत्तराखंड कुमाऊं मंडल में घुघुतिया त्यौहार , उत्तरैणी , पुसुड़िया त्यौहार और गढ़वाल मंडल में खिचड़ी संग्रात आदि नामो से बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता है। 2025 में घुघुतिया त्यौहार मंगलवार 14 जनवरी 2025 के दिन मनाया जायेगा।
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घुघुतिया त्यौहार क्या है? और कैसे मनाया जाता है ?
पौष मास ख़त्म होने और माघ माह की संक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव राशि परिवर्तन करके मकर राशि में विचरण करते हैं। चुकीं सूर्य भगवान के राशि परिवर्तन के दिन को संक्रांति कहते है। अतः इस त्यौहार को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा सूर्य मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर मतलब उत्तर दिशा की तरफ खिसक जाते हैं। जिसे सूर्यदेव का उत्तरायण होना कहा जाता है। इस उपलक्ष में इसे उत्तरायणी पर्व का नाम दिया गया है।
प्रकृति के इन परिवर्तनों के साथ कई शुभ और सकारात्मक परिवर्तन होने लगते हैं। इस शुभ घडी को समस्त भारत वर्ष में सभी सनातन समुदाय के लोग अलग अलग रूप और अलग नामों से त्यौहार मनाते हैं। मकर संक्रांति को उत्तराखंड में घुघुतिया त्यौहार ,घुगुतिया पर्व , पुषूडिया त्यार ,उत्तरैणी ,खिचड़ी संग्रात आदि नामों से बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। कुमाऊं के कुछ हिस्सों में , सरयू नदी के दूसरे तरफ यह त्यौहार पौष मास के अंतिम दिन से मनाना शुरू करते हैं । इसलिए इसे पुषूडियां त्यार भी कहते हैं।
घुघुतिया कैसे मनाया जाता है?
जैसा की हमको पता है कि मकर संक्रांति को उत्तराखंड में घुघुतिया पर्व या उत्तरैणी त्यार के नाम से मनाया जाता है। घुगुतिया पर्व या घुगुती त्यार में दान और स्नान का विशेष महत्त्व होता है।कहा जाता है कि इस दिन दिया हुवा दान 100 गुना होकर वापस आता है।पवित्र नदियों पर स्नानं के लिए इस दिन काफी भीड़ रहती है।
घुघुतिया पर्व पर बागेश्वर का और सरयू के स्नानं का विशेष महत्त्व है। मकर संक्रांति की पहले दिन गर्म पानी से स्नान करने की परंपरा है जिसे ततवाणी कहा जाता है । फिर उसी रात को कुमाऊं के लोग जागरण करते हैं। रात भर भजन करके अगले दिन सर्वप्रथम तिल और जौ के साथ प्राकृतिक श्रोतों पर स्नान करते हैं जिसे सिवाणी कहते हैं । तत्पश्यात कई गावों में अपने से बड़ो के पाँव छूकर आशीर्वाद लेने की परम्परा है। जिसको कुमाउनी में पैलाग कहना कहते हैं।
कुमाऊं में घुघुतिया त्यौहार पर कौओ को विशेष महत्त्व दिया जाता है। जो भी पकवान बनता है उसमे से कौवों के लिए पहला हिस्सा अलग रख लिया जाता है। इस दिन विशेष पकवान बनाये जाते हैं। शाम को इस त्यौहार का सबसे खास पकवान आटे और गुड़ के घोल से घुगुती बनाई जाती है। इसी पकवान के नाम पर इस त्यौहार को घुघुतिया त्यौहार कहा जाता है।
इस पकवान को बनाने के पीछे एक लोक कथा भी जुडी है ,जिसे इस लेख में आगे बताएंगे।आटे और गुड़ के इस पकवान घुघतो की माला बनाकर बच्चे दूसरे दिन सुबह कवों को बुलाते हैं।और घुघते खाने का आग्रह करते हैं। इस अवसर पर , छोटे छोटे बच्चे “काले कावा काले घुघती मावा खा ले “का गीत गाते हैं।
घुघुतिया पर्व पर कविता या घुघुतिया के गीत
मकर संक्रांति, उत्तरायणी (घुघुतिया) के दूसरे दिन बच्चे , कौओं के हिस्से का खाना बाहर रख कर ,अपने गले मे घुघुती की माला पहन कर यह विशेष कुमाऊनी गीत या कविता गातें है –
काले कावा काले । घुघुती मावा खा ले ।।
लै कावा लगड़ । मीके दे भे बाणों दगड़।।
काले कावा काले । पूस की रोटी माघ ले खाले ।
लै कावा भात । मीके दे सुनो थात ।।
लै कावा बौड़ । मीके दे सुनु घोड़।।
लै कावा ढाल । मीके दे सुनु थाल।।
लै कावा पुरि ।। मीके दे सुनु छुरी।।
काले कावा काले घुघुती माला खा ले।।
लै कावा डमरू ।। मीके दे सुनु घुंघरू ।।
लै कावा पूवा ।। मीके दीजे भल भल भुला।।
काले कावा काले। पुसे की रोटी माघ खा ले।।
काले कावा काले । घुघती माला खा ले ।।
घुघुतिया त्यौहार पर आधारित कहानियाँ –
उत्तराखंड के लोक पर्व घुगुतिया पर अनेक कथाएं प्रचलित हैं। जिनमे से कुछ लोक कथाओं का वर्णन हम अपने इस लेख में कर रहे हैं। इन कथाओं के आधार पर आपको यह जानने में आसानी होगी कि, मकर सक्रांति को घुघुतिया त्यौहार के रूप में क्यों मनाते हैं ?
