G20 Summit 2022 को आयोजित करने की जिम्मेदारी इस बार भारत की है। यह समूह 19 देशों और यूरोपीय संघ का एक अनौपचारिक समूह है। इसकी स्थापना वर्ष 1999 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक के प्रतिनिधियों के साथ हुई थी। G20 के सदस्य देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया गणराज्य, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। G20 का कोई अपना स्थायी मुख्यालय नहीं है। प्रत्येक वर्ष समूह की मेज़बानी करने वाले या अध्यक्षता करने वाले देशों के बीच इसका…
Author: Bikram Singh Bhandari
“दगड़ियों उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के प्राचीन दैनिक जीवन पर आधारित उत्तराखंडी लोक कथा ‘दिन दीदी रुको रुको’ का संकलन कर रहे हैं। यदि ये पहाड़ी लोक कथा आपको अच्छी लगे तो आभासी दुनिया के अपने मित्रता समूह में अवश्य साँझा करें।” पहाड़ के एक गावं में एक सास और उसकी बहु रहती थी। सास एकदम गुस्सैल और बुरे स्वभाव की थी। और जितनी सास गुस्सैल स्वभाव की थी ,बहु उसके एकदम विपरीत शांत और सौम्य स्वभाव की महिला थी। सास समय -समय पर बहु को खरी खोटी सुनाती थी। बहु बड़ी विनम्रता से सब सहन करती थी। सास बहु को बार त्योहारों पर अपने…
पितृ पक्ष में कौवों का महत्व : समस्त देश में भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन अमावस्या तक पितृ पक्ष के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजो का पिंडदान श्राद्ध करते हैं। अपने पूर्वजों को याद करते हैं। श्राद्धपक्ष का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है। पितृपक्ष में पूर्वजों के आशीर्वाद लेने से घर में सुख शांति बनी रहती है। समस्त भारत के साथ उत्तराखंड में भी पितृ पक्ष में कौओ को काफी महत्त्व दिया जाता है। पितृ पक्ष में गौ माता के साथ कौवो को भी भोजन कराया जाता है। ( कौओं का तीर्थ ) धार्मिक मान्यताओं…
9 नवम्बर 2000 को भारत के सत्ताइसवें राज्य के रूप में जन्म लेने वाला पहाड़ी राज्य उत्तराखंड। जो पहले उत्तराँचल के नाम से बना और बाद में इसे उत्तराखंड के नाम से नवाजा गया। इस राज्य को यथार्थ के धरातल पर लाने के कई वर्षो का संघर्ष चला। कई लोगों ने इस सपनों के उत्तराखंड को बनाने में अपना बलिदान दिया। मुज़फ्फर नगर कांड और खटीमा मंसूरी जैसे गोली कांडों से रूबरू होकर बनाया है ,इस उत्तराखं ड को। अगले २ माह में हमारा प्यारा उत्तराखंड बाइस साल पुरे करके तेइसवे में बैठ जायेगा। मगर इतने सालों में हमने क्या…
उत्तराखंडी लोक संगीत में अपने महत्वपूर्ण योगदान से लोकगीतों को एक आयाम प्रदान करने वाले, पांडवास! जिनकी रचनात्मकता और उच्च गुणवक्ता के लोग दीवाने है। फुलारी ,रंचणा, शकुना दे जैसे रचनात्मक हिट गीत और याकुलंस जैसी शार्ट फिल्म देने वाला पांडवास ग्रुप अब एक कदम आगे बढ़ते हुए लाइव कंसर्ट करने जा रहा है। इस लाइव कंसर्ट का नाम है , “अनुभूति उत्तराखंड” इस लाइव इवेंट में पांडवास ग्रुप के बेहतरीन संगीतमय IFFI GOA में जाकर INDIAN PANORAMA विनर रही उत्तराखंडी फिल्म “सुनपट” भी दिखाई जाएगी। इसके अतिरिक्त इसी मेगा इवेंट में प्रसिद्ध उत्तराखंडी युवाओं के पसंदीदा गायक संकल्प खेतवाल…
