Saturday, July 27, 2024
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उत्तराखंड: नंदा गौरा योजना के तहत बेटियों को मिलेगा ₹62,000 का लाभ, आवेदन शुरू

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उत्तराखंड: नंदा गौरा योजना के तहत बेटियों को मिलेगा ₹62,000 का लाभ

देहरादून: उत्तराखंड सरकार की महत्वाकांक्षी नंदा गौरा योजना के तहत, राज्य में बेटियों के जन्म और शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। योजना के तहत, कन्या जन्म पर ₹11,000 और 12वीं उत्तीर्ण करने के बाद उच्च शिक्षा में प्रवेश लेने वाली छात्राओं को ₹51,000 की अतिरिक्त धनराशि प्रदान की जाती है। यह योजना उत्तराखंड सरकार द्वारा बेटियों के उत्थान और महिला सशक्तिकरण के लिए शुरू की गई एक महत्वपूर्ण पहल है। योजना के तहत प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता बेटियों की शिक्षा और भविष्य के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।

उत्तराखंड सरकार द्वारा शुरू की गई नंदा गौरा योजना बेटियों के शिक्षा और सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस योजना के तहत प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता बेटियों को शिक्षा प्राप्त करने और अपने सपनों को पूरा करने में मदद करेगी। योजना का लक्ष्य प्रदेश में लिंगभेद को कम करना और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है।

आप को बता दे की नंदा गौरा योजना के लिए आवेदन शुरू हो गया हैं। आप अब ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करने के लिए आप www.nandagaurauk.in में जाके ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए आवेदन की अंतिम तिथि 30 नवंबर 2024 हैं। 30 नवंबर से पैहले आप को आवेदन करना होगा।

उत्तराखंड: नंदा गौरा योजना के तहत बेटियों को मिलेगा ₹62,000 का लाभ, आवेदन शुरू

नंदा गौरा योजना के लिए पात्रता:

  • उत्तराखंड की मूल निवासी हो
  • परिवार की वार्षिक आय ₹1.5 लाख से कम हो
  • पहली दो बेटियों के लिए ही योजना का लाभ मिलेगा

आवेदन के लिए अनिवार्य दस्तावेज

कन्या के जन्म पर आवश्यक दस्तावेज:-

  1. कन्या शिशु की नवीनतम पासपोर्ट साइज फोटो
  2. माता / पिता / अभिभावक के हस्ताक्षर
  3. स्थाई निवास प्रमाण पत्र
  4. परिवार रजिस्टर की नकल या सभासद/पार्षद द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र
  5. राशन कार्ड की प्रति
  6. संस्थागत प्रसव का प्रमाण पत्र (यदि हो)
  7. जन्म पंजीकरण का प्रमाण पत्र
  8. आय प्रमाण पत्र
  9. माता और पिता / अभिभावक का आधार कार्ड
  10. नगरीय / ग्रामीण स्थानीय निकाय द्वारा दिया गया गृह कर या किराया समझौते के कागजात (यदि गृह कर उपलब्ध नहीं है तो, ग्राम प्रधान/पार्षद द्वारा गृह कर ना देने का प्रमाण पत्र)
  11. माता और पिता / अभिभावक का पैन कार्ड
  12. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता द्वारा प्रदत्त प्रमाण-पत्र (यहां से डाउनलोड करें)
  13. मातृशिशु प्रतिरक्षण / एम०सी० पी० (टीकाकरण) कार्ड
  14. परिवार के समस्त सदस्यों के बैंक पासबुक की प्रति एवं विगत 01 वर्ष के बैंक स्टेटमैन्ट की प्रति
  15. सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) में परिवार की स्थिति के आंकलन की प्रति (यदि उपलब्ध हो)
  16. शपथ पत्र (यहां से डाउनलोड करें) – यह घोषणा करते हुए कि यह लाभ आपकी पहली/दूसरी पुत्री के लिए लिया जा रहा है, और आपने सभी जानकारी सही ढंग से दी है।
  17. परिवार के विगत 03 बार के बिजली के बिलों की प्रति तथा विगत 01 बार के पानी के बिल की प्रति (यदि कनेक्शन नहीं है, तो शपथ पत्र में उल्लेख करें)।

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बालिका के इंटर उत्तीर्ण करने पर

योजना के तहत ₹51,000 की धनराशि प्राप्त करने के लिए, 12वीं उत्तीर्ण छात्राओं को निम्नलिखित दस्तावेज जमा करने होंगे:

छात्रा:

  • नवीनतम पासपोर्ट साइज फोटो
  • हस्ताक्षर

शैक्षिक दस्तावेज:

  • हाईस्कूल का प्रमाण पत्र
  • कक्षा 12वीं का अंकपत्र और प्रमाण पत्र
  • राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय/अन्य शिक्षण संस्थानों से उत्तीर्ण छात्राओं के लिए: स्व-प्रमाणित अंकपत्र की छायाप्रति
  • उच्च शिक्षा में दाखिले का प्रमाण पत्र (यदि लागू हो)
  • प्रधानाचार्य द्वारा जारी कक्षा 12 उत्तीर्ण का प्रमाण पत्र (केवल संस्थागत छात्राओं के लिए) (यहां से डाउनलोड करें)
  • राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय/अन्य शिक्षण संस्थानों से उत्तीर्ण छात्राओं के लिए: स्व-प्रमाणित अंकपत्र की छायाप्रति
  • निजी विद्यालयों की छात्राओं के लिए (RTE के तहत पंजीकृत): प्रमाण पत्र (यहां से डाउनलोड करें)

अन्य दस्तावेज:

  • माता-पिता/अभिभावक के हस्ताक्षर
  • छात्रा और माता-पिता/अभिभावक का आधार कार्ड
  • छात्रा और माता-पिता/अभिभावक का पैन कार्ड
  • छात्रा का स्थायी निवास प्रमाण पत्र
  • नगरीय/ग्रामीण स्थानीय निकाय द्वारा गृह कर या किराया समझौता
  • गृह कर उपलब्ध न होने पर: ग्राम प्रधान/पार्षद द्वारा गृह कर न देने का प्रमाण पत्र