घुघुतिया की लोक कथा :-
कहा जाता है, कि प्राचीन काल मे पहाड़ी क्षेत्रों में एक घुघुती नाम का राजा हुवा करता था। एक बार अचानक वह बहुत बीमार हो गया। कई प्रकार की औषधि कराने के बाद भी वह ठीक नही हो पाया , तो उसने अपने महल में ज्योतिष को बुलाया। ज्योतिष ने राजा की ग्रहदशा देख कर बताया कि उस पर भयंकर मारक योग चल रहा है।
इस मारक दशा का उपाय ज्योतिष ने राजा को यह बताया कि , राजा अपने नाम से आटे और गुड़ के पकवान कौओं को खिलाएं । इसके उनकी मारक दशा शांत होगी। क्योंकि कौओं को काल का प्रतीक माना जाता है। यह बात सारी प्रजा को बता दी गई। प्रजा ने मकर संक्रांति के दिन आटे और गुड़ के घोल से घुगुति राजा के नाम से पकवान बनाये और उनको सुबह सुबह कौओं को बुलाकर खिला दिया।
उत्तरायणी, घुगुतिया पर आधारित दूसरी लोक कथा :-
घुघुतिया पर्व पर कुमाऊं के चंद वंशीय काल की एक महत्वपूर्ण कथा है। घुगुतिया पर्व के बारे यह कथा अधिक यथार्थ लगती है। मगर प्रसिद्ध इतिहासकार बद्रीदत्त पाण्डेय जी ने अपनी किताब कुमाऊं का इतिहास में इस किस्से का जिक्र नही किया है।
कुमाऊं में चंदवंश के शाशन में एक राजा हुए, जिनका नाम था ,कल्याण चंद। राजा की कोई संतान नही थी। इस कारण राजा बहुत चिंतित रहते थे।और उनका मुख्यमंत्री बहुत खुश रहता था। क्योंकि वह सोचता था, कि एकदिन राजा मर जायेगा , तो इस राज्य का राजा वह स्वयं बन जायेगा। ज्योतिषियों और कुल पुरोहितों के सलाह मशवरे के बाद ,एक दिन राजा कल्याण चंद और उनकी रानी , बागेश्वर भगवान बागनाथ के मंदिर में गए।
वहां उन्होंने भगवान भोलेनाथ से पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा। और भगवान भोलेनाथ की कृपा से राजा को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। राजा ने अपने पुत्र का नाम निर्भयचंद रखा। महारानी निर्भयचंद को प्यार से घुघुती बुलाया करती थी। रानी ने घुघती को मोतियों की माला पहनाई थी। इस माला को घुघुती बहुत पसंद करता था। जब भी घुघुती परेशान करता था ,तो रानी बोलती थी तेरी माला को कौओं को दे दूंगी। जैसे गाँव मे माताएं अपने बच्चे को बोलती हैं, “लै कावा लीज ” वैसे ही रानी भी अपने पुत्र को बोलती थी काले कावा काले ,घुघती की माला खा ले।और घुघुती शैतानी करना बंद कर देता था।
बार बार कौओं को आवाज देने के कारण वहां कई कौवे आ जाते थे। उनको रानी कुछ न कुछ खाने को दे देती ,तो कौवे भी वही आस – पास ही रहने लगे। और घुघुती भी उनको देखकर खेलता रहता था।
इधर राजा का मुख्यमंत्री ,राजा की संतान को देखकर द्वेष भाव रखने लगा था। क्योंकि राजा की संतान की वजह से उसके हाथ मे आया ,अच्छा खासा राज्य जा रहा था। इसी द्वेष भाव के चलते ,उसने घुघुती को मारने की योजना बनाई । एक दिन मौका देखकर ,दुष्ट मुख्यमंत्री बालक घुघुती को जंगल की ओर मारने के लिए ले गया।
कौओं ने मुख्यमंत्री को यह कार्य करते हुए देख लिया ,और सारे कौए मंत्री के पीछे पीछे लग गए ,और मौका मिलते ही, वे मंत्री को चोंच भी मारने लगे । इसी छीनाझपटी में ,घुघुती की माला कौओं के हाथ लग गई। और कौए इस माला को लेकर राजभवन आ कर राजा रानी के सामने रख कर इधर उधर उड़ने लगे।
राजा और रानी समझ गए कि उनका पुत्र किसी संकट में है,और कौवे उनके पुत्र के बारे में जानते हैं। राजा तुरंत अपने सैनिकों के साथ कौओं के पीछे पीछे चल दिया। कौए राजा को उस स्थान पर ले गए जहाँ, मंत्री घुघुती को लेकर गया था। वहाँ राजा के आदेश से सिपाहियों ने मंत्री को पकड़ लिया और घुघुतिया को छुड़ा लिया। राजा कौओं की बहादुरी से बहुत खुश हुए ,उन्होंने समस्त राज्य में घोषणा करवा दी कि , सब लोग विशेष पकवान बना कर राज्य के सभी कौओं को खिलाएं।
कहते हैं, कि राजा का यह आदेश सरयू पार वालों को एक दिन बाद में मिला, इसलिए सरयू पार वाले कौओं को एक दिन बाद में घुगुति खिलाते हैं। और सरयू वार वाले पहले दिन ही खिला देते हैं। उनके घुघुतिया पौष माह के अंतिम दिन बनती है। इसलिए घुघुतिया को पुष्उड़िया त्यौहार भी कहते है।और कौओं को बुलाते समय यह लाइन गाते हैं “पुषे कि रोटी माघे खाले ”
घुघुतिया त्यौहार पर घुघुते बनाने की विधि
