Author: Bikram Singh Bhandari

बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

खतड़वा त्यौहार उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाने वाला लोकपर्व है। यह वर्षाकाल की समाप्ति और शरद ऋतू की शुरुवात में मनाया जाने वाला लोक पर्व है। 2024 में खतड़वा त्यौहार (khatarua festival ) 16 सितम्बर 2024 को कन्या संक्रांति के दिन मनाया जायेगा। प्रस्तावना – उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के लोकोत्सव अधिकतर संक्रांति को मनाये जाते हैं। इसका कारण यह है कि पहाड़ों में सौर पंचांग का प्रयोग किया जाता है। और उत्तराखंड के सभी लोक पर्व प्रकृति को समर्पित और उच्च स्वास्थ को समर्पित तथा बच्चों को समर्पित होते हैं। खतड़वा त्यौहार क्या है – खतड़ुवा पर्व…

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घणेली जागर : उत्तराखंड देवभूमि के रूप मान्य है। यहाँ देवी देवताओ की पूजा के साथ ,भूत प्रेतों और अदृश्य सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियों की पूजा भी होती है। यहाँ दैवीय शक्तियों या अदृश्य शक्तियों के पूजन के लिए अलग -अलग विधियाँ अपनाई जाती हैं। इन्ही अलग अलग पूजा विधियों में एक है जागर विधि। जागर विधि का अर्थ है जगाना। इसमें लोकवाद्यों का प्रयोग करके देवता विशेष को मानव शरीर में अवतरण कराया जाता है। उनसे समस्याओं का समधान के साथ साथ आशीर्वाद लेते हैं। इसकी विस्तृत जानकारी हमने इस पोस्ट के अंत में दी है। आज इस पोस्ट…

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कोट भ्रामरी मंदिर जहाँ दो देवियों की एक साथ पूजा होती है – कोट भ्रामरी मंदिर उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के बागेश्वर जिले में अल्मोड़ा -बागेश्वर राजमार्ग पर स्थित है। कत्यूरी शासकों द्वारा स्थापित प्रसिद्ध बैजनाथ मंदिर से 03 किलोमीटर दूर 975 मीटर की ऊंचाई पर एक छोटी पहाड़ी पर पुराने दुर्ग के अन्दर स्थित एक मंदिर है। कोट की माई अथवा भ्रामरी देवी के नाम से ज्ञात यह मंदिर मल्ला कत्यूर में कत्यूरियों के प्रशासनिक केन्द्र तैलीहाट में छोटे से पुरातन दुर्ग की दीवारों के अन्दर स्लेटों से आच्छादित देवी का मंदिर है। यहां पर कत्यूरियों की कुलदेवी भ्रामरी…

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दुबड़ी उत्सव उत्तराखंड के जौनपुर टिहरी मसूरी क्षेत्र का प्रसिद्ध लोक उत्सव या लोकपर्व है। यह इस क्षेत्र का बड़ा त्यौहार माना जाता है। जैसे कुमाऊं क्षेत्र में लाग हरयाव .. लाग बग्वाली…. करके उस क्षेत्र के बड़े उत्सव माने जाते हैं उसी प्रकार दुबड़ी जौनपुर-रवाई  क्षेत्र का बड़ा उत्सव माना जाता है। इस त्यौहार के लिए कहा जाता है – ” पैल आये दुबड़ी त्यार , फिर आये पितरू श्राद्ध , तब आये अशूज अष्टमी ,तब आये माल दिवाली ,तब आये मंगसीर दिवाली ” जन्माष्टमी के दसवें दिन मनाया जाता है दुबड़ी उत्सव – अनंत समृद्धि सूचक दूर्वा से…

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जौनसार के लोकदेवता महासू देवता के देवालय हनोल में प्रतिवर्ष  भाद्रपद के शुक्ल पक्ष को हरतालिका तीज पर विशाल जागड़ा पर्व मनाया जाता है। जौनसार बावर, रंवाई-जौनपुर, हिमाचल के जुब्बल-कोटखाई, नेरवा-चौपाल, और अन्य राज्यों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु  इस विशाल  जागड़ा मेला का आनंद लेने और देवदर्शन के लिए आते हैं। 2024 में जागड़ा मेला 6 सितम्बर और 07 सितंबर 2024  को मनाया जाएगा। क्या है जागड़ा मेला – जागड़ा का अर्थ होता है ,रात्रि जागरण। जांगड़ा उत्सव ,उत्तराखंड  गढ़वाल मंडल के देहरादून जिले में जौनसार बावर क्षेत्र के टौंस नदी के तट पर हनोल में स्थित लोकदेवता…