आय प्रमाण पत्र

  • परिवार रजिस्टर की नकल या सभासद/पार्षद द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र, और राशन कार्ड की प्रति (बालिका का नाम राशन कार्ड में होना अनिवार्य)
  • सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) में परिवार की स्थिति का आकलन (यदि उपलब्ध हो)
  • परिवार के विगत 03 बार के बिजली बिलों की प्रति और विगत 01 बार के पानी के बिल की प्रति (कनेक्शन न होने पर शपथ पत्र में उल्लेख करें)
  • शपथ पत्र (यहां से डाउनलोड करें) – यह घोषणा करते हुए कि यह लाभ आपकी पहली/दूसरी पुत्री के लिए लिया जा रहा है, आप अविवाहित हैं, और आपने सभी जानकारी सही ढंग से दी है।
  • लाभार्थी छात्रा की बैंक पासबुक की छायाप्रति
  • परिवार के सभी सदस्यों के बैंक पासबुक की प्रति और विगत 01 वर्ष का बैंक स्टेटमेंट
  • आंगनबाड़ी कार्यकर्ता द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र (यहां से डाउनलोड करें)

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नंदा गौरा योजना योजना के लाभ:

बेटियों के जन्म और शिक्षा को प्रोत्साहन: इस योजना से बेटियों के जन्म और शिक्षा को प्रोत्साहन मिलता है, जिससे लिंगानुपात में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
लिंगभेद में कमी: यह योजना बेटे और बेटी के बीच शिक्षा और अवसरों में असमानता को कम करने में मदद करती है।
महिला सशक्तिकरण: यह योजना महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और उन्हें समाज में समान दर्जा प्राप्त करने में मदद करती है।

उपलब्धि: उत्तराखंड ने SDG Index 2023-24 में हासिल किया शीर्ष स्थान!

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उपलब्धि: उत्तराखंड ने SDG Index 2023-24 में हासिल किया शीर्ष स्थान!

उत्तराखंड ने एक बार फिर अपनी विकास गाथा में एक सुनहरा अध्याय जोड़ लिया है। नीति आयोग द्वारा जारी किए गए सतत विकास लक्ष्य SDG Index 2023-24 में उत्तराखंड ने देशभर में पहला स्थान प्राप्त किया है। यह उपलब्धि प्रदेश के लिए गौरव की बात है और राज्य सरकार और यहां के लोगों के अथक प्रयासों का प्रतिफल है। नीति आयोग ने शुक्रवार, 12 जुलाई को SDG Index 2023-24 की रिपोर्ट जारी की है।

आप को बता दे की एसडीजी इंडेक्स 17 टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) पर भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदर्शन को मापता है। इन लक्ष्यों में गरीबी उन्मूलन, भूख से लड़ाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, लैंगिक समानता, स्वच्छ जल और स्वच्छता, सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा, सभ्य बुनियादी ढांचा, उद्योग, नवीनता और रोजगार, असमानता में कमी, जलवायु परिवर्तन से निपटना, शांतिपूर्ण और समावेशी समाज, मजबूत संस्थान और साझेदारी शामिल हैं।

यह उत्तराखंड वासियों के लिए बहुत ही गर्भ की बात है की राज्य ने इन सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। विशेष रूप से, राज्य ने शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी ने इस उपलब्धि के लिए प्रदेशवासियों को बधाई दी है और कहा है कि यह राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं और नीतियों की सफलता का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि सरकार राज्य को और भी आगे ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है और सभी एसडीजी लक्ष्यों को समय पर प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत जारी रखेगी। उन्होंने यह भी कहा की आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में हमारी डबल इंजन की सरकार निरंतर उत्तराखण्ड को आगे बढ़ाने के लिए कार्य कर रही है।

यह उपलब्धि निश्चित रूप से उत्तराखंड के लिए प्रेरणादायक है और यह दर्शाता है कि राज्य विकास के पथ पर अग्रसर है। यह अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण है कि कैसे वे एसडीजी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए काम कर सकते हैं।

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यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु दिए गए हैं जिनके कारण उत्तराखंड को एसडीजी इंडेक्स 2023-24 में शीर्ष स्थान प्राप्त हुआ:

  • शिक्षा: उत्तराखंड में साक्षरता दर लगातार बढ़ रही है। राज्य में 10वीं और 12वीं कक्षा में उत्तीर्ण होने वाले छात्रों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। राज्य में शिक्षा का स्थर लगातार बड़ रहा हैं।
  • स्वास्थ्य: राज्य में शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में कमी आई है। इसके अलावा, राज्य में स्वास्थ्य सुविधाओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है।
  • स्वच्छता: उत्तराखंड में स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालयों के निर्माण में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। राज्य में खुले में शौच की प्रथा को समाप्त करने के लिए भी कड़ी मेहनत की गई है। अब खुले में शौच की प्रथा लगभग खत्म हो गई हैं। आज दूरस्थ गावों में भी घर घर में शौचाल बने हुए हैं।
  • ऊर्जा: उत्तराखंड में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर ऊर्जा और पनबिजली, के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • बुनियादी ढांचा: राज्य में सड़कों, रेलवे और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं में सुधार हुआ है। अभी राज्य में कई ऐसे गांव हैं जहा सड़के नहीं हैं। पर सड़क बनने का काम जोरो से चल रहा है। और आज उत्तराखंड के सभी इलाकों में बिजली की सुविधा उपलब्ध हैं।

इसे पढ़े : माँ बाल सुंदरी मंदिर जिसका जीर्णोद्वार स्वयं मंदिरों को तोड़ने वाले क्रूर शाशक औरंगजेब ने करवाया था।

यह निश्चित रूप से उत्तराखंड के लोगो के लिए गर्व का क्षण है। यह उपलब्धि दर्शाती है कि राज्य सही दिशा में आगे बढ़ रहा है और सभी के लिए बेहतर भविष्य बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।