कुमाउनी त्यौहार का पकवान घुघुती बनाना बहुत आसान है। इसे अच्छे खस्ते घुघुती बना के बहुत स्वादिष्ट लगते हैं। घुघुती बनाने के लिए सर्वप्रथम गुड़ को पानी मे पका कर उसका पाक बना कर रख लेते हैं। फिर आवश्यकता अनुसार आटा निकाल कर उसमें, सूजी मिला कर, सौंफ और सूखा नारियल मिलाकर ,गुड़ के पाक से गूथ लेते हैं। घुघती को सॉफ्ट और खस्ता बनाने के लिए इसमें सूजी और , गूथते समय घी का प्रयोग करते हैं। इसके अलावा इसमे आप और सूखे मेवे मिला सकते हैं।
आटे को कुछ इस प्रकार गुथे ,न अधिक सख्त हो और न अधिक गीला हो। फिर इसके घुघुती आकार में बना लें। घुघुतिया का आकार हिंदी के ४ की तरह मिलता जुलता होता है। जितनी आपको घुघुती चाहिए,उतनी बना लीजिए बचे हुए, आटे का आप रोटी जैसे फैलाकर ,तिकोना काट कर उसके खजूर पकवान बना कर उसे लंबे समय के लिए रख सकते हैं। आटे को घुघती के आकार में बना कर उसे गहरे तेल में तल लेते हैं।
उत्तराखंड त्यौहार के सबसे बड़े त्यौहार घुगुतिया के उपलक्ष्य में , बागेश्वर में ऐतिहासिक उत्तरायणी मेले का आयोजन होता है। कहा जाता है, यह मेला चंद राजाओं के समय से चलता आया है। क्योंकि सनातन धर्म मे ,मकर संक्रांति पर दान और स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। इसलिए लोग सरयू के तट पर पहले से ही स्नान के लिए इस दिन काफी संख्या में एकत्रित होते थे। धीरे धीरे यह मेले का रूप में विकसित हो गया।
बागेश्वर उत्तरायणी का मेला कुमाउनी संस्कृति का बहुत ही खास मेला है। इसमे आपको पूरे कुमाऊं की संस्कृति और सभ्यता के दर्शन एक स्थान पर मिल जाते हैं। कुमाऊं के अलग अलग लोक नृत्यों और लोक गीतों की मनमोहक धुनें, कानो में शहद घोलती है। लोकवाद्यों के ताल पर ,झोड़ा चाचेरी की खनक अंदर से निकलती है।
इस मेले में आपको उत्तराखंड कुमाऊं और पड़ोसी देश नेपाल के पहाड़ी इलाकों की विशिष्ट चीजे, प्राकृतिक जड़ी बूटियां और अन्य कई प्रकार के हस्तनिर्मित उत्पाद खरीदने को मिल जाएंगे। इसी लिए कहते हैं कि बागेश्वर का उत्तरायणी मेला अपने आप मे एक विशिष्ट मेला है।
घुघुतिया त्यौहार की शुभकामनाएं –
घुघती त्यार की शुभकामनाएं लिखने के लिए कुमाउनी में एक लाइन सबसे बेस्ट है। जो कि कुमाउनी आशीष गीत का मुखड़ा है। यह घुघुतिया की शुभकामनायें इस प्रकार है।
” जी राया जागी राया । यो दिन यो बार ,हर साल घुघुतिया त्यार मनुने राया।।”
उत्तराखंड में शीतकालीन चार धाम यात्रा – उत्तराखंड, जिसे “देवभूमि” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ धर्म, संस्कृति और प्रकृति का अद्भुत संगम होता है। यहाँ स्थित चार प्रमुख धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री, श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष स्थान रखते हैं।
लेकिन ये चारों धाम अत्यधिक ठण्ड के कारण सर्दी के मौसम में बंद हो जाते हैं। देवों की पूजा में कोई अवरोध ना आये और पूजा सतत चलती रहे इसलिये इन मंदिरों के देवों के प्रतीकात्मक रूपों को वहां से कम ऊंचाई वाली जगहों पर पूजा जाता है जिन्हे शीतकालीन चार धाम कहते हैं।
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उत्तराखंड में शीतकालीन चार धाम यात्रा –
ऊखीमठ –
यह पवित्र तीर्थस्थल गढ़वाल मंडल के रूद्रप्रयाग जिले के नागपुर परगने के मल्ला कालीफाट में गौरीकुंड से 10 किलोमीटर नीचे मन्दाकिनी घाटी में मन्दाकिनी के बाएं तट पर समुद्र की सतह से 4500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर एक अति प्राचीन शिवालय है जिसे केदारनाथ धाम का का अधिष्ठान भी माना जाता है।
क्योंकि शीतकाल में केदारनाथ के कपाट बंद हो जाने पर 6 माह के लिए उनका पूजन यहीं पर किया जाता है। मूल प्रतिमा के इन दो स्थानों पर स्थानान्तरित होते रहने के कारण इसे चल प्रतिमा भी कहा जाता है। मंदिर भव्य, विशाल एवं वास्तुकला की दृष्टि से दर्शनीय है। शायद उत्तराखण्ड के मंदिरों में सबसे ऊंचा है। इसका निर्माण पत्थरों के चबूतरे पर तराशे गये शिलाखण्डों से किया गया है।
