Tuesday, April 29, 2025
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बकरी और सियार कुमाऊनी लोक कथा।

बकरी और सियार की कहानी एक प्रसिद्ध कुमाऊनी लोक कथा है। अक्सर पहाड़ो में दादा , दादी ,नानी अपने बच्चों को सुनाया करती है। पहाड़ की प्रसिद्ध लोक कथाओं में चल तुमड़ी बाटो बाट , सास बहु का खेत ,और बकरी और सियार प्रमुख हैं। आज इस पोस्ट में आनंद लीजिये बकरी और सियार की कहानी का –

कुमाऊनी लोक कथा बकरी और सियार –

एक जंगल में एक बकरी अपने पति के साथ रहती थी। उसी जंगल में एक सियार भी रहता था। जब भी बकरी के बच्चे होते थे, सियार उन्हें खा जाता था। असहाय बकरी और बकरा आंसू बहाकर चुप हो जाते थे। इस बार बकरी ने फिर दो बच्चे जने, परंतु बच्चे होने पर भी उसे कोई खास खुशी नहीं हुई। वह इस बात को लेकर दुःखी थी कि जाने कब सियार आये और बच्चों को खा जाये। उसने बच्चों की रक्षा के लिए बकरे से कोई उपाय खोजने को कहा। बकरा भी दुःखी था। उसने अंततः एक उपाय निकाला। वह बकरी से बोला-‘देखो, एक उपाय मेरी समझ आ रहा है।

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मैं इस पहाड़ की चोटी पर जाकर सियार को आते हुए देखूंगा। जैसे ही सियार मुझे दूर से आता हुआ दिखाई देगा, मैं तुमसे ऊंची आवाज में पूछूंगा-‘बकरी, बकरी! बच्चे क्यों रो रहे हैं?’ तुम बच्चों को चिकोटी काट कर और जोर से रुलाना और जोर-जोर से कहना – ‘क्या करूं? ये कह रहे हैं, सियार का ताजा कलेजा खायेंगे। बासी कलेजा तो घर में पड़ा है, पर ये बासी खाने को तैयार नहीं हैं।’ मैं जोर से कहूंगा- ‘चुप रहो, चिल्लाओ नहीं। वो सियार आ रहा है। मैं उसका कलेजा अभी निकाल कर लाता हूं और बच्चों को खिलाता हूं।’

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इस उपाय को अमल में लाने के लिए बकरा पहाड़ की चोटी पर जाकर सियार के आने की प्रतीक्षा करने लगा। ज्योंही उसे सियार आता दिखाई दिया, उसने बकरी को ऊंची आवाज में पुकारते हुए कहा- ‘बकरी, बकरी! बच्चे क्यों रो रहे है?’ योजनानुसार ही बकरी ने बच्चों को चिकोटी काटी वे और जोर से रोने लगे। बकरी ने चिल्लाते हुए कहा-‘ये कह रहे हैं सियार का ताजा कलेजा खायेंगे।’ बकरे ने भी चिल्ला कर कहा-‘ अरे, बच्चों को चुप करा, मैं अभी सियार का कलेजा निकाल कर लाता हूं।’ सियार ने बकरे को ऐसा कहते सुना, तो वह पीठ पर पूंछ रखकर भाग खड़ा हुआ। सियार को प्राण बचाते भागते हुए रास्ते में एक बंदर मिला।

बकरी और सियार

बंदर ने जब उससे इस तरह भागने का कारण पूछा, तो सियार ने बकरे के द्वारा कही गई बात उसे बताई। बंदर बोला-‘सियार भाई, तुम्हारी अक्ल को लगता है, काठ मार गया है। कहीं बकरा भी सियार को मार सकता है?’ सियार ने घबराते हुए बंदर से कहा-‘सच मानो बंदर भाई। मैंने अभी कुछ देर पहले अपने कानों से बकरे को कहते हुए सुना कि बकरा मेरा कलेजा निकाल कर अपने बच्चों को खाने को देगा। बंदर को विश्वास नहीं हुआ। सियार को हिम्मत बंधाते हुए वह
बोला-‘चलो, मैं भी देखूं, आखिर वह बकरा है कैसा? तुम ऐसा करो, मेरी पूंछ अपनी पूंछ से बांध लो, मैं तुम्हारी पीठ पर बैठता हूं। दोनों चलकर उस बकरे को देखते हैं।’

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सियार अपने पूंछ से बंदर की पूंछ बांधकर उसे पीठ पर बैठा कर जिस चोटी पर बकरा था, वहां चल पड़ा। पहाड़ की चोटी से जब बकरे ने सियार की पीठ पर बैठकर बंदर को आते हुए देखा, तो वह ऊंची आवाज में बकरी से बोला ‘अरे, बकरी मेरा मित्र बंदर पूंछ बांधकर एक सियार को ला रहा है। उसके यहां पहुंचते ही में सियार का कलेजा निकालकर बच्चों को खिलाऊंगा।’ यह सुनकर सियार अत्यंत भयभीत हो गया।

जब वे दोनों हिम्मत बांधकर बकरे के निकट पहुंचे तो बकरा हवा में उछाल मारकर मुस्कुराते हुए बंदर से बोला-‘अरे मित्र बंदर, तुम बड़े धूर्त हो। तुम तो कहते थे मैं दसों सियार लेकर आऊंगा, पर तुम तो एक ही सियार लेकर आये हो।’ बकरे के मुंह से यह बात सुनकर सियार ने प्राणों के भय से आंखें बंद कर दौड़ लगा दी। पूंछ बंधी होने के कारण बंदर भी उसके साथ घिसटता गया। सियार ने डर कर ज्योंही लंबी छलांग लगाई,सियार और बंदर दोनों पहाड़ी के ढलान से लुढ़क कर एक गहरी खाई में गिर पड़े और मर गये। तब बकरी निश्चित हो गई और निर्भय होकर अपने बच्चों का लालन-पालन करने लगी।

इन्हे पढ़े –

गढ़वाली लोक कथा , सरग दिदा पाणी ,पाणी

ठेकुआ -ठेकुली की कुमाऊनी लोककथा।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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