Monday, April 28, 2025
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उत्तराखंड समूह ग भर्ती अप्रैल 2025 | सहायक विकास अधिकारी | Apply Online

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उत्तराखंड समूह ग भर्ती अप्रैल 2025

उत्तराखंड समूह ग भर्ती अप्रैल 2025 : उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) ने सहकारी समितियों के अंतर्गत सहायक विकास अधिकारी (सेवो) एवं सहकारी निरीक्षक वर्ग-2 के पदों पर सीधी भर्ती के लिए नई विज्ञप्ति जारी की है। यह भर्ती उत्तराखंड के युवाओं के लिए सरकारी नौकरी पाने का एक सुनहरा अवसर है।

उत्तराखंड समूह ग भर्ती अप्रैल 2025 का संक्षिप्त विवरण:-

  • विज्ञापन संख्या:71/उ०अ०से०च०आ०/2025
  • विभाग: सहकारिता विभाग (सहकारी समितियाँ, उत्तराखंड)
  • पद का नाम: सहायक विकास अधिकारी (सेवो) / सहकारी निरीक्षक वर्ग-2
  • कुल पद: 45
  • वेतनमान:  ₹29,200 से ₹92,300 (लेवल-05)
  • भर्ती प्रक्रिया: सीधी भर्ती (लिखित परीक्षा के माध्यम से)

महत्वपूर्ण तिथियाँ (Important Dates):

घटनातिथि
विज्ञापन जारी11 अप्रैल, 2025
ऑनलाइन आवेदन शुरू16 अप्रैल, 2025
आवेदन की अंतिम तिथि16 मई, 2025
शुल्क संशोधन तिथि19 से 21 मई, 2025
संभावित लिखित परीक्षा31 अगस्त, 2025

पात्रता मापदंड (Eligibility Criteria):

शैक्षिक योग्यता:-

  1. भारत के किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से कला (अर्थशास्त्र) / वाणिज्य / कृषि में स्नातक डिग्री
  2. कंप्यूटर संचालन का प्राथमिक ज्ञान अनिवार्य
  3. वांछनीय योग्यता: M.Com / M.A (Economics) / M.Sc (Agriculture) डिग्रीधारी उम्मीदवारों को वरीयता मिल सकती है

आयु सीमा:

  • न्यूनतम: 21 वर्ष
  • अधिकतम: 42 वर्ष (01 जुलाई 2025 को आयु की गणना)

आरक्षण विवरण:-

भर्ती में उत्तराखंड राज्य के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति , अन्य पिछड़ा वर्ग , EWS, दिव्यांग जन व अन्य आरक्षित वर्गों के लिए पद आरक्षित किए गए हैं। अधिक जानकारी के लिए आधिकारिक विज्ञापन देखें।

चयन प्रक्रिया (Selection Process):-

  • लिखित परीक्षा : (Objective Type)
  • परीक्षा की संभावित तिथि 31 अगस्त, 2025 रखी गई है.

आवेदन प्रक्रिया (How to Apply):-

1. अभ्यर्थी [UKSSSC की आधिकारिक वेबसाइट](https://sssc.uk.gov.in) पर जाएं
2. 16 अप्रैल से 16 मई, 2025 के बीच ऑनलाइन आवेदन करें
3. आवेदन पत्र को सावधानीपूर्वक भरें और आवश्यक दस्तावेज़ अपलोड करें
4. शुल्क का भुगतान निर्धारित समय में करें

आवेदन शुल्क:

विज्ञापन में शुल्क सामान्य व् ओबीसी वर्ग के लिए 300 रुपया , और अन्य वर्गों के लिए 150 रुपया है।

 उपयोगी लिंक (Important Links):-

निष्कर्ष:-

उत्तराखंड राज्य के युवाओं के लिए यह एक बेहतरीन मौका है, खासकर उन अभ्यर्थियों के लिए जो सहकारिता क्षेत्र में कार्य करना चाहते हैं। अगर आप भी सरकारी सेवा में अपना करियर बनाना चाहते हैं, तो इस भर्ती के लिए जल्द से जल्द आवेदन करें।

नोट:अधिक जानकारी के लिए आयोग की वेबसाइट को नियमित रूप से चेक करें।

उत्तराखंड में जमीन की कीमतों में भारी उछाल की तैयारी, जानें इस वृद्धि के पीछे के कारण और प्रक्रिया

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उत्तराखंड में जमीन की कीमतों में भारी उछाल की तैयारी, जानें इस वृद्धि के पीछे के कारण और प्रक्रिया

देहरादून: उत्तराखंड में प्रॉपर्टी बाजार में जल्द ही एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। राज्य सरकार जमीन की सर्किल दरों में भारी वृद्धि करने की तैयारी में है, जिसका सीधा असर जमीन की कीमतों पर पड़ेगा। अनुमान है कि नई दरें लगभग 26 फीसदी तक बढ़ सकती हैं। यह वृद्धि ऐसे समय में होने जा रही है जब पहले से ही महंगाई आम आदमी की कमर तोड़ रही है। ऐसे में जमीन की कीमतों में यह उछाल आम लोगों के लिए घर खरीदना और भी मुश्किल बना सकता है। इस लेख में हम जानेंगे कि इस संभावित वृद्धि के पीछे क्या कारण हैं और सर्किल दरों को संशोधित करने की प्रक्रिया क्या होती है।

उत्तराखंड सरकार द्वारा सर्किल दरों को संशोधित करने का यह निर्णय नियमों के तहत लिया जा रहा है। दरअसल, नियमों में हर साल सर्किल दरों का पुनर्मूल्यांकन करने और उन्हें बाजार की मौजूदा कीमतों के अनुरूप बनाने का प्रावधान है। हालांकि, पिछले दो वर्षों से राज्य में यह प्रक्रिया लंबित थी। इसके पीछे कई कारण माने जा रहे हैं, जिनमें प्रशासनिक व्यस्तता और राजनीतिक परिस्थितियां प्रमुख हैं। वित्त विभाग ने पिछले वित्तीय वर्ष से ही नई दरों को निर्धारित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। इसके लिए राज्य के सभी जिलों के जिलाधिकारियों से उनके क्षेत्रों में जमीन की कीमतों को लेकर विस्तृत रिपोर्ट और प्रस्ताव मांगे गए थे। इन प्रस्तावों में जमीनों की मौजूदा बाजार दरें, पिछले कुछ वर्षों में हुई मूल्य वृद्धि और भविष्य में संभावित वृद्धि जैसे कारकों को शामिल किया गया था।