मंदिर के भीतर बदरीनाथ, तुंगनाथ, केदारनाथ, ओंकारेश्वर, उषा-अनिरुद्ध, मांधाता एवं तीनों युगो की मूर्तियां विद्यमान हैं। केदारेश्वर के पीठासन के पार्श्व में स्वर्ण की पंचमुखी शिव की प्रतिमा, चांदी का घंटा तथा उसके पार्श्व में वस्त्रांकरणों से अलंकृत पार्वती की प्रतिमा विराजमान है। भववान् मध्यमहेश्वर की शीतकालीन पूजा भी यही की जाती है। मंदिर चारों ओर से परिवेष्टित है। ऐसा भी माना जाता था कि उषा के द्वारा यहां पर एक मठ का निर्माण कराये जाने के कारण ही इस स्थान का ‘नाम ‘उषामठ’ पड़ गया था जो कि बादे में लोकभाषा में विकृत होकर ऊखीमठ कहलाया जाने लगा।
यहां से कुछ दूरी पर लमगौड़ी में एक किले के भग्नावशेष हैं जिसे लोग बाणासुर का किला कहते हैं। पौराणिक परम्परा के अनुसार यहां पर बाणासुर की पुत्री उषा का निवास स्थान था तथा भगवान् कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से उसका प्रेम विवाह यहीं पर हुआ था। इस सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है कि उषा अपने इस महल से मन्दाकिनी के उस पार स्थित गुप्तकाशी में भगवती पार्वती से विद्याध्ययन करने आया करती थी। अनुश्रुति के अनुसार महाभारत काल में पांडवों ने यहां पर स्वयंभू शिवलिंग की पूजा-उपासना की थी।
महापंथ का मार्ग यहीं से होकर जाता है। केदारखंड के रावलों (पुजारियों) का निवास स्थान तथा मंदिर समिति का मुख्यालय भी यहीं है। पैदल यात्रा के दिनों में केदारखण्ड से लौटते समय यात्री लोग अवश्य यहां आया करते थे ।
जब केदारनाथ के कपाट बन्द होते हैं तो भगवान केदार की उत्सव मूर्ति भव्य शोभायात्रा के साथ ऊखीमठ के ओंकारेश्वर के मंदिर में लायी जाती है।
योगध्यान बद्री या पांडुकेश्वर –
यह गढ़वाल मंडल के चमोली जिले में ऋषिकेश से 275 किलोमीटर जोशीमठ से लगभग 20 किलोमीटर और विष्णुप्रयाग से 8 किलोमीटर आगे एवं बद्रीनाथ से 1 किलोमीटर पहले विष्णुगंगा के बांये तट पर स्थित है महाभारत में बताया गया कि राजा पाण्डु ने शाप मुक्ति पाने के लिए यहां पर तप किया था पांचों पाण्डवों का जन्म भी यहीं हुवा था उनका यज्ञोपवीत संस्कार यहीं पर हुआ था। महाभारत में यह भी कहा गया है कि माद्री यहीं पर सती हुई थी।
अन्त में स्वर्गारोहण भी उन्होंने यहीं से आगे संतोपंथ में किया था। किन्तु डा. शिवप्रसाद नैथानी के अनुसार यहां पर केसर की खेती किये जाने के कारण इसका मूलनाम ‘पाण्डुकेशर’ रहा होगा, जो कि वहां के शैव प्रभाव से ‘केश्वर’ हो गया। जो भी हो यह नाम काफी प्राचीन है। पाण्डुकेश्वर ताम्रपत्रों के नाम से विख्यात कत्यूरी शासकों के इन ताम्रपत्रों में इसका उल्लेख किया गया है।
वर्तमान में यहां पर मंदिर में जो ‘अष्टधातु की मूर्ति है उसे योगध्यान बदरी कहा जाता है। बद्रीनाथ धाम के कपाट बन्द हो जाने पर भगवान् के सखा उद्भव तथा कोषाध्यक्ष कुबेर सहित नारायण की उत्सव मूर्ति को यहीं लाकर रखा जाता है। यही पर बद्रीनाथ जी की शीतकालीन पूजा होती है। और फिर बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के अवसर इन्हें गाजों-बाजों के साथ जुलूस के रूप में वहां से जाया जाता है।
यहां पर कत्यूरी काले के दो मंदिर है।दूसरा मंदिर वासुदेव का है जो अपने स्थापत्य एवं मूर्तिकला के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इनमें से एक तो गुम्बद की तरह छतवाला तथा दसरा शिखर वाला है। पहले में मूर्ति पत्थर की और दूसरे में धातु की है। इसके अतिरिक्त यहां पर रामानुज सम्प्रदाय द्वारा निर्मितएक राममंदिर भी है जिसमें राम और सीता की अति भव्य मूर्तियां स्थापित हैं।
शीतकालीन चारधाम यात्रा के लिए योगध्यान बद्री एक शानदार विकल्प हो सकता है। उत्तराखंड के सुन्दर और शांत शहर कर्णप्रयाग में स्थित यह शीतकालीन धाम अभूतपूर्व शांति अवस्थित है। कहते हैं यहाँ भगवान् विष्णु ने ध्यान लगया था इसीलिए इसे योगध्यान बद्री कहते हैं।
शीतकालीन धाम मुखवा –
उत्तराखंड की जनता में गंगा के मायके के रूप में प्रसिद्ध मुखवा जिला उत्तरकाशी की तहसील भट्वाड़ी में जनपद से लगभग 75 किमी. उत्तर में हरीभरी पहाड़ियों के मध्य एक रमणीक स्थान पर अवस्थित है तथा पवित्रधाम गंगोत्री के पुजारियों के पुरखों के पुस्तैनी ग्राम के रूप में प्रसिद्ध है। शीतकाल में गंगोत्रीधाम के कपाट बन्द होने पर गंगा जी की मूर्ति को पूरी शोभायात्रा के साथ यहां के मंदिर में लाकर रखा जाता है।
