Monday, April 28, 2025
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किच्छा की गरिमा ने हाईस्कूल में लहराया परचम, हासिल की 19वीं रैंक

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किच्छा की गरिमा ने हाईस्कूल में लहराया परचम, हासिल की 19वीं रैंक

किच्छा। सरस्वती शिशु मंदिर की छात्रा उत्तरांचल कॉलोनी निवासी गरिमा ने हाल ही में संपन्न हुई हाईस्कूल की परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए 95.2 प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं। अपनी शानदार सफलता के साथ गरिमा ने प्रदेश स्तर पर 19वीं रैंक हासिल कर न केवल अपने विद्यालय बल्कि पूरे क्षेत्र को गौरवान्वित किया है।

गरिमा ने अपनी इस महत्वपूर्ण उपलब्धि का श्रेय अपने गुरुजनों के मार्गदर्शन और अपने माता-पिता के निरंतर सहयोग को दिया है। उन्होंने बताया कि विद्यालय के अलावा वह घर पर भी नियमित रूप से पढ़ाई करती थीं। अपनी भविष्य की योजनाओं के बारे में बताते हुए गरिमा ने कहा कि उनका सपना एक सफल इंजीनियर बनने का है और वह इसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।

गरिमा के पिता, भगत सिंह, सिडकुल की एक प्रतिष्ठित कंपनी में कार्यरत हैं। अपनी बेटी की इस शानदार सफलता पर उन्होंने खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि गरिमा ने अपनी मेहनत और लगन से यह मुकाम हासिल किया है।

किच्छा की गरिमा ने हाईस्कूल में की 19वीं रैंक हासिल
किच्छा की गरिमा ने हाईस्कूल में की 19वीं रैंक हासिल

अपनी सफलता का मंत्र साझा करते हुए गरिमा ने अन्य छात्रों को सलाह दी कि सफलता प्राप्त करने के लिए स्कूल के समय के अतिरिक्त घर पर भी लगातार मेहनत करना अत्यंत आवश्यक है।

यह भी पढ़े : उर्वशी देवी मंदिर, बद्रीनाथ: उत्तराखंड का एक पौराणिक और आध्यात्मिक स्थल | Urvashi devi Temple Badrinath Uttarakhand

गरिमा की इस असाधारण उपलब्धि से उनके विद्यालय, सरस्वती शिशु मंदिर, में जश्न का माहौल है। शिक्षक और सहपाठी उनकी इस सफलता पर बेहद खुश हैं और उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं दे रहे हैं। गरिमा की यह सफलता निश्चित रूप से अन्य छात्रों के लिए भी प्रेरणास्रोत बनेगी।

उर्वशी देवी मंदिर, बद्रीनाथ: उत्तराखंड का एक पौराणिक और आध्यात्मिक स्थल | Urvashi devi Temple Badrinath Uttarakhand

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उर्वशी देवी मंदिर

उर्वशी देवी मंदिर (Urvashi devi Temple Badrinath Uttarakhand ) : उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ धाम के निकट बामणी गांव में, पवित्र अलकनंदा नदी के तट पर बसा एक प्राचीन और पौराणिक मंदिर है। यह मंदिर हिंदू पौराणिक कथाओं की अप्सरा उर्वशी को समर्पित है, जिन्हें सुंदरता और दिव्यता का प्रतीक माना जाता है। यह मंदिर न केवल अपनी धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अपनी सादगी भरी वास्तुकला और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

उर्वशी देवी मंदिर का पौराणिक महत्व और कथाएं :

उर्वशी देवी मंदिर का संबंध हिंदू पौराणिक कथाओं और बद्रीनाथ धाम की आध्यात्मिक परंपराओं से गहराई से जुड़ा है। स्थानीय मान्यताओं और पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, उर्वशी एक दिव्य अप्सरा थीं, जिनका जन्म भगवान विष्णु की तपस्या के दौरान हुआ था। एक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु बदरीनाथ क्षेत्र में तपस्या करने के लिए अवतरित हुए, तो देवराज इंद्र चिंतित हो उठे। उन्हें भय हुआ कि कहीं नारायण उनके स्वर्गराज्य का पद न छीन लें। अपने राजसिंहासन की रक्षा के लिए इंद्र ने एक चाल चली — उन्होंने स्वर्ग की सुंदर अप्सराओं को भेजा, ताकि वे नारायण का ध्यान भटका सकें।

किन्तु नारायण अडिग थे। उनका मन स्थिर था, साधना में लीन। अप्सराएं अपनी सुंदरता के साथ भी उन्हें विचलित नहीं कर सकीं। यह देखकर नारायण मुस्कराए। उन्होंने एक कमल लिया और उसे अपनी बायीं जांघ पर स्पर्श किया। उसी क्षण वहां से एक दिव्य स्त्री प्रकट हुई — सौंदर्य, तेज और गरिमा की मूर्ति — उर्वशी।

उर्वशी को देखकर स्वर्ग की अप्सराएं लज्जित हो उठीं। इंद्र भी समझ गए कि नारायण का मार्ग कोई सांसारिक मोह नहीं डिगा सकता। भगवान नारायण ने स्पष्ट किया कि वे केवल आध्यात्मिक साधना के लिए तप कर रहे हैं, न कि किसी राजपद की इच्छा लिए।

उर्वशी को नारायण की जांघ से उत्पन्न होने के कारण यह दिव्य नाम मिला — उर्वशी (उरु = जांघ)। आज भी चमोली जनपद के बामणी गांव , बदरीनाथ धाम के समीप स्थित एक छोटे से मंदिर में देवी उर्वशी की पूजा होती है। अलकनंदा के किनारे, नारायण पर्वत और नीलकंठ की गोद में स्थित यह मंदिर पौराणिक आस्था का एक अद्भुत प्रतीक है — जहाँ भक्त आज भी देवी उर्वशी के रूप में नारायण की सृजन शक्ति का दर्शन करते हैं।

इसके अतिरिक्त, कुछ स्थानीय कथाएं मंदिर को भगवान शिव से भी जोड़ती हैं। कहा जाता है कि उर्वशी ने इस क्षेत्र में कुछ समय बिताया और उनकी तपस्या और भक्ति के कारण यह मंदिर उनकी स्मृति में स्थापित हुआ। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान यहां धार्मिक आयोजन और पूजा-अर्चना में भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

मंदिर की वास्तुकला :

उर्वशी देवी मंदिर( Urvashi devi Temple Badrinath Uttarakhand ) की वास्तुकला उत्तर भारत की पारंपरिक नागर शैली पर आधारित है, जो सादगी और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। मंदिर का ढांचा अन्य हिंदू मंदिरों की तरह सरल और कार्यात्मक है, जिसमें जटिल नक्काशी या भव्य सजावट का अभाव है। मंदिर के आसपास का शांत वातावरण और हिमालय की पृष्ठभूमि इसे ध्यान और पूजा के लिए आदर्श बनाती है।

स्थान और पहुंच :