माँ बाल सुंदरी मंदिर जिसका जीर्णोद्वार स्वयं मंदिरों को तोड़ने वाले क्रूर शाशक औरंगजेब ने करवाया था।

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माँ बाल सुंदरी मंदिर
bal sundari devi kashipur uttarakhand

मुग़ल शाशक औरंगजेब की छवि हिंदुत्व विरोधी , मूर्ति भंजक और मंदिरों को तोड़ने वाले क्रूर शाशक की रही है। लेकिन एक मंदिर ऐसा है जिसे इस क्रूर शाशक ने तोड़ा नहीं बल्कि उल्टा इस मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था। जी हां उत्तराखंड के काशीपुर में स्थित माँ बाल सुंदरी के मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ,माँ के चमत्कार से प्रभावित होकर इसका जीर्णोद्वार क्रूर मुग़ल शाशक औरंगजेब ने करवाया था। यह मंदिर बुक्सा जनजाति वालों की कुलदेवी का मंदिर है। बुक्सा जनजाति के लोग साल में एक बार माँ बाल सुंदरी की विधिवत पूजा करके ,भंडारा और जागरण करवाते हैं। यह मंदिर चैती मंदिर के नाम से भी विख्यात है। यहाँ प्रसिद्ध चैती मेला लगता है।

शक्ति के 52 शक्तिपीठों में से एक है माँ बाल सुंदरी मंदिर –

कहते हैं माँ बाल सुंदरी मंदिर माता शक्ति के 52 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है। जब दक्ष प्रजापति की यज्ञ की अग्नि में माँ सती ने आत्मदाह कर लिया था, तब भगवान् शिव माता के मृत देह को लेकर तीनो लोकों में भटकने लगे तब भगवान् विष्णु ने भगवान् शिव को शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से माँ सती के शरीर के टुकड़े -टुकड़े करना शुरू कर दिया। माँ के शरीर का जो हिस्सा जहाँ गिरा वहां कालान्तर में उनके नाम के शक्तिपीठों की स्थापना हुई। पुरे भारतवर्ष में कुल मिलकर 52 शक्तिपीठ हैं।

कहते हैं माँ बाल सुंदरी शक्तिपीठ में माता की बाह गिरी थी। बताते हैं इस मंदिर का इतिहास पांडवकाल से भी जुड़ा है। बताया जाता है कि यहाँ माता के बाल रूप की पूजा होती है इसलिए इसे माँ बाल सुंदरी मंदिर भी कहते हैं। यहाँ कोई मूर्ति या पिंडी नहीं बल्कि एक पत्थर पर माता के बाह का आकार छपा है। और यहाँ इसी की पूजा होती है।

माँ बाल सुंदरी मंदिर जिसका जीर्णोद्वार स्वयं मंदिरों को तोड़ने वाले क्रूर शाशक औरंगजेब ने करवाया था।

मुग़ल शाशक औरंगजेब ने करवाया था माँ बाल सुंदरी मंदिर का जीर्णोद्वार –

इसके इतिहास के सम्बन्ध में यह जनश्रुति है कि औरंगजेब के समय में हरदोई जनपद के निवासी दो भाई-गयादीन तथा बन्दीदीन, जब चारों धामों की यात्रा से लौट रहे थे तो यहां से गुजरते समय उन्हें यहां पर देवी की स्थापना की प्रेरणा हुई।उन्हें यहाँ देवी का मठ मिला ,जो संभवतः आदिकाल से जीर्ण शीर्ण हो गया था। उस समय हिन्दु मंदिरों के निर्माण के सम्बन्ध में औरंगजेब का आतंक छाया हुआ था। उसकी स्वीकृति के बिना किसी मंदिर का निर्माण कर पाना असंभव था।

अतः उन्होंने जब शासन से इसकी अनुमति चाही तो औरंगजेब ने साफ इन्कार कर दिया। संयोगवश इसके कुछ ही दिनों के बाद उसकी बेटी जहाँआरा ऐसी बीमार हुई कि उस पर कोई भी इलाज कारगर नहीं हुआ। तब फकीरों और मौलवियों ने उससे कहा कि यह देवी प्रकोप है और यह देवी के मंदिर की स्वीकृति से ठीक होगा, तो कहा जाता है कि तब औरंगजेब ने उन दोनों भाईयों को बुलवा कर उनकी उपस्थिति में ही मुस्लिम शिल्पियों को इसका करने का आदेश दे दिया। मंदिर के निर्माण के साथ-साथ ही जहांआरा के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। मंदिर की मस्जिदनुमा संरचना से इस कहानी में कुछ तथ्य का अंश प्रतीत होता है।

प्रसिद्ध चैती मेला इसी मंदिर में आयोजित होता है –

माँ बाल सुंदरी के मंदिर में आयोजित होता है प्रसिद्ध चैती मेला। इस मेले में उत्तराखंड और उत्तरभारत से ही नहीं बल्कि पुरे भारत वर्ष से लोग आते हैं। चैती मेला बोक्सा समाज का कृषि से संबंधित प्रमुख उत्सव है। जो वर्ष के प्रथम माह अर्थात चैत्र माह में मनाया जाता है। परम्परागत रूप से इसे पूरे हर्षोउल्लास से मनाया जाता है। यहाँ विशाल मेला लगता है। यह मेला उत्तरभारत के प्रमुख व्यापारिक मेलों में से एक है।

माँ बाल सुंदरी मंदिर जिसका जीर्णोद्वार स्वयं मंदिरों को तोड़ने वाले क्रूर शाशक औरंगजेब ने करवाया था।

माँ बाल सुंदरी मंदिर प्रांगण में है दिव्य कदम्ब वृक्ष –

माँ बाल सुंदरी के मंदिर एक कदम्ब का वृक्ष है जो निचे से खोखला और सूखा हुवा है और ऊपर से हरा भरा है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह वृक्ष पूरी तरह जला हुवा है ,फिर भी हरा भरा है। कहते हैं बुक्सा जाती के किन्ही पूर्वजों माँ के शक्तिपीठ की शक्तियों को लेकर संदेह था , तो दूसरे पूर्वज ने माँ के आशीष से इस वृक्ष को एक बार जला के फिर हरा करके दिखाया तब अन्यों को विश्वाश आया

