Home कुछ खास उत्तराखंड के नाम पर आधारित पौराणिक कहानी।

उत्तराखंड के नाम पर आधारित पौराणिक कहानी।

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उत्तराखंड के नाम
उत्तराखंड का नाम

उत्तराखंड के नाम पर आधारित पौराणिक कहानी-  हिमालय की गोद में बसा प्राकृतिक प्रदेश उत्तराखंड का गठन 09 नवंबर 2000 को उत्तराँचल नाम से हुवा किन्तु दिसम्बर 2006 को इसका पुनः नाम उत्तराखंड कर दिया गया। पौराणिक ग्रंथो में केदारखंड ,मानसखंड और हिमवंत के नाम से प्रसिद्ध इस भू भाग को उत्तराखंड का नाम महाभारत काल में मिला। उत्तराखंड के नाम के पीछे ये महाभारतकालीन घटना को बताया जाता है।

तदनुसार  महाभारत काल में उत्तराखंड के भू भाग में ,राजा विराट राज्य करते थे ,उनकी राजधानी कत्यूरकालीन बैराठ (गेवाड़) थी। महाभारत की कथानुसार हम सबको विदित है कि ,पांच पांडवो और उनकी भार्या द्रौपदी ने ,महाराज विराट के राज्य में रहकर अपना अज्ञातवास पूरा किया था।

अज्ञातवास पूर्ण होने के बाद जब पांडव अपने असली रूप में राजा विराट के सम्मुख आये तो सा,राजा ने उनके आदर सत्कार के साथ ,अर्जुन के साथ अपनी पुत्री उत्तरा का विवाह का प्रस्ताव रखा। किन्तु अर्जुन ने कहा कि अज्ञात वास में बृहनलला के रूप में उत्तरा का संगीत शिक्षक होने के कारन ,वे और उतरा गुरु शिष्या के पवित्र बंधन में बध गए हैं। उत्तरा उनके लिए अब पुत्री सामान है ,और वे उससे विवाह नहीं कर सकते हैं। किन्तु राजा विराट के स्नेह और आग्रह को देखते हुए ,पुत्रवधु रूप में जरूर स्वीकार कर सकते हैं।

उनके इस सुझाव पर राजा विराट ने अपनी पुत्री उत्तरा का विवाह ,अर्जुन के पुत्र  अभिमन्यु ने कर दिया। और राजा विराट ने हिमालय का यह राज्य अपनी पुत्री उतरा को यौतुक में दे दिया। इस राज्य या क्षेत्र को उत्तरा का स्त्रीधन माने जाने के कारण इसका नाम उत्तराखंड कहा जाने लगा।

उत्तराखंड का अर्थ कई लोग उत्तर का भाग समझते हैं।  लेकिन यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि इस राज्य का नाम उत्तरखंड न होकर उत्तराखंड है। अतः उत्तराखंड का अर्थ  उत्तरा का खडं तार्किक लगता है।

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संदर्भ- प्रो DD शर्मा उत्तराखंड ज्ञान कोष

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बिक्रम सिंह भंडारी, देवभूमि दर्शन के संस्थापक और प्रमुख लेखक हैं। उत्तराखंड की पावन भूमि से गहराई से जुड़े बिक्रम की लेखनी में इस क्षेत्र की समृद्ध संस्कृति, ऐतिहासिक धरोहर, और प्राकृतिक सौंदर्य की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। उनकी रचनाएँ उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थलों और प्राचीन मंदिरों का सजीव चित्रण करती हैं, जिससे पाठक इस भूमि की आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत से परिचित होते हैं। साथ ही, वे उत्तराखंड की अद्भुत लोककथाओं और धार्मिक मान्यताओं को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। बिक्रम का लेखन केवल सांस्कृतिक विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि वे स्वरोजगार और स्थानीय विकास जैसे विषयों को भी प्रमुखता से उठाते हैं। उनके विचार युवाओं को उत्तराखंड की पारंपरिक धरोहर के संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक विकास के नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी भावनात्मक गहराई और सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि से परिपूर्ण है। बिक्रम सिंह भंडारी के शब्द पाठकों को उत्तराखंड की दिव्य सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत की अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाते हैं, जिससे वे इस देवभूमि से आत्मिक जुड़ाव महसूस करते हैं।

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