उर्वशी देवी मंदिर बद्रीनाथ धाम से लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी पर बामणी गांव में स्थित है। यह मंदिर अलकनंदा नदी के तट पर और हिमालय की गोद में बसा है, जो इसे एक रमणीय और पवित्र स्थल बनाता है। बद्रीनाथ धाम, जो भगवान विष्णु को समर्पित चार धामों में से एक है, समुद्र तल से 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। उर्वशी मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालु बद्रीनाथ मंदिर के दर्शन के बाद पैदल या स्थानीय साधनों का उपयोग कर सकते हैं।

पहुंचने के साधन:

  1. सड़क मार्ग: बद्रीनाथ धाम तक सड़क मार्ग अच्छी तरह से विकसित है। ऋषिकेश (लगभग 297 किमी), हरिद्वार (320 किमी), और देहरादून (340 किमी) से नियमित बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं। बद्रीनाथ पहुंचने के बाद, बामणी गांव तक पैदल या स्थानीय वाहनों से जाया जा सकता है।
  2. हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट, देहरादून (लगभग 317 किमी) है। यहां से टैक्सी या बस द्वारा बद्रीनाथ पहुंचा जा सकता है।
  3. रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश (लगभग 297 किमी) है। यहां से सड़क मार्ग द्वारा बद्रीनाथ की यात्रा की जा सकती है।

यात्रा का सर्वोत्तम समय:

मंदिर और बद्रीनाथ धाम अप्रैल के अंत से नवंबर की शुरुआत तक खुला रहता है, क्योंकि शीतकाल में भारी बर्फबारी के कारण यह क्षेत्र दुर्गम हो जाता है। मई से जून और सितंबर से अक्टूबर का समय यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त है, जब मौसम सुहावना और यात्रा सुरक्षित रहती है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:–

उर्वशी देवी मंदिर स्थानीय समुदाय और बद्रीनाथ धाम के तीर्थयात्रियों के लिए विशेष महत्व रखता है। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक आयोजन होते हैं, जिसमें बामणी और आसपास के गांवों के लोग उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। मंदिर को भगवान शिव और विष्णु की परंपराओं से जोड़ा जाता है, जो इसे वैष्णव और शैव दोनों संप्रदायों के लिए महत्वपूर्ण बनाता है।
मंदिर का संबंध बद्रीनाथ धाम की आध्यात्मिक विरासत से भी है। बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु की शालिग्राम मूर्ति के साथ नर-नारायण, कुबेर, उद्धव, और श्रीदेवी-भूदेवी की पूजा होती है। उर्वशी मंदिर इस क्षेत्र की पौराणिक कथाओं को पूरक बनाता है, जो इसे एक समग्र तीर्थ यात्रा का हिस्सा बनाता है।

हाल का विवाद :–

हाल ही में, बॉलीवुड अभिनेत्री उर्वशी रौतेला ने एक साक्षात्कार में दावा किया था कि बद्रीनाथ के पास स्थित उर्वशी मंदिर उनके नाम पर है। इस बयान ने स्थानीय पुजारियों और समुदाय में विवाद को जन्म दिया। बद्रीनाथ धाम के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने स्पष्ट किया कि यह मंदिर पौराणिक अप्सरा उर्वशी या देवी सती को समर्पित है और इसका अभिनेत्री से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने इसे धार्मिक भावनाओं का अपमान बताते हुए उर्वशी रौतेला के दावे को भ्रामक करार दिया।

रोचक तथ्य :–

प्राकृतिक सौंदर्य: मंदिर के पास ऋषिगंगा का झरना और अलकनंदा नदी का किनारा इसे एक रमणीय स्थल बनाता है, जो प्रकृति प्रेमियों के लिए भी आकर्षक है।

  • शक्तिपीठ की मान्यता: मंदिर को 108 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जो इसे शक्ति उपासकों के लिए विशेष बनाता है।
  • सादगी भरी पूजा: मंदिर में पूजा-अर्चना की प्रक्रिया सरल और पारंपरिक है, जो स्थानीय संस्कृति को दर्शाती है।
  • बद्रीनाथ यात्रा का हिस्सा: बद्रीनाथ धाम के दर्शन के बाद श्रद्धालु अक्सर उर्वशी मंदिर की यात्रा करते हैं, जिससे यह चार धाम यात्रा का एक पूरक हिस्सा बन जाता है।

निष्कर्ष :–

उर्वशी देवी मंदिर, बद्रीनाथ के निकट एक ऐसा आध्यात्मिक स्थल है, जो पौराणिक कथाओं, प्राकृतिक सौंदर्य, और धार्मिक महत्व का अनूठा संगम प्रस्तुत करता है। यह मंदिर न केवल अप्सरा उर्वशी की दिव्यता को समर्पित है, बल्कि हिंदू धर्म की शक्तिपीठ परंपरा और बद्रीनाथ धाम की आध्यात्मिक विरासत को भी संजोए हुए है। बद्रीनाथ यात्रा के दौरान इस मंदिर के दर्शन न केवल धार्मिक अनुभव प्रदान करते हैं, बल्कि हिमालय की शांति और प्राकृतिक सौंदर्य का भी आनंद दिलाते हैं। यदि आप बद्रीनाथ धाम की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो उर्वशी देवी मंदिर को अपनी सूची में अवश्य शामिल करें।

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  1. फ्यूंलानारायण मंदिर – देश का एकमात्र मंदिर जहाँ महिला पुजारी ही करती है भगवान् नारायण का शृंगार।
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संदर्भ:

  • Webdunia Hindi, Badrinath Dham
  • News18 Hindi, Urvashi Rautela Temple Claim
  • News18 Hindi, Chamoli Urvashi Temple
  • Times Now Hindi, Urvashi Temple Badrinath
  • Chamoli District Website
  • Jagran, Urvashi Rautela Temple Controversy

चारधाम यात्रा 2025 को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग की व्यापक तैयारी

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चारधाम यात्रा 2025 को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग की व्यापक तैयारी

चारधाम यात्रा 2025: मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के स्पष्ट निर्देशों के अनुपालन में, स्वास्थ्य विभाग चारधाम यात्रा को इस वर्ष सुगम, सुरक्षित और व्यवस्थित रूप से संपन्न कराने के लिए पूरी तत्परता से कार्य कर रहा है। श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसी भी अप्रिय स्थिति से प्रभावी ढंग से निपटने के उद्देश्य से, विभाग डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मचारियों को गहन प्रशिक्षण प्रदान कर रहा है। इस क्रम में, श्रीनगर मेडिकल कॉलेज और दून मेडिकल कॉलेज में विशेष प्रशिक्षण शिविर सफलतापूर्वक आयोजित किए जा चुके हैं।

स्वास्थ्य सचिव डॉ. आर. राजेश कुमार ने इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि प्रशिक्षण कार्यक्रम विशेष रूप से उच्च हिमालयी क्षेत्रों की विशिष्ट चुनौतियों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इसके अंतर्गत डॉक्टरों और मेडिकल टीमों को उन संभावित स्वास्थ्य समस्याओं, प्राकृतिक आपदाओं और सीमित संसाधनों की परिस्थितियों में भी तत्काल और प्रभावी आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक तकनीकी ज्ञान और कौशल का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रशिक्षित मेडिकल टीमों को शीघ्र ही यात्रा मार्गों और विभिन्न पड़ावों पर तैनात कर दिया जाएगा, ताकि आवश्यकता पड़ने पर श्रद्धालुओं को त्वरित चिकित्सा सहायता उपलब्ध हो सके।