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हल्द्वानी में भवन कर वृद्धि रद्द: नगर निगम पर लापरवाही का आरोप, मुख्यमंत्री ने दिया पारदर्शिता का निर्देश

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हल्द्वानी में भवन कर वृद्धि रद्द

हल्द्वानी, 12 जुलाई 2024: हल्द्वानी नगर निगम ने 1 अप्रैल से लागू 15% भवन कर वृद्धि को रद्द कर दिया है। यह निर्णय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के हस्तक्षेप के बाद आया है, जिन्होंने पाया कि वृद्धि मानक प्रक्रियाओं और प्रशासनिक अनुमोदन के बिना की गई थी। हल्द्वानी नगर निगम बोर्ड ने 2024-25 के लिए 15% भवन कर वृद्धि का प्रस्ताव रखा था। यह प्रस्ताव 1 अप्रैल से लागू हो गया था। हालांकि, इस वृद्धि को लेकर व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें आरोप लगाया गया था कि यह गैरकानूनी और मनमानी थी।

स्थानीय लोगों ने यह भी दावा किया कि उन्हें भवन कर वृद्धि के बारे में कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी और न ही उनकी आपत्तियों पर विचार किया गया था। इस मुद्दे को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के ध्यान में लाया गया, जिन्होंने तुरंत जिलाधिकारी (डीएम) वंदना सिंह को मामले की जांच करने का निर्देश दिया। डीएम की जांच में पाया गया कि नगर निगम ने वास्तव में उचित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया था। भवन कर वृद्धि के लिए नगर निगम प्रशासक से आवश्यक अनुमोदन भी नहीं लिया गया था। इसके परिणामस्वरूप, डीएम वंदना सिंह ने 15% भवन कर वृद्धि को रद्द करने का आदेश दिया।

उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि भवन कर वृद्धि की प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से दोबारा शुरू किया जाए। इसमें स्थानीय समाचार पत्रों में विज्ञापन देना, जनता से आपत्तियां आमंत्रित करना और प्राप्त आपत्तियों का निस्तारण करना शामिल है। इसके बाद, अंतिम निर्णय लिया जाएगा और दरों में वृद्धि के बारे में जनता को सूचित किया जाएगा।

नगर निगम के एक अधिकारी ने कहा कि वे अब भवन कर वृद्धि के लिए मानक प्रक्रियाओं का पालन करेंगे। उन्होंने कहा कि “हम यह सुनिश्चित करेंगे कि सभी हितधारकों को उचित अवसर दिया जाए और प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष हो।”

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यह निर्णय हल्द्वानी के 25,000 से अधिक निवासियों के लिए राहत की बात है, जिन्हें 15% भवन कर वृद्धि का बोझ वहन करना पड़ता। यह नगर निगम के लिए एक सबक भी है कि वे भविष्य में इस तरह की गलतियों को न दोहराएं।

सूखाताल में फिर से लौटेगा जल, पर्यटकों के लिए खुलेंगे नए द्वार

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सूखाताल में फिर से लौटेगा जल, पर्यटकों के लिए खुलेंगे नए द्वार
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नैनीताल, उत्तराखंड: मल्लीताल क्षेत्र में स्थित सूखाताल, जो पहले सूखे ताल के नाम से जाना जाता था, अब फिर से जल से लबालब हो जाएगा। 29 करोड़ रुपये की लागत से इस सूखे ताल को एक मनोरम झील में तब्दील किया जा रहा है। यह परियोजना न केवल नैनीताल में पर्यटन को बढ़ावा देगी बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा करेगी। आप को बता दे की सूखाताल को पांच नाले रिचार्ज करते हैं। झील के सौंदर्यीकरण कार्य में ताल का समतलीकरण, सफाई, बैठने की व्यवस्था, रोशनी, रास्ते, वृक्षारोपण और दुकानों का निर्माण शामिल होगा। गुरुवार को, कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत ने स्थल का निरीक्षण किया और कार्य की प्रगति का जायजा लिया। यह परियोजना 2025 तक पूरी होने की उम्मीद है।

कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत ने निरीक्षण के दौरान अधिकारियों को दिये निर्देश

पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा:

इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य सूखाताल को पर्यटकों के लिए एक आकर्षक स्थल में बदलना है। झील के आसपास का क्षेत्र सजाया जाएगा और बोटिंग, कैस्केड जैसी गतिविधियां पर्यटकों को लुभाएंगी। इसके अलावा, बहुमंजिला पार्किंग और दुकानों का निर्माण भी पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा।

स्थानीय लोगों को होगा फायदा:

इस परियोजना से स्थानीय लोगों को भी फायदा होगा। पर्यटन के बढ़ने से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। इसके अलावा, झील के आसपास विकसित होने वाले व्यवसायों से भी स्थानीय लोगों को आर्थिक लाभ होगा।

कार्य प्रगति पर:

इस परियोजना का जिम्मा कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) को सौंपा गया है। केएमवीएन के प्रबंध निदेशक डॉ. संदीप तिवारी ने बताया कि कार्य तेजी से चल रहा है और जल्द ही इसे पूरा कर लिया जाएगा।

सूखाताल को झील में बदलने की यह पहल नैनीताल के लिए एक महत्वपूर्ण विकास है। यह न केवल पर्यटन को बढ़ावा देगा बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगा।

गागरी गोल – जब गागरी में आये गोलू देवता और कहलाये गागरी गोल।

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गागरी गोल

बागेश्वर जिले के कत्यूरों की राजधानी कार्तिकेयपुर में स्थित है भगवान् गोलू देवता का पावन धाम है, जो गागरी गोल के नाम से प्रसिद्ध है। गरुड़ बागेश्वर में स्थित गोल्ज्यू के इस मंदिर के नाम पर इस क्षेत्र का नाम गागरी गोल (gagrigol bageshwar ) पड़ा है।