जिलाधिकारियों से मिले प्रस्तावों के आधार पर वित्त विभाग ने कई दौर की आंतरिक चर्चाएं कीं। इन चर्चाओं में विभिन्न प्रकार की जमीनों, जैसे कृषि भूमि, आवासीय भूमि और व्यावसायिक भूमि, के लिए अलग-अलग दरों को लेकर विचार-विमर्श किया गया। यह सुनिश्चित करने की कोशिश की गई कि नई दरें न तो इतनी अधिक हों कि आम आदमी के लिए जमीन खरीदना असंभव हो जाए और न ही इतनी कम हों कि सरकार को राजस्व का नुकसान हो। इस पूरी प्रक्रिया में आर्थिक विशेषज्ञों और राजस्व विभाग के अधिकारियों की भी राय ली गई।

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हालांकि, इस प्रक्रिया में देरी भी हुई। माना जाता है कि पिछले कुछ समय में राज्य में हुए विधानसभा के उपचुनाव और फिर निकाय चुनावों के कारण सरकार इस मुद्दे पर कोई बड़ा फैसला लेने से बच रही थी। सरकार शायद यह मानती थी कि चुनाव के दौरान सर्किल दरों में वृद्धि करने से जनता में नकारात्मक संदेश जा सकता है। लेकिन अब, जब चुनाव प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, तो वित्त विभाग इस लंबित कार्य को पूरा करने में जुट गया है।

सर्किल दरों में इस बार जो भारी वृद्धि संभावित है, उसके पीछे मुख्य रूप से दो कारण माने जा रहे हैं। पहला कारण है पिछले दो वर्षों से दरों में कोई संशोधन न होना। सामान्य तौर पर, राज्य की अर्थव्यवस्था की विकास दर, जिसे जीडीपी कहा जाता है, को ध्यान में रखते हुए हर साल लगभग आठ फीसदी की वृद्धि संभावित होती है। चूंकि पिछले दो वर्षों से यह वृद्धि नहीं हुई है, इसलिए इस बार सीधे 16 फीसदी की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। दूसरा महत्वपूर्ण कारण है महंगाई दर। पिछले दो वर्षों में देश में महंगाई भी काफी बढ़ी है, जिसका असर जमीन की कीमतों पर भी पड़ा है। अनुमान है कि महंगाई दर को ध्यान में रखते हुए लगभग पांच फीसदी की अतिरिक्त वृद्धि की जा सकती है। इस प्रकार, जीडीपी की संभावित वृद्धि और महंगाई दर को मिलाकर सर्किल दरों में कुल मिलाकर लगभग 26 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है।

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फिलहाल, वित्त विभाग ने अपना प्रस्ताव तैयार करके उच्च स्तर पर भेज दिया है। अब मुख्यमंत्री कार्यालय से इस प्रस्ताव पर अंतिम मुहर लगने का इंतजार है। माना जा रहा है कि अगले कुछ दिनों में सरकार इस पर अपना अनुमोदन दे देगी और उसके तुरंत बाद वित्त विभाग नई सर्किल दरों की आधिकारिक घोषणा कर देगा। इस घोषणा के बाद उत्तराखंड में जमीन की कीमतों में एक बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा, जिसका असर न केवल खरीदारों पर बल्कि विक्रेताओं और रियल एस्टेट डेवलपर्स पर भी पड़ सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस वृद्धि को किस प्रकार लागू करती है और इसका बाजार पर क्या दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।

बद्रीनाथ-केदारनाथ धाम में पूजा की ऑनलाइन बुकिंग शुरू

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बद्रीनाथ-केदारनाथ धाम में पूजा की ऑनलाइन बुकिंग शुरू
बद्रीनाथ-केदारनाथ धाम

देहरादून: आगामी यात्राकाल के लिए श्री बद्रीनाथ धाम और श्री केदारनाथ धाम में होने वाली विभिन्न पूजाओं की ऑनलाइन बुकिंग आज से शुरू हो गई है। श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (BKTC) ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट www.badrinath-kedarnath.gov.in पर यह सुविधा उपलब्ध करा दी है। बीकेटीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री विजय प्रसाद थपलियाल ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस वर्ष श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट 4 मई को खुलेंगे, जबकि श्री केदारनाथ धाम के कपाट 2 मई को खुलेंगे। उन्होंने बताया कि तीर्थयात्री मंदिर समिति की वेबसाइट के माध्यम से 30 जून तक की अवधि के लिए श्री बद्रीनाथ और श्री केदारनाथ धाम में होने वाली प्रातः कालीन, सायं कालीन और लंबी अवधि की पूजाओं की बुकिंग कर सकते हैं। श्री थपलियाल ने यह भी स्पष्ट किया कि इस वर्ष पूजा के शुल्क में कोई वृद्धि नहीं की गई है।

श्री बद्रीनाथ धाम में अभिषेक, महाभिषेक पूजा, वेदपाठ, गीता पाठ, विष्णुसहस्त्रनाम पूजा, चांदी आरती, स्वर्ण आरती, गीत गोविंद पाठ, शयन आरती आदि प्रमुख पूजाएं ऑनलाइन बुकिंग के लिए उपलब्ध हैं। वहीं, श्री केदारनाथ धाम में रुद्राभिषेक, लघु रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय पाठ, षोडशोपचार पूजा, सायं कालीन आरती आदि की बुकिंग की जा सकती है। ऑनलाइन पूजाओं के शुल्क की विस्तृत जानकारी मंदिर समिति की वेबसाइट पर उपलब्ध है।

बीकेटीसी के अनुसार, ऑनलाइन बुकिंग शुरू होते ही श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। वेबसाइट पर अभी तक कुल 93 पूजाएं ऑनलाइन बुक हो चुकी हैं। इनमें श्री बद्रीनाथ धाम के लिए 32 महाभिषेक और अभिषेक पूजाएं, जबकि श्री केदारनाथ धाम के लिए 61 षोडशोपचार पूजाएं शामिल हैं।

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इंटरनेट कार्डिनेटर श्री दीपेन्द्र रावत ने बताया कि श्री बद्रीनाथ धाम के लिए लगभग 30 प्रतिशत और श्री केदारनाथ धाम के लिए 20 प्रतिशत पूजाएं ऑनलाइन माध्यम से बुक हो रही हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले दिनों में ऑनलाइन बुकिंग का यह आंकड़ा और बढ़ेगा।

यह सुविधा उन तीर्थयात्रियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी होगी जो दूर-दराज से यात्रा करते हैं और मंदिर पहुंचने पर पूजा बुकिंग की असुविधा से बचना चाहते हैं। अब वे घर बैठे ही अपनी पसंदीदा पूजा बुक कर सकते हैं और अपनी यात्रा को और भी सुगम बना सकते हैं। इच्छुक तीर्थयात्री अधिक जानकारी और बुकिंग के लिए श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की आधिकारिक वेबसाइट www.badrinath-kedarnath.gov.in पर जा सकते हैं।

उत्तराखंड में 416 सरकारी नौकरियां: UKSSSC भर्ती 2025 का सुनहरा मौका !