डॉ. राजेश कुमार ने तीर्थयात्रियों द्वारा उच्च ऊंचाई पर अनुभव की जा सकने वाली विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि हाई एल्टीट्यूड पर सांस लेने में कठिनाई, शरीर में ऑक्सीजन की कमी, रक्तचाप में असामान्य उतार-चढ़ाव, पैरों में छाले और अन्य संबंधित परेशानियां आम हो सकती हैं। इन परिस्थितियों में डॉक्टरों के पास तुरंत और सही उपचार शुरू करने का व्यावहारिक अनुभव होना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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स्वास्थ्य सचिव ने आगे जानकारी दी कि श्रीनगर और दून मेडिकल कॉलेज में आयोजित प्रशिक्षण शिविर विशेष रूप से चारधाम यात्रा मार्ग पर अपनी सेवाएं देने वाले मेडिकल ऑफिसर्स के लिए केंद्रित थे। इन शिविरों में एक्यूट माउंटेन सिकनेस (AMS), हाई एल्टीट्यूड पल्मोनरी एडिमा (HAPE) और हाई एल्टीट्यूड सेरेब्रल एडिमा (HACE) जैसी गंभीर बीमारियों के साथ-साथ सांस फूलने की स्थिति, दौरे पड़ना, गैस्ट्रोएंटेराइटिस, उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी आपात स्थितियां और स्ट्रोक के मामलों को कुशलतापूर्वक संभालने का गहन प्रशिक्षण दिया गया।

डॉ. आर. राजेश कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि इन बीमारियों की समय पर पहचान और उचित उपचार से कई कीमती जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रम में मरीजों को एयर एम्बुलेंस तक सुरक्षित रूप से पहुंचाने की प्रक्रिया, आवश्यक दवाओं का प्रभावी प्रबंधन और आवश्यकतानुसार समय पर रेफरल की सुव्यवस्थित प्रक्रिया जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।

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हाल ही में राजकीय दून मेडिकल कॉलेज के अत्याधुनिक स्किल सेंटर में चिकित्सा अधिकारियों के लिए पहला क्लिनिकल स्किल आधारित प्रशिक्षण शिविर सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस शिविर में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (CHC) और जिला अस्पतालों में अपनी सेवाएं दे रहे मेडिकल ऑफिसर्स ने सक्रिय रूप से भाग लिया। इस विशेष प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य इन चिकित्सा अधिकारियों को उच्च हिमालयी क्षेत्रों में आने वाली अनूठी चुनौतियों और वहां होने वाली विभिन्न बीमारियों के प्रभावी निदान और उपचार में और अधिक कुशल बनाना है।

स्वास्थ्य विभाग की यह व्यापक तैयारी चारधाम यात्रा को सभी श्रद्धालुओं के लिए एक सुरक्षित और सुखद अनुभव बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

थौलू: गढ़वाल के पश्चिमी क्षेत्रों का जीवंत लोकोत्सव

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थौलू

परिचय

उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। गढ़वाल के पश्चिमी क्षेत्रों, विशेष रूप से रवांई-जौनपुर और जौनसार-बावर में, थौलू उत्सव एक ऐसा लोकोत्सव है जो स्थानीय परंपराओं, आस्था, और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। यह उत्सव वैशाख और ज्येष्ठ मास की विशेष तिथियों पर आयोजित किया जाता है और इसका नाम “थल” (देवस्थल) से प्रेरित है। थौलू न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सामाजिक मेलमिलाप, लोकगीत, लोकनृत्य, और स्थानीय व्यापार का भी अवसर प्रदान करता है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम थौलु (thoulu)  के इतिहास, महत्व, प्रमुख आयोजनों, और सांस्कृतिक विशेषताओं को विस्तार से जानेंगे।

थौलू का अर्थ और उत्पत्ति –

“थौलू” शब्द की व्युत्पत्ति “थल” से मानी जाती है, जिसका अर्थ है देवस्थल या देवता का पवित्र स्थान। यह एक दिवसीय उत्सव है, जो परंपरागत आस्था के अनुसार किसी विशेष प्रयोजन या मनौती की पूर्ति के लिए आयोजित किया जाता है। जब कोई व्यक्ति या समुदाय अपनी मनौती (जैसे रोग मुक्ति, अच्छी फसल, या आपदा से सुरक्षा) पूरी होने पर देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है, तो वह देवस्थल पर पूजा-अर्चना और उत्सव का आयोजन करता है, जिसे थौलू कहते हैं।
यह आयोजन गाँव की पंचायत और ज्योतिषी द्वारा निर्धारित तिथियों पर होता है।

साथ ही, देवता के माध्यम (पस्वा) से भी पूछा जाता है कि थौलू का आयोजन किस दिन और कैसे किया जाए। कभी-कभी अन्य देवता भी इसके लिए निर्देश दे सकते हैं। थौलू का आयोजन न केवल व्यक्तिगत आस्था, बल्कि सामुदायिक समस्याओं जैसे अतिवृष्टि, अनावृष्टि, कीट-पतंगों (चूहे, टिड्डी, तोते) से फसल नुकसान, या राजा के अत्याचारों से मुक्ति के लिए भी किया जाता है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण:

थौलु का आयोजन वैशाख और ज्येष्ठ मास में होता है, जो सूर्य के मेष और वृषभ राशि में गोचर के समय है। यह समय ऊर्जा, नवीकरण, और आध्यात्मिक विकास के लिए अनुकूल माना जाता है।

प्रमुख थौलु और उनके स्थान –

गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों में कई प्रसिद्ध थौलु आयोजित होते हैं, जो अपनी अनूठी परंपराओं और स्थानीय महत्व के लिए जाने जाते हैं। कुछ उल्लेखनीय थौलू निम्नलिखित हैं:

  1. मदननेगी का थौलू:
    स्थान: दयारा, पुरानी टिहरी के सामने।
    तिथि: 8 गते वैशाख।
    विशेषता: यह थौलू पहले दयारा में आयोजित होता था, लेकिन अब टिहरी बाँध में डूब चुका है। यह स्थानीय समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजन था।
  2. पिलखी का थौलू:
    स्थान: टिहरी से घनशाली की ओर, लगभग 35-36 किमी।
    तिथि: 2 गते वैशाख।
    विशेषता: यह थौलू अपनी जीवंतता और लोकनृत्यों के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें स्थानीय युवा उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं।
  3. हुलाण खाल का थौलू :
    स्थान: हडिया गाँव के पास, पट्टी हिन्दाऊ।
    विशेषता: यह आयोजन सामुदायिक एकता और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
  4. नरसिंह का थौलू:
    स्थान: गौरिया गाँव के पास, टिहरी से 20-22 किमी, पट्टी नैलचामी।
    विशेषता: नरसिंह देवता को समर्पित यह थौलू स्थानीय आस्था का केंद्र है।
  5. नागरजा का थौलू:
    स्थान: मुयालगाँव, नागर्जाधार।
    तिथि: 5 गते वैशाख।
    विशेषता: नागरजा देवता की पूजा और लोकगीत इस आयोजन की शोभा बढ़ाते हैं।