और ग्रीष्मकाल के प्रारम्भ में कपाट खुलने तक यहीं रखी रहती है , तथा कपाट खुलने की तिथि के अवसर पर पुनः गाजे-बाजों के साथ शोभायात्रा के रूप में गंगोत्रीधाम को ले जाया जाता है। यह गांव शीतकाल में मनाये जाने वाले सेल्कू उत्सव के लिए भी प्रसिद्ध है इस अवसर पर यहां गाजे बाजे की धुनों पर थिरकते हुए लोगों के द्वारा रासौ नृत्य का तथा सेल्कू के उत्सव के अवसर पर उसका भैलों (आग के गोलों) के स्वागत किये जाने के दृश्य दर्शनीय हुआ करते हैं।
लोग भाव विभोर होकर इनका आनन्द लेते हैं। मुखवा उत्तराखंड के चार शीतकालीन धामों में से एक प्रसिद्ध धाम है। यदि आप शीतकाल में यहाँ की यात्रा करना चाह रहे तो आपके लिए एक अच्छा विकल्प बन सकता है।
खरसाली –
खरसाली यमुनोत्री धामके शीतकालीन धाम के विकल्प के रूप में अवस्थित है। शीतकालीन समय में अत्यधिक बर्फवारी की वजह से यमुनोत्री में माँ यमुना की पूजा संभव नहीं होती है ,इसलिए माँ यमुना की पूजा यहाँ की जाती है। खरसाली गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री मार्ग पर जानकी चट्टी के पास हिरण्यबाहु और यमुना के संगम पर स्थित है। यहाँ से यमुनोत्री की दूरी मात्र 06 किलोमीटर होती है। कहते हैं पहले यहाँ खर्सू के घने जंगल होते थे ,इसलिए इसे खरसाली कहते हैं। खरसाली में भारत का सबसे प्राचीन शनि मंदिर है। माँ यमुना की मूर्ति यहाँ के शनि मंदिर में रखी जाती है। इसकी दूरी समुद्रतल से 2675 मीटर है।
निष्कर्ष –
उत्तराखंड के शीतकालीन चार धाम यात्रा न केवल श्रद्धा का अनुभव है, बल्कि यह उत्तराखंड की पहाड़ी जीवनशैली, संस्कृति और प्रकृति के बारे में जानने का एक अद्भुत तरीका भी है। अगर आप सर्दियों में उत्तराखंड की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं, तो शीतकालीन चार धाम एक बेहतरीन विकल्प हो सकते हैं। यह यात्रा आपको न केवल आध्यात्मिक संतोष प्रदान करेगी, बल्कि यहाँ की शांति और ठंडी हवाओं में एक अद्वितीय अनुभव भी मिलेगा।
संदर्भ –
उत्तराखंड ज्ञानकोष – प्रो DD शर्मा
गढ़वाल का इतिहास – प . हरिकृष्ण रतूड़ी
उत्तराखंड में आध्यात्मिक पर्यटन – डॉक्टर सरिता शाह
हल्द्वानी: मंगलवार को आयुक्त/सचिव मा0 मुख्यमंत्री दीपक रावत ने निर्माणाधीन जमरानी बांध परियोजना का स्थलीय निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने परियोजना के कार्यों की प्रगति की समीक्षा की और क्षेत्र में इसके महत्व पर प्रकाश डाला।
आयुक्त ने कहा कि कुमाऊं क्षेत्र के लिए यह परियोजना अत्यंत महत्वपूर्ण है। जमरानी बांध परियोजना के पूर्ण होने से क्षेत्र में सिंचाई और पेयजल की समस्याओं का समाधान होगा। उन्होंने बताया कि गर्मी के मौसम में हल्द्वानी और उसके आसपास के क्षेत्रों में पेयजल की कमी को दूर करने में यह परियोजना सहायक सिद्ध होगी। इसके अलावा, यह परियोजना हल्द्वानी के आसपास के क्षेत्रों के साथ-साथ गुलरभोज बौर बांध और उत्तर प्रदेश के बरेली तक पानी उपलब्ध कराने में मदद करेगी।
आयुक्त श्री रावत ने जानकारी दी कि 3700 करोड़ की लागत से बनने वाले जमरानी बांध परियोजना का कार्य 2029 में पूर्ण होने की उम्मीद है। बांध की ऊंचाई लगभग 150 मीटर और लंबाई 10 किलोमीटर होगी। वर्तमान में 600 मीटर की दो टनल का कार्य चल रहा है, जिसके माध्यम से पानी का डाइवर्जन किया जा रहा है। यह कार्य लगभग 16 माह में पूरा होगा, जिसके बाद बांध का निर्माण शुरू होगा।
उन्होंने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार बांध परियोजना की नियमित मॉनिटरिंग की जानी चाहिए और विभिन्न विभागों के बीच तालमेल में कोई कमी नहीं होनी चाहिए, ताकि परियोजना समय पर पूर्ण हो सके।
निरीक्षण के दौरान आयुक्त ने जमरानी बांध परियोजना में टेस्टिंग लैब और निर्माणाधीन जमरानी बांध कॉलोनी का भी अवलोकन किया। इसके बाद, उन्होंने जमरानी में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का निरीक्षण किया, जहां वार्डब्वाय संजय कुमार बिना छुट्टी की स्वीकृति के अनुपस्थित पाए गए। इस पर आयुक्त ने स्पष्टीकरण मांगा और महानिदेशक चिकित्सा को जांच हेतु पत्र प्रेषित करने के निर्देश दिए। उन्होंने यह भी कहा कि पीएचसी सेंटर में शीघ्र चिकित्सक की तैनाती की जाएगी।
निरीक्षण के दौरान उप महाप्रबंधक जमरानी बीबी पांडे, उपजिलाधिकारी प्रमोद कुमार, राजस्व, सिंचाई, लोनिवि, जलसंस्थान, विद्युत, वन आदि विभागों के अधिकारी भी मौजूद थे।