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UKSSSC भर्ती 2025

UKSSSC भर्ती 2025 : उत्तराखंड में सरकारी नौकरी की चाह रखने वाले युवाओं के लिए बड़ी खुशखबरी है। उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UKSSSC) ने राज्य में समूह ग (Group C) के 416 रिक्त पदों पर भर्ती के लिए आधिकारिक विज्ञप्ति जारी की है। यह भर्ती अभियान राज्य के विभिन्न विभागों में युवाओं को रोजगार के नए अवसर प्रदान करेगा। ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया 15 अप्रैल 2025 से शुरू होगी और 15 मई 2025 तक चलेगी, जिसके बाद 18 से 20 मई 2025 तक आवेदन में संशोधन का अवसर दिया जाएगा। लिखित परीक्षा की तारीख 27 जुलाई 2025 निर्धारित की गई है।

UKSSSC भर्ती 2025 का विवरण: पदों और विभागों की जानकारी –

UKSSSC ने विभिन्न विभागों में 416 पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं, जो निम्नलिखित हैं:-

  1. राजभवन सचिवालय: सहायक समीक्षा अधिकारी – 3 पद
  2. उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग: वैयक्तिक सहायक – 3 पद
  3. महिला कल्याण विभाग: सहायक अधीक्षक – 5 पद
  4. राजस्व विभाग: राजस्व उप निरीक्षक (पटवारी) – 119 पद, राजस्व उप निरीक्षक (लेखपाल) – 61 पद
  5. ग्रामीण विकास विभाग: ग्राम विकास अधिकारी – 205 पद
  6. पंचायती राज विभाग: ग्राम पंचायत विकास अधिकारी – 16 पद
  7. उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद: स्वागती – 3 पद, सहायक स्वागती – 1 पद

ये पद राज्य सरकार के प्रमुख विभागों से संबंधित हैं, जो युवाओं को प्रशासनिक, विकास, और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में करियर बनाने का मौका देंगे।

आवेदन प्रक्रिया और महत्वपूर्ण तिथियाँ –

इच्छुक उम्मीदवार आधिकारिक वेबसाइट www.sssc.uk.gov.in पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। आवेदन की प्रारंभिक तारीख 15 अप्रैल 2025 है, जबकि अंतिम तारीख 15 मई 2025 रखी गई है। इसके बाद, 18 से 20 मई 2025 तक आवेदन में सुधार करने का मौका मिलेगा। लिखित परीक्षा 27 जुलाई 2025 को आयोजित की जाएगी, जिसके लिए उम्मीदवारों को पर्याप्त तैयारी का समय मिलेगा।

आयोग के सचिव एसएस रावत ने बताया कि आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह ऑनलाइन होगी, और उम्मीदवारों को वेबसाइट पर उपलब्ध दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा। आवेदन शुल्क सामान्य और ओबीसी वर्ग के लिए 300 रुपये तथा एससी, एसटी, ईडब्ल्यूएस, और दिव्यांग वर्ग के लिए 150 रुपये निर्धारित किया गया है। परीक्षा का सिलेबस भी विज्ञप्ति के साथ जारी किया गया है, जिसे वेबसाइट से डाउनलोड किया जा सकता है।

पात्रता मानदंड: आयु और शैक्षिक योग्यता –

इस भर्ती के लिए आयु सीमा 21 से 42 वर्ष के बीच रखी गई है, जिसमें सरकारी नियमों के अनुसार छूट लागू होगी। शैक्षिक योग्यता के लिए न्यूनतम स्नातक डिग्री आवश्यक है, हालांकि विभिन्न पदों के लिए विशिष्ट शर्तें लागू हो सकती हैं। उम्मीदवारों को सलाह दी जाती है कि वे वेबसाइट पर उपलब्ध विस्तृत विज्ञप्ति को ध्यान से पढ़ें और अपनी योग्यता की पुष्टि करें।

 समूह ग भर्ती 2025 : युवाओं के लिए रोजगार का अवसर –

उत्तराखंड सरकार ने रिक्त पदों को भरने के लिए लगातार प्रयास किए हैं, और इस बार समूह ग के 416 पदों पर भर्ती एक महत्वपूर्ण कदम है। राज्य में बेरोजगारी को कम करने और स्थानीय युवाओं को रोजगार प्रदान करने के उद्देश्य से यह भर्ती अभियान शुरू किया गया है। शासन स्तर पर अधिकारियों को दिशा-निर्देश दिए गए हैं, और विभिन्न विभागों ने आयोग को पदों की सूचना भेजी है। यह भर्ती न केवल रोजगार सृजन करेगी, बल्कि राज्य के प्रशासनिक ढांचे को मजबूत करने में भी योगदान देगी।

आवेदन कैसे करें: चरणबद्ध प्रक्रिया –

1. आधिकारिक वेबसाइट www.sssc.uk.gov.in पर जाएँ।
2. “ऑनलाइन आवेदन” लिंक पर क्लिक करें।
3. पंजीकरण के लिए अपना ईमेल आईडी और मोबाइल नंबर दर्ज करें।
4. लॉगिन क्रेडेंशियल्स प्राप्त करने के बाद फॉर्म भरें।
5. व्यक्तिगत, शैक्षिक, और अन्य आवश्यक विवरण दर्ज करें।
6. फोटो, हस्ताक्षर, और दस्तावेज अपलोड करें।
7. निर्धारित शुल्क ऑनलाइन भुगतान करें।
8. फॉर्म सबमिट करें और प्रिंटआउट सहेजें।

निष्कर्ष –

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की इस भर्ती के माध्यम से राज्य के युवाओं को सरकारी नौकरी का सुनहरा अवसर मिल रहा है। 416 पदों पर होने वाली यह भर्ती विभिन्न विभागों में करियर की संभावनाएँ खोलेगी। यदि आप इस अवसर का लाभ उठाना चाहते हैं, तो 15 अप्रैल 2025 से पहले अपनी तैयारी शुरू करें और समय रहते आवेदन जमा करें। अधिक जानकारी के लिए आधिकारिक वेबसाइट पर विजिट करें और इस मौके को हाथ से न जाने दें!