इन थौलुओं का आयोजन हर 2-3 वर्ष में होता है, और गाँव की पंचायत द्वारा तिथि की घोषणा आसपास के गाँवों में की जाती है, जिससे यह एक क्षेत्रीय लोकोत्सव का रूप ले लेता है।

थौलु का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व –

थौलू केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह गढ़वाल की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का एक अभिन्न अंग है। इसके प्रमुख पहलू निम्नलिखित हैं:

लोकगीत और लोकनृत्य:

थौलू के दौरान युवा और बुजुर्ग स्थानीय लोकगीत गाते हैं और पारंपरिक नृत्य करते हैं। ये नृत्य, जैसे झोड़ा और छपेली, गढ़वाली संस्कृति की जीवंतता को दर्शाते हैं।
उदाहरण के लिए, पिलखी का थौलू अपने उत्साहपूर्ण नृत्य प्रदर्शनों के लिए जाना जाता है।

सामुदायिक मेलमिलाप :

थौलू आसपास के गाँवों के लोगों को एक मंच पर लाता है। यह सामाजिक बंधनों को मजबूत करता है और समुदाय में एकता को बढ़ावा देता है।
यह आयोजन रिश्तों को नवीनीकृत करने और नए संबंध बनाने का अवसर प्रदान करता है।

स्थानीय व्यापार :

थौलू के साथ आयोजित मेले में दुकानदार घरेलू सामान, हस्तशिल्प, और खाद्य पदार्थ बेचते हैं। महिलाएँ और बच्चे श्रृंगार प्रसाधन और छोटी-मोटी वस्तुएँ खरीदने का आनंद लेते हैं।
यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है और कारीगरों को अपनी कला प्रदर्शित करने का मौका देता है।

मनोरंजन और हर्षोल्लास:

थौलू बच्चों, महिलाओं, और बुजुर्गों के लिए मनोरंजन का स्रोत है। मेले में झूले, पारंपरिक खेल, और खानपान की दुकानें उत्सव का माहौल बनाती हैं। यह आयोजन तनावमुक्त और आनंदमय अनुभव प्रदान करता है।

आध्यात्मिकता और आस्था:

थौलू स्थानीय देवताओं (जैसे नागरजा, नरसिंह) के प्रति आस्था का प्रतीक है। यह आयोजन मनौती की पूर्ति और सामुदायिक समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है।
उदाहरण के लिए, नागरजा का थौलू प्रकृति और समृद्धि के लिए प्रार्थना का अवसर है।

थौलु का आयोजन और प्रक्रिया –

थौलु का आयोजन एक सुनियोजित और सामुदायिक प्रक्रिया है, जिसमें निम्नलिखित चरण शामिल हैं:

  • तिथि निर्धारण: गाँव की पंचायत और ज्योतिषी मिलकर वैशाख या ज्येष्ठ मास की शुभ तिथि चुनते हैं। देवता के माध्यम (पस्वा) से भी सलाह ली जाती है।
  • घोषणा: तिथि तय होने के बाद, पंचायत आसपास के गाँवों को सूचित करती है। यह संदेश पारंपरिक रूप से या डुगडुगी बजाकर दिया जाता है।
  • पूजा-अर्चना: आयोजन के दिन, देवस्थल पर विशेष पूजा होती है। भक्त फूल, प्रसाद, और अन्य सामग्री अर्पित करते हैं।
  • मेला और उत्सव: पूजा के बाद, मेला शुरू होता है, जिसमें लोकनृत्य, गीत, और व्यापारिक गतिविधियाँ शामिल होती हैं।
  • सामुदायिक भागीदारी: पूरा गाँव और आसपास के क्षेत्र के लोग उत्सव में शामिल होते हैं, जिससे यह एक लोकोत्सव बन जाता है।

चुनौतियाँ और विवाद –

हालांकि यह उत्सव ( thoulu ) सामान्य रूप से हर्षोल्लास का अवसर होता है, कभी-कभी सामाजिक तनाव या गाँवों के बीच मनमुटाव के कारण विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए: विभिन्न दलों के बीच बाहुबल का प्रदर्शन या पुरानी कुंठाएँ आक्रोश का रूप ले सकती हैं। ऐसी घटनाएँ दुर्लभ हैं, और आयोजक सामुदायिक शांति बनाए रखने के लिए प्रयास करते हैं।

उत्तराखंड की संस्कृति में योगदान-

यह उत्सव गढ़वाल की सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल आध्यात्मिकता को बढ़ावा देता है, बल्कि स्थानीय परंपराओं को जीवित रखता है। उत्तराखंड के अन्य लोकोत्सवों, जैसे उत्तरायणी और बिखोती, की तरह यह उत्सव भी सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है। यह युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने और लोककथाओं, गीतों, और नृत्यों को संरक्षित करने का अवसर देता है।

निष्कर्ष-

थौलू गढ़वाल के पश्चिमी क्षेत्रों का एक अनूठा लोकोत्सव है, जो आध्यात्मिकता, सांस्कृतिक समृद्धि, और सामुदायिक एकता का प्रतीक है। वैशाख और ज्येष्ठ मास में आयोजित यह उत्सव लोकगीत, नृत्य, और मेले के माध्यम से स्थानीय परंपराओं को जीवित रखता है। पिलखी, नागरजा, और नरसिंह जैसे थौलू स्थानीय आस्था और सामाजिक मेलमिलाप के केंद्र हैं। devbhoomidarshan.in जैसे मंचों के लिए, थौलू जैसे आयोजन उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को दुनिया तक पहुँचाने का अवसर प्रदान करते हैं। यदि आप उत्तराखंड की इस जीवंत परंपरा का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो अपनी यात्रा की योजना बनाएँ और इस हर्षोल्लास के साक्षी बनें।

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सिलक्यारा टनल: आस्था और इंजीनियरिंग का अद्भुत संगम, बाबा बौखनाग को समर्पित

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सिलक्यारा टनल: आस्था और इंजीनियरिंग का अद्भुत संगम, बाबा बौखनाग को समर्पित

सिलक्यारा टनल, उत्तरकाशी: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज सिलक्यारा टनल के ब्रेकथ्रू कार्यक्रम में हिस्सा लिया। यह वही सुरंग है जहाँ पिछले साल 41 श्रमिक 17 दिनों तक फंसे रहे थे, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व में चलाए गए सफल बचाव अभियान के बाद सुरक्षित निकाला गया था। इस अवसर पर मुख्यमंत्री धामी ने परियोजना से जुड़े इंजीनियरों, तकनीकी विशेषज्ञों और श्रमिकों को बधाई देते हुए कहा कि यह ऐतिहासिक क्षण उन्नत इंजीनियरिंग की सफलता और अटूट आस्था का प्रतीक है। उन्होंने पिछले साल के बचाव अभियान को दुनिया का सबसे जटिल और लंबा ऑपरेशन बताते हुए मानवता और टीम वर्क की मिसाल कायम करने वाले सभी लोगों का आभार व्यक्त किया।