मित्रो आजकल समस्त देश के साथ पहाड़ों में भी पितृपक्ष चल रहे हैं। साथ साथ खेती का काम भी चल रहा है। इन्ही पितृपक्ष श्राद्धों पर आधारित एक रोचक कुमाउनी लोककथा श्राद्ध की बिल्ली का यहाँ संकलन कर रहें हैं। यदि अच्छी लगे तो अपने समुदाय में सांझा अवश्य करें। कुमाऊं मंडल के किसी गांव में एक बुढ़िया और उसकी बहु रहती थी। बुढ़िया ने एक बिल्ली पाल रखी थी। बुढ़िया रसोई में खाना बनाने या किसी भी अन्य कार्य करती थी तो ,उसकी बिल्ली म्याऊ -म्याऊ करके चूल्हे के पास बैठ जाती थी। बिल्ली की आदत ठैरी कभी किसी…
हवीक : भाद्रपद और अश्विन माह में पितृपक्ष पर समस्त सनातनियों की तरह उत्तराखंड वासी भी, बड़ी श्रद्धा और खुशी से अपने पूज्य पूर्वजों को तर्पण देते हैं। उनका श्राद्ध करते हैं, श्राद्ध का अर्थ होता है, जो श्रद्धा से दिया जाय। मूल सनातन धर्म के पितृ पक्ष को या अन्य रिवाजों को प्रत्येक राज्य और प्रत्येक संस्कृति में इनकी परम्पराओं में थोड़ा अंतर होता है। इसी प्रकार उत्तराखंड के कुमाउनी समाज में भी पितृ पक्ष पर,कुछ खास रिवाज होते हैं। इन खास रिवाजों में से एक रिवाज है, हवीक या हबीक रखना। क्या है कुमाऊं की हबीक या हवीक…
उत्तराखंड का एक ऐसा गाँव है, जहाँ की आजीविका का मुख्य साधन पनीर है। इसलिए इस गांव को पूरे भारत मे उत्तराखंड का पनीर गाँव के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड टिहरी गढ़वाल जिले के जौनपुर विकास खंड का रौतू की बेली नामक गाँव, उत्तराखंड का पनीर गाँव पनीर विलेज, पहाड़ का पनीर गाँव आदि नामों से प्रसिद्ध है। यह गांव उत्तराखंड के प्रसिद्ध हिल स्टेशन मसूरी से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। मसूरी- उत्तरकाशी रोड पर स्थित सुवाखोली से केवल 5 किलोमीटर दूर है। यह गाव समुद्र तल से लगभग 6283 फ़ीट की उचाई पर है।…
“उत्तराखंड परीक्षा घोटाले पे उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति पर खंतोली जी का यह व्यंग एकदम सटीक बैठता है।” बहुत बडा कलेजा चाहिये साहब चमचा होने के लिए, न सिर्फ कलेजा वरन चमचा बनने के लिए ये कला भी आनी चाहिये कि किस तरह अपने नेताजी के ऐबों को गुणो में तब्दील किया जाय। अपनी अन्तरात्मा को गिरवी रखना पडता है। हालाकि बेचा भी जा सकता है पर वर्तमान हालात में ये काम रिस्की हो जाता है कि कब नेताजी उसी पार्टी में चले जाये जिसको अब तक थोक के भाव गरिया चुके हों। इसलिए पार्टी बदलने की स्थिति में अन्तरात्मा को…
अलग उत्तराखंड राज्य के लिए चल रहे आंदोलन को खटीमा गोलीकांड और मसूरी गोलीकांड ने एक नयी दिशा दी। इन दो घटनाओं बाद उत्तराखंड राज्य आंदोलन एकदम उग्र हो गया। 01 सितम्बर 1994 को खटीमा में गोलीकांड हुवा ,जिसमे कई लोग शहीद हो गए। 1 सितम्बर 1994 की इस वीभत्स घटना के विरोध में 02 सितम्बर 1994 को खटीमा गोलीकांड के विरोध में ,राज्य आंदोलनकारी मसूरी गढ़वाल टेरेस से जुलूस निकाल कर उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के ऑफिस झूलाघर जा रहे थे। बताते हैं कि गनहिल पहाड़ी पर किसी ने पथराव कर दिया , जिससे बचने के लिए राज्य आन्दोलनकारी…