पढ़े : चैती मेला (Chaiti Mela) | उत्तराखंड का प्रसिद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का इतिहास और चैती मेला 2025 

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बिखौती त्यौहार और स्याल्दे बिखौती का मेला | Bikhoti festival 2025

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बिखौती त्यौहार

उत्तराखंड में अनेक लोक पर्व मनाए जाते हैं। अगल अलग मौसम में अलग अलग त्यौहार मनाए जाते हैं। इनमे से एक लोक पर्व बिखौती त्यौहार ( Bikhoti festival ) है। जिसे उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है। और प्रसिद्ध स्याल्दे बिखौती का मेला द्वाराहाट में मनाया जाता है।

बिखौती त्यौहार उत्तराखंड के लोक पर्व के रूप में मनाया जाता है। बिखौती त्योहार को ­विषुवत संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इसलिए इसे लोक भाषा में बिखौती त्यौहार कहा जाता है। प्रत्येक साल बैसाख माह के पहली तिथि को भगवान सूर्यदेव अपनी श्रेष्ठ राशी मेष राशी में विचरण करते हैं।इस स्थिति या संक्रांति को विषुवत संक्रांति या विशुवती त्योहार या उत्तराखंड की लोक भाषा कुमाऊनी में बिखोती त्योहार कहते हैं।

विषुवत संक्रांति को विष का निदान करने वाली संक्रांति भी कहा जाता है। कहा जाता है,इस दिन दान स्नान से खतरनाक से खतरनाक विष का निदान हो जाता है। विषुवत संक्रांति के दिन गंगा स्नान  का महत्व  बताया गया है। बिखौती का मतलब भी कुमाउनी में विष का निदान होता है। बिखौती त्यौहार ( Bikhoti festival ) को कुमाऊ के कुछ क्षेत्रों में बुढ़ त्यार भी कहा जाता है। बुढ़ त्यार का मतलब होता है, बूढ़ा त्यौहार ।

बिखौती त्यौहार को बुढ़ त्यार ( बूढ़ा त्यौहार ) क्यों कहते है –

गांव के बड़े बूढे लोग बताते हैं ,कि विषुवत संक्रांति के दिन बिखौती त्यौहार के बाद लगभग 3 माह के अंतराल बाद कोई त्योहार आता है। मतलब सूर्य भगवान के उत्तरायण स्थिति में यह अंतिम त्यौहार होता है। इसके 3 माह बाद पहाड़ में हरेला त्योहार आता है। हरेला त्योहार सूर्य भगवान कि दक्षिणायन वाली स्थिति में पड़ता है। अपनी सीरीज का अंतिम त्यौहार होने की वजह से इसे कुमाऊँ के कुछ हिस्सों मे बुढ़ त्यार या बुढ़ा त्यौहार भी कहते हैं।

लोक पर्व बिखोती के दिन क्या करते है

लोक पर्व बिखौती के दिन नई फसलों का भोग अपने देवी देवताओं को लगाते हैंं। पूरी पकवान बनाये जाते हैं। पहाड़ो में संवत्सर प्रतिपदा के दिन कुल पुरोहित आकर सबको संवत्सर सुनाते हैं। अर्थात सारे साल भर का राशिफल बता कर जाते हैं। इसमे देश दुनिया के राशिफल के साथ व्यक्ति विशेष के राशिफल भी बताते है।

जिनकी राशी में वाम पाद दोष होता है, वो बुढ़ त्यार के दिन, शिवालय में जल चढ़ाकर एवं पाठ कराकर अपना वाम पाद दोष शांत कराते हैं। कुमाऊ के कुछ क्षेत्रो में हरेला भी बोया जाता है। इस दिन बिखौती के दिन कुमाऊं का प्रसिद्ध एतिहासिक स्याल्दे बिखौती का मेला भी लगता है।

साहवर्गीय समुदाय की महिलाओं द्वारा घर की दीवार पर ऐपण चित्रांकन ‘नाताबंधन’ बनाया जाता है—जिसका उद्देश्य संभवतः अपने पूर्वजों से नाता जोड़ना होता है। इसके केंद्र में अनाज की बालियां और दोनों सिरों पर ‘चैतुवा’ का प्रतीक बनाया जाता है, जो कि वानर का प्रतीक भी माना जाता है।

लोक परम्पराएं और चिकित्सा दर्शन –

इस पर्व का संबंध न केवल उत्सव और मेलों से है, बल्कि इसमें एक गूढ़ लोकचिकित्सा पद्धति भी छिपी है। कुमाऊं क्षेत्र में इसे शरीर में उत्पन्न विष-विकारों के शमन से जोड़ा गया है। शिशुओं की नाभि के चारों ओर गर्म धातु यंत्र ‘तालू’ से दागने की परम्परा, उन्हें पेट संबंधी रोगों से बचाने हेतु की जाती थी—जो एक प्रकार की मर्मचिकित्सा या लोक-आधारित अकूपंचर है।

वयस्क भी इस दिन उड़द के बड़े खाकर ‘तालू’ से दागने की प्रक्रिया अपनाते थे। यही परम्परा जोहार क्षेत्र में ‘विषत्यार’ के नाम से जानी जाती है। धारचूला क्षेत्र के चौंदास-ब्यास में बिच्छूघास से एक-दूसरे को दागने की परम्परा भी इसी मान्यता पर आधारित है कि इस दिन विष का प्रभाव निष्क्रिय हो जाता है।

प्रकृति और कृषि से संबंध –

बिखौती पर्व केवल शरीर की शुद्धि तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका संबंध वनस्पति और कृषि जीवन चक्र से भी है। स्थानीय जनमान्यता है कि यदि इस दिन वर्षा हो जाए तो पुष्पित वृक्षों एवं फसलों पर रोग नहीं लगते। यह संकेत करता है कि यह पर्व एक प्रकार का ऋतु संक्रमण उत्सव है, जो प्राकृतिक संतुलन और कृषि की सफलता से गहराई से जुड़ा है।