लगभग 1384 करोड़ रुपये की लागत से बनी 4.531 किलोमीटर लंबी डबल लेन की यह सुरंग चारधाम यात्रा के लिए एक महत्वपूर्ण परियोजना है। इसके बनने से गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के बीच की दूरी 25 किलोमीटर तक कम हो जाएगी, जिससे तीर्थयात्रियों को सुविधा और समय की बचत होगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस परियोजना से क्षेत्र में व्यापार, पर्यटन और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।

मुख्यमंत्री धामी ने एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कहा कि सिलक्यारा टनल को अब बाबा बौखनाग के नाम से जाना जाएगा। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने सुरंग में फंसे श्रमिकों की सुरक्षित वापसी के लिए बाबा बौखनाग मंदिर में मन्नत मांगी थी और मंदिर निर्माण का संकल्प लिया था। आज उन्होंने मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में भी भाग लिया।

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इसके अतिरिक्त, मुख्यमंत्री ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र गेंवला-ब्रह्मखाल को सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में উন্নীত करने, बौखनाग टिब्बा को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने और स्यालना के पास एक हेलीपैड बनाने की भी घोषणा की।

इस कार्यक्रम में केंद्रीय राज्य मंत्री अजय टम्टा, विधायक सुरेश चौहान, दुर्गेश्वर लाल, संजय डोभाल, एन.एच.आई.डी.सी.एल के प्रबंध निदेशक डॉ. कृष्ण कुमार, जिलाधिकारी उत्तरकाशी डॉ. मेहरबान सिंह बिष्ट, एसपी सरिता डोभाल और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि सिलक्यारा अभियान पर पूरी दुनिया की नजरें थीं और केंद्र सरकार के सहयोग से इस चुनौतीपूर्ण कार्य को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया। उन्होंने सुरंग में फंसे मजदूरों के धैर्य की भी सराहना की, जिससे बचाव दल का हौसला बना रहा।

मुख्यमंत्री धामी ने कर्णप्रयाग बैसाखी मेले को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया, विकास की कई घोषणाएं कीं

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मुख्यमंत्री धामी ने कर्णप्रयाग बैसाखी मेले को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया, विकास की कई घोषणाएं कीं

देहरादून/कर्णप्रयाग: मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने आज मुख्यमंत्री कार्यालय, देहरादून से वर्चुअल माध्यम से कर्णप्रयाग (चमोली) में आयोजित बैसाखी धार्मिक पर्यटन, सांस्कृतिक एवं विकास मेला-2025 को संबोधित किया। मुख्यमंत्री ने बैसाखी पर्व और डॉ. भीमराव आंबेडकर जयंती की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि मेले हमारे समाज को जोड़ने और लोक कलाकारों को मंच प्रदान करने का महत्वपूर्ण माध्यम हैं।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री धामी ने कर्णप्रयाग क्षेत्र के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं कीं। उन्होंने कर्णप्रयाग में सरस्वती शिशु मन्दिर से बाजार की ओर पिण्डर नदी पर बाढ़ सुरक्षात्मक कार्य करवाने, बाजार के समीप एक पार्किंग का निर्माण, नंदा देवी राजजात को देखते हुए कनखुल टैक्सी स्टैण्ड के समीप बहुमंजिला पार्किंग का निर्माण, और शिमली में मोटर पुल के समीप पार्किंग का निर्माण किए जाने की घोषणा की। इसके अतिरिक्त, उन्होंने राजकीय इंटर कॉलेज से सांकरीसेरा, पलेठी एवं पाडली तक सड़क निर्माण की भी घोषणा की।

मुख्यमंत्री ने कहा कि वे स्वयं इस विशिष्ट मेले में उपस्थित होना चाहते थे, लेकिन शासकीय व्यस्तताओं के कारण वर्चुअल माध्यम से जुड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के मेले क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ-साथ प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को संजोने का कार्य करते हैं। उन्होंने आपदा पीड़ित परिवारों के साथ राज्य सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि उनके पुनर्वास के लिए अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए गए हैं।

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मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के विकास के लिए किए जा रहे कार्यों को विस्तार से बताया। उन्होंने चार धाम सड़क परियोजना, विभिन्न पर्वतीय नगरों को हेली सेवा से जोड़ने, सरकारी हेली एंबुलेंस की शुरुआत और शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और पेयजल से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को तेजी से आगे बढ़ाने का उल्लेख किया। उन्होंने ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन परियोजना को पहाड़ों में रेल पहुंचाने का सपना साकार करने वाली बताते हुए कहा कि इससे कर्णप्रयाग सहित पूरे क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं बढ़ेंगी।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार विकास कार्यों के साथ-साथ प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की दिशा में भी कार्य कर रही है। केदारनाथ धाम में करोड़ों की लागत से पुनर्विकास कार्य और बदरीनाथ धाम में ₹424 करोड़ की लागत से मास्टर प्लान के अंतर्गत विकास कार्य करवाए जा रहे हैं। बाबा केदारनाथ धाम और हेमकुंट साहेब के लिए रोप-वे निर्माण की स्वीकृति भी भारत सरकार से मिल गई है।

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मुख्यमंत्री ने अगले वर्ष कर्णप्रयाग के नौटी गांव से प्रारंभ होने वाली मां नंदा देवी की राजजात का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य सरकार इसकी तैयारियों में अभी से जुट गई है और इस बार की राजजात को और अधिक भव्य और दिव्य रूप में मनाया जाएगा। उन्होंने पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोकने और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए संचालित योजनाओं, जैसे एक जनपद-दो उत्पाद योजना और लखपति दीदी योजना का भी जिक्र किया, जिनके माध्यम से प्रदेश की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं और पर्यटन व कृषि क्षेत्र में नई संभावनाएं खुल रही हैं।

जाख देवता : दहकते अंगारों के बीच नृत्य करने वाले उत्तराखंड के चमत्कारी देवता | जाख मेला 2025

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जाख देवता

देवभूमि दर्शन में आपका स्वागत है! आज हम उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में स्थित जाख देवता (Jakh Devta Uttarakhand) के बारे में विस्तार से जानेंगे, जो इस क्षेत्र की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, और लोक परंपराओं का एक अनुपम प्रतीक है। जाख देवता की पूजा गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में सदियों से चली आ रही है, और इनके मंदिरों में आयोजित होने वाले मेले (जाख मेला) भक्तों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।

जाख देवता: एक परिचय

जाख देवता उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल, विशेष रूप से टिहरी जनपद के जौनपुर विकासखंड में सबसे अधिक पूजनीय देवताओं में से एक हैं। इनके प्रमुख मंदिर जौनपुर के कांडा गांव में स्थित हैं, जिसे “कांडा जाख” के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को क्षेत्र की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का केंद्र माना जाता है, हालांकि इसके मूल आधार के बारे में लोग पूरी तरह अनभिज्ञ हैं, जिसके कारण कई जनश्रुतियाँ और कथाएँ प्रचलित हैं। जाख देवता की पूजा में यक्षों (प्राचीन हिमालयी देवताओं) का महत्वपूर्ण स्थान है, और यह परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है।