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कैलुवा विनायक – भगवान गणेश का जन्मदिन गणेश चतुर्थी आ रही है और उत्तराखंड की सर्वमान्य लोकदेवी नंदा देवी का जन्मोत्सव नंदा अष्टमी के उपलक्ष में नंदा लोकजात का आयोजन चल रहा है। नंदा राजजात एशिया की सबसे लम्बी पैदल यात्रा है। यह राजजात बारह वर्ष में एक बार आयोजित की जाती है। नंदा राजजात पहाड़ अनेक पड़ावों से होते हुए हिमालयी क्षेत्र में प्रवेश करती है। और हिमालयी क्षेत्र में प्रवेश से पहले एक पड़ाव पड़ता है कैलुवा विनायक। जैसा की नाम से स्पष्ट है विनायक मतलब है यह पड़ाव भगवान् गणेश से जुड़ा है। कैलुवा विनायक – नन्दा…

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कुमाऊं में पैसे को डबल कहते हैं – पहाड़ो में अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग स्थानीय भाषा या बोली का प्रयोग होता है। उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्सों में मुख्यतः तीन भाषाओं या तीन बोलियों का प्रयोग होता है। जिसमे गढ़वाली , कुमाऊनी और जौनसारी भाषा प्रमुख है। इन स्थानीय भाषाओं में दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाली कुछ चीजों के लिए ऐसे अजीब शब्दों का प्रयोग जिनका वास्तविक अर्थ समझने में बहुत परेशानी होती है या समझ में ही नहीं आता। क्योंकि पहाड़ की स्थानीय भाषाएँ या बोलियां देवनागरी में लिखी जाती हैं इसलिए काफी हद तक समझ में…

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बकरी और सियार की कहानी एक प्रसिद्ध कुमाऊनी लोक कथा है। अक्सर पहाड़ो में दादा , दादी ,नानी अपने बच्चों को सुनाया करती है। पहाड़ की प्रसिद्ध लोक कथाओं में चल तुमड़ी बाटो बाट , सास बहु का खेत ,और बकरी और सियार प्रमुख हैं। आज इस पोस्ट में आनंद लीजिये बकरी और सियार की कहानी का – कुमाऊनी लोक कथा बकरी और सियार – एक जंगल में एक बकरी अपने पति के साथ रहती थी। उसी जंगल में एक सियार भी रहता था। जब भी बकरी के बच्चे होते थे, सियार उन्हें खा जाता था। असहाय बकरी और बकरा…

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यह सर्वविदित है कि उत्तराखंड देवभूमि के नाम से विश्व विख्यात है। और उत्तराखंड में एक से बढ़कर एक देवालय हैं जो अपने आप में अनेकों रहस्य और पौराणिक इतिहास समेटे हुए हैं। आज उत्तराखंड के एक ऐसे मंदिर वंशी नारायण मंदिर के बारे में जानकारी संकलित करने जा रहे हैं ,जिसके बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर के कपाट साल में केवल एक बार रक्षाबंधन के दिन खुलते हैं। वंशी नारायण मंदिर की स्थिति – भगवान् विष्णु को समर्पित वंशी नारायण मंदिर गढ़वाल मंडल के चमोली जनपद की उरगम घाटी  के अन्तिम ग्राम बांसा (2080 मी.) से…

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घी संक्रांति का दूसरा नाम घी त्यार है। इसे ओलगिया त्यौहार भी कहते हैं। यह लोकपर्व भाद्रपद माह की सिंह संक्रांति को उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है। यह उत्तराखंड के कृषक वर्ग और पशुपालक वर्ग का प्रमुख पर्व है। घी त्यार ( ghee tyar )  – घ्यूसग्यान या ओलगिया त्यौहार यहां की कृषक-पशुपालक ग्रामीण जनता का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। इसे ‘घी संक्रान्ति’ या घी त्यार नाम दिये जाने का कारण यह है कि इस दिन मातायें अपने बच्चों के सर में ताजा घी मलती हैं तथा इसके साथ ही उनके स्वस्थ रहने एवं चिरायु होने की…

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