कुमाऊं और गढ़वाल के विविध आयोजनों की झलक

कत्यूरियों की उत्तरकालीन राजधानी वैराट (वर्तमान द्वाराहाट) में इस अवसर पर सप्ताह भर चलने वाला मेला आयोजित किया जाता है। गढ़वाल के उत्तरकाशी, जौनसार-बावर, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग आदि क्षेत्रों में मेले, मुखौटा नृत्य, हरियाली उगाना और विशेष पूजा-पाठ की परंपरा रही है।

स्याल्दे बिखौती का मेला –

उत्तराखंड द्वाराहाट में यह सांस्कृतिक और व्यपारिक मेला लगता है। द्वाराहाट को सांस्कृतिक नगरी कहा जाता है। यहाँ पांडव काल के , तथा  कत्यूरी राजाओं के बनाये अनेक मंदिर है। स्याल्दे बिखोति के मेले में दूर दूर से व्यापारी आते हैं। आजकल तो तो काफी विकास हो गया ,हर समान लोगो के घर पर मिलता है। या लोग पलायन कर गए। किन्तु पुराने समय मे इसका बहुत बड़ा व्यापारिक महत्व था।

 बिखौती त्यौहार स्याल्दे मेला
स्याल्दे बिखौती मेला, फ़ोटो साभार गूगल

स्याल्दे बिखौती मेले का व्यपारिक के साथ  संस्कृतिक महत्व भी है। यहाँ राज्य के कोने कोने से कलाकारों के दल आते है, अपनी कला प्रस्तुतियां देने हेतु तथा कुमाउनी लोग नृत्य व गीत झोड़ा चाचरी की धूम रहती है यहां की सांस्कृतिक पहचान है ओढ़ा भेटने की रस्म ।

स्याल्दे बिखौती ओढ़ा भेटने की रस्म –

स्याल्दे बिखौती की प्रमुख सांस्कृतिक पहचान है,यहाँ की ओढ़ा भेटने की रस्म है। कहते हैं, प्राचीन काल मे स्थानीय गाव के लोग यहाँ  शीतला देवी के मंदिर में आते थे और पूजा पाठ करके जाते थे। किंतु एक बार कुछ गावो के बीच खूनी संघर्ष हो गया। और खूनी संघर्ष इतना बढ़ गया कि हारे हुवे गावो के सरदार का सिर काट कर गाड़ दिया। जिस स्थान पर उसका सिर काट कर गाड़ा गया ,वहाँ पर

स्मृति चिन्ह के रूप में एक बड़ा पत्थर स्थापित कर दिया गया। इसी पत्थर को ओढ़ा कहा जाता है। यह पत्थर द्वाराहाट चौक में आज भी है। और इसी पत्थर ( ओढ़ा ) पर चोट मार कर आगे बढ़ते हैं। और ओढ़े पर चोट मारकर आगे बढ़ने की रस्म को ओढ़ा भेटना कहते हैं। यह कार्य हर बार स्याल्दे के मेले में होता है। धीरे धीरे यह परंपरा बन गई और आज यह स्याल्दे बिखौती मेले की सांस्कृतिक पहचान है।

इस क्षेत्र के सभी गाव अपना अपना दल बनाकर , अपने नांगर निसान लेकर , बारी बारी से ओढ़ा भेटने की रस्म अदा करते हैं। यह कार्य दोपहर के बाद किया जाता हैं।  पहले यह मेला इतना बड़ा होता था कि दलों को अपनी बारी के इंतजार के लिए दिन भर इंतजार करना पड़ता था। तुतरी (तुरही) कि हुंकार और ढोल दमूवे की दम दम के बीच ,यह अदभुत प्राकृतिक दृश्य देखते बनता है।

जैसे कुंभ में शाही स्नान का दृश्य होता है,ठीक वैसा ही दृश्य होता है, स्याल्दे बिखौती में ओढ़ा भेटने की रस्म में। पहले ओढ़ा भेटने की रस्म में थोड़ी  अव्यवस्था का माहौल होता था,कई बार तो स्थिति संघर्ष तक पहुच जाती थी । अब  इसमे थोड़ा सुधार करके क्षेत्रीय गाावों को तीन प्रमुुुख दलों में बाट दिया। और इनके आने के समय और स्थान स्थिति में भी बदलाव कर दिया गया।

स्याल्दे बिखोति के प्रमुख दल –

  • आल
  • गरख
  • नोज्युला

आल धड़े में गाँव –

तल्ली मिरई मल्ली मिरई ,विजयपुर, पिनोली, तल्ली मल्लू किराली के 6 गाँव हैं। इनका मुखिया मिरई गाव का थोकदार हुवा करता है। इनका ओढ़ा भेटने का मार्ग बाजार के बीच की तंग गली है।

गरख धड़े के गाँव –

गरख धड़े में सलना, बसेरा ,असगोली, सिमलगाव ,बेदुली , पठानी, कोटिला , गाँव को जोड़ कर लगभग 40 गाँव सम्मिलित हैं। इनका मुखिया सलना गाव का थोकदार होता है। इनका ओढ़ा भेटने का मार्ग पुराने बाजार से हैं।

नोज्युला धड़ा के गाँव –

छतिना ,बीमानपुर ,सलालखोला ,बमनपुर , कौला ,इड़ा , बिठौली , कांनडे और किरोल फाटक गांव हैं। इनका थोकदार  द्वाराहाट के होता है। तथा इनका मार्ग  द्वाराहाट बाजार के बीच से होता है।

स्याल्दे बिखौती के पहले दिन बाट पूूूज मतलब रास्ते की पुुजा होती हैै। इसे छोटी स्याल्दे कहा जाता है। इसी दिन देवी को निमंत्रण दिया जाता है। ये दोनों कार्य नॉज्युला धड़ा करता है।

पहले यह मेला बहुत बड़ा होता था, इस मेले की तुलना कुंभ मेले से की जाती थी। इसलिए कुमाउनी प्रसिद्ध गायक स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी जी का एक प्रसिद्ध गीत इस मेले पर आधारित है। जिसके बोल हैं, अलखते बिखौती मेरी दुर्गा हरे गे

पहले इसका व्यपारिक महत्व काफी था, दूर दूर से व्यपारी आकर यहाँ दुकान लगाते थे। सांकृतिक टोलियां , भगनोल गाने वाले , झोड़ों और चाचरी की धुन में पूरा कुमाऊ खो जाता था। वर्तमान में आधुनिकीकरण और पलायन के कारण ,इसकी रंगत कम पड़ गई लेकिन  इस ऐतिहासिक मेले की आत्मा अभी भी जीवंत है।

