Thursday, May 15, 2025
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श्री 1008 मूल नारायण देवता , कुमाऊं के कल्याणकारी देवता।

भगवान् 1008 मूल नारायण का पुरातन देवालय बागेश्वर जनपद के अन्तर्गत बागेश्वर-पिथौरागढ़ मोटर मार्ग पर नाकुरी पट्टी में उसके घुर अंचल में घरमघर से 9 किलोमीटर चौकोड़ी से 18 किमी. उत्तर पर्वत शिखर पर, समुद्रतट से 9,126 फीट या 2765.4 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस पर्वत को ‘शिखर पर्वत’ के नाम से पुकारा जाता है। ‘शिखर जाने के कारण इस मंदिर को ‘शिखर मंदिर’, मुरैन’ भी कहा जाता है।

श्री 1008 मूल नारायण भगवान की कहानी –

स्कन्दपुराण के मानसखण्ड में भगवान् मूलनारायण पूर्वजन्म की गाथा, भगवान् नारायण के दर्शन तथा उनका अंश होने के वरदान आदि का विस्तृत वर्णन दिया गया है तथा कहा जाता है कि ये नागों का इष्टदेवता है। इसके सम्बन्ध में कई जनश्रुतियां प्रचलित हैं। यह भी माना जाता है कि सनीगाड़ व भनार में स्थित मंदिर के अधिदेवता, नौलिंग व बजेण इन्ही  के पुत्र थे। एक अन्य जनश्रुति में कहा जाता है कि ये मघन नामक ऋषि और मायावती के पुत्र थे। जिन्होंने अपने निवास के लिए इस रमणीय पर्वत शिखर को चुना।

जन श्रुतियों के अनुसार मूल नारायण भगवान् का जन्म दक्षिण भारत में मघना ऋषि और माता मायावती के घर पर हुवा था। मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण इनका नाम मूल नारायण पड़ा। मूल नारायण बचपन से ही तेजस्वी बालक थे। उनके तेज को देख कर ईर्ष्या रखने वाले पंडितों ने उस बालक के बारे में नकरात्मक प्रचार करना शुरू कर दिया। धीरे -धीरे मघना ऋषि के दिमाग में ये बात डाल दी की ये कुल घाती बालक है।

 मूल नारायण

उन्होंने उसके लिए एक ऐसा सोने का बक्सा बनाया जो डूबे ना ,और उसमे बालक को रख कर नदी में विसर्जन कर दिया। विसर्जन करते ही उनका सपना हिमालय में माँ नंदा को हुवा , बुवा मै संकट में हूँ ,मुझे नदी में बहा दिया गया है। माँ नंदा उन्हें अपने साथ हिमालय के शिखर पर्वत पर ले आई। मूल नारायण जी को यह पर्वत बहुत अच्छा लगा उन्होंने माँ नंदा से कहा कि वे हिमालय नहीं जायेंगे उन्हें यही रहना है। तब माँ नंदा उन्हें यहाँ छोड़कर हिमालय चली गयी। मूल नारायण जी के बारे में इसी प्रकार की अनेक लोककथाएं प्रचलित हैं। जिनसे सिद्ध होता है की ये सिद्ध देवता हैं जो अपने भक्तों का सदा कल्याण करते हैं।

यहां पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन विशेष उत्सव (मेले) का आयोजन होता है जिसमें आसपास के निवासियों की विशेष भागीदारी रहती है। नन्दादेवी पर्वतमाला के सम्मुख में स्थित इस मंदिर से नन्दादेवी पर्वतमाला के हिमाच्छादित शिखरों का भव्य दृश्य दृष्टिगोचर होता है।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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