गागरी गोल के बारे में प्रचलित लोककथाएं ,जनश्रुतियां –

जैसा की हमको पता है कि बागेश्वर जिले में स्थित गागरी गोल नामक गांव का नाम  भगवान् गोल्ज्यू के मंदिर के नाम से पड़ा है। कहते हैं गोल्ज्यू ( गोलू देवता ) यहाँ गागर ( तांबे का पानी भरने का बर्तन ) में आये और यहाँ स्थापित कर दिए गए तबसे गोलू देवता और इस क्षेत्र का नाम गागरीगोल पड़ गया। गोलू देवता के गरुड़ बागेश्वर आने के पीछे बहुत सारी लोककथाएं , जनश्रुतियां प्रचलित हैं ,उनमे से कुछ ल कथाओं को बारी -बारी से जानने के कोशिश करते हैं।

पहली कथा इस प्रकार है की चंद राजाओं के सेनापति पुरुषोत्तम पंत गागर में गोल्ज्यू की मूर्ति लेकर गढ़वाल की की तरफ जा रहे थे। कहते हैं कि वे यहाँ पर विश्राम के लिए रुके और विश्राम के बाद जब जाने लगे तो गागर उनसे नहीं हिली। तब गोल्ज्यू को गागर सहित यहीं स्थापित कर दिया गया। और भगवान् गोल्ज्यू यहाँ बन गए गागरी गोलू।

गागरी गोल

ऐसी ही मिलती जुलती कहनियाँ और प्रचलित हैं ,जिनमे लोगो का मानना कि जब चंद राजा चम्पावत से अल्मोड़ा शिफ्ट हो रहे थे ,तो वे अपने पुरे साजो सामान के साथ अपने इष्ट गोल्ज्यू को गगरी में रख कर इस रस्ते से आ रहे थे। तब यहाँ विश्राम करने के बाद गागर यहीं जम गई। ईष्ट देव से काफी प्रार्थना करने के बाद ईष्ट देव गोल्ज्यू ने पस्वा में अवतार लेकर बताया कि उन्हें  यह स्थान अच्छा लग गया है ,आप लोग जाओ मै यहाँ से आगे नहीं जाऊंगा। तब चंद राजाओं ने गोलू देवता की स्थापना करके साथ में चल रहे जोशी परिवारों में से एक दो परिवारों को गोल्ज्यू की सेवा के लिए छोड़ दिया।

इसके अलावा एक कहानी इस प्रकार है कि मटेना गांव के जोशी की गाय यहाँ नियमित झाड़ियों में दुग्धदान करती थी। एक दिन उसके मालिक ने छुप कर ये सब देख लिया। उन्होंने दुग्ध विसर्जन वाली जगह पर खोद कर देखा तो वहां गगरी के अंदर गोलू देवता की मूर्ति थी। और उस गाय का दूध सीधे गोल्ज्यू के सर पर अर्पित हो रहा था। उस घटना के बाद वहां गोल्ज्यू के देवालय की स्थापना की गई जो अब गागरी गोल के नाम से प्रसिद्ध है। मटेना के जोशी लोग यहाँ के पुजारी हैं।  गोल्ज्यू को क्षेत्रवासी नए फसल की नवाई चढ़ाते है। यहाँ विषुवत संक्रांति और महाशिवरात्रि के अवसर पर मेले का आयोजन होता है।

गागरी गोल (gagrigol bageshwar ) के बारे में मान्यता है कि यहाँ गोलू देवता अपने भक्तो की मनोकामना तुरंत पूर्ण करते हैं। स्थानीय भाषा में कहा जाय तो एक दम तात्काळ पर्चे देते हैं यहाँ गोलू देवता।

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घात डालना – पहाड़ में न्याय के लिए देव द्वार में गुहार लगाना।

उदयपुर गोलू देवता मंदिर | तुरंत न्याय के लिए प्रसिद्ध हैं उदयपुर के गोलू देवता

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उत्तराखंड मौसम अपडेट: 15 जुलाई तक अनेक स्थानों में बारिश की आशंका।

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उत्तराखंड मौसम अपडेट: 15 जुलाई तक अनेक स्थानों में बारिश की आशंका।

उत्तराखंड मौसम अपडेट: मौसम विज्ञान के देहरादून केंद्र ने आज के अपडेट में बताया है की अगले 15 जुलाई तक अधितम इलाकों में बारिश की संभावना हैं। हम आप को अगले 15 जुलाई तक होने वाली बारिश की पूरी जानकारी दे रहे हैं। किस दिन किन जिलों में कितनी बारिश होगी यह सारी जानकारी मौसम विज्ञान के देहरादून केंद्र ने जारी कर दी हैं।

दिनांक 12 जुलाई को देहरादून, हरिद्वार, टिहरी, पौड़ी, उधम सिंह नगर, नैनीताल और चंपावत के अधिकांश इलाकों में बारिश की संभावना हैं। और उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, और बागेश्वर के अनेक स्थानो में बारिश हो सकती हैं।
दिनांक 13 जुलाई को देहरादून, हरिद्वार, पौड़ी, उधम सिंह नगर, नैनीताल और चंपावत के अधिकांश इलाकों में बारिश की संभावना हैं। और उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, और बागेश्वर के अनेक स्थानो में बारिश हो सकती हैं।
दिनांक 14 जुलाई को देहरादून, पौड़ी, उधम सिंह नगर, नैनीताल, और चंपावत के अधिकांश इलाकों में बारिश की संभावना हैं। और हरिद्वार, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, और बागेश्वर के अनेक स्थानो में बारिश हो सकती हैं।
दिनांक 15 जुलाई को देहरादून, पौड़ी, नैनीताल के अधिकांश इलाकों में बारिश की संभावना हैं। और हरिद्वार, टिहरी, उधम सिंह नगर, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, चंपावत, और बागेश्वर के अनेक स्थानो में बारिश हो सकती हैं। साथ ही उत्तरकाशी, चमोली, और रुद्रप्रयाग के कुछ स्थानो में बारिश हो सकती हैं।

उत्तराखंड के लोक पर्व हरेला की फोटो और हरेला पर्व की शुभकानाएं !