बिखौती त्यौहार 2025 ( Bikhoti festival 2025 ) –

बिखौती त्यौहार 2025 में 14 अप्रैल 2025 को मनाया जायेगा। इसी दिन से शुरू होगा कुमाऊं का प्रसिद्ध स्याल्दे बिखौती का मेला। उत्तराखंड के कई मंदिरों जैसे उमा (कर्णप्रयाग), सितेश्वर (कोटा), तुंगनाथ, रुद्रनाथ, गौरी, ज्वाल्पा, काली, चंडिका, बद्रीनाथ और विष्णुप्रयाग में मेले लगते हैं। लता गाँव में 10 दिनों तक नंदा देवी को गाँव के केंद्र में लाया जाता है और मुखौटा नृत्य होते हैं।

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इन्हें भी देखें –

ओड़ा भेटना – स्याल्दे बिखौती मेले की प्रसिद्ध परम्परा।

मासी सोमनाथ का मेला उत्तराखंड का ऐतिहासिक मेला।

उत्तराखण्ड की टीम नई दिल्ली में होने वाली खेलो मास्टर्स नेशनल चैंपियनशिप 2025 के लिए रवाना

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उत्तराखण्ड की टीम नई दिल्ली में होने वाली खेलो मास्टर्स नेशनल चैंपियनशिप 2025 के लिए रवाना
खेलो मास्टर्स नेशनल चैंपियनशिप 2025

देहरादून: मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने आज मुख्यमंत्री कैम्प कार्यालय से उत्तराखण्ड की टीम को नई दिल्ली में 11 से 13 अप्रैल 2025 तक आयोजित होने वाली चौथे खेलो मास्टर्स नेशनल चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में उत्तराखण्ड के खिलाड़ी एथलेटिक्स, फुटबॉल, बास्केटबॉल, हॉकी, शूटिंग, बैडमिंटन, टेबल टेनिस और वॉलीबॉल जैसे विभिन्न खेलों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे।

मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर चैंपियनशिप में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ियों को अपनी शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में देश में खेलों को अभूतपूर्व प्रोत्साहन मिला है। खेल अवसंरचना का तेजी से विकास हुआ है और प्रधानमंत्री स्वयं खिलाड़ियों का निरंतर उत्साहवर्धन करते रहे हैं।

श्री धामी ने राज्य सरकार द्वारा खेलों को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे प्रयासों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि नई खेल नीति के माध्यम से खिलाड़ियों को हर संभव सुविधा प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उत्तराखण्ड ने हाल ही में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में सातवां स्थान प्राप्त कर खेल के क्षेत्र में अपनी पहचान मजबूत की है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड अब एक “खेल भूमि” के रूप में भी जाना जाने लगा है।

खेलो मास्टर्स गेम्स फाउंडेशन ऑफ़ उत्तराखण्ड के उपाध्यक्ष डॉ. विरेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व में इस वर्ष उत्तराखण्ड का दल चौथे मास्टर्स नेशनल गेम्स में हिस्सा लेगा। टीम में फुटबॉल की तीन टीमें शामिल हैं, जिनमें 40 वर्ष, 50 वर्ष और 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के खिलाड़ी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, एथलेटिक्स में 40 वर्ष से अधिक और 70 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के खिलाड़ी खेलो मास्टर्स नेशनल गेम्स 2025 में उत्तराखण्ड का प्रतिनिधित्व करेंगे।

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इस अवसर पर खेलो मास्टर्स गेम्स फाउंडेशन ऑफ़ उत्तराखण्ड के संरक्षक प्रेम सिंह बिष्ट, पी सी खंतवाल, सुभाष अरोड़ा, विमल सिंह रावत, सुनील शर्मा, अनीश शर्मा, विनेश राणा, शरद अग्रवाल, सुरेन्द्र सिंह रावत, छत्रेश कुमार, प्रेम प्रकाश पुरोहित और अन्य गणमान्य व्यक्ति तथा खिलाड़ी उपस्थित थे। मुख्यमंत्री ने सभी खिलाड़ियों को उत्कृष्ट प्रदर्शन करने और राज्य का नाम रोशन करने के लिए प्रेरित किया।

हरित चारधाम यात्रा: तीर्थयात्रियों को मिलेगा शुद्ध भोजन, कम होगा प्लास्टिक का उपयोग

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हरित चारधाम यात्रा: तीर्थयात्रियों को मिलेगा शुद्ध भोजन, कम होगा प्लास्टिक का उपयोग

हरित चारधाम यात्रा: इस वर्ष की चारधाम यात्रा में आने वाले तीर्थयात्रियों को न केवल स्वच्छ और शुद्ध भोजन मिलेगा, बल्कि यात्रा मार्ग के होटल और ढाबे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर भोजन में तेल, नमक और चीनी का प्रयोग भी कम करने का प्रयास करेंगे। इसके साथ ही सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को रोकने के लिए भी तीर्थयात्रियों को प्रोत्साहित किया जाएगा। खाद्य संरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने यात्रा शुरू होने से पहले ही इस दिशा में व्यापक स्तर पर तैयारी शुरू कर दी है, जिसके तहत होटल और खाद्य कारोबारियों के साथ संवाद और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस पहल पर जोर देते हुए कहा कि इस बार राज्य सरकार हरित चारधाम यात्रा का संकल्प लेकर आगे बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि सरकार का प्रयास है कि तीर्थयात्रियों को न केवल पौष्टिक भोजन और स्वच्छ वातावरण मिले, बल्कि यात्रा के दौरान पवित्र स्थलों पर सिंगल यूज प्लास्टिक की समस्या भी उत्पन्न न हो। मुख्यमंत्री ने बताया कि सिंगल यूज प्लास्टिक को कम करने, पुन: उपयोग करने और पुनर्चक्रित करने के सिद्धांत पर काम किया जा रहा है, जिसमें तीर्थयात्रियों, खाद्य कारोबारियों और स्थानीय लोगों का सहयोग आवश्यक है।

