पहाड़ में आशोज ( अश्विन माह ) में खेती का काम अपने चरम पर होता है।पहाड़ में यह माह अत्यधिक काम का प्रतीक माना जाता है। इस माह खरीप की फसल के साथ घास काट कर मवेशियों के लिए जमा करके रखते हैं। पहाड़ो में आजकल लोग पुरे तन मन धन से अपनी फसलों को समेटने में लगे थे ,किन्तु पिछले कई दिनों से पहाड़ में बारिश ने आशोज महीने को आषाढ़ में तब्दील कर दिया है। आषाढ़ माह बरसात की शुरुवात होती है,तब इसी प्रकार की लगातार बारिश होती है। जैसी आजकल हो रही है। मौसम विभाग ने पहले ही उत्तराखंड 24 सितम्बर तक येलो अलर्ट घोषित किया है। इस बेमौसम बारिश की वजह से ,गावों में लोग काफी असुविधाओं से गुजर रहे हैं। लोगो की फसल ख़राब हो रही है। मवेशियों के लिए शीतकालीन घास भंडारण करने में समस्या हो रही है। क्योकि काटकर सुखाने रखी हुई घास लगातार बारिश पड़ने की वजह से सड़ रही है। पहाड़ों के फसल नुकसान पर कोई निश्चित मुवावजे की व्यवस्था नहीं है। वर्तमान में पहाड़ में खेती करना लोहे के चने चबाने जैसा कठिन कार्य है।
पहाड़ अभी भी आधुनिक कृषि तकनीक के लिए तरस रहे है। थोड़ी बहुत आधुनिक उपकरण या कृषि तकनीक केवल सैंपल रूप में उपलब्ध है। पहाड़ में अभी भी पारम्परिक रूप से खेती की जाती है। जिसको क्रियान्वित करने के लिए काफी समय लगता है और प्राकृतिक संसाधनों बारिश,धूप और हवा की आवश्यकता होती है। लेकिन बिगत कुछ समय प्राकृतिक संसाधन हम पहाड़ वासियों का साथ नहीं दे रहे हैं। बारिश बेमौसम हो रही है। जब फसल को चाहिए तब सूखा पड़ रहा है , जब नहीं चाहिए तब लगातार बारिश हो रही है।

पहाड़ में बारिश ही नहीं जंगली जीव भी पहाड़ो में फसल उत्पादन और पहाड़ के जीवन में बाधा बन रहे हैं। बन्दर ,सुवर फसलों को पहले ही नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। बचि खुची कमी ये बेमौसमी बारिश पूरा कर दे रही है। सरकार पलायन रोकने के नाम पर अन्य कार्यों पर योजनाएं बनाकर लाखो खाक कर रही है। किन्तु फिर भी इस समस्या की जड़ तक नहीं पहुंच पा रही या पहुंचना नहीं चाहती।
इन सभी समस्याओं का मूल कारण है प्रकृति के पारिस्थितिक तंत्र में खराबी। जी हां पारिस्थितिकी तंत्र में खराबी के कारण ही ,प्रकृति सुचारु और नियमित रूप कार्य नहीं कर पा रही है। और प्रकृति के सभी जीव एक दूसरे की जीवन शैली में व्यवधान कर रहे हैं। पारिस्थितिकी तंत्र को सुधारना न तो अकेले सरकार के बस में है ,और न ही जनता के हाथ में है। अपनी आगामी पीढ़ियों के उज्वल भविष्य के लिए पहाड़ की जनता और उत्तराखंड सरकार को मिलकर कार्य करना होगा।

17 सितम्बर 2022 को भारत के प्रधानमंत्री नामीबिया से चीते लाये ,जो चीते 70 साल पहले विलुप्त हो गए उनको फिर भारत में लाने की क्यों आवश्यकता पड़ गई ? इसका एक ही जवाब है , मैदानी इलाकों और खुले जंगल में पारिस्थितिक संतुलन बनाने के लिए। जब देश की सरकार मैदानी क्षेत्रों ,घास के मैदानों खुले जंगलों के पारिस्थिकी तंत्र के लिए कार्य सकती है तो ,हिमालयी क्षेत्र के पारिस्थितिक तंत्र के सफल संचालन के लिए तथा हिमालयी क्षेत्रों में विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन के लिए भी एक समग्र निति के तहत कार्य कर सकती है। और इस कार्य में पहाड़ की जनता को भी बिना शिकायत के बराबर सहयोग देना चाहिए।
लेख – बिक्रम सिंह भंडारी
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