Sunday, November 17, 2024
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धारी देवी उत्तराखंड का चमत्कारी एवं रहस्यमय मंदिर

धारी देवी पर निबंध

प्रस्तावना – उत्तराखंड को देवभूमि है। यहाँ कण कण में दैवीय शक्तियों का वास है। यहाँ सनातन धर्म के लगभग ऋषि मुनियो ने सैकड़ों साल की  तपस्या करके अपने तप से इसे देवभूमि के रूप में सवारा है। दैवीय शक्तियों ने यहाँ समय समय पर जन्म लेकर ,इस भूमि देवभूमि बना दिया है। माँ धारी देवी भी उत्तराखंड की प्रमुख दैवीय शक्तियों में एक है। धारी देवी (Dhari devi) को उत्तराखंड की रक्षक कहा जाता है। इन्हे उत्तराखंड के चार धामों की रक्षक देवी भी कहा जाता है। यदि आप बिना धारी देवी के दर्शन किये ,चार धाम की यात्रा करते हो तो आपके चार धामों की यात्रा अपूर्ण मानी जाती है।

धारी देवी का इतिहास –

उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 58 पर श्रीनगर नगर से लगभग 15 किलोमीटर दूर कलियासौड़ बस अड्डे के पास स्थित है माँ धारी देवी का मंदिर। अलकनंदा की धारा में प्राप्त होने के कारण माँ धारी देवी के नाम से विख्यात हुई। इसके बारे कहा जाता है कि 1994 की बाढ़ के समय अलकनंदा नदी में कालीमठ (चमोली) से बहकर यहाँ आई ,और रेत में दबी पड़ी हुई थी। कुंजु धुनार नामक केवट ने स्वप्न में माता का आदेश पाकर रेत से निकाल कर एक चबूतरे में स्थापित किया। इस मंदिर में माँ महाकाली के सौम्य रूप की पूजा की जाती है। इसके अतिरिक्त धारी देवी के बारे में एक और मान्यता प्रचलित है। कहते हैं जब नवी या दसवीं शताब्दी आस पास उत्तराखंड आये तो उन्होंने माता की मूर्ति को सूरजकुंड निकाल कर स्थापित किया। और स्थानीय पुजारियों को उसकी पूजा का कार्यभार सौंप दिया।

2013 से पूर्व तक मंदिर यथा स्थान पर ही था। लेकिन 16 जून 2013 को अलकनंदा हाइड्रो पावर द्वारा 330 मेगावाट अलकनंदा हाइड्रो इलेक्ट्रिक बांध (Alaknanda Hydro Electric Dam) बनाने के लिए मंदिर को अपने मूल स्थान से हटा दिया गया था। मंदिर को अलकनंदा नदी से लगभग 611 मीटर ऊंचाई पर स्थान्तरित कर दिया गया था। उसी दिन 16 जून 2013 को देश की सबसे भीषण आपदा आई थी। इस विनाशकारी बाढ़ ने पुरे तीर्थ स्थल को तहस नहस कर दिया था। लोगो ने इसे माँ धारी देवी का कोप माना था।

धारी देवी का नया मंदिर अपने मूलस्थान पर अलकनंदा नदी के बीचों -बीच बनाया गया है। जनवरी 2023 में माँ धारी देवी को 9 साल बाद उनके मूल मंदिर में स्थापित कर दिया गया है।

Dhari devi
Dhari devi temple

धारी देवी की कहानी-

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माँ धारी देवी के बारे में एक लोक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार केदारघाटी के सात भाई कठैतों की एकलौती बहिन थी। उसके बारे में यह धारणा प्रचलित थी कि,यह त्योहारों के समय महाकाली रूप धर मनुष्यों को खा जाती है। यहाँ तक कि एक एक करके अपने छह भाईयो को खा गई। जब सबसे छोटे भाई (सातवें भाई) की बारी आई तो वो तलवार लेकर दरवाजे के पीछे छुप गया। जैसे ही वो झुक कर घर के अंदर घुसने लगी तो ,उसके भाई ने उसके कमर में वार करके उसके दो टुकड़े कर दिए। और हाथ भी काट डाले। इसीलिए आज भी,हाथ बिहीन आधे धड़ (कमर से ऊपरी भाग) की मूर्ति रूप में पूजा की जाती है।

धारी देवी का रहस्य-

धारी देवी मंदिर को उत्तराखंड के चमत्कारी और रहस्यमई मंदिरो में गिना जाता है। कहते हैं माँ धारी देवी की मूर्ति रंग, भाव बदलती है। कहते हैं माता की मूर्ति का रूप सुबह सौम्य, दिन में विकराल, और शाम को शांत दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त  कई भक्तों ने ,इस मूर्ति को एक ही दिन में अलग अलग रंगो में परिवर्तित होते हुए पाया है। कहते हैं अपने सौभाग्यशाली भक्तों को कभी योगिनी के रूप में तो कभी चांदी की छड़ी लेकर घूमती हुई बुढ़िया के रूप में दर्शन देती है।

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धरी देवी मंदिर का धार्मिक महत्व

यहाँ के समाज में धारी देवी का बहुत बड़ा धार्मिक महत्त्व है। धारी देवी मंदिर को उत्तराखंड के प्रमुख चमत्कारिक मंदिरों में एक माना जाता है। बिना धारी देवी के दर्शन के चार धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। धारी देवी को चार धाम की रक्षक देवी माना जाता है। यहाँ के लोगों की धरी देवी के प्रति अगाध श्रद्धा है। यह देवी न्याय की देवी मानी जाती है। सच – झूठ और न्याय अन्याय का निर्णय करने के लिए माँ के द्वार पर गुहार लगाई जाती है। यहाँ माँ को काली के रूप में पूजा जाता है। और लोगों की मान्यता है कि यह देवी तत्काल निर्णय करती है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण 2013 की आपदा को माना जाता है। मूर्ति को हटाने के चंद घंटो बाद देवभूमि में विनाशकारी आपदा आई थी।

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Bikram Singh Bhandari
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बिक्रम सिंह भंडारी देवभूमि दर्शन के संस्थापक और लेखक हैं। बिक्रम सिंह भंडारी उत्तराखंड के निवासी है । इनको उत्तराखंड की कला संस्कृति, भाषा,पर्यटन स्थल ,मंदिरों और लोककथाओं एवं स्वरोजगार के बारे में लिखना पसंद है।
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