वर्ष में एक बार वैशाखी के अवसर पर कांडा जाख मंदिर में भव्य मेला (थौलू) आयोजित होता है, जिसमें जाख देवता को पारंपरिक ढंग से नचाया जाता है। यह उत्सव न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि क्षेत्र की एकता और सांस्कृतिक विविधता को भी दर्शाता है।

जाख देवता का इतिहास: पौराणिक और सांस्कृतिक जड़ें –

जाख देवता का इतिहास – हिमालयी क्षेत्रों की प्राचीन यक्ष पूजा से जुड़ा है। पौराणिक और बौद्ध साहित्य में यक्षों का उल्लेख मिलता है, जो प्रकृति और मानव जीवन के संरक्षक माने जाते थे। कुछ विद्वानों का मानना है कि जाख देवता शिव के एक रूप हैं, जैसा कि एक प्राचीन स्तोत्र में वर्णित है:-

यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै यकाराय नमः शिवाय ॥

इसका अर्थ है कि शिव को यक्ष रूप में पूजा जाता है, जो जाख देवता की उत्पत्ति को शिव से जोड़ता है। गढ़वाल मंडल में यक्ष पूजा की परंपरा कुमाऊं की तुलना में अधिक प्रचलित है, विशेष रूप से चमोली जनपद में, जहां बदरीनाथ-केदारनाथ के बाद जाख देवता की मान्यता सर्वोच्च है।

चमोली के विभिन्न गांवों जैसे कुजा, डुमक, उरगम, कण्डाली, और नारायणकोटी में जाख देवता के मंदिर स्थापित हैं। डुमक गांव के जाख देवता को रुद्रनाथ (शिव) का मंत्री माना जाता है, जबकि तपोण गांव में यह देवता स्वयं अपने मंदिर से बाहर निकलता है। जनश्रुति है कि एक पशुचारक के बोझे में लिंग रूप में यह देवता आया और स्वप्न में प्राप्त आदेश पर स्थापित किया गया। इस तरह, जाख देवता की उत्पत्ति और प्रसिद्धि प्राचीन काल से चली आ रही है।

 जाख मेला: एक अनूठी परंपरा –

जाख मेला (Jakh Mela Uttarakhand) जाख देवता की पूजा का सबसे बड़ा उत्सव है, जो वैशाखी के दौरान आयोजित होता है। यह मेला गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है, जो क्षेत्रीय एकता और विविधता को दर्शाता है। शुरू में, कांडा, लगडासू, और कोल्टी गांवों में सामूहिक रूप से थौलू (मेला) आयोजित होता था, जिसमें जाख देवता का डोला इन तीनों गांवों में घुमाया जाता था। लेकिन एक पारस्परिक विवाद के बाद अब यह अलग-अलग दिनों में होता है:

  • लगडासू: 13 अप्रैल
  • कांडा: 14 अप्रैल
  • कोल्टी: 15 अप्रैल

2025 में भी यह मेला इन तिथियों के आसपास आयोजित होने की संभावना है, जो भक्तों और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण होगा। मेले में जाख देवता को नचाने की परंपरा सदियों पुरानी है, जिसमें पश्वा (देवता के अवतरण वाला व्यक्ति) चमत्कारी शक्तियों का प्रदर्शन करता है।

 रुद्रप्रयाग का जाख मेला –

रुद्रप्रयाग के गुप्तकाशी क्षेत्र में देवशाल गांव में स्थित जाख देवता मंदिर में बैशाख मास, कृष्ण पक्ष, नवमी तिथि को भव्य जाख मेला आयोजित होता है। यह मेला चौदह गांवों के लोगों द्वारा संयुक्त रूप से मनाया जाता है। मेले की तैयारी दो दिन पहले शुरू हो जाती है, जब ग्रामीण भक्ति भाव से लकड़ियाँ, पूजा सामग्री, और खाद्य सामग्री एकत्र करते हैं। एक विशाल अग्निकुंड बनाया जाता है, जिसमें लगभग 100 कुंतल लकड़ियाँ डाली जाती हैं, जो 10 फुट ऊंचा ढेर बनाती हैं।

वैशाखी की रात को अग्निकुंड में आग प्रज्वलित की जाती है, और रात भर नारायणकोटि और कोठेड़ा के ग्रामीण इसकी देखभाल करते हैं। अगले दिन दोपहर में जाख देवता का पश्वा मंदाकिनी नदी में स्नान करता है और ढोल-दमऊ की मधुर धुनों के साथ नारायणकोटि, कोठेड़ा, और देवशाल से होकर जाख धार पहुँचता है। वहाँ, पश्वा अग्निकुंड में नंगे पाँव नृत्य करता है, जो एक चमत्कारी दृश्य प्रस्तुत करता है। इस अग्नि स्नान के बाद पश्वा शीतल जल से स्नान करता है और भक्तों को पुष्प वितरित करता है। मेले का समापन अग्निकुंड की भभूत को प्रसाद के रूप में लेने के साथ होता है।

जाख देवता की चमत्कारी शक्तियाँ –

जाख देवता को चमत्कारी शक्तियों का भंडार माना जाता है, जो उनकी पूजा को और भी रोचक बनाता है। चमोली के तपोण गांव में, हर 6-7 वर्षों में जाख देवता का पश्वा मंदिर से बाहर निकलता है, और पुजारी मुंह पर कपड़ा बांधकर अपवित्रता से बचते हैं। इसी तरह, नारायणकोटि में पश्वा नौ महीने की यात्रा पर निकलता है, और ग्रामीण लाठियाँ लेकर उसे अगले गांव तक ले जाते हैं।

एक अन्य आश्चर्यजनक परंपरा में, विषुवत संक्रांति के उत्सव से पाँच दिन पहले सौ लोग वृक्षों को काटकर अंगार एकत्र करते हैं। उत्सव के दिन पश्वा इन जलते हुए अंगारों पर नृत्य करता है, और उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसी तरह, भटवाड़ी के रथैल में यक्षिणी देवी सहजा के जागर में पश्वा खौलते तेल से पकौड़े निकालता है, बिना किसी क्षति के। ये चमत्कार भक्तों की श्रद्धा को बढ़ाते हैं।

 अन्य पूजास्थल और परंपराएँ –

चमोली जनपद के अलावा, जाख देवता के मंदिर नारायणकोटि, कोठेड़ा, और जखधार में भी हैं। कोठेड़ा के मंदिर में ध्यानमुद्रा में पुरुषाकार मूर्ति स्थापित है, और यहाँ सौर संक्रांति, अमावस्या, मंगलवार, और शनिवार को विशेष पूजा होती है। पूजा में पीला चंदन, पीला अक्षत, रोट, और सफेद बकरे की बलि दी जाती है। नारायणकोटि के जाख देवता को पीली वस्तुएं प्रिय हैं, और इनकी यात्रा में ग्रामीणों का सहयोग अनिवार्य है।