जी रया जागी रया कुमाऊनी आशीष गीत लिरिक्स | jee raya jagi raya lyrics

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jee raya jagi raya

जी रया जागी रया ( ji raya jagi raya ) –

उत्तराखंड के दोनों मंडल, कुमाऊँ मंडल और गढ़वाल मंडल में अनेकों प्रकार के लोक पर्व मनाए जाते हैं। दोनो क्षेत्रों में अपनी अपनी परम्पराओं के साथ बड़े हर्षोल्लासपूर्वक लोक पर्वों को मनाया जाता है। इसी प्रकार कुमाऊं मंडल में कई प्रमुख त्योहारों पर बुजुर्ग अपने से छोटो को, जी रया जागी रया कुमाउनी आशीष वचन देते हैं। इनको कुमाउनी आशीर्वचन भी कहा जाता है।

कुमाउनी आशीष वचन मुख्यतः चढ़ाने वाले त्यौहारों पर दिए जाते हैं। अर्थात जिन त्योहारों में किसी अंकुरित अनाज पर या सबूत अनाज की प्राण प्रतिष्ठा करके उसे अपने कुल देवताओं को चढ़ा कर, रिश्ते में अपने से छोटे लोगों को आशीष के रुप चढ़ाते हैं, उस समय ये कुमाउनी आशीर्वचन गाये जाते है। या आशीष वचन बोले जाते हैं।

ये पारम्परिक शुभकामनायें, हरेले के त्यौहार को हरेले के पत्ते चढ़ाते समय, दीपावली बग्वाल में चूड़े चढ़ाते समय और बसंत पंचमी उत्तराखंड , के त्योहार के दिन जौ चढ़ाते वक़्त गाये जाते हैं। ये मुख्यतः हरेला पर्व के गीत हैं।

जी रया जागी रया

जी रया जागी रया लिखित में ( ji raya jagi raya lyrics )-

लाग हरयाव , लाग दशे ,
लाग बगवाव ।
जी रये जागी रये,
यो दिन यो बार भेंटने रये।
दुब जस फैल जाए,
बेरी जस फली जाईये।
हिमाल में ह्युं छन तक,
गंगा ज्यूँ में पाणी छन तक,
यो दिन और यो मास
भेंटने रये।।
अगाश जस उच्च है जे ,
धरती जस चकोव है जे।
स्याव जसि बुद्धि है जो,
स्यू जस तराण है जो।
जी राये जागी राये।
यो दिन यो बार भेंटने राये।।

जी रया जागी रया
jee raya jagi raya lyrics in hindi

जी रया जागी रया का मतलब (ji raya jagi raya meaning )

जी रया जागी रया का अर्थ होता है ,हरेले के त्योहार की शुभकामनाएं, दशहरे की शुभकामनाएं। जीते रहो, सजग रहो। तुम्हारी लंबी उम्र हो। इस शुभ दिन पर हर वर्ष मुलाकात करते रहना। जैसी दूर्वा अपनी मजबूत पकड़ के साथ धरती में फैलती जाती है, वैसे आप भी सम्रद्ध होना। बेरी के पौधों की तरह आप भी विपरीत परिस्थितियों में भी फलित,और फुलित रहना। जब तक हिमालय में बर्फ रहेगी,और जब तक गंगा जी मे पानी रहेगा, अर्थात अन्तन वर्षो तक तुमसे मुलाकात होती रहे ,ऐसी कामना है ।

आप आसमान के बराबर ऊँचे हो जाओ , धरती के जैसे चौड़े हो जाओ। आपका बुद्धि चातुर्य सियार जैसा तीव्र हो। आपके शरीर मे चीते की जैसी ,ताकत और फुर्ती हो। आप सदा जीते रहे, खुश रहें और हमारी मुलाकात सदा यू ही होती रहें।

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उदयपुर गोलू देवता मंदिर | तुरंत न्याय के लिए प्रसिद्ध हैं उदयपुर के गोलू देवता

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उदयपुर गोलू देवता मंदिर

चंद राजाओ के बसाये कैड़ारो में स्थित एक ऊँचे पर्वत पर है गोलू देवता का चमत्कारी मंदिर उदयपुर गोलू देवता मंदिर। यहाँ गोल्ज्यू अपने दरबार में भक्तों के कष्ट हरते हैं ,और उन्हें सन्मार्ग की प्रेरणा देते हैं। कहते हैं भगवान् गोलू देवता यहाँ निसंतान दम्पतियों को संतान सुख भी देते हैं।

उदयपुर गोलू देवता मंदिर –

उदयपुर गोलू देवता मंदिर कैड़ारौ घाटी में स्थित एक उदयपुर नामक पर्वत पर स्थित है। द्वाराहाट सोमेश्वर मार्ग पर स्थित बिन्ता नामक गांव से लगभग 5 किलोमीटर की थका देने वाली चढ़ाई चढ़ने के बाद आता है भगवान् गोलू देवता का चमत्कारी मंदिर जिसे उदयपुर गोलू देवता मंदिर के नाम से जाना जाता है। और भगवान् गोल्ज्यू के दिव्य दर्शनों के बाद और वहा की रमणीय सुंदरता पांच किलोमीटर की चढ़ाई को भुला देते हैं। यहाँ के प्राकृतिक नज़ारे आपका मनमोह लेंंगे।

उदयपुर गोलू देवता मंदिर
उदयपुर गोलू देवता मंदिर

बलि प्रथा पर क्या थे गोल्ज्यू के विचार –

कहते हैं यहाँ स्वयं गोलू देवता अवतरित होकर लोगो को न्याय देते हैं। उनकी समस्याओं का समाधान करते हैं। यहाँ शीतकाल की नवरात्रियों में मेला लगता है। मनोकामना पूर्ण होने के बाद लोग अपनी मनौतियों के अनुसार भेंट चढ़ाते हैं। पहले यहाँ बलि प्रथा भी थी ,लेकिन 2006 -07 में बलि प्रथा पर उत्तराखंड हाईकोर्ट की रोक के बाद यहाँ बलि प्रथा बंद हो गई है।

