कैलुवा विनायक – भगवान गणेश का जन्मदिन गणेश चतुर्थी आ रही है और उत्तराखंड की सर्वमान्य लोकदेवी नंदा देवी का जन्मोत्सव नंदा अष्टमी के उपलक्ष में नंदा लोकजात का आयोजन चल रहा है। नंदा राजजात एशिया की सबसे लम्बी पैदल यात्रा है। यह राजजात बारह वर्ष में एक बार आयोजित की जाती है। नंदा राजजात पहाड़ अनेक पड़ावों से होते हुए हिमालयी क्षेत्र में प्रवेश करती है। और हिमालयी क्षेत्र में प्रवेश से पहले एक पड़ाव पड़ता है कैलुवा विनायक। जैसा की नाम से स्पष्ट है विनायक मतलब है यह पड़ाव भगवान् गणेश से जुड़ा है।
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कैलुवा विनायक –
नन्दा राजयात्रा के मध्य में पड़ने वाला यह स्थान गढ़वाल मंडल के चमोली जनपद के अन्दर आता है। मार्ग में बेदिनी बुग्याल एवं पातर नचौणी के बाद इसकी दूरी लगभग 5 किमी. होगी तथा समुद्रतल से इस स्थान की ऊंचाई लगभग 15000 फीट की होगी। यहां पर गणेश को समर्पित एक मंदिर है जिसे कैलुवा विनायक कहा जाता है। यहां पर गणेश की हरे पत्थर की एक मूर्ति है जिसका आकार 58x48x13 सेमी. आंका गया है। मूर्ति में गणेश को चतुर्भुज, त्रिनेत्र, एकदन्त एवं गजवदन उत्कीर्ण किया गया है।
शायद इसके हरित वर्ण को ही श्याम वर्ण मानकर इसे कैलुवा नाम दे दिया गया हो। गणेश को प्रणाम करने के बाद ही राजयात्रा रहस्यमय रूपकुण्ड की ओर अग्रसर होती है जो यहां से लगभग 5 किमी. होगा। यहाँ स्थापित गणेश की मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि इसकी स्थापना लगभग आठवीं शताब्दी में की गई होगी। यह मूर्ति किसने स्थापित की यह निश्चित कह पाना मुश्किल है।
बुजर्ग लोगों के अनुसार प्राचीन काल में बुग्याली क्षेत्रों में चरवाहों द्वारा विनायक ( विनेक ) स्थापित करने की परम्परा रही है। चरवाह मार्ग रक्षण और मार्ग पहचान के रूप में माना जाता था। पहाड़ी जंगली क्षेत्र में बूढी देवी या कठपतिया देवी स्थापना की भी परंपरा रही है।
हिमालयी क्षेत्र में प्रवेश के लिए कैलुवा विनायक से अनुमति मांगी जाती है –
भगवान् गणेश की उत्पत्ति माँ पार्वती के द्वारपाल के रूप में मानी जाती है। और कैलुवा विनायक में भी भगवान गणेश हिमालयी क्षेत्र के द्वारपाल के रूप में पूजे जाते है। जब पार्वती स्वरूपा माँ नंदा की राजजात यहाँ पहुँचती है तो पुरे विधि विधान से कैलुवा विनायक की पूजा करके उनसे हिमालयी क्षेत्र में प्रवेश की आज्ञा ली जाती है और यात्रा के निर्विघन पूर्ति का वरदान मांगते हैं।
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