 जाख देवता की सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता –

जाख देवता की पूजा न केवल धार्मिक विश्वास का हिस्सा है, बल्कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करती है। यह उत्सव ग्रामीण समुदायों को एकजुट करता है और पर्यटन को बढ़ावा देता है। अग्नि पर नृत्य और चमत्कारी शक्तियों की परंपराएँ इस क्षेत्र की अनूठी धरोहर हैं।

2025 में, वैशाखी (13-15 अप्रैल) के दौरान होने वाला जाख मेला पर्यटन विभाग द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है। इस दौरान विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रमों और सुरक्षा व्यवस्थाओं की योजना है, जो भक्तों और पर्यटकों के लिए सुविधाजनक होगी।

जाख मेला 2025: क्या अपेक्षा करें-

9 अप्रैल 2025 को वैशाखी की शुरुआत के साथ जाख मेला की तैयारियाँ जोरों पर होंगी। कांडा, लगडासू, और कोल्टी में अलग-अलग तिथियों पर होने वाले मेले में हजारों भक्त और पर्यटक भाग लेंगे। रुद्रप्रयाग के देवशाल में अग्निकुंड का निर्माण और पश्वा का नृत्य मुख्य आकर्षण होंगे। द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय कला को बढ़ावा देने के लिए विशेष पहल की जाएगी।

निष्कर्ष –

जाख देवता उत्तराखंड गढ़वाल की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक हैं। इनकी पूजा और जाख मेला न केवल धार्मिक आस्था का हिस्सा हैं, बल्कि पर्यटन और सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देते हैं। 2025 में होने वाला यह उत्सव भक्तों और पर्यटकों के लिए एक यादगार अनुभव होगा। क्या आप इस मेले में भाग लेने की योजना बना रहे हैं? अपनी राय कमेंट में साझा करें और जाख देवता की जानकारी के लिए हमारे ब्लॉग को फॉलो करें!

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उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए ठोस नीति जल्द: मुख्यमंत्री धामी

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उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण के लिए ठोस नीति जल्द: मुख्यमंत्री धामी

देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज मुख्य सेवक सदन में उपनल कर्मचारी महासंघ द्वारा आयोजित धन्यवाद एवं अभिनंदन समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर उपनल कर्मचारी महासंघ ने उपनल कर्मियों के नियमितीकरण के लिए एक ठोस नीति बनाने की घोषणा करने पर मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त किया। मुख्यमंत्री धामी ने इस अभिनंदन के लिए सभी उपनल कर्मचारियों को धन्यवाद देते हुए कहा कि वास्तव में इस सम्मान के हकदार प्रदेश की सवा करोड़ जनता है, जिन्होंने उन्हें राज्य की सेवा करने का अवसर प्रदान किया है। उन्होंने घोषणा की कि राज्य सरकार जल्द ही एक ठोस और प्रभावी नीति तैयार कर उपनल कर्मचारियों को नियमित करने की प्रक्रिया शुरू करेगी। यह प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से और निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरी की जाएगी। मुख्यमंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि इस नियमितीकरण से उपनल कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी और उनके आत्मसम्मान में वृद्धि होगी।

मुख्यमंत्री ने उपनल के अधिकारियों और कर्मचारियों की वर्षों की निष्ठा और ईमानदारी से किए गए कार्यों की सराहना की। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि धरने के दौरान उपनल कर्मचारियों पर दर्ज किए गए मुकदमों की समीक्षा की जाएगी।

एक पूर्व सैनिक के बेटे होने के नाते, मुख्यमंत्री ने पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों की समस्याओं और चुनौतियों को करीब से देखने की बात कही। उन्होंने दोहराया कि राज्य सरकार प्रदेश के सैनिकों, पूर्व सैनिकों और शहीदों के आश्रितों के कल्याण और उत्थान के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।

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मुख्यमंत्री ने उपनल कर्मचारियों को मिलने वाले प्रोत्साहन भत्ते का जिक्र करते हुए बताया कि अब यह राशि तीन महीने में एक बार की बजाय हर महीने दी जा रही है। इसके अतिरिक्त, सरकार 10 वर्ष से कम अनुभव वाले पूर्व सैनिकों को लगभग 5000 रुपये और 10 वर्ष से अधिक अनुभव वाले पूर्व सैनिकों को लगभग 6000 रुपये प्रति माह प्रोत्साहन भत्ता प्रदान कर रही है।

शहीदों के प्रति राज्य सरकार की संवेदनशीलता को व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री ने बताया कि शहीदों के आश्रितों को दी जाने वाली अनुग्रह राशि को 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 50 लाख रुपये कर दिया गया है। शहीद के परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने और सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने की समय सीमा को भी बढ़ाकर 5 वर्ष कर दिया गया है। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि हाल ही में परमवीर चक्र विजेताओं को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि को 50 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.5 करोड़ रुपये कर दिया गया है। प्रदेश के शहीदों की स्मृति में राजधानी देहरादून के गुनियाल गांव में एक भव्य सैन्य धाम का निर्माण कार्य प्रगति पर है।

मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य सरकार ने युद्धों और आंतरिक सुरक्षा कार्यों में शहीद हुए वीर सैनिकों की वीर नारियों और आश्रितों को उत्तराखण्ड शहीद कोष से एकमुश्त दस लाख रुपये का अनुदान, युद्ध में शहीद हुए बलिदानियों की वीरांगनाओं और युद्ध में घायल होकर दिव्यांग हुए सैनिकों को दो लाख रुपये की आवासीय सहायता, तथा सेवारत और पूर्व सैनिकों को 25 लाख रुपये मूल्य की स्थायी संपत्ति खरीदने पर स्टाम्प ड्यूटी में 25 प्रतिशत की छूट जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं।

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इस अवसर पर कैबिनेट मंत्री श्री गणेश जोशी, एम.डी. ब्रिगेडियर जे.एन बिष्ट, उपनल कर्मचारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष विनोद गोदियाल, महामंत्री विनय प्रसाद और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

19 अप्रैल को आएगा उत्तराखण्ड बोर्ड रिजल्ट 2025, जानें कैसे और कहां देखें परिणाम

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19 अप्रैल को आएगा उत्तराखण्ड बोर्ड रिजल्ट 2025, जानें कैसे और कहां देखें परिणाम

रामनगर: उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा परिषद (UBSE) ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट बोर्ड परीक्षा 2025 के परिणामों की घोषणा की बहुप्रतीक्षित तिथि की पुष्टि कर दी है। परिषद के सचिव विनोद प्रसाद सिमल्टी ने बताया कि बोर्ड परीक्षाओं के नतीजे आगामी 19 अप्रैल को सुबह 11 बजे घोषित किए जाएंगे। यह घोषणा छात्रों और अभिभावकों के लिए एक महत्वपूर्ण अपडेट है, जो अपने बच्चों के शैक्षणिक प्रदर्शन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।