मुख्यमंत्री ने सभी विभागों को हरित चारधाम यात्रा की थीम पर कार्य करने के निर्देश दिए हैं। इसी क्रम में खाद्य संरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग यात्रा मार्ग के प्रमुख शहरों में होटल और खाद्य कारोबारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित कर रहा है। आयुक्त खाद्य संरक्षा एवं औषधि प्रशासन डॉ. आर. राजेश कुमार ने बताया कि इन कार्यशालाओं में होटल कारोबारियों से भोजन में तेल, नमक और चीनी की मात्रा कम करने का आग्रह किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इससे मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से जूझ रहे यात्रियों को विशेष रूप से लाभ होगा।

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डॉ. आर. राजेश कुमार ने “ईट राइट” अभियान के तहत होटलों से यह भी अपील की है कि वे खाद्य तेल को तीन बार से अधिक इस्तेमाल करने के बजाय बायोफ्यूल बनाने के लिए उपलब्ध कराएं। इसके अतिरिक्त, होटल कारोबारियों को पानी की बोतल और रैपर जैसे सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को कम करने और पर्यावरण संरक्षण में योगदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।

मुख्यालय के उपायुक्त गणेश कंडवाल ने बताया कि विभागीय निर्देशों के अनुसार, ऋषिकेश, श्रीनगर और रुद्रप्रयाग में होटल कारोबारियों और संबंधित विभागीय अधिकारियों के साथ प्रशिक्षण कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित किए जा चुके हैं। यात्रा शुरू होने से पहले उत्तरकाशी, चंबा और हरिद्वार सहित कुछ अन्य स्थानों पर भी इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इसके अलावा, स्थानीय खाद्य उत्पादों, विशेष रूप से मिलेट्स को बढ़ावा देने के लिए भी होटल और ढाबों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

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इस पहल का उद्देश्य न केवल तीर्थयात्रियों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना है, बल्कि चारधाम यात्रा को पर्यावरण के अनुकूल बनाना भी है। सरकार और संबंधित विभाग सभी हितधारकों के सहयोग से इस वर्ष की यात्रा को एक स्वच्छ, स्वस्थ और हरित अनुभव बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

पल्टन बाजार देहरादून | देहरादून की रौनक का इतिहास और ‘पल्टन’ नाम की दिलचस्प कहानी

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पल्टन बाजार

देहरादून की रौनक कहे जाने वाले पल्टन बाजार का नाम आज हर देहरादून वासी की जुबान पर है। यह बाजार जहां एक ओर खरीदारी का प्रमुख केंद्र है, वहीं इसके पीछे छुपा सैन्य और ऐतिहासिक इतिहास इसे और भी खास बना देता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस बाजार का नाम ‘पल्टन’ क्यों पड़ा और यह नाम कैसे एक पहचान बन गया।

‘पल्टन’ नाम की उत्पत्ति: सेना से जुड़ा इतिहास –

‘पल्टन’ शब्द की जड़ें सीधे तौर पर भारतीय सेना से जुड़ी हैं। अंग्रेजी शब्द “Platoon” (पलटन) का मतलब होता है एक सैन्य टुकड़ी। ब्रिटिश काल के दौरान देहरादून एक प्रमुख सैन्य छावनी हुआ करता था। इसी क्रम में, देहरादून के राजपुर रोड के एक हिस्से में सिरमौर बटालियन की तैनाती की गई थी।
सैनिकों की मौजूदगी, उनकी जरूरतों को पूरा करने वाली दुकानों और गोदामों के कारण यह क्षेत्र धीरे-धीरे एक बाजार का रूप लेने लगा, जिसे स्थानीय लोग ‘पलटन वालों का बाजार’ कहने लगे। और यहीं से इसका नाम पड़ा – पल्टन बाजार।

सैन्य छावनी से व्यावसायिक केंद्र तक का सफर –

सन् 1872 में देहरादून से लगभग दो मील दूर बिंदाल नदी के पश्चिम में 550 एकड़ भूमि सेना को दी गई, जहां 2nd गोरखा रेजिमेंट के लिए एक बड़ा कैंटोनमेंट (छावनी) क्षेत्र विकसित हुआ। इसके बाद 1874 में पल्टन बाजार से सेना का स्थानांतरण हुआ और इस क्षेत्र की जिम्मेदारी सुपरिंटेंडेंट ऑफ दून H.C. Ross को सौंप दी गई।

जब सैनिकों की टुकड़ी यहाँ से स्थानांतरित हुई, तो पीछे रह गया एक बाजार — जिसमें सैनिकों की वर्दियों की दुकानों से लेकर रोजमर्रा की ज़रूरत की सामग्री बिकने लगी। उस समय की कुछ दुकानें आज भी मौजूद हैं, विशेषकर मच्छी बाजार और सिंधी स्वीट शॉप के आस-पास, जहां सैनिक वेशभूषा की दुकानों की मौजूदगी आज भी इस इतिहास की गवाही देती है।

पल्टन बाजार की पहचान –

यह बाजार सिर्फ खरीदारी का स्थान नहीं रहा, बल्कि एक ऐसा केंद्र था जहां सैनिकों और नागरिकों का मेल होता था। राजपुर नहर से जुड़ा प्राचीन कुआं, मंदिर परिसर, और पुराना फव्वारा – ये सभी उस काल की जीवनशैली और स्थापत्य के चिह्न हैं। पल्टन बाजार की गलियाँ, पुरानी दुकानें और भीड़ आज भी उस सैन्य अतीत की गूंज सुनाती हैं।

आज का पल्टन बाजार –

समय के साथ, पल्टन बाजार ने एक सांस्कृतिक और व्यावसायिक केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाई है। आज यहाँ आधुनिक ब्रांड्स की दुकानें, पारंपरिक मिठाइयाँ, गारमेंट्स, स्टेशनरी, और इलेक्ट्रॉनिक्स से भरी दुकानों की भरमार है, लेकिन इसके मूल में बसी है एक ऐतिहासिक विरासत।

निष्कर्ष –

पल्टन बाजार का नाम केवल एक संज्ञा नहीं, बल्कि देहरादून के सैन्य इतिहास का प्रतीक है। यह बाजार उस दौर की याद दिलाता है जब सैनिकों की टुकड़ी यहां तैनात थी और इसी के कारण इस क्षेत्र का नाम पड़ा – पल्टन बाजार।
यदि आप कभी देहरादून आएं, तो पल्टन बाजार की सिर्फ खरीदारी नहीं, उसकी इतिहास से जुड़ी गहराइयों को भी महसूस करें।

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उत्तराखंड मौसम अपडेट: 8 से 10 अप्रैल के बीच बारिश का पूर्वानुमान