जिस साल बलि प्रथा बंद हुई उस साल हम भी गोल्ज्यू के दर्शनों के लिए नवरात्री मेले में उदयपुर के गोलु देवता मंदिर गए थे। वहां जब गोलू देवता ने अपने दर्शन दिए ,और भक्तों ने अपनी समस्याएं गोल्ज्यू के सामने रखी ,और गोल्ज्यू ने उनके समाधान दिए। उस समय एक जागरूक व्यक्ति ने भगवान् गोलु देवता से हाईकोर्ट की बलि प्रथा बंद करने पर उनके विचार जानने चाहे। तब गोलू देवता केवल इतना कहा ,”मैं सच्चे मन से चढ़ाये गए  एक फूल से खुश हूँ। ” और गोलू देवता का इतना कहना था कि वहां मौजूद जनता ने गोल्ज्यू की जयकार से पूरा पर्वत गुंजायमान कर दिया।

चम्पावत गोरिलचौड़ से आये उदयपुर के गोलू देवता –

कहते हैं इन्हे यहाँ चंद राजाओं के सेनापति हरसिंह कैड़ा जी यहाँ लाये थे। उदयपुर गोलु देवता मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसे तत्कालीन राजा उदयचंद ने बनवाया था। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह चम्पावत गोरिलचौड़ का प्रतिरूप है। यहाँ गोलू देवता गढ़ी चम्पावत से  लाकर स्थापित किये गए हैं। इसलिए यहाँ के गोल्ज्यू मंदिर  को ज्यादा तत्काल और जल्दी फल देने वाला मंदिर कहा जाता है। कहते हैं यहाँ नेपाल के राजा द्वारा चढ़ाया ताम्रपत्र भी है। और यहाँ गोलू देवता जब अवतरित होते हैं तो उस समय उनके पश्वा नेपाली टोपी का प्रयोग करते हैं।

उदयपुर के गोलू देवता की यहाँ आने की कहानी  –

हर सिंह कैड़ा चंद राजाओं के वहां सेनापति थे। और गोल्ज्यू चंद राजाओं के सेनापति थे। कहते हैं एक बार राजा ने कैड़ा जी को कोई बड़ा कार्य जितने के लिए दिया था। कई लोग  इस कार्य को खेल प्रतियोगिता बताते हैं और कुछ युद्ध कहते हैं। तब हर सिंह कैड़ा गोल्ज्यू के पास गए उन्होंने गोल्ज्यू से कार्यसिद्धि की प्रार्थना की ,और गोल्ज्यू के आशीर्वाद से कैड़ा जी इस कठिन कार्य में सफल हो गई। उन्होंने भगवान् गोल्ज्यू के मंदिर में आकर उनका आभार व्यक्त किया ,पूजा भेंट चढ़ाई और उनके अनन्य भक्त बन गए।

कैड़ा जी की इस उपलब्धि से खुश होकर चंद राजा ने उन्हें कैड़ा पट्टी का सामंत या क्षेत्र प्रमुख बनाकर यहाँ भेज दिया और कहा की, ‘जाओ आप हमारे तरफ से अपनी कैड़ा पट्टी का राजकाज सम्हालो। ” जब कैड़ा जी यहाँ आने लगे तो उनका मन गोल्ज्यू से अलग होने के लिए राजी नहीं हुवा। उन्होंने मंदिर में जाकर गोल्ज्यू से कहा , हे इष्ट देवता तुमने मेरी इतनी सहायता की है ,अब मेरा मन आप में रम गया है। मैं आपके बिना कैसे रहूँगा ! ” कहते हैं तब गोलू देवता ने उनसे सपने में कहा कि मुझे भी अपने क्षेत्र अपने साथ लेकर चल। मै तेरी भक्ति से खुश हूँ और तेरे साथ आने को राजी हूँ।

कहते हैं उदयपुर के गोल्ज्यू को गोरिलचौड़ चम्पावत से चंद राजाओं के सेनापति श्रीमान हर सिंह कैड़ा जी यहाँ लेकर आये थे। जब सेनापति हरसिंह कैड़ा जी गोरिलचौड़ चम्पावत से पगड़ी पर लपेट ला रहे थे।

कहते हैं कि हरसिंह कैड़ा गोलू देवता की काष्ठ मूर्ती को अपनी पगडी में लपेटकर अपने घोड़े में रातों रात सवार होकर चम्पावत से तीन दिन तीन रात का सफ़र तय कर जब अपने गांव की सीमा से लगभग पांच मील दूर नागभूमि में पहुंचे तो उन्हें आराम करने की इच्छा हुई उन्होंने अपने घोड़े को वहीं एक शहतूत के पेड़ से बाँधा और वहीं एक उचित से स्थान पर पगड़ी भी रख दी जिसमें वह गोलज्यू की मूर्ति को लाये थे। थोड़ी देर आराम करने के बाद जब वह पगड़ी उठाने लगे तो पगड़ी उसी जगह जमीन में धंसने लगी।

 

 

उदयपुर गोलू देवता मंदिर
उदयपुर गोलू देवता मंदिर

काफी कोशिश के बाद भी जब उनसे पगड़ी उठाई नही गयी तब थक हार कर वह वहीं लेट गए। नींद आने के बाद उनके सपने में गोलू देवता आये और बोले, “मुझे कैड़ा गढ़ ले जाने का तेरा सपना तभी पूरा हो सकता है जब तू किसी परिवार में एक माँ से जन्में आठ पुत्रों को लेकर आएगा! मैं उन्ही के कंधों पर तेरे कैड़ा गढ़ जाऊँगा। ”

