Thursday, May 15, 2025
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कुमाऊं में पैसे को डबल क्यों कहते हैं ! जानिए यहाँ

कुमाऊं में पैसे को डबल कहते हैं –

पहाड़ो में अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग स्थानीय भाषा या बोली का प्रयोग होता है। उत्तराखंड के पहाड़ी हिस्सों में मुख्यतः तीन भाषाओं या तीन बोलियों का प्रयोग होता है। जिसमे गढ़वाली , कुमाऊनी और जौनसारी भाषा प्रमुख है। इन स्थानीय भाषाओं में दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाली कुछ चीजों के लिए ऐसे अजीब शब्दों का प्रयोग जिनका वास्तविक अर्थ समझने में बहुत परेशानी होती है या समझ में ही नहीं आता। क्योंकि पहाड़ की स्थानीय भाषाएँ या बोलियां देवनागरी में लिखी जाती हैं इसलिए काफी हद तक समझ में आ जाती है।

कुछ खास शब्द इसमें नहीं समझ में आते हैं ,जिनका मुख्य कारण है इन शब्दों का विदेशी होना और विदेशी भाषा के शब्दों में लोक लहजे का तड़का लग जाना ! मतलब प्राचीन काल में हमारी लोक भाषा के लिए कुछ शब्द हमारे पूर्वजों ने विदेशो से आयात किये और उन्हें अपनी पहाड़ियत से सजाकर अपनी पहाड़ी भाषा का यूनिक शब्द बना दिया। पहाड़ो में प्रयुक्त होने वाला ऐसा ही एक शब्द है डबल मतलब पैसा आपको जानकर हैरानी होगी कि उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में पैसे को डबल कहते हैं। वर्तमान में रूपये को रुपे कहते हैं डबल शब्द एक से 100 तक के पैसों के लिए प्रयुक्त किया जाता है। जैसे दस पैसे को दस डबल बोलते हैं।

अब सवाल यह उठता है कि कुमाऊं में पैसे को डबल क्यों बोलते हैं ? और कब से इस शब्द का प्रयोग शुरू हुवा ? हालांकि इसके बारे हल्की थोड़ी सी जानकारी यह है कि कुमाऊं में सबसे पहले पैसों के लिए डबल शब्द का प्रयोग अंग्रेजी शाशन काल में हुवा। बताते हैं कि अंग्रेजी सरकार ने उन्नीसवीं शताब्दी में ब्रिटिश सम्राट की तस्वीर वाला सिक्का चलाया जिसकी कीमत स्थानीय देसी सिक्कों की दोगुनी थी।

कुमाऊं में पैसे को डबल कहते हैं।

अर्थात दो देसी सिक्के बराबर एक सिक्का विदेशी सिक्का होता था। तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने उन सिक्कों को दो स्थानीय सिक्कों में बदलवाया। वो तो अंग्रेज थे वे अधिकतम अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते थे। सम्भवतः उस समय अंग्रेजो ने ब्रिटिश मुद्रा को बदलने के लिए डबल ( दो स्थानीय सिक्के मांगे ) तबसे कुमाऊं में पैसों और सिक्कों का नाम डबल प्रचलित हो गया।

कुमाऊं में पैसों को डबल कहने के बारे में कुमाउनी भाषा और अल्मोड़ा के आस पास की संस्कृति और उसके विस्तृत स्वरूप के बारे जानने वाले श्री नईम अंसारी जी ने अपनी किताब कुमाऊनी भाषा के विदेशी शब्द में कुमाऊं में पैसे को डबल शब्द के प्रयोग पर कुछ इस प्रकार व्याख्या की है –

डबल (दुगना, दाेगुना, दाेहरा, युग्म, धन, पैसा, पहले एक ताेला तांबे से बने –

सिक्के का मूल्य एक पैसा हाेता था। उन्नीसवीं शताब्दी के आरंम्भ में जब ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा ब्रिटिश सम्राट की तस्वीर वाला सिक्का चलाया तब उसका मूल्य देशी तांबे के सिक्के का दाेगुना अर्थात डबल होता था। उस समय दो देशी सिक्के एक नये सरकारी सिक्के के बराबर थे इसलिये इस नये सिक्के काे “डबल” अर्थात पुराने सिक्के का दोगुना कहा गया जाे कालांतर में रूपये पैसे के रूप में रूढ़ हाे गया।  “म्यर पास एक लाल डबल निछ या म्यर पास एक लाल पाई लै निछ” का कुमाउनी में एक ही अर्थ है -” मैरे पास काेई धन या पैसा नहीं है”, (मु०- डबल फुकियौ तमा्श- फ़िज़ूल ख़र्च कर स्वयं को हानि पहुँचाना ) ,

निवेदन –

उपरोक्त लेख में कुमाऊं में पैसे को डबल कहने के कारण और उससे संबंधित जानकारियों का संकलन किया है इस लेख का आधार स्वयं की जानकारी और श्री नईम अंसारी की पुस्तक कुमाऊनी भाषा के विदेशी शब्द और श्री अंसारी जी फेसबुक पोस्ट है। इस लेख में हमने उत्तराखंड के मानसखंड के लोक जीवन में प्रयुक्त डबल शब्द का अर्थ और उसका इतिहास जानने की कोशिश की है।

इन्हे पढ़े –

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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