इस वर्ष उत्तराखण्ड बोर्ड का परीक्षाफल पिछले वर्षों की तुलना में काफी तेजी से जारी किया जा रहा है। परिषद के अधिकारियों ने इस त्वरित प्रक्रिया के लिए परीक्षाओं के जल्द समापन और मूल्यांकन के बाद अंकों की ऑनलाइन फीडिंग को मुख्य कारण बताया है। बोर्ड परीक्षाएं इस वर्ष 21 फरवरी को शुरू हुई थीं और 11 मार्च को सफलतापूर्वक समाप्त हो गईं थीं। इसके तुरंत बाद, 21 मार्च से 4 अप्रैल तक उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन कार्य भी निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरा कर लिया गया।

इस वर्ष की बोर्ड परीक्षाओं में बड़ी संख्या में छात्रों ने हिस्सा लिया था। हाईस्कूल स्तर पर 1,13,688 और इंटरमीडिएट स्तर पर 1,09,699 परीक्षार्थियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी। इन सभी छात्रों के लिए 19 अप्रैल का दिन बेहद महत्वपूर्ण होने वाला है।

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परिणाम घोषित होने के बाद छात्रों को इसे देखने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना होगा। परिषद के सचिव विनोद प्रसाद सिमल्टी ने स्पष्ट किया है कि परिणाम की घोषणा के आधे घंटे के भीतर ही यह बोर्ड के आधिकारिक पोर्टल पर उपलब्ध हो जाएगा। छात्र अपना परिणाम उत्तराखण्ड बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट www.ubse.uk.gov.in पर जाकर देख सकते हैं। वेबसाइट पर परिणाम देखने की प्रक्रिया बेहद सरल है। छात्रों को वेबसाइट पर दिए गए लिंक पर क्लिक करना होगा और फिर अपना रोल नंबर व अन्य आवश्यक जानकारी दर्ज करनी होगी। इसके बाद वे अपना विस्तृत परिणाम देख और डाउनलोड कर सकेंगे।

उत्तराखण्ड बोर्ड द्वारा इस वर्ष इतनी जल्दी परिणाम घोषित करना छात्रों के लिए कई मायनों में फायदेमंद साबित होगा। इससे उन्हें उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के लिए आवेदन करने का पर्याप्त समय मिलेगा। साथ ही, जो छात्र अपने परिणामों से संतुष्ट नहीं होंगे, उन्हें पुनर्मूल्यांकन या अन्य संबंधित प्रक्रियाओं के लिए भी समय मिल सकेगा।

परिषद ने यह भी सुनिश्चित किया है कि परिणाम घोषित होने के दौरान वेबसाइट पर किसी भी प्रकार की तकनीकी समस्या न आए। इसके लिए सभी आवश्यक व्यवस्थाएं कर ली गई हैं ताकि छात्र बिना किसी परेशानी के अपना परिणाम देख सकें।

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कुल मिलाकर, उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा परिषद 19 अप्रैल को हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के परिणाम घोषित करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। इस वर्ष रिकॉर्ड समय में परिणाम जारी किया जा रहा है, जो परिषद की कार्यकुशलता और तकनीकी प्रगति का प्रमाण है। अब छात्रों को बस कुछ और दिनों का इंतजार करना होगा, जिसके बाद उन्हें अपनी मेहनत का फल मिल जाएगा।

उत्तराखंड समूह ग भर्ती अप्रैल 2025 | सहायक विकास अधिकारी | Apply Online

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उत्तराखंड समूह ग भर्ती अप्रैल 2025

उत्तराखंड समूह ग भर्ती अप्रैल 2025 : उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) ने सहकारी समितियों के अंतर्गत सहायक विकास अधिकारी (सेवो) एवं सहकारी निरीक्षक वर्ग-2 के पदों पर सीधी भर्ती के लिए नई विज्ञप्ति जारी की है। यह भर्ती उत्तराखंड के युवाओं के लिए सरकारी नौकरी पाने का एक सुनहरा अवसर है।

उत्तराखंड समूह ग भर्ती अप्रैल 2025 का संक्षिप्त विवरण:-

  • विज्ञापन संख्या:71/उ०अ०से०च०आ०/2025
  • विभाग: सहकारिता विभाग (सहकारी समितियाँ, उत्तराखंड)
  • पद का नाम: सहायक विकास अधिकारी (सेवो) / सहकारी निरीक्षक वर्ग-2
  • कुल पद: 45
  • वेतनमान:  ₹29,200 से ₹92,300 (लेवल-05)
  • भर्ती प्रक्रिया: सीधी भर्ती (लिखित परीक्षा के माध्यम से)

महत्वपूर्ण तिथियाँ (Important Dates):

घटनातिथि
विज्ञापन जारी11 अप्रैल, 2025
ऑनलाइन आवेदन शुरू16 अप्रैल, 2025
आवेदन की अंतिम तिथि16 मई, 2025
शुल्क संशोधन तिथि19 से 21 मई, 2025
संभावित लिखित परीक्षा31 अगस्त, 2025

पात्रता मापदंड (Eligibility Criteria):

शैक्षिक योग्यता:-

  1. भारत के किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से कला (अर्थशास्त्र) / वाणिज्य / कृषि में स्नातक डिग्री
  2. कंप्यूटर संचालन का प्राथमिक ज्ञान अनिवार्य
  3. वांछनीय योग्यता: M.Com / M.A (Economics) / M.Sc (Agriculture) डिग्रीधारी उम्मीदवारों को वरीयता मिल सकती है

आयु सीमा:

  • न्यूनतम: 21 वर्ष
  • अधिकतम: 42 वर्ष (01 जुलाई 2025 को आयु की गणना)

आरक्षण विवरण:-

भर्ती में उत्तराखंड राज्य के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति , अन्य पिछड़ा वर्ग , EWS, दिव्यांग जन व अन्य आरक्षित वर्गों के लिए पद आरक्षित किए गए हैं। अधिक जानकारी के लिए आधिकारिक विज्ञापन देखें।

चयन प्रक्रिया (Selection Process):-

  • लिखित परीक्षा : (Objective Type)
  • परीक्षा की संभावित तिथि 31 अगस्त, 2025 रखी गई है.

आवेदन प्रक्रिया (How to Apply):-

1. अभ्यर्थी [UKSSSC की आधिकारिक वेबसाइट](https://sssc.uk.gov.in) पर जाएं
2. 16 अप्रैल से 16 मई, 2025 के बीच ऑनलाइन आवेदन करें
3. आवेदन पत्र को सावधानीपूर्वक भरें और आवश्यक दस्तावेज़ अपलोड करें
4. शुल्क का भुगतान निर्धारित समय में करें

आवेदन शुल्क:

विज्ञापन में शुल्क सामान्य व् ओबीसी वर्ग के लिए 300 रुपया , और अन्य वर्गों के लिए 150 रुपया है।

 उपयोगी लिंक (Important Links):-

निष्कर्ष:-

उत्तराखंड राज्य के युवाओं के लिए यह एक बेहतरीन मौका है, खासकर उन अभ्यर्थियों के लिए जो सहकारिता क्षेत्र में कार्य करना चाहते हैं। अगर आप भी सरकारी सेवा में अपना करियर बनाना चाहते हैं, तो इस भर्ती के लिए जल्द से जल्द आवेदन करें।

नोट:अधिक जानकारी के लिए आयोग की वेबसाइट को नियमित रूप से चेक करें।