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उत्तराखंड मौसम अपडेट: 8 से 10 अप्रैल के बीच बारिश का पूर्वानुमान
उत्तराखंड मौसम अपडेट

उत्तराखंड मौसम अपडेट: उत्तराखंड में अगले कुछ दिनों में मौसम में बदलाव देखने को मिलेगा। भारतीय मौसम विभाग के देहरादून केंद्र ने राज्य में 8 से 10 अप्रैल के बीच बारिश होने का पूर्वानुमान जारी किया है, जिससे तापमान में गिरावट आ सकती है। भारतीय मौसम विभाग देहरादून केंद्र के अनुसार, 8 अप्रैल से एक पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो रहा है, जिसके चलते पहाड़ी जिलों उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग और बागेश्वर में हल्की से मध्यम बारिश की संभावना है। इस दौरान मैदानी इलाकों में भी बादल छाए रह सकते हैं।

दिनांक 9 अप्रैल को उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़, और बागेश्वर के कुछ इलाकों में बारिश की संभावना हैं। और देहरादून, टिहरी, पौड़ी, चंपावत, नैनीताल और अल्मोड़ा के कही कही बारिश हो सकती हैं।

दिनांक 10 अप्रैल को उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ के अनेक स्थानों में बारिश की संभावना हैं। और चमोली, रुद्रप्रयाग और बागेश्वर के कुछ इलाकों में तथा देहरादून, टिहरी, पौड़ी, चंपावत, नैनीताल और अल्मोड़ा के कही कही बारिश हो सकती हैं।

उत्तराखंड मौसम अपडेट

बारिश के कारण राज्य में तापमान में गिरावट दर्ज की जा सकती है, जिससे सर्दी और फ्लू जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में सुबह और शाम के समय ठंडक महसूस होने की संभावना है।

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मौसम विभाग ने लोगों से सतर्क रहने की अपील की है। यात्रियों को सलाह दी गई है कि वे मौसम के पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुए अपनी यात्रा की योजना बनाएं और आवश्यक सावधानी बरतें। इसके अतिरिक्त, किसानों को भी अपनी फसलों को संभावित नुकसान से बचाने के लिए उचित कदम उठाने के लिए कहा गया है।

मौसम में इस बदलाव को देखते हुए, निवासियों और आगंतुकों को सलाह दी जाती है कि वे गर्म कपड़े तैयार रखें और बदलते मौसम के अनुसार अपनी सेहत का ध्यान रखें।

नवरात्र पर उत्तराखंड में खाद्य सुरक्षा विभाग मुस्तैद, व्रत सामग्री की गुणवत्ता पर पैनी नजर

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नवरात्र पर उत्तराखंड में खाद्य सुरक्षा विभाग मुस्तैद, व्रत सामग्री की गुणवत्ता पर पैनी नजर

देहरादून: चैत्र नवरात्र के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा व्रत में उपयोग किए जाने वाले खाद्य पदार्थों की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए उत्तराखंड का खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग पूरी तरह सक्रिय हो गया है। विभाग ने राज्यव्यापी विशेष अभियान छेड़ दिया है, जिसके तहत कुट्टू के आटे और व्रत में इस्तेमाल होने वाली अन्य सामग्रियों की गुणवत्ता परखी जा रही है।

खाद्य सुरक्षा आयुक्त डॉ. आर राजेश कुमार ने जानकारी दी कि जनस्वास्थ्य के मद्देनजर यह अभियान अत्यंत महत्वपूर्ण है, खासकर कुट्टू के आटे को लेकर विशेष सतर्कता बरती जा रही है, क्योंकि पूर्व में इसके संदूषित होने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सामने आ चुकी हैं।

गुरुवार को प्रदेश भर में सघन निरीक्षण
इसी क्रम में, गुरुवार, 4 अप्रैल को विभाग की टीमों ने पूरे प्रदेश में ताबड़तोड़ निरीक्षण किए। कुल 147 खाद्य प्रतिष्ठानों की जांच की गई और विभिन्न खाद्य पदार्थों के 17 नमूने एकत्र किए गए।

  • गढ़वाल मंडल: यहां 75 प्रतिष्ठानों का निरीक्षण किया गया। कुट्टू आटा, सूजी, खाद्य तेल, सेंधा नमक, चीनी, चौलाई लड्डू, फलाहारी नमकीन, साबूदाना, काला नमक और सत्तू समेत कुल 11 खाद्य पदार्थों के नमूने लिए गए। इन नमूनों को जांच के लिए राजकीय खाद्य प्रयोगशाला भेजा गया है और प्रयोगशाला को जल्द रिपोर्ट देने के निर्देश दिए गए हैं।
  • कुमाऊं मंडल: नैनीताल, ऊधमसिंह नगर, अल्मोड़ा, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और चम्पावत जिलों में भी सघन अभियान चलाया गया, जिसमें लगभग 72 प्रतिष्ठानों का निरीक्षण हुआ। अधिकारियों ने पाया कि कहीं भी कुट्टू का आटा खुले में नहीं बेचा जा रहा था, जो विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के पालन को दर्शाता है। कुमाऊं मंडल से कुल 6 नमूने लिए गए, जिनमें नैनीताल (रामनगर) से साबूदाना, सत्तू, काला नमक, बागेश्वर से पैक्ड कुट्टू आटा व सूजी और चम्पावत से साबूदाना शामिल हैं। ये नमूने राज्य खाद्य एवं औषधि विश्लेषणशाला, रुद्रपुर भेजे गए हैं।

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गुणवत्ता में कमी पर होगी सख्त कार्रवाई
आयुक्त डॉ. आर राजेश कुमार ने स्पष्ट किया है कि प्रयोगशाला जांच में यदि कोई भी नमूना खाद्य सुरक्षा मानकों पर खरा नहीं उतरता है, तो संबंधित खाद्य कारोबारियों के खिलाफ खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के तहत कठोर वैधानिक कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। उधर, नैनीताल में उपायुक्त डॉ. राजेन्द्र सिंह कबायत ने स्वयं बाजार में निरीक्षण कर व्यापारियों को केवल उच्च गुणवत्ता वाली और सुरक्षित खाद्य सामग्री बेचने के निर्देश दिए, अन्यथा कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी।

विभाग ने कहा है कि नवरात्र के दौरान यह अभियान लगातार जारी रहेगा ताकि व्रत रखने वाले श्रद्धालु बिना किसी चिंता के शुद्ध और सुरक्षित खाद्य सामग्री का सेवन कर सकें।