Saturday, April 12, 2025
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अल्मोड़ा का नाम पड़ा था पहाड़ की इस फेमस घास के नाम पर ।

अल्मोड़ा का नामकरण कैसे हुवा?

पहाड़ की इस घास के नाम पर पड़ा अल्मोड़ा का नाम :

अल्मोड़ा उत्तरखंड के कुमाऊं क्षेत्र का प्रमुख जिला व नगर है । चंद राजाओं ने अल्मोड़ा की स्थापना की। अल्मोड़ा का पुराना नाम ,राजापुर और आलमनगर था। कालान्तर में इस क्षेत्र में रुमेक्स हेस्टैटस नामक घास अधिक पाए जाने और इस क्षेत्र में इसका ज्यादा प्रयोग होने के कारण इस घास के कुमाउनी नाम भिलमोड़ा, चलमोड़ा , अल्मोड़ा के नाम पर इस नगर का नाम अल्मोड़ा पड़ा। क्योंकि यह घास अल्मोड़ा क्षेत्र में अधिक पाई जाती है। तत्कालीन समय में कटारमल सूर्य मंदिर में वर्त्तन साफ करने के लिए इस घास का बहुताय प्रयोग होता था।

रुमेक्स हेस्टैटस वैज्ञानिक नाम वाले पौधे को  को कुमाउनी में चलमोरा, चलमोड़ा, भीलमोरा, भिलमोड़ा, अल्मोड़ा आदि नामो से जाना जाता है। हिंदी में चलमोड़ा को चुर्की ,चुरकी , चुर्का ,चुरका या खट्टा पालक भी कहते हैं। पंजाबी में खट्टीमल , कटटमल कहते हैं। भिलमोड़ा को अंग्रेजी में ARROWLEAF DOCK कहते हैं। यह पादप पलिगनोसी (POLYGONACEAE ) परिवार से सम्बन्ध रखता है। यह एक से दो फ़ीट ऊँची झाड़ी के रूप में उगता है। इसमें असंख्य छोटे-छोटे गुलाबी फूल गुच्छों के रूप में उगते हैं। यह पादप पहाड़ों में ज्यादा होता है। भारत के लगभग सभी हिमालयी राज्यों में यह पादप पाया जाता है। इसके साथ नेपाल आदि पहाड़ी क्षेत्रों में भी यह पादप पाया जाता है।

अल्मोड़ा का नाम

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दोस्तों यह तो था चालमोरा घास का संक्षिप्त वैज्ञानिक परिचय! अब बताते हैं इस औषधीय जड़ी बूटी के फायदे। भिलमोड़ा का सबसे बड़ा फायदा यह हैं कि ,यह छोटे मोटे कीटों के विष को निष्क्रिय कर देता है। इसका सचित्र उदाहरण स्वयं मै हूँ।

बचपन में एक बार मुझे बिच्छू ने काट लिया था। मै दर्द से कराह रहा था।  मेरी दादी आनन् फानन में खेत में गई , हां से चालमोरा (भिलमोड़ा) के कुछ पत्ते तोड़ कर लायी, उसने उन पत्तों को हथेली में मसल के ,उसका अर्क बिच्छू के कटे हुए स्थान पर डाल दिया। धीरे -धीरे दर्द कम हो गया और एकदम चमत्कारिक रूप से बिच्छू के डंक का असर खत्म हो गया। इसके साथ साथ यह ,मधुमखी आदि के डंक पर भी शत प्रतिशत काम करती है।

अल्मोड़ा का नाम
भिलमोरा या चलमोरा का पौधा

इसके अलावा यह पादप, श्वास रोग में, खासी की बीमारी में, फेफड़ो और बुखार में भी लाभदायक है। इसके अलावा यदि आपके शरीर में कहीं कट लग जाता है, तो आप भिलमोड़ा (चरकी ) की पत्तियों को पीस कर या हथेली में मसल कर घाव को पूरा भर दीजिये।  यकीन मानिये थोड़ी देर में घाव भी ठीक हो जायेगा और दर्द भी काम हो जायेगा।

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इसमें एंटीसेप्टिक और एन्टीइनफ्लेम्मेटरी गुण पाए जाते हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है। यह दर्द निवारक का काम भी करते हैं। इसका तना, जड़ और पत्तियों का प्रयोग किया जाता है। बकरियां इसे बड़े चाव से खाती हैं। दादी तो इसे बकरियों की दंतमंजन कहती थी।

मित्रों यदि आप उत्तराखंड या किसी भी हिमालयी पहाड़ी क्षेत्र की यात्रा पर निकल रहें ,तो ARROWLEAF DOCK, रुमेक्स हेस्टैटस (चलमोरा) को पहचानना सीख जाईये क्युकी यह पादप इतना गुणवंती पादप है, कि जरूरत के समय यह आपके फर्स्ट ऐड के रूप में कार्य कर सकता है।

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नोट – यह एक शैक्षणिक लेख है , औषधीय प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। 

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Bikram Singh Bhandari
Bikram Singh Bhandarihttps://devbhoomidarshan.in/
बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।
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