Monday, April 28, 2025
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ठेकुआ -ठेकुली की कुमाऊनी लोककथा। | A famous kumauni folk tales

ठेकुआ -ठेकुली कुमाऊँ की एक प्रसिद्ध कुमाऊनी लोक कथा है। आपने कुमाऊँ में ये किस्सा तो सुना ही होगा –

लक्ष्मी नाम की झाड़ू लगाए। 
धनपति मांगे भीख। 
अमर नाम का मर गया 
तो मेरा ठेकुआ ही ठीक।

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आज इसी किस्से पर आधारित एक कुमाऊनी लोककथा का संकलन करने जा रहे हैं। पहले मनोरंजन के साधन नहीं होते थे। पहाड़ो में आमा बुबु आग के किनारे बैठकर बड़े चाव से लोककथाएं सुनाते थे। और हम उन कथाओं में इस कदर खो  जाते थे कि कहानी हमारे आगे चलचित्र की तरह चलने लगती थी।

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ठेकुआ -ठेकुली की कुमाऊनी लोककथा –

कहते हैं प्राचीन काल में एक गांव में एक लड़का रहता था। लड़का अच्छे स्वभाव का और मेहनती था। सबके साथ उसका व्यवहार भी अच्छा था। लेकिन उसमे एक कमी थी ,वह लम्बाई में थोड़ा नाटा था। मतलब उसकी हाइट छोटी थी। तो गांव के लोग उसे ठेकुआ कहकर बुलाते थे। या यूं समझ लीजिये उसे उसकी छोटी हाइट के लिए चिढ़ाते थे। लेकिन उसे कोई फरक नहीं पड़ता था। वो बस अपने काम पर फोकस करता था। उनकी बातों पर ध्यान नहीं देता था।

अब धीरे -धीरे समय बीता उसके अच्छे स्वभाव और मेहनत की वजह से क्षेत्र में उसका नाम काफी मशहूर हो गया था। अब वो शादी लायक हो गया तो एक अच्छी गुणवंती लड़की से उसकी शादी कर दी गई। लड़की भी उसकी तरह स्वभाव की अच्छी थी। अब लोग लड़के को ठेकुआ नाम से पुकारते थे तो ,लड़की को ठेकुआ की पत्नी होने के नाते ठेकुली नाम से पुकारने लगे। द्दोनो की जोड़ी को ठेकुआ -ठेकुली के नाम से पुकारते थे।

जहाँ लड़का लोगो की इस हरकत पर ध्यान नहीं देता था ,वही लड़की को अपने पति और खुद को ठेकुआ ठेकुली कहलवाना अच्छा नहीं लगता था। वो बार -बार कहती थी कि ये नाम ठीक नहीं है। आप अपना कोई और नाम बदलो। लेकिन ठेकुआ अर्थात लड़का कहता था कि नाम में कुछ नहीं रखा है। इंसान के कर्म अच्छे होने चाहिए। नाम कुछ भी हो कोई फर्क नहीं पड़ता है।

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ठेकुवा -ठेकुली

लेकिन ठेकुली नहीं मानती थी। एक बार जब वो ज्यादा जिद करने लगी तो ,ठेकुआ ने कहा ,अच्छा ठीक है। हम कही बहार शहर में जायेंगे वहां से नया नाम सोचकर वही नाम प्रचारित करेंगे। दोनों शहर पहुंच गए ,वहाँ उन्हें एक औरत झाड़ू लगाते हुए मिल गयी। तब उन्होंने उस औरत से उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम लक्ष्मी बताया। दोनों ने चौंककर एक दूसरे को देखा और आगे बढ़ गए।

आगे जाकर उन्होंने देखा एक आदमी भीख मांग रहा है। ठेकुआ ठेकुली ने उस आदमी से उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम धनपति बताया। उसके नाम को सुनते ही ठेकुली की चेहरे की हवाइया उड़ गई। फिर ठेकुआ ठेकुली आगे बढ़ गई। आगे बढ़कर उन्होंने देखा की एक शवयात्रा जा रही थी। तब उन्होंने उसके बारे में पूछा तो लोगो ने कहा कि इसका नाम अमर सिंह था ,बेचारा आज मर गया। तब ठेकुआ ने ठेकुली से कहा अब देख ले ठेकुली ! इतना हो गया या अच्छे नाम की तलाश में और आगे बढे ?

तब ठेकुली ने कहा ,नहीं अब नाम की खोज में आगे नहीं जाना। मै समझ गई नाम में कुछ नहीं रखा है। इंसान के कर्म अच्छे होने चाहिए। और दोनों खुशी -ख़ुशी ये बोलते -बोलते अपने गांव लौट आये। ठेकुआ और ठेकुली नाम के साथ खुशी -ख़ुशी समय बिताने लगे।

लक्ष्मी नाम की झाड़ू लगाए। 
धनपति मांगे भीख। 
अमर नाम का मर गया 
तो मेरा ठेकुआ ही ठीक।

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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