जमरानी बांध परियोजना के सफल कार्यान्वयन से क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान मिलने की उम्मीद है।
देहरादून: प्रदेश में मतदाता सूची में नाम जोड़ने और संशोधन के लिए अब तक 1,16,428 आवेदन प्राप्त हुए हैं, जिनमें 18 से 19 आयुवर्ग के 38,909 आवेदन शामिल हैं। मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. बी.वी.आर.सी पुरुषोत्तम के निर्देश पर यह प्रक्रिया व्यापक स्तर पर चलाई जा रही है। अक्टूबर से प्रारंभ हुए इस अभियान का मुख्य उद्देश्य नए और युवा मतदाताओं को मतदाता सूची में शामिल करना है, जिससे लोकतंत्र में उनकी भागीदारी को बढ़ावा दिया जा सके।
अपर मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. विजय कुमार जोगदंडे ने बताया कि भारत निर्वाचन आयोग हर साल विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण कार्यक्रम के तहत वोटर लिस्ट को अपडेट करता है। इस बार चार अर्हता तिथियों (1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई, 1 अक्टूबर) के आधार पर नाम जोड़ने की सुविधा दी गई है। 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने वाले नागरिक फॉर्म 6 भरकर मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करा सकते हैं।
इस प्रक्रिया के तहत जन जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं, जिससे युवा मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया जा सके। सभी जनपदों में अधिकारियों को सुपर चेकिंग अभियान की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जिसमें पोलिंग बूथ पर जाकर मतदाताओं से फीडबैक लिया जा रहा है। इससे मतदाता सूची को और अधिक सटीक बनाया जा सकेगा।
मुख्य निर्वाचन अधिकारी के निर्देश पर प्रदेश में मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन की तिथि 6 जनवरी 2025 तय की गई है। इस प्रक्रिया के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी पात्र युवा आगामी चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें।
इस विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण अभियान ने प्रदेश के 39 हजार नए युवा मतदाताओं को वोटर लिस्ट में शामिल करने का अवसर प्रदान किया है। यह कदम न केवल युवा मतदाताओं की संख्या में वृद्धि कर रहा है, बल्कि लोकतंत्र में उनकी सक्रिय भागीदारी को भी सुनिश्चित कर रहा है।
देहरादून: आज सचिवालय में मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में व्यय वित्त समिति की महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में मुख्य सचिव ने अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए कि सभी अनुमोदित कार्यों को निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा किया जाए, अन्यथा योजनाओं की लागत में वृद्धि हो सकती है।
बैठक में स्वास्थ्य सचिव को निर्देशित किया गया कि राज्य के सभी स्वास्थ्य केंद्रों, अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में अनिवार्य रूप से सोलर रूफटॉप पैनल लगाने के लिए तत्काल आदेश जारी करें। इसके साथ ही, शिक्षा महानिदेशक को भी सभी स्कूलों और होस्टलों में सोलर रूफटॉप पैनल लगाने के निर्देश दिए गए।
मुख्य सचिव ने मातृत्व मृत्यु दर वाले संवेदनशील क्षेत्रों में मेटरनल डेथ ऑडिट करने के बाद इन क्षेत्रों में पर्याप्त डॉक्टरों की तैनाती के लिए भी निर्देश दिए। इसके अलावा, चम्पावत जिला चिकित्सालय में पार्किंग निर्माण, डायग्नोस्टिक विंग और ओटी के निर्माण के लिए सैद्धान्तिक एवं वित्तीय स्वीकृति दी गई। इससे मुख्य भवन में लगभग 6 कक्ष खाली होंगे, जिन्हें अन्य चिकित्सकीय सुविधाओं के लिए उपयोग में लाया जाएगा।
उत्तरकाशी में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पुरोला को उप जिला चिकित्सालय के रूप में उच्चीकृत करने के प्रस्ताव पर भी अनुमोदन दिया गया। हरिद्वार में उप जिला चिकित्सालय रुड़की में 50 बेड के क्रिटिकल केयर ब्लॉक, राजीव गांधी नवोदय विद्यालय, बागेश्वर के भवन/छात्रावास और खानपुर में 50 बेड के उपजिला चिकित्सालय भवन के निर्माण कार्यों पर भी सैद्धान्तिक एवं वित्तीय अनुमोदन प्रदान किया गया।
