उत्तराखंड की सबसे प्रसिद्ध मिठाई है, अल्मोड़ा की बाल मिठाई, सिगोड़ी, चॉकलेट मिठाई और डीडीहाट की खेंचुवा मिठाई।अब आप में से कुछ लोग सोच रहे होंगें कि बाल मिठाई का नाम तो हमने सुना है, लेकिन ये खेंचुवा मिठाई कहाँ से आ गई? और पिथौरागढ़ और डीडीहाट के आस पास के मित्रों को तो इस मिठाई का स्वाद दिल तक घुला होगा।
जैसा कि नाम से ही इसकी पहचान हो रही है, खेंचुवा। मगर यह खाने में बहुत लज़ीज़ होती है। इसका स्वाद दिल से एकदम आत्मा में उतर जाता है। कुमाऊँ आँचल की एक और सौगात, परदेसी को अपने घर की याद दिला देती है।मेरे एक डीडीहाट के मित्र ने मुझे यह मिठाई चखाई तो, सच्ची में मजा आ गया। इसका स्वाद और सुगंध पर्वतीय आँचल की याद दिला देता है।
बस दोस्तों इतनी गलती कि, उसकी फोटो नही ले पाया। अगली बार सौभाग्य प्राप्त हुवा खेंचुवा खाने का तो फ़ोटो पक्का शेयर करूंगा। इस बार आप गूगल से ली हुई फ़ोटो से काम चला लीजिए। अगली बार पक्का फ़ोटो अपडेट कर दूंगा।
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खेंचुवा मिठाई का जन्म –
खेंचुवा की शुरुआत देवीधुरा से आये नैन सिंह नेगी जी के परिवार ने 80 के दशक में पिथौरागढ़ के डीडीहाट नगर में की थी। उस समय दूध की कमी की वजह से कम बनती थी। शने शने इसकी विशेषता की वजह से इसकी मांग बढ़ती गई। और इसको बनाने के लिए दूध की मांग भी बढ़ गई।
खेंचुवा एक प्रकार की हल्की तरल मिठाई होती है। इसकी विशेषता यह होती है कि यह लंबी खिंच जाती है, इसलिए इसको खेंचुवा मिठाई कहा जाता हैं। यह लगभग कलाकन्द मिठाई की तरह होती है।
अपनी इसी विशेषता के कारण यह मिठाई , डीडीहाट से पिथौरागढ़, समूचे कुमाऊं ,गढ़वाल और मैदानों तक प्रसिद्ध है। अब तो शादियों में भी खेंचुवा की डिमांड आती है। कैलाश मानसरोवर यात्रा के यात्रियों को भी यह मिठाई बहुत अच्छी लगती है। वो लोग यात्रा से आने के बाद यहाँ से घर के लिए मिठाई लेकर जाते हैं।
खेंचुवा कहाँ से खरीदें-
वैसे तो डीडीहाट, पिथौरागढ़, और अल्मोड़ा के कई दूकानों में खेंचुवा मिठाई मिलती है। मगर डीडीहाट के नेगी जी की दुकान की खेंचुवा सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। हो भी क्यों ना , नेगी जी का परिवार खेंचुवा का जनक है।
जैसे- अल्मोड़ा के खीम सिंह मोहन सिंह की बाल मिठाई प्रसिद्ध है। ठीक वैसे ही डीडीहाट के नेगी जी की खेंचुवा प्रसिद्ध है।
कैसे बनती है खेंचुवा –
डीडीहाट की प्रसिद्ध खेंचुवा नेगी परिवार की खोज है। लोग बताते हैं कि 80 के दशक में नेगी परिवार ने अलग अलग प्रकार की मिठाई ट्राय की। अंत मे उन्हें खेंचुवा के रूप में सफलता मिली।
खेंचुवा बनाने के लिए शुरुआत में भैंस के अधिक फैट वाले दूध का प्रयोग होता था। लेकिन अब मांग अधिक होने के कारण ,उच्च फैट वाला गाय का दूध भी प्रयोग किया जाता है।
इसको बनाने के लिए अधिक फैट वाले दूध को ,चीनी के साथ ,खूब पकाते हैं ।और तब तक पकाते हैं, जब तक वह दूध इतना गाढ़ा हो जाय ,और एक लीच लीची खिंचाव वाली मिठाई बन जाती है।खेंचुवा काफी हद तक ,अल्मोड़ा रानीखेत में बनने वाली कुंद की मिठाई जैसा होता है।
निवेदन- मित्रों यह मिठाई हमारे अंचल की ,हमारे भाइयों द्वारा आविष्कार की हुई ,कुमाऊ उत्तराखंड की पहचान है। यदि यह लेख अच्छा लगा हो तो जरूर शेयर करें।
फोटो – साभार गूगल।
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