तब हर सिंह कैडा अल्मियाँ गॉव गए जहाँ उन्हें आठ भाई अल्मियाँ मिले और उन्ही के कंधों पर सवार गोलू देवता की मूर्ती कैडा गढ़ के उस सुरम्य स्थान पहुंची जिसे बिन्ता-उदयपुर के नाम से जाना जाता है। जबकि लोद नामक उस स्थान पर आज भी वह गड्डा निर्मित है, जहाँ वह पगड़ी जमीन में धंस गई थी। वहां आज भी पूजा होती है। कहते हैं उदयपुर के गोलू देवता आज भी प्रत्यक्ष और तुरंत न्याय देते हैं। निःसन्तानो के लिए तो यह मंदिर किसी तीर्थ से कम नहीं है।

कैसे पहुंचे –

यहाँ पहुंचने के लिए मार्ग बहुत आसान है। आपको कुमाऊं के द्वार हल्द्वानी आना है वहां से रानीखेत के लिए गाड़ी आसानी मिल जाती है। कई गाड़ियां तो बिन्ता तक भी मिल जाती है। बिन्ता से लगभग पांच किलोमीटर की ट्रेकिंग है ,जो एकदम ऊंचाई वाला मार्ग है। उसके बाद दर्शन होते हैं उदयपुर के गोलू देवता के ,और उनके इस मंदिर परिसर की प्राकृतिक सुंदरता देखते बनती है। यहाँ का आद्यात्मिक वातावरण और प्राकृतिक सुंदरता सारी थकान भुला कर मन में नई स्फूर्ति भर देती है।

यहाँ आप गढ़वाल क्षेत्र से भी आ सकते हैं। कर्णप्रयाग से द्वाराहाट और द्वाराहाट से सोमेश्वर वाले मार्ग पर पड़ता है बिन्ता फिर वहां से चढ़ाई चढ़नी होती है।

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घात डालना – पहाड़ में न्याय के लिए देव द्वार में गुहार लगाना।

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घात डालना – पहाड़ में न्याय के लिए देव द्वार में गुहार लगाना।

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घात डालना

घात डालना –

वैसे तो घात लगाने का सामान्य अर्थ होता है, ‘शिकायत, चुगली करना अथवा किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध में कही गयी बात को पीछे से उस तक पहुंचा देना। किन्तु एक वाक्यांश के रूप में इसके साथ प्रयुक्त किये जाने वाले क्रियांश ‘डालना’ से इसका अर्थ बदल जाता है

अर्थात् इसका अर्थ होगा ‘किसी व्यक्ति के द्वारा किये गये अन्याय के विरुद्ध न्याय की याचना करने तथा अन्यायी को दण्डित किये जाने के लिए किसी न्याय के देवता के दरबार में जाकर गुहार लगाना।’ गढ़वाल में सामान्यतः घात डालने के प्रक्रिया के लिए पीड़ित व्यक्ति देवता के स्थान में जाकर वहां पर किसी पत्थर पर हाथ मारकर या पल्या या पत्थर मारकर रोष भरे स्वर में देवता के अन्यायी व्यक्ति के विनाश की गुहार लगाता है।

कुमाऊंनी में ‘घात’ का अर्थ होता है ‘शिकायत करना ‘किन्तु कुमाऊं के महिला वर्ग में घात डालने के संदर्भ में यह भी देखा जाता है कि पीड़ित महिला अभिप्रेत देवस्थल में जाकर दीप जलाकर जोर से अत्याचारी व्यक्ति का नाम पुकारकर मुट्ठी भर चावल देवता की मूर्ति पर फेंकती है और उल्टी हथेली से अपने माथे को पीटकर अत्याचारी को दण्डित किये जाने का अनुरोध करती है। कामना पूरी होने पर देवता को अपेक्षित भेंट चढ़ाई जाती है।

उत्तराखंड के जनसामान्य में देवी-देवताओं के प्रति गहन आस्था के कारण जब किसी असहाय निर्दोष व्यक्ति को अधिक सताया जाता है, या उसके साथ अत्याचार किया जाता है तो प्रतिकार कर पाने में असमर्थ ऐसा व्यक्ति चावल, उड़द एवं एक भेंट लेकर अपने इष्टदेवता अथवा गोलू जैसे किसी शक्तिशाली सर्वमान्य न्याय के देवता के मंदिर में जाकर उसे अपनी व्यथा गाथा सुनाकर तथा वहां पर उड़द-चावल डालकर जोर-जोर से पुकारकर अन्यायी को दण्डित किये जाने की गुहार लगाता है।

घात डालना - पहाड़ में न्याय के लिए देव द्वार में गुहार लगाना।

अथवा पीड़ित व्यक्ति देवता विशेष के मंदिर में दीप जलाकर अन्यायी व्यक्ति का जोर-जोर से नामोच्चारण करके मुट्ठी भर चावल जोर से मूर्ति की ओर फेंकता है और उल्टी हथेली से अपना कपाल पीटता है और अभिप्रेत की सिद्धि होने पर देवता को पूजा के साथ अजबलि चढ़ाता है। अब उत्तराखंड के माननीय हाईकोर्ट ने बलि प्रथा ब्नद कर दी है।

लोगों का विश्वास है कि देवता उनकी गुहार सुनकर अपराधी को अनेक रूपों में धन-जन अथवा पशुधन की हानि पहुंचाना प्रारम्भ कर देता है। इस सम्बन्ध में ऐसी भी परम्परा थी कि यदि कोई व्यक्ति न्यायालय में मुकदमा नहीं चला सकता था अथवा हार जाता था तो वह अपने किसी ग्राम देवता के देवालय में एक त्रिशूल गाड़कर देवता को दोषी का नाश करने के लिए ललकारता था। भारी संख्या में ऐसे त्रिशूल अभी देवलगढ़ तथा अन्य देवालयों में देखे जाते हैं।

नोटयह पोस्ट घात डालना उत्तराखंड की मान्यताएं और परम्पराओं को समर्पित है। इस पोस्ट को उत्तराखंड ज्ञानकोष किताब और स्थानीय  स्तर पर मान्य मान्यताओं के आधार पर लिखा गया है। पोस्ट संकलनकर्ता का उद्देश्य इस पोस्ट में केवल पहाड़ी जनजीवन में प्रचलित परम्पराओं व् मान्यताओं के बारे में बताना है। 

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