बैठक में सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार सहित सभी संबंधित विभागों के सचिव, अपर सचिव और विभागीय अधिकारी उपस्थित रहे। इस बैठक के निर्णयों से राज्य में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं।
बागेश्वर: मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने आज कांडा महोत्सव का भव्य शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने बागेश्वर जिले की ₹83 करोड़ की 11 विकास योजनाओं का शिलान्यास किया और ₹1.80 करोड़ की एक योजना का लोकार्पण भी किया। मुख्यमंत्री ने जिले के विकास को और गति प्रदान करने के लिए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं कीं।
कांडा महोत्सव को राज्य की अनमोल धरोहर बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह महोत्सव हमारी समृद्ध परंपराओं को संजोए रखने और उन्हें आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि यह महोत्सव छोटे व्यापारियों, कारीगरों और किसानों को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने और उनकी बिक्री करने का एक उत्कृष्ट मंच प्रदान करता है।
मुख्यमंत्री ने उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति को उसकी मूल पहचान बताते हुए कहा कि हमें अपने पहाड़ी पहनावे, खान-पान और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों से हमारी लोक संस्कृति और भी अधिक सुदृढ़ होती है।
महिलाओं के सशक्तिकरण पर जोर देते हुए मुख्यमंत्री ने बताया कि प्रदेश में एक लाख महिलाएं ‘लखपति दीदी’ बन चुकी हैं। उन्होंने पहाड़ी उत्पादों को पहचान दिलाने के लिए ‘हाउस ऑफ हिमालयाज’ ब्रांड की स्थापना की जानकारी दी। इसके अलावा, ‘एक जनपद, दो उत्पाद’ योजना के माध्यम से स्थानीय आजीविका के अवसरों में वृद्धि करने का कार्य जारी है।
मुख्यमंत्री ने पलायन रोकने के लिए गांवों में पर्यटन को बढ़ावा देने की बात की। उन्होंने कहा कि होम स्टे के माध्यम से स्थानीय निवासियों को रोजगार और स्वरोजगार के अवसर प्रदान किए जा रहे हैं। बागेश्वर को रेल मार्ग से जोड़ने के लिए सर्वे का काम पूरा कर लिया गया है, जिससे बागेश्वर, चंपावत और पिथौरागढ़ जनपदों में विकास के नए द्वार खुलेंगे।
इस अवसर पर क्षेत्रीय विधायक सुरेश गढ़िया, दर्जा राज्य मंत्री शिव सिंह बिष्ट, निवर्तमान अध्यक्ष जिला पंचायत बसंती देव, ब्लाक प्रमुख गोविंद सिंह दानू, जिलाध्यक्ष भाजपा इंद्र सिंह फर्स्वाण, डीएम आशीष भटगांई, एसपी चंद्रशेखर आर घोड़के, सीडीओ आरसी तिवारी, और अन्य जनप्रतिनिधिगण एवं क्षेत्रीय जनता उपस्थित रहे।
कांडा महोत्सव के इस आयोजन ने न केवल स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा दिया है, बल्कि बागेश्वर जिले के विकास के लिए नई संभावनाओं का भी द्वार खोला है।
देहरादून: सचिवालय में आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक में मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी ने “विकसित उत्तराखण्ड @ 2047” के तहत विजन डाक्यूमेंट तैयार करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाने पर जोर दिया। उन्होंने सरकारी नीतियों की समीक्षा की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि विकास के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।
मुख्य सचिव ने सभी विभागों को निर्देश दिया कि वे राज्य में बेहतरीन संभावनाओं वाले क्षेत्रों की पहचान करें और उन्हें ग्रोथ इंजन के रूप में चिन्हित करें। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में पर्वतीय कृषि, जैविक कृषि, एरोमेटिक व जड़ी-बूटियां, आयुष, रिन्युएबल एनर्जी, वन सम्पदा, पर्यटन और आईटी व एमएसएमई को पहले ही ग्रोथ ड्राइवर के रूप में चिन्हित किया जा चुका है।
बैठक में चर्चा के दौरान मुख्य सचिव ने होर्टीकल्चर और जैविक खेती को मुख्य ग्रोथ ड्राइवर के रूप में महत्व देने की बात की। उन्होंने कहा कि उच्च मूल्य वाली फसलों जैसे सगंधित और औषधीय पौधों, पॉलीहाउस-खेती, बागवानी फसलों, केसर, सेब और कीवी फल की खेती को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने और कृषि-पर्यटन को एकीकृत करने पर भी जोर दिया गया।
मुख्य सचिव ने आयुष विभाग के अधिकारियों को भी निर्देश दिए कि आयुष और वेलनेस हब की अपार संभावनाओं का लाभ उठाया जाए। उन्होंने बताया कि राज्य में 900 हेक्टेयर क्षेत्र में औषधीय पौधों की खेती हो रही है, जिससे 30 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हो रहा है। विजन 2047 के तहत उत्तराखण्ड को देश का प्रमुख आयुष गंतव्य बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
मुख्य सचिव ने पर्यटन को भी राज्य के विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताया, जो जीएसडीपी में 10-12 प्रतिशत का योगदान देता है और 4 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता है। उन्होंने राज्य के प्रमुख इको-टूरिज्म हॉटस्पॉट्स की जानकारी साझा की, जिसमें फूलों की घाटी, बिनसर वन्यजीव अभयारण्य और नंदा देवी बायोस्फीयर शामिल हैं।
इस बैठक में लिए गए निर्णयों से स्पष्ट है कि उत्तराखण्ड सरकार विकसित भारत @ 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ठोस कदम उठा रही है, जिससे राज्य का समग्र विकास और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी।
देहरादून: 38वें राष्ट्रीय खेलों के शुभंकर समारोह में योग और मलखंभ जैसे पारंपरिक खेलों को राष्ट्रीय खेलों का हिस्सा बनाने की घोषणा की गई। यह निर्णय मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के आग्रह पर भारतीय ओलंपिक संघ द्वारा लिया गया।
रविवार को महाराणा प्रताप स्पोर्ट्स कॉलेज, रायपुर, देहरादून में आयोजित भव्य समारोह में भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष डॉ. पीटी उषा ने इस महत्वपूर्ण जानकारी को साझा किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय खेलों के शुभंकर प्रतीक मौली, लोगो, जर्सी, एंथम और टैगलाइन का अनावरण किया। राष्ट्रीय खेलों के लिए टैगलाइन “संकल्प से शिखर तक” घोषित की गई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह दिन उत्तराखंड के खेल इतिहास में एक ऐतिहासिक दिन है और उन्होंने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद प्रकट किया, जिन्होंने राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी का अवसर प्रदान किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय खेलों का लोगो उत्तराखंड की विविधता को प्रदर्शित करता है और एंथम खिलाड़ियों को प्रेरित करता है। शुभंकर मोनाल, जो राज्य पक्षी है, प्रदेश की विशिष्टता को दर्शाता है और युवा खिलाड़ियों को बड़े लक्ष्यों के लिए प्रेरित करता है।
मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि राज्य सरकार ने राष्ट्रीय खेलों के सफल आयोजन के लिए लगभग ₹500 करोड़ का प्रावधान किया है। उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे खेल स्टेडियमों के निर्माण की योजना का भी उल्लेख किया, जिससे स्थानीय खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का अवसर मिलेगा।
केंद्रीय खेल राज्यमंत्री रक्षा खडसे ने कहा कि देश के खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और उत्तराखंड के खिलाड़ी प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं। उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से उत्तराखंड को खेल विकास में पूरी मदद देने का आश्वासन दिया।
डॉ. पीटी उषा ने उत्तराखंड को राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी के लिए शुभकामनाएं दीं और मुख्यमंत्री के नेतृत्व की सराहना की। खेल मंत्री श्रीमती रेखा आर्या ने भी इस आयोजन को उत्साहित करने वाला बताया।
इस कार्यक्रम में कई गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही, जिसमें कैबिनेट मंत्री श्री सतपाल महाराज, विधायक श्री उमेश शर्मा काऊ, और राज्य ओलंपिक संघ के अध्यक्ष श्री महेश नेगी शामिल थे। संचालन का कार्य श्री आरजे काव्य ने किया।
इस प्रकार, 38वें राष्ट्रीय खेलों का आयोजन उत्तराखंड के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जो न केवल खेलों के विकास को बढ़ावा देगा, बल्कि प्रदेश के खिलाड़ियों